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जानिए पवित्र तीर्थस्थल मक्का-मदीना एवं हज यात्रा के बारे में

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Makka Madina History In Hindi

सऊदी अरब में स्थित मक्का-मदीना मुस्लिम समुदाय का सबसे पवित्रतम स्थल है। मुस्लिमों के लिए यह जन्नत का दरवाजा के रुप में जाना जाता है। इसके साथ ही यह इस्लाम के पांच प्रमुख स्तंभों में से भी एक माना जाता है।

हर मुस्लिम अपनी जिंदगी में कम से कम एक बार यहां जाने की ख्वाहिश रखता है। मक्का-मदीना की यात्रा को ही ‘हज यात्रा’ के नाम से जाना जाता है। हर साल लाखों मुस्लिम हज यात्रा पर जाते हैं।

मक्का में एक पवित्र क्यूब आकार का काबा भी स्थित है, जिसके यहां दर्शन के लिए आने वाले प्रत्येक हजयात्री परिक्रमा लगाते हैं और फिर बाद में इस चूमते हैं। ऐसा करने से ही हज यात्रा पूर्ण मानी जाती है।

ऐसा माना जाता है कि, अल्लाह की इस पावन धरती पर जो भी मुस्लिम जाता है, उसे जन्नत नसीब होती है एवं वह अपने जीवन में खूब तरक्की करते हैं।

इस पवित्र तीर्थस्थल से एक यह भी मान्यता जुड़ी हुई है कि इसी जगह कई हज़ार साल पहले पहली बार मुस्लिमों की पवित्र पुस्तक कुरान की घोषणी की गई थी।

इसके अलावा मुस्लिम धर्म के लोगों के लिए यह स्थान इसलिए भी काफी महत्व रखता है क्योंकि पैगम्बर मुहम्मद साहब ने इसी स्थल पर जन्म लिया था। वहीं प्राचीन काल से ही मक्का-मदीना व्यापारियों का भी प्रमुख केन्द्र रहा है।

तो आइए जानते हैं मुस्लिमों के इस पावन तीर्थस्थल मक्का-मदीना के बारे में एवं इससे जुड़े कुछ अनसुने, रहस्यमयी एवं चमत्कारी तथ्यों के बारे में –

पवित्र मक्का मदीना का इतिहास – Makka Madina History In Hindi

Makka Madina Ki Photo

मुस्लिमों का सबसे पवित्रतम स्थल मक्का – मदीना – History Of Mecca

इस्लाम धर्म के सबसे पावन तीर्थस्थल मक्का-मदीना सऊदी अरब की धरती पर स्थित है और यहीं पर इस्लाम धर्म का जन्म हुआ था। यह सऊदी अरब के हिजा़ज इलाके में स्थित है, जो कि मक्का सम्राज्य के शासक की राजधानी है।

समुद्र तल से यह करीब 909 फीट की ऊंची जित्राह की घाटी पर शहर से करीब 70 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। व्यापार का प्रमुख केन्द्र रहा मक्का-मदीना को ‘अल-मदीना अल-मुनव्वरा’ के नाम से भी पहचाना जाता है।

पैगम्बर हजरत मुहम्मद की जन्मस्थली माने जाने वाली मक्का शहर की आबादी करीब 20 लाख बताई जाती है, वहीं अगर हज की जायरीनों को सम्मिलत कर लिया जाए तो, यह जनसंख्या करीब 3 गुनी हो जाती है।

यहां के ज्यादातर लोग ”Haj Industry” में हज की तैयारियों से जुड़े काम ही करते रहते हैं। आपको बता दें कि इस्लामी तारीख के मुताबिक 10 जिलहज को विश्व के कोने-कोने से मुसलमान इस पवित्र तीर्थस्थल पर पहुंचते हैं, जिसे “ईदुल अजहा’ कहा जाता है।

मक्का-मदीना इस्लाम धर्म की प्रमुख पुस्तक कुरान की शुरुआत की भी मिसाल मानी जाती है। इस्लाम धर्म को मानने वाले सभी लोग अपनी 5 समय की नमाज मक्का में स्थित पवित्र काबा की तरफ मुंह करके ही पढ़ते हैं।

मक्का में विशाल मस्जिद के बीचोबीच स्थित पवित्र काबा – Makka Madina Kaba Sharif

पैगम्बर हजरत मुहम्मद साहब की जन्मस्थली माने जाने वाला मुस्लिमों के पवित्र शहर मक्का में एक विशाल मस्जिद है, जिसके बीचों-बीच में  पवित्र काबा बना है। यह क्यूब के आकार की इमारत है, जिसकी लंबाई करीब 40 फुट और चौड़ाई 33 फुट है।

ग्रेनाइट पत्थरों से निर्मित इस पवित्र काबा में  किसी भी तरह की कोई खिड़की नहीं है, जबकि यहां एक दरवाजा लगा हुआ है। इस काबा को 14 सौ साल से भी पुराना माना जाता है। पवित्र तीर्थ स्थल में स्थित इस काबा को इस्लामी परंपरा के मुताबिक इब्राहिम के समय से जोड़ा जाता है।

आपको बता दें कि, अनुपजाऊ और संकरी घाटी में बसे मुस्लिमों के सबसे पवित्रतम शहर मक्का का खर्च यहां आने वाले लाखों जायरीन (हज यात्रियों)  से प्राप्त कर द्धारा चलता है।

प्राचीन काल से ही मक्का धर्म और व्यापार का केंद्र रहा है। यह एक सँकरी, बलुई तथा अनुपजाऊ घाटी में बसा है, जहां वर्षा कभी-कभी ही होती है। नगर का खर्च यात्रियों से प्राप्त कर द्वारा पूरा किया जाता है।

इस पवित्र हज यात्रा पर जो भी जायरीन आता है, वह इस विशाल मस्जिद के मध्य मे स्थित काबा के 7 परिक्रमाएं जरूर लगाता है, और फिर इसके बाद इसें चूमते हैं इसे तवाफ नाम की रस्म से जाना जाता है।

ऐसी मान्यता है कि प्रत्येक हज यात्री द्धारा तवाफ की रस्म अदायगी के बाद ही उनकी हज यात्रा संपन्न मानी जाती है और ऐसा करना वाला शख्स की जिंदगी सफल हो जाती है, वह धन्य हो जाता है।

इस पवित्र काबा के पूर्वी कोने में भूमि से करीब 5 फीट की ऊंचाई पर एक पवित्र काला पत्थर स्थित है, आपको बता दें कि यह पवित्र काबा की संरचना सोने एवं काले पत्थर से बनी हुई है, जो कि देखने में बेहद आर्कषक है। तवाफ की रस्म यानि की काबा के परिक्रमा लगाते वक्त जायरीन काबा के कोने के पत्थरों को चूमते हैं।

आज से हजारों साल पहले पैगम्बर हजरत मोहम्मद साहब द्धारा बसाए गए इस पवित्र तीर्थ स्थल में दुनिया के कोने-कोने से मुस्लिम धर्म के लोग आते हैं और अल्लाह की इबादत कर अपने गुनाहों की माफी मांगते हैं एवं सुख-शांति की दुआ करते हैं।

आपको बता दें कि मुस्लिमों के इस पावन स्थल पर हिन्दुओं का प्रवेश वर्जित है।

पैगम्बर हजरत मुहम्मद साहब से जुड़ा है मक्का-मदीना – Mohammad Paigambar

इतिहासकारों की माने तो इस्लाम धर्म के संस्थापक पैगम्बर हजरत मुहम्मद साहब ने सऊदी अरब के मक्का शहर में 570 ईसा पूर्व में जन्म लिया था,हालांकि 620 ईसा पूर्व के आसपास बाद में वे किन्हीं कारणों की वजह से  मक्का छोड़कर मदीना चले गए थे।

इसलिए इस स्थान का मुस्लिम धर्म के लोगों के लिए काफी महत्व है, ऐसा माना जाता है कि, मुस्लिम धर्म को मानने वाले लोगों को अपनी जिंदगी में पैगम्बर साहब की जन्मस्थली मक्का की यात्रा पर जरूर आना चाहिए।

वहीं अरबी भाषा में यात्रा को “हिजरत” कहा जाता है। आपको बता दें कि मुस्लिमों के इस पावन स्थल से ही संवत हिजरी की शुरुआत मानी जाती है।

मक्का में ‘जम-जम’ का पवित्र कुआं – Zamzam Well

पैगम्बर हजरत मुहम्मद साहब की जन्मस्थली मक्का में मस्जिद के पास ‘जम-जम’ का पवित्र कुंआ बना हुआ है। यहां हज यात्रा में आने वाले जायरीन इस पवित्र कुंए का पानी ग्रहण तो करते ही हैं, साथ ही हिन्दुओं में गंगाजल की मान्यता की तरह मुस्लिम धर्म के लोग इस कुंआ का पानी अपने घरों में रखना शुभ मानते हैं।

जम-जम के पानी से लेकर कई चमत्कारी तथ्य जुड़े हुए हैं, जिसके अनुसार सालों से लाखों जायरीनों द्धारा इस पवित्र कुंए का पानी पिया जा रहा है, लेकिन आज तक ना तो पानी कभी खत्म हुआ है और न ही कभी सूखा है। ऐसी मान्यता है कि, जम-जम के पानी को पीने से शरीर में स्फूर्ति एवं ताकत मिलती है।

मक्का-मदीना की पवित्र हज यात्रा – Makka Madina Hajj Yatra

सऊदी अरब की धरती पर इस्लाम धर्म का जन्म हुआ था, हर मुस्लिम अपने जीवन में एक बार मक्का-मदीना की पवित्र हज यात्रा पर जरूर जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस तीर्थयात्रा पर जाने से न सिर्फ मुस्लिमों को सारे गुनाह माफ होते हैं, बल्कि उनका जीवन सफल हो जता है।

यही वजह है कि यहां विश्व के कोने-कोने से मुस्लिम समुदाय के लोग यहां पहुंचते हैं। मुस्लिम धर्म के लोग इस्लामी तारीख़ के अनुसार 10 जिलहज को इस पवित्रस्थल पर पहुंचते हैं, इस तारीख को “ईदुल-अजहा” एवं ‘बकरीद’ भी कहा जाता है।

वहीं हज यात्रा पूर्ण तब मानी जाती है, जब शरीयत द्वारा मान्य पशु की कुर्बानी की जाती है। मक्का पहुंचने के लिए मुख्य नगर जेद्धाह है, इस नगर पर एक बंदरगाह होने के साथ-साथ अंतराष्ट्रीय हवाई मार्ग का मुख्य केन्द्र भी है।

वहीं जेद्दाह से मक्का जाने वाले मार्ग पर अरबा भाषा में कुछ महत्वपूर्ण सूचनाएं एवं संकेत भी लिखे रहते हैं।

 मस्जिद अल हरम – Masjid Al-Haram

मुस्लिमों के सबसे पवित्र धार्मिक स्थल मक्का में ‘मस्जिद-अल-हरम’ नाम से एक दुनिया की सबसे विशाल एवं काफी प्राचीन मस्जिद बनी हुई है, जो कि काफी मशहूर है।

356 हजार 800 वर्ग मीटर में फैली भव्य मस्जिद के चारों ओर पुरातात्विक महत्व के खंभे बने हुए हैं, जिसका निर्माण हजरत इब्राहिम ने किया था। कई महान इस्लामिक जानकारों के अनुसार  इस विशाल मस्जिद के पास से ही हजरत मुहम्मद साहब ‘बुरर्क’ (पंख वाले घोड़े) पर सवार होकर ईश्वर का साक्षात् करने के लिए स्वर्ग पधारे थे।

मक्का-मदीना में मक्केश्वर महादेव मंदिर से जुड़ी अवधारणा – Makka Madina Shiv Mandir

इस्लाम धर्म के सबसे पवित्रतम तीर्थस्थल मक्का-मदीना से जुड़ी एक प्रसिद्ध अवधारणा यह भी मानी जाती है, जिसके मुताबिक यहां हिन्दुओं का सबसे बड़ा मक्केश्वर महादेव का मंदिर था।

कुछ इतिहासकारों की माने तो मुस्लिमों के इस पवित्र तीर्थस्थल में काले रंग का एक विशाल शिवलिंग मौजूद था, जो आज भी यहां खंडित अवस्था में रखा गया था।

वहीं एक प्रसिद्ध इतिहासकार की पुस्तक के मुताबिक मक्का में मस्जिद के बीचो-बीच बने काबा में जिस पत्थर को लोग चूमते हैं, उसे भगवान शिव की शिवलिंग बताया गया है।

यह काफी विवादास्पद है। वहीं कुछ समय पहले ही एक शिवलिंग की तस्वीर भी सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुई थी, जिसे लोग मक्का-मदीना से जोड़ रहे थे एवं इसके पीछे कई कहानियां भी बना रहे थे।

फिलहाल, यह सब एक महज अवधारणाएं और अफवाह ही हैं। मक्का-मदीना में न तो कोई शिवलिंग मौजूद था और ना ही कोई भी गैर मस्लिमों को वहां प्रवेश दिया जाता है।

मक्का-मदीना से जुड़े कुछ रोचक एवं दिलचस्प तथ्य – Facts About Makka Madina

  • पैगम्बर हजरत मुहम्मद साहब की जन्मस्थली माने जानी वाली तीर्थस्थली मक्का की स्थापना करीब 1400 साल पहले मोहम्मद साहब ने की थी, यह बाहर से देखने पर चौकोर भवन की तरह लगता है, जिस पर काला लिहाफ चढ़ा रहता है।
  • मुस्लिमों के लिए 5 प्रमुख अनिवार्य बातों में हज भी शामिल है, इसलिए यहां मक्का-मदीना में हर साल हज या उमरा करने दुनिया के अलग-अलग हिस्सों से लाखों जायरीन आते हैं और मक्का के चारों तरफ बनी मस्जिदों में नमाज पढ़ते हैं।
  • इस पूरे विश्व के मुसलमान अपनी 5 वक्त की नमाज मक्का में स्थित काबा की तरफ ही मुंह करके पढ़ते हैं।
  • इस्लाम के सबसे पवित्र धर्म स्थल मक्का के मस्जिद के दक्षिण में लंदन के बिग बने क्लॉक (Big Ben Clock) की तर्ज पर रॉयल मक्का क्लॉक टॉवर  (Royal Mecca Clock Tower) बनाया गया है, जिसे विश्व की सबसे ऊंची इमारतों में से एक बताया जा रहा है।
  • लाखों-करोड़ों मुस्लिमों की आस्था से जुड़े इस पावन स्थल पर पैगम्बर मोहम्मद साहब के पद चिन्ह भी मौजूद है, जिसके दर्शन यहां आने वाला प्रत्येक जायरीन करता है, इसके साथ ही यहां स्थित पवित्र काबा को चूमकर भी लोग दुआ मांगते हैं।
  • पैगम्बर साहब से जुड़े इस पवित्र तीर्थ स्थल में बना जम-जम का कुआं कई चमत्कारी रहस्यों से भरा पड़ा है, लाखों-करोड़ों जायरीनों द्धारा इसका पानी पीने के बाबजूद भी इसका पानी न तो कभी खत्म होता है और न ही कभी यह सूखता है।
  • पैगंबर हजरत मुहम्‍मद सल्‍लल्‍लाहु अलैहि वसल्‍लम की जन्मस्थली माने जाने वाली मक्का की आबादी 20 लाख है, जो कि पवित्र हज के महीने में तीन गुनी हो जाती है।
  • सउदी अरब के हेजाज क्षेत्र के पश्चिम में स्थित मदीना को अल-मदीना अल-मुनव्वरा के नाम से भी जाना जाता है। मक्का के बाद यह इस्लाम का दूसरा पवित्र स्थान है,जहां पैगम्बर मोहम्मद साहब को दफनाया गया था।
  • मक्का में पवित्र काबा से एक यह मिथक भी काफी प्रचलित है कि यह भगवान शिव की शिवलिंग है।
  • मक्का-मदीने में गैरमुस्लिमों का प्रवेश वर्जित है, साथ ही यहां एक भी मंदिर या अन्य कोई धार्मिक स्थान नहीं है, यहां सिर्फ चारों चरफ अल्लाह की ही बंदगी है।
  • मक्का में दुनिया की सबसे बड़ी मस्जिद ‘मस्जिद अल हरम’ स्थित है, जिसे Grand Mosque के नाम से भी जाना जाता है। इसके अलावा मक्का शहर, सफा, मारवा, बैथ उल्लाह जैसी पवित्र मस्जिदों के लिए भी काफी मशहूर है।
  • इस्लाम धर्म के सबसे पवित्र शहर मक्का में Mosque-E-Haram है, जो कि मुस्लिमों का प्रमुख धार्मिल स्थल माना जाता है, जबकि बैतुल मुक़द्दस में Mosque-E-Axa इस्लाम का तीसरा पावन स्थल है।

मुस्लिमों के इस सबसे पवित्र तीर्थ स्थल से जुड़ी एक अन्य मान्यता यह भी है कि यहां सिख धर्म के प्रथम गुरु, गुरु नानक देव जी ने आधुनिक इराक के बगद्दा और सऊदी अरब के मक्का-मदीना की यात्रा की थी।

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मोटिवेशनल स्टेटस | Motivational Status in Hindi for Whatsapp

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Motivational Status in Hindi for Whatsapp

दोस्तों, जीवन में हमें हमेशा प्रेरणा की जरूरत होती हैं। जाहिर है कि हर व्यक्ति अपने जीवन में प्रेरणा लेकर ही आगे बढ़ता है, वह जो भी कर्म करता है या किसी कर्म को करने की इच्छा रखता है, वह किसी से प्रेरित होकर ही करता है। व्यक्ति की जिंदगी में हर वक्त एक जैसा नहीं रहता है, जिंदगी के कठिन दौर में तो कुछ व्यक्ति आगे बढ़ने की उम्मीद ही छोड़ देते हैं, तो ऐसे वक्त में कुछ मोटिवेशनल स्टेटस व्यक्ति की स्ट्रेस को कम कर उसे अपने जीवन में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते हैं।

वहीं आजकल सोशल मीडिया साइट व्हाट्सऐप पर आप लोग इस तरह के स्टेटस अपलोड कर सकते हैं, साथ ही ऐसे स्टेटस को अपने परिवार, दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ शेयर कर उन्हें मोटिवेट कर सकते हैं, और उन्हें अपने जीवन के लक्ष्यों को हासिल करने के लिए प्रेरित कर सकते हैं।

वहीं आप हम आपको अपने इस पोस्ट में कुछ ऐसे मोटिवेशनल स्टेटस उपलब्ध करवा रहे हैं, जिन्हें आप व्हाट्सऐप समेत अन्य सोशल मीडिया साइट पर शेयर कर लोगों के अंदर जीवन में आगे बढ़ने का जज्बा भर सकते है, तो आइए जानते हैं मोटिवेशनल स्टेटस के बारे में –

मोटिवेशनल स्टेटस – Motivational Status in Hindi for Whatsapp

Motivational Status

“जहाँ हमारा स्वार्थ समाप्त होता हे …. वही से हमारी इंसानियत आरम्भ होती हे।

ना संघर्ष न तकलीफ तो क्या मज़ा है जीने में बड़े बड़े तूफ़ान थम जाते हैं जब आग लगी हो सीने में।

“अपनी कीमत उतनी रखिए….. जो अदा हो सके, अगर “अनमोल” हो गए तो तन्हा हो जाओगे।

परिस्थिरियां चाहे कैसी भी हो, यदि व्यक्ति मन में ठान ले तो कोई भी मुश्किल नहीं।

“जो अपने कदमों की काबिलियत पर विश्वास रखते हैं, वो ही अक्सर मंजिल पर पहूँचते है।

हिम्मत बताई नहि, दिखाई जाती है।

“किस्मत तो उनकी भी होती है, जिनके हाथ नहीं होते।

ख़ुशी के लिए काम करोगे तो ख़ुशी नहीं मिलेगी, मगर खुश होकर काम करोगे तो ख़ुशी जरूर मिलेगी।

“जो व्यक्ति अपनी बुरी आदतें बदल लेता है, वो अवश्य अपने कल को भी बदल लेगा, और जिसने अपनी आदत नहीं बदली, तो उसके साथ कल भी वही होगा जो आज तक होता आया है”

”हर व्यक्ति अपनी-अपनी जिंदगी में हीरों होता है, बस कुछ लोगों की फिल्में रिलीज नहीं होती हैं”

“इस दुनिया में हमारे लिए कुछ भी असंभव नहीं हैं, हम वो सब कर सकते हैं, जो हम सोच सकते हैं ”

”जो लोग सकारात्मक होते हैं, वे दूसरों के अंदर भी सकारात्मक ऊर्जा का निर्माण करते हैं”

“कठिन परिस्थितियों में कुछ लोग टूट जाते हैं, तो कुछ लोग ऐसी परिस्थितयों में रिकॉर्ड तोड़ देते हैं”

”कामयाबी हासिल करने के लिए तीन चीजों की जरूरत होती है, सही समय, सही सोच और सही तरीका”

“अगर सच में सफलता हासिल करना है मेरे दोस्त, तो कभी भी वक्त और हालात पर रोना नहीं”

Motivational Status for Whatsapp

कुछ मोटिवेशनल स्टेटस ऐसे होते हैं, जिन्हें पढ़कर मन में  सकारात्मक विचार तो आते  ही हैं, इसके साथ ही जिंदगी में कुछ हासिल करने की भावना भी पैदा होती है, और कठिनाइयों से लड़ने की क्षमता विकसित होती है।

वहीं कठिन वक्त में तो महान व्यक्तियों के द्धारा कहे गए इस तरह के मोटिवेशनल स्टेटस दर्द कम करने वाली किसी अच्छी टॉनिक की तरह काम करते हैं।

जिंदगी के बुरे वक्त में अक्सर लोग हिम्मत हार जाते हैं और मायूस हो जाते हैं, तो वहीं कई लोग प्रयास करना ही छोड़ देते हैं, जिसकी वजह से उन्हें अपनी पूरी जिंदगी बोझ लगने लगती है, तो ऐसे वक्त में आप इस तरह के मोटिवेशनल स्टेटस शेयर कर, लोगों के मन में जिंदगी जीने की आस जगा सकते हैं।

कुछ लोग सफलता हासिल करने के बाद अंहकारी हो जाते हैं, दूसरों का सम्मान करना छोड़ देते हैं, या फिर उनकी भावनाओं को ठेस पहुंचाते हैं, तो ऐसे लोगों के अंहकार को कम करने के लिए और उन्हें सही मार्ग दिखाने के लिए भी आप  इस तरह के मोटिवेशनल स्टेटस का इस्तेमाल कर सकते हैं, क्योंकि अहंकारी लोगों को नीचे गिरने में ज्यादा वक्त नहीं लगता।

“संघर्ष इंसान को मजबूत बनाता है! फिर चाहे वो कितना भी कमजोर क्यो न हो।

जिंदगी में तकलीफ़ कितनी भी हो कभी हताश मत होना क्योकि धुप कितनी भी तेज हो समंदर कभी सुखा नहीं होता।

“मैदान में हरा हुआ इन्सान फिर भी जीत सकता हैं लेकिन मन से हारा हुआ इन्सान कभी नहीं जीत सकता।

सारे सबक किताबों में नहीं मिलते यारों कुछ सबक जिंदगी भी सिखाती हैं।

“जो बदलता हैं वही आगे बढ़ता हैं।

हमेशा याद रखो जो होता हैं अच्छे के लिए होता हैं।

“यदि परिस्थितियों पर आपकी मजबूत पकड़ हैं, तो जहर उगलने वाले भी आपका कुछ नहीं बिगाड़ सकते।

अगर हारने से डर लगता है तो, जितने की इच्छा कभी मत रखना।

“भाग्य भी साहसी लोगों का साथ देता हैं।

अपने अन्दर से अहंकार को निकाल कर स्वयं को हल्का करे क्योकि ऊँचा वाही उठता हैं जो हल्का होता हैं।

“गलतियां इस बात का प्रमाण हैं कि आप कोशिश कर रहे हैं”

”सफलता की मंजिलें चाहे कितनी भी ऊंची क्यों न हों मित्रों, मगर रास्ते हमेशा ही पैरों के नीचे होते हैं”

“अगर आपको हारने से डर लगता है, तो जीतने की इच्छा भी फिर कभी मत रखना”

”लहरों से डरकर कभी नौका पार नहीं होती है, और कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती है”

“सपने देखो तो उसे जल्द पूरा कर दिखाओ, और अपनी तमन्नाओं के पर फैलाओ, चाहे फिर क्यों न लाखों मुसीबतें रास्ता रोकें तुम्हारा, बस उम्मीदों के सहारे आगे बढ़ते जाओ।”

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सुंदर पिचाई के संघर्ष से सफलता तक की कहानी…

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Sundar Pichai Biography

सुंदर पिचाई एक ऐसा नाम जिसे पहचान की जरूरत नहीं है जिन्होनें अपनी दूरगामी सोच के बल पर सफलता का आसमान छू लिया और आज वे मल्टीनेशनल कंपनी गूगल के सीईओ है।

गूगल में भारतीय मूल के सुंदर पिचाई के सीईओ बनने का एलान साल 2015 में कर भारतीयों का सिर गर्व से ऊंचा कर दिया। सुंदर पिचाई, जिनकी बचपन से ही टेक्नोलॉजी में रूचि थी और वे हमेशा से ही अपने तकनीकी सोच को और ज्यादा विकिसत करने की कोशिश में लगे रहते थे।

ये सच है कि, सुंदर पिचाई आज जिस मुकाम पर हैं, ये सिर्फ और सिर्फ और उनकी सच्ची मेहनत और संघर्ष का ही नतीजा है।

एक भारतीय व्यक्ती का यहाँ तक पहुचना निश्चित ही सभी भारतीयों के लिये गर्व की बात है। लेकिन यहाँ तक पहुचना इतना आसान नहीं था। तो आईये जाने की सुंदर पिचाई ने ये रास्ता कैसे पार किया।

Sundar Pichai Biography in Hindi

सुंदर पिचाई के संघर्ष से सफलता तक की कहानी – Sundar Pichai Biography in Hindi

सुंदर पिचाई जिनका जन्म 12 जुलाई, 1972 को चेन्नई में एक साधारण परिवार में हुआ था। शांत और सरल स्वभाव के सुंदर पिचाई जिनका पूरा नाम ‘सुंदर राजन पिचाई है’। सुंदर पिचाई बचपन से ही अपनी क्लास के टॉपर स्टूडेंट रहे हैं जो कि न केवल पढ़ाई में बल्कि खेल-कूद में भी अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा चुके हैं।

सुंदर पिचाई की शिक्षा – Sundar Pichai Education

सुंदर पिचाई ने अपनी 12वीं तक की पढ़ाई चेन्नई के वाना-वाणी स्कूल से की और अपनी मेहनत के बल पर महज 17 साल की उम्र में सबसे अच्छे इंजीनियरिंग कॉलेज IIT खड़गपुर में दाखिला ले लिया, सुंदर पिचाई किताबी ज्ञान पर नहीं बल्कि अभ्यास से मिले अनुभव पर ज्यादा भरोसा करते थे।

सुंदर पिचाई जिनको हमेशा से ही टॉप पर रहने की आदत रही है। उन्होनें बीटेक में उन्होनें अपने बैच में टॉप किया और रजत पदक हासिल कर फिर से एक बार खुद को साबित कर दिखाया।

यही नहीं कभी नहीं हारने वाले पिचाई को स्कॉलर शिप भी मिली और वे अपनी आगे की पढ़ाई के लिए अमेरिका चले गए जहां उन्होनें स्टैनडफोर्ड यूनिवर्सिटी से एमएस की पढ़ाई की और एमबीए वॉर्टन यूनिवर्सिटी से किया।

सुंदर पिचाई कस करियर – Sundar Pichai Career

साल 2004 में सुंदर पिचाई ने गूगल ज्वॉइन किया था। उस समय गूगल ने उन्हें बतौर प्रोडक्ट और इनोवेशन ऑफिसर के रूप में नियुक्त किया जिनकी जिम्मेंदारी गूगल टूलवार और सर्च से संबंधित थी। यही नहीं सुंदर पिचाई ने अपने विवेक के बल पर एंड्राइड ऑपरेटिंग सिस्टम के डेवलपमेंट और साल 2008 में लांच हुए गूगल क्रोम में भी अहम भूमिका निभाई है।

जिसके बाद पिचाई को उनकी दूरदर्शिता के लिए मल्टीनेशनल टेक्नोलॉजी कंपनी गूगल ने सीनियर वाइस प्रेसीडेंट के पद की जिम्मेंदारी सौंप दी गई। सुंदर लगातार सफलता के नई ऊंचाइयों को छू रहे थे।

साल 2013 में Android बनाने वाले एंडी रुबिन ने प्रोजेक्ट छोड़ दिया जिसके बाद पिचाई ने न सिर्फ इस जिम्मेदारी को भी बखूबी निभाया बल्कि इसमें उन्होनें अपना अहम योगदान भी दिया। यही नहीं ऑपरेटिंग सिस्टम को सफल बनाने में भी सुंदर पिचाई का अहम रोल है।

लगातार अपनी स्किल्स से वे खुद को साबित कर रहे थे, गूगल कंपनी उनके काम से बेहद प्रभावित थी और उनकी प्रतिभा के बल पर पिचाई को गूगल कंपनी के सभी प्रोडक्स का हेड बना दिया गया। जिसमें गूगल सर्च, गूगल मैप, गूगल प्लस और गूगल कॉमर्स और गूगल एड जैसे कई प्रोडक्ट शामिल हैं।

सुंदर पिचाई अपनी उपलब्धियों की उम्मीदों की उड़ान भर रहे थे, इसी दौरान 2015 में उनकी दूरदर्शी सोच और योग्यता के लिए गूगल ने उन्हें 10 अगस्त 2015 को कंपनी का सीईओ बना दिया।

और इसके साथ ही पिचाई भारत के उन लोगों में शामील हो गये है जो 400 अरब डॉलर कारोबार करने वाली अंतराष्ट्रीय कम्पनियों के शिर्ष अधिकारी है। जिसमे सत्य नडेला / Atya Nadella, मास्टर्ड कार्ड के अजय बंगा / Ajay Banga जैसे अनेक नाम पहले से शामील है।

निश्चित ही आज सुंदर पिचाई भारत वासियों के लिये एक रोल मॉडल है और ये आने वाले दिनों में युवाओं के लिए वो प्रेरणा का काम करते रहेंगे। सुंदर पिचाई जिनसे वाकई सभी को सीख लेने की जरूरत है, जिनके बड़े सपनों और संघर्ष ने उनको आज सफलता के इस मुकाम पर पहुंचाया है।

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दक्खनि ताज बीबी का मकबरा का इतिहास

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Bibi Ka Maqbara History

ताजमहल निश्चित ही भारत का सबसे खूबसूरत ऐतिहासिक स्मारक है। लेकिन क्या आप जानते हो की भारत के औरंगाबाद में ताजमहल के ही जैसा एक और स्मारक है?

जी हाँ, हम बीबी के मकबरे की बात कर रहे है, जो लोग इस बारे में जानते नही है उनके लिए बीबी का मकबरा और ताजमहल दोनों एक ही समान है। आज हम यहाँ आपको बीबी के मकबरे – Bibi Ka Maqbara के बारे में जानेंगे।

Bibi Ka Maqbara

दक्खनि ताज बीबी का मकबरा का इतिहास – Bibi Ka Maqbara History In Hindi

महाराष्ट्र के औरंगाबाद में स्थित बीबी के मकबरा को ”दक्कन के ताज” या भारत का दूसरा ताजमहल के नाम भी जाना जाता है।

यह मकबरा मुगल सम्राट शाहजहां के पोते एवं औरंगजेब के बेटे मुहम्मद आजमशाह ने अपनी प्रिय मां ‘रबिया-उल-दौरानी’ उर्फ ‘दिलरास बानो बेगम’ की याद में बनवाया था।

‘बीबी के मकबरे’ का निर्माण आगरा में स्थित दुनिया के सात अजूबों में से एक ताजमहल से प्रेरित होकर किया गया था।

1651 से 1661 के मध्य में निर्मित बीबी का मकबरा मुगल सम्राट अकबर एवं शाहजहां के शासनकाल में शाही मुगल वास्तुकला से अंतिम मुगलों के साधारण वास्तुकला में हुए बदलाव को प्रदर्शित करता है।

इसके साथ ही यह औरंगजेब के शासनकाल की सबसे खूबसूरत एवं ऐतिहासिक संरचना मानी जाती है। इस मकबरे के मुख्य द्धार पर बनी समाधि इस विशाल मकबरे के प्रमुख आर्कषणों में से एक है।

इस मकबरे को प्रसिद्ध वास्तुकार उस्ताद अहमद लाहौरी के बेटे अत्ता-उल-अल्ला द्धारा बनाया गया था, इन्होंने दुनिया की भव्य इमारत ताजमहल को भी डिजाइन किया है।

‘बीबी का मकबरा’ का इतिहास – Bibi Ka Maqbara Story

‘दिलरास बानो बेगम’, शाहजहां के बेटे एवं मुगल सम्राट औरंगजेब की पहली और सबसे प्रिय पत्नी थी, औरंगजेब और दिलरास बानो बेगम की पांच संतान थी, जिसमें मोहम्मद आजम शाह ऐसे थे, जिन्हें दिलरास बानो बेगम से अत्याधिक लगाव था।

1657 ईसवी में तेज बुखार से पीड़ित होने के बाद दिलरास बानो बेगम की मौत हो गई। जिसके बाद मोहम्मद आजम शाह ने अपने दादा शाहजहां की नक्शे कदम पर चलते हुए अपने प्रिय मां रबिया-उल-दौरानी’ उर्फ ‘दिलरास बानो बेगम’ की याद में एक स्मृति स्मारक बनाने का फैसला लिया।

फिर आजमशाह ने औरंगाबाद में मकबरा का निर्माण काम शुरु करवाने का फैसला लिया, आजमशाह ने इस मकबरे को उसी रुप में बनवाने की कोशिश की, जिस तरह उसके दादा शाहजहां ने अपनी बेगम मुमताज महल की स्मृति में ताजमहल बनवाया था।

वहीं बाद में यह ”भारत का दूसरा ताज” और बीबी का मकबरा (“टॉम्ब ऑफ द लेडी”) के नाम से पहचाना गया।

‘बीबी का मकबरा’ के निर्माण में हुआ खर्च – Cost Of Construction Of Bibi Ka Maqbara

मुगल वंश के शासक शहजादे आजमशाह ने अपने दादा शाहजहां से प्रेरित होकर बीबी के मकबरे को बनवाया था।

हालांकि, इसके निर्माण कार्य में सिर्फ 7 लाख की राशि ही खर्च हुई थी, जो कि ताजमहल बनवाने में खर्च हुई राशि करीब 3.20 करोड़ रुपए से बेहद कम है।

दरअसल ऐसा कहा जाता है कि शाही खजाने एवं कुशल मजदूरों की कमी की वजह से यह मूल कृति की एक खराब अनुकृति है। इसके साथ ही बीबी के मकबरे के लिए कई इतिहासकार यह भी तर्क देते हैं कि इस मकबरे के निर्माण में मुगल सम्राट औरंगजेब की कोई खासी रुचि नहीं थी, यहां तक की वे नहीं चाहते थे कि, इस मकबरे के निर्माण में शाही खजाने से ज्यादा पैसा खर्च हों।

इसी वजह से महाराष्ट्र के औरंगबाद में स्थित बीबी के मकबरा को ‘गरीबों का ताजमहल’ भी कहते हैं। वहीं आगरा के ताजमहल की संपूर्ण संरचना को बेहद अच्छी क्वालिटी के सफेद संगमरमर से बनवाया गया था।

जबकि औरंगजेब के बेटे द्धारा निर्मित इस ‘बीबी का मकबरा’ का गुम्बद ही सिर्फ संगमरमर से बनवाया गया है, जबकि इस संरचना का बाकी हिस्सा प्लास्टर से तैयार किया गया है, ताकि यह दिखने में संगमरमर की तरह दिख सके।

बीबी का मकबरा की संरचना एवं वास्तुकला – Bibi Ka Maqbara Architecture

महाराष्ट्र के औरंगाबाद में स्थित ‘दक्कन का ताज’ के नाम से प्रसिद्ध बीबी का मकबरा, दुनिया की सबसे खूबसूरत संरचनाओं में से एक ताजमहल की तरह ही मुगल वास्तुशैली का प्रतीक एवं ताजमहल की प्रतिकृति मानी जाती है।

यह मकबरा एक बेहद विशाल एवं भव्य चारदीवारी के केन्द्र में स्थित है, जो उत्तर-दक्षिण में 458 मीटर और पूर्व-पश्चिम में 275 मीटर है।

बीबी के मकबरे में फारसी शैली में बनाए गए फूलों के बगीचे इसकी सुंदरता को चार चांद लगा रहे हैं। इसके साथ ही चतुर्भुज आकार में बने उद्यान का स्थान चार छोटे-छोटे हिस्सों में बांटा गया है।

इसके अलावा इस मकबरे में तालाब, फव्वारे और झरने भी बने हुए हैं। वहीं मुगलों के जमाने में बने इस मकबरे की चारदीवारी पर नुकीले भालादार कांटे लगाए गए हैं।

एक वर्गाकार प्लेटफॉर्म पर खड़ा बीबी का मकबरा एक विशाल अहाते के केन्द्र में बना हुआ है, जिसके कोने पर ताजमहल की तरह चार सुंदर मीनारें बनाई गई हैं।

इसमें तीन तरफ से सीढियों की माध्यम से पहुंचा जा सकता है, वहीं मेन गेट के रास्ते में बगीचों के चारों तरफ कई पानी के सुंदर फव्वारे लगे हुए हैं, जो कि इस मकबरा की सुंदरता को और अधिक बढ़ा रहे हैं।

महाराष्ट्र के औरंगाबाद में स्थित इस मुगलकालीन ऐतिहासिक इमारत के ऊपर एक गुंबद लगाया गया है, जो कि संगमरमर के पत्थरों से निर्मित है, जबकि इस संरचना का बाकी हिस्सा अच्छी क्वालिटी के प्लास्टर के साथ बनाया गया है, जो कि देखने में संगमरमर की तरह लगता है।

इस संरचना के निर्माण के लिए पत्थर जयपुर की खदानों से लाए गए थे। आपको बता दें कि मुगल बादशाह आजमशाह इस मकबरा को अपने दादा शाहजहां द्धारा बनवाए गए मुमताज महल के मकबरे ”ताजमहल” से भी ज्यादा विशाल बनाना चाहता था।

लेकिन औरंगजेब के शाही खजाने से दिए गए मामूली से खर्च में यह संभव नहीं हो पाया। इसलिए इसे गरीबों का ताज भी कहा जाता है।

औरंगजेब की पत्नी और मुगल सम्राट आजमशाह द्धारा निर्मित इस मकबरे में दक्षिण दिशा की तरफ एक लकड़ी का दरवाजा बना हुआ है।

इसी गेट के माध्यम से इस मकबरे के अंदर प्रवेश किया जाता है, जिस पर बाहर की तरफ से पीतल की प्लेट पर बेल-बूटे की काफी सुंदर डिजाइन भी बनी हुई है।

इसके प्रवेश के बाद एक छोटा सा कुंड भी बना हुआ है। वहीं बीबी के मकबरे के मुख्य संरचना के पश्चिम की तरफ एक मस्जिद भी बनी हुई है, जिसका हैदराबाद के निजाम ने बाद में निर्माण करवाया था, जिसकी वजह से प्रवेश मार्ग बंद हो गया है।

मुगल सम्राट आजमशाह की मां ‘रबिया-उल-दौरानी’ के अवशेष एक काफी सुंदर तरीके से डिजाइन किए संगमरमर कक्ष के अंदर रखे गए हैं, जहां सीढि़यां के माध्यम से उतरकर पहुंचा जा सकता है।

बीबी का मकबरा देखने कैसे पहुंचे? – How To Reach Bibi Ka Maqbara

मुगल सम्राट आजमशाह द्धारा निर्मित यह बीबी का मकबरा औरंगाबाद में स्थित है। यहां सड़क, रेल, वायु तीनों परिवहन सुविधा बेहद अच्छी है।

औरंगाबाद रेलवे स्टेशन से बीबी के मकबरे की दूरी करीब 12 किलो मीटर की है, यात्री आॉटो, टैक्सी की सुविधा के माध्यम से यहं पहुंच सकते हैं।

औरंगाबाद के लिए अच्छी बस सुविधाएं भी उपलब्ध है। वहीं अगर सैलानी फ्लाइट के माध्यम से बीबी का मकबरा देखने के लिए जाना चाहते हैं तो, आपको बता दें कि औरंगाबाद एयरपोर्ट, देश के  सभी प्रमुख शहरों के साथ जुड़ा हुआ है, एयरपोर्ट से इस भव्य ऐतिहासिक इमारत की दूरी करीब 11 किलोमीटर है, एयरपोर्ट से ऑटो या फिर टैक्सी सुविधा के माध्यम से आसानी से पहुंचा जा सकता है।

बीबी का मकबरा के बारे में कुछ रोचक एवं आश्चर्यजनक तथ्य – Facts About Bibi Ka Maqbara

  • महाराष्ट्र के औरंगाबाद में स्थित बीबी का मकबरा चारबाग गार्डन के बीचोबीच बना हुआ है।
  • इस मकबरे को ताजमहल की प्रतिकृति माना जाता है, इसलिए इसे भारत का दूसरा ताज एवं दक्षिण का ताज भी कहा जाता है।
  • औरंगाबाद में स्थित बीबी के मकबरे को प्रसिद्ध वास्तुकार एवं उस्ताद लाहौरी के बेटे अत-उल्लाह एवं हंसपत राय द्धारा डिजाइन किया था। आपको बता दें कि अत-उल्लाह ने ही दुनिया के सात अजूबों में से एक मानी जाने वाली संरचना ताजमहल को भी भव्य रुप दिया था।
  • बीबी के मकबरे के निर्माण में जिस मार्बल का इस्तेमाल किया गया है, उसे पिंकसिटी जयुपर से मंगवाया गया था।
  • मुगल सम्राट औरंगजेब के बेटे आजमशाह द्दारा निर्मित यह मकबरा मुगल स्थापत्य शैली के मुताबिक डिजाइन किया गया है। यह मकबरा, मुगल सम्राट अकबर और शाहजहां काल के शाही मुगल वास्तुशैली से साधारण वास्तुशैली में आए बदलाव को भी प्रदर्शित करता है। हालांकि, इस मकबरे की दीवारों पर की गई बारीक कारीगरी एवं सुंदर नक्काशी पर्यटकों को खूब लुभाती हैं।
  • दुनिया के सात आश्चर्यों में से एक ताजमहल की तर्ज पर बने बीबी के मकबरे के चारों कोनों पर मीनार बनी हुई हैं, जिसकी ऊंचाई करीब 275 मीटर है।
  • दिलरास बानो बेगम की याद में महाराष्ट्र के औरंगाबाद में बने मकबरे को बनाने के करीब 7 लाख रुपए की लागत आई थी।

देश का दूसरे ताज के नाम से विख्यात बीबी के मकबरे के मध्य में औरंगजेब की पहली पत्नी दिलरास बानू बेगम की शानदार कब्र बनाई गई है, जिसके ऊपर ताजमहल की तरह एक अर्धगोलाकार सुंदर गुबंद भी बनाया गया है, इस गुंबद को संगमरमर के पत्थरों का इस्तेमाल कर बनाया गया है।

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शक्ति साधना का प्रसिद्ध शक्तिपीठ जहां मां कामख्या होती हैं रजस्वला!

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Kamakhya Temple History

भारत में कई ऐसे धार्मिक स्थल हैं, जिनसे कई अद्भुत और चमत्कारी रहस्य जुड़े हुए हैं, वहीं ऐसा ही एक चमत्कारी मंदिर असम में स्थित मां कामाख्या देवी का मंदिर है, जो कि अपने अजब-गजब रहस्यों के लिए काफी प्रसिद्ध है।

यह मंदिर असम की राजाधानी दिसपुर के पास गुवाहाटी से करीब 8 किलोमीटर दूर नीलांचल पर्वत पर स्थित है। कामाख्या देवी मंदिर माता के सभी महत्वपूर्ण शक्तिपीठों में से एक है, जो कि तंत्र विद्या और सिद्धि का सबसे बड़ा केंद्र माना जाता है।

इस चमत्कारी मंदिर में माता दुर्गा के महामाया रुप की पूजा-आराधना की जाती है। असम के इस प्रसिद्ध मंदिर में माता कामाख्या देवी के अलावा माता काली के अन्य 10 रुप जैसे कमला, बगलामुखी, तारा, धूमवती, भैरवी, चिनमासा, त्रिपुरा, मतंगी, बगोली, सुंदरी  आदि दैवियों की मूर्तियां स्थापित हैं।

तांत्रिक विद्या के लिए प्रसिद्ध हिन्दुओं के इस रहस्मयी मंदिर में माता कामख्या देवी के  रजस्वला (मासिक धर्म) को लेकर कई कथाएं भी प्रचलित हैं, इसके साथ ही माता के इस प्रसिद्ध शक्तिपीठ से कई धार्मिक एवं पौराणिक कहानियां भी जुड़ी हुई हैं।

आइए जानते हैं असम में स्थित मां कामख्या देवी मंदिर का इतिहास, पौराणिक कथाएं एवं इससे जुड़े कुछ चमत्कारी एवं रहस्यमयी तथ्यों के बारे में –

शक्ति साधना का प्रसिद्ध शक्तिपीठ जहां मां कामख्या होती हैं रजस्वला – Kamakhya Temple History In Hindi

Kamakhya Temple Devi

कामाख्या माता मंदिर का इतिहास एवं इससे जुड़ी प्रचलित कथाएं – Maa Kamakhya Mandir

शक्ति साधना और तांत्रिक विद्या के लिए प्रसिद्ध असम में स्थित मां कामाख्या देवी के मंदिर का इतिहास 16वीं शताब्दी से जुड़ा हुआ है।

ऐसा माना जाता है कि, 16वीं सदी में कामरुप प्रदेश के राज्यों में हुए युद्ध में राजा विश्वसिंह जीत गए, लेकिन इस दौरान सम्राट विश्वसिंह जी के भाई गायब हो गए थे, जिनकी खोज में वे घूमते-घूमते नीलांचल शिखर पर पहंच गए।

इस पर्वत पर राजा विश्वसिंह को एक बुजुर्ग महिला मिली, जिसने राजा को इस जगह का महत्व एवं कामख्या पीठ होने के बारे में बताया।

जिसके बाद राजा ने इस जगह की खुदाई करवाना शुरु कर दी, जिसके बाद मूल मंदिर का निचला हिस्सा बाहर निकला और फिर सम्राट विश्वसिंह ने इसी स्थान पर एक नए मंदिर का निर्माण करवाया।

वहीं माता के सबसे प्रमुख शक्तिपीठों में से एक कामख्या देवी मंदिर के बारे में यह भी कहा जाता है कि इस मंदिर को 1564 ईसवी में कुछ हमलावरों ने नष्ट कर दिया था, जिसके बाद राजा विश्वसिंह के बेटे नरनारायण फिर से इस मंदिर का पुर्ननिमाण करवाया था।

सती और भगवान शिव से जुड़ी है कामख्या देवी मंदिर की पौराणिक कथा – Kamakhya Temple Story

कामख्या माता मंदिर से जुड़ी एक प्रचलित एवं मशहूर कथा के मुताबिक राजा दक्ष की पुत्री सती ने भगवान शिव से विवाह किया था, लेकिन राजा दक्ष इस विवाह से खुश नहीं थे।

वहीं एक बार राजा दक्ष ने एक यज्ञ का आयोजन किया, जिसमें उन्होंने अपने पुत्री के पति भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया, सती इस बात से काफी क्रोधित हो गई और फिर वे बिना बुलाए ही अपने पिता के घर पहुंच गई।

जिसके बाद राजा दक्ष ने उनका और उनके पति का काफी तिरस्कार किया, अपने पिता द्धारा अपने पति का अपमान सती से नहीं सहा गया और फिर उन्होंने हवन कुंड में कूदकर आत्मदाह कर लिया।

जिसके बाद भगवान शंकर काफी क्रोधित हो जाते हैं और अपने पत्नी सती के शव को लेकर तांडव करने लगते हैं, तब उन्हें रोकने के लिए भगवान विष्णु अपने सुदर्शन चक्र फेंकते हैं, विष्णु भगवान के इस सुदर्शन चक्र से माता सती के करीब 51 टुकड़े हो जाते हैं।

वहीं ये टुकड़े जहां-जहां गिरे उन्हें आज शक्तिपीठ कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि इन टुकड़ों में माता सती की योनि और गर्भ भाग असम के नीलांचल पर्वत पर गिरा था, जिससे कामख्या महापीठ की स्थापना हुई थी, इसलिए अब इसे कामाख्या माता मंदिर के नाम से जाना जाता है।

वहीं इसके पीछे यह भी मान्यता जुड़ी हुई है कि, देवी के योनि भाग होने की वजह से यहां माता रजस्वला होती है, यानि की मासिक धर्म से होती हैं। वहीं यह माता के सभी शक्तिपीठों में से सबसे प्रमुख माना जाता है। जिससे आज हजारों लोगों की आस्था जुड़ी हुई है।

कामदेव से जुड़ी है कामाख्या माता मंदिर की कथा:

माता के प्रसिद्ध शक्तिपीठों में से एक माता कामख्या देवी मंदिर से संबंधित एक अन्य कथा भी काफी प्रचलित है, जिसके मुताबिक जब कामदेव भगवान ने अपना पुरुषत्तव खो दिया था, तब उन्हें इसी स्थान पर सती के गिरे योनी और गर्भ से दोबारा अपना पुरुषतत्व वापस मिला था।

भगवान शिव और पार्वती से जुड़ी अन्य प्रचलित कथा:

शक्ति साधना के लिए प्रसिद्ध कामख्या देवी मंदिर से भगवान शिव और माता पार्वती से भी जुड़ी एक कथा प्रचलित है, जिसके अनुसार भगवान शिव और माता पार्वती के बीच प्रेम की शुरुआत यहीं से हुई थी, इसे संस्कृत में काम कहा जाता है, इसी वजह से इस मंदिर का नाम कामख्या मंदिर पड़ा।

कामख्या देवी शक्तिपीठ में नहीं है कोई भी देवी की प्रतिमा – Kamakhya Temple Menstruating Goddess

अंबा देवी के सबसे प्रमुख शक्तिपीठ कामख्या देवी मंदिर में अंबा या दुर्गा देवी की कोई भी प्रतिमा मौजूद नहीं है, यहां सिर्फ देवी के योनि भाग की ही पूजा-आराधना होती है।

असम के इस मंदिर में योनि की रुप में बनी एक समतल चट्टान की पूजा आराधना होती है। इस प्रसिद्ध मंदिर के पास एक कुंड बना हुआ है, जो कि हमेशा, फूलों से ढका रहता है, वहीं इस स्थान के पास में ही एक मंदिर भी है, जहां पर देवी की प्रतिमा स्थापित है। यह पीठ माता के सभी पीठों में महापीठ माना जाता है।

अम्बुबाची पर्व के दौरान मां कामाख्या होती है रजस्वला – Ambubachi Mela

एक तरफ जहां पूरे देश में महिलाओं के मासिक धर्म को अछूत एवं अपवित्र माना जाता है। वहीं दूसरी तरफ मासिक धर्म के दौरान कामख्या देवी को सबसे ज्यादा पवित्र माना जाता है।

वहीं सभी शक्तिपीठों में से प्रमुख कामख्या देवी मंदिर में यह कथा भी काफी प्रचलित है कि यहां पर माता का योनि हिस्सा गिरा था, जिसकी वजह से यहां पर माता 3 दिनों के लिए रजस्वला यानि मासिक धर्म से होती हैं।

यहां हर साल अम्बुबाची मेला के दौरान 3 दिन तक मंदिर बंद रहता है और इस दौरान मंदिर के पास में स्थित ब्रहापुत्र नदी का पानी लाल हो जाता है।

ऐसी मान्यता है कि ब्रहा्पुत्र नदी का पानी कामख्या देवी के मासिक धर्म के कारण लाल होता है। 3 दिनों के बाद इस मंदिर में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है।

भक्तों को प्रसाद के रुप में बांटा जाता है गीला कपड़ा:

लाखों हिन्दुओं की धार्मिक आस्था से जुड़ा कामख्या देवी का प्रसिद्ध मंदिर का प्रसाद भी अन्य शक्तिपीठों से बिल्कुल अलग है। यहां माता कामख्या के दर्शन के लिए आने वाले भक्तजनों को प्रसाद के रुप में एक गीला कपड़ा वितरित किया जाता है, जिसे अम्बुवाची वस्त्र कहा जाता है।

ऐसी मान्यता है कि, जब इस प्रसिद्ध शक्तिपीठ में माता कामख्या मासिक धर्म से होती है, तब मंदिर के अंदर एक सफेद रंग का कपड़ा बिछा दिया जाता है।

वहीं जब 3 दिन बाद मंदिर के दरवाजे खोले जाते हैं, तब वह कपड़ा लाल रंग का हो जाता है, वहीं इस गीले लाल रंग के वस्त्र को अम्बुबाची वस्त्र कहते हैं, जिसे प्रसाद के रुप में भक्तों में वितरित किया जाता है।

भैरव बाबा के दर्शन के किए बिना मां कामख्या की यात्रा है अधूरी:

असम के गुवाहटी में ब्रह्रापुत्र नदी के पास नीलांचल पर्वत में स्थित माता कामख्या देवी के मंदिर के पास उमानंद भैरव बाबा का मंदिर बना हुआ है। ऐसा कहा जाता है कि मां कामाख्या देवी की यात्रा तब तक पूरी नहीं मानी जाती है, जब तक भैरव बाबा के दर्शन नहीं हो जाते।

इसलिए कामाख्या माता मंदिर के दर्शन करने के बाद उमानंद भैरव बाबा के दर्शन जरुर करें।

शक्ति साधना एवं तंत्र विद्या का सबसे बड़ा केन्द्र है मां कामाख्या देवी मंदिर – Kamakhya Temple Mystery or Black Magic

असम में स्थित कामाख्या देवी का मंदिर शक्ति साधना एवं तंत्र विद्या का सबसे बड़ा केन्द्र माना जाता है एवं प्रत्येक वर्ष जून के महीने में लगने वाले अम्बुबाची मेले के दौरान यहां भारी संख्या में तांत्रिक और साधु-संत आते हैं।

इस दौरान यहां माता कामाख्या का रजस्वला अर्थात मासिक धर्म होने का पर्व मनाया जाता है एवं इस दौरान ब्रह्रापुत्र नदी का पानी 3 दिन के लिए लाल हो जाता है। इसलिए लाखों लोगों की इस मंदिर से आस्था जुड़ी हुई है।

कामख्या मंदिर से जुड़े कुछ आश्चर्यजनक और रहस्यमयी तथ्य – Facts About Kamakhya Temple

  • भारत में असम में स्थित कामख्या माता मंदिर हिन्दू धर्म से जुड़ा इकलौता ऐसा मंदिर है जहां मां कामाख्या रजस्वला होती हैं, और 3 दिन तक मंदिर के कपाट बंद रहते हैं। माता के मासिक धर्म खत्म होने के बाद बड़ी संख्या में श्रद्धालु दर्शन के लिए यहां पहुंचते हैं। वहीं इस दौरान माता के जलकुंड में पानी की जगह रक्त प्रवाहित होता है।
  • माता के सर्वोत्तम शक्तिपीठ में से एक मां कामाख्या देवी 64 योगनियों और दस महाविद्याओं के साथ यहां विराजित है। माता के 10 रुप – भुवनेश्वरी, तारा, छिन्न मस्तिका, बगला, धूमावती, सरस्वती, काली, मातंगी, कमला और भैरवी एक ही जगह पर विराजित हैं।
  • मंदिर परिसर में योनि के आकार की एक समतल चट्टान है, जिसकी पूजा की जाती है।
  • ऐसी मान्यता है कि आषाढ़ महीने के 7वें दिन मां कामख्या देवी रजस्वला होती है, वहीं 3 दिन बाद जब मां कामाख्या की महावारी खत्म होती है, तब मंदिर के कपाट खोले जाते हैं एवं भव्य मेले का आयोजन किया जाता है।
  • प्रसिद्ध शक्तिपीठों में से एक कामाख्या देवी का मंदिर पशुओं की बलि देने के लिए भी काफी मशहूर है, वहीं इस मंदिर में मादा पशुओं की बलि नहीं दी जाती है, सिर्फ नर पशुओं की ही बलि दी जाती है।

कामाख्या माता का मंदिर तक कैसे पहुंचे – How To Reach Kamakhya Temple

असम के नीलांचल पर्वत पर स्थित सर्वोच्च ज्ञानपीठों में से एक माता कामाख्या माता का मंदिर की दूरी गुवाहटी से करीब 8 किलोमीटर है। यहां सड़क, रेल और वायु मार्ग की अच्छी सुविधा है।

यहां आने वाले दर्शानार्थी, तीनों मार्गों द्धारा यहां सहूलियत के साथ पहुंच सकते हैं। वहीं इस मंदिर के दर्शन के लिए सबसे अच्छा मौसम अक्टूबर से मार्च तक का माना गया है।

कामाख्या माता का मंदिर का समय – Kamakhya Temple Timings

यह मंदिर भक्तों के सुबह 08:00 AM से  दोपहर 01:00PM तक और दोपहर 02:30PM से शाम 05:30PM तक खुला रहता हैं।

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खुद को कैसे बनाएं बेहतर जानिए ये टिप्स…

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Self Improvement Tips In Hindi

एक बेहतर इंसान बनने की चाहत हर किसी की होती है लेकिन जिंदगी में कई ऐसे मोड़ आते हैं कि इंसान खुद की बेहतरी पर ध्यान नहीं दे पाते। लेकिन अगर आप खुद को बेहतर इंसान बनाना चाहते हैं तो आपको इसके लिए हमेशा कोशिश करते रहना चाहिए, तभी आप खुश रह सकते हैं और एक बेहतर इंसान भी बन सकते हैं।

अगर आप शुरुआत से ही चीजों को अच्छे से मैनेज करें तो आपको बेहतर बनने से कोई नहीं रोक सकता इसके अलावा भी कई और तरीके हैं जिन्हें अपनाकर आप खुद को एक बेहतर इंसान बना सकते हैं।

खुद को बेहतर बनाने के लिए खुद को पहचानना बेहद जरूरी है और आत्मविश्वास रखना भी बेहद जरूरी है क्योंकि जब तक आप खुद को नहीं जानेंगे तब तक आप खुद को बेहतर नहीं बना सकते हैं।

स्वस्थ शरीर भी आपकी बेहतरी के लिए बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि जब आप पूरी तरह से हेल्दी रहोगे तो आपको पॉजिटिव एनर्जी भी मिलेगी और आप अच्छा महसूस करोगे। इस लेख के माध्यम से हम आपको कुछ तरीके बता रहें है जिनको अपनाकर आप खुद को और भी ज्यादा बेहतर बना सकते हैं।

Self Improvement Tips Hindi

खुद को बेहतर बनाने के टिप्स – Self Improvement Tips In Hindi

  • अपने डर का सामना करें:

खुद को बेहतर बनाने के लिए सबसे ज्यादा जरूरी है कि आप अपने डर का सामना करें क्योंकि जब तक अपने डर को दूर नहीं भगाएंगे। तब तक आप खुद को बेहतर नहीं बना सकते हैं इसलिए डर से निपटना बेहद जरूरी है।

क्योंकि डर ही इंसान को आगे बढ़ने से रोकता है जब आप डर का सामना कर लेते हैं तो आप बिना किसी भय से आगे बढ़ते हैं।

  • अपनी गलतियों को स्वीकार करें:

अगर आप खुद को एक बेहतर इंसान बनाना चाहते हैं कि इसके लिए खुद की गलतियों को स्वीकार करना बेहद जरूरी है क्योंकि जब तक आप अपनी गलतियों को स्वीकार नहीं करेंगे तब तक आप खुद को एक बेहतर इंसान नहीं बना सकते हैं।

हर कोई अपनी जिंदगी में कोई न कोई गलती जरूर करता है लेकिन अगर आप चाहते हैं कि आप वो गलती दोबारा नहीं करें इसके लिए आपको पहले अपनी गलती में सुधार करना होगा जो कि आपको एक अच्छा इंसान बनाने में आपकी मद्द करेगी।

  • अपने लक्ष्य का निर्धारण करें:

एक इंसान तभी बेहतर इंसान बन सकता है जब वह अपने लक्ष्य का निर्धारण करें और उसे पाने की कोशिश करे। क्यों कि किसी इंसान को उसके लक्ष्य को पाने की चाहत और किए गए प्रयास ही उसे बेहतर बनाते हैं और सफलता दिलवाने में उसकी मद्द करते हैं।

  • खुद पर भरोसा रखें:

अगर आप चाहते हैं कि आप एक अच्छे इंसान बन सकें तो इसके लिए आपको खुद पर भरोसा रखने की जरूरत हैं क्योंकि इंसान का आत्मविश्वास से ही उसे आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती है।

इसके साथ ही इंसान अपने आत्मविश्वास के साथ ही हमेशा अच्छा करने और आगे बढ़ने की सोचता है लेकिन जब आपको आत्मविश्वास कम हो जाता है तो आपकी सोच भी निचले स्तर पर आपको ढ़केलती है और फिर हम हार मान लेते हैं और हमारे हाथ असफलता हालगती है।

वहीं कभी आपने गौर भी किया होगा कि आज एक बेहतर इंसान वही है जिसके अंदर आत्मविश्वास कूट-कूट कर भरा है।

  • टू-डू-लिस्ट तैयार करे:

हर रविवार को कम से कम 10 से 15 मिनट पुरे सप्ताह की प्लानिंग करने में बिताये। उस समय में अपने पुरे सप्ताह के प्लान के बारे में लिखे, अपनी टू-डू-लिस्ट को देखकर उस हिसाब से तैयारी करे। इससे आप अपने कामो को पूर्णता से कर सकते हो, ऐसा करने से आप अपने सारे काम बिना किसी चिंता के आराम से कर सकोगे।

  • खुद को प्रेरित करें:

खुद को बेहतर बनाने लिए जरूरी है कि आप खुद को प्रेरित करें क्योंकि समय-समय पर जब खुद को प्रेरित करेंगे तो आपके अंदर आगे बढ़ने प्रवल इच्छा जाग्रत होगी जिससे आप अपने लक्ष्य को पूरा कर सकेंगे और सफल व्यक्ति बन सकेंगे लेकिन जब तक आप खुद को प्रेरित नहीं करेंगे आपके अंदर आत्मविश्वास पैदा नहीं होगा और किसी नए काम को करने में या फिर जिंदगी का कोई फैसला लेने में डरेंगे इसलिए सफल होने के लिए और आगे बढ़ने के लिए आत्मविश्वास का होना बेहद जरूरी है।

  • ध्यान लगाकर खुद को करें बेहतर:

ध्यान के माध्‍यम से भी आप खुद को बेहतर बना सकते हैं क्योंकि ध्यान ऐसा तरीका जिसके आप आपके मन से  सब कुछ भूलने और खुद पर ध्‍यान केंद्रित करने में मदद करता है।

आपको बता दें कि शांतिपूर्ण आत्म ध्यान के द्धारा आपको अपने बारे में समझऩे का मौका मिलता है। जब भी बेहतरी की बात आती है तो आप हमेशा दूसरा का उदाहरण रखकर खुद को देखते हैं लेकिन आप दूसरों के बारें में छोड़कर खुद के बारे में सोचने की कोशिश करें और खुद को बेहतर बनाने की कोशिश करें।

वहीं जब आप अपनी इच्छाओं को प्राथमिकता देंगे और अपने लक्ष्यों और इरादों का सम्मान करेंगे तभी आप खुद को बेहतर बना सकेंगे।

  • सभी को खुश करना बंद करे:

क्योकि हम सभी की ज़िन्दगी में ऐसे कुछ लोग जरूर होते है जिन्हें साथ लेकर हम कभी आगे नही बढ़ सकते इसीलिये सभी को खुश करने की कोशिश न करे।

  • हमेशा सीखने की ललक रखें:

अगर आपके अंदर सीखने की ललक है तो आप एक बेहतर इंसान बन सकते हैं क्योंकि जो आप सीखते हैं उन्हीं को अपनी जिंदगी में भी लागू करते हैं। आप अपनी गलतियों से भी सीख सकते हैं।

अगर हमारे अंदर सीखने की ललक है तो हम कभी भी और कहीं भी किसी भी चीज से सीख सकते हैं। हम अच्छे लोगों से अच्छी आदतें भी सीख सकते हैं। इसलिए जब भी मौका मिले हमें कुछ न कुछ सीखते रहना चाहिए।

  • नकरात्मक सोच से खुद को रखें दूर:

अगर आप खुद को नकारात्मक सोच से दूर रखेंगे तो आपको खुद को बेहतर बनाने में मद्द मिलेगी  क्योंकि जब भी हम कोई नया काम शुरु करते हैं या फिर अपनी जिंदगी में सफलता के बारे में सोचते हैं तो सबसे पहले यही ख्याल आता है कि क्या हम सफल हो सकेंगे। या फिर हमें इस काम से कितना फायदा होगा।

ऐसे सवाल मन में आगे बढ़ने से रोकने है इसिलए अगर आप अपनी जिंदगी में सफल होना चाहते हैं तो इसके लिए जरूरी है कि आप इन बातों की बिना परवाह किए बिना आगे बढ़ते रहे। क्योंकि नकारात्मकता आपको आगे बढ़ने से रोकती है। इसलिए हमेशा नेगेटिव विचार से हमें खुद को दूर रखना चाहिए।

इसके साथ ही नेगेटिव सोच वाले व्यक्तियों से भी दूरी बनाकर रखनी चाहिए क्योंकि उनकी बातों से सिर्फ और सिर्फ निराशा ही हाथ लगती है। जबकि सकारात्क सोच वाला व्यक्ति आपका मनोबल बढ़ाता है।

हमें आशा है की आपको ये खुद को बेहतर बनाने के टिप्स अच्छे लगे होंगे। और अधिक इसीतरह के लेख आप निचे दिये Link पर क्लिक करके पढ़ सकते है।

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शिक्षक दिवस पर शिक्षक कविता | Poem on Teachers day

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Poem on Teachers Day

हमारे कर्म हमें हमेशा हमें आगे बढ़ने में हमें मदत करते हैं लेकिन अगर उसके साथ सही शिक्षा मिल जाये तो उसी कर्म के साथ एक नयी ऊँचाई को छु सकते हैं। और उसी ऊँचाईयों को छु ने के लिए हमारे जीवन में शिक्षा और उसी के साथ शिक्षक का महत्व बहुत ही ज्यादा बढ़ जाता हैं क्योकि की जैसे कुंभार एक मिटटी के घटे को सही आकर देता हैं वाही एक शिक्षक हमें अच्छी शिक्षा देकर हमरे जीवन को सही आकार देता हैं।

5 सितंबर का दिन हर शिक्षक-शिष्य के लिए काफी खास दिन होता है। इस दिन शिक्षकों के प्रति सम्मान व्यक्त करने के लिए स्कूलों, कोचिंग एवं अन्य शिक्षक संस्थानों पर कई कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है।

इस दौरान शिष्य कविताओं, स्लोगन आदि के माध्यम से शिक्षकों के प्रति आभार जताते हैं एवं उनके प्रति अपने भाव को प्रदर्शित करते हैं।

आज हम यहाँ शिक्षक दिवस पर शिक्षक का महत्व बताने वाली कुछ कविताएं उपलब्ध करवा रहे हैं, जिन्हें न सिर्फ स्कूलों पर आयोजित कार्यक्रमों में सुना सकते हैं, बल्कि आप अपनी सोशल मीडिया साइट्स फेसबुक, व्हाट्सऐप, इंस्टाग्राम आदि पर शेयर कर सकते हैं एवं अपने गुरु से दूर रहकर भी उनका आभार प्रकट कर सकते हैं।

शिक्षक दिवस पर शिक्षक कविता – Poem on Teachers day in Hindi

Poem on Teachers day
Poem on Teachers day

Teachers Day Poem

“शिक्षक बिन ज्ञान नहीं”

शिक्षक बिन ज्ञान नहीं रे।
अंधकार बस तब तक ही है,
जब तक है दिनमान नहीं रे॥
मिले न शिक्षक का अगर सहारा,
मिटे नहीं मन का अंधियारा
लक्ष्य नहीं दिखलाई पड़ता,
पग आगे रखते मन डरता।
हो पाता है पूरा कोई भी अभियान नहीं रे।
शिक्षक बिन ज्ञान नहीं रे॥
जब तक रहती शिक्षक से दूरी,
होती मन की प्यास न पूरी।
शिक्षक मन की पीड़ा हर लेते,
दिव्य सरस जीवन कर देते।
शिक्षक बिन जीवन होता ऐसा,
जैसे प्राण नहीं, नहीं रे॥
भटकावों की राहें छोड़ें,
शिक्षक चरणों से मन को जोड़ें।
शिक्षक के निर्देशों को मानें,
इनको सच्ची सम्पत्ति जानें।
धन, बल, साधन, बुद्धि, ज्ञान का,
कर अभिमान नहीं रे, शिक्षक बिन ज्ञान नहीं रे॥
शिक्षक से जब अनुदान मिलेंगे,
अति पावन परिणाम मिलेंगे।
टूटेंगे भवबन्धन सारे, खुल जायेंगे, प्रभु के द्वारे।
क्या से क्या तुम बन जाओगे, तुमको ध्यान नहीं, नहीं रे॥

Poem on Teacher

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जयंती के मौके पर 5 सितंबर को पूरे देश में शिक्षक दिवस मनाया जाता है, इस दिन शिष्य अपने गुरुओं के प्रति आदर और सम्मान प्रकट करता है, साथ ही अपने शिक्षकों का धन्यवाद अदा करता है।

जाहिर है कि शिक्षक के बिना मनुष्य के  सफल जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती है, अर्थात शिक्षक मनुष्य के जीवन का मुख्य आधार होता है। जो कि शिष्यों के अंदर सोचने, समझने और सीखने की शक्ति विकसित करता है, साथ ही उसे संसारिक चीजों का बोध करवाता है।

शिक्षक के ज्ञान के बिना मनुष्य अपूर्ण माना जाता है और समाज में खड़े रहने लायक नहीं रहता है। शिक्षकों के मार्गदर्शन से ही शिष्य अपने जीवन में आगे बढ़ता है और जीवन में आने वाली चुनौतियां से लड़ने के लिए तैयार होता है। इसलिए शिक्षकों का हर किसी के जीवन में एक अलग स्थान है।

“दीपक सा जलता है शिक्षक”

दीपक सा जलता है शिक्षक
फैलाने ज्ञान का प्रकाश
न भूख उसे किसी दौलत की
न कोई लालच न आस
उसे चाहिए, हमारी उपलब्ध‍ियां
उंचाईयां,
जहां हम जब खड़े होकर
उनकी तरफ देखें पलटकर
तो गौरव से उठ जाए सर उनका
हो जाए सीना चौड़ा
हर वक्त साथ चलता है गुरु
करता हममें गुणों की तलाश
फिर तराशता है शिद्दत से
और बना देता है सबसे खास
उसे नहीं चाहिए कोई वाहवाही
बस रोकता है वह गुणों की तबाही
और सहेजता है हममें
एक नेक और काबिल इंसान को

Shikshak Din Kavita

देश के पहले उप राष्ट्रपति और दूसरे राष्ट्रपति एवं महान शिक्षक डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म 5 सितंबर 1888 को तमिलनाडु के तिरूतनी गांव में हुआ था। उनके जन्मदिवस को शिक्षक दिवस के रुप में मनाया जाता है।

राधाकृष्णन ने अपने जीवन में करीब 40 साल तक एक शिक्षक के रुप में काम किया एवं अपने महान विचारों से लोगों को सही मार्गदर्शन दिखाने की कोशिश की है। उन्होंने समाज को शिक्षक के महत्व को बताया, साथ ही शिक्षा को काफी बढ़ावा दिया था, उनका मानना था कि एक अज्ञानी मनुष्य कभी भी अपनी मंजिल तक नहीं पहुंच सकता है इसलिए हर इंसान के जीवन में एक शिक्षक का होना बेहद जरूरी है।

इसलिए 5 सितंबर यानि कि शिक्षक दिवस के दिन राधाकृष्ण के जीवन के आदर्शों पर चलने की सलाह दी जाती है साथ ही समाज में उत्कृष्ट काम करने वाले शिक्षकों को सम्मानित किया जाता है।

वहीं शिक्षक दिवस पर दी गई इन कविताओं के माध्यम से न सिर्फ अपने गुरुओं के प्रति आदर-सम्मान की भावना प्रकट होती है, बल्कि इन कविताओं को सोशल मीडिया साइट्स पर अपलोड कर गुरुओं से दूर रहकर भी उनका आभार प्रकट किया जा सकता है।

इसलिए इन कविताओं को ज्यादा से ज्यादा अपनी सोशल मीडिया साइट्स पर शेयर करने की कोशिश करें, ताकि गुरु-शिष्य को के अनूठे रिश्ते की परंपरा को कायम रखा जा सके।

“शिक्षक”

माँ देती नव जीवन, पिता सुरक्षा करते हैं।
लेकिन सच्ची मानवता, शिक्षक जीवन में भरते हैं।

सत्य न्याय के राह पर चलना, गुरु हमें बताते हैं।
जीवन संघर्षों से लड़ना, गुरु हमें सिखाते हैं।

ज्ञान दीप की ज्योति जला कर, मन आलोकित करते हैं।
विद्या का धन देकर शिक्षक, जीवन सुख से भरते हैं।

गुरु ईश्वर से बढ़ कर हैं, यह कबीर बतलाते हैं।
क्योंकि गुरु ही भक्तों को, ईश्वर तक पहुंचाते हैं।

जीवन में कुछ पाना है तो, गुरु का सम्मान करो।
शीश झूका कर श्रद्धा से तुम, बच्चों उन्हें प्रणाम करो।

“Teachers Day ke Liye Kavita”

शिक्षक दिवस को भारत में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। इसे लेकर बच्चों को काफी उत्साह रहता है।इस मौके पर कई अलग-अलग तरह के प्रोग्राम्स का भी आयोजन किया जाता है।

इसके साथ ही इस दिन समाज में अपना महत्वपूर्ण योगदान देने वाले सर्वश्रेष्ठ शिक्षकों को सम्मानित किया जाता है। यह दिन हर शिक्षक एवं शिष्य के लिए बेहद खास दिन होता है। इस दिन शिष्य अपने गुरुओं का आभार प्रकट करते हैं, एवं कविताओं आदि के माध्यम से उनके प्रति अपनी भावनाएं एवं कृतत्रता प्रकट करते हैं साथ ही अपने जीवन में उनकी महत्वता का बखान करते हैं।

यह दिवस गुरु -शिष्य के रिश्ते को और अधिक मजबूती प्रदान करता है। वहीं शिक्षक दिवस पर इस तरह की कविताओं के माध्यम से भावनात्मक तरीके से गुरु -शिष्य के अनूठे रिश्ते के बारे में बताया जा सकता है।

इसलिए ज्यादा से ज्यादा इन कविताओं को सोशल मीडिया साइट्स पर शेयर करें और अपने गुरुओं के प्रति सम्मान प्रकट करें क्योंकि एक शिक्षक ही देश का असली निर्माणकर्ता होता है, जो शिष्यों के जीवन से अंधकार दूर कर ज्ञान का दीप जलाता है।

गुरूदेव के श्रीचरणो मे श्रद्धा सुमन सग वदन
जिनके कृपा नीर से जीवन हुआ चदन
धरती कहती, अबर कहते कहती यही तराना
गुरू आप ही वो पावन नूर है जिनसे रोशन हुआ जमाना
ले गए आप इस स्कूल को उस मुकाम पर, गर्व से उठते है हमारे सर,
हम रहे ना रहे कल, याद आएंगे आपके साथ बिताये हुए पल,
हमे आपकी जरुरत रहेगी हर पल।

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शिक्षक दिवस पर निबंध | Teachers Day Essay

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Teachers Day Essay in Hindi

विद्यार्थियों के जीवन में शिक्षक का एक विशेष स्थान होता है। राष्ट्र के भविष्य को सवारने में शिक्षको की महत्त्व भूमिका होती है, उनके की सहायता से एक आदर्श नागरिक का जन्म होता है।

5 सितंबर को हमारे देश में शिक्षकों के सम्मान में शिक्षक दिवस मनाया जाता है, वहीं आज की युवा पीढी को शिक्षकों के महत्व को समझाने एवं गुरु-शिष्य के अनूठे रिश्ते की परंपरा को कायम रखने के लिए आजकल स्कूल-कॉलेजों में इस विषय पर निबंध प्रतियोगिता आयोजित करवाई जाती है, या फिर कई बार  परीक्षा में इस दिवस पर निबंध लिखने के लिए कहा जाता है।

जीवन में शिक्षक के महत्त्व को समझने के लिए विभिन्न शब्दों एवं आसान और सरल शब्दों में हम यहाँ शिक्षक दिवस पर निबंध – Teachers Day Essay उपलब्ध कराने जा रहे है, जो आपके बच्चो और विद्यार्थियों के लिए विविध प्रतियोगिताओ में उपयोगी साबित हो सकते है।

Teachers Day Essay

शिक्षक दिवस पर निबंध – Teachers Day Essay

हमारी सफलता के पीछे हमारे शिक्षक का बहुत बड़ा हाथ होता है। हमारे माता-पिता की तरह ही हमारे शिक्षक के पास भी ढ़ेर सारी व्यक्तिगत समस्याएँ होती हैं लेकिन फिर भी वह इन सभी को भूलकर रोज स्कूल और कॉलेज आते हैं तथा अपनी जिम्मेदारी को अच्छी तरह से निभाते हैं।

कोई भी उनके बेशकीमती कार्य के लिये उन्हें धन्यवाद नहीं देता इसलिये एक विद्यार्थी के रुप में शिक्षकों के प्रति हमारी भी जिम्मेदारी बनती है कि कम से कम साल में एक बार उन्हें जरुर धन्यवाद दें।

शिक्षको के कार्य को समर्पित करते हुए 5 सितम्बर का दिन पुरे देश में शिक्षक दिवस के रूप मनाया जाता है। शिक्षकों को सम्मान देने और भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिवस को याद करने के लिये हर साल इसे मनाया जाता है। देश के विकास और समाज में हमारे शिक्षकों के योगदान के साथ ही शिक्षक के पेशे की महानता को उल्लेखित करने के लिये हमारे पूर्व राष्ट्रपति के जन्मदिवस को समर्पित किया गया है।

डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन एक महान शिक्षक थे, जिन्होंने अपने जीवन के 40 वर्ष अध्यापन पेशे को दिए है। वे विद्यार्थियों के जीवन में शिक्षकों के योगदान और भूमिका के लिये प्रसिद्ध थे। इसलिये वे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने शिक्षकों के बारे में सोचा और हर वर्ष 5 सितंबर को शिक्षक दिवस के रुप में मनाने का अनुरोध किया।

डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म 5 सितंबर 1888 को हुआ था और 1909 में चेन्नई के प्रेसिडेंसी कॉलेज में अध्यापन पेशे में प्रवेश करने के साथ ही दर्शनशास्त्र शिक्षक के रुप में अपने करियर की शुरुआत की।

उन्होंने देश में बनारस, चेन्नई, कोलकाता, मैसूर जैसे कई प्रसिद्ध विश्वविद्यालयों तथा विदेशों में लंदन के ऑक्सफोर्ड जैसे विश्वविद्यालयों में दर्शनशास्त्र पढ़ाया है। अध्यापन पेशे के प्रति अपने समर्पण की वजह से उन्हें अपने बहुमूल्य सेवा की पहचान के लिये 1949 में विश्वविद्यालय छात्रवृत्ति कमीशन के अध्यक्ष के रुप में नियुक्त किया गया।

1962 से शिक्षक दिवस के रुप में 5 सितंबर को मनाने की शुरुआत हुई। अपने महान कार्यों से देश की लंबे समय तक सेवा करने के बाद 17 अप्रैल 1975 को उनका निधन हो गया।

शिक्षक विद्यार्थियो के जीवन के वास्तविकतः कुम्हार की तरह होते हैं, जो न सिर्फ हमारे जीवन को आकार देते हैं बल्कि हमें इस काबिल बनाते हैं कि हम पूरी दुनिया में अंधकार होने के बाद भी प्रकाश की तरह जलते रहें। इसी वजह से हमारा राष्ट्र ढ़ेर सारे प्रकाश के साथ प्रबुद्ध हो सकता है।

हमारे शिक्षक हमें शैक्षणिक दृष्टी से तो बेहतर बनाते ही हैं, साथ ही हमारे ज्ञान और विश्वास के स्तर को बढ़ाकर नैतिक रुप से भी हमें अच्छा बनाते है। जीवन में अच्छा करने के लिये वह हमें हर असंभव कार्य को संभव करने की प्रेरणा देते हैं। विद्यार्थी इस शिक्षक दिवस को बहुत उत्साह और खुशी के साथ मनाते है। विद्यार्थी अपने शिक्षकों को ग्रीटिंग कार्ड देकर बधाई भी देते हैं।

हमें पूरे दिल से ये प्रतिज्ञा करनी चाहिये कि हम अपने शिक्षक का सम्मान करेंगे क्योंकि बिना शिक्षक के इस दुनिया में हम सभी अधूरे हैं।

शिक्षक दिवस पर निबंध – Shikshak Par Nibandh

प्रस्तावना-

शिक्षकों के सम्मान में एवं भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जयंती पर 5 सितंबर को हर साल हमारे देश में धूमधाम से शिक्षक दिवस मनाया जाता है।

यह दिवस समाज में न सिर्फ शिक्षकों के महत्व को बताता है, बल्कि शिष्यों के ह्रद्य में अपने शिक्षक के प्रति आदर-भाव की भावना भी प्रकट करता है, क्योंकि गुरु ही अपने शिष्य के जीवन से अंधकार मिटाकर उसे ज्ञान के प्रकाश की तरफ ले जाते हैं, जिससे मनुष्य सफलता हासिल करता है।

गुरु के बिना ज्ञान संभव नहीं है और बिना ज्ञान के मनुष्य का जीवन निर्रथक होता है। वहीं गुरुओं की महिमा तो बड़े-बड़े कवियों ने भी अपने श्लोंकों के माध्यम से बताई है और शिक्षकों को इस समाज में भगवान के बराबर दर्जा दिया गया है।

“गुरुर्ब्रह्मा ग्रुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः ॥

शिक्षक दिवस कब मनाया जाता है? – When Is Teachers Day

हमारे भारत देश में गुरु-शिष्य के अनूठे रिश्ते के बारे में तो वेद-पुराणों में भी बताया गया है। वहीं शिक्षकों के सम्मान में डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जयंती पर हर साल 5 सितंबर को हमारे देश में शिक्षक दिवस के रुप में मनाया जाता है।

शिक्षक, राष्ट्र निर्माता होते हैं, अपनी ज्ञान की गंगा से शिष्यों के जीवन में अज्ञानता को दूर करते हैं साथ ही एक  सभ्य समाज एवं शिक्षित राष्ट्र का निर्माण करने में अपनी महत्वपूर्ण भागीदारी निभाते हैं।

इसलिए यह दिन शिक्षकों को समर्पित दिन है, वहीं इस दिन समाज में उत्कृष्ट काम करने वाले शिक्षकों को सम्मानित भी किया जाता है और देश के पूर्व राष्ट्रपति  डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी को याद किया जाता हैं, क्योंकि उन्होंने अपना पूरा जीवन अध्यापन कार्य में समर्पित कर दिया था एवं समाज में शिक्षकों के महत्व को बताने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

शिक्षक दिवस क्यों मनाया जाता है? – Why Is Teachers Day Celebrated

स्वतंत्र भारत के प्रथम उप-राष्ट्रपति एवं पूर्व राष्ट्रपति डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जयंती को शिक्षक दिवस के रुप में मनाते हैं। 5 सितंबर, 1888 सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म हुआ था।

वे एक अच्छे राजनेता होने के साथ महान शिक्षकविद और अच्छे दार्शनिक भी थे, जिन्होंने अपने जीवन का अधिकांश समय समाज में शिक्षको के महत्व को बताने एवं शिक्षण कार्य की महानता को बताने में व्यतीत कर दिया था, एवं देश के विकास एवं उत्थान में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी।

इसलिए उनके सम्मान में हर साल उनकी जयंती को शिक्षक दिवस के रुप में मनाया जाता है। उन्होंने राष्ट्रपति के तौर पर साल 1962 से 1967 तक राष्ट्र की सेवा की थी। आपको बता दें कि साल 1962 में  डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी को देश का राष्ट्रपति  के रुप में नियुक्त किया गया था।

उसके बाद उनके द्धारा समाज में किए गए महान कामों  के लिए उनके सम्मान में लोगों ने  5 सितंबर के दिन को ‘राधाकृष्णन दिवस’ के तौर पर मनाने का फैसला किया था।

लेकिन, हमेशा ही समाज में शिक्षकों के महत्व को बताने वाले राधाकृष्णन जी ने इसे मनाने से मना कर दिया और 5 सितंबर को उनकी जयंती को मनाने की बजाय ‘शिक्षक दिवस के रुप में मनाने की इच्छा जताई थी।

जिसके बाद से हर साल इस दिन को शिक्षक दिवस के तौर पर मनाया जाने लगा। 5 सितंबर, 1962 को हमारे देश में पहली बार शिक्षक दिवस मनाया गया था।

देश के विकास में अपना महत्वपूर्ण योगदान देने वाले डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी शिक्षकों का काफी सम्मान करते थे।

वे अपने जीवन में करीब 40 साल तक शैक्षणिक कार्य से जुड़े रहे। आपको बता दें कि राजनीती में आने से पहले उन्होंने ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी, कलकत्ता यूनिवर्सिटी, मैसूर यूनिवर्सिटी समेत कई शिक्षक संस्थानों में अध्यापक के तौर पर काम किया था। वे अपने छात्रों के पसंदीदा शिक्षक के रुप में जाने जाते थे।

वहीं उन्होंने अपने महान विचारों से लोगों को शिक्षकों के महत्व के बारे में जागरूक किया। इसके साथ ही राष्ट्र निर्माण में शिक्षकों के योगदान का उल्लेख किया। इसके साथ ही उन्होंने सभ्य एवं शिक्षित समाज का निर्माण करने वाले शिक्षकों को सम्मानित करने के लिए 5 सितंबर को शिक्षक दिवस के रुप में अनुरोध किया था।

इसलिए उनकी जयंती को शिक्षक दिवस के रुप में मनाया जाता है

शिक्षक दिवस कैसे मनाया जाता है? – How Is Teachers Day Celebrated

हमारे देश में 5 सितंबर को हर साल धूमधाम से शिक्षक दिवस मनाया जाता है। शिक्षक दिवस को लेकर बच्चे काफी उत्साहित रहते हैं, साथ ही अपने टीचर्स को सम्मानित करने एवं उन्हें स्पेशल महसूस करवाने के लिए विशेष तरह की तैयारियों में कई दिन पहले से ही जुट जाते हैं।

इस मौके पर स्कूल, कॉलेजों समेत अन्य शिक्षक संस्थानों में विशेष तरह के कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है साथ ही इस दिन समाज में उत्कृष्ट काम करने वाले शिक्षकों को सम्मानित भी किया जाता है।

शिक्षक दिवस का दिन हर  शिक्षक और छात्रों के लिए बेहद अहम दिन होता है, इस दिन शिक्षकों के महत्व को छात्रों को समझाने के लिए शिक्षक दिवस पर भाषण, निबंध लेखन समेत कई प्रतियोगिताओं का भी आयोजन किया जाता है।

इसके अलावा स्कूलों एवं अन्य शैक्षणिक संस्थानों में छात्र स्लोगन, कविता आदि के माध्यम से शिक्षकों के प्रति अपने भावना को प्रकट करते हैं साथ ही उनका आभार जताते हैं।

इस मौके पर कई छात्र अपने टीचर्स को गिफ्ट या फिर अपने हाथ से बनाया हुआ ग्रीटिंग कार्ड देकर भी इस दिन को खास मनाने की कोशिश करते हैं एवं अपने गुरु-शिष्य के रिश्तों की डोर को मजबूत करते हैं, साथ ही  भारत में गुरु शिष्य की अनूठी परंपरा को कायम करने का संकल्प लेते हैं।

उपसंहार

गुरु-शिष्य का रिश्ता बेहद पवित्र एवं अनूठा रिश्ता होता है, जिसमें एक शिक्षक निस्वार्थ भाव से अपने शिष्यों को पढ़ाता है, और एक अभिभावक की तरह अपने छात्र की सफल जीवन की कामना करताहै, हालांकि, वर्तमान में गुरु-शिष्य का रिश्ता महज औपचारिक बन गया है एवं शिक्षक व्यवसाय महज सिर्फ एक पेशा बन चुका है।

जिसमें तमाम शिक्षक, पैसों के लालच में छात्र के भविष्य को अंधकार में डाल रहे हैं, जिसकी वजह से यह रिश्ता तार-तार हो रहा है, और शिक्षक-शिष्य के रिश्ते की गरिमा घट रही है।

वहीं छात्रों और शिक्षकों दोनों का ही फर्ज है कि वे इस रिश्ते के महत्व को समझें एवं गुरु-शिष्य की परंपरा को कायम रखने में अपनी भागीदारी निभाएं।

शिक्षक दिवस, शिक्षकों को अपने दायित्व को याद दिलवाने एवं छात्रों को अपने गुरुओं के सम्मान की याद दिलवाता है। इसलिए, शिक्षक दिवस गुरु-शिष्य दोनों के लिए बेहद महत्वपूर्ण है।

शिक्षक दिवस पर निबंध – Paragraph On Teachers Day

प्रस्तावना

गुरु के बिना मनुष्य को ज्ञान की प्राप्ति नहीं हो सकती है। शिक्षक, मनुष्य के जीवन का मुख्य आधार होते हैं। शिक्षक का हर किसी के जीवन में बेहद महत्व है। एक शिक्षक, न सिर्फ छात्र का सही मार्गदर्शन कर उनके जीवन को सफल बनाते हैं, बल्कि एक सभ्य एवं शिक्षित समाज के निर्माण में भी मद्द करते हैं।

इसके साथ ही विकसित राष्ट्र के विकास में अपना महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। इसलिए शिक्षकों के सम्मान में हर साल  5 सितंबर को भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जयंती के मौके पर शिक्षक दिवस मनाया जाता है।

शिक्षक, शिष्य एवं ईश्वर के बीच एक सेतु का काम करते हैं। इसलिए शिक्षक को भगवान से भी ऊंचा दर्जा दिया गया हैं, वहीं महान संत कबीर दास ने भी अपने इस दोहे के माध्यम से गुरु की महिमा बताई है –

“गुरु गोबिंद दोऊ खड़े, का के लागूं पाय।
बलिहारी गुरु आपणे, गोबिंद दियो मिलाय।।

शिक्षक दिवस 5 सितंबर को ही क्यों मनाया जाता है? – Why Teachers Day Celebrated On 5th September

स्वतंत्र भारत के प्रथम उप-राष्ट्रपति, पूर्व राष्ट्रपति एवं महान शिक्षक डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी का जन्म 5 सितंबर 1888 को तमिलनाडु में हुआ था। उन्होंने न सिर्फ अपने जीवन का ज्यादातर समय अध्यापन के कार्य में व्यतीत किया बल्कि समाज के लोगों को शिक्षकों महत्व बताया एवं राष्ट्रनिर्माण में शिक्षकों के योगदान के बारे में जागरूक करने में अपनी महत्पूर्ण भूमिका निभाई।

डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी एक महान राजनेता होने के साथ-साथ एक अच्छे शिक्षक भी थे। 1962 में देश के राष्ट्रपति के पद पर सुशोभित होने से पहले उन्होंने अपने जीवन के करीब 40 साल शिक्षक के तौर पर काम किया था, वे समस्त संसार को एक ही स्कूल मानते थे।

उन्होंने, अपने महान विचारों से लोगों को शिक्षकों के महत्व को बताया था, साथ ही शिक्षक की राष्ट्र निर्माण एवं समाज के उत्थान में भूमिका का भी बखान किया था।

डॉ. राधाकृष्णन ने 1962 से 1967 में जब देश के राष्ट्रपति के पद का कार्यभार संभाला था, तब लोगों ने 5 सितंबर को उनके जन्मदिवस को उनके सम्मान में ‘राधाकृष्णन दिवस’ के तौर पर मनाने का फैसला लिया था, लेकिन उन्होंने अपनी जयंती को ‘राधाकृष्णन दिवस’ के तौर पर नहीं बल्कि शिक्षकों के सम्मान में शिक्षक दिवस बनाने का अनुरोध किया था। तभी से इसे शिक्षक दिवस के रुप में मनाया जाता है।

वह हमारे देश के ऐसे पहले राष्ट्रपति थे, जिन्होंने शिक्षकों के हित के बारे में सोचा और शिक्षकों के महत्व को बताया।

प्रख्यात शिक्षाविद रह चुके डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का मानना था कि एक आदर्श और अच्छा शिक्षक वह होता है जो छात्र को उसके भविष्य में आने वाली चुनौतियों से लड़ने के लिए तैयार करे और उसे सक्षम बनाए।

वहीं उनके विचार लोगों को अपनी तरफ काफी प्रभावित करते थे, एवं वे भी छात्रों के पसंदीदा शिक्षक थे, इसलिए शिक्षक दिवस के दिन डॉ. राधाकृष्णनन जी को याद किया जाता है और उन्हें श्रद्धांजली अर्पित की जाती है।

कौन थे डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन? – Who Is Dr Sarvepalli Radhakrishnan

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन न सिर्फ देश के सर्वप्रथम उप-राष्ट्रपति एवं दूसरे राष्ट्रपति थे बल्कि वे एक महान शिक्षक, दार्शनिक, भारतीय संस्कृति के संवाहक और प्रख्यात शिक्षाविद थे, जिनका जन्म  5 सितंबर 1888 को तमिलनाडु के तिरूतनी गांव में हुआ था और शिक्षकों से उनका बेहद लगाव होने की वजह से उनकी जयंती को शिक्षक दिवस के रुप में मनाया जाता है।

आपको बता दें कि उन्होंने अपने जीवन के करीब 40 साल अध्यापन कार्य किया। उनकी ख्याति एक प्रख्यात और पसंदीदा शिक्षक के रुप में देश के कोने-कोने में फैली थी। वे न सिर्फ देश की नामचीन शिक्षण संस्थानों में लेक्चर देते थे, बल्कि विदेशों में भी उन्हें शिक्षा पर लेक्चर देने के लिए बुलाया जाता था।

राधाकृष्णन जी का मानना था कि एक शिक्षक के बिना मनुष्य कभी अपनी मंजिल तक नहीं पहुंच सकता एवं उनकी नजरों में एक आदर्श शिक्षक वही होता है, जो कि युवाओं को देश के भविष्य के रुप में तैयार करता है।

देश के विकास में अपना महत्पूर्ण योगदान देने वाले डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन को साल 1962 में देश का दूसरा राष्ट्रपति के रुप में नियुक्त किया गया था। वहीं 17 अप्रैल 1975 में लंबे समय तक बीमार रहने के बाद उनका निधन हो गया था, लेकिन आज उनके महान कार्यों की बदौलत उन्हें आज भी याद किया जाता है एवं उनकी जयंती को शिक्षक दिवस के तौर पर मनाया जाता है।

शिक्षक दिवस का महत्व – Importance Of Teachers Day

शिक्षक दिवस को पूरे भारत देश में बेहद हर्षोल्लास और धूमधाम से मनाया जाता है।शिक्षकों के सम्मान में मनाए जाने वाला यह दिन शिक्षक और शिष्य दोनों के लिए बेहद खास दिन होता है।

इन दिन समाज के विकास में अच्छा काम करने वाले शिक्षकों के योगदान के लिए उन्हें सराहा जाता है एवं उन्हें सम्मानित किया जाता है।

आपको बता दें कि एक आदर्श शिक्षक एक सभ्य समाज के साथ-साथ शिक्षित राष्ट्र का भी निर्माण करता है, एवं युवाओं को देश के भविष्य के लिए तैयार करता है एवं जीवन में आने वाली किसी भी परेशानी का मुकाबला करने के सक्षम बनाता है। इसी वजह से यह दिन शिक्षकों के लिए समर्पित किया गया है।

वहीं यह दिवस न सिर्फ शिक्षकों को छात्र के प्रति अपने दायित्वों की याद दिलवाता है, बल्कि छात्रों के मन में भी अपने गुरुओं के प्रति सम्मान का भाव पैदा करता है।

उपसंहार

5 सितंबर को शिक्षकों के सम्मान में मनाए जाने वाले शिक्षक दिवस के मौके पर विद्यालयों एवं शिक्षण संस्थानों में कई तरह के कार्यक्रमों का आयोजन किए जाते हैं, एवं इनके माध्यम से आज की युवा पीढ़ी को शिक्षक के महत्व को बताया जाता है।

इसके साथ ही यह दिवस गुरु और शिष्य के रिश्ते को और अधिक मजबूती प्रदान करने में मद्द करता है।

यह दिन समाज के लिए उत्कृष्ट काम करने वाले शिक्षकों का मनोबल भी बढ़ाता है। शिक्षक दिवस के मौके पर हर छात्र को अपने शिक्षकों के सम्मान करने का संकल्प लेना चाहिए क्योंकि गुरु के बिना हम सभी का जीवन अपूर्ण है एवं किसी भी तरह का ज्ञान प्राप्त करना असंभव है, वहीं किसी महान कवि ने सही ही कहा है कि –

“गुरु बिना ज्ञान नहीं और ज्ञान बिना आत्मा नहीं,
कर्म, धैर्य, ज्ञान और ध्यान सब गुरु की ही देन है।।

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शिक्षक दिवस पर भाषण | Teachers day Speech

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Teachers day Speech in Hindi

हर इंसान के जीवन में सबसे ज्यादा महत्व एक शिक्षक या गुरु का होता है क्योकि वह ही अपने विद्यार्थी के ज्ञान का एकमात्र साधन होते है। शिक्षको के कार्यो को सराहने और उनकी प्रशंसा करने के लिए बहुत से पर्व आते है, जिनमे से एक शिक्षक दिवस भी है। इस दिन यह जरुरी होता है की हम शिक्षको के प्रति की भावना को सभी के सामने रखे।

हमारे देश में हर साल 5 सितंबर को भारत के पूर्व राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिन के मौके पर शिक्षक दिवस मनाया जाता है। इस दिन का हर छात्र एवं शिक्षक के लिए बेहद महत्व होता है।

शिक्षक, मनुष्य के जीवन का महत्वपूर्ण आधार होते हैं। गुरुओं की महिमा का बखान तो बड़े-बड़े संत कवियों ने भी की है। वहीं हमारी भारतीय संस्कृति में भी गुरुओं को उच्च स्थान दिया गया है साथ ही गुरु-शिष्य के अनूठए रिश्ते को वेदों और पुराणों में भी बताया गया है।

इसलिए भारत में शिक्षकों के सम्मान में यह दिवस बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। शिक्षक दिवस के मौके पर स्कूलों, कॉलेजों समेत तमाम शिक्षण संस्थानों में कार्यक्रमों का आयोजन होता है।

वहीं इस मौके पर छात्रों को भाषण आदि बोलने का भी मौका मिलता है, जिसके माध्यम से छात्र अपने शिक्षकों के प्रति अपनी कृतज्ञता और सम्मान प्रकट करते हैं।

वहीं अगर आप भी इस शिक्षक दिवस पर भाषण (Teachers Day Speech) देने की सोच रहे हैं तो शिक्षक दिवस के विषय पर हमारे लेख में दिए गए यह स्पीच आपके लिए काफी मद्दगार साबित हो सकते हैं, तो आइए पढ़ते हैं शिक्षक दिवस पर भाषण –

Teachers day speech

शिक्षक दिवस पर भाषण – Teachers day Speech

प्रिंसिपल सर को सुप्रभात, सम्माननीय शिक्षक और मेरे प्यारे मित्रो, हम सभी आज यहाँ शिक्षक दिवस मनाने के लिए एकत्रित हुए है। इस महोत्सव पर मै आप सभी का स्वागत करता हूँ। आज 5 सितम्बर है और हम सभी इस दिन को शिक्षक दिवस के रूप में सालो से मनाते आ रहे है।

इस दिवस को देश के सभी स्कूल और कॉलेजों में डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की याद और शिक्षक के कार्यो को सम्मान देते हुए मनाया जाता है। हमारे समाज में शिक्षको को एक विशेष दर्जा दिया जाता है और विद्यार्थियों के करियर को बनाने में भी उनका महत्वपूर्ण योगदान होता है। देश में धूम-धाम से शिक्षक दिवस मनाया जाता है। हम सभी के जीवनकाल में कोई ना कोई ऐसा शिक्षक जरुर होता है जिसे हम अपना आदर्श मानते है।

आपके शिक्षको ने ही आपको एक स्वतंत्र विचारक, साहसी पढ़ाकू और जिज्ञासु शोधकर्ता बनाया है। और उन्होंने आपको जीवन के हर एक कदम पर सहायता की है। जब कभी भी शिक्षक हमकर गुस्सा हुए है तब भी हमें जीवन में कठिन परिस्थितियों का सामना करने की ताकत मिली है।

उन्होंने ही हमें समाज में रहने और सच्चाई का सामना करने की हिम्मत दी है। लेकिन हम सभी को इस बात का एहसास बादमे होता है। और उस समय हम केवल उनका आदर और सम्मान ही कर सकते है।

जब कभी भी आप अपने पसंदीदा शिक्षक को याद करो तो आपके मन में उसे जुडी हुई कुछ रोचक बाते ए रोचक किस्से जरुर याद आयेंगे।

साल दर साल समय तो गुजरता चला जाएंगा। लेकिन शिक्षको का एक विशेष स्थान हमारे दिल में हमेशा बना रहेंगा। जब शिक्षक हमें पढ़ाते है तो वे अपना सब कुछ भूलकर अपना पूरा समय, अपना पूरा ज्ञान और अपनी पूरी क्षमता हमारे उपर खर्च करते है। शिक्षक हमारे बचपन से ही हमारे जीवन को स्थानांतरित करते रहते है।

इसीलिए शिक्षक दिवस के दिन निश्चित रूप से हमें शिक्षको के प्रति अपने विचारो को बाटना चाहिए, इससे हमें तो ख़ुशी मिलती ही है साथ ही शिक्षक भी प्रोत्साहित होते है। जब हम शिक्षको के लिए कुछ करते है तो शिक्षको को भी हमपर गर्व महसूस होता है। शायद इसी दिन को मनाकर हम उनका आभार भी व्यक्त कर सकते है।

हमारे शिक्षको ने हमारे लिए जितना किया, उसके बराबर हम उन्हें कोई चीज नही दे सकते। लेकिन हाँ, हम उनका आभार जरुर व्यक्त कर सकते है। मैं एक शिक्षकों पर कविता – Teachers Day Poem सुनाकर अपना यह भाषण समाप्त करना चाहूँगा।

गुरु आपकी ये अमृत वाणी
हमेशा मुझको याद रहे
जो अच्छा है जो बुरा है
उसकी हम पहचान करे
मार्ग मिले चाहे जैसा भी
उसका हम सम्मान करे
दीप जले या अँगारे हो
पाठ तुम्हारा याद रहे
अच्छाई और बुराई का
जब भी हम चुनाव करे
गुरु आपकी ये अमृत वाणी
हमेशा मुझको याद रहे

~ सुजाता मिश्रा

धन्यवाद् !

शिक्षक दिवस पर भाषण – Teachers Day Bhashan In Hindi

सर्वप्रथम सभी को शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं !

आदरणीय मान्यवर, सम्मानीय मुख्य अतिथि, प्रधानचार्या जी, सभी शिक्षक गण  और यहां पर बैठे मेरे छोटे-बड़े भाई-बहनों और मेरे प्रिय दोस्तों आप सभी का मैं …. तहे दिल से आभार प्रकट करती हूं/करता हूं।

बेहद खुशी हो रही है कि, आज मुझे शिक्षक दिवस के इस खास मौके पर  आप लोगों के समक्ष भाषण देने का सुनहरा अवसर प्राप्त हुआ है।

मैं शिक्षक दिवस अपने भाषण की शुरुआत, गुरु की महिमा पर किसी महान कवि द्धारा लिखे गए एक संस्कृत श्लोक के माध्यम से करना चाहती हूं /चाहता हूं

“गुरुर्ब्रह्मा ग्रुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः॥

अर्थात् गुरु ही ब्रह्मा हैं, जो अपने शिष्यों को नया जन्म देता है, गुरु ही विष्णु हैं जो अपने शिष्यों की रक्षा करता है, गुरु ही शंकर है; गुरु ही साक्षात परमब्रह्म हैं; क्योंकि वह अपने शिष्य के सभी बुराईयों और दोषों को दूर करता है। ऐसे गुरु को मैं बार-बार नमन करता हूँ/ करती हूं।

जैसे कि हम सभी जानते हैं कि एक शिक्षक, एक मनुष्य के जीवन का महत्वपूर्ण आधार होता है, शिक्षक के बिना मनुष्य अपने जीवन में कभी भी ज्ञान नहीं हासिल कर सकता है और न ही अपने जीवन में आगे बढ़ सकता है। शिक्षक का हर किसी के जीवन में बेहद खास महत्व होता है।

शिक्षकों के सम्मान में हर साल 5 सितंबर को डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जयंती पर हमारे देश में शिक्षक दिवस मनाया जाता है।

इस मौके पर देश के राष्ट्रपति, पहले उपराष्ट्रपति एवं महान शिक्षक राधाकृष्णन जी को श्रद्धांजली देकर उन्हें याद किया जाता है एवं शिक्षकों के सम्मान में तरह -तरह के कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।

वहीं हमारे स्कूल में भी इस मौके पर कार्यक्रम आयोजित किया गया है, जिसे मनाने के लिए हम सब  इस सभागार में इकट्ठे हुए हैं।

इसके साथ ही दोस्तों आपको यह बता दें कि आखिर 5 सितंबर को भी हम शिक्षक दिवस क्यों मनाते हैं, दरअसल देश के महान शिक्षकविद रह चुके डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी 1962 में जब देश के राष्ट्रपति के पद पर सुशोभित हुए तो छात्रों ने मिलकर उनके जन्मदिवस को मनाने का आग्रह किया।

लेकिन सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी को शिक्षकों से बेहद लगाव था, इसलिए उन्होंने अपने जन्मदिवस को शिक्षक दिवस मनाने की इच्छा जताई थी और तभी से उनकी जयंती को शिक्षक दिवस के रुप में हमारे देश में धूमधाम से मनाया जाने लगा।

देश के उत्थान के लिए कई काम कर चुके डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी का मानना था कि शिक्षक के बिना एक मनुष्य कभी भी अपनी मंजिल तक नहीं पहुंच सकता है, इसलिए हर व्यक्ति के जीवन में शिक्षक का होना बेहद जरूरी है।

राधाकृष्णन जी ने न सिर्फ अपने जीवन के 40 साल एक शिक्षक के रुप में काम किया और लोगों के बीच एक पसंदीदा शिक्षक के रुप में ख्याति  बटोरी, बल्कि समाज में शिक्षक के महत्व, उनके द्धारा समाज और राष्ट्र के विकास में उनके योगदान को बताया।

अपने जीवन में उच्च पदों पर आसीन होकर देश की सेवा करने वाले एवं शिक्षा के क्षेत्र में अपना महत्वपूर्ण योगदान देने वाले राधाकृष्णन जी का कहना था कि, अगर शिक्षा सही तरीके से दी जाए तो, समाज में फैली कई बुराइयों को दूर किया जा सकता है।

अर्थात इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि, एक शिक्षक ही  मनुष्य के अंदर सोचने, समझने और सीखने की अद्भुत शक्ति विकसित करता है एवं शिक्षक ही मनुष्य के ज्ञान, जानकारी, समृद्धि के वास्तविक धारक होते हैं।

हर किसी की सफलता के पीछे शिक्षक का ही हाथ होता है, क्योंकि बिना शिक्षक के मार्गदर्शन से व्यक्ति अपने लक्ष्य को हासिल नहीं कर सकता है।

एक शिक्षक अपनी पूरी जिंदगी अपने शिष्यों के प्रति समर्पित रहता है एवं अपने शिष्य के  जीवन से अज्ञानता के अंधेरे को दूर कर उसके जीवन में ज्ञान का ज्योति जलाता है, साथ ही निस्वार्थ भाव से अपने शिष्य के सफल जीवन की कामना करता है।

हर शिक्षक यही चाहता है कि, उसका शिष्य अपने जीवन में सफलता की असीम ऊंचाईयों को छुए।

वहीं एक शिक्षक न सिर्फ अपने शिष्य को शिक्षित करने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है, बल्कि वह एक सभ्य समाज और शिक्षित राष्ट्र के निर्माण में मद्द करता है एवं युवाओं को देश के सुनहरे भविष्य के लिए तैयार करता है।

दरअसल, हम सभी के अंदर शिक्षक के ज्ञान और सही मार्गदर्शन से ही सही और गलत का एहसास होता है साथ ही हमारे अंदर दया, परोपकार, मद्द का भाव प्रकट होता है एवं हमारे अंदर अनुशासन, कृतज्ञता, कर्तव्यपरायणता आदि जैसे गुण उत्पन्न होते हैं। अर्थात शिक्षक, मनुष्य को सफल बनाने की राहें आसान बना देते हैं।

हम सभी शिष्य बेहद धन्य है कि हमें आप जैसे शिक्षकों से मार्गदर्शन प्राप्त हुआ है।

आप शिक्षकों के बिना हमारा जीवन बिना नाविक की नाव की तरह होता, जिस तरह बिना नाविक के नाव दिशाहीन होकर चलती है, या फिर बेसहारा भंवर में फंस जाती है, ठीक उसी तरह आप जैसे टीचर्स के बिना हम दिशाहीन हो जाते हैं और हमें कभी नहीं पता चलता है कि हमें किस रास्ते पर चलना है।

दोस्तों यह शिक्षक दिवस हम सभी छात्रों को लिए के लिए बेहद खास है, क्योंकि इस मौके पर हमे अपने शिक्षकों के प्रति न सिर्फ सम्मान प्रकट करने का मौका मिलता है।

बल्कि सही मार्गदर्शन कर हमें तरक्की की तरफ अग्रसर करने वाले शिक्षकों का हमें शुक्रियादा करने का भी सुनहरा अवसर प्राप्त होता है।

मै अपने भाषण का अंत अपने टीचर्स के लिए कुछ खास पंक्तियों के माध्यम से करना चाहती हूं/चाहता हूं –

“आप केवल हमारे शिक्षक नहीं है, आप हमारे मित्र, दार्शनिक और मार्गदर्शक है, आप, हम सभी को एक सभ्य व्यक्ति के रुप में ढ़ालते है। हम आपके समर्थन के लिए हमेशा आभारी रहेंगे।”

धन्यवाद।।

शिक्षक दिवस पर भाषण – Shikshak Din Bhashan

आदरणीय प्रधानचार्य महोदय जी, सम्मानीय शिक्षकों एवं मेरे प्यारे मित्रों सभी को मेरा नमस्कार एवं शिक्षक दिवस की आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं।

जैसे कि हम सभी जानते हैं कि आज 5 सितंबर का दिन हम सभी छात्रों और शिक्षकों के लिए बेहद खास दिन है, इसलिए हम सभी इस सभागार में शिक्षकों के सम्मान में मनाए जाने वाले इस दिन को और खास मनाने के लिए इकट्ठे हुए हैं।

शिक्षक दिवस के इस मौके पर हम सभी एक सभ्य समाज एवं शिक्षित राष्ट्र के निर्माण में अपनी महत्वपूर्ण निभाने वाले शिक्षकों का शुक्रिया अदा करेंगे साथ ही निस्वार्थ भाव से समाज की सेवा करने वाले आदर्श शिक्षकों के कठिन प्रयासों को श्रद्धांजली अर्पित करेंगे।

शिक्षक दिवस के इस खास मौके पर मुझे बेहद खुशी हो रही है कि मुझे आप सभी के समक्ष भाषण देने का सुनहरा अवसर प्राप्त हुआ है और अपने गुरुओं के सम्मान में अपने विचार रखने का मौका मिला है, इसके लिए मै बेहद आभारी हूं।

मै अपने भाषण की शुरुआत शिक्षकों के महिमा को बताने वाले महान संत कबीरदास जी द्धारा लिखी गईं  कुछ खास पंक्तियों के माध्यम से करना चाहता हूं /चाहती हूं –

“गुरू बिन ज्ञान न उपजै, गुरू बिन मिलै न मोष।
गुरू बिन लखै न सत्य को गुरू बिन मिटै न दोष।।

अर्थात, इस दोहे में महान संत कबीर दास जी ने बताया है कि गुरु के बिना मनुष्य अपने जीवन में ज्ञान प्राप्त नहीं कर सकता, और तब तब वह अपने जीवन में अज्ञानता रुपी अंधेरे में भटकता रहता है। इसके साथ ही संसारिक मोहमाया एवं बंधनों से जकड़ा रहता है।

गुरु ही अपने शिष्य को स्वर्ग का रास्ता बताता है, इस्के साथ ही सत्य, असत्य एवं उचित, अनुचित का बोध करवाता है। गुरु के ज्ञान के बिना मनुष्य कई बुराईयों से लिप्त रहता है।

इसलिए हम सभी को अपने गुरुओं और शिक्षकों का सम्मान करना चाहिए और श्रद्धापूर्वक उनसे ज्ञान अर्जित करना चाहिए।

हमारे देश में हर साल 5 सितंबर को, डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म दिवस को शिक्षक दिवस के रुप में मनाया जाता है।

आपको बता दें कि साल 1962 में राधाकृष्णन जी जब देश के राष्ट्रपति के पद पर सुशोभित हुए, तब उन्होंने अपने जन्मदिवस को शिक्षक दिवस के रुप में मनाए जाने का आग्रह किया था, और तब से लेकर आज तक 5 सितंबर को हर साल शिक्षकों के सम्मान में शिक्षक दिवस मनाया जाता है।

एक शिक्षक, मनुष्य के जीवन का मुख्य आधार होते हैं, शिक्षक के बिना मनुष्य के सफल जीवन की कल्पना तक नहीं की जा  सकती है।

शिक्षक के सही मार्गदर्शन द्धारा ही व्यक्ति अपने जीवन के लक्ष्यों को हासिल करने के योग्य बनता है एवं भविष्य में आने वाली चुनौतियों के लिए तैयार होता है।

एक शिक्षक मनुष्य के भौतिक और मानसिक विकास में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है एवं राष्ट्र के लिए समर्पित एक आदर्श नागरिक का निर्माण करता है।

शिक्षक, अपने शिष्य को सही आकार में ढालता है एवं उसके सुनहरे भविष्य की नींव रखता है। इसलिए हम सभी को अपने शिक्षकों का सम्मान करना चाहिए साथ ही हमारे जीवन को सफल बनाने में उनके द्धारा दिए गए योगदान और उनके कीमती प्रयासों को कभी नहीं भूलना चाहिए एवं उनके प्रति कृतज्ञता प्रकट करनी चाहिए।

वहीं शिक्षक दिवस का यह मौका अपने गुरुओं के प्रति सम्मान प्रकट करने एवं उनके प्रति अपनी भावनाओं को उजागर करने साथ ही का एक बेहद अच्छा मौका होता है।

गुरु शिष्य का रिश्ता निस्वार्थ होता है, जिसमें एक शिक्षक निस्वार्थ भाव से अपने शिष्य को ज्ञान देता है और उसे अपने जीवन में सही पथ पर चलने एवं सही कर्मों को करने की शिक्षा देता है।

माता-पिता के बाद एक हमारे शिक्षक ही होते हैं जो कि हमेशा हमारी सफलता के बारे में सोचते हैं और हम शिष्यों को सफल बनाने के लिए निरंतर प्रयास करते रहते हैं।

एक शिक्षक ही न सिर्फ हमे सफल होने के योग्य बनाता है बल्कि बुरे वक्त में ज्ञान और धैर्यता के माध्यम से हमें अपने जीवन में कठिनाईयों से लड़ने के योग्य बनाता है। इसके साथ ही शिक्षक समय-समय पर अपने शिष्यों को आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।

शिक्षकों की  कड़ी मेहनत, त्याग और समर्पण से ही एक शिष्य योग्य और सफल बनता है एवं उसका उद्दारा होता है।

वहीं सभी व्यवसायों में एक शिक्षक ही एक ऐसा पेशा होता है, जो कि न सिर्फ हर पेशे से महान और ऊंचा होता है, बल्कि कई पेशों का निर्माण भी करता है।

इसलिए हम सभी को अपने शिक्षकों के महत्व को समझना चाहिए साथ ही अपने गुरुओं के प्रति श्रद्धा रखनी चाहिए और उनका सम्मान करना चाहिए।

जिस तरह एक शिक्षक लगातार छात्रों के उज्जवल भविष्य के लिए निरंतर प्रयास करते रहते हैं  उसी तरह सभी छात्रों का भी दायित्व है कि वे अपने शिक्षकों की हर बात सुनें एवं सच्चाई और ईमानदारी पूर्वक उनसे ज्ञान अर्जित करें।

वहीं देश के विकास में राष्ट्र निर्माण में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले शिक्षकों के महत्व और उनके योगदान को सिर्फ शब्दों में नहीं पिरोया जा सकता है।

मै अपने भाषण के अंत में शिक्षकों पर लिखी गईं कुछ खास पंक्तियों के माध्यम से करना चाहता हूं/चाहती हूं –

“धूल थे हम सभी आसमां बन गये
चांद का नूर ले कहकंशा बन गये
ऐसे सर को भला कैसे कर दें विदा
जिनकी शिक्षा से हम क्या से क्या बन गये”

धन्यवाद।।

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डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन | Dr Sarvepalli Radhakrishnan Biography

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Dr Sarvepalli Radhakrishnan in Hindi

भारत के पूर्व राष्ट्रपति एवं प्रथम उपराष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिवस को पूरे भारत में शिक्षक दिवस के रुप में मनाया जाता है। राधाकृष्णन जी एक अच्छे राजनेता होने से पहले एक प्रख्यात शिक्षक, महान दार्शनिक एवं हिन्दू विचारक थे।

उन्होंने अपने जीवन के करीब 40 साल एक शिक्षक के रुप में काम किया था। उन्होंने न सिर्फ देश की नामचीन यूनिवर्सिटी में अपने लेक्चर से भारतीयों का दिल जीता था, बल्कि विदेशों में भी अपने लेक्चर एवं महान विचारों से लोगों को मंत्रमुग्ध किया।

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने समाज के लोगों को शिक्षकों की महत्वता एवं राष्ट्र निर्माण में शिक्षकों के योगदान के बारे में जागरूक किया साथ ही समाज में शिक्षकों को उचित स्थान दिलवाने के लिए काफी प्रयास किए। आपको बता दें कि राधाकृष्णन जी समस्त संसार को एक स्कूल मानते थे।

उनका मानना था कि, मनुष्य के दिमाग का सही तरीके से इस्तेमाल सिर्फ और सिर्फ शिक्षा द्धारा ही किया जा सकता है। राधाकृष्णन जी दर्शनशास्त्र के एक प्रकंड विद्धान भी थे, जिन्होंने अपने महान विचारों, लेखों एवं भाषणों के माध्यम से पूरे संसार को भारतीय दर्शनशास्त्र से परिचित करवाया, आइए जानते हैं राधाकृष्णन जी के बारे में कुछ महत्वपूर्ण एवं दिलचस्प तथ्य –

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन – Dr Sarvepalli Radhakrishnan Biography in Hindi

Dr Sarvepalli Radhakrishnan

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी की जीवनी एक नजर में – Dr Sarvepalli Radhakrishnan Information

पूरा नाम (Name) डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन
जन्म (Birthday) 5 सितंबर, 1888, तिरूमनी गांव, तमिलनाडु
मृत्यु (Death) 17 अप्रैल, 1975,  चेन्नई, तमिलनाडु
पिता (Father Name) सर्वपल्ली वीरास्वामी
माता (Mother Name) सीताम्मा
पत्नी (Wife Name) सिवाकामू (1904)
बच्चे (Childrens) 5 बेटे, 1 बेटी
शिक्षा (Education) एम.ए. (दर्शन शास्त्र)
पुरस्कार – उपाधि (Awards) भारत रत्न

डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म, परिवार एवं शुरुआती जीवन – Dr Sarvepalli Radhakrishnan History

देश के महान शिक्षक एवं प्रकांड विद्धान डॉ॰ सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी 5 सितंबर 1888 को तमिलनाडु के तिरूतनी ग्राम (मद्रास) में एक ब्राहमण परिवार में जन्में थे। वे सर्वपल्ली वीरास्वामी और सीताम्मा की संतान थे। वहीं इनके परिवार की माली हालत ठीक नहीं थी, इसलिए इनके बचपन में इन्हें ज्यादा सुविधाएं नहीं मिली। राधाकृष्णन जी को अपने शुरुआती दिनों में काफी गरीबी में गुजर बसर करना पड़ा था।

कुछ विद्दानों की माने तो राधाकृष्णन जी के पैतृक (पुरखे) पहले सर्वपल्ली नाम के एक गांव में निवास करते थे, इसलिए उनके परिवार में अपने नाम के आगे सर्वपल्ली लिखने की परंपरा थी। डॉ. राधाष्णन सर्वपल्ली जी जब 16 साल के हुए तब बाल विवाह की प्रथा के मुताबिक उनकी शादी अपनी दूर की एक चचेरी बहन सिवाकामू  के साथ करवा दी गई। उनकी पत्नी सिवाकामू को अंग्रेजी और तेलुगु भाषा का अच्छा ज्ञान था।

वहीं शादी के बाद दोनों को 6 बच्चे पैदा हुए। इनके बेटे के नाम सर्वपल्ली गोपाल था, जो कि देश का एक महान इतिहासकार था। वहीं साल 1956 में राधाकृष्णन जी की पत्नी साल 1956 में हमेशा के लिए यह दुनिया छोड़कर चल बसी थी।

राधाकृष्णन जी की शिक्षा एवं विद्यार्थी जीवन – Sarvepalli Radhakrishnan Education

देश के महान शिक्षक रह चुके डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी बचपन से ही काफी प्रतिभावान और मेधावी छात्र थे, उनके अंदर चीजों को सीखने एवं समझने की शक्ति काफी प्रबल थी। उनकी विवेकशीलता देखकर कई बार लोग दंग तक रह जाते थे। वहीं उनके मेधावी होने के गुण की वजह से ही उन्होंने स्कॉलरशिप की बदौलत उच्च शिक्षा हासिल की थी।

राधाकृष्णन जी ने अपनी शुरुआती शिक्षा तिरुपति के क्रिश्चियन मिशनरी संस्था लुथर्न मिशन स्कूल से हुई थी। फिर उन्होंने 1902 में मैट्रिक स्तर की परीक्षा पास की। इसके बाद उन्होंने मद्रास के मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज से अपनी ग्रेजुएशन की पढ़ाई प्रथम श्रेणी के साथ पूरी की। अपने ग्रेजुएशन के दौरान राधाकृष्णन जी ने गणित, इतिहास, मनोविज्ञान विषय में विशेष योग्यता प्राप्त की।

राधाकृष्णन जी की पढ़ाई के प्रति लगन और उनकी समर्पणता एवं उनकी विवेकशीलता को देखकर आगे की पढ़ाई के लिए मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज की तरफ से उन्हें  स्कॉलरशिप प्रदान की गई। जिसके बाद राधाकृष्णन जी ने दर्शन शास्त्र से M.A. की परीक्षा पास कर मास्टर डिग्री हासिल की।

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी का शुरुआती करियर – Sarvepalli Radhakrishnan Career

अपनी M.A की पढ़ाई पूरी करने के बाद होनहार और प्रतिभावान छात्र डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी ने मद्रास प्रेसीडेंसी कॉलेज में दर्शनशास्त्र के सहायक प्राध्यापक (एसोसिएट प्रोफेसर) के तौर पर कार्यभार संभाला। इसके बाद उन्हें साल 1918 में मैसूर यूनिवर्सिटी द्धारा दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर के रूप में नियुक्त किया गया।

साल 1921 में  राधाकृष्णन जी को कोलकाता यूनविर्सिटी के दर्शनशास्त्र के प्राध्यापक के तौर पर मनोनीत किया गया। इसके बाद उन्होंने अपने महान विचारों और लेखों के माध्यम से पूरी दुनिया को भारतीय दर्शन शास्त्र से परिचय करवाया। वहीं इस दौरान उनकी ख्याति दर्शन शास्त्र के महान प्रकांड विद्धान के रुप में दुनिया के कोने-कोने में फैल गई।

इसके बाद राधाकृष्णन जी को न सिर्फ देश की कई नामचीन यूनिवर्सिटी और कॉलेजों में लेक्चर देने के लिए बुलाया जाने लगा, बल्कि विदेशों मसे भी उन्हें लेक्चर देने के लिए निमंत्रण आने लगा। पहले राधाकृष्णन जी को इंग्लैंड की प्रख्यात ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में हिन्दू दर्शनशास्त्र पर लेक्चर देने के लिए बुलाया गया, इसके बाद उन्हें ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी में दर्शन शास्त्र के प्रोफ़ेसर के रुप में नियुक्त किया गया था।

फिर साल 1931 में डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी ने आंध्र यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर (कुलपति) के पद का चुनाव लड़ा। फिर 1939 से 1948 तक उन्होंने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के कुलपति के रुप में अपनी सेवाएं प्रदत्त कीं।

राधाकृष्णन जी का राजनैतिक जीवन – Sarvepalli Radhakrishnan Political Life

1947 में जब हमारा देश भारत ब्रिटिश शासकों के चंगुल से आजाद हुआ, तब उस दौरान देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू जी ने उन्हें एक विशिष्ट राजदूत के रुप में सोवियत संघ के साथ राजनयिक कामों को करने का आग्रह किया।

जिसके बाद उन्होंने पंडित नेहरू जी की बात मान ली और करीब 2 साल तक 1949 तक निर्मात्री सभा के सदस्य के रुप में काम किया। इस तरह राधाकृष्णन जी को राजनीति में लाने का क्रेडिट देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू जी को जाता है।

देश के पहले उपराष्ट्रपति एवं दूसरे राष्ट्रपति के तौर पर डॉ. राधाकृष्णन जी – Dr Sarvepalli Radhakrishnan As A President

आजादी के करीब 5 साल बाद 1952 में सोवियत संघ का गठन होने के बाद हमारे देश के संविधान में उपराष्ट्रपति के पद का नया पद सृजित किया गया, इस पद पर सर्वप्रथम डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी आसीन हुए और करीब 10 साल तक उपराष्ट्रपति के रुप में देश की सेवा की।

इस दौरान उनके द्धारा किए गए कामों को भी काफी सराहा गया। इसके बाद 13 मई 1962 को डॉ॰ सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी को स्वतंत्र भारत के दूसरे राष्ट्रपति के तौर पर नियुक्त किया गया। देश के सर्वोच्च पद पर रहते हुए उन्होनें करीब 1967 तक सेवाएं की।

अपने राष्ट्रपति के कार्यकाल के दौरान उन्हें काफी उतार-चढ़ाव का सामना करना पड़ा। इनके कार्यकाल के दौरान ही भारत और चीन के बीच हुए भयानक युद्ध में भारत को हार का सामना करना पड़ा था, इसके साथ ही इस दौरान देश में दो प्रधानमंत्रियों का भी देहांत हो गया था। हालांकि, 1967 में राष्ट्रपति पद से सेवानिवृत्त होने के बाद वे मद्रास जाकर बस गए थे।

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी की पुस्तकें – Sarvepalli Radhakrishnan Books

राष्ट्र सेवा एवं शिक्षकों को समाज में उचित दर्जा दिलवाने के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित करने वाले देश के महान शिक्षक डॉ. सर्वपल्ली राधा कृष्णन ने अपने महान विचारों के माध्यम से अपनी जिंदगी में कई किताबें लिखीं, जिनमें से उनके द्धारा लिखी गईं कुछ महत्वपूर्ण किताबों के नाम इस प्रकार हैं

  • द रेन ऑफ़ कंटम्परेरी फिलासफी
  • द फिलासफी ऑफ़ रवीन्द्रनाथ टैगोर
  • द एथिक्स ऑफ़ वेदांत
  • ईस्ट एंड वेस्ट-सम रिफ्लेक्शन्स
  • ईस्टर्न रिलीजन एंड वेस्टर्न थॉट
  • इंडियन फिलोसोफी
  • एन आइडियलिस्ट व्यू ऑफ़ लाइफ
  • द एसेंसियल ऑफ़ सायकलॉजी

डॉ. राधाकृष्णन जी को मिले पुरस्कार / सम्मान – Sarvepalli Radhakrishnan Awards

डॉ॰ सर्वपल्ली राधाकृष्णन  को राष्ट्र के लिए किए गए उनके महान कामों एवं उनके श्रेष्ठ गुणों के कारण उन्हें कई पुरस्कारों से नवाजा गया है।

आपको बता दें कि ड़ॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी देश के ऐसे पहले शख्सियत थे, जिन्हें देश के सर्वोच्च सम्मान “भारत रत्न” से नवाजा गया था। डॉ॰ सर्वपल्ली राधाकृष्णन को मिले पुरस्कार और सम्मान की सूची निम्मलिखित है –

  • देश में शिक्षा एवं राजनीति के क्षेत्र में अपना महत्वपूर्ण योगदान देने के लिए डॉ. राधाकृष्णन जी को साल 1954 में देश के सर्वोच्च पुरस्कार भारत रत्न से नवाजा गया था।
  • साल 1954 में डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन को जर्मन “आर्डर पौर ले मेरिट फॉर आर्ट्स एंड साइंस से नवाजा गया था।
  • साल 1961 में डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी को जर्मन बुक ट्रेड के ”शांति पुरस्कार” से सम्मानित किया गया था।
  • साल 1962 में जब वे देश के राष्ट्रपति के रुप में नियुक्त हुए थे। इस दौरान ही उनके जन्मदिवस 5 सितंबर को शिक्षक दिवस के रुप में मनाए जाने की भी घोषणा की गई थी।
  • साल 1963 में डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी को ब्रिटिश ऑर्डर ऑफ मेरिट सम्मान से नवाजा गया।
  • साल1913 में ब्रिटिश सरकार ने डॉ॰ सर्वपल्ली राधाकृष्णन  को “सर” की उपाधि से नवाजा था।
  • साल 1938 में डॉ॰ सर्वपल्ली राधाकृष्णन की ब्रिटिश एकाडमी के सभासद के रुप में नियुक्ति की गई थी।
  • 1975 में सर्वपल्ली राधाकृष्णन को अमेरिकी सरकार द्वारा टेम्प्लेटों पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। बता दें कि इस सम्मान को पाने वाले वह पहले गैर- ईसाई शख्सियत थे।
  • इंग्लैंड सरकार द्धारा डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन को ऑर्डर ऑफ मैरिट सम्मान से नवाजा गया था।
  • साल 1968 में डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी को साहित्य अकादमी फेलोशिप से नवाजा गया था, वे इस पुरस्कार को हासिल करने वाले देश के पहले शख्सियत थे।
  • ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी द्धारा डॉ.  सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी के नाम से साल 1989 में स्कॉलरशिप की शुरुआत की गई थी।

डॉ॰ सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी की मृत्यु – Dr Sarvepalli Radhakrishnan Death

शिक्षकों को समाज में उचित दर्जा दिलवाने एवं राष्ट्र के हित में काम करने वाले देश के महान शिक्षक डॉ॰ सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी ने 17 अप्रैल 1975 को इस दुनिया को अलविदा कह दिया। उन्हें अपने जीवन के आखिरी दिनों में काफी गंभीर बीमारी से जूझना पड़ा था, जिसकी वजह से उनका देहान्त हो गया था।

हालांकि, उनकी मृत्यु के कई सालों बाद आज भी वे हम सभी भारतीयों के दिल में जिंदा है। उनके द्धारा राष्ट्र के लिए किए गए महान कामों एवं शिक्षा के क्षेत्र में उनके महत्वपूर्ण योगदानों के लिए उन्हें आज भी याद किया जाता है साथ ही उनके सम्मान में उनके जन्मदिवस को शिक्षक दिवस के रुप में मनाया जाता है।

शिक्षक दिवस – Dr Sarvepalli Radhakrishnan Teachers Day

भारत में हर साल डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिवस 5 सितंबर को शिक्षक दिवस के रुप में मनाया जाता है। इस मौके पर समाज में उत्कृष्ट काम करने वालों शिक्षकों को सम्मानित किया जाता है। इसके साथ ही इस दौरान राधाकृष्णन जी के प्रेरणादायी जीवन पर भी प्रकाश डाला जाता है।

इसके साथ की इस मौके पर आयोजित कार्यक्रमों के माध्यम से छात्र अपने शिक्षक का आभार प्रकट करते हैं। यह दिन शिक्षक एवं शिष्यों दोनों के लिए बेहद खास दिन होता है।

आपको बता दें कि साल 1962 में जब राधाकृष्णन जी को देश के राष्ट्रपति के रुप में नियुक्त किया गया था, उस दौरान विद्यार्थियों ने उनके जन्मदिवस 5 सितंबर को ‘राधाकृष्णन दिवस’ मनाए जाने का फैसला किया था, लेकिन  राधाकृष्णन जी ने अपनी जयंती को शिक्षकों के सम्मान में शिक्षक दिवस मनाने का आग्रह किया तब से लेकर आज तक उनके जन्मदिवस को शिक्षक दिवस के रुप में मनाया जाता है।

आपको बता दें कि राधाकृष्णन जी देश के पहले ऐसे राष्ट्रपति थे, जिन्होंने शिक्षकों के हित के बारे में सोचा एवं समाज में शिक्षकों को महत्वता दिलवाने के लिए कई सराहनीय प्रयास किए।

डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन के अनमोल विचार  – Dr Sarvepalli Radhakrishnan Thoughts

शिक्षा के क्षेत्र में अपना महत्वपूर्ण योगदान देने वाले डॉ.सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी ने अपने महान विचारों से लोगों को न सिर्फ शिक्षकों का महत्व बताया है, बल्कि अपने विचारों के माध्यम से लोगों को अपने जीवन में आगे बढ़ने की भी प्रेरणा दी है। डॉ.सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी के कुछ महत्वपूर्ण विचार इस प्रकार हैं –

  • हमें मानवता को उन नैतिक जड़ों तक वापस ले जाने की कोशिश करना चाहिए, जहां से आजादी एवं अनुशासन दोनों का उद्गम होता है।
  • ज्ञान हमें आगे बढ़ने की शक्ति प्रदान करता है, जबकि प्रेम हमे परिपूर्णता प्रदान करता है।
  • किताबें पढ़ने से हमें एकांत में विचार करने की आदत और सच्ची खुशी मिलती है।
  • हमें तकनीकी ज्ञान के साथ-साथ आत्मा की महानता को भी हासिल करना चाहिए।
  • शिक्षा का परिणाम, एक मुक्त रचनात्मक व्यक्ति होना चाहिए, जो कि ऐतिहासिक परिस्थितियों और प्राकृतिक आपदाओं के खिलाफ लड़ सके।
  • किताबें महज एक माध्यम होती हैं, जिनके माध्यम से अलग- अलग संस्किृतियों के बीच पुल का निर्माण किया जा सकता है।
  • शिक्षक वे नहीं कहलाते,जो कि छात्र के दिमाग में जबरदस्ती तथ्यों को भरने का प्रयास करें, बल्कि सही मायने में एक शिक्षक वो होता है, जो कि शिष्यों को भविष्य में आने वाली कड़ी चुनौतियों के लिए तैयार करें।
  • कोई भी आजादी सही मायने में तब तक सच्ची आजादी नहीं मानी जाती है, जब तक उसे हासिल करने वाले लोगों को अपने विचारों को व्यक्त करने की आजादी न दी जाए।।
  • राजनीतिक या आर्थिक परिवर्तन से शांति नहीं प्राप्त हो सकती है, बल्कि मानवीय स्वभाव में बदलाव से आ सकती है
  • शिक्षा के माध्यम से ही मनुष्य के दिमाग का सही इस्तेमाल किया जा सकता है, अर्थात पूरी दुनिया को एक ही इकाई मानकर शिक्षा का उचित प्र बंधन करना चाहिए।

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प्रेरणादायक कड़वे वचन हिन्दी में | Kadve Vachan In Hindi

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Kadve Vachan

कुछ महान विद्धानों के द्धारा कहे गए वचन कटु जरूर होते हैं, लेकिन उनके द्धारा दी गई सीख हम सभी के लिए एक दिव्य ज्ञान के सामान होते  है एवं हमारे अंदर आगे बढ़ने का नया और जज्बा  पैदा करते हैं।

जिसे तरह एक कड़वी औषधि शरीर में तमाम रोगों का इलाज करती है, उसी तरह विद्धानों के द्धारा कहे गए कटु वचन, हम सभी के अंदर से नकारात्मकता को खत्म करते हैं एवं जिंदगी के प्रति सकरात्मकता पैदा करते हैं, वहीं अगर इस तरह के वचनों को जो भी गंभीरता से लेते हैं या सही मायनो में इन पर अमल करते हैं तो वे अपनी जिंदगी में तरक्की जरूर हासिल करते हैं।

वहीं आज हम आपको अपने इस आर्टिकल में कुछ ऐसे प्रेरणादायक कड़वे वचन उपलब्ध करवा रहे हैं।

जिन्हें पढ़कर आपके अंदर नई आशाएं एवं उमंग जगेगी, साथ ही अगर आप इन वचनों को सोशल मीडिया साइ्टस जैसे व्हाट्सऐप, फेसबुक,ट्वीटर, इंस्टाग्राम आदि में शेयर करते हैं तो आपके दोस्तों, करीबियों एवं रिश्तेदारों को भी इन वचनों से सीख मिलेगी एवं परम ज्ञान की प्राप्ति होगी।

तो आइए नजर डालते हैं, प्रेरणादायक कड़वे  वचनों पर –

प्रेरणादायक कड़वे वचन हिन्दी में – Kadve Vachan in Hindi

Kadve Vachan

Kadve Vachan In Hindi

1) जिंदगी में माँ, महात्मा और परमात्मा से बढ़कर कुछ भी नहीं हैं। जीवन में तीन आशीर्वाद जरुरी हैं – बचपन में माँ का, जवानी में महात्मा का और बुढ़ापे में परमात्मा का। माँ बचपन को संभाल देती हैं, महात्मा जवानी सुधार देता हैं और बुढ़ापे को परमात्मा संभाल लेता हैं।- मुनिश्री तरुणसागर जी

2) रेस में जितने वाले घोड़े को तो पता भी नहीं होता की जित वास्तव में क्या हैं। वो तो अपने मालिक द्वारा दी गयी तकलीफ की वजह से दौड़ता हैं। तो जीवन में जब भी आपको तकलीफ हो और कोई मार्ग न दिखाई दे तब समझ जाईयेगा की मालिक आपको जितना चाहता हैं।

3) सुंदर रूप वाला, यौवन से युक्त ऊचें कुल में उत्पन्न होने पर भी विद्या से हिन् मनुष्य सुगंध रहित फुल के समान रहता हैं। – आचार्य चाणक्य

इस तरह के प्रेरणादायक कटु वचन मनुष्य को सही रास्ता दिखाने का काम करते हैं, साथ ही अपने कर्तव्यों का सही बोध करवाते हैं, क्योंकि कई बार मनुष्य अपने कर्तव्य पथ से भटक जाते है या फिर अहंकार में आकर गलत फैसले ले लेते हैं।

बड़ों की इज्जत करना भूल जाते हैं या फिर अत्याधिक क्रोध से अपना नुकसान कर लेते हैं, अत्याधिक लालची बन जाते हैं, तो ऐसे समय में महापंडितों और महामहिमों के इस तरह के वचन काफी सीख देने वाले और प्रेरणादायक सिद्ध होते हैं।

वहीं अगर ऐसे प्रेरणादायक कटु वचनों को पढ़कर थोड़ी देर के लिए अगर हम इसकी गंभीरता को समझकर विचार करें तो यह हमारे जीवन के लिए काफी लाभकारी सिद्ध हो सकते हैं।

Kadve Pravachan In Hindi

4) खिल सको तो फुल की तरह खिलो। जल सको तो दीप की तरह जलो। मिल सको तो दूध में पाणी की तरह मिलो। ऐसी ही जीवन की नीति हो, रीती हो और प्रीति हो। – मुनि प्रज्ञासागर

5) जीवन में शांति पाने के लिए क्रोध पर काबू पाना सिख लो। जिसने जीवन से समझौता करना सिख लिया वह संत हो गया। वर्तमान में जीने के लिए सजग और सावधान रहने की आवश्यकता हैं।

6) गुलाब काटों में भी मुस्कुराता हैं। तुम भी प्रतिकूलता में मुस्कुराओ, तो लोग तुमसे गुलाब की तरह प्रेम करेंगे। याद रखना जिन्दा आदमी ही मुस्कुराएगा, मुर्दा कभी नहीं मुस्कुराता और कुत्ता चाहे तो भी मुस्कुरा नहीं सकता, हसना तो सिर्फ मनुष्य के भाग्य में ही हैं। इसलिए जीवन में सुख आये तो हस लेना, लेकिन दुख आये तो हसी में उड़ा देना।

7) धनाढ्य होने के बाद भी यदि लालच और पैसों का मोह हैं, तो उससे बड़ा गरीब और कोई नहीं हो सकता। प्रत्येक व्यक्ति ’लाभ’ की कामना करता हैं, लेकिन उसका विपरीत शब्द अर्थात ‘भला’ करने से दूर भागता हैं।

8) डॉक्टर और गुरु के सामने झूठ मत बोलिए क्योकि यह झूठ बहोत महंगा पड़ सकता हैं। गुरु के ससामने झूठ बोलने से पाप का प्रायश्चित नहीं होंगा, डॉक्टर के सामने झूठ बोलने से रोग का निदान नहीं होंगा। डॉक्टर और गुरु के सामने एकदम सरल और तरल बनकर पेश हो। आप कितने भी होशियार क्यों न हो तो भी डॉक्टर और गुरु के सामने अपनी होशियारी मत दिखाईये, क्योकि यहाँ होशियारी बिलकुल काम नहीं आती। – मुनिश्री तरुणसागर जी

9) धन का अहंकार रखने वाले हमेशा इस बात का ध्यान रखे की पैसा कुछ भी हो सकता हैं, बहोत कुछ हो सकता हैं, लेकिन सबकुछ नहीं हो सकता हार आदमी को धन की अहमियत समझना बहोत जरुरी हैं। – मुनिश्री तरुणसागर जी

10) न तो इतने कड़वे बनो की कोई थूक दे, और ना तो इतने मीठे बनो की कोई निगल जाये।

11) गुलामी की जंजीरों से स्वतंत्रता की शान अच्छी, हजारों रूपये की नौकरी से चाय की दुकान अच्छी।

12) कभी तुम्हारे माँ – बाप तुम्हें डाट दे तो बुरा नहीं मानना। बल्कि सोचना – गलती होने पर माँ – बाप नहीं डाटेंगे तो और कौन डाटेंगे, और कभी छोटे से गलती हो जाये और यह सोचकर उन्हें माफ़ कर देना की गलतिया छोटे नहीं करेंगे तो और कौन करेंगा। – मुनिश्री तरुणसागर जी

13) भले ही लड़ लेना – झगड़ लेना, पिट जाना – पिट देना, मगर बोल चाल बंद मत करना क्योकि बोलचाल के बंद होते ही सुलह के सारे दरवाजे बंद हो जाते हैं। – मुनिश्री तरुणसागर जी

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सोमनाथ मंदिर का इतिहास | Somnath Temple History

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Somnath Temple History In Hindi

भारत पुण्यभूमि है, यहां ऐसे कई धार्मिक और पवित्र तीर्थस्थल स्थापित हैं,  जिनका अपना अलग-अलग धार्मिक महत्व है और इनसे लाखों लोगों की आस्था जुड़ी है, वहीं उन्हीं में से एक है, गुजरात राज्य के वेरावल बंदरगाह में प्रभास पाटन के पास स्थित  सोमनाथ मंदिर। यह मंदिर हिन्दू धर्म के प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक है।

आपको बता दें कि यह प्रसिद्ध तीर्थधाम ऐसी जगह पर स्थित है जहां अंटार्कटिका तक सोमनाथ समुद्र के बीच एक सीधी रेखा में भूमि को कोई भी हिस्सा नहीं  है। यह तीर्थस्थल भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से पहला माना जाता है। इस मंदिर के निर्माण से कई धार्मिक और पौराणिक कथाएं जुड़ी हुई हैं। ऐसा माना जाता है कि, इस मंदिर का निर्माण खुद चन्द्रदेव सोमराज ने किया था, जिसका वर्णन ऋग्वेद में भी मिलता है।

सोमनाथ मंदिर के समृद्ध और अत्यंत वैभवशाली होने की वजह से इस मंदिर को कई बार मुस्लिम आक्रमणकारियों और पुर्तगालियों द्धारा तोड़ा गया तो साथ ही कई बार इसका पुर्ननिर्माण भी हुआ है। वहीं महमूद गजनवी द्धारा इस मंदिर पर आक्रमण करना, इतिहास में काफी चर्चित है।

साल 1026 में महमूद गजनवी ने सोमनाथ मंदिर में  हमला कर न सिर्फ  उसने मंदिर की अथाह संपत्ति लूटी और मंदिर का विनाश बल्कि हजारों लोगों की जान भी ले ली थी। इसके बाद गुजरात के राजा भीम और मालवा के राजा भोज ने इसका पुनर्निर्माण करवाया था। सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण और विनाश का सिलसिला काफी सालों तक जारी रहा।वहीं इस समय गुजरात जो सोमनाथ मंदिर स्थित है, उसे भारत के पूर्व गृह मंत्री एवं लौहपुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल ने बनवाया था।

वर्तमान सोमनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण प्राचीन हिन्दू वास्तुकला एवं चालुक्य वास्तुशैली में किया गया है, वहीं कई लोककथाओं के मुताबिक, इस पवित्र तीर्थस्थल में भगवान श्री कृष्ण ने अपना शरीर भी छोड़ा था। आइए जानते हैं सोमनाथ मंदिर के इतिहास एवं इससे जुड़े कुछ अनसुने एवं रोचक तथ्यों के बारे में –

सोमनाथ मंदिर का इतिहास – Somnath Temple History in Hindi

Somnath Temple

कहां स्थित है (Somnath Mandir Kaha Par Hai) गुजरात के वेरावल बंदरगाह में।
आधुनिक सोमनाथ मंदिर कब बनवाया गया (When Was Somnath Temple Built) आजादी के बाद साल 1951 में (वर्तमान संरचना)
किसने बनवाया (Who Built Somnath Temple) सरदार वल्लभ भाई पटेल (वर्तमान संरचना)

उत्थान-पतन का प्रतीक रहा सोमनाथ मंदिर का इतिहास – Somnath Temple Information

गुजरात के पश्चिमी तट पर सौराष्ट्र में वेरावल बंदरगाह के पास प्रभास पाटन में स्थित यह मंदिर इतिहास में उत्थान और पतन का प्रतीक रह चुक है। प्राचीन समय में सोमनाथ मंदिर पर मुस्लिम और पुर्तगालियों द्धारा कई बार हमला कर तोड़ा गया एवं  कई बार हिन्दू शासकों द्धारा इसका निर्माण भी करवाया गया है।

आपको बता दें कि सोमनाथ मंदिर एक ईसा से भी पहले का आस्तित्व में था, ऐसा माना जाता है कि इसका दूसरी बार निर्माण करीब सांतवी शताब्दी में वल्लभी के कुछ मैत्रिक सम्राटों द्धारा करवाया  गया था। इसके बाद 8वीं सदी में करीब 725 ईसवी  में सिंध के अरबी गर्वनर अल-जुनायद ने इस वैभवशाली सोमनाथ मंदिर पर हमला कर इसे ध्वस्त कर दिया था।

जिसके बाद इसका तीसरी बार निर्माण 815 ईसवी में हिन्दुओं के इस पवित्र तीर्थ धाम सोमनाथ मंदिर का निर्माण गुर्र प्रतिहार राजा नागभट्ट ने करवाया था, उन्होंने इस लाल पत्थरों का इस्तेमाल कर बनवाया था। हालांकि, सोमनाथ मंदिर पर सिंध के अरबी गवर्नर अल-जुनायद के हमला करने का कोई भी पुख्ता प्रमाण नहीं है।

इसके बाद 1024 ईसवी में महमूद गजनवी ने इस अत्यंत वैभवशाली सोमनाथ मंदिर पर आक्रमण कर दिया था। ऐसा कहा जाता है कि, भारत यात्रा पर आए एक अरबी यात्री अल बरूनी ने अपने  यात्रा वृतान्त में सोमनाथ मंदिर की भव्यता और समृद्धता का वर्णन किया था, जिसके बाद महूमद गजनवी ने इस मंदिर पर लूटपाट करने के इरादे से अपने करीब 5 हजार साथियों के साथ इस पर हमला कर दिया था।

इस हमले में महमूद गजनवी ने न सिर्फ मंदिर की करोड़ों की संपत्ति लूटी, शिवलिंग को क्षतिग्रस्त किया एवं मूर्तियां को ध्वस्त किया, बल्कि इस हमले में  हजारों बेकसूर लोगों की जान भी ले ली। सोमनाथ मंदिर पर महमूद गजनवी द्धारा किया गया कष्टकारी हमला इतिहास में भी काफी चर्चित है।

सोमनाथ मंदिर पर गजनवी के आक्रमण करने के बाद इसका चौथी बार पुर्नर्निमाण मालवा के राजा भोज और सम्राट भीमदेव के द्धारा करवाया गया। फिर 1093 ईसवी में सिद्धराज जयसिंह ने भी इस मंदिर की प्रतिष्ठा और निर्माण में अपना योगदान दिया था।

1168 ईसवी में विजयेश्वरे कुमारपाल और सौराष्ट्र के सम्राट खंगार ने इस मंदिर के सौंदर्यीकरण पर जोर दिया। हालांकि, इसके बाद फिर सोमनाथ मंदिर पर 1297 ईसवी में दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी के सेनापति नुरसत खां ने गुजरात पर अपना शासन कायम कर लिया और इस दौरान उसने इस पवित्र तीर्थधाम को ध्वस्त कर दिया। इसके साथ ही मंदिर की प्रतिष्ठित शिवलिंग को खंडित कर दिया एवं जमकर लूटपाट की।

इसके बाद लगातार इस मंदिर का उत्थान-पतन का सिलसिला जारी रहा। 1395 ईसवी में इस पवित्र तीर्थधाम पर  गुजरात के सुल्तान मुजफ्फरशाह ने लूटपाट की  और फिर 1413 ईसवी में उसके बेटे अहमदशाह ने इस मंदिर में तोड़फोड़ कर तबाही मचाई।

इसके बाद इतिहास के मुगल शासक औरंगजेब ने अपने शासनकाल में इस मंदिर पर दो बार आक्रमण किए। पहला हमला उसने 1665 ईसवी में किया जबकि दूसरा हमला 1706 ईसवी में किया। दूसरे हमले में औरंगजेब ने न सिर्फ इस मंदिर में तोड़फोड़ कर जमकर लूटपाट की बल्कि कई लोगों की हत्या भी करवा दी।

इसके बाद जब भारत के अधिकांश हिस्सों पर पर मराठों ने अपना अधिकार स्थापित कर लिया, फिर 1783 ईसवी में इंदौर की मराठा रानी अहिल्याबाई ने सोमनाथ जी के मूल मंदिर से कुछ ही दूरी पर पूजा-अर्चना के लिए सोमनाथ महादेव जी का एक और मंदिर का निर्माण करवा दिया।

वहीं गुजरात में स्थित इस वर्तमान मंदिर का निर्माण भारत के पूर्व गृह मंत्री स्वर्गीय सरदार वल्लभ भाई पटेल जी ने करवाया था। जिसके बाद साल 1951 में देश के पहले राष्ट्रपति श्री राजेन्द्र प्रसाद जी ने सोमनाथ मंदिर में ज्योर्तिलिंग को स्थापित किया था।

फिर, साल 1962 में भगवान शिव जी को समर्पित हिन्दुओं का यह पवित्र तीर्थ धाम पूर्ण रुप से बनकर तैयार हुआ। इसके बाद 1 दिसंबर 1995 को भारत के पूर्व राष्ट्रपति शंकर दययाल शर्मा ने इस पवित्र तीर्थ धाम को राष्ट्र की आम जनता को समर्पित कर दिया था और अब यह मंदिर लाखों लोगों की आस्था का केन्द्र बन चुका है।

सोमनाथ मंदिर से जुड़ी पौराणिक और धार्मिक कथा – Somnath Mahadev Temple Story

धार्मिक शास्त्रों और ग्रंथों के मुताबिक भारत के सबसे प्रमुख तीर्थस्थलों में से एक सोमनाथ मंदिर की स्थापना खुद चन्द्रदेव अर्थात सोम भगवान ने की थी, इस मंदिर से एक बेहद प्राचीन एवं प्रचलित धार्मिक कथा भी जुड़ी हुई है।जिसके मुताबिक चन्द्रदेव यानि कि चन्द्रमा या फिर सोम देव ने राजा दक्ष प्रजापति की सभी 27 पुत्रियों से शादी की थी।

चन्द्रदेव की सभी पत्नियों में सबसे ज्यादा खूबसूरत रोहिणी थी, इसलिए चन्द्रमा उन्हें सबसे ज्यादा प्यार करते थे। वहीं सम्राट दक्ष प्रजापति ने जब अपनी ही पुत्रियों के साथ भेदभाव होते देखा था, तब उन्होंने पहले चंद्रदेव को समझाने की कोशिश की।

लेकिन चन्द्रमा पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा जिसके बाद राजा दक्ष में अपने अन्य पुत्रियों को दुखी होते देख चन्द्रदेव को ‘क्षयग्रस्त’ हो जाने का अभिशाप दे दिया और कहा कि उनकी चमक और तेज धीमे-धीमे खत्म हो जाएगा, जिसके बाद चन्द्रद्रेव  राजा दक्ष के अभिशाप से काफी दुखी रहने लगे और फिर उन्होंने भगवान शिव की कठोर आराधना करना शुरु कर दिया।

इसके बाद भगवान शिव,चन्द्रदेव के कठोर तप से प्रसन्न हो गए और न सिर्फ उन्हें अमरत्व का वर प्रदान किया, बल्कि उन्हें राजा दक्ष के श्राप से भी मुक्त भी किया साथ ही ये भी कहा कि, कृष्णपक्ष में चन्द्रदेव की चमक कम होगी, जबकि शुक्ल पक्ष में उनकी चमक बढ़ेगा।

अर्थात चन्द्रदेव से भगवान शिव ने ये कहा कि  15 दिन उनकी चमक कम होती चली जाएगी जबकि 15 दिन उनकी चमक बढ़नी शुरु हो जाएगी और हर पूर्णिमा को उन्हें पूर्ण चंद्रत्व प्राप्त होता रहेगा। राजा दक्ष के अभिशाप से मुक्त होकर चन्द्रदेव ने भगवान शिव से माता पार्वती के साथ गुजरात के इस स्थान पर निवास करने की आराधना की, जिसके बाद भगवान शिव ने अपने प्रिय भक्त चन्द्रदेव की आराधना को स्वीकार किया और वे ज्योतर्लिंग के रुप में माता पार्वती के साथ यहां आकर रहने लगे।

जिसके बाद पावन प्रभास क्षेत्र में चन्द्रदेव यानि की सोमराज ने यहां भगवान शिव के इस भव्य सोमनाथ मंदिर का निर्माण करवाया। जिसकी महिमा और प्रसिद्धि पूरी विश्व में फैली हुई है। वहीं  सोमनाथ -ज्योतिर्लिंग की महिमा का उल्लेख हिन्दू धर्म के  प्रसिद्ध महाकाव्य  श्रीमद्धभागवत, महाभारत और स्कंदपुराण आदि में भी की गई है। इसके साथ ही इस मंदिर का उल्लेख ऋग्वेद में भी किया गया है।

ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव के इस प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग के दर्शन मात्र से ही भक्तों के सारे दुख-दर्द दूर हो जाते हैं एवं सोमनाथ भगवान की पूजा-आराधना से भक्तो के क्षय अथवा कोढ़ रोग ठीक हो जाते हैं।

इसके साथ ही अन्य लोककथाओं के मुताबिक इसी पावन स्थान पर भालुका तीर्थ पर भगवान श्रीकृष्ण आराम कर रहे थे, तभी एक शिकारी ने उनेक पैर के तलवे में पदचिन्ह को हिरण की आंख समझकर धोखे से वाण चलाकर शिकार कर लिया जिसके बाद भगवान श्री कृष्ण यहीं अपना देह त्यागकर बैकुंठ चले गए थे। इसलिए इस मंदिर के परिसर में श्री कृष्ण जी का बेहद आर्कषक और खूबसूरत मंदिर भी बना हुआ है।

सोमनाथ मंदिर की अद्भुत वास्तुकला एवं शाही बनावट – Somnath Temple Architecture हिन्दूओं के इस पवित्र तीर्थस्थल सोमनाथ मंदिर का पुर्ननिर्माण वर्तमान में चालुक्य शैली में किया गया है। इसके साथ ही यह प्राचीन हिन्दू वास्तुकला का नायाब नमूना भी माना जाता है।

इस मंदिर की अनूठी वास्तुकला एवं शानदार बनावट  लोगों को अपनी तरफ आर्कषित करती हैं। इस मंदिर के दक्षिण दिशा की तरफ आर्कषक खंभे बने हुए हैं, जो कि बाणस्तंभ कहलाते हैं, वहीं इस खंभे के ऊपर एक तीर रखा गया है, जो कि यह प्रदर्शित करता है कि इस पवित्र सोमनाथ मंदिर और दक्षिण ध्रुव के बीच पृथ्वी का कोई भी हिस्सा नहीं है।

भगवान शिव का यह पहला ज्योर्तिलिंग सोमनाथ तीन हिस्सों में बंटा हुआ है, जिसमें मंदिर का गर्भगृह, नृत्यमंडप और सभामंडप शामिल हैं। इसके शिखर की ऊंचाई  करीब 150 फीट है। इस प्रसिद्ध मंदिर के पर स्थित कलश का वजन करीब 10 टन है, जबकि इसकी ध्वजा 27 फुट ऊंची है। 

यह मंदिर करीब 10 किलोमीटर के विशाल क्षेत्रफल में फैला हुआ है, जिसमें करीब 42 मंदिर है। यहां पर तीन नदियां हिरण, सरस्वती, और कपिला का अद्बुत संगम है, जहां भक्तजन आस्था की डुबकी लगाते हैं। इस मंदिर में पार्वती, लक्ष्मी, गंगा, सरस्वती, और नंदी की मूर्तियां विराजित हैं।  इस पवित्र तीर्थस्थल के ऊपरी भाग में शिवलिंग से ऊपर अहल्येश्वर की बेहद सुंदर मूर्ति स्थापित है।

सोमनाथ मंदिर के परिसर में एक बेहद खूबसूरत गणेश जी का मंदिर स्थित है  साथ ही उत्तर द्धार के बाहर अघोरलिंग की प्रतिमा स्थापित  की गई है। हिन्दुओं के इस पवित्र तीर्थस्थल में गौरीकुण्ड नामक  सरोवर बना हुआ है  और सरोवर के पास एक शिवलिंग स्थापित है।

इसके अलावा इस भव्य सोमनाथ मंदिर के परिसर में माता अहिल्याबाई और महाकाली का बेहद सुंदर एवं विशाल मंदिर बना हुआ है।

सोमनाथ मंदिर से जुड़ी रोचक और दिलचस्प बातें – Facts About Somnath Temple

  • लाखों लोगों की आस्था से जुड़ा यह सोमनाथ मंदिर पहले प्रभासक्षेत्र या फिर प्रभासपाटण के नाम से जाना जाता है। इसी स्थान पर भगवान श्री कृष्ण ने अपना शरीर छोड़ा था।
  • गुजरात में स्थित सोमनाथ मंदिर के दक्षिण में समुद्र के किनारे एक खंभा बना हुआ है, जिसके ऊपर एक तीर रखकर यह प्रदर्शित किया गया है कि, सोमनाथ मंदिर और दक्षिण ध्रुव के बीच में भूमि का कोई भी हिस्सा मौजूद नहीं है।
  • भगवान शिव को समर्पित इस प्रसिद्ध मंदिर में स्थित शिवलिंग में रेडियोधर्मी गुण है, जो कि पृथ्वी के ऊपर अपना संतुलन बेहद अच्छे से बनाए रखती है।
  • इस मंदिर के अत्यंत वैभवशाली और समृद्ध होने की वजह से इसे कई बार तोड़ा गया और इसका निर्माण किया गया। इतिहास में महमूद गजनवी द्धारा इस मंदिर पर लूटपाट की घटना काफी चर्चित है। ऐसा माना जाता है कि इसके बाद ही यह मंदिर पूरी दुनिया में प्रसिद्ध हो गया।
  • ऐसी मान्यता है कि आगरा में रखे देवद्धार सोमनाथ मंदिर के ही है, जो कि महमूद गजनवी अपने साथ लूट कर ले गया था।
  • इस मंदिर में रोजाना रात को 1 घंटे का लाइट शो होता है, जो कि शाम को साढ़े 7 बजे से साढ़े 8 बजे तक होता है, इस शो में हिन्दुओं के इतिहास को दिखाया जाता है।
  • सोमनाथ मंदिर में कार्तिक, चैत्र एवं भाद्र महीने में श्राद्ध करने का बहुद महत्व हैं, इन तीनों महीनों में यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं।
  • सुरक्षा के लिहाज से मुस्लिमों को इस मंदिर के दर्शन के लिए विशेष अनुमति लेनी पड़ती है, इसके बाद ही उन्हें यहां प्रवेश दिया जाता है।
  • सोमनाथ मंदिर से करीब 200 किलोमीटर की दूरी पर द्धारका नगरी है, जहां द्धारकाधीश के दर्शन करने दूर-दूर से लोग आते हैं।
  • गुजरात के वेरावल बंदरगाह के पास प्रभास पाटन में स्थित सोमनाथ जी, भारत के 12 प्रमुख ज्योतिर्लिंग में से सबसे पहला ज्योतिर्लिंग है, इसकी स्थापना के बाद अगला ज्योतिर्लिंग रामेश्वरम, द्धारका और वाराणसी में स्थापित किया गया था।
  • सोमनाथ जी की मंदिर की व्यवस्था और देखभाल सोमनाथ ट्रस्ट करती है, सरकार ने ट्रस्ट को जमीन, बाग बगीचे आदि देकर मंदिर की आय की व्यवस्था की है।

ऐसे पहुंचे सोमनाथ मंदिर – How To Reach Somnath Temple

वायु मार्ग के द्धारा:

गुजरात के सोमनाथ मंदिर से करीब 55 किलोमीटर दूर स्थित केशोड एयरपोर्ट है, जो कि सोमनाथ मंदिर से सबसे पास है। यह एयरपोर्ट सीधा मुंबई से जुड़ा हुआ है, इस एयरपोर्ट पर पहुंचने के बाद बस और टैक्सी की सहायता से बड़ी आसानी से सोमनाथ मंदिर पहुंचा जा सकता है।

रेल मार्ग के द्धारा सोमनाथ मंदिर के सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन वेरावल है, जिसकी सोमनाथ मंदिर से दूरी 7 किलोमीटर है, यह रेलवे स्टेशन अहमदाबाद, गुजरात समेत देश के प्रमुख शहरों से रेल सेवा से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है।

सड़क मार्ग द्धारा:

सोमनाथ मंदिर अहमदाबाद से करीब 400 किलोमीटर, भावनगर से 266 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। गुजरात से किसी भी स्थान से इस पवित्र तीर्थ धाम पहुंचने के लिए शानदार बस सेवाएं उपलब्ध हैं। इसके साथ ही सोमनाथ मंदिर के दर्शन के लिए आने वाले तीर्थयात्रियों के ठहरने की एवं भोजन की भी उत्तम व्यवस्था है।

मंदिर के आसपास ही मंदिर के ट्र्स्ट द्धारा तीर्थयात्रियों को किराए पर कमरे उलब्ध करवाए जाते हैं। सोमनाथ मंदिर के प्राचीन इतिहास और इसकी अद्भुत वास्तुकला एवं शानदार बनावट की वजह से यहां दूर-दूर से भक्तजन दर्शन के लिए आते हैं।

ऐसी मान्यता है कि यहां दर्शन मात्र से भक्तों के सारे दुख-दर्द दूर हो जाते हैं एवं उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। सोमनाथ मंदिर के पास स्थित नदी में स्नान करने से कई रोगों से मुक्ति मिलती है।

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महाराष्ट्र की “एलोरा गुफ़ाये”| Ellora Caves History In Hindi

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Ellora Caves History

एलोरा की प्रसिद्ध गुफाएं महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में स्थित है। इसकी अद्भुत बनावट एवं धार्मिक विशेषताओं की वजह से इसे यूनेस्को ने विश्व धरोहर स्थल के रुप में शामिल किया है। यह मशहूर एलोरा की गुफाएं औरंगाबाद से करीब 30 किलोमीटर की दूरी पर बेसाल्टिक की पहाड़ी के किनारे बनी हुई हैं।

एलोरा की गुफाओं में करीब 34 बेहद आर्कषक गुफाएं शामिल है, जिन्हें देखने दूर-दूर से पर्यटक आते हैं। इन गुफाओं में हिन्दू, जैन एवं बौद्ध धर्म का अद्भुत संगम देखने को मिलता है। ये गुफाएं दुनिया के सबसे बड़े रॉक-कट मठ-मंदिर गुफा परिसरों में से एक मानी जाती है।

अपनी अद्भुत शिल्पकारी एवं अद्दितीय बनवाट के साथ अपनी अलग-अलग विशेषताओं के लिए यह गुफाएं दुनिया भर में मशहूर हैं। एलोरा की गुफाएं कैलाश मंदिर एवं सबसे बड़ी एकल अखंड रॉक खुदाई की वजह से भी विश्व भर में जानी जाती हैं। आइए जानते हैं एलोरा की अद्भुत गुफाओं के बारे में –

एलोरा गुफ़ाये का रोचक इतिहास –  Ellora Caves History In Hindi

Ellora Caves History

एलोरा गुफा की जानकारी – Ellora Caves Information

कहां स्थित हैं (Ellora Ki Gufa Kaha Hai) औरंगाबाद, महाराष्ट्र
कब हुआ निर्माण (When Was Ellora Caves Built) 5वीं से 7वीं सदी के मध्य में
किसने बनवाईं (Ellora Caves Built By) राष्ट्रकूट वंश के शासकों द्वारा स्थापित की गईं।

आस्था का त्रिवेणी संगम हैं एलोरा की गुफाएं – Ellora Ki Gufa

वर्ल्ड हेरिटेज साइट यूनेस्को द्धारा विश्व धरोहर की लिस्ट में शामिल एलोरा की प्रसिद्द गुफाओं में 1 से 12 तक करीब बौद्ध धर्म की, 13 से 29 तक हिन्दू धर्म एवं 30 से 34 तक जैन धर्म की से संबंधित स्मारकों की बेहद आर्कषक गुफाएं हैं। इसके साथ ही इस गुफा में प्रसिद्ध कैलाश मंदिर भी बना हुआ है, जिससे कई पौराणिक कथाएं जुड़ी हुई हैं।

इसके अलावा इस गुफा में विश्वकर्मा देवता को समर्पित 10 चैत्यगृह भी हैं। करीब 350 से 700 ईसवी  के दौरान अस्तित्व में आईं इन गुफाओं का निर्माण राष्ट्रकूट वंश के शासनकाल के दौरान किया गया है।

एलोरा गुफाओ का इतिहास और जानकारी – Ellora Gufa Information

महाराष्ट्र के औरंगाबाद में स्थित एलोरा की यह प्राचीन गुफाएं यानि Verul Caves और स्मारकों का इतिहास राष्ट्रकूट वंश के शासनकाल से जुड़ा हुआ है। इतिहासकारों की माने तो राष्ट्रकूट वंश के शासकों ने हिन्दू और बौद्ध धर्म की उत्कृष्ट गुफाओं का निर्माण करवाया था जो कि अपनी अद्भुत शिल्पकारी एवं अनोखी धार्मिक कला के लिए जानी जाती हैं।

जबकि जैन धर्म से संबंधित गुफाओं का निर्माण यादव वंश के शासनकाल में माना जाता है। यह भी कहा जाता है, इन हिन्दू, जैन और बौद्ध तीनों धर्मों के प्रति दर्शाई आस्था का त्रिवेणी संगम का प्रभाव देखने को मिलता है। इन गुफाओं के निर्माण के लिए कई बड़े व्यापारियों औऱ धनी लोगों ने धन दिया था।

इन बेहद आर्कषक एवं भव्य गुफाएं को देखने दूर-दूर से लोग आते हैं, वहीं ये गुफाएं सैलानियों के लिए शानदार विश्राम स्थल के रूप में भी जानी जाती हैं। एलोरा गुफाओं (Alora ki Gufa) के पास में ही दुनिया भर में मशहूर अजंता की गुफाएं भी स्थित है।

एलोरा गुफाओं में मुख्य पर्यटक एवं दर्शनीय स्थल – Tourist Places Ajanta Ellora Caves

  • एलोरा की 16 वीं गुफा में बना कैलाश मंदिर – Kailasa Temple Ellora
  • एलोरा की बेहद भव्य एवं आर्कषक विश्वकर्मा गुफा – Vishwakarma Temple Ellora
  • एलोरा के अंदर बनी मुख्य रामेश्वर गुफा – Rameshwar Temple Ellora
  • एलोरा गुफा में बनी रावण की खाई – Ravana Ki Khai
  • एलोरा की 14वीं गुफा के पास स्थित हिन्दू धर्म पर आधारित दशावतार गुफा – Dashavatara Temple Ellora
  • एलोरा गुफा का मुख्य पर्यटक स्थल है इंद्रा सभा – Indra Sabha Ellora
  • नीलकंठ के नाम से मशहूर एलोरा की गुफा संख्या 22 – Nilkanth Caves Ellora
  • एलोरा में स्थित प्राचीन तीन ताल गुफा – Tal Caves Ellora
  • ग्रीष्णेश्वर ज्योतिर्लिंगा और घ्रुश्नेश्वर मंदिर – Grishneshwar Jyotirlingaor Grishneshwar Temple
  • एलोरा गुफा में बना मुगल शासक औरंगजेब का मकबरा – Tomb Of Aurangzeb

एलोरा की गुफा से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण एवं रोचक तथ्य – Ellora Caves Mystery

  • एलोरा में करीब 100 गुफाएं बनी हुई हैं, लेकिन इनमें से सिर्फ हिन्दू, बौद्ध और जैन धर्म से संबंधित 34 गुफाओं को ही पर्यटकों के लिए खोला गया है। एलोरा की गुफाओं को स्थानीय स्तर पर वेरुल लेणी (Verul Leni) के नाम से जाना जाता है।
  • एलोरा की गुफाएं भारत के रॉक-कट -वास्तुकला यानि कि शैल-कृत्य स्थापत्य कला का अद्भुत नमूना मानी जाती है।
  • विश्व हेरिटेज की साइट में शामिल एलोरा की प्रसिद्ध गुफाओं की खास बात यह है कि यह गुफाएं व्यापार मार्ग के बेहद नजदीक हैं, लेकिन इसके बाबजूद भी इनकी कभी उपेक्षा नहीं हुई है।
  • एलोरा की 16 वीं गुफा में बना विशाल कैलाश मंदिर के लिए भी अपनी विशेषता की वजह से दुनिया भर में मशहूर हैं। वहीं कैलाश मंदिर की शिल्पकला एवं कारीगरी अद्भुत एवं अतुलनीय है।
  • दुनिया भर में अपनी खूबसूरती के लिए मशहूर एलोरा की 10वीं गुफा ‘विश्वकर्मा गुफा’ है, जो कि प्रख्यात बौद्ध गुफा है, जिसके अंदर एक चैत्यगृह भी है।
  • एलोरा की यह बेहद खूबसूरत गुफाएं ज्वालामुखीय बसाल्टी संरचनाओं को काट कर बनाई गई हैं, इन्हें ‘दक्कन ट्रेप’ भी कहा जाता है।
  • जैन-बौद्ध और हिन्दू धर्म की आस्था का त्रिवेणी संगम मानी जाने वाली एलोरा की गुफाओं के अंदर बनी बौद्ध धर्म आधारित गुफाओं की प्रतिमा में भगवान बुद्ध की जीवनशैली की साफ झलक देखने को मिलती है।
  • महाराष्ट्र के औरंगाबाद में बनी इन ऐतिहासिक और बेहद आर्कषक गुफाओं में ‘दी ग्रेट कईलसा गुफा’ सबसे बड़ी गुफा है।
  • अपनी अद्भुत शिल्पकारी, सुंदर नक्काशी और बेहतरीन कारीगिरी के लिए एलोरा की गुफाओं को साल 1983 में वर्ल्ड हेरिटेज साइट यूनेस्को द्धारा विश्व विरासत स्थल घोषित किया गया था।

एलोरा की गुफाओं को देखने का समय – Ellora Caves Timings

एलोरा की गुफाएं पर्यटकों के लिए सुबह 8 बजे से शाम 6 बजे तक खुली रहती हैं। आप इन सारी गुफाओं को 3 से 4 घंटों में आराम से देख सकते हैं।

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जानवर पर कुछ कोट्स | Animal Quotes

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Animal Quotes in Hindi

हमने वो कहावत तो कई बार सुनी और पढ़ी होंगी की “जानवर इन्सान के दोस्त होते हैं” और खास कर पालतू जानवर। आज हम जानवर पर ही कुछ कोट्स – Animal Quotes पढेंगे, आशा हैं की आपको जरुर पसंद आयेंगें –

जानवर पर कुछ कोट्स – Animal Quotes HindiAnimal Quotes

“एक जानवर की आँखों में भाषा बोलने की एक महान शक्ति होती है।”

Animal Love Quotes

“अगर एक आत्मा का मतलब है कि प्रेम और वफादारी और कृतज्ञता महसूस करने में सक्षम होना, तो जानवरों मनुष्यों से ज्यादा बेहतर हैं।”

Quotes on Save Animals in Hindi

“पशु” कोई चीज़ नहीं हैं बल्कि जीवित जीव हैं, जो हमारी करुणा, सम्मान, दोस्ती और समर्थन के योग्य हैं।”

Be Kind to Animals Quotes

“किसी जंगली जानवर से ज्यादा एक कपटी और दुष्ट मित्र से डरना चाहिए, जानवर तो बस आपके शरीर को नुकसान पहुंचा सकता है, पर एक बुरा मित्र आपकी बुद्धि को घायल कर सकता है।”

Animal Quotes in Hindi

“शाल वृक्ष कितना भी पुराना होने पर भी उसे हाथी को नहीं बाँधा जा सकता।”

Janvar par Suvichar

“सही और गलत में पहचान करने की क्षमता यही एक बात हैं जो हमें जानवरो से अलग करती है और ये बात हर मनुष्य के अंदर होती है।”

Animal shayari in hindi

“एक गाय सौ कुत्तों से ज्यादा श्रेष्ठ है अर्थात एक विपरीत स्वाभाव का परम व्यक्ति, उन सौ लोगों से श्रेष्ठ है जो आपकी चापलूसी करते हैं।”

Love for Animals in Hindi

“पक्षी जगत पर्यावरण का सूचक होता है, अगर वे मुसीबत में हैं तो हमें समझ लेना चाहिए कि हमारे भी वो बुरे दिन दूर नहीं।”

Animal Love Quotes in Hindi

“इन्सान और कुत्ते के बीच यह मुख्य अंतर है की यदि आप भूखे कुत्ते को खाना खिलाकर उसे समृद्ध करते हैं तो वह आपको काट नहीं देगा।”

Dog Love Shayari in Hindi

“मूक प्राणी के लिए जीवन उतना ही प्रिय है जितना इन्सान के लिए है जैसे ही कोई इन्सान खुशी और दर्द चाहता है वैसे ही अन्य जीव भी चाहते हैं।”

Status on Animal Lover

“पशु ऐसे सहमत दोस्त हैं – वे कोई सवाल नहीं पूछते हैं, वे कोई आलोचना नहीं देते हैं।”

Quotes about Animals

“एक राष्ट्र की महानता और उसकी नैतिक प्रगति को उसके जानवरों के साथ व्यवहार से ठीक किया जा सकता है।”

Animal Quotes in English

“Animals generally return the love you lavish on them by a swift bite in passing—not unlike friends and wives.”

“Animals are like little angels sent to earth to teach us how to love. They don’t get angry or play silly games. They are always there for us.”

“The clearest way into the Universe is through a forest wilderness.”

“The greatness of a nation and its moral progress can be judged by the way its animals are treated.”

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”अंतराष्ट्रीय साक्षरता दिवस”पर निबंध – Saksharta Essay

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Saksharta Essay In Hindi

शिक्षा के बिना, मनुष्य का मानसिक, शारीरिक, आर्थिक एवं सामाजिक रुप से विकास नामुमकिन है। शिक्षा, देश-दुनिया के विकास का महत्वपूर्ण आधार है, इसके बिना कोई भी देश तरक्की नहीं कर सकता है।

इसलिए शिक्षा को बढ़ावा देने एवं ज्यादा से ज्यादा लोगों को साक्षर करने के साथ सामाजिक, सामुदायिक एवं व्यक्तिगत रुप  से साक्षरता के महत्व को बताने के उद्देश्य से हर साल विश्व भर में 8 सितंबर को साक्षरता दिवस मनाया जाता है।

”अंतराष्ट्रीय साक्षरता दिवस” पर निबंध – Saksharta Essay In Hindi

Saksharta Essay in Hindi

कब  मनाया जाता है साक्षरता दिवस ? – When We Celebrate World Literacy Day

विश्व में ज्यादा से ज्यादा लोगों को शिक्षित बनाने एवं निरक्षरता को जड़ से मिटाने के मकसद से हर साल 8 सितंबर को पूरे विश्व में साक्षरता दिवस मनाया जाता है। शिक्षा के प्रति लोगों को जागरूक करने के उद्देश्य से साल 1966 में  यूनेस्कों ने  हर साल 8 सितंबर को विश्व साक्षरता दिवस मनाने का फैसला लिया था।

तब से लेकर हर साल 8 सितंबर को पूरी दुनिया भर में अंतराष्ट्रीय साक्षरता दिवस के रुप में मनाया जाता है।

आपको बता दें कि अंतराष्ट्रीय साक्षरता दिवस मनाने पर सबसे पहले चर्चा ईरान के तेहरान में शिक्षा मंत्रियों के वैश्विक सम्मेलन के दौरान साल 1965 में 8 से 19 सितंबर के बीच की गई थी।

जिसके बाद 26 अक्टूबर, 1966 को यूनेस्को (यूनाइटेड नेशंस एजुकेशनल साइंटिफिक ऐंड कल्चरल ऑर्गनाइजेशन) ने एक कॉन्फ्रेंस में हर साल पूरे विश्व में 8 सितंबर को ‘अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस’ के रूप में मनाने का ऐलान किया था। साल 2019 में पूरी दुनिया भर में 53वां अंतराष्ट्रीय साक्षरता दिवस मनाया जाएगा।

क्यों मनाया जाता है साक्षरता दिवस – Why We Celebrate World Literacy Day

साक्षरता की तरफ मानव चेतना को बढ़ावा देने एवं देश-दुनिया के विकास के लिए हर साल 8 सितंबर को पूरी दुनिया में अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस मनाया जाता है।

जाहिर है कि शिक्षा के बिना मनुष्य के सफल जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती है, क्योंकि शिक्षा न सिर्फ मनुष्य के व्यक्तिगत विकास में मद्द करती है बल्कि शिक्षा के माध्यम से ही सामाजिक, आर्थिक और बौद्धिक विकास होना संभव है।

साक्षरता दर को बढ़ाकर ही भारत या फिर पूरे विश्व से जनसंख्या वृद्धि पर लगाम लगाई जा सकती है गरीबी को जड़ से मिटाया जा सकता है, शिशु मृत्यु दर को कम किया जा सकता है, कन्या भ्रूण हत्या पर लगाम लगाम लगातार लैंगिंग समानता को प्राप्त किया जा सकता है।

इसके साथ ही देश-दुनिया में निरक्षरता की वजह से कई बलात्कार, मर्डर, चोरी, डकैती जैसे कई जघन्य अपराध बढ़ रहे हैं। इस तरह के अपराधों पर साक्षरता के माध्यम से ही कम किया जा सकता है।

वहीं लोगों को शिक्षा प्राप्त करने के प्रति जागरूक करने के साथ उन्हें अपने अधिकारों एवं जिम्मेदारियों का एहसास करवाने के लिए अंतराष्ट्रीय साक्षरता दिवस हर साल 8 सितंबर को पूरे विश्व भर में धूमधाम से मनाया जाता है।

विश्व साक्षरता दिवस मनाने के मुख्य उद्देश्य? – Purpose Of International Literacy Day

विश्व साक्षरता दिवस मनाए जाने के मुख्य उद्देश्य निम्मलिखित हैं –

  • पूरे विश्व में साक्षरता को बढ़ाने के लिए एवं निरक्षरता को पूरी तरह खत्म करने का उद्देश्य।
  • इसका उद्देश्य लोगों को सिर्फ किताबी ज्ञान देकर शिक्षित बनाना नहीं बल्कि उन्हें अपने कर्तव्यों और अधिकारों के प्रति जागरूक करने भी है।
  • ज्यादा से ज्यादा लोगों की शिक्षा के प्रति जागरूक करने का उद्देश्य।
  • विश्व के हर वर्ग के लोगों को शिक्षित करने का उद्देश्य अर्थात विश्व के सभी बच्चे, वयस्क, महिलाओं एवं बुजुर्गों सभी को साक्षर बनाना ही इस दिवस का मुख्य लक्ष्य है।
  • साक्षरता को बढ़ाकर देश-दुनिया के विकास में सहयोग देने का उद्देश्य।
  • लोगों को अपने अधिकारों के प्रति जागरूक करने का उद्देश्य।
  • साक्षरता दर बढ़ाकर गरीबी और बेरोजगारी की समस्या को पूरी तरह खत्म करने का उद्देश्य।
  • सामाजिक, सामुदायिक एवं व्यक्तिगत रुप से साक्षरता के महत्व को बताने का उद्देश्य।

कैसे मनाते हैं अंतराष्ट्रीय साक्षरता दिवस – How to Celebrate International Literacy Day

हर साल 8 सितंबर को पूरे विश्व में अंतराष्ट्रीय साक्षरता दिवस बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। इस मौके पर स्कूल, स्कूल समेत अन्य शिक्षण संस्थानों में निबंध लेखन, भाषण, चित्रकला, गीत-गायन समेत कई प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाता है।

इसके साथ ही इस मौके पर शिक्षा को बढा़वा देने के लिए कई कार्यक्रमों का भी आयोजन होता है। विश्व साक्षरता दिवस के मौके पर उन संस्थानों को सम्मानित किया जाता है, जो कि लोगों को शिक्षित करने में अपना सहयोग दे रही हैं।

इसके साथ ही इस मौके पर शिक्षा के महत्व पर प्रकाश डाला जाता है, साथ ही निरक्षरता से होने वाली समस्याओं को उजागर किया जाता है।

भारत में साक्षरता दर – Saksharta Dar In India

साल 2011के जनगणना के मुताबिक  भारत में करीब 22 फीसदी लोग अभी भी बिना पढ़े -लिखे अर्थात अनपढ़ हैं। कुछ आंकड़ों के मुताबिक भारत में केरल एक ऐसा राज्य है, जिसकी साक्षरता दर सबसे अधिक 93.91 फीसदी है।

केरल के  बाद साक्षरता के मामले में लक्षद्धीप, मिजोरम, त्रिपुरा और गोवा आता है। जिनकी साक्षरता दर क्रमश: 92.28 फीसदी, 91.58 फीसदी, 87.75 फीसदी और 87.40 फीसदी है।

वहीं भारत में शिक्षा के क्षेत्र में सबसे पिछड़े हुए राज्य बिहार एवं तेलंगाना है जहां लोग सबसे कम शिक्षित है। आपको बता दें कि बिहार में सिर्फ 63.82 लोग ही पढ़े-लिखे हैं, जबिक तेलंगाना में महज 66.50 फीसदी लोग ही शिक्षित हैं।

हालांकि, साल 2014 में भारत की साक्षरता दर में 10 फीसदी की बढो़तरी दर्ज की गई थी।

साक्षरता दर में कमी के मुख्य कारण – Causes Of Literacy

साक्षरता दर में कमी के मुख्य कारण निम्नलिखित है –

  • शिक्षा संसाधनों का अभाव एवं स्कूलों की कमी होना।
  • गरीबी एवं बेरोजगारी की समस्या भी साक्षरता दर में कमी का मुख्य कारण है।
  • लगातार बढ़ रही है महंगाई भी निरक्षरता को बढ़ावा दे रही है अर्थात बढ़ती महंगाई की वजह से कई लोग अपने बच्चों को शिक्षित नहीं कर पा रहे हैं।
  • स्कूलों द्धारा पढ़ाई के लिए मोटी फीस वसूली जाना।
  • जातिवाद, महिला और पुरुष में भेदभाव करना (लैंगिग असमानता) भी निरक्षरता को बढ़ा रही है।
  • शिक्षा के प्रति जागरूकता की कमी।
  • कई राज्यों में आज भी महिलाओं को शिक्षा देने के अधिकार से दूर रखना।
  • लड़कियों की असुरक्षा, बलात्कार और छेड़छाड़ जैसे अपराधों का डर भी साक्षरता दर में कमी में प्रमुख कारणों में से एक है।

एक रिपोर्ट के मुताबिक विश्व के करीब 101 देश ऐसे हैं जो कि पूर्ण रुप से साक्षरता हासिल नहीं कर सकें, उन देशों में भारत भी शामिल है। साल 2011 तक के आंकड़ों के मुताबिक भारत में सिर्फ 74 फीसदी नागरिक ही साक्षर हैं।

साक्षरता बढ़ाने के उपाय – How To Solve Illiteracy Problem

देश-दुनिया में निम्नलिखित उपायों द्धारा साक्षरता दर को बढ़ाया जा सकता है –

  • लोगों को शिक्षा के प्रति जागरूक एवं प्रोत्साहित कर साक्षरता दर में वृद्धि की जा सकती है।
  • देश से गरीबी, बेरोजगारी एवं भ्रष्टाचार की समस्या को को जड़ से खत्म कर।
  • गरीब बच्चों को मुफ्त में शिक्षा देकर साक्षरता बढ़ाई जा सकती है।
  • जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित कर भी साक्षरता बढ़ाई जा सकती है।
  • देश-दुनिया के पिछड़े हुए राज्यों, शहरों एवं जिलों में शिक्षा के संसाधनों को जुटाकर।

साक्षरता का महत्व – Importance Of Literacy

किसी भी व्यक्ति का साक्षर अर्थात शिक्षित होना बेहद जरूरी है, क्योंकि एक अनपढ़ एवं अशिक्षित व्यक्ति कभी भी विकास की मुख्य धारा से नही जुड़ पाता है। शिक्षा ही देश-दुनिया के विकास का मुख्य आधार होती है अर्थात किसी भी देश की तरक्की व उन्नति,उस देश की साक्षरता पर निर्भर करती है।

साक्षरता दर में कमी – किसी भी देश में गरीबी, बेरोजगारी जैसी बड़ी समस्याओं का कारण बनती है। साक्षरता सामाजिक, सामुदायिक के साथ-साथ व्यक्तिगत विकास के लिए भी काफी जरूरी है। इसलिए हम सभी को साक्षरता के महत्व को समझना चाहिए।

उपसंहार

आज भी दुनिया के कई ऐसे क्षेत्र हैं जो कि निरक्षरता से जूझ रहे हैं, ऐसे क्षेत्रों  में शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए और अधिक प्रयास करने की आवश्यकता है। वहीं भारत की साक्षरता दर अभी भी अन्य देशों के मुताबिक काफी कम है।

इसके लिए सरकार लगातार मुफ्त में शिक्षा उपलब्ध करवाने समेत इस दिशा में काफी प्रयास कर रहे हैं, जिसके चलते देश का हर नागरिक शिक्षा की तरफ आर्कषित हो रहा है। वहीं आजादी के बाद से भारत में काफी हद तक अशिक्षित एवं अनपढ़ों की संख्या में कमी भी आई है।

हालांकि अभी भी इस दिशा में सुधार करने की काफी जरूरत है। वहीं आने वाली पीढ़ी एवं देश-दुनिया के बेहतर विकास के लिए हम सभी को मिलकर साक्षरता के महत्व को समझना चाहिए और इसके प्रति जागरूक होना चाहिए, क्योंकि  जब तक देश-दुनिया का हर तबके का व्यक्ति शिक्षित नहीं हो जाता, तब तक विश्व साक्षरता दिवस मनाने का उद्देश्य सच्चे अर्थों में साकार नहीं होगा।

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माता पिता पर कुछ कोट्स | Parents Quotes in Hindi

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Parents Quotes in Hindi

सच में माता पिता क्या होते हैं ये सिर्फ उन्ही को पता होता हैं जिनके माता पिता नहीं होते। माता पिता वो होते हैं जो अपने बच्चों के लिए अपना सारा जीवन बिता देता। वो सारी जिंदगी मेहनत करते हैं सिर्फ़ इसलियें की उनके बच्चें आराम से रह सके। हम उनका यह एहसान अपनी पूरी जिन्दगी गवा कर भी नहीं चुकता कर सकते। जिनके वहज से हमें यह जिन्दगी मिली।

आज हम आपको अपने इस पोस्ट में माता पिता के सम्मान में कुछ कोट्स – Parents Quotes in Hindi में उपलब्ध करवा रहे  हैं- जिन्हें पढ़कर न सिर्फ आपके मन में अपने पेरेट्स के प्रति और भी ज्यादा सम्मान की भावना बढ़ेगी, बल्कि अगर यह कोट्स आप अपने व्हाट्सऐप, फेसबुक एवं अन्य सोशल मीडिया साइट्स पर शेयर करेंगे तो मां-बाप को भी खुशी मिलेगी।

माता पिता पर कुछ कोट्स – Parents Quotes

Parents Quotes in Hindi

“फूल कभी बार बार नहीं खिलते…जीवन कभी बार बार नहीं मिलता….मिलने को तो बहुत से लोग मिल जाते है…..लेकिन हज़ारो गलतियों को माफ़ करने वाले…माँ बाप नहीं मिलते !!”

“इज़्ज़त भी मिलेगी, दौलत भी मिलेगी, सेवा करो…माता पिता…..की जनत भी मिलेगी…..!!”

“माँ एक ऐसे बैंक है, जहाँ आप हर भावना और दुःख जमा कर सकते है और “पिता” एक ऐसे क्रेडिट कार्ड है, जिनके पास बैलेंस न होते हुआ भी, सपना पुरे करने की कोशिश करते है !!”

“माता और पिता ऐसे होते हैं जिनके होने का अहसास कभी नहीं होता, लेकिन ना होने का एहसास बहुत होता हैं!!”

Maa Baap Quotes in Hindi

इस दुनिया में मां-बाप से बढ़कर कोई और नहीं होता क्योंकि, मां-बाप अपने बच्चों की खुशी के लिए अपनी जिंदगी की सारी खुशियां कुर्बान कर देते हैं। परिस्थतियां चाहे जैसी भी हो, लेकिन पेरेट्स अपने बच्चों पर कभी आंच नहीं आने देते हैं।

दुनिया के हर पेरेट्स का सिर्फ एक ही सपना होता है कि उनके बच्चे सफलता के नए आयामों को छुएं और निरंतर प्रगति करें। बच्चे की तरक्की के लिए पेरेट्स अपनी ख्वाहिशों की परवाह किए बिना अपनी पूरी जिंदगी त्याग और बलिदान देते हैं।

वहीं बच्चे अपने मां-बाप का एहसान पूरी जिंदगी भी नहीं चुका सकते, इसलिए हर किसी को अपने पेरेंट्स की इज्जत करनी चाहिए, सम्मान देना चाहिए एवं उनकी आज्ञा का पालन करना चाहिए।

“नोटों से तो बस जरूरते पूरी होती हैं, मजा तो माँ से मांगे एक रूपये के सिक्के में था!!”

“माँ की ममता और पिता की क्षमता का अंदाजा लगाना भी संभव नही है….!!”

“मुफ्त में सिर्फ माँ बाप का प्यार “मिलता है.. इसके बाद दुनिया में हर रिश्ते के लिए कुछ न कुछ चुकाना पड़ता है…!!”

“तूने जब धरती पर पहली सांस ली तब तेरे माता-पिता तेरे पास थे, माता-पिता जब अंतिम सांस ले तब तू उनके पास रहना!!”

“जिस घर में माता पिता दोनों होते हैं उस घर को स्वर्ग कहते हैं!!”

“चाहे लाख करो तुम पूजा पाठ और तीर्थ करो हजार मगर माँ – बाप को ठुकराया तो सबकुछ जायेंगा बेकार!!”

Maa Baap Status in Hindi

दुनिया में कई बच्चे ऐसे भी हैं, जिन्हें अपने पापा का प्यार और मां का दुलार नहीं मिल पाता है, जो पूरी जिंदगी उनके प्यार को तरसते रहते हैं और ऐसे बच्चों को सही मायने में इसका एहसास होता है कि, किसी भी बच्चे की जिंदगी में पेरेंट्स कितनी अहमियत रखते हैं।

वो बच्चे बेहद खुशनसीब होते हैं, जिन्हें अपने मां-पापा का प्यार, स्नेह मिलता है और जो अपने मां के लाड-प्यार और पापा की छत्रसाया में पले-बड़े होते हैं, क्योंकि दुनिया में मां-बाप ही एक ऐसे होते हैं जो अपने बच्चों की हर छोटी-बड़ी  जरूरत का पूरी तरह ख्याल रखते हैं।

और बच्चों के बिना बताए ही सारी चीजें उपलब्ध करवाते हैं और उसके हर सुख-दुख में साय की तरह साथ खड़े रहते हैं। इसलिए मां-बाप को भगवान का दूसरा रुप माना गया  है।

वहीं पेरेंट्स पर लिखे गए इस तरह के कोट्स से मां-बाप की अहमियत तो पता चलती ही है साथ ही उनके लिए हृदय  में और भी ज्यादा प्यार और सम्मान बढ़ता है।

“अपने बच्चों के लिए सारी दुनिया जितने वाले माता पिता, अपने बच्चों से हार जाते हैं!!”

“रुलाना हर किसी को आता हैं हँसाना भी हर किसी को आता हैं, और जो रुला के भी ख़ुद रो पड़े वो माता पिता हैं!!”

“रिश्ते निभा कर ये जान लिया हमनें की माँ बाप को छोड़कर कोई अपना नहीं होता!!”

“कहते हैं की पहला प्यार कभी भुलाया नहीं जाता, फिर पता नहीं लोग क्यू अपने माँ बाप का प्यार भुल जाते हैं!!”

“भुला के नींद अपनी सुलाया हमको, गिरा के आँसू अपने हँसाया हमको, दर्द कभी ना देना उन हस्तियों को, खुदा ने माँ बाप बनाया जिनको!!”

आज की दुनिया में कई बच्चे ऐसे भी हैं जो चंद पैसे के लालच में अपने पेरेंट्स को हमेशा के लिए छोड़ देते हैं या फिर पैसे के घमंड में आकर उनकी इज्जत नहीं करते।

वहीं आजकल अखबारों में भी कई ऐसी खबर आए दिन देखने को मिलती हैं कि बेटा अपनी बूढ़ी मां को वृद्धाश्रम में छोड़ आया या फिर बूढ़ी मां किसी सुनसान सड़क पर दर-दर की ठोंकरें खाने को मजबूर है।

फिलहाल ऐसा करने वाले बच्चों को एक दिन अपने पेरेंट्स की अहमियत जरूर पता लगती है। वहीं पेरेंट्स पर दिए गए इस तरह के कोट्स के माध्यम से ऐसे बच्चों की मानसिकता पर भी फर्क पड़ता है और उनके ह्रद्य में अपने पेरेंट्स की प्रति मान-सम्मान बढ़ता है।

इसलिए इस तरह के कोट्स को ज्यादा से ज्यादा शेयर करें और अपने माता-पिता के मूल्यों को समझें, उनकी इज्जत करें,उन्हें सम्मान दें और उनकी खुशियां का ख्याल रखें क्योंकि मां-बाप की प्रतिष्ठा से ही हम बच्चों की प्रतिष्ठा है और उनके होने से ही हमारी पहचान  हैं।

“उस इंसान से दोस्ती मत करो जो अपने माता पिता से ऊँची आवाज में बात करता हैं क्योकि जो अपने माता पिता की इज्जत नहीं कर सकता वो आपकी इज्जत कभी नहीं करेंगा!!”

“कुछ लोगों का प्यार कभी नहीं कम होता, और इस दुनिया में उन्हें माता पिता कहा जाता हैं!!”

“जब माँ छोड़कर जाती हैं तब दुनियाँ में कोई दुआ देने वाला नहीं होता, और जब पिता छोड़कर जाता हैं, तब कोई हौसला देने वाला नहीं होता!!”

“इस दुनिया में स्वार्थ के बिना सिर्फ आपके माता पिता ही प्यार कर सकते हैं!!”

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हिन्दी दिवस पर कुछ कविताएँ | Hindi Diwas Poem

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Hindi Diwas Poem

हिंदी भाषा विश्व की दूसरी सबसे बड़ी भाषा हैं। इसलिए हम 10 जनवरी को विश्व हिंदी दिवस – International Hindi Day और 14 सितम्बर को हम राष्ट्रीय हिंदी दिवस के रूप में मनाते हैं। 1949 को इस दिन हिंदी भाषा को राष्ट्रभाषा का दर्जा प्राप्त हुआ। भारत और अन्य देशों में 80 करोड़ से अधिक लोग हिन्दी बोलते, पढ़ते और लिखते हैं।

हिन्दी भाषा हम सभी हिन्दुस्तानियों की पहचान है, यह भाषा हम सभी भारतीयों को एकसूत्र में बांधने का काम करती है, यह हमारी राष्ट्रीय एकता की पहचान भी है। हिन्दी हमारी मातृभाषा है, यह आमजन की भाषा है जो हमें अपनेपन का एहसास करवाती है, लेकिन आधुनिक युग में अंग्रेजी भाषा के बढ़ती जरूरत के साथ हिन्दी भाषा का महत्व कम होता जा रहा है, इसलिए हिन्दी भाषा की तरफ आज की युवा पीढ़ी का ध्यान आर्कषित करने के लिए हर साल हमारे देश में 14 सितंबर को हिन्दी दिवस के रुप में मनाया जाता है।

हिन्दी दिवस को पूरे देश में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है, इस मौके पर स्कूल समेत तमाम शिक्षण संस्थानों में तमाम कई के कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है, जिसमें कविताओं आदि के माध्यम से हिन्दी भाषा के महत्व पर प्रकाश डाला जाता है।

भारत विविधताओं वाला देश है, जहां अलग-अलग  जाति, लिंग पंथ, धर्म के लोग रहते हैं, जिनके खान-पान, परंपरा, रहन-सहन, रीति-रिवाज, एवं भाषा एक दूसरे से बिल्कुल अलग है, लेकिन इन सबके बाबजूद भी हमारे देश के ज्यादातर लोग हिन्दी भाषा बोलते हैं, क्योंकि हिन्दी एक बेहद सरल औऱ सहज भाषा है, जिसे हर व्यक्ति बेहद सरलता के साथ समझ सकता है। वहीं इस भाषा की सहजता और सुगमता को देखते हुए भी इसे हिन्दुस्तान की राष्ट्र भाषा का दर्जा दिया गया है।

हिन्दी, हिन्दुस्तान की शान मानी जाती है, यह भाषा हमारी अनूठी संस्कृति और संस्कारों का अनूठा प्रतिबिंब है। वहीं इस भाषा के प्रति हर हिन्दुस्तानी के ह्रदय में सम्मान हैं।

इसलिए आज हम आपको अपने इस आर्टिकल में हिन्दी दिवस पर कुछ ऐसी कविताएं उपलब्ध करवा रहे हैं, जिनका इस्तेमाल न सिर्फ आप अपनी स्कूलों में आय़ोजित प्रोग्राम्स के दौरान कर सकते हैं बल्कि इन कविताओं को अपनी सोशल मीडिया साइट्स व्हाट्सऐप, फेसबुक, ट्वीटर, इंस्टाग्राम आदि पर शेयर कर लोगों को हिन्दी भाषा के महत्व को समझा सकते हैं और इसके प्रति उन्हें जागरूक कर सकते हैं। –

हिन्दी दिवस पर कुछ कविताएँ – Hindi Diwas Poem

Hindi Diwas Poem

Hindi Diwas Poem – “हिंदी भाषा”

हिंदुस्तानी हैं हम गर्व करो हिंदी भाषा पर,
उसे सम्मान दिलाना और देना कर्तव्य हैं हम पर।।
ख़त्म हुआ विदेशी शासन,
तोड़दो अब उन बेड़ियों को।।
खुले दिल से अपनाओ इस खुले आसमां को,
लेकिन ना छोड़ो धरती माँ के प्यार को।।
हिंदी हैं राष्ट्रभाषा हमारी,
इस पर करो जिन्दगी न्यौछावर सारी।।

Hindi Diwas Kavita – “राष्ट्र के माथे की बिंदी है ये हिन्दी”

संस्कृत की एक लाड़ली बेटी है ये हिन्दी।
बहनों को साथ लेकर चलती है ये हिन्दी।
सुंदर है, मनोरम है, मीठी है, सरल है,
ओजस्विनी है और अनूठी है ये हिन्दी।
पाथेय है, प्रवास में, परिचय का सूत्र है,
मैत्री को जोड़ने की सांकल है ये हिन्दी।
पढ़ने व पढ़ाने में सहज है, ये सुगम है,
साहित्य का असीम सागर है ये हिन्दी।
तुलसी, कबीर, मीरा ने इसमें ही लिखा है,
कवि सूर के सागर की गागर है ये हिन्दी।
वागेश्वरी का माथे पर वरदहस्त है,
निश्चय ही वंदनीय मां-सम है ये हिंदी।
अंग्रेजी से भी इसका कोई बैर नहीं है,
उसको भी अपनेपन से लुभाती है ये हिन्दी।
यूं तो देश में कई भाषाएं और हैं,
पर राष्ट्र के माथे की बिंदी है ये हिन्दी।

Poem on Hindi Diwas – “हिंदी हैं हम”

हिंदी हैं हम, वतन है हिन्दुस्तान हमारा,
कितना अच्छा व कितना प्यारा है ये नारा।
हिंदी में बात करें तो मूर्ख समझे जाते हैं।
अंग्रेजी में बात करें तो जैंटलमेल हो जाते।
अंग्रेजी का हम पर असर हो गया।
हिंदी का मुश्किल सफ़र हो गया।
देसी घी आजकल बटर हो गया,
चाकू भी आजकल कटर हो गया।
अब मैं आपसे इज़ाज़त चाहती हूँ,
हिंदी की सबसे हिफाज़त चाहती हूँ।।

~ दिविशा तनेजा

14 सिंतबर, 1949 को हिन्दी भाषा को राष्ट्रभाषा का दर्जा दिया गया था। इस दिन भारत की संविधान सभा में हिन्दी को भारत गणराज्य की अधिकारिक भाषा घोषित किया गया था, इसलिए तब से लेकर आाज तक इसे हिन्दी दिवस के रुप में मनाया जाता है।

भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने इस दिन के महत्व को समझते हुए इस दिन को हिन्दी दिवस के रुप में मनाने की इच्छा जाताई थी। आपको बता दें कि भारत में पहली बार हिन्दी दिवस, 14 सितंबर साल 1953 में मनाया गया था। वहीं हिन्दी भाषा को देश की अधिकारिक या राष्ट्रभाषा के रुप में इस्तेमाल करने का निर्णय भारतीय संविधान में 26 जनवरी 1950 से प्रभाव में आया है।

भारत के संविधान सभा में देवनागिरी लिपी में लिखी गई हिन्दी को अंग्रेजी के साथ राष्ट्र की अधिकारिक भाषा के तौर पर स्वीकार किया गया था, जिसके बाद हिन्दी भाषा देश में आम जन के संवाद का माध्यम बनती चली गई और इसका इस्तेमाल लगातार बढ़ता चला गया और यह भारतीयों की सबसे पसंदीदा एवं दिलों की भाषा बन गई, जिसके माध्यम से भारतीय अपनी भावनाओं को बेहतर तरीके से उजागर कर पाते हैं।

हालांकि, स्कूल, कॉलेज, कॉपरेट सेक्टर की मीटिंग्स, इंटरव्यू आदि में अंग्रेजी भाषा के बढ़ते इस्तेमाल से अब अंग्रेजी लोगों की जरूरत की भाषा बन चुकी है, जिसके चलते आज भी युवा पीढ़ी का ध्यान हिन्दी भाषा की तरफ से हट रहा है।

इसलिए हिन्दी के प्रति ज्यादा से ज्यादा लोगों को जागरूक करने के उद्देश्य से 14 सितंबर को हिन्दी दिवस मनाया जाता है। हिन्दी, दुनिया में बोली जाने वाले मुख्य भाषाओं में से एक है साथ ही हम सभी भारतीयों के सम्मान और स्वाभिमान की भाषा है। वहीं इस तरह की कविताएं लोगों के अंदर न सिर्फ हिन्दी भाषा के प्रति सम्मान पैदा करती हैं, बल्कि इसकी अहमियत को समझने में भी मद्द करती हैं।

Hindi Diwas Kavita – “जीवन की परिभाषा”

जन-जन की भाषा है हिंदी
भारत की आशा है हिंदी……
जिसने पूरे देश को जोड़े रखा है
वो मजबूत धागा है हिंद ……
हिन्दुस्तान की गौरवगाथा है हिंदी
एकता की अनुपम परम्परा है हिंदी…
जिसके बिना हिन्द थम जाए
ऐसी जीवनरेखा है हिंदी…
जिसने काल को जीत लिया है
ऐसी कालजयी भाषा है हिंदी…
सरल शब्दों में कहा जाए तो
जीवन की परिभाषा है हिंदी…

~ अभिषेक मिश्र

Hindi Diwas par Kavita – “हिन्दी”

हिन्दी मेरे रोम-रोम में,
हिन्दी में मैं समाई हूँ,
हिन्दी की मैं पूजा करती,
हिन्दोस्तान की जाई हूँ……
सबसे सुन्दर भाषा हिन्दी,
ज्यों दुल्हन के माथे बिन्दी,
सूर, जायसी, तुलसी कवियों की,
सरित-लेखनी से बही हिन्दी……
हिन्दी से पहचान हमारी,
बढ़ती इससे शान हमारी,
माँ की कोख से जाना जिसको,
माँ,बहना, सखि-सहेली हिन्दी……
निज भाषा पर गर्व जो करते,
छू लेते आसमाँ न डरते,
शत-शत प्रणाम सब उनको करते,
स्वाभिमान….. अभिमान है हिन्दी…
हिन्दी मेरे रोम-रोम में,
हिन्दी में मैं समाई हूँ,
हिन्दी की मैं पूजा करती,
हिन्दोस्तान की जाई हूँ…

~ सुधा गोयल

विश्व में हिन्दी साहित्य दुनिया के सबसे समृद्ध साहित्य के रुप में जाना जाता है। कई महान विद्धानों और बड़े-बड़े साहित्यकारों ने अपने महान विचारों और भावनाओं को हिन्दी भाषा का इस्तेमाल कर समझाया है और लोगों के अंदर जीवन जीने के प्रति एक नई चेतना पैदा की है। इसके साथ ही हिन्दी भाषा के प्रति लोगों को प्रोत्साहित भी किया है। वहीं हिन्दी का साहित्य आज व्यक्तिगत, राजनीतिक एवं सामाजिक अभिव्यक्ति का सबसे सशक्त हथियार के रूप में उभरा है।

हिन्दी भाषा, हमारे देश के युवाओं में नए विचारों को जन्म देने में मद्द करती है, इसके साथ ही हिन्दी भाषा के माध्यम से हम भारतीय अपनी भावनाओं को अच्छी तरह से उजागर कर सकते हैं। हिन्दी भाषा न सिर्फ संवाद को सरल और सहज बना देती है बल्कि लोगों को आपस में जोड़ने का भी काम करती है।

वहीं हिन्दी भाषा हम सभी भारतीयों की पहचान हैं और भारतीय संस्कृति की विरासत है, लेकिन धीरे-धीरे इसका महत्व कम होता जा रहा है। आजकल अंग्रेजी भाषा की बढ़ती डिमांड के चलते हिन्दीभाषियों को गंवार और अनपढ़ के रुप में देखा जाने लगा है, हिन्दीभाषियों को वो सम्मान नहीं दिया जाता है और न ही उन्हें उतनी तवज्जो दी जाती है, हिन्दी बोलने वालों को तुच्छ नजरिए से देखा जाता है, जो कि बेहद निंदनीय है।

आज हमारा देश अंग्रजों की गुलामी से आजाद तो हो गया है, लेकिन हम सभी हिन्दुस्तानी अंग्रेजी के गुलाम बन बैठे हैं, इसलिए हिन्दी भाषा को उतना मान-सम्मान नहीं दे पा रहे हैं, जितना कि किसी भी देश को अपनी राषट्रभाषा को देना चाहिए।

हालांकि, आज भी कई लोग ऐसे हैं, जो हिन्दी भाषा को उचित दर्जा दिलवाने की दिशा में काम कर रहे हैं। वहीं हिन्दी दिवस पर आयोजित कार्यक्रमों के माध्यम से  हिन्दी भाषा के महत्व को बढ़ाने के लिए हिन्दी के प्रति लोगों को जागरूक किया जा रहा है। वहीं आप भी इस तरह की कविताओं को सोशल मीडिया साइट्स पर ज्यादा से ज्यादा शेयर करने की कोशिश करें ताकि हम सभी के ह्रदय में अपनी मातृभाषा के प्रति प्रेम और सम्मान की भावना पैदा हो सके।

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‘पंजाब केसरी’लाला लाजपत राय की जीवनी | Lala Lajpat Rai

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Lala Lajpat Rai

लाला लाजपत राय गुलाम भारत को आजाद करवाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। लाला लाजपत राय भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के तीन प्रमुख नायकों लाल-पाल-बाल में से एक थे। इस तिकड़ी के मशहूर लाला लाजपत राय न सिर्फ एक सच्चे देशभक्त, हिम्मती स्वतंत्रता सेनानी और एक अच्छे नेता थे बल्कि वे एक अच्छे लेखक, वकील,समाज-सुधारक और आर्य समाजी भी थे।

आपको बता दें कि भारत के स्वतंत्रता संग्राम के महानायक लाला लाजपत राय – Lala Lajpat Rai की छवि प्रमुख रुप से एक राष्ट्रवादी नेता के रूप में हैं। लाला लाजपत राय ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ शक्तिशाली भाषण देकर न सिर्फ ब्रिटिश शासकों के इरादों को पस्त कर दिया बल्कि उनकी देश के प्रति अटूट देशभक्ति की भावना की वजह से उन्हें ‘पंजाब केसरी’ या “पंजाब का शेर” भी कहा जाता था।

गुलाम भारत को आजाद करवाने के लिए लाला लाजपत राय – Lala Lajpat Rai ने आखिरी सांस तक जमकर संघर्ष किया और वह शहीद हो गए। आज हम आपको अपने इस लेख में स्वतंत्रता संग्राम की मशहूर तिकड़ी लाल-बाल-पाल में से एक लाला लाजपत राय के जीवन के बारे में जानकारी देंगे –

Lala Lajpat Rai

लाला लाजपत राय की जीवनी – Lala Lajpat Rai Biography In Hindi

पूरा नाम (Name) श्री लाला लाजपत राधाकृष्ण राय जी
जन्म (BirthDay) 28 जनवरी 1865
जन्म स्थान (Birthplace) धुड़ीके गाँव, पंजाब, बर्तानवी भारत
पिता (Father) श्री राधाकृष्ण जी
माता (Mother) श्रीमती गुलाब देवी जी
शिक्षा (Education) 1880 में कलकत्ता और पंजाब विश्वविद्यालय
प्रवेश परीक्षा उत्तीर्ण,
1886 में कानून की उपाधि ली
संगठन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, आर्य समाज, हिन्दू महासभा
आन्दोलन भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन
स्थापित विद्यालय 1883 में अपने भाईयों और मित्रों (हंसराज और गुरुदत्त) के
साथ डी.ए.वी.(दयानन्द अंग्लों विद्यालय) की स्थापना,
पंजाब नेशनल कॉलेज लाहौर की स्थापना
मृत्यु (Death) 17 नवम्बर 1928
मृत्यु स्थान (Deathplace) लाहौर (पाकिस्तान)
उपाधियाँ (Awards) शेर-ए-पंजाब, पंजाब केसरी
रचनाएँ पंजाब केसरी’, ‘यंग इंण्डिया’,
‘भारत का इंग्लैंड पर ऋण’, ‘भारत के लिए आत्मनिर्णय’,
‘तरुण भारत’।

लाला लाजपत राय का प्रारंभिक जीवन – Lala Lajpat rai Information

शेर-ए पंजाब की उपाधि से सम्मानित और भारत के महान लेखक लाला लाजपत राय पंजाब के धु़डीके गांव के एक साधारण से परिवार में जन्मे थे। उनके पिता का नाम लाला राधाकृष्ण था जो कि अग्रवाल (वैश्य) यानि की बनिया समुदाय से संबंधित थे और वे एक अच्छे अध्यापक भी थे। उन्हें उर्दू और फ़ारसी की अच्छी जानकारी थी।

उनकी माता जी का नाम गुलाब देवी था, जो कि सिक्ख परिवार से बास्ता रखती थी। वह एक साधारण और धार्मिक महिला थी जिन्होंने अपने बच्चों में भी धर्म-कर्म की भावना को प्रेरित किया था, वास्तव में उनके पारिवारिक परिवेश ने ही उन्हें देशभक्ति का काम करने की प्रेरणा दी थी।

आजादी के महान नायक लाला लाजपत राय की शिक्षा – Lala Lajpat Rai Education

लाला लाजपत राय जी के पिता सरकारी उच्चतर माध्यमिक विद्यालय के अध्यापक थे, इसलिए लाला जी की शुरुआती शिक्षा इसी स्कूल से शुरु हुई। वे बचपन से ही पढ़ने में काफी होश्यिार थे। वे एक मेधावी छात्र थे। उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद 1880 में कानून की पढ़ाई के करने के लिए लाहौर के सरकारी कॉलेज में एडमिशन ले लिया और अपनी कानून की पढ़ाई पूरी की।

इसके बाद वे एक बेहतरीन वकील भी बने और उन्होंने कुछ समय तक वकालत भी की लेकिन लाला लाजपत राय का मन वकालत करने में नहीं टिका। वहीं उस समय अंग्रेजों की कानून व्यवस्था के खिलाफ उनके मन में क्रोध पैदा हो गया और उन्होंने उस व्यवस्था को छोड़कर बैंकिंग की तरफ रूख किया।

पीएनबी और लक्ष्मी बीमा कंपनी की स्थापना – PNB (Punjab National Bank)

इसके बाद भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी लाला लाजपत राय ने राष्ट्रीय कांग्रेस के 1888 और 1889 के वार्षिक सत्रों के दौरान एक प्रतिनिधि के रूप में हिस्सा लिया और फिर वे साल 1892 में उच्च न्यायालय में प्रैक्टिस करने के लिए लाहौर चले गए जहां उन्होंने पंजाब नेशनल बैंक और लक्ष्मी बीमा कंपनी की नींव रखी थी।

वहीं लाला लाजपत राय के निष्पक्ष स्वभाव की वजह से ही उन्हें हिसार मुन्सिपैल्टी की सदस्यता मिली, जिसके बाद वो एक सेक्रेटरी भी बन गए। आपको बता दें कि बाल गंगाधर तिलक के बाद वे उन शुरुआती नेताओं में से थे जिन्होंने पूर्ण स्वराज की मांग की थी। लाला लाजपत राय पंजाब के सबसे लोकप्रिय नेता बन कर उभरे।

LAL BAL PAL
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लाला लाजपत राय का आर्य समाज में प्रवेश

आजादी के महानायक लाला लाजपत राय साल 1882 में पहली बार आर्य समाज के लाहौर के वार्षिक उत्सव में शामिल हुए और वह इस सम्मेलन से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने आर्य समाजी बनने का फैसला ले लिया।

वहीं उस समय आर्य समाज हिन्दू समाज में फैली कुरोतियों को धार्मिक अंधविश्वासों के खिलाफ था। उस दौरान लाल लाजपत राय ने लोकप्रिय जनमानस के खिलाफ खड़े होने का साहस किया और उन्होंने आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती के साथ मिलकर आर्य समाज के आंदोलन को आगे बढ़ाने में अपना भरपूर सहयोग दिया।

आपको बता दें कि यह उस दौर की बात है जब आर्य समाजियों को धर्मविरोधी समझा जाता था, लेकिन लाला लाजपत राय जी ने इसकी बिल्कुल भी फिक्र नहीं की और आर्य समाज में अपना सहयोग दिया और वे निरंतर प्रयास करते रहे और उनकी कोशिशों से ही आर्य समाज पंजाब में भी मशहूर हो गया।

आर्य समाज का हिस्सा बनने के बाद लाला लाजपत राय की ख्याति दिन पर दिन बढ़ती ही जा रही थी। यहां तक कि आर्य समाज में जो भी विशेष सम्मेलनों का आयोजन किया जाता है उन सभी का नेतृत्व लाला लाजपत राय करते थे।

यहां तक की लाला लाजपत राय को राजपूताना और संयुक्त प्रान्त में जाने वाले शिष्टमंडलों के लिए चुना गया। जिसके बाद भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी लाला लाजपत राय शिष्टमंडलों में मुख्य सदस्य के रूप में मेरठ, अजमेर, फर्रुखाबाद आदि स्थानों पर गए और अपने भाषणों से लोगों के दिल में अमिट छाप छोड़ी।

आपको बता दें कि हर कोई लाला लाजपत राय जी के भाषण सुनकर मंत्रमुग्ध हो जाता था। वहीं इस दौरान महान राजनीतिज्ञ राय जी ने भी आर्य समाजियों से मुलाकात की और इस बात का अंदाजा लगाया कि कैसे एक छोटी सी संस्था का इतनी तेजी से विकास हो रहा है और यह संस्था किस तरह लोगों के बीच अपना प्रभाव छोड़ रही है।

इस दौरान लाला लाजपत राय जी ने शिक्षा के क्षेत्र में भी कई महत्वपूर्ण काम किए। आपको बता दें कि इस दौरान आर्य समाज ने दयानंद एंग्लो वैदिक विद्यालयों की शुरुआत की।

जिसके प्रचार-प्रसार के लिए लाला लाजापत राय जी ने हर संभव कोशिश की। वहीं जब स्वामी दयानंद का साल 1883 में निधन हो गया तो, आर्य समाज के द्धारा एक शोक सभा का आयोजन किया गया जिसमें यह फैसला लिया गया था कि स्वामी दयानंद के नाम पर एक ऐसे महाविद्यालय की स्थापना की जाए, जिसमें वैदिक साहित्य, संस्कृति और हिन्दी की उच्च शिक्षा के साथ-साथ अंग्रेज़ी और पाश्चात्य ज्ञान-विज्ञान में भी छात्रों को शिक्षा दी जाए इसी तर्ज पर इस स्कूल की स्थापना की गई जिसमें लाला लाजपत राय जी ने अपना महत्पूर्ण योगदान दिया।

आर्य समाज के सक्रिय कार्यकर्ता होने के नाते उन्होंने ‘दयानंद कॉलेज’ के लिए कोष इकट्ठा करने का भी काम किया और इसका जमकर प्रचार-प्रसार किया।

इसके अलावा भारत की आजादी के महानायक लाला लाजपत राय ने लाहौर के डीएवी कॉलेज की भी स्थापना में भी अपना सहयोग दिया। उन्होंने अपने अथक प्रयास से इस कॉलेज को उस समय के भारत के सर्वश्रेष्ठ शिक्षा के केन्द्र में बदल दिया। वहीं यह कॉलेज उन युवाओं के लिए वरदान साबित हुआ।

आपको बता दें कि लाला लाजपत राय की आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद और उनके कामों के प्रति अटूट निष्ठा थी। स्वामी जी के निधन के बाद उन्होंने आर्य समाज के कार्यों को पूरा करने के लिए खुद को पूरी तरह समर्पित कर दिया था।

वहीं हिन्दू धर्म में व्याप्त कुरीतियों के खिलाफ संघर्ष, प्राचीन और आधुनिक शिक्षा पद्धति में समन्वय, हिन्दी भाषा की श्रेष्ठता और स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए आर-पार की लड़ाई आर्य समाज से मिले संस्कारों के ही परिणाम थे।

कांग्रेस के कार्यकर्ता के रूप में लाला लाजपत राय

भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी लाला लाजपत राय जब हिसार में वकालत करते थे, उसी समय से उन्होंने कांग्रेस की बैठकों में भी हिस्सा लेना शुरू कर दिया था। आपको बता दें कि साल 1885 में जब कांग्रेस का पहला अधिवेशन मुंबई में हुआ था उस समय लाला लाजपत राय बड़े उत्साह के साथ इस नए आंदोलन को देखना शुरु कर दिया था।

वहीं इसके बाद 1888 में जब अली मुहम्मद भीम जी कांग्रेस की तरफ से पंजाब के दौरे पर आए तब लाला लाजपत राय ने उन्हें अपने नगर हिसार आने का न्योता दिया। इसके साथ ही उन्होंने इसके लिए एक सार्वजनिक सभा का भी आयोजन किया।

वहीं यह कांग्रेस से मिलने का पहला मौका था जिसने इनके जीवन को एक नया राजनीतिक आधार दिया। भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी लाला लाजपत राय के अंदर बचपन से ही देशभक्ति और समर्पण की भावना थी।

आपको यह भी बता दें कि इलाहाबाद में इंडियन नेशनल कांग्रेस के सेशन के दौरान उनके ओजस्वी भाषण ने वहां मौजूद सभी लोगों का ध्यान अपनी तरफ केन्द्रित किया, जिससे उनकी लोकप्रियता और भी बढ़ गयी और इससे उन्हें कांग्रेस में आगे बढ़ने की दिशा भी मिली।

इस तरह धीरे-धीरे लाला लाजपत राय कांग्रेस के एक सक्रिय कार्यकर्ता बन गए। और फिर वे 1892 में वे लाहौर चले गए। इसके बाद उन्होंने कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन को सफल बनाने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। इसके बाद उन्हें ‘हिसार नगर निगम’ का सदस्य चुना गया और फिर बाद में सचिव भी चुन लिए गए।

वहीं साल 1906 में उनको कांग्रेस ने गोपालकृष्ण के साथ शिष्टमंडल का सदस्य भी बनाया गया।

कांग्रेस के प्रेसिडेंट के रूप में लाला लाजपत राय

आपको बता दें कि भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी लाला लाजपत राय को उनके काम को देखते हुए साल 1920 में नेशनल कांग्रेस का प्रेसिडेंट बनाया गया।

दरअसल इस दौरान उनकी चहेतों की संख्या काफी बढ़ चुकी थी और उनकी बढ़ती लोकप्रियता ने ही उन्हें नेशनल हीरो बना दिया था। भारत की आजादी के महान नायक लाला लाजपत राय जी ने अपने कामों से लोगों के दिल में अपनी एक अलग पहचान बनाई थी इसी वजह से लोग उन पर भरोसा करने लगे थे और उनके अनुयायी बन गए थे।

इसके बाद उन्होंने लाहौर में सर्वेन्ट्स ऑफ पीपल सोसाइटी का गठन किया था, जो कि नॉन-प्रॉफिट ऑर्गनाइजेशन था। वहीं उनकी बढती लोकप्रियता का प्रभाव ब्रिटिश सरकार पर भी पड़ने लगा था और ब्रिटिश सरकार को भी उनसे डर लगने लगा था और ब्रिटिशर्स उन्हें कांग्रेस से अलग करना चाहते थे लेकिन यह करना ब्रिटिश शासकों के लिए इतना आसान नहीं था।

और इसी वजह से ब्रिटिश सरकार ने उन्हें साल 1921 से लेकर 1923 तक मांडले जेल में कैद कर लिया, लेकिन ब्रिटिश सरकार को उनका यह दांव उल्टा पड़ गया क्योंकि उस समय लाला लाजपत राय की ख्याति इतनी बढ़ गई थी कि लोग ब्रिटिश सरकार के खिलाफ सड़कों पर उतरकर प्रदर्शन करने लगे जिसके बाद लोगों के दबाव में आकर अंग्रेज सरकार ने अपना फैसला बदलकर लाला लाजपत राय को जेल से रिहा कर दिया था।

वहीं जब दो साल बाद लाला लाजपत राय जेल से छूटे तो उन्होनें देश में बढ़ रही साम्प्रदायिक समस्याओं पर ध्यान दिया, दरअसल उस समय इस तरह की समस्याएं देश के लिए बड़ी खतरा बन चुकी थी।

दरअसल उस समय की परिस्थितियों में हिन्दू-मुस्लिम एकता के महत्व को उन्होंने समझ लिया था। इसी वजह से साल 1925 में उन्होंने कलकत्ता में हिन्दू महासभा का आयोजन किया, जहां उनके ओजस्वी भाषण ने बहुत से हिन्दुओं को देश के स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लेने के लिए प्रेरित किया था।

Lala Lajpat Rai original old photo
Source

लाला लाजपत राय का स्वतंत्रता संग्राम में योगदान

लाला लाजपत राय एक ऐसे व्यक्तित्व थे जिनके अंदर हर किसी को प्रभावित करने का हुनर था और उनके अंदर देश की सेवा करने का भाव बचपन से ही था अर्थात वे एक सच्चे देशभक्त थे जिनका एक मात्र उद्देश्य था, देश की सेवा करना और इसी उद्देश्य से वह हिसार से लाहौर शिफ्ट हो गए, जहां पर पंजाब हाई कोर्ट था, यहां पर उन्होंने समाज के लिए कई काम किए।

इसके अलावा उन्होंने पूरे देश में स्वदेशी वस्तुएं अपनाने के लिए एक अभियान चलाया था। वहीं जब 1905 में बंगाल का विभाजन कर दिया तो उन्होंने इसका जमकर विरोध किया और इस आंदोलन में बढ़-चढकर हिस्सा लिया।

उस समय उन्होंने सुरेंद्रनाथ बनर्जी और बिपिन चंद्र पाल जैसे आंदोलनकारियों के साथ मिलकर ब्रिटिश सरकार की दमनकारी नीतियों के खिलाफ विरोध किया। इस तरह वे लगातार देश की सेवा में तत्पर रहते थे और देश के सम्मान के लिए लगातार काम करते रहते थे।

वहीं साल 1907 में उनके द्वारा लायी गयी क्रान्ति से लाहौर और रावलपिंडी में परिवर्तन की लहर दौड़ पड़ी थी, जिसकी वजह से उन्हें 1907 में गिरफ्तार कर मांडले जेल भेज दिया गया।

लाला जी ने अपने जीवन में कई संघर्षों को पार किया है। आपको बता दें कि एक समय ऐसा भी आया कि जब लाला जी के विचारों से कांग्रेस के कुछ नेता पूरी तरह असहमत दिखने लगे।

क्योंकि उस समय लाला जी को गरम दल का हिस्सा माने जाने लगा था, जो कि ब्रिटिश सरकार से लड़कर पूर्ण स्वराज लेना चाहती थी। वहीं कुछ समय तक कांग्रेस से अलग रहने के बाद साल 1912 में उन्होंने वापिस कांग्रेस को ज्वॉइन कर लिया। फिर इसके दो साल बाद वह कांग्रेस की तरफ से प्रतिनिधि बनकर इंग्लैंड चले गए। जहां उन्होंने भारत की स्थिति में सुधार के लिए अंग्रेजों से विचार-विमर्श किया।

इस दौरान उन्होंने अपने सहयोगियों के साथ मिलकर गरम दल की विचारधारा का सूत्रपात कर दिया था और वह जनता को यह भरोसा दिलाने में सफल हो गए थे कि अगर आजादी चाहिए तो यह सिर्फ प्रस्ताव पास करने और गिड़गिड़ाने से मिलने वाली नहीं है।

वहीं इसके बाद वह अमेरिका चले गए जहां उन्होंने स्वाधीनता प्रेमी अमेरिकावासियों के सामने भारत की स्वाधीनता का पक्ष बड़ी प्रबलता से अपने क्रांतिकारी किताबों और अपने प्रभावी भाषणों से पेश किया। उन्होंने भारतीयों पर ब्रिटिश सरकार के द्धारा किए गए अत्याचारों की भी खुलकर चर्चा की।

इस दौरान अमेरिका में उन्होंने इंडियन होम रूल लीग की स्थापना की इसके अलावा एक “यंग इंडिया” नाम का जर्नल भी प्रकाशित करना शुरू किया, जिसमें भारतीय कल्चर और देश की स्वतन्त्रता की जरूरत के बारे में लिखा जाता था और इस पेपर की वजह से पूरी दुनिया में वे मशहूर होते चले गए।

असहयोग आंदोलन में लाला जी की भूमिका- Non-cooperation movement

प्रथम विश्व युद्ध के दौरान जब भारतीय सरकार ने कांग्रेस से युद्ध में सहायता की मांग की थी तो उसने यह भी वादा किया था कि युद्ध समाप्ति पर भारतीय नागरिकों को अपनी सरकार निर्माण करने का अधिकार प्रदान कर देगी।

लेकिन जैसे ही युद्ध खत्म हुआ तो भारतीय सरकार अपने वादे से मुकर गई जिसके बाद कांग्रेस में ब्रिटिश सरकार के लिए पूरी तरह से रोष व्याप्त हो गया।

इस दौरान खिलाफत आन्दोलन और जलियांवाला बाग हत्या कांड की दिल दहला देने वाली घटना के कारण असहयोग आन्दोलन किया गया जिसमें पंजाब से लाला लाजपत राय जी के नेतृत्व की कमान संभाली।

वहीं धीरे-धीरे इनके नेतृत्व में पंजाब में इस आन्दोलन ने बहुत बड़ा रुप ले लिया जिसकी वजह से उन्हें शेर-ए-पंजाब कहा जाने लगा। वहीं इसके बाद लाल जी के इनके नेतृत्व में ही सविनय अवज्ञा आन्दोलन (असहयोग आन्दोलन) के सम्बंध में कांग्रेस की पंजाब में बैठक भी हुई। जिसकी वजह से इन्हें अन्य सदस्यों के साथ सार्वजनिक सभा करने के कारण झूठे केस में गिरफ्तार कर लिया गया।

इसके बाद 7 जनवरी को इनके खिलाफ केस न्यायालय में पेश किया तो इन्होंने न्यायालय की प्रक्रिया में भाग लेने से यह कहते हुये मना कर दिया कि इन्हें ब्रिटेन की न्याय प्रणाली में कोई विश्वास नहीं है अतः इनकी तरफ से न तो कोई गवाही हुई और न ही किसी वकील के द्वारा जिरह पेश की गयी।

इस गिरफ्तारी के बाद लाला लाजपत राय को दो साल की सजा सुनायी गई। लेकिन जेल की परिस्थितियों में लाला जी का स्वास्थ्य खराब हो गया। लगभग 20 महीने की सजा काटने के बाद इन्हें खराब स्वास्थ्य के कारण आजाद कर दिया गया।

लाला जी के जीवन का आखिरी आंदोलन साइमन कमीशन का विरोध

आपको बता दें कि साल 1928 में ब्रिटिश सरकार द्वारा साइमन कमीशन लाए जाने के बाद उन्होंने इसका जमकर विरोध किया और कई रैलियों का आयोजन किया और भाषण दिए। दरअसल साइमन कमीशन भारत में संविधान के लिए चर्चा करने के लिए एक बनाया गया एक कमीशन था, जिसके पैनल में एक भी भारतीय सदस्य को शामिल नहीं किया गया।

वहीं लाला जी इस साइमन कमीशन का विरोध शांतिपूर्वक करना चाहते थे, उनकी यह मांग थी कि अगर कमीशन पैनल में भारतीय नहीं रह सकते तो ये कमीशन अपने देश वापस लौट जाए। लेकिन ब्रिटिश सरकार इनकी मांग मानने को तैयार नहीं हुई और इसके उलट ब्रिटिश सरकार ने लाठी चार्ज कर दिया, जिसमें लालाजी बुरी तरह से घायल हो गए और फिर उनका स्वास्थ कभी नही सुधरा।

लाला लाजपत राय का निधन – Lala Lajpat Rai Death

वहीं इस घटना के बाद लाला लाजपत राय जी पूरी तरह से टूट गए थे और उनका स्वास्थ्य लगातार बिगड़ता चला गया और फिर 17 नवंबर 1928 स्वराज्य का यह उपासक हमेशा के लिए सो गए। इस तरह भारत की आजादी के महान नायक लाला लाजपत राय जी का जीवन कई संघर्षों की महागाथा है।

वहीं उन्होंने अपनी जीवन में कई लड़ाईयां लड़कर देश की सेवा की है और गुलाम भारत को स्वतंत्रता दिलवाने में मद्द की है। लाला लाजपत राय की देश के लिए दी गई कुर्बानियों को हमेशा-हमेशा याद किया जाएगा।

लाला लाजपत राय लिखित मुख्य किताबें – Lala Lajpat Rai Books

भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी लाला लाजपत राय एक महान विचारक होने के साथ-साथ एक महान लेखक भी थे। इन्होंने अपने कार्यों और विचारों के साथ ही अपने लेखन कार्यों से भी लोगों का मार्गदर्शन किया। इनकी कुछ पुस्तक निम्नलिखित है-

  • “हिस्ट्री ऑफ़ आर्य समाज”
  • इंग्लैंड’ज डेब्ट टू इंडिया:इंडिया
  • दी प्रॉब्लम ऑफ़ नेशनल एजुकेशन इन इंडिया
  • स्वराज एंड सोशल चेंज,दी युनाइटेड स्टेट्स ऑफ़ अमेरिका:अ हिन्दू’स इम्प्रैशन एंड स्टडी”
  • मेजिनी का चरित्र चित्रण (1896)
  • गेरिबाल्डी का चरित्र चित्रण (1896)
  • शिवाजी का चरित्र चित्रण (1896)
  • दयानन्द सरस्वती (1898)
  • युगपुरुष भगवान श्रीकृष्ण (1898)
  • मेरी निर्वासन कथा
  • रोमांचक ब्रह्मा
  • भगवद् गीता का संदेश (1908)

लाला लाजपत राय के विचार – Lala Lajpat Rai Quotes

  • “मनुष्य अपने गुणों से आगे बढ़ता है न कि दूसरों कि कृपा से”।
  • “मेरे शरीर पर पड़ी एक-एक लाठी ब्रिटिश साम्राज्य के कफन में कील साबित होगी”।
  • “मेरा विश्वास है कि बहुत से मुद्दों पर मेरी खामोशी लम्बे समय में फायदेमंद होगी”।

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हिंदी दिवस पर निबंध और जानकारी | Hindi Diwas essay

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Hindi Diwas essay

हमारे भारत देश में हर साल हिंदी दिवस – Hindi Diwas 14 सितम्बर को ही मनाया जाता है, हिंदी भाषा के इतिहासिक पलो को याद कर लोग इस दिवस को मनाते है। 14 सितम्बर 1949 को ही हिंदी को देवनागरी लिपि में भारत की कार्यकारी और राजभाषा का दर्जा अधिकारिक रूप से दिया गया था और तभी से देश में 14 सितम्बर का दिन हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है। इसी दिनविशेष पर आपके लिए हिंदी भाषा पर निबंध / Hindi Diwas essay और जानकारी:

Hindi Diwas Essay
National Hindi day

हिंदी दिवस का महत्व और निबंध – Hindi Diwas essay in Hindi

हिंदी दिवस – Hindi Diwas भारत में स्कूल, कॉलेज, ऑफिस, संस्थाओ कार्यालयों के अधिकारी, प्राइवेट ऑफिस के अधिकारी और शैक्षणिक संस्थाए बड़ी धूम-धाम से मनाती है। जिसमे विविध कार्यक्रमों का आयोजन और हिंदी से संबंधित स्पर्धाओ का आयोजन किया जाता है, जैसे की हिंदी कविताये, कहानी लेखन, Hindi Diwas Essay / निबंध लेखन, हिंदी भाषा के महत्त्व, उपयोग और कुछ रोचक तथ्यों के बारे में लोगो को बताया जाता है।

भारत में ज्यादातर लोग बातचीत करते समय हिंदी भाषा को ही प्राधान्य देते है, बचपन से ही हमें अपने घरो में हिंदी भाषा का ज्ञान दिया जाता है। हिंदी दुनिया में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा में से एक है। हिंदी भाषा कई दुसरे देशो में भी बोली जाती है जैसे की पकिस्तान, नेपाल, मॉरिशस, बंगलादेश, सूरीनाम, इत्यादि। हिंदी एक ऐसी भाषा है जिसका उपयोग करोड़ों लोग अपनी मातृभाषा के रूप में करते है।

हिंदी दिवस – Hindi Diwas पर भारत के राष्ट्रपति द्वारा विविध अवार्ड और पुरस्कार भी दिये जाते है, नयी दिल्ली के विज्ञान भवन में हिंदी के क्षेत्र में अमूल्य कामगिरी करने वाले लोगो को यह पुरस्कार दिये जाते है।

इसके साथ ही कई डिपार्टमेंट, मिनिस्ट्री और राष्ट्रीयकृत बैंको को भी राजभाषा अवार्ड दिया जाता है। हिन्दी दिवस पर दिये जाने वाले दो अवार्ड का नाम गृह मंत्रालय द्वारा 25 मार्च 2015 को बदला गया था।

जिसमे राजीव गांधी राष्ट्रिय ज्ञान-विज्ञान मौलिक पुस्तक लेखन पुरस्कार को बदलकर राजभाषा गौरव पुरस्कार और इंदिरा गांधी राजभाषा पुरस्कार को बदलकर राजभाषा कीर्ति पुरस्कार रखा गया था।

हिंदी हमारी – Hindi Diwas राजभाषा है और हमें उसका सम्मान करना चाहिये। ऐसा लगता है की आज आर्थिक और तकनिकी विकास के साथ-साथ हिंदी भाषा अपने महत्त्व को खोती चली जा रही है। देखने में आता है की आज हर कोई सफलता पाने के लिये इंग्लिश भाषा को सीखना और बोलना चाहता है, क्योकि हम देखते है की आज हर जगह इंग्लिश भाषा की ही मांग शुरू है। ये सच है लेकिन हमें अपनी मातृभाषा और राजभाषा को कभी नही भूलना चाहिये।

भले ही आज इंग्लिश भाषा का ज्ञान होना जरुरी है लेकिन सफलता पाने के लिये हमें अपनी राजभाषा को कभी नही भूलना चाहिये। क्योकि हमारे देश की भाषा और हमारी संस्कृति हमारे लिये बहुत मायने रखती है।

किसी भी आर्थिक रूप से प्रगत देश की राजभाषा वहाँ के लोगो के साथ-साथ हमेशा तेज़ी से बढती जाती है क्योकि वे लोग जानते है की किसी भी बाहरी देश में उनकी राजभाषा और संस्कृति ही उनकी पहचान बनने वाली है। उसी तरह से हम भारतीयों को भी हमारी राजभाषा को महत्त्व देना चाहिये। क्योकि हिंदी भाषा ही हमारे महान प्राचीन इतिहास को उजागर करती है और वही हमारी पहचान है।

देश में हर साल हिंदी दिवस मनाने की बहुत जरुरत है, यह जरुरी है की हम अपनी राजभाषा को सम्मान दे और हमारी अगली पीढ़ी भी विदेशी भाषा की बजाये हमारी राजभाषा को जाने।

हिंदी दिवस केवल इसलिए नही मनाया जाता की वह हमारी राजभाषा है बल्कि इसलिए भी मनाया जाता है क्योकि सदियों से हिंदी ही हमारी भाषा रही है और हमें हमारी राजभाषा का सम्मान करना चाहिये और हमें अपनी राजभाषा पर गर्व होना चाहिये।

दुसरे देशो में भी हिंदी भाषा बोलते समय हमें शर्मिंदगी महसूस नही होनी चाहिये बल्कि हिंदी बोलते समय हमें गर्व होना चाहिये।

आज-कल हम देखते है की भारतीय लोग हिंदी की बजाये इंग्लिश को ज्यादा महत्त्व देने लगे है क्योकि अभी कार्यालयीन जगहों पर इंग्लिश भाषा का महत्त्व बढ़ चूका है। ऐसे समय में साल में एक दिन हिंदी दिवस मनाना लोगो में हिंदी भाषा के प्रति गर्व को जागृत करता है और लोगो को याद दिलाता है की हिंदी ही हमारी राष्ट्रभाषा है।

Hindi Diwas देश की धरोहर होती है, जिस तरह हम तिरंगे को सम्मान देते है उसी तरह हमें हमारी राजभाषा को भी सम्मान देना चाहिये। हम खुद जबतक इस बात को स्वीकार नही करते तबतक हम दूसरो को इस बात पर भरोसा नही दिला सकते।

हिंदी हमारे भारत देश की मातृभाषा है। हमें गर्व होना चाहिये की हम हिंदी भाषी है। हमारे देश की राजभाषा का सम्मान करना हम नागरिको का परम कर्तव्य है। हम सब की धार्मिक विभिन्नताओ के बीच एक हमारी राजभाषा ही है जो एकता का आधार बनती है।

हिंदी दिवस एक ऐसा अवसर है जहाँ हम भारतीयों के दिलो में हिंदी भाषा के महत्त्व को पंहुचा सकते है और उन्हें हिंदी भाषा के महत्त्व को बता सकते है। इस समारोह से भारतीय युवाओ के दिलो-दिमाग में हिंदी भाषा का प्रभाव पड़ेंगा और वे भी बोलते समय हिंदी भाषा का उपयोग करने लगेंगे।

हमें बड़े गर्व ओर उत्साह के साथ हर साल हिन्दी दिवस मनाना चाहिये और स्कूल, कॉलेज, सोसाइटी और कार्यालयों में होने वाली विविध गतिविधियों में हिस्सा लेना चाहिये। ताकि हम लोगो में हिंदी भाषा के प्रति प्रेम को उजागर कर सके और हिंदी के महत्त्व को बता सके।

हिन्दी दिवस पर निबंध २ | Hindi Diwas essay 2

हमारे देश में हर साल 14 सितंबर को हिन्दी दिवस मनाया जाता है। आज की युवा पीढ़ी को हिन्दी भाषा के महत्व को समझाने और इसके प्रति जागरूक करने के लिए इस मौके पर कई तरह के कार्यक्रम का भी आयोजन किया जाता है।

जिसमें निबंध-लेखन प्रतियोगिता आदि भी आयोजित करवाई जाती हैं, इसलिए आज हम आपको अपने इस लेख में हिन्दी दिवस पर निबंध उपलब्ध करवा रहे हैं, जिसका इस्तेमाल आप अपनी जरूरत के मुताबिक कर सकते हैं, आइए जानते हैं हिन्दी दिवस पर निबंध –

हिन्दी दिवस पर निबंध 2

प्रस्तावना

हिन्दी भाषा, हम सभी हिन्दुस्तानियों की पहचान है और हमारे देश की राष्ट्रभाषा है। हिन्दी एक बेहद सरल और सुगम भाषा है, जिसके माध्यम मे आसानी से संवाद किया जा सकता है। इसलिए इस भाषा को जनमानस की भाषा भी कहा जाता है वहीं यह हमारी राष्ट्रीय एकता की प्रतीक भी मानी जाती है।

हिन्दी, दुनिया की सबसे समृद्ध, प्राचीन, और सरल भाषा है साथ ही दुनिया की प्रमुख भाषाओं में से एक है। हिन्दी, हमारी भारतीय संस्कारों और संसकृति का अनूठा प्रतिबिंब है। इसके साथ ही हम सभी हिन्दुस्तानियों के सम्मान और स्वाभिमान की भाषा है, जिसने विश्व में भारतीयों को एक नई पहचान दिलवाई है।

वहीं इस भाषा के महत्व को आज की युवा पीढ़ी को बताने के लिए हर साल 14 सितंबर को हिन्दी दिवस के तौर पर मनाया जाता है ।

हिन्दी दिवस कब मनाया जाता है?

हमारे देश में 14 सितंबर को हर साल हिन्दी दिवस के रुप में मनाया जाता है। इस दिन साल 1949 में हिन्दी भाषा को राष्ट्रभाषा का दर्जा मिला था, इसलिए तब से लेकर आज तक इस दिन को हिन्दी दिवस के रुप में मनाया जा रहा  है।

हिन्दी के महत्व को समझने के लिए और इस भाषा के प्रति सम्मान व्यक्त करने के लिए इस दिवस को बड़े धूमधाम से मनाया जाता है।

हिन्दी की सहजता और सुगमता के चलते इसे राष्ट्रभाषा का दर्जा दिया गया है, क्योंकि न सिर्फ यह आसानी से समझ में आ जाती है बल्कि, इसके माध्यम से कोई भी व्यक्ति अपनी भावनाओं को आसानी से व्यक्त कर सकता है। हिन्दी एक ऐसी भाषा है, जो कि सभी भाषाओं का समावेश है, अर्थात यह भाषा अन्य भाषाओं को अपने साथ लेकर चलती है साथ ही लोगों को आपस में जोड़ने का काम भी करती है।

इस भाषा से भारतीयों का अलग तरह का जुड़ाव है, यह भाषा भारत की राष्ट्रीय एकता की प्रतीक भी मानी जाती है। हिन्दी भाषा सभी भारतीयों के लिए बेहद महत्वपूर्ण है, इसलिए देश के हर स्कूल, कॉलेज में हिन्दी भाषा अनिवार्य रुप से पढ़ाई जाती है।

हिन्दी दिवस क्यों मनाया जाता है?

हिन्दी हमारे देश की राष्ट्रीय भाषा है, इस भाषा के प्रति सम्मान प्रकट करने एवं लोगों को हिन्दी के प्रति जागरूक करने के उद्देश्य से हर साल 14 सितंबर को हिन्दी दिवस मनाया जाता है ।

आपको बता दें कि  इस दिन साल 1949 में हिन्दी भाषा को राषभाषा का दर्जा मिला था,  इस दिन भारत की संवैधानिक सभा में राष्ट्रीय भाषा हिन्दी को देवनागिरी लिपि में लिखा गया था और यह निर्णय लिया गया था कि हिन्दी की खड़ी भाषा ही देश की राजभाषा होगी।

14 सितंबर के दिन ही हिन्दी को अंग्रेजी के साथ भारतीय गणराज्य की अधिकारिक भाषा के तौर पर स्वीकार किया गया था, तब से लेकर आज तक इस दिन को हिन्दी दिवस के रूप में मनाया जाने लगा।

दरअसल, 15 अगस्त, 1947 को जब हमारा भारत देश अंग्रेजों की गुलामी से आजाद हुआ, उस दौरान हमारे विविधताओं वाले देश भारत में अलग-अलग तरह की भाषाएं बोली जाती थीं। ऐसे में देश की राष्ट्रभाषा चुनना उस वक्त का सबसे गंभीर और अहम मुद्दों में से एक था।

इसके बाद काफी विचार विमर्श करने के बाद हिन्दी और अंग्रेजी को नई राष्ट्र भाषा के रुप में चुना गया। इसके साथ ही भारतीय गणराज्य की संवैधानिक सभा में देवनागिरी लिपी में लिखी गई हिन्दी को राष्ट्र की अधिकारिक भाषा के तौर पर स्वीकार किया गया था ।

वहीं 14 सितंबर को हिन्दी को राजभाषा का दर्जा मिलने के कारण इसके महत्व को समझते हुए सर्वप्रथम देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू जी ने इसे हिन्दी दिवस के रुप में मनाने की इच्छा जताई थी, जिसके बाद से 14 सितंबर को हिन्दी दिवस के रुप में हमारे देश में सम्मानजनक रुप से मनाया जाता है। आपको बता दें कि सबसे पहले हिन्दी दिवस 14 सितंबर, 1953 में मनाया गया था।

भारतीय संविधान में अनुच्छेद 343 के तहत हिन्दी भाषा को अधिकारिक भाषा के रुप में स्वीकार किया गया था, जिसके बाद से हिन्दी, अपनी सहजता और सरलता के कारण जनमानस की प्रमुख भाषा बन गई और इसकी उपयोगिता एवं महत्व बढ़ता चलता गया। वहीं देश के करीब 75 फीसदी लोग हिन्दी लिखते, पढ़ते, बोलते और समझते हैं। वहीं हिन्दी भाषा उनके कामकाज की भी प्रमुख भाषा है।

वहीं अब हिन्दी भाषा न सिर्फ हम सभी हिन्दुस्तानियों की पहचान है, बल्कि हमारे देश का मानऔर अभिमान भी है। सभी भारतीय गर्व के साथ इस भाषा को बोलते हैं।

हिन्दी दिवस कैसे मनाया जाता ?

हमारे देश में 14 सितंबर को हर साल हिन्दी दिवस के रुप में बेहद हर्षोल्लास और धूमधाम से मनाया जाता है । इस मौके पर सरकारी कार्यालयों, स्कूल, कॉलेजों आदि में हिन्दी भाषा के प्रति लोगों को जागरूक करने को लेकर कई तरह के कार्यक्रमों का भी आयोजन किया जाता है।

इसके साथ ही इस मौके पर अपनी राष्ट्र भाषा के महत्व को बताया जाता है । हिन्दी दिवस के मौके पर हिन्दी निबंध कविता, कहानी, लेखन, समेत तमाम तरह की प्रतियोगिताओं का भी आयोजन किया जाता है, ताकि आज की युवा पीढ़ी हिन्दी के महत्व को समझ सके और अपनी राष्ट्रभाषा का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल करे। इसके साथ ही हिन्दी दिवस के दिन भारत के राष्ट्रपति के द्धारा, हिन्दी के क्षेत्र में उत्कृष्ट काम करने वाले महान निबंधकार, साहित्यकार, लेखक आदि को पुरस्कृत भी किया जाता है।

उपसंहार

अंग्रेजी की बढ़ती जरूरत के चलते आज की युवा पीढ़ी हिन्दी को अपनी राष्ट्रभाषा की तरह तवज्जों नहीं दे पा रहे हैं । इसके साथ ही आज की युवा पीढ़ी अंग्रेजी भाषा को अपना स्टेटस सिंबल मानने लगी हैं, एवं हिन्दी बोलना अपना अपमान समझने लगी है।

किसी संस्थान, बड़ी कंपनी, होटल, अंग्रेजी मीडियम स्कूलों में हिन्दी बिल्कुल नामात्र के लिए बोली जा रही है, जिसके चलते लोगों का ध्यान हिन्दी से हटता जा रहा है। लेकिन हम सभी भारतीयों का दायित्व है कि हम सभी अपनी राष्ट्रभाषा का सम्मान करें और इसे बोलने में हिचकिचाएं नहीं बल्कि गर्व महसूस करें।

हिन्दी दिवस पर निबंध ३ | Hindi Diwas essay 3

प्रस्तावना

हमारे देश में हर साल हिन्दी भाषा के महत्व के प्रति लोगों को जागरूक करने के उद्देश्य से 14 सितंबर को हिन्दी दिवस के रुप में मनाया जाता है। हिन्दी भाषा, भारतीय संस्कृति एवं संस्कारों को प्रदर्शित करती है, इसके साथ ही यह हर हिन्दुस्तानी की दिल की धड़कन है।

यह भाषा हमारे देश की राष्ट्रीय एकता का भी प्रतीक मानी जाती है, क्योंकि हमारे देश में कई अलग-अलग पंथ, जाति और लिंग के लोग रहते हैं, जिनके खान-पान, पहनावा, रहन-सहन, एवं बोली आदि में काफी अंतर है, लेकिन फिर भी ज्यादातर लोगों द्धारा देश में हिन्दी भाषा की बोली जाती है।

इस तरह हिन्दी भाषा हम सभी हिन्दुस्तानियों को एक-दूसरे से जोड़ने का काम करती है। हिन्दी साहित्य, विश्व के सबसे समृद्ध और प्राचीन साहित्यों में से एक है। वहीं हिन्दी भाषा की गरिमा और इसके महत्व को बड़े-बड़े साहित्यकारों ने कविताओं एवं अपनी रचनाओं आदि के माध्यम से बताया है। इस भाषा के प्रति सम्मान व्यक्त करने के लिए हर साल हिन्दी दिवस मनाया जाता है।

हिन्दी दिवस की शुरुआत

14 सितंबर, 1949 को हिन्दी भाषा को देश की राजभाषा का दर्जा दिया गया था। इस दिन भारत की संविधान सभा में देवनागिरी लिपि में लिखी गई हिन्दी भाषा को अधिकारिक भाषा के तौर पर स्वीकार किया गया था,

इसलिए तब से लेकर आज तक हमारे देश भारत में इस दिन को हिन्दी दिवस के रुप में मनाया जाने लगा है। हिन्दी दिवस को पूरे देश में काफी धूमधाम से मनाया जाता है । इस दिन लोग अपनी मातृभाषा के प्रति प्यार और सम्मान को दर्शाते हुए इसे हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं एवं अपनी राष्ट्रभाषा के महत्व को समझते हैं ।

हिन्दी दिवस मनाने के मुख्य उद्देश्य

  • हिन्दी के प्रति लोगों में जागरूकता पैदा करना।
  • अपनी राष्ट्रभाषा के प्रति सम्मान की भावना पैदा करना।
  • आज की युवा पीढ़ी को हिन्दी के महत्व को समझाना।
  • अपनी मातृभाषा की रक्षा और उसका विकास करना।
  • हिन्दी की तरफ लोगों का ध्यान आर्कषित करना।
  • हिन्दी भाषा को उचित दर्जा दिलवाना।

 हिन्दुस्तान की शान है हिन्दी

हिन्दी, हम सभी हिन्दुस्तानियों की पहचान है। यह भाषा हिन्दुस्तान की शान, मान और अभिमान है। हर हिन्दुस्तानी इस भाषा को गर्व के साथ बोलता है। हिन्दी एक ऐसी भाषा है, जो बाकी सभी भाषाओं को अपने साथ लेकर चलती है। यह भाषा, सभी भाषाओं का समावेश है।

हिन्दी भाषा ने, न सिर्फ अंग्रेजी को बल्कि, फारसी और उर्दू को भी बड़ी ही आत्मीयता से अपनाया है। वहीं यह बेहद सरल और सहज भाषा है, जिसके माध्यम से हर हिन्दुस्तानी अपनी बात को भावनात्मक तरीके से व्यक्त कर पाता है।

इसलिए हिन्दी को हिन्दुस्तान की राष्ट्रभाषा एवं मातृभाषा का दर्जा दिया गया है। यह भाषा हमारे देश का गौरव है, जिसने विश्व स्तर पर में हम सभी भारतवासियों को एक नई पहचान दिलवाई है। यह भाषा, सार्वधिक बोली जाने वाली पूरे विश्व की तृतीय भाषा है ।

हिन्दी भाषा का महत्व

हिन्दी भाषा का हम सभी भारतीयों के लिए विशेष महत्व है। हिन्दी साहित्य विश्व का सबसे समृद्ध एवं प्राचीन साहित्य है। इस भाषा के माध्यम से बड़े-बड़े विचारकों, साहित्यकारों, और उपदेशकों ने न सिर्फ अपने महान विचारों को लोगों तक पहुंचाया है, बल्कि अपनी विचारों की गंभीरता को बड़े ही आसानी से लोगों तक पहुंचाने की भी कोशिश की है।

अंतराष्ट्रीय स्तर पर भी हिन्दी भाषा को काफी महत्व दिया गया है, इस भाषा को न सिर्फ भारत में बल्कि कई अन्य देशों के लोगों द्धारा भी काफी पसंद किया जाता है। दुनिया में कई लोग इस भाषा को सीखने और बोलने में काफी दिलचस्पी लेते हैं, यहां तक की इस भाषा के लिए क्लासेस भी लेते हैं।

वर्तमान में क्यों पिछड़ रही है हिन्दी

आजकल हिन्दी भाषा के प्रति लोगों की दिलचस्पी कम होती जा रही है, आज की युवा पीढ़ी अंग्रेजी बोलना अपना स्टेटस मानते हैं, जबकि हिन्दी भाषा का प्रयोग करना अपना अपमान समझते हैं। इसके साथ ही हिन्दी बोलने वाले लोगों को आजकल उतनी तवज्जों नहीं मिलती है, जितनी की अंग्रेजी में बात करने वालों को सम्मान और इज्जत दी जाती है।

हिन्दी हमारी मातृभाषा जरूर है, लेकिन वर्तमान परिवेश में इसकी महत्वता दिन पर दिन कम होती जा रही है। दरअसल, आजकल हर क्षेत्र में बढ़ती अंग्रेजी की डिमांड के चलते हिन्दी भाषा का महत्व कम होता जा रहा है।

आजकल करियर बनाने के लिए सबसे पहले अंग्रेजी भाषा पर कमांड होना अत्यंत है, क्योंकि किसी भी बड़ी कंपनी, बड़े होटल, संस्थान या फिर स्कूल, कॉलेजों में हर जगह अंग्रेजी भाषा का ही प्रचलन है।

इसलिए आजकल के अभिभावक भी अपने बच्चों के सफल करियर और अंग्रेजी भाषा की बढ़ती जरूरत के चलते अपने बच्चों का दाखिला भी इंग्लिश मीडियम स्कूलों में करवा रहे हैं और इंग्लिश को ही तवज्जो दे रहे हैं, जिसके चलते हिन्दी का प्रचलन कम होता जा रहा है। इसलिए, अपनी राष्ट्र भाषा हिन्दी के महत्व को समझाने और इसके प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए 14 सितंबर को हिन्दी दिवस मनाया जाता है।

उपसंहार

आजकल अंग्रेजी भाषा की बढ़ती जरूरत के चलते हिन्दी भाषा की तरफ कम ध्यान दिया जा रहा है। इसलिए गुम हो रही हिन्दी को बचाने के लिए हम सभी हिन्दुस्तानी मिलकर हिन्दी दिवस को मनाते हैं।

हिन्दी दिवस मनाने का उद्देश्य सच्चे अर्थों में तभी सार्थक होगा, जब हम सभी भारतीय हिन्दी भाषा का सम्मान करेंगे एवं इसकी रक्षा करने का संकल्प लेंगे तभी हमारा देश विकसित देशों में शामिल हो सकेगा और सही तरीके से विकास कर सकेगा, क्योंकि किसी भी देश की राष्ट्रभाषा उस देश के विकास का महत्वपूर्ण आधार मानी जाती है।

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हिंदी दिवस पर स्पीच / भाषण | Hindi Diwas Speech

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Hindi Diwas Speech

हिंदी हमारा अभिमान, हिंदी हर भारतवासी का स्वाभिमान।

हिन्दी भाषा भारतीय संस्कृति की विरासत है और राष्ट्रीय एकता की प्रतीक है इसलिए अपनी संस्कृति को बढ़ावा देने और इस सुंदर, सरल और सहज भाषा पर जोर देने के लिए हर साल 14 सितंबर को हिन्दी दिवस – Hindi Diwas मनाया जाता है।

भारत विविधताओं का देश है यहां लोगों की बोलचाल, खान-पान,पहनावा में काफी अंतर है लेकिन सभी भारतीय एक है और हिन्दी के प्रति उनका एक अलग लगाव है यही नहीं हिन्दी भाषा देश भक्ति की भावना को भी लोगों में जगाती है।

Hindi Diwas Speech
Hindi Diwas Speech

हिंदी दिवस पर स्पीच / भाषण – Hindi Diwas Speech

आदरणीय मुख्य अतिथि, प्रिय स्टाफ सदस्यों, सभी आगंतुकों और इस सभा में बैठे भाई-बहनों !

Hindi Diwas – हिन्दी दिवस के इस खास मौके पर इस समारोह का हिस्सा बनने के लिए आप सभी का धन्यवाद। हिन्दी दिवस को और भी ज्यादा खास मनाने और अपनी मातृभाषा के महत्व को समझने के लिए हिन्दी दिवस मनाया जाता है।

हिन्दुस्तान के हिन्दी भाषी क्षेत्रो में हिन्दी दिवस हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है लेकिन हिन्दी दिवस मनाने की आवश्यकता क्यों है और भारतीय के जीवन में क्या है इसका महत्व मै आपको अपने भाषण के जरिए बताऊंगा/ बतांऊंगी।

जैसा कि हम सभी जानते हैं कि हिन्दी भाषा हमारे देश की राष्ट्रभाषा है और भारत में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली सरल, सुगम और सुंदर भाषा है जिससे हर व्यक्ति को इस भाषा में संवाद करने में तो आसानी होती ही है साथ ही आपस में जुड़ाव होता है और उनके आपसी संबंध अच्छे बनते हैं क्योंकि भाषा से ही किसी शख्स के व्यक्तित्व का अंदाजा लगाया जा सकता है।

हिन्दी भाषा न सिर्फ भारतीय संस्कृति को बढ़ावा देती है बल्कि हम भारतीय के शीतल ह्दय में प्रवाहित होती है और हिन्दी भाषा देश की धड़कनों से जुड़ी भाषा है इसलिए ये हिन्दी भाषा देश का मान ही नहीं बल्कि अभिमान है।

हम सब का अभिमान हैं हिंदी, भारत देश की शान हैं हिंदी

पूरे भारत में 14 सितंबर को हिन्दी दिवस मनाया जाता है। 14 सितंबर, 1949 को भारत की संवैधानिक सभा में राष्ट्रीय भाषा हिन्दी को देवनागिरी लिपि में लिखा गया था और हिन्दी को भारत गणराज्य की अधिकारिक भाषा भी घोषित किया गया था तब से लेकर इस दिन को हिन्दी दिवस – Hindi Diwas के रूप में मनाया जाने लगा।

आपको बता दें कि हिन्दी भाषा को भारत की अधिकारिक भाषा के रूप में इस्तेमाल करने का फैसला भारत के संविधान में  26 जनवरी, 1950 से प्रभाव में आया है। भारतीय संविधान के मुताबिक, देवनागिरी लिपि में लिखित हिन्दी भाषा को पहले भारत की अधिकारिक भाषा के रुप में अनुच्छेद 343 के तहत अपनाया गया था।

जिसके बाद हिन्दी भाषा जनसंवाद का माध्यम बनती चली गई और इसकी उपयोगिता लगातार बढ़ती चली गई। क्योंकि किसी भी भाषा को राष्ट्रभाषा बनने के लिए उसमें सहजता और सुगमता का होना बेहद जरूरी है जब तक भाषा आसान नहीं होगी और सुनने- बोलने में अच्छी नहीं लगेगी तब लोग इसका इस्तेमाल करने से कतराएंगे हालांकि हिन्दी भाषा बेहद आसान है और हर किसी को अपनी तरफ आर्कषिक करती है। यही वजह है कि इसे भारत में राष्ट्र भाषा का दर्जा दिया गया।

हिन्दी राष्ट्रभाषा ही नहीं बल्कि राष्ट्रीय एकता की भी प्रतीक है। हिन्दी साहित्य के बड़े-बड़े कवि हुए जिन्होंने कई ऐसी रचनाएं की जो मानव जीवन के लिए अंत्यंत महत्वपूर्ण और उपयोगी है इसके अलावा वे युवाओं में नए विचारों को जन्म देती हैं उन्होनें हिन्दी भाषा को मुख्य धारा से जोड़ने की भी कोशिश की।

हर भारतीय अपनी भावनाओं को हिंदी के माध्यम से अच्छी तरह से उजागर कर सकते हैं साथ ही जब भारतीय हिंदी में संवाद करते है या अपनी बात दूसरे तक आसानी से पहुंचा देते है इसके साथ ही लोगों में आपस में जुड़ाव भी पैदा होता है।

भारतीय संस्कृति की विरासत को संजोने में आज भी कई लोग दिलचस्पी रखते हैं यही वजह है कि हिन्दी दिवस – Hindi Diwas पर ऐसे कार्यक्रमों का मंचन करवाया जा रहा है और हिन्दी के प्रति लोगों जागरूक किया जा रहा है। जिससे हिन्दी भाषा के महत्व को बढ़ावा मिल सके।

हर हिन्दुस्तानियों के अभिमान की भाषा हिन्दी का महत्व धीरे-धीरे कम होता जा रहा है जबकि हिन्दी सबसे ज्यादा बोले जाने वाली भाषा है।

दुर्भाग्य से आज की युवा पीढ़ी हिन्दी भाषा में बातचीत करना अपना अपमान समझती है। इसके पीछे की सबसे बड़ी वजह यह है कि हर क्षेत्र में सफलता पाने के लिए अंग्रेजी भाषा का ज्ञान होना बेहद जरूरी है यहां तक की नौकरी पाने के लिए इंटरव्यू हों या फिर, स्कूल, कॉलेज, कॉरेपोरेट सेक्टर हों, ऑफिस मीटिंग्स हों, सभी में ज्यादातर इंग्लिश का ही इस्तेमाल होने लगा है फिलहाल इंग्लिश आज की जरूरत बन गई है।

इसलिए युवा पीढ़ी इंग्लिश की तरफ प्रभावित हो रही है लेकिन सिर्फ जरूरत की वजह से तो हम अपनी मातृभाषा को तो नहीं भूल सकते या फिर आप जरा खुद सोचिए कि अगर आप अंग्रेजी बोलने में उतने सक्षम नहीं है और आपको हिन्दी की जानकारी है तो आप प्रवाह में बोलते-बोलते हिन्दी का इस्तेमाल कर सकते हैं वहीं अगर आपको हिन्दी भाषा की भी जानकारी नहीं होगी तो आप ऐसे में अपनी बात भी नहीं कह पाएंगे क्योंकि संवाद करने में भाषा अपना महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यही वजह है कि स्कूली पाठ्यक्रम में हिन्दी विषय को जोड़ा गया है जिससे आज के युवाओं में हिन्दी की समझ हो सके।

हर राष्ट्र की अपनी भाषा होती है जो उस देश का मान बढ़ाती है वैसे ही हिन्दुस्तान की हिन्दी भाषा देश भी देश की शान बढ़ाती है और लोगों में अपनत्व भी भावना जाग्रत करती है।

हिन्दी भाषा से न सिर्फ देशवासियों को एकजुट करने में मद्द की है बल्कि देश को एक अनूठी पहचान भी दिलवाई है इसलिए केन्द्र सरकार भी अपनी भाषा के मूल्य को समझते हुए हिन्दी भाषा पर ज्यादा जोर दे रही है।

हिंदी हिंदुस्तान की राष्ट्र भाषा  ही नहीं बल्कि राष्ट्रीय एकता की प्रतीक और भारतीयों की पहचान भी है, इसलिए हिन्दी दिवस पर क्यों न हिंदी भाषा के प्रति और ज्यादा सजग होने की प्रतिज्ञा ली जाए और इसके महत्व को ज्यादा से ज्याादा लोगों तक पहुंया जाए।

इसके साथ ही हिन्दी  की सहजता और सुगमता के प्रति अनूठा भाव पैदा किया जाए। जिससे हिन्दी भाषा का महत्व बना रहे और ज्यादा से ज्यादा लोग हिन्दी के प्रति जागरूक हो सकें।

हिंदी दिवस पर हमने ठाना है, लोगो में हिंदी का स्वाभिमान जगाना है

धन्यवाद ।

हिन्दी दिवस पर भाषण 2 – Hindi Diwas Speech 2

हिन्दी, हमारे देश की राष्ट्र भाषा है, इसके प्रति सम्मान प्रकट करने एवं इसकी अहमियत को समझने के लिए हर साल 14 सितंबर को पूरे भारतवर्ष में हिन्दी दिवस के रुप में मनाया जाता है। आजादी के दो साल बाद साल 1949 में इसी दिन हिन्दी भाषा को राष्ट्रभाषा को दर्जा प्राप्त हुआ था, तब से लेकर आज तक इस दिन को हिन्दी दिवस के रुप में मनाया जाता है। हिन्दी भाषा न सिर्फ हम सभी हिन्दुस्तानियों की पहचान है बल्कि राष्ट्रीय एकता की प्रतीक भी मानी जाती है।

वहीं इस भाषा को बढ़ावा देने के लिए हिन्दी दिवस के मौके पर आयोजित कार्यक्रमों में भाषण आदि देने की आवश्यता पड़ती है, ताकि भाषण आदि के माध्यम से हिन्दी भाषा के मूल्यों को लोगों को बताया जा सके और हिन्दी भाषा के प्रति उनके मन में सम्मान प्रकट किया जा सके, इसलिए हम आपको अपने इस आर्टिकल में हिन्दी दिवस पर भाषण उपलब्ध करवा रहे हैं, जिसका इस्तेमाल आप इस तरह के कार्यक्रमों में कर सकते हैं –

हिन्दी दिवस पर भाषण

सर्वप्रथम सभी को हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं !

आदरणीय मान्यवर, सम्मानीय मुख्य अतिथि, प्रधानचार्या जी, सभी शिक्षक गण और यहां पर बैठे मेरे छोटे-बड़े भाई-बहनों और मेरे प्रिय दोस्तों आप सभी का मैं… तहे दिल से आभार प्रकट करती हूं / करता हूं। बेहद खुशी हो रही है कि, आज मुझे हिन्दी दिवस के इस खास मौके पर आप लोगों के समक्ष भाषण देने का सुनहरा अवसर प्राप्त हुआ है।

मैं हिन्दी दिवस पर अपने भाषण की शुरुआत, हिन्दी भाषा के महत्व को लेकर लिखे गए एक स्लोगन के माध्यम से करना चाहती हूं / चाहता हूं –

हर कण में है हिन्दी बसी
मेरी मां की है इसमें बोली बसी
मेरा मान है हिन्दी
मेरी शान है हिन्दी ।।

अपनी मातृभाषा हिन्दी की रक्षा करने एवं इसके प्रति लोगों को जागरूक करने साथ ही हिन्दी भाषा को बढ़ावा देने के मकसद से हर साल हिन्दी दिवस को बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिशा में आज हमारी संस्था में भी कार्यक्रम का आयोजन किया गया है। वहीं इस मौके पर अपनी मातृभाषा पर अपने विचार रखते हुए मै भी खुद को बेहद गौरान्वित महसूस कर रहा हूं /कर रही हूं।

हिन्दी भाषा न सिर्फ हमारी पहचान है, बल्कि हम सभी भारतीयों की शान भी है, आज 14 सितंबर का दिन हम सभी भारतवासियों के लिए बेहद गौरवमयी दिन है, क्योंकि इसी दिन हमारी हिन्दी भाषा को राष्ट्रभाषा का दर्जा मिला था। भारत की संविधान सभा में 14 सितंबर, 1949 को ही हिन्दी को राष्ट्रभाषा घोाषित करने का फैसला लिया गया था।

वहीं साल1953 में पहली बार हिन्दी दिवस के रुप में मनाया गया था। तब से लेकर आज तक हर वर्ष 14 सितंबर को हमारे देश में हिन्दी दिवस के रुप में मनाया जाने लगा है।

हिन्दी हम सभी भारतीयों के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं। यह सभी भाषाओं का समावेश है ,जो सभी भाषाओं को एक साथ लेकर चलती है, यह जनमानस की भाषा है, जो हम सभी हिन्दुस्तानियों को एक-दूसरे से बांधे रखती है और हमें अपनेपन का एहसास दिलवाती।

इस भाषा की सरलता और सुगमता की वजह से ही इसे देश की राष्ट्रभाषा का दर्जा दिया गया है।हिन्दी सार्वधिक बोली जाने वाली विश्व की तीसरी भाषा है जिसे आसनी से समझा और बोला जा सकता है। वहीं हिन्दी भाषा ने हम सभी भारतवासियों को विश्व में एक अलग पहचान दिलवाई है। यह हमारी भारतीय संस्कृति और संस्कारों का प्रतिबंब भी है। वहीं हिन्दी साहित्य विश्व का सबसे समृद्ध और प्राचीन साहित्य है, हिन्दी भाषा के महत्व को बड़े-बड़े साहित्यकारों ने भी बताया है।

हिन्दी भाषा हम सभी हिन्दुस्तानियों का अभिमान है, हालांकि वर्तमान परिदृश्य में हमारी राष्ट्रभाषा का महत्व कम होता जा रहा है। तेजी से बढ़ रही अंग्रेजी की जरूरत की वजह से हिन्दी भाषा धीमे-धीमे गुम होती जा रही है।

दरअसल, आजकल, करियर बनाने में सबसे पहले अंग्रेजी भाषा की मांग की जा रही है, किसी भी बड़ी संस्था, कंपनी के इंटरव्यू आदि में अंग्रेजी भाषा को महत्वता दी जा रही है, यही नहीं कॉरेपोरेट सेक्टर एवं स्कूल-कॉलेजों में भी ज्यादातर अंग्रेजी भाषा का ही इस्तेमाल हो रहा है, जिसके चलते आज की युवा पीढ़ी का हिन्दी की तरफ से ध्यान हटता जा रहा है और तो और वर्तमान में देश के युवा अंग्रेजी बोलना अपना स्टेटस सिंबल मानते हैं एवं हिन्दी बोलने वालों को उतनी तवज्जों नहीं देते हैं एवं हिन्दी बोलना अपनी शान के खिलाफ समझते हैं।

आज हिन्दी भाषा बोलने वालों को गंवार और अनपढ़ समझा जाने लगा है एवं उनके ज्ञान पर ही संदेह किया जाता है। वहीं आजकल ज्यादातर अभिभावक भी बढ़ रही अंग्रेजी की जरूरत को देखते हुए अपने बच्चों को इंग्लिश मीडियम स्कूलों में ही एडमिशन करवाना पसंद कर रहे हैं, जिसके चलते हिन्दी की उपयोगिता धीमे-धीमे कम होती जा रही है।

इसके साथ ही हिन्दी भाषा को उतनी तवज्जों नहीं दी जा रही है, जितनी की किसी देश की राष्ट्रभाषा को मिलनी चाहिए , जो कि बिल्कुल गलत है।

माना कि, आधुनिक युग से जुड़ने के लिए एवं सफल करियर के लिए अंग्रेजी भाषा सीखना बेहद जरूरी है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि हम सभी अपनी राष्ट्रभाषा को भूल जाएं और इसकी अहमियत को न समझें।

हिन्दी भाषा हमारी राष्ट्रीय एकता की प्रतीक है, इसलिए हम सभी को अपनी राष्ट्रभाषा का सम्मान करना चाहिए एवं इसकी रक्षा करने का संकल्प लेना चाहिए। इसके साथ ही ज्यादा से ज्यादा इस भाषा का इस्तेमाल करने के लिए बढा़वा देना चाहिए एवं सभी भाषाओं से ज्यादा अपनी मातृभाषा को तवज्जो देने का प्रण लेना चाहिए।

हम सभी को देश के सच्चे नागरिक के रुप में हिन्दी भाषा का उपयोग करना अपना गौरव समझना चाहिए साथ ही इसकी अहमियत को अन्य लोगों तक पहुंचाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभानी चाहिए, तभी हमारा देश सही मायने में विकास कर पाएगा, क्योंकि किसी भी देश की राष्ट्रभाषा, उस देश की उन्नति एवं विकास का महत्वपूर्ण आधार होती है।

वहीं मैं अपने इस भाषण का अंत हिन्दी भाषा की महत्वता पर लिखी गई एक कविता के माध्यम से करना चाहती हूं / करना चाहता हूं –

सबकी सखी है मेरी हिन्दी
जैसे माथे पर है सजी है सुंदर बिंदी

देवनागिरी है इसकी लिपि
संस्कृत है इसकी जननी

हर साहित्य की है ये ज्ञाता
सुंदर सरल है इसकी भाषा

प्रेम अपनापन सौन्दर्य हैं इसका
दिलाना सम्मान कर्तव्य है हम सबका

धन्यवाद

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