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श्री कृष्णा सर्वश्रेष्ठ सुविचार | Lord Shree Krishna Quotes

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Lord Shree Krishna Quotes and Thoughts

भगवान् श्रीकृष्ण की कहानियाँ और उनके अनमोल विचार हम सदीयों से अपने पूर्वजो से सुनते आये है। श्रीकृष्ण का हर एक सुविचार अनमोल है, उनके कहे विचारों को अगर हम अपनी जिंदगी में उतारेंगे तो हमारे जीवन में कभी भी दुःख और अशांति नहीं आयेंगी। हम हमेशा ख़ुशी से जीवन जी सकेंगे।

भगवान् श्रीकृष्ण के विचार चाहे वह श्रीमद् भागवत गीता के अनमोल विचार हो या फिर किसी कहानी में सुने हो, आज के ज़माने के लिए भी उतनेही अनुरूप और योग्य है। इन विचारोंको सुनना और उनपे अमल करना हमारे लिए और समाज के लिए बहुत ही फायदेमंद है।

किसी व्यक्ति ने कहा हुआ कोई quote हो या फिर कोई motivational quotes हो, उनका सही उपयोग करने के बाद ही हमे उनका असली मतलब समाज में आता है। ज्ञानी पंडित आजके इस पोस्ट में आपके लिए भगवान् श्रीकृष्ण के सर्वश्रेष्ठ अनमोल विचार लेके आया है।

भगवान् श्रीकृष्ण के सुविचार – Lord Shree Krishna Quotes in Hindi

Shri Krishna Quotes in Hindi
Shri Krishna Quotes in Hindi

“नर्क के तीन द्वार हैं: वासना, क्रोध, और लालच।

“मनुष्य अपने विश्वास से निर्मित होता है, जैसा वो विश्वास करता है वैसा वो बन जाता है।”

“परिवर्तन इस संसार का नियम है, कल जो किसी और का था, आज वो तुम्हारा हैं एवं कल वो किसी और का होगा।

shree krishna in hindi

“जो मन को नियंत्रित नहीं करते उनके लिए वह शत्रु के समान कार्य करता हैं।

आत्मा न तो जन्म लेती है, न कभी मरती है और ना ही  इसे कभी जलाया जा सकता है, ना ही पानी से गीला किया जा सकता है, आत्मा अमर और अविनाशी है।

“आत्मा पुराने शरीर को ठीक उसी तरह छोड़ देती है, जैसे कि मनुष्य अपने पुराने कपड़ों को उतार कर नए कपड़े धारण कर लेता है।

Lord Krishna Quotes in Hindi

धरती पर महापापी कंस के अत्याचारों से लोगों को मुक्ति दिलवाने के लिए जन्में भगवान श्री कृष्ण ने न सिर्फ इस संसार को आपस में प्रेम करना सिखाया बल्कि कई ऐसे प्रेरणादायक और अनमोल सीख भी दी, जिनको अगर हम सभी अपने जीवन में उतार लें तो निश्चय ही एक सफल और श्रेष्ठ जिंदगी जी सकते हैं।

इसके साथ ही श्री कृष्ण ने हिन्दू धर्म के पवित्र ग्रंथ श्रीमदभगवतगीता के माध्यम से मनुष्य के जन्म-मरण के चक्र की खूबसूरत व्याख्या की है और मनुष्य को इस संसार रुपी मोह से निकालकर मोक्ष प्राप्ति का सूत्र बताया है।

वहीं हम आपको अपने इस आर्टिकल में भगवान श्री कृष्ण के कुछ उत्तम विचारों को उपलब्ध करवा रहे हैं, जिसे पढ़कर न सिर्फ आप लोगों के मन में अपने जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलेगी बल्कि एक-दूसरे के प्रति आदर-सम्मान का भाव पैदा होगा, आपसी रिश्ते मजबूत होगें।

इसके साथ ही जीवन जीने की सही कला के बारे में ज्ञात हो सकेगा।

वहीं आप श्री कृष्णा के इन सर्वश्रेष्ठ विचारों को व्हाटसऐप, फेसबुक, ट्वीटर, इंस्टाग्राम समेत अन्य सोशल मीडिया साइट्स पर भी शेयर कर सकते हैं, और अपने दोस्तों, परिजनों एवं करीबियों से श्री कृष्ण के इन विचारों पर अमल करने के लिए प्रोत्साहित कर सकते हैं, ताकि वे एक श्रेष्ठ जीवन का निर्वहन कर सकें।

Shree Krishna Quotes in Hindi
Shree Krishna Quotes in Hindi

“केवल मन ही किसी का मित्र और शत्रु होता हैं।

अगर आप अपना लक्ष्य पाने में नाकामयाब होते हो तो अपनी रणनीति बदलो, लक्ष्य नही।

“सभी मनुष्य अपने विश्वास से निर्मित होते हैं, जैसा वे भरोसा करते हैं, वो वैसा ही बन जाता हैं।

shree krishna

“निर्माण केवल मौजूदा चीजों का प्रक्षेपण हैं।

अप्राकृतिक कर्म बहुत ज्यादा तनाव पैदा करता है, उससे मत डरो जो कि वास्तविक नहीं है और ना कभी था और ना कभी होगा, जो वास्तविक है, वो हमेशा था, और उसे कभी नष्ट भी नहीं किया जा सकता है।

“अत्याधिक क्रोध से भ्रम पैदा होता है, भ्रम से बुद्धि नष्ट होती है और जब बुद्धि नष्ट होती है, तब तर्क ही नष्ट हो जाता है, जब तर्क नष्ट होता है तब व्यक्ति का पूरी तरह पतन हो जाता है।

Bhagavad Gita Quotes in Hindi

भगवान श्री कृष्ण ने श्रीमदभगवतगीता के माध्यम से कहा है कि मनुष्य को अगर अपने जीवन में सफलता हासिल करनी है तो, फल की इच्छा किए बिना ही कर्म करना चाहिए।

इसके साथ ही भगवान श्री कृष्ण ने अपने विचारों के माध्यम से यह भी कहा है कि जो व्यक्ति भूतकाल को लेकर पश्चाप करता रहता है, उस व्यक्ति का वर्तमान तो खराब हो ही जाता है, इसके साथ ही वह अपने भविष्य के लिए भी कुछ नहीं कर पाता है।

इसके अलावा भगवान श्री कृष्ण के कई ऐसे सर्वश्रेष्ठ सुवविचार हैं, जिन्हें अगर सही मायने में व्यक्ति अपने जीवन में उतार लें तो वह अपने जीवन के तमाम दुख और परेशानी से छुटकारा पाकर सुखमय जीवन जी सकता है।

Shree Krishna Quotes
Shree Krishna Quotes

“अपने अनिवार्य कर्तव्यों को पूरा करो क्यूंकि कार्य करना संपूर्ण निश्कार्यता से बेहतर है।

इंसान अपने विचारोंसे बनता है। जैसा वह सोचता है वैसा ही वह बनता है।

“कर्म का फल व्यक्ति को ठीक उसी तरह ढूंढ लेता है, जैसे कि कोई बछड़ा हजारों गायों के बीच अपनी मां को ढूंढ लेता है।

श्री कृष्णा सर्वश्रेष्ठ अनमोल वचन
श्री कृष्णा सर्वश्रेष्ठ अनमोल वचन

“मनुष्य अपने विश्वास से निर्मित होता हैं, जैसा वो विश्वास करता हैं, वैसा वो बन जाता हैं।

मन की गतिविधियों, होश, श्वास, और भावनाओं के माध्यम से भगवान की शक्ति सदा तुम्हारे साथ है और लगातार तुम्हे बस एक साधन की तरह प्रयोग कर सके सभी कार्य कर रही है।

“तुम उसके लिए शोक करते हो जो शोक करने के योग्य ही नहीं होते, और फिर भी ज्ञान की बातें करते हो, बुद्धिमान व्यक्ति ना तो जीवित और ना ही कभी मृत व्यक्ति के लिए शोक करते हैं।

shree krishna

“मन अशांत हैं और उसे नियंत्रित करना कठीण हैं, लेकिन अभ्यास से इसे वश में किया जा सकता हैं।

जो भी मनुष्य अपने जीवन के अध्यात्मिक ज्ञान के चरणो के लिए दृढ़ संकल्पो मे स्थिर हैं, वह समान्य रूप से कठोर संकटो को भी आसानी से सहन कर सकते हैं, और निश्चित तौर पर ऐसे व्यक्ति खुशियां और मुक्ति पाने के पात्र होते हैं।

“अपना-पराया, छोटा-बड़ा, मेरा-तेरा ये सब अपने मन से मिटा दो, और फिर सब तुम्हारा हैं और तुम सबके हो।

Krishna Quotes in Hindi

धरती पर पाप का अंत करने के लिए भगवान विष्णु के 8वें अवतार में जन्में श्री कृष्ण ने महाभारत के युद्ध में अर्जुन के द्धारा पूरे जगत को ज्ञान दिया।

भगवान श्री कृष्ण ने अपने सर्वश्रेष्ठ सुविचारों के माध्यम से मनुष्य को बताया कि, अपने अशांत मन को व्यक्ति अभ्यास के माध्यम से किस तरह अपने वश में कर सकता है, क्योंकि जो व्यक्ति अपने मन को काबू में नहीं करते हैं, उनके लिए वह दुश्मन की तरह काम करता है।

इसके अलावा श्री कृष्ण ने उन व्यक्तियों को भी अपने विचारों के माध्यम से सीख दी है, जो कि संसार में मौजूद हर चीज को संदेह की नजर से देखते हैं, उनके लिए श्री कृष्ण ने अपने विचारों में कहा है कि हमेशा संदेह और शक करने वाले व्यक्ति के लिए खुशी ना तो इस लोक मे हैं और ना ही कहीं और हैं, इसलिए मनुष्य को अपने संदेह की प्रवृत्ति छोड़ देना चाहिए।

इसके अलावा भी भगवान श्री कृष्ण के कई ऐसे सर्वश्रेष्ठ सुविचार हैं, जिन्हें अगर वास्तव में कोई व्यक्ति अपने जिंदगी में उतार ले, तो उसका जीवन सफल हो सकता है।

इसके साथ ही भगवान श्री कृष्णा के द्धारा बताए गए कई ऐसे उपदेश हैं जिन्हें अगर आप सोशल साइट्स पर शेयर करेंगे तो इससे आपके दोस्तों, मित्रों और करीबियों को भी अपने जीवन में सही मार्ग पर चलने की सीख मिलेगी।

Shri Krishna Quotes
Shri Krishna Quotes

“अर्जुन, केवल भाग्यशाली योद्धा ही ऐसा युद्ध लड़ने का अवसर पाते हैं, जो स्वर्ग के द्वार के समान हैं।

भगवान या परमात्मा की शांति सिर्फ उनके साथ ही होती हैं, जिसके मन और आत्मा दोनों मे एकता हो, जो इच्छा और क्रोध से पूर्ण रुप से मुक्त हो एवं जो अपने अंदर की आत्मा को सही मायने मे जनता हो।

“आनंद बस मन की एक स्थिति है जिसका बाहरी दुनिया से कोई नाता नहीं है।

shree krishna photo with quotes

“जो कोई भी जिस किसी भी देवता की पूजा विश्वास के साथ करने की इच्छा रखता हैं, मैं उसका विश्वास उसी देवता में दृढ़ कर देता हूं।

सुख का राज अपेक्षाए कम रखने में है।

shree krishna speech

“सदैव संदेह करनेवाले व्यक्ति के लिए प्रसन्नता ना इस लोक में हैं ना ही कही और।

कोई भी उपहार/भेंट तभी अच्छी और पवित्र लगती हैं जब वह पूरी तरह दिल से किसी सही व्यक्ति को सही समय और सही जगह पर दिया जाए और जब उपहार देने वाला व्यक्ति उस उपहार के बदले में कुछ पाने का इच्छा बिल्कुल भी न करता हो।

ज्ञानी पंडित आशा करता है, भगवान् श्रीकृष्ण के यह विचार आपको आपके जीवन में मुश्किल घडी में मार्ग दिखाए और आपको सफलता की तरफ ले चले। इन विचारों को अपने जीवन में उतारने की पूरी कोशिश करे आपको जीवन में Successful होने से कोई नहीं रोक सकता।

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Muhammad Bin Tughlaq |मुहम्मद बिन तुग़लक़ का इतिहास

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Muhammad Bin Tughlaq in HindiMuhammad Bin Tughlaq

Muhammad Bin Tughlaq – मुहम्मद बिन तुग़लक़

पूरा नाम (Name) मुहम्मद बिन तुग़लक़
जन्म (Birthday) इ.स. 1300. ( अनुमानित )
जन्मस्थान (Birthplace) मुल्तान, पाकिस्तान
माता (Mother Name) फ़िरोज़ शाह तुग़लक़
पिता (Father Name) गयासुद्दीन तुग़लक़
मृत्यु (Death) 20 मार्च 1351
मुहम्मद बिन तुग़लक़ ये मध्यकालीन भारत के इतिहास के सनकी समझने वाला लेकिन महत्वाकांक्षी राज्यकर्ता। राजधानी दिल्ली से देवगिरी को हिलाने का उसकी असफल कोशिश की वजह से मुहम्मद खास तौर पर ध्यान में रहता है। तत्कालीन आक्रमणों से ज्यादा उसकी नजर दूर तक थी। मुहम्मद बिन तुग़लक़ का राजघराना इ.स. 1321 से 1388 इस समय में दिल्ली के तख़्त पे था। पहले चार साल मुहम्मद बिन तुग़लक़ के पिता गियासुद्दीन तुग़लक़ सत्ता पे थे। पिताजी के खिलाफ आवाज उठाने के बाद और उनकी अचनक मौत के बाद 1325 के मार्च महीने में मुहम्मद बिन तुग़लक़ ये दिल्ली के गद्दीपर बैठे। यही से मुहम्मद की राज शुरू हुआ। गददीपर आते ही मुहम्मद बिन तुग़लक़ के आगे राज्य में हुये वृद्धि तोडने की चुनौती थी। वो उसने सफलता पूर्वक पार की। उसने सिर्फ वृद्धि ही नहीं तोड़े तो उसके वजह से कर्नाटक के होयसल का राज्य पर जित हासिल करके दक्षिण में अपनी सत्ता प्रस्थापित की। इस समय में मतलब 1327 में तर्मशिरिन के नेतृत्त्व में मोघल ने दिल्लीपर चाल चली। लेकीन तुग़लक़ ने दिमाग से काम लेकर उन्हें बहोत पैसा देकर वापीस भेज दिया। राज्य की तिजोरी और सैनिको का खर्चा निकालने के लिये उसने बाद में गंगा – यमुना के ‘दुआब’ इस उपजाऊ क्षेत्रों के किसानो से ज्यादा कर वसूला। अकाल की वजह से वसूली नहीं हो पाती तब जनता को फार्म टैक्स के लिये तकलिफ दी। उसमे से ‘दिवान-ए-मुस्तखरिज’ ये सक्त कर वसूली का नया खाता शुरू हुवा। उसके खिलाफ प्रदर्शन हुये फिर भी वो उसमे सफल रहा। मुहम्मद बिन तुग़लक़ का और एक महत्त्वपूर्ण प्रयोग मतलब आर्थिक प्रयोग और वो मतलब तांबा मुद्रा में लाने का उस समय में चांदी के सिक्के प्रचलित थी। उस वजह से चांदी की कमी महसूस होने लगी। इसी समय में चीन में कुबलाई खान का कागजी मुद्रा का प्रयोग सफल होने का मुहम्मद के सुनने में आया। तब उसने सोने चांदी के अलावा तांबे का सिक्का उपयोग में लाने का आदेश दिया। लेकीन परदेशी व्यापारीयों ने तांबे का सिक्का लेने से इन्कार किया। मुद्रा का अवमूल्यन हुवा और सरकारी तिजोरी में की संपत्ती खतम हुई। इस वजह से आखीर मुहम्मद को अपना आदेश पीछे लेना पडा। लेकीन इस प्रक्रीया में उसने ‘दोकानी’ और ‘दिनार’ ये नान प्रचार में लाया। Muhammad Bin Tughlaq ये इसलिये सबसे ज्यादा पहचाने जाते है की उसने उसकी देश की राजधानी दिल्ली से महाराष्ट्र में देवगिरी यहाँ हिलाने की कोशिश की थी। सच तो अपनी राजधानी दिल्ल्ली से देवगिरी ले जाने के पीछे उसकी सनकी वृत्ती नहीं थी। उसके पीछे निश्चित ही कुछ वजह थी। देवगिरी ये साम्राज्य के दृष्टी से उसे दिल्ली से ज्यादा बिच में और महफूज लगता था। और मंगोल का धोका भी दक्षिण की तरफ नहीं था। इस वजह से उसने जल्द ही राजधानी देवगिरी को हिलाने का आदेश दिया। सिर्फ कचेरी ही नहीं तो सभी लोगों को उसने देवगिरी को जाने का हुकुम दिया। उस वजह से लोगों के बहोत तकलिफ झेलनी पड़ी। दिल्ली से देवगिरी इस सफर में बहोत से लोगों को अपनी जान गवानी पड़ी। देवगिरी में आने के बाद मुहम्मद को वहा के अराजकता देखकर उसने अपना मन बदल दिया। ऐसे हिलने के वजह से बंगाल, पंजाब, सरहद प्रदेश नियत्रंण से बाहर जाने लगे ये उसके ध्यान में आया। इस वजह से राजधानी वापीस दिल्ली को हिलाई गयी। फिर से लोगों को तकलिफ हुयी। सरकारी तिजोरी खाली हुयी। और व्यापार बैठने के कारण दिल्ली का भी बड़ा नुकसान हुवा। 1336 में विजयनगर का राज्य स्वतंत्र हुवा। और 1347 में बहमनी सत्ता आयी। 1351 में बंगाल स्वतंत्र हुवा। कुछ एक पक्की भूमिका और विचार इनके आधार पर नयी योजना लाके राज्य बिठाने की मुहम्मद की कोशिश नाकामयाब रही। और दुर्भाग्य से उसके वजह से जनता को बहोत तकलीफ सहनी पड़ी। अपने लहर पे सबको नचाने वाला राज्य कर्ता ऐसी उसकी छवि निर्माण हुयी। मुहम्मद धर्मशिल होने के बावजूद वो समय आने पर क्रूरता से बर्ताव करता था। उसने किये हुये अनेक योजना में से एक – दो को ध्यान से निकाल दे तो उसे पूरी सफलता कभी नहीं मिली। उसकी योजना में रचनात्मकता थी और वो लागु करने की उसकी इच्छा शक्ती भी बड़ी थी। उसके पीछे जनता का कल्याण यही हेतु था। लेकीन बहोत उपलब्धियां होने के बावजूद भी व्यवहार ज्ञान में वो कम गिरा। सभी इतिहासकारों में तुग़लक़ ये सबसे ज्यादा विवाद का विषय रहा। मतलब वो सारी कमजोरी मान कर मुहम्मद तुग़लक़ ये समय से सबसे आगे दौड़ने वाला था, ऐसा मानना ही पड़ेगा। योजना और अमल करना इस मुकाबला में वो पीछे रहा। ये मुकाबला इतना मुश्किल था और उसी वजह से मुहम्मद आखीर में असफल हुआ। 20 मार्च 1351 को गुजरात के टठठा यहाँ बिमारी से मुहम्मद बिन तुग़लक़ / Muhammad Bin Tughlaq की मौत हुयी। और भी है यहाँ: Note:आपके पास About Muhammad Bin Tughlaq History मैं और Information हैं, या दी गयी जानकारी मैं कुछ गलत लगे तो तुरंत हमें कमेंट और ईमेल मैं लिखे हम इस अपडेट करते रहेंगे। अगर आपको Life History Of Muhammad Bin Tughlaq In Hindi Language अच्छी लगे तो जरुर हमें Facebook पर Share कीजिये।

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Meera Bai |संत मीराबाई का जीवन परिचय

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 Meera Bai in Hindi

श्री कृष्ण की दीवानी के रूप में मीराबाई को कौन नहीं जानता। मीराबाई एक मशहूर संत होने के साथ-साथ हिन्दू आध्यात्मिक कवियित्री और भगवान कृष्णा की भक्त थी। वे श्री कृष्ण की भक्ति और उनके प्रेम में इस कदर डूबी रहती थी कि दुनिया उन्हें श्री कृष्ण की दीवानी के रुप में जानती है।

मीराबाई जी को श्री कृष्ण भक्ति के अलावा कुछ और नहीं सूझता था, वह दिन-रात कृष्णा भक्ति में ही लीन रहती और उन्हें पूरा संसार कृष्णमय लगता था, इसलिए वे संसारिक सुखों और मोह-माया से दूर रहती थी, उनका मन सिर्फ  श्री कृष्ण लीला, संत-समागम, भगवत चर्चा आदि में ही लगता था।

भगवान कृष्ण के रूप का वर्णन करते हुए संत मीराबाई हजारो भक्तिमय कविताओ की रचना की है। संत मीरा बाई की श्री कृष्ण के प्रति उनका प्रेम और भक्ति, उनके द्वारा रचित कविताओं के पदों और छंदों मे साफ़ देखने को मिलती है। वहीं श्री कृष्ण के लिए मीरा बाई ने कहा है।

“मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरो ना कोई जाके सर मोर-मुकुट, मेरो पति सोई” संत मीरा बाई कहती हैं, मेरे तो बस ये श्री कृष्ण हैं। जिन्होंने गोवर्धन पर्वत को उठाकर गिरधर नाम पाया है। जिसके सर पे ये मोर के पंख का मुकुट है, मेरा तो पति सिर्फ यही है।”

मीराबाई जी, की श्री कृष्ण भक्ति का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि, उन्हें अपनी कृष्ण भक्ति की वजह से अपने ससुराल वालों से काफी कष्ट भी सहना पड़ा था, यहां तक की उन्हें कई बार मारने तक की कोशिश भी की गई, लेकिन मीराबाई को इन सबसे कोई फर्क नहीं पड़ा, बल्कि उनकी आस्था दिन पर दिन अपने प्रभु कृष्ण के प्रति बढ़ती चली गई, उन्होंने खुद को पूरी तरह श्री कृष्ण को समर्पित कर दिया था।

श्री कृष्ण को अपने पति के रुप में मानकर उन्होनें कृष्ण भक्ति के कई स्फुट पदों की भी रचना की है , इसके साथ ही उन्होंने श्री कृष्ण के सौंदर्य का बेहतरीन तरीके से अपनी रचनाओं में वर्णन किया है।

महान संत मीराबाई जी की कविताओं और छंदों में श्री कृष्ण के प्रति उनकी गहरी आस्था और प्रेम की अद्भुत झलक देखने को मिलती है, इसके साथ ही  उनकी कविताओं में स्त्री पराधीनता के प्रति एक गहरी टीस दिखाई देती है, जो भक्ति के रंग में रंगकर और भी ज्यादा गहरी हो गई है।

वहीं आज हम आपको अपने इस लेख में महान संत मीराबाई जी के जीवन से जुड़ी दिलचस्प जानकारी देंगे साथ ही उनकी साहित्य योगदान के बारे में भी बताएंगे, तो आइए जानते हैं, श्री कृष्ण की सबसे बड़ी साधिका एवं हिन्दी साहित्य की महान कवियित्री संत मीराबाई जी के जीवन बारे में –

श्रीकृष्ण की अनन्य प्रेमिका- मीराबाई – Meera Bai in Hindi

Meera Bai in Hindi

मीराबाई जी के जीवन के बारे में एक नजर में – Meerabai Biography In Hindi

नाम (Name) मीराबाई (Meerabai)
जन्म तिथि (Birthday) 1498 ईसवी, गांव कुडकी, जिला पाली, जोधपुर, राजस्थान
पिता (Father Name) रतन सिंह
माता (Mother Name) वीर कुमारी
पति का नाम (Husband Name) महाराणा कुमार भोजराज (कुंवर भोजराज)
मृत्यु (Death) 1557, द्वारका में।

मीराबाई का जन्म, परिवार एवं प्रारंभिक जीवन – Meerabai Jeevan Parichay

श्री कृष्ण  की सबसे बड़ी साधक एवं महान अध्यात्मिक कवियत्री मीराबाई जी के जन्म के बारे में कोई भी पुख्ता जानकारी नहीं है, लेकिन कुछ विद्धानों के मुताबिक उनका जन्म 1498 ईसवी में राजस्थान के जोधपुर जिले के बाद कुडकी गांव में रहने वाले एक राजघराने में हुआ था। इनके पिता का नाम रत्नसिंह था, जो कि एक छोटे से राजपूत रियासत के राजा थे।

मीराबाई जी जब बेहद छोटी थी तभी उनके सिर से माता का साया उठ गया था, जिसके बाद उनकी परवरिश उनके दादा राव दूदा जी ने की थी, वे एक धार्मिक प्रवृत्ति के व्यक्ति थे, जो कि भगवान विष्णु के घोर साधक थे। वहीं मीराबाई पर अपने दादा जी का गहरा असर पड़ा था। मीराबाई बचपन से ही श्री कृष्ण की भक्ति में रंग गई थीं।

मीराबाई जी का विवाह एवं संघर्ष – Meerabai Story

श्री कृष्ण भक्ति में लीन रहने वाली मीराबाई जी का विवाह चितौड़ के महाराजा राणा सांगा के बड़े पुत्र एवं उदयपुर के महाराणा कुमार भोजराज के साथ हुआ था, लेकिन उनके विवाह के कुछ सालों बाद ही मीराबाई पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा, उनके पति भोजराज की मौत हो गई थी। जिसके बाद वे श्री कृष्ण को पति मानकर हर समय उनकी आराधना में लीन रहने लगी थी।

मीराबाई के लिए आसान नहीं था श्री कृष्ण की आराधना करना, झेलना पड़ा था काफी विरोध:

मीराबाई के पति की मृत्यु के बाद उनका ज्यादातर समय श्री कृष्ण की भक्ति में व्यतीत होता था। वे श्री कृष्ण की भक्ति में इस कदर लीन रहती थीं, कि अपनी परिवारिक जिम्मेदारियों पर भी ध्यान नहीं दे पाती थी, यहां तक की मीराबाई ने एक बार अपने ससुराल में कुल देवी “देवी दुर्गा” की पूजा करने से यह कहकर मना कर दिया था कि, उनका मन गिरधर गोपाल के अलावा किसी औऱ भगवान की पूजा में नहीं लगता।

मीराबाई का रोम-रोम कृष्णमय था, यहां तक की वे हमेशा श्री कृष्ण के पद गाती रहती थी और साधु-संतों के साथ श्री कृष्ण की भक्ति में डूबकर नृत्य आदि भी किया करती थी, लेकिन मीराबाई का इस तरह नृत्य करना राजशाही परिवार को बिल्कुल पसंद नहीं था, वे उन्हें ऐसा करने से रोकते भी थे, और इसका उन्होंने काफी विरोध भी किया था।

मीराबाई के ससुराल वाले इसके पीछे यह तर्क देते थे, वे मेवाड़ की महारानी है, उन्हें राजसी परंपरा निभाने के साथ राजसी ठाठ-वाठ से रहना चाहिए और राजवंश कुल की मर्यादा का ख्याल रखना चाहिए। कई बार मीराबाई को अपनी कृष्ण भक्ति की वजह से काफी जिल्लतों का भी सामना करना पड़ा था, बाबजूद इसके मीराबाई ने श्री कृष्ण की आराधना करना नहीं छोड़ी।

मीराबाई की कृष्ण भक्ति को देख ससुरालियों ने रची थी उन्हें मारने की साजिश:

श्री कृष्ण भक्ति की वजह से मीराबाई जी के अपने ससुराल वालों से रिश्ते दिन पर दिन खराब होते जा रहे थे और फिर ससुराल वालों ने जब देखा कि किसी तरह भी मीराबाई की कृष्ण भक्ति कम नहीं हो रही है, तब उन्होंने कई बार विष देकर मीराबाई को जान से मारने की कोशिश भी की, लेकिन वे श्री कृष्ण भक्त का बाल भी बांका नहीं कर सके।

  • मीराबाई को दिया जहर का प्याला:

बड़े साहित्यकारों और विद्धानों की माने तो एक बार हिन्दी साहित्य की महान कवियित्री मीराबाई के ससुराल वालों ने जब उनके लिए जहर का प्याला भेजा, तब मीराबाई ने श्री कृष्ण को जहर के प्याले का भोग लगाया और उसे खुद भी ग्रहण किया, ऐसा कहा जाता है कि, मीराबाई की अटूट भक्ति और निश्छल प्रेम के चलते विष का प्याला भी अमृत में बदल गया।

  • मारने के लिए फूलों को टोकरी में भेजा सांप:

प्रख्यात संत मीराबाई की हत्या करने के पीछे एक और किवंदित यह भी प्रचलित है कि, जिसके मुताबिक एक बार मीराबाई के ससुराल वालों ने  उन्हें मारने के लिए फूलों की टोकरी में एक सांप रख कर मीरा के पास भेजा था, लेकिन जैसे ही मीरा ने टोकरी खोली, सांप फूलों की माला में परिवर्तित हो गया।

  • राणा विक्रम सिंह ने भेजी कांटों की सेज:

श्री कृ्ष्ण की दीवानी मीराबाई को मारने की कोशिश में एक अन्य किवंदति के मुताबिक एक बार राणा विक्रम सिंह ने उन्हें मारने के लिए कांटो की सेज (बिस्तर) भेजा, लेकिन, ऐसा कहा जाता है कि, उनके द्धारा भेजा गया कांटो का सेज भी फूलों के बिस्तर में बदल गया।

श्री कृष्ण की अनन्य प्रेमिका और कठोर साधक मीराबाई की हत्या के सारे प्रयास विफल होने के पीछे लोगों का यह मानना है कि, भगवान श्री कृष्ण अपनी परम भक्त की खुद आकर सुरक्षा करते थे, कई बार तो श्री कृष्ण ने उन्हें साक्षात दर्शन भी दिए थे।

मीरा बाई और अकबर – Meera Bai And Akbar

भक्तिशाखा की महान संत और कवियित्री मीराबाई जी के कृष्ण भक्ति के लिए उनकी ख्याति दूर-दूर तक फैल गई। श्री कृष्ण की प्रेम रस में डूबकर मीराबाई जी द्धारा रचित पद, कवतिाएं और भजनों को समस्त उत्तर भारत में गाया जाने लगा। वहीं जब मीराबाई जी का श्री कृष्ण के प्रति अद्भुत प्रेम और उनके साथ हुई चमत्कारिक घटनाओं की भनक मुगल सम्राट अकबर को लगी, तब उसके अंदर भी मीराबाई जी से मिलने की इच्छा जागृत हुई।

दरअसल, अकबर ऐसा मुस्लिम मुगल शासक था, जो कि हर धर्म के बारे में जानने के लिए उत्साहित रहता था, हालांकि मुगलों की मीराबाई के परिवार से आपसी रंजिश थी, जिसके चलते मुगल सम्राट अकबर का श्री कृष्ण की अनन्य प्रेमिका मीराबाई से मिलना मुश्किल था।

लेकिन मुगल सम्राट अकबर, मीराबाई के भक्ति भावों से इतना अधिक प्रेरित था, कि वह भिखारी के वेश में उनसे मिलने गया और इस दौरान अकबर ने मीराबाई के श्री कृष्ण के प्रेम रस में डूब भावपूर्ण भजन, कीर्तन सुने, जिसे सुनकर वह मंत्रमुग्ध हो गया और मीराबाई को एक बेशकीमती हार उपहार स्वरुप दिया।

वहीं कुछ विद्धानों की माने तो मुगल सम्राट अकबर की मीराबाई से मिलने की खबर मेवाड़ में आग की तरह फैल गई, जिसके बाद राजा भोजराज ने मीराबाई को नदी में डूबकर आत्महत्या करने का आदेश दे डाला।

जिसके बाद मीराबाई ने अपने पति के आदेश का पालन करते हुए नदी की तरफ प्रस्थान किया, कहा जाता है कि जब मीराबाई नदी में डूबने जा रही थी, तब उन्हें श्री कृष्णा साक्षात् दर्शन हुए, जिन्होंने न सिर्फ उनके प्राणों की रक्षा की, बल्कि उन्हें राजमहल छोड़कर वृन्दावन आकर भक्ति करने के लिए कहा, जिसके बाद मीराबाई, अपने कुछ भक्तों के साथ श्री कृष्ण की तपोभूमि वृन्दावन चली गईं और अपने जीवन का ज्यादातर समय वहीं बिताया।

श्री कृष्ण की नगरी वृंदावन में मीराबाई का बसना:

श्री कृष्ण की भक्ति में खुद को पूरी  तरह समर्पित कर चुकीं मीराबाई ने श्रीकृष्ण के आदेश पर गोकुल नगरी में जाने का फैसला लिया। वृन्दावन में श्री कृष्ण की इस सबसे बड़ी साधिका को खूब मान -सम्मान मिला, मीराबाई जहां भी जाती थी, लोग उन्हें देवियों जैसा मान सम्मान देते थे।

राजा भोजराज को हुआ अपनी गलती का एहसास:

श्री कृष्ण की भक्ति में पूरी तरह खुद को समर्पित कर चुकी मीराबाई जी के पति राजा भोजराज को जब यह बात महसूस हुई कि, मीराबाई जी एक सच्ची संत है, और उनकी कृष्ण भक्ति निस्वार्थ है और श्री कृष्ण के प्रति उनका अपार प्रेम निच्छल है, और उन्हें उनकी भक्ति का सम्मान करना चाहिए एवं उनकी कृष्ण भक्ति में उनका सहयोग करना चाहिए।

तब वे मीराबाई को वापस चित्तौड़ लाने के लिए वृन्दावन पहुंच गए और मीराबाई से माफी मांगी, साथ ही मीराबाई से उनकी कृष्ण भक्ति में साथ देने का वादा किया, जिसके बाद मीराबाई किसी तरह उनके साथ वापस चित्तौड़ जाने के लिए राजी हो गईं, लेकिन इसके कुछ समय बाद ही राजा भोज (राणा कुंभा) की मृत्यु हो गई। जिसके बाद मीराबाई को उनके सुसराल में प्रताड़ित किया जाने लगा।

ऐसा भी कहा जाता है कि,मीराबाई के पति की मृत्यु के बाद उनके ससुर राणा सांगा ने उस समय सती प्रथा की परंपरा के मुताबिक मीराबाई से अपने पति की चिता के साथ  सती होने को कहा, लेकिन मीराबाई ने श्री कृष्ण को अपने वास्तविक पति बताकर सती होने से मना कर दिया।

जिसके बाद मीराबाई पर उनके ससुरालों वालों को जुल्म और अधिक बढ़ते चले गए, लेकिन मीराबाई द्धारा काफी कष्ट सहने के बाद भी उनका श्री कृष्ण प्रेम कभी कम नहीं हुआ, बल्कि अपने प्रभु श्री कृष्ण में उनकी आस्था और अधिक बढ़ती चली गई।

मीराबाई ने लिखा महान कवि तुलसीदास जी को पत्र – Meera Bai And Tulsidas

श्री कृष्ण की भक्ति में लीन मीरा बाई ने  हिन्दी साहित्य के महान कवि तुलसीदास जी को भी पत्र लिखा था, जिसकी कुछ पंक्तियां इस प्रकार है –

“स्वस्ति श्री तुलसी कुलभूषण दूषन- हरन गोसाई। बारहिं बार प्रनाम करहूँ अब हरहूँ सोक- समुदाई।। घर के स्वजन हमारे जेते सबन्ह उपाधि बढ़ाई। साधु- सग अरु भजन करत माहिं देत कलेस महाई।। मेरे माता- पिता के समहौ, हरिभक्तन्ह सुखदाई। हमको कहा उचित करीबो है, सो लिखिए समझाई।।

इस पत्र के माध्यम से मीराबाई ने तुलसीदास जी से सलाह मांगी कि, मुझे  अपने परिवार वालों के द्धारा श्री कृष्ण की भक्ति छोड़ने के  लिए प्रताडि़त किया जा रहा है, लेकिन मै श्री कृष्ण को अपना सर्वस्व मान चुकी हैं, वे मेरी आत्मा और रोम-रोम में बसे हुए हैं।

नंदलाल को छोड़ना मेरे लिए देह त्यागने के जैसा है, कृपया ऐसी असमंजस से निकालने के लिए मुझे सलाह दें, और मेरी मद्द करें। जिसके बाद भक्ति शाखा की महान कवियित्री मीराबाई के पत्र का जबाव हिन्दी साहित्य के महान कवि तुलसी दास ने इस तरह दिया था –

“जाके प्रिय न राम बैदेही। सो नर तजिए कोटि बैरी सम जद्यपि परम सनेहा।। नाते सबै राम के मनियत सुह्मद सुसंख्य जहाँ लौ। अंजन कहा आँखि जो फूटे, बहुतक कहो कहां लौ।।

अर्थात तुलसीदास जी ने मीराबाई जी से कहा कि, जिस तरह भगवान विष्णु की भक्ति के लिए प्रहलाद ने अपने पिता को छोड़ा, राम की भक्ति की लिए विभीषण ने अपने भाई को छोड़ा, बाली ने अपने गुरु को छोड़ा और गोपियों ने अपने पति को छोड़ा उसी तरह आप भी अपने सगे-संबंधियों को छोड़ दो जो आपको और श्री कृष्ण के प्रति आपकी अटूट भक्ति को नहीं समझ सकते एवं भगवान राम और कृष्ण की आराधना नहीं करते।

क्योंकि भगवान और भक्त का रिश्ता अनूठा होता है, जो अजर-अमर है और इस दुनिया में सभी संसारिक रिश्तों को मिथ्या बताया।

महान कवियत्री मीराबाई और उनके गुरु रविदास जी -Meera Bai Ke Guru

श्री कृष्ण भक्ति शाखा की महान कवियत्री मीराबाई और उनके गुरु रविदास जी की मुलाकात और उनके रिश्ते के बारे में कोई साक्ष्य प्रमाण नहीं मिलता है।

ऐसा कहा जाता है कि वे अपने गुरु रैदास जी से मिलने अक्सर बनारस जाया करती थी, संत रैदास जी से मीराबाई की मुलाकात बचपन में हुई थी, वे अपने दादा जी के साथ धार्मिक समागमों में वे संत रैदास जी से मिली थे। वहीं कई बार अपने गुरु रैदास जी के साथ मीराबाई जी सत्संग में भी शामिल हुई थी।

इसके साथ ही कई साहित्यकार और विद्धानों के मुताबिक संत रैदास जी मीराबाई के अध्यात्मिक गुरु थे। वहीं मीराबाई जी ने भी अपने पदों में संत रविदास जी को अपना गुरु बताया है, मीराबाई जी द्धारा रचित उनका पद इस प्रकार है-

“खोज फिरूं खोज वा घर को, कोई न करत बखानी। सतगुरु संत मिले रैदासा, दीन्ही सुरत सहदानी।। वन पर्वत तीरथ देवालय, ढूंढा चहूं दिशि दौर। मीरा श्री रैदास शरण बिन, भगवान और न ठौर।। मीरा म्हाने संत है, मैं सन्ता री दास। चेतन सता सेन ये, दासत गुरु रैदास।। मीरा सतगुरु देव की, कर बंदना आस। जिन चेतन आतम कह्या, धन भगवान रैदास।। गुरु रैदास मिले मोहि पूरे, धुर से कलम भिड़ी। सतगुरु सैन दई जब आके, ज्याति से ज्योत मिलि।। मेरे तो गिरीधर गोपाल दूसरा न कोय। गुरु हमारे रैदास जी सरनन चित सोय।।”

मीराबाई के इस पद से स्पष्ट होता है कि, मीराबाई ने, संत रैदास जी को ही अपना सच्चा और अध्यात्मिक गुरु माना था और उन्होंने रविदास जी से ही संगीत, सबद एवं तंबूरा बजाना सीखा था। आपको बता दें कि मीराबाई जी ने अपने भजनों, पदों आदि में ज्यादातर भैरव राग का ही इस्तेमाल किया है।

मीराबाई की साहित्यिक देन –  Meera Bai Books

मीराबाई,सगुण भक्ति धारा की महान अध्यात्मिक कवियत्री थी, इन्होंने श्री कृष्ण के प्रेम रस में डूबकर कई कविताओं, पदों एवं छंदों की रचना की। मीराबाई जी की रचनाओं में उनका श्री  कृष्ण के प्रति अटूट  प्रेम, श्रद्धा, तल्लीनता, सहजता एवं आत्मसमर्पण का भाव साफ झलकता है।

मीराबाई ने अपनी रचनाएं राजस्थानी, ब्रज और गुजराती भाषा शैली में की है।  सच्चे प्रेम से परिपूर्ण मीराबाई जी की रचनाओं  एवं उनके भजनों को आज भी पूरे तन्मयता से गाते हैं। मीराबाई जी ने अपनी रचनाओं में बेहद शानदार तरीके से अलंकारों का भी इस्तेमाल किया है।

मीराबाई ने बेहद सरलता और सहजता के साथ अपनी रचनाओं में अपने प्रभु श्री कृष्ण के प्रति प्रेम का वर्णन किया है।इसके साथ ही उन्होंने प्रेम पीड़ा को भी व्यक्त किया है। आपको बता दें कि मीराबाई जी की रचनाओं में श्री कृष्ण के प्रति इनके ह्रदय के अपार  प्रेम देखने को मिलता है, मीराबाई द्धारा लिखी गईं कुछ प्रसिद्ध रचनाओं के नाम नीचे लिखी गए हैं, जो कि इस प्रकार है –

  • नरसी जी का मायरा
  • मीराबाई की मलार
  • गीत गोविंन्द टिका
  • राग सोरठ के पद
  • राग गोविन्दा
  • राग विहाग
  • गरबा गीत

इसके अलावा मीराबाई के गीतों का संकलन “मीराबाई की पदावली” नामक ग्रंथ में किया गया है।।

मीराबाई का प्रसिद्ध पद – Meerabai Ke Pad

“बसो मेरे नैनन में नंदलाल। मोहनी मूरति, साँवरि, सुरति नैना बने विसाल।। अधर सुधारस मुरली बाजति, उर बैजंती माल। क्षुद्र घंटिका कटि- तट सोभित, नूपुर शब्द रसाल। मीरा प्रभु संतन सुखदाई, भक्त बछल गोपाल।।”

मीराबाई की मृत्यु – Meerabai Death

कुछ पौराणिक कथाओं के मुताबिक भक्ति धारा की महान कवियित्री मीराबाई जी ने अपने जीवन का आखिरी समय द्धारका में व्यतीत किया, वहीं करीब 1560 ईसवी में जब एक बार मीराबाई बेहद द्धारकाधीश मंदिर में श्री कृष्ण के प्रेम भाव में डूबकर भजन -कीर्तन कर रही थी, तभी वे श्री कृष्ण के पवित्र ह्रद्य में समा गईं।

मीराबाई की जयंती – Meerabai Jayanti

हिन्दू कलैंडर के मुताबिक शरद पूर्णिमा के दिन मीराबाई जी की जयंती मनाई जाती है। मीराबाई को आज भी लोग श्री कृष्ण की दीवानी और उनकी परम भक्त के रुप में जानते हैं इसके साथ ही उनके प्रेम रस में डूबे भजन को गाते हैं। इसके साथ ही कई हिन्दी फिल्मों में भी मीराबाई के पदों का इस्तेमाल किया गया है।

अर्थात मीराबाई ने जिस तरह तमाम कष्ट झेलते हुए एकाग्र होकर अपने प्रभु को चाहा, वो वाकई सराहनीय है, अर्थात हर किसी को सच्चे मन के साथ प्रभु में आस्था रखनी चाहिए और अपने लक्ष्य के प्रति अडिग रहना चाहिए।

“जिन चरन धरथो गोबरधन गरब- मधवा- हरन।। दास मीरा लाल गिरधर आजम तारन तरन।।”

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ओर अधिक लेख:

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बीरबल का इतिहास | Birbal History

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Birbal History In Hindi
Birbal History In Hindi

बीरबल का इतिहास / Birbal History In Hindi

बीरबल का जन्म महेश दास के नाम से 1528 में, कल्पी के नजदीक किसी गाव में हुआ था। आज उनका जन्मस्थान भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में आता है। इतिहासकारो के अनुसार उनका जन्मगाव यमुना नदी के तट पर बसा टिकवनपुर था। उनके पिता का नाम गंगा दास और माता का नाम अनभा दवितो था। वे हिन्दू ब्राह्मण परीवार जिन्होंने पहले भी कविताये या साहित्य लिखे है, उनके तीसरे बेटे थे।

बीरबल / Birbal हिंदी, संस्कृत और पर्शियन भाषा में शिक्षा प्राप्त की थी। बीरबल कविताये भी लिखते थे, ज्यादातर उनकी कविताये ब्रज भाषा में होती थी, इस वजह से उन्हें काफी प्रसिद्धि भी मिली थी।

बीरबल मुग़ल शासक अकबर के दरबार के वो सबसे प्रसिद्ध सलाहकार थे। बीरबल भारतीय इतिहास में उनकी चतुराई के लिये जाने जाते है, और उनपर लिखित काफी कहानिया भी हमे देखने को मिलती, जिसमे बताया गया है की कैसे बीरबल चतुराई से अकबर की मुश्किलो को हल करते थे।

1556-1562 में अकबर ने बीरबल को अपने दरबार में कवी के रूप में नियुक्त किया था। बीरबल का मुग़ल साम्राज्य के साथ घनिष्ट संबंध था, इसीलिये उन्हें महान मुग़ल शासक अकबर के नवरत्नों में से एक कहा जाता था। 1586 में, उत्तरी-दक्षिणी भारत में लड़ते हुए वे शहीद हुए थे।

बीरबल की कहानियो का कोई सबूत हमें इतिहास में दिखाई नही देता। अकबर के साम्राज्य के अंत में, स्थानिक लोगो ने अकबर-बीरबल की प्रेरित और प्रासंगिक कहानिया बनानी भी शुरू की। अकबर-बीरबल की ये कहानिया पुरे भारत में धीरे-धीरे प्रसिद्ध होने लगी थी।

राजा बीरबल दान देने में अपने समय अद्वितीय थे और पुरस्कार देने में प्रसिद्ध थे। गान विद्या भी अच्छी जानते थे। उनके  दोहे प्रसिद्ध हैं. उनकी कहावतें और लतीफ़े सब में प्रचलित हैं।

Note: आपके पास राजा बीरबल के बारे / About King Birbal In Hindi मैं और Information हैं, या दी गयी जानकारी मैं कुछ गलत लगे तो तुरंत हमें कमेंट और ईमेल मैं लिखे हम इस अपडेट करते रहेंगे। धन्यवाद।

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श्री कृष्ण जन्माष्टमी पर निबंध | Krishna Janmashtami Essay and Information

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Janmashtami Essay in Hindi

“नन्द के घर आनंद भयो,
जय कन्हैया लाल की!
हाथी घोड़ा पालकी,
बोलो जय कन्हैया लाल की!”

Janmashtami – जन्माष्टमी का पर्व हिन्दू धर्म का खास पर्व है इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने जन्म लिया था। इसलिए इस पर्व को कृष्ण जी के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है वहीं श्री कृष्ण को भगवान विष्णु का अवतार भी माना जाता है। ये पर्व पूरे देश में हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है।

Janmashtami Essay Information
Janmashtami Essay Information

श्री कृष्ण जन्माष्टमी पर निबंध – Krishna Janmashtami Essay and Information in Hindi

जन्माष्टमी के पावन पर्व पर लोग पूरे दिन व्रत रखते हैं और कान्हा जी का जन्मदिन मनाते हैं। सभी मंदिरों में इस दिन 12 बजे भगवान श्री कृष्ण का जन्म करते हैं, इस दिन घरों में तरह-तरह के पंचामृत, पंजीरी, पाग, सिठौरा समेत कई पकवानों का भोग श्री कृष्ण को लगाया जाता है।

भारत में हिन्दू धर्म के लोग अपनी-अपनी रीति-रिवाज से जन्माष्टमी को मनाते हैं। इस दिन मंदिरों में सुंदर झांकियां भी सजती है जिन्हें देखने के लिए भीड़ उमड़ती हैं यही नहीं लोग अपने बालगोपालों को भगवान श्री कृष्ण के वेष में सजाते हैं और जिससे मानो पूरा माहौल कृष्णामयी हो जाता है। इस वेष में कभी वे यशोदा मैया के लाल होते हैं, तो कभी ब्रज के नटखट कान्हा दिखते हैं।

कब मनाया जाता है जन्माष्टमी का त्योहार – When is the Festival of Janmashtami Celebrated

जन्माष्टमी का त्योहार हिन्दू कैलेंडर के मुताबिक रक्षाबंधन के बाद भाद्रपद महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है।

क्यों मनाया जाता है जन्माष्टमी का त्योहार ? – Why is the Festival of Janmashtami Celebrated

श्री कृष्ण देवकी और वासुदेव की आठवीं संतान थी। राजा कंस मथुरा नगरी का था, जिसने यादवों के प्रांत में शासन किया था और जो बहुत अत्याचारी था। उसके अत्याचार इतने बढ़ गए थे कि उसने मथुरावासियों का रहना मुश्किल कर दिया था।

वहीं एक दिन राजा कंस के लिए भविष्यवाणी हुई कि उसकी बहन देवकी की आठवीं संतान उनका वध कर देगी फिर क्या था राजा कंस ने अपनी बहन की संतानों को बारी-बारी से मारना शुरु कर दिया। 6 पुत्रों का वध करने के बाद देवकी और वासुदेव की सातवीं संतान बलराम को गुप्त रूप से रोहिणी को सौंप दी गई।

वहीं जब उनकी आठवीं संतान श्री कृष्ण का जन्म हुआ तब वासुदेव रात के अंधरे में जेल से बच निकले और अपने पुत्र श्री कृष्ण को गोकुला में अपने पालक माता-पिता, यशोदा और नंदा के हवाले कर दिया। जिसके बाद मइयां यशोदा नटखट कान्हा की देखभाल करने लगी।

तानाशाह और अत्याचारी मामा कंस की नजरों से श्री कृष्ण का जन्म हुआ इसलिए इस दिन को उनके जन्मदिवस के रूप में मनाया जाने लगा।

“परित्राणाय साधुनां विनाशाय च दुष्कृताम् धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे!”

श्री कृष्ण का अवतार पृथ्वी पर फैले अंधकार और बुरी ताकतों को नष्ट करने के लिए था। श्री कृष्ण के बारे में ये भी कहा जाता है कि वे एक सच्चे ब्राम्हण थे जो निर्वाण पहुंचे थे। कृष्णा के नीले रंग को आकाश की अनंत क्षमता और भगवान की शक्ति को प्रकट करता है।

इसके साथ ही उनकी पीली पोशाक पृथ्वी के रंग का प्रतिनिधित्व करती है। बुराई का नाश करने और भलाई को पुनर्जीवित करने के लिए श्री कृष्ण के रूप में एक शुद्द अनंत चेतना का जन्म हुआ था।

श्री कृष्ण बांसुरी बजाने के शौकीन थे उनकी बांसुरी की मोहक धुन दिव्यता का प्रतीक है। वहीं बड़े होने के बाद श्री कृष्ण वापस मथुरा लौट आए जहां उन्होनें अपनी दिव्य शक्ति से राजा कंस के बढ़ रहे अत्याचार और उनकी वजह से फैल रहीं बुराइयों का अंत करने के लिए अपने मामा कंस का अंत कर दिया और वहां फैले अंधेरे को मिटा दिया।

भगवान श्रीकृष्ण के कई नाम – Name of Lord Shiva

भगवान श्री कृष्ण के कई नाम हैं। गोपाल, श्यामसुंदर, गोबर्धनधारी, दीनदयाल, सावरिया, चितचोर, मुरलीधर, बंसीधर, मोहन, मुरारी, आदि इसके साथ ही भगवान श्री कृष्ण को अलग-अलग स्थानों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है।

उत्तर प्रदेश में कृष्ण या गोपाल, गोविन्द इत्यादि नामों से पूजा जाता है। वहीं राजस्थान में श्रीनाथजी या ठाकुरजी के नाम से स्मरण किया जाता है। महाराष्ट्र में विट्ठल के नाम से भगवान जाने जाते हैं।

इसी तरह उड़ीसा में जगन्नाथ के नाम से जाने जाते हैं। बंगाल में गोपालजी, तो दक्षिण भारत में वेंकटेश या गोविंदा के नाम पूजा होती है। गुजरात में द्वारिकाधीश के रूप में लोग श्रीकृष्ण को याद करते हैं।

श्री कृष्ण का जीवन

श्री कृष्ण के जीवन में कर्म की निरंतरता और कभी भी निष्क्रिय नहीं रहना उनकी अवतारी को सिद्ध करती हैं। श्री कृष्ण भगवान का रूप था ये एहसास उन्होनें अपने जन्म और बालपन की घटनाओं से ही दिला दिया था।

जिस तरह अत्याचारी मामा कंस से बचकर उनका कारागृह में जन्म हुआ फिर उसके बाद राजा कंस के सख्त पहर में वासुदेव जी का यमुना पार कर गोकुल तक श्री कृष्ण को ले जाना फिर दूध पीते वक्त पूतना का वध, बक, कालिय और अघ का दमन उन्होनें अपने बचपन में ही कर दिया, बालपन से ही कान्हा जी की बुराई को खत्म कर जिसे अपनी दिव्य शक्ति का प्रदर्शन कर दिया था जिस पर किसी तरह का शक नहीं था।

यहीं नहीं जब ये नटखट कान्हा बड़े हुए तब गोपियों संग उनकी मित्रता और इसके बाद अत्याचारी मामा कंस का वध किया। अर्थात जब से वे पैदा हुए ऐसी कोई घटना नहीं है जहां वे मौजूद नहीं हो, महाभारत की लड़ाई में धनुर्धारी अर्जुन के सारथी बने। इस तरह भगवान श्री कृष्ण की सक्रियता हमेशा ही बनी रही।

भगवान श्री कृष्ण को भगवान का पूर्ण अवतार कहा गया है। श्री कृष्ण का बहु आयामी व्यक्तित्व दिखाई देता है। वे परम योद्धा थे, लेकिन वे अपनी वीरता का इस्तेमाल साधुओं के परित्राण के लिए करते थे। इसके साथ ही वे एक महान राजनीतिज्ञ भी थे लेकिन उन्होंने इस राजनैतिक कुशलता का इस्तेमाल धर्म की स्थापना के लिए किया था।

वे परम ज्ञानी थे। इसलिए उन्होनें अपने ज्ञान का इस्तेमाल लोगों को धर्म के सरल और सुगम रूप को सिखाने में किया था, वे योगीराज थे। उन्होंने योगबल और सिद्धि की सार्थकता लोग मंगल के काम को करने में बताया और उसका इस्तेमाल किसी अन्य स्वार्थसिद्धि के किया जाना चाहिए। वे योग के सबसे बड़े ज्ञाता, व्याख्याता और प्रतिपालक थे।

कैसे मनाते हैं श्री कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व ? – How do we celebrate Lord Krishna Janmashtami?

जन्माष्टमी के दिन हिन्दू धर्म के लोग भगवान श्री कृष्ण का अराधना कर, श्रद्धा भाव से व्रत रखते हैं और इस पर्व के लिए मंदिरों में पूजा-पाठ करते हैं और बड़ हर्ष और उल्लास के साथ उनका जन्मोत्सव बनाते हैं।

रात को 12 बजे सभी मंदिरों में घरों में भगवान श्री कृष्ण का जन्म होता है। पूरा माहौल भक्तिमय होता है महिलाएं इस मौके पर अपने घर में तरह-तरह के पकवान बनाती हैं भगवान श्री कृष्ण को इसका भोग लगाती है और फिर भक्तजन प्रसाद ग्रहण कर अपना उपवास खोलते हैं।

श्री कृष्ण जन्माष्टमी के दौरान कई जगहों पर भव्य मेला का आयोजन किया जाता है। वृन्दावन, मथुरा, द्वारका, तेघरा (बिहार) आदि अनेक स्थानों पर बहुत ही शानदार मेला का आयोजन होता है।

यह मेला कई दिनों तक चलता है और कई पंडाल बनाए जाते हैं और इनमें भगवान श्री कृष्ण के जीवन से जुड़ी घटनाओं को मूर्ति द्वारा झांकी स्वरुप बनाया जाता है। पूरा माहौल कृष्णमय हो जाता है। हर तरफ बस श्री कृष्ण के चरित्र का गुणगान किया जाता है। रास लीला में कृष्ण की लीलाओं को दिखाया जाता है।

श्री कृष्ण जन्माष्टमी को लेकर खास तैयारियां –

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के दिन मंदिरों को खासतौर पर सजाया जाता है। इस मौके पर लोग अपने बालगोपालों को भी श्री कृष्ण का वेष पहनाकर तैयार करते हैं इसके साथ ही भगवान श्री कृष्ण और राधा जी की झांकियां सजाई जाती हैं। और भगवान श्रीकृष्ण को झूला झुलाया जाता है।

गोकुल में जन्माष्टमी से एक दिन पहले क्यों मनाई जाती है छठी पूजा, एवं इससे जुड़ी पौराणिक कथा – Krishna Chati Utsav

भगवान श्री कृष्ण के जन्मोत्सव जन्माष्टमी के पर्व को पूरे देश में बेहद हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है, इस मौके पर लोग कई दिन पहले ही इसकी तैयारियों में जुट जाते हैं। हिन्दुओं के इस बेहद खास पर्व को देश के हर कोने में अलग-अलग तरह से मनाया जाता है।

वहीं श्री कृष्ण की नगरी में गोकुल में इसे मनाने का तरीका एकदम अलग और निराला है। गोकुल में जन्माष्टमी के पावन पर्व पर अलग ही रौनक देखने को मिलती है। वहीं यहां पर मनाई जाने वाली जन्माष्टमी की रस्में भी अलग तरह की होती हैं।

गोकुल नगरी में श्री कृष्ण जन्माष्टमी से ठीक एक दिन पहले छठी पूजन का आयोजन होता है, जिसके लिए मंदिरों में बेहद खास सजावट होती है। वहीं इसकी तैयारियां गोकुल नगरी में काफी पहले से ही होने लगती है, तो आइए जानते हैं कि किन-किन तरीकों और रस्मों से  गोकुल में श्री कृष्ण जन्माष्टमी का त्योहार मनाया जाता है-

जन्माष्टमी से एक दिन पहले छठी पूजन क्यों होती है ?

गोकुल की  छोटी-छोटी गलियों में आज भी नटखट कान्हा के होने का एहसास होता है। वहीं गोकुल नगरी में श्री कृष्ण के जन्मोत्सव को लेकर बेहद खास तैयारियां की जाती हैं एवं इस पर्व को गोकुलवासी एकदम अलग एवं अनूठी तरीके से मनाते हैं।

गोकुल नगरी मथुरा में श्री कृष्ण जन्मोत्सव  से एक दिन पहले श्री कृष्ण का छठी महोत्सव   करने की परंपरा है। जिस तरह हिन्दू धर्म में बच्चे के जन्म के 6वें दिन छठ पूजा होती है।

उसी तरह नटखट कान्हा जी की भी छठी होती है, लेकिन कान्हा जी का छठी महोत्सव श्री कृष्ण जन्माष्टमी से एक दिन पहले होता है, इसके पीछे एक कथा भी काफी प्रचलित है –

गोकुल में कान्हा की छठी पूजा से जुड़ी कथा – Chati Utsav Story

भगवान श्री कृष्ण का छठी जन्मोत्सव के पीछे जुड़ी पौराणिक कथा के मुताबिक, भगवान श्री कृष्ण के जन्म के तुरंत बाद उनके प्राणों की रक्षा के लिए उनके पिता वासुदेव जी उन्हें अपने मित्र उन्हें नंद जी के घर छोड़ कर चले गए थे।

दरअसल, श्री कृष्ण के अत्याचारी मामा कंस को, एक आकाशवाणी द्धारा यह घोषणा की गई थी कि उसकी बहन देवकी और वासुदेव के आठवी संतान द्धारा उसकी मृत्यु होगी, जिसके बाद अपनी बहन देवकी की संतान से अपनी हत्या किए जाने से डरे कंस ने श्री कृष्ण के जन्म से पहले ही उसकी हत्या की योजना बना ली थी।

इसी के चलते उसने अपनी बहन देवकी को ही कारागार में बंद कर दिया था, वहीं राक्षसी कंस के कारागार में ही श्री कृष्ण का जन्म हुआ था, लेकिन जब जेल के सभी पहरेदार सो गए तब वासुदेव, चुपचाप, श्री कृष्ण को नंद जी के घर छोड़ आए।

वहीं जब राक्षसरूपी मामा कंस को इस बात की जानकारी हुई तो उसने मथुरा और गोकुल ने सभी बच्चों को जान से मारने का आदेश दे दिया, जब श्री कृष्ण सिर्फ 6 दिन के थे। जिसके आदेश के तहत राक्षसी पूतना ने गोकुल के बच्चों को मारना शुरु कर दिया, वहीं जब इसके बारे में यशोदा मैया को पता चला तो वे बहुत घबरा गईं और श्री कृष्ण को ईधर-उधर छिपाने लगी।

इस दौरान यशोदा मैया अपने नंदलाल की छठी की पूजा करना भूल गईं। वहीं यशोदा मैया के काफी प्रयासों के बाद भी राक्षसी पूतना नटखट कान्हा को अपने साथ ले जाने में सफल रही और फिर श्री कृष्ण को जान से मारने के उद्देश्य से उसे अपना जहरीला दूध पिलाने लगी, तभी भगवान श्री कृष्ण ने राक्षसी पूतना के स्तन को बेहद जोर से काटा, जिससे उसकी मौत हो गई।

फिर जैसे-जैसे समय बीतता गया, यशोदा के नंदकिशोर का जन्मदिवस आया, तब यशोदा मैया ने गोकुल वासियों को श्री कृष्ण के जन्मोत्सव में शामिल होने के लिए न्योता दिया,  तब बुजुर्ग महिलाओं ने और पंडितों ने यशोदा मैया से जन्मोत्सव मनाने से पहले कान्हा की छठी पूजन करने के लिए कहा, जिसके बाद यशोदा मैया ने अपने कान्हा की श्री कृष्ण जन्माष्टमी से एक दिन पहले सप्तमी को छठी पूजी।

ऐसी मान्यता है कि तभी से श्री कृष्ण की गोकुल नगरी में श्री कृष्ण जन्माष्टमी से एक दिन पहले छठी पूजा करने की परंपरा चली आ रही है। छठी पूजा को गोकुलवासी बेहद धूमधाम से मनाते हैं।

गोकुल में कैसे मनाते हैं श्री कृष्ण का छठी महोत्सव – Chati Mahotsav

भगवान श्री कृष्ण की नगरी मथुरा में भाद्रपद महीने की सप्तमी को यानि की श्री जन्माष्टमी के एक दिन पहले श्री कृष्ण का छठी महोत्सव गोकुलवासियों द्धारा बेहद हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है।

गोकुल में छठी को लेकर काफी पहले से ही तैयारियां की होने लगती है। इस दौरान बाजारों में भी काफी रौनक देखने को मिलती है। सुंदर-सुंदर पोशाकें एवं श्री कृष्ण के श्रंगार के सामान से दुकानें सजी रहती हैं।

आपको बता दें कि श्री कृष्ण के छठी महोत्सव के पावन मौके पर गोकुल में नंदकिला और नंदभवन को भी बेहद खास तरीके से सजाया जाता है। मंदिरों में विशेष प्रकार का भोग तैयार किया जाता है।

वहीं मंदिरों में इस दौरान भजन-कीर्तन का भी आयोजन किया जाता है, जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु हिस्सा लेते हैं। छठी महोत्सव की रौनक देखते ही बनती है, साथ ही श्री कृष्ण भक्तों में काफी उत्साह देखने को भी मिलता है।

इस दौरान सभी श्री कृष्ण की भक्ति में लीन रहते हैं और गोकुल नगरी में  पूरा वातावण श्री कृष्ण भक्ति से ओतप्रोत होता है।

श्री कृष्ण के छठी महोत्सव के दिन ठाकुर  जी का पंतामृत से स्नान करवाया जाता है, और उन्हें नए वस्त्र पहनाकर उनका बेहद खास श्रंगार किया जाता है। वहीं इस छठी के पर्व पर नंद किशोर को कड़ी-चावल का भोग लगाए जाने की भी परंपरा वर्षों से चली आ रही है।

ऐसा भी कहा जाता है कि छठी पूजा के दिन नीचे लिखे गए मंत्र का जाप करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती है –

  • ऊं कृं कृष्णाय नम:
  • ऊं गोविंदाय नम:
  • ऊं नमो भगवते वासुदेवाय नम:

इस तरह से गोकुल नगरी में श्री कृष्ण जन्माष्टमी से एक दिन पहले बेहद खास तरीके से छठ पूजा की जाती है, जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु हिस्सा लेते हैं।

दही-हांडी/मटकी फोड़ प्रतियोगिता – Dahi-Handi / Matki Fod Competition

जन्माष्टमी के पवित्र त्योहार पर दही -हांडी प्रतियोगिता के आयोजन करने की भी परंपरा है। इस प्रतियोगिता में सभी जगह के बाल गोविंदा भी हिस्सा लेते हैं।

छाछ-दही आदि से भरी एक मटकी रस्सी की सहायता से मटकी को ऊपर लटका दिया जाता है और फिर बाल-गोविंदाओं द्वारा मटकी फोड़ने का प्रयास किया जाता है।

इस प्रतियोगिता में शामिल होने वाले प्रतिभागी बड़ी-बड़ी मीनारें बनाकर इस मटकी को फोड़ते हैं और जो प्रतिभागी इस मटकी को फोड़ने में सफल होता है उसे विजेता घोषित किया जाता है। वहीं दही-हांडी प्रतियोगिता में विजेता टीम को इनाम देकर सम्मानित भी किया जाता है।

उपसंहार-

भगवान श्री कृष्ण महान दार्शनिक और तत्वदर्शी थे। अर्जुन को गीता का उपदेश देकर कृष्ण कर्मण्येवाधिकारस्ते की व्याख्या करते हैं और अपना विराट रूप दिखाकर उनका मोह भंग कर देते हैं।

यदि पांडव महाभारत का युद्ध जीत गए तो इसमें सबसे बड़ा श्रेय श्री कृष्ण की कूटनीति को जाता है। महाभारत में अधर्म की हार होती है और समाज में जन-जन तक धर्म का सन्देश पहुंचता है।

वे भागवत धर्म के प्रवर्तक थे। आगे चलकर उनकी आराधना की जाने लगी। और भगवान श्री कृष्ण का नाम दर्शन में इतिहास शामिल हो गया। कृष्ण के ईश्वरत्व और ब्रह्मपद की स्थापना हुई।

भगवान श्री कृष्ण का अवतरण हर युग में दुष्टों का विनाश करने, साधुओं की रक्षा करने और धर्म की स्थापना के लिये होता है।

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जन्माष्टमी पर  कुछ अनमोल विचार – Janmashtami Quotes

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Janmashtami Quotes In Hindi

सारी दुनिया उन्हें अलग अलग नाम से जानती हैं। जिनको देवकी ने जन्म दिया और यशोदा मैया ने पाला, जो सबके दुलारे हैं। आज भी उस भगवान श्री कृष्ण का जन्म पूरे देश में धूमधाम से मनाया जाता है, यह पर्व हिन्दुओं का खास पर्व है, जिसकी तैयारियां कई दिन पहले से की जाती है। इस मौके पर श्री कृष्ण जी के मंदिरों में बेहद खूबसूरत तरीके से सजावट की जाती है।

इसके साथ ही घरों में तरह-तरह के पकवान बनाए जाते हैं। इस मौके पर कई लोग व्रत भी रखते हैं और रात के 12 बजे श्री कृष्ण के बाल स्वरुप लड्डू गोपाल का जन्म करते है, और खुशहाल जीवन की कामना करते हैं।

आपको बता दें कि माता यशौदा के लाल श्री कृष्ण जो कि माखन के लिए पूरे बृज को अपनी उंगलियों पर नचाते थे, उनका जन्म  भाद्रपद महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र में हुआ था।

वहीं ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान श्री कृष्ण की आराधना करने से मनवांछित फल की प्राप्ति होती है। वहीं इस पावन पर्व को और अधिक खास बनाने के लिए एवं आप अपने दोस्त, परिजनों एवं करीबियों को शुभकामनाएं संदेश एवं मैसेज भेज सकते हैं।

इसलिए आज हम अपने इस आर्टिकल में जन्माष्टमी पर कुछ अनमोल विचार और कोट्स उपलब्ध करवा रहे हैं, जिन्हें आप सोशल मीडिया साइट्स व्हाट्सऐप, फेसबुक, ट्वीटर, इंस्टाग्राम पर शेयर कर सकते हैं। तो आइए नजर डालते  हैं जन्माष्ट्मी पर दिए गए कोट्स – Janmashtami Quotes के बारे में –

जन्माष्टमी पर कुछ कोट्स – Janmashtami Quotes in Hindi

Shree Krishna Janmashtami Quotes

“नन्द के घर आनंद भयो, हाथी घोड़ा पालकी, जय कन्हैया लाल की! शुभ जन्मआष्ट्मी! ”

चंदन की खूश्बू और  रेशम का हार, मंगलमय हो आपको श्री कृष्ण जन्माष्टमी का यह पावन त्योहार।।

“पलकें झुकें और नमन हो जाए, मस्तक झुके और वंदन हो जाए; ऐसी नज़र कंहाँ से लाऊँ, मेरे कन्हैया कि आप को याद करूँ और आपके दर्शन हो जाएं।  जय श्री कृष्णा। श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक बधाई।

हे लालों के लाल हमारे प्‍यारे ठाकुर नंद लाल,  बुराई से सबकी रक्षा करो, दुखों का तुम करो संहार,  श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक बधाई।

Janmashtami Quotes

“राधे जी का प्रेम, मुरली की मिठास, माखन का स्वाद, गोपियों का रास, इन्ही से मिलके बनता है जन्माष्टमी का दिन ख़ास।” . .. Happy janamashtami!

“प्यार क्या होता हैं ये दुनिया को जिसने बताया। दिलों के रिश्तों को जिसने प्रेम से सजाया। उस प्यार के देवता का आज जन्मदिन है!”

“जो है माखन चोर, जो है मुरली वाला, वही है हम सबके दुख-दर्द को दूर करने वाला।। श्रीकृष्ण जन्मोत्सव की बहुत-बहुत बधाई।

टकी तोड़े, माखन खाए, लेकिन फिर भी सबके मन को भाए, राधा के वो प्यारे मोहन, महिमा उनकी दुनिया गाए।। श्री कृष्ण जन्माष्टमी की ढेर सारी शुभकामनाएं !

Janmashtami Shayari

“जय श्री कृष्णा! मंगल, मूहं आपकी कृपा अपरम्पार, ऐसे श्री कान्हा जी को, हम सबका नमस्कार!”

“इस जन्माष्टमी पर कान्हा जी आपके घर आये और माखन मिश्री के साथ सारे दुःख और कष्ट भी ले जाए।”

“एक तरफ सांवले कृष्ण और दूसरी तरफ राधिका गोरी, जैसे एक-दूसरे से मिल गए हों चाँद-चकोरी…।।।। हैप्पी जन्माष्टमी।।

मुरली मनोहर कृष्ण कन्हैया जमुना के तट पर विराजे हैं, मोर मुकुट पर कानों में कुण्डल कर में मुरलिया साजे है।। श्री कृष्ण जन्माष्टमी की बधाई।

Janmashtami Quotes

“राधा की चाहत हैं कृष्णा, उसके दिल की विरासत हैं कृष्णा, चाहे कितना भी रास रचाए कृष्णा दुनिया तो फिर भी यही कहती हैं “राधे कृष्ण।”

“श्री कृष्णा गोविन्द हरे मुरारी हे नाथ नारायण वासुदेव…!!”

“राधा-राधा जपने से हो जाएगा तेरा उद्धार, क्योंकि यही वही है वो नाम, जिससे कृष्ण को अटूट प्यार।। श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं।।

जानते हो कृष्ण, क्यों तुम पर हमें गुरुर हैं, क्योंकि तुम्हारे होने से ही हमारी ज़िन्दगी मे नूर हैं।। श्री कृष्ण जन्माष्टमी की बधाई।।

Quotes on Krishna Janmashtami

भगवान विष्णु के 8वें अवतार भगवान श्री कृष्ण का जन्म धरती को कंस के अत्याचारों से मुक्ति दिलाने के लिए हुआ था। श्री कृष्ण ने गीता के कई ऐसे उपदेश दिए हैं, जिनका अगर जीवन में अनुसरण कर लिया जाए तो इंसान एक सुखमय और सफल जिंदगी जी सकता है।

भगवान श्री कृष्ण ने संपूर्ण जगत को प्रेम का पाठ पढ़ाने के साथ गीता में जीवन-मरण के तमाम रहस्यों एवं जीवन जीने की कला के बारे में बाताया है यही नहीं कृष्णा ने कर्म-संयास योग के बारे में भी बताया है।

कृष्ण की जन्मोत्सव पर लिखे इन सर्वश्रेष्ट विचारों को अपने करीबियों और दोस्तों को शुभकामना संदेश भेजना न भूलें,एवं इस शुभकामाएं संदेश को अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर शेयर कर इस पर्व को खास बनाएं।

Shree Krishna Janmashtami Quotes in Hindi

“मुरली मनोहर, ब्रज की धरोहर, वो है नंदलाला गोपाला, बंसी की धुन से सबके दुख हरने वाला, सब मिलकर मचाओ धूम की अब कृष्ण है आने वाला!!! श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक बधाई।

“छोटी छोटी गैयाँ छोटे छोटे ग्वाल, छोटो सो मेरो मैदान गोपाल…!!”

“मुरली मनोहर कृष्ण कन्हैया जमुना के तट पे विराजे हैं, मोर मुकुट पर कानों में कुण्डल कर में मुरलिया साजे है।”

“वृंदावन में रास रचाने, आ गया नन्द लाल कृष्ण कन्हैया।”

Quotes on Krishna Janmashtami

“कृष्णा जिनका नाम। गोकुल जिनका धाम। ऐसे श्री कृष्णा भगवन को। हम सबका प्रणाम।”

“माखन का कटोरा मिश्री का थाल, मिटटी की खुशबु बारिश की फुहार, राधा की उम्मीदें कन्हैया का प्यार, मुबारक हो जन्माष्टमी का त्यौहार!”

“प्यार दो आत्माओं का मिलन होता हैं, ठीक वैसे हीं जैसे, प्यार में श्री कृष्ण का नाम राधा और राधा का नाम श्री कृष्ण होता हैं।। श्री कृष्ण जन्माष्टमी  की बधाई।।

कृष्ण की है महिमा, कृष्ण का प्यार, कृष्ण में श्रद्धा औऱ कृष्ण से संपूर्ण संसार, मुबारक हो सबको जन्माष्टमी का यह पावन त्योहार।।

Janmashtami Shayari in Hindi

हिन्दू धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के पवित्र त्योहार के मौके पर हर तरफ धार्मिक वातावरण होता है। जगह-जगह धार्मिक  कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है।

इस मौके पर मंदिरों में श्री कृष्ण जी के भजन-कीर्तन के साथ श्री कृष्ण की बाल लीलाएं भी दिखाई जाती है। इसदिन हर कोई श्री कृष्ण की भक्ति में लीन नजर आता है, तो वहीं आजकल लोग अपने बेटा को श्री कृष्ण के वेष में तैयार करते हैं तो बेटी को राधा बनाते हैं।

जगह-जगह सांस्कृतिक कार्यक्रम एवं भंडारों का भी आयोजन होता है।  वहीं जन्माष्टमी के इस पर्व में यह अनमोल विचार और शुभकामनाएं संदेश के माध्यम से लोगों के मन में श्री कृष्ण के प्रति आस्था और अधिक गहराती है साथ ही इस तरह के मैसेज लोगों को आपस में जोड़ने का काम करते हैं।

इसलिए अपनी फेसबुक वॉल एवं अन्य सोशल मीडिया अकाउंटस् पर जन्माष्टमी पर दिए गए इन कोट्स को शेयर करिए और रिश्तों में मिठास घोलिए।

Janmashtami Quotes in Hindi

“इस जन्माष्टमी पर श्री कृष्णा आपके घर आए और माखन मिश्री के साथ सारे दुःखों और कष्ट को भी ले जाएं।। श्री कृष्ण जन्माष्टमी की बहुत-बहुत बधाई।

“गोकुल में जिसने किया निवास, उसने गोपियों के संग रचा इतिहास, देवकी-यशोदा जिनकी मैया, ऐसे है हमारे कृष्ण कन्हैया! शुभ जन्मआष्ट्मी! ”

“बाल रूप है सब को भाता माखन चोर वो कहलाया है, आला आला गोविंदा आला बाल ग्वालों ने शोर मचाया है, झूम उठे हैं सब ख़ुशी में, देखो मुरली वाला आया है, कृष्णा जन्माष्टमी की बधाई!”

चोरी की हर आदमी, करता है निंदा घोर, लेकिन फिर दुनिया को भाया मगर, अपना माखन चोर। जय श्री कृष्णा! श्री जन्माष्टमी की शुभकामनाएं।।

Janmashtami Shayari in Hindi

“गोपाल सहारा तेरा है, नंदलाल सहारा तेरा है, तू मेरा है और मैं तेरा हूँ, मेरा सहारा और कोई नहीं, तू माखन चुराने वाला है, तू चित को चुराने वाला है, तू गाय चराने वाला है, तू बंसी बजाने वाला है, ओ मेरे मुरारी तू रास रचाने वाला है।। कृष्ण जन्माष्टमी की शुभकामनाएं।।

“माखन -चोर हैं नन्द -किशोर, बाँधी जिसने हैं प्रीत की डोर, हरे कृष्णा हरे मुरारी, पूजती जिन्हें दुनिया सारी, आओ उनके गुण गायें, सब मिलके जन्माष्टमी मनाएँ।”

“माखन चुराकर जिसने खाया, बंसी बजाकर जिसने सबको नचाया, ख़ुशी मनाओ उनके जन्मदिन की, जिसने दुनिया को प्रेम का रास्ता दिखाया।”

श्री कृष्ण के कदम आपके घर आएं, आप खुशियों के दीप जलाएं, परेशानी आपसे आंखे चुराए, कृष्ण जन्मोत्सव की आपको ढेर सारी शुभकामनाएं।

Wish u very happy Shri Krishna Janmashtami

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Guru Nanak Biography –गुरु नानक जीवनी और इतिहास

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Guru Nanak in Hindi

“धन-समृद्धि से युक्त बड़े बड़े राज्यों के राजा-महाराजों की तुलना भी उस चींटी से नहीं की जा सकती है जिसमे ईश्वर का प्रेम भरा हो।”

गुरु नानक देव जी सिख धर्म के संस्थापक होने के साथ-साथ सिख धर्म के प्रथम गुरु भी थे। गुरु नानक जी ने अपने शिष्यों को कुछ ऐसे उपदेश और शिक्षाएं दी जो उनके अनुयायियों के बीच आज भी काफी लोकप्रिय और प्रसांगिक है। गुरु नानक देव जी के अध्यात्मिक शिक्षा के आधार पर ही सिख धर्म की स्थापना की गई थी।

गुरु नानक स को, बाबा नानक, नानकशाह, गुरु नानक देव जी आदि के नामों से भी जाना जाता है। इसके साथ ही उन्हें धार्मिक नवप्रवर्तनक माना जाता है। सिख धर्म के प्रथम गुरु होने के साथ-साथ वे एक महान दार्शनिक, समाजसुधारक, देशभक्त, धर्मसुधारक, योगी आदि भी थे।

गुरु नानक जी बहुमुखी प्रतिभा वाले व्यक्तित्व थे। उन्होंने अंधविश्वास, मूर्ति पूजा आदि का कट्टर विरोध किया। इसके अलावा गुरु नानक जी ने अपने जीवन में धार्मिक कुरोतियों के खिलाफ अपनी आवाज उठाई थी। गुरु नानक जी ने दुनिया के कोने-कोने में सिख धर्म का प्रचार करने के लिए मध्य पूर्व और दक्षिण एशिया में यात्रा भी की थी, उन्होंने अपने अनुयायियों को ईश्वर तक पहुंचने का रास्ता बताया।

इसके साथ ही उन्होंने लोगों को आपस में प्रेम करना, जरूरतमंदों की सहायता करना, महिलाओं का आदर करना आदि सिखाया, अपने अनुयायियों को ईमानदारी पूर्वक गृहस्थ जीवन की शिक्षा दी और जीवन से संबंधित कई उपदेश भी दिए।

आपको बता दें कि गुरु नानक देव जी की महान शिक्षाओं को 974 भजनों के रूप में अमर किया गया था, जिसे सिख धर्म के पवित्र पाठ ‘गुरु ग्रंथ साहिब’ के नाम से जाना जाता हैं। चलिए जानते हैं गुरु नानक देव जी के जीवन से जुड़ी खास बातों के बारे में –

सिख धर्म के प्रथम गुरु – गुरु नानक जी की जीवनी – Guru Nanak Biography

Guru Nanak Biography

गुरु नानक देव जी के बारे में एक नजर में – Guru Nanak Information

नाम (Name) गुरु नानक देव जी
जन्म (Birthday)

15 अप्रैल, 1469, तलवंडी, शेइखुपुरा जिला

(वर्तमान में पंजाब, पाकिस्तान में स्थित है )

पिता का नाम (Father Name) कल्याणचंद (मेहता कालू)
माता का नाम (Mother Name) तृप्ता देवी
पत्नी (Wife Name) सुलक्षिणी देवी
बच्चे (Children Name) श्री चंद और लखमी दास
मृत्यु (Death)  22 सितंबर, 1539 करतारपुर (वर्तमान में पाकिस्तान)

गुरु नानक देव जी का जन्म, परिवार एवं शुरुआती जीवन – Guru Nanak History in Hindi

सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव जी के जन्मतिथि के बारे में इतिहासकारों के अलग-अलग मत है, लेकिन कई विद्धानों इनका जन्म 15 अप्रैल, 1469 में कार्तिक पूर्णिमा वाले दिन मानते हैं और इसी दिन पूरे देश में गुरु नानक जयंती भी मनाई जाती है, गुरु नानक के जन्म दिवस को प्रकाश पर्व के रुप में मनाया जाता है।

आपको बता दें कि गुरु नानक देव जी रावी नदी के किनारे स्थित गांव तलवंडी में जन्में थे। जो कि आज लाहौर पाकिस्तान में स्थित है। वहीं बाद में गुरु नानक जी के नाम पर इनके गांव तलवंडी का नाम ननकाना पड़ गया था।

गुरु नानक जी के पिता का नाम कल्याण चंद (मेहता कालू) था, जो कि स्थानीय राजस्व प्रशासन के अधिकारी थे, जबकि उनकी माता का नाम तृप्ता देवी था। इनकी एक बड़ी बहन भी थी, जिनका नाम नानकी था।

पाठशाला में नहीं रमा नानक जी का मन – Guru Nanak Education

बचपन से ही सिख धर्म के प्रथम गुरु नानक देव जी का मन पढ़ाई-लिखाई में नहीं लगता था। वे शुरु ही अध्यात्म और भगवतप्राप्ति में रुचि रखते थे। नानक साहब हमेशा ही सांसारिक विषयों के प्रति उदासीन रहा करते थे एवं ज्यादातर अपना समय साधु-संतों के साथ धार्मिक भजन, कीर्तन, सत्संग और आध्यात्मिक चिंतन में व्यतीत करते थे, इसके साथ ही हमेशा ईश्वर, प्रकृति और जीवों के संबंध में बातें किया करते थे।

वहीं जब उनके पिता ने यह सब देखा तो उन्हें जानवर चराने के काम की जिम्मेंदारी सौंप दी, ताकि वे अपनी परिवारिक जिम्मेदारियों को समझ सकें, लेकिन इसके बाद भी गुरुनानक देव जी अपने आत्म चिंतन में डूबे रहते थे।

वहीं जब किसी तरह गुरु नानक देव जी का साधु-संतों की संगत में बैठना-उठना कम नहीं हुआ, फिर उनके पिता कालू मेहता जी ने उनकी साधु-संतों की संगत को कम करने के लिए और अपने परिवारिक कर्तव्यों का बोध करवाने के लिए एवं व्यापार के विषय में जानकारी हासिल करने के लिए उन्हें गांव में एक छोटी सी दूकान खुलवा दी और 20 रुपए देकर बाजार से खरा सौदा कर लाने के लिए कहा।

लेकिन गुरु नानक जी ने उन 20 रुपए से भूखे, निर्धनों और साधुओं को खाना खिला दिया। फिर घर आकर जब उनके पिता ने सौदा के बारे में पूछा तब, नानक जी ने जवाब देते हुए कहा कि, उन पैसों का उन्होंने सच्चा सौदा (व्यापार) किया है।

वहीं जिस जगह पर गुरु नानक जी ने गरीबों, भूखों को खाना खिलाया था, वहां आज भी सच्चा सौदा नाम का गुरुद्धारा बनाया गया है। इसके बाद उनके माता-पिता ने उनका गृहस्थ जीवन में लगाने के लिए उनकी शादी कर दी।

गुरु नानक देव जी का विवाह – Guru Nanak Marriage

दुनिया को सच्चाई के मार्ग पर चलने की सीख देने वाले गुरु नानक देव जी की 16 साल की उम्र में शादी के बंधन में बंध गए थे। उनका विवाह गुरुदासपुर जिले के पास लाखौकी नामक गांव में रहने वाली मूलराज की बेटी सुलक्षिणी के साथ हुआ था।

शादी के बाद दोनों को श्री चंद और लखमी दास नाम के दो सुंदर पुत्र भी हुए। हालांकि शादी के बाद भी गुरुनानक जी का स्वभाव नहीं बदला और वे आत्म चिंतन में डूबे रहे।

रुढिवादिता एवं धार्मिक अंधविश्वास का किया जमकर विरोध:

गुरु नानक देव जी मूर्ति पूजा, धार्मिक आडम्बर, अंधविश्वास, पाखंड, धार्मिक कुरोतियों आदि के शुरु से ही घोर आलोचक रहे हैं। उन्होंने काफी कम उम्र से ही रुढ़िवादिता के खिलाफ विरोध करना शुरु कर दिया था। इसके लिए उन्होंने कई तीर्थयात्राएं भी की और धर्म प्रचारकों को उनकी कमियां बताई साथ ही लोगों से धार्मिक आडम्बरों एवं धर्मांधता से दूर रहने का अनुरोध किया।

गुरु नानक देव जी का मानना था कि ईश्वस कहीं बाहर नहीं, बल्कि हमारे अंदर ह्रदय में ही समाए हुए हैं, इसके साथ ही उन्होंने बताया कि जिसके ह्रदय में प्रेम, दया और करुणा का भाव नहीं होता अर्थात नफरत, निंदा, क्रोध, निर्दयता आदि दोष होते हैं, ऐसे ह्रदय में ईश्वर का बास नहीं हो सकता है।

जनेऊ धारण करवाने की परंपरा (यज्ञोपवित संस्कार) का किया विरोध:

गुरु नानक देव जी ने शुरु से ही रुढिवादिता और धार्मिक आडम्बरों के खिलाफ थे। जब गुरु नानक महज 11 साल के थे, तब हिन्दू धर्म की परंपरा के मुताबिक उनका भी यज्ञोपवीत संस्कार अर्थात जनेऊ धारण करवाने की फैसला लिया गया।

जिसके चलते उनके पिता कालू मेहता ने इस परंपरा को धूमधाम करने के लिए अपने सभी करीबियों एवं सगे-सबंधियों एवं रिश्तेदारों को न्योता दे डाला, वहीं इसके बाद जब पंडित जी नन्हें बालक नानक देव जी के गले में जनेऊ धारण करवाने वाले थे, तब नानक देव जी ने इस जनेऊ को धारण करने से यह कहकर मना कर दिया कि, मुझे इस कपास के धागे पर भरोसा नहीं है।

क्योंकि यह वक्त के साथ मैला हो जाएगा, टूट जाएगा और मरते समय शरीर के साथ जल जाएगा, तो फिर यह जनेऊ आत्मिक जन्म के लिए कैसे हो सकता है, इसके लिए तो किसी अलग तरह का जनेऊ होना चाहिए, जो कि आत्मा को बांध सकें। साथ ही गुरु नानक देव जी ने अपने यज्ञोपवित संस्कार के दौरान यह भी कहा कि गले में सिर्फ इस तरह का धागा डालने से मन पवित्र नहीं होता है बल्कि सदाचार और अच्छे आचरण के द्धारा ही मन को पवित्र किया जा सकता है।

इस तरह उन्होंने जनेऊ पहनने की परंपरा का विरोध किया एवं हिन्दू धर्म में फैली अन्य इस तरह की धार्मिक बुराइयों के खिलाफ भी अपनी आवाज उठाई। गुरु नानक देव जी के बचपन में कई ऐसी चमत्कारिक घटनाएं घटीं, जिसे देखकर गांव के लोग इन्हें दिव्य व्यक्तित्व के रुप में मानने लगे।

गुरु नानक देव जी की यात्राएं (उदासियां) – Guru Nanak Yatra

गुरुनानक देव जी ने अध्यात्मिक ज्ञान की प्राप्ति, धार्मिक बुराइयों को दूर करने और धर्म प्रचारकों को उनकी कमियों को बताने के लिए तीर्थस्थलों पर जाने का फैसला किया और वे अपने परिवार की जिम्मेदारी अपने ससुर पर छोड़कर करीब 1507 ईसवी में तीर्थयात्रा पर निकल गए।इन तीर्थयात्राओं के दौरान रामदास, मरदाना, बाला और लहरा साथी भी इनके साथ गए थे।

इस तरह गुरुनानक जी अपनी तीर्थयात्राओं के माध्यम से चारों तरफ संप्रदायिक एकता, सदभाव एवं प्रेम की ज्योति जलाई थी, जो कि आज भी प्रज्जवलित है।

इसके साथ ही अपनी धार्मिक यात्राओं के दौरान गुरुनानक देवी जी ने व्यक्ति के मरने के बाद यानि की पितरों को करवाए जाने वाले भोजन का भी काफी विरोध किया था और कहा कि मरने के बाद दिया जाने वाला भोजन पितरों को नहीं मिलता है, इसलिए सभी को जीते जी अपने मां-बाप की सच्चे भाव से सेवा करनी चाहिए।

आपको बता दें कि 1521 ईसवी तक गुरु नानक देव जी अपनी तीन यात्राचक्र पूरे किए थे, जिनमें उन्होंने भारत, फारस, अरब और अफगानिस्तान जैसे देशों में प्रमुख स्थानों की यात्राएं की। आपको बता दें कि इन यात्राओं को पंजाबी में “उदासियाँ” कहा जाता है।

गुरु नानक जी पहली धार्मिक यात्रा (उदासी)

गुरु नानक जी ने अपनी पहली तीर्थ यात्रा (उदासी) 1507 ईसवी में शुरु की और करीब 8 साल तक 1515 ईसवी तक उन्होंने अपनी यह यात्रा पूरी की।

इस यात्रा में उन्होंने प्रयाग, नर्मदातट, हरिद्वार, काशी, गया, पटना, असम, जगन्नाथ पुरी, अयोध्या, कुरुक्षेत्र, रामेश्वर, पानीपत, बीकानेर, द्वारिका, सोमनाथ, पुष्कर तीर्थ, दिल्ली, लाहौर मुल्तान, आदि स्थानों की तीर्थयात्रा की। इन जगहों पर जाकर उन्होंने अपने महान शिक्षाओं और उपदेशों के माध्यम से कई लोगों का ह्रदय परिवर्तन किया और लोगों को सही मार्ग पर चलने की सलाह दी।

लोगो्ं के अंदर दया, करुणा आदि का भाव पैदा किया, कर्मकाण्डियों को ब्राह्मड्म्बरों से निकलाकर रागात्मिकता  भक्ति करना सिखाया, निर्दयी लोगों को प्रेम करना सिखाया, लुटेरों, ठगों को साधु बनाकर उन्हें मानवता का पाठ पढ़ाया।

गुरु नानक की दूसरी यात्रा (‘उदासी’)

सिख धर्म के प्रवर्तक गुरु नानक जी ने अपनी दूसरी यात्रा के माध्यम से भी लोगों को सही तरीके से जीवन जीने का पाठ पढ़ाया, यह यात्रा उन्होंने 1517 ईसवी से शुरु की और करीब 1 साल के दौरान उन्होंने सियालकोट, ऐमनाबाद, सुमेर पर्वत आदि की यात्रा की और लोगों को सही कर्तव्य पथ पर आगे चलने की सीख दी एवं आखिरी में 1518 ईसवी तक वे करतारपुर पहुंचे।

गुरु नानक जी की तीसरी यात्रा (‘उदासी’)

सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव जी ने अपनी तीसरी यात्रा के दौरान क़ाबुल, साधुबेला (सिन्धु), बग़दाद, बल्ख बुखारा, मक्का मदीना, रियासत बहावलपुर, कन्धार आदि स्थानों की यात्रा की। उनकी यह यात्रा 1518 ई. से 1521 ई. तक करीब 3 साल की रही।

वहीं 1521 ईसवी में जब ऐमनाबाद पर मुगल वंश के संस्थापक बाबर ने आक्रमण करना शुरु कर दिया तो, उन्होंने वे अपनी यात्राओं को खत्म कर करतारपुर (वर्तमान पाकिस्तान) में बस गए और अपने जीवन के अंत तक गुरु नानक जी करतारपुर में ही रहे।

गुरु नानक देव जी का आसाधारण व्यक्तित्व:

सिख धर्म के प्रथम गुरु एवं संसार को सही दिशा दिखाने वाले गुरु नानक देव जी एक बहुमुखी एवं विलक्षण प्रतिभा वाले आसाधरण व्यक्ति थे। उन्होंने अपने महान विचारों एवं उपदेशों के माध्यम से लोगों को सुखी जीवन जीने एवं मोक्ष प्राप्ति का रास्ता बताया था।

वह न सिर्फ एक महान दार्शनिक, समाजसुधारक, धर्म सुधारक और पैगम्बर थे बल्कि देश के प्रति निष्ठा रखने वाले देशभक्त, लोगों को आपस में प्रेम सिखाने वाले विश्वबंधु, महान कवि, संगीतज्ञ, त्यागी एवं राजयोगी भी थे। उन्होंने अपने महान विचारों का गहरा प्रभाव लोगों पर छोड़ा था, यहां तक की उनकी क्रिया शक्ति के माध्यम से कई लोगों का ह्रदय परिवर्तन भी हुआ है।

महान विचार वाले गुरु नानक देव जी ने ऊंच-नीच और जात-पात का भेदभाव खत्म करने के लिए सबसे पहले गुरुद्धारों में लंगर की परंपरा चलाई थी, ताकि सभी जाति के लोग एक पंक्ति में बैठकर भोजन ग्रहण कर सकें। वहीं आज भी हर गुरुदारा में गुरु नानक साहब द्धारा चलाई गई लंगर की परंपरा कायम है। लंगर में बिना किसी भेदभाव के संगत सेवा करती हैं।

गुरु नानक देव जी के प्रमुख उपदेश एवं शिक्षाएं – Guru Nanak Teachings

सतगुरु गुरु नानक देव जी ने अपने अध्यात्मिक ज्ञान और महान विचारों से अपने अनुयायियों को मोक्ष प्राप्ति एवं सुखमय जीवन जीने के लिए कई उपदेश और शिक्षाएं दीं, जिनमें से कुछ नीचे लिखे गए हैं –

  • कण-कण में ईश्वर की मौजूदगी है।
  • ईश्वर एक है।
  • हमेशा एक ही ईश्वर की आराधना करनी चाहिए।
  • सच्चे मन से ईश्वर की भक्ति करने वालों को कभी किसी का डर नहीं रहता।
  • सच्चाई, ईमानदारी और कठोर परिश्रम कर ही धन कमाना चाहिए।
  • हमेशा खुश रहना चाहिए एवं भगवान से सदैव ही अपने लिए क्षमा मांगनी चाहिए।
  • मेहनत और ईमानदारी की कमाई में से ज़रूरतमंदों और गरीबों की सहायता जरूर करना चाहिए।
  • कभी भी बुरा काम करने के बारे में न सोचें और न ही कभी किसी का दिल दुखाएं।
  • सभी महिलाएं और पुरुष बराबर होते हैं और दोनों की आदर के पात्र हैं।
  • भोजन शरीर को ज़िंदा रखने के लिए ज़रूरी है लेकिन, लोभ-लालच करना बुरी आदत है, यह आदत इंसान से उसकी खुशी छीन लेती है।
  • कभी भी किसी दूसरे का हक नहीं छीनना चाहिए।
  • सबके साथ बिना किसी ईर्ष्या भाव से प्रेमपूर्वक रहना चाहिए।

गुरु नानक देव जी की रचनाएं,दोहे, पद एवं लेख – Guru Nnak ke Dohe, Guru Nanak ji ke Pad

गुरुनानक देव जी ने अपनी रचनाओं के माध्यम से लोगों एक सुखी एवं समृद्ध जीवन जीने की सीख दी है। सिख धर्म का पवित्र एवं सबसे महत्वपूर्ण ग्रंथ ”श्री ग्रंथ गुरु ग्रन्थ साहब” उनके द्धारा लिखी गई रचनाओें में सबसे प्रमुख है। ‘श्री गुरु-ग्रन्थ साहब’ में उनकी रचनाएं ‘महला 1′ के नाम से संकलित हैं। इसके अलावा उनकी रचनाओं में, गुरबाणी तखारी’ राग के बारहमाहाँ, जपुजी आदि मशहूर हैं।

आपको बता दें कि गुरु नानक जी ने अपनी रचनाओं के माध्यम से ईश्वर को सर्वशक्तिमान, अनन्त और निर्भय बताया है। इसके साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि परमात्मा तक किसी मूर्ति पूजा या फिर धार्मिक आडम्बरों से नहीं बल्कि सच्ची आंतरिक साधना से ही पुहंचा जा सकता है।

गुरुनानक जी की रचनाएं और दोहों में सामाजिक,राजनीतिक और धार्मिक विषयों का भी बेहद खूबसूरती से बखान किया गया है, इसके साथ ही उनकी रचनाओं में राष्ट्रप्रेम एवं देशभक्ति की भी अनूठी झलक देखने को मिलती है। उन्होंने अपनी रचनाओं में हिन्दू और मुस्लिम धर्म में फैली कुरोतियों एवं कुसंस्कारों की कड़ी निंदा की है साथ ही महिलाओं को समाज में उचित स्थान दिलवाने पर जोर दिया है।

गुरुनानक जी की रचनाओं और वाणी में पंजाबी, सिंधी, ब्रजभाषा, फारसी, मुल्तानी, खड़ीबोली का इस्तेमाल किया है। इसके साथही उनकी वाणी में श्रंगार एवं शांत रस की प्रधानता देखने को मिलती है। गुरु नानक देव जी का दोहा-

“हरि बिनु तेरो को न सहाई। काकी-मात-पिता सुत बनिता, को काहू को भाई।।

अर्थात इस दोहे के माध्यम से गुरुनानक देव जी का कहा है कि हरि यानि कि परमात्मा के बना कोई और सहारा नहीं होता है और परमात्मा को ही काकी, माता-पिता और पुत्र बताया है, इनके बिना कोई और दूसरा नहीं होता है।।

गुरु नानक देव जी की मृत्यु – Guru Nanak Death

सिख धर्म की स्थापना करने वाले गुरु नानक देव जी ने अपनी महान शिक्षाओं, उपदेशों से पूरी दुनिया में काफी ख्याति बटोर ली थी, वे लोगों के बीच काफी लोकप्रिय हो गए थे।

वे एक आदर्श गुरु के तौर पर पहचाने जाने लगे थे, उनकी प्रसिद्धि दूर-दूर तक फैल गई थी, गुरुनानक जी ने एक करतारपुर नाम का शहर बसाया था, जो कि अब पाकिस्तान में है और यही उन्होंने 1539 ईसवी में अपने प्राण त्याग दिए थे। उनकी मृत्यु के बाद गुरु नानक जी के परम भक्त एवं प्रिय शिष्य गुरु अंगदगेव जी (बाबा लहना) को उनका उत्तराधिकारी बनाया गया।

गुरुनानक जयंती – Guru Nanak Jayanti

कार्तिक मास की पूर्णिमा वाले दिन, सिख धर्म के प्रथम गुरु नानक साहब जी की जयंती आज पूरे दूश में हर्ष और उल्लास के साथ मनाई जाती है। इस जयंती को प्रकाश पर्व के तौर पर मनाया जाता है। इस दिन जगह-जगह पर धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है, इसके साथ ही गुरुद्धारा आदि में लंगर आदि भी आयोजित किए जाते हैं, इसके साथ ही सत्संग और भतन-कीर्तन भी होते हैं।

गुरुनानक जयंती के दिन ढोल-नगाड़ो के साथ प्रभाव फेरी भी निकाली जाती है। इस जयंती के मौके पर गरीबों को दान आदि करने का भी बहुत महत्व है। सिक्ख समाज के प्रथम गुरु गुरुनानक देव जी ने अपने उपदेशों से सांप्रदायिक एकता, प्रेम, भाईचारा एवं सदभाव की ज्योति जलाई थी, जो आज भी प्रज्जवलित है।

साथ ही उन्होंने मूर्ति पूजा और धार्मिक आडम्बरों का विरोध किया था एवं जातिवाद, ऊंच-नीच, छूआछूत जैसी कुरोतियों का जमकर विरोध किया था। उन्होंने अपनी सरल वाणी एवं महान विचारों से लोगों को काफी प्रभावित किया था एवं हिन्दू और मुस्लिम धर्म की मूल एवं सर्वोत्तम शिक्षाओं को लेकर एक सिख धर्म की स्थापना की थी।

सिख धर्म के लोगों द्धारा गुरु नानक साहब की उपासना की जाती है एवं आज भी सिख धर्म मानने वाले लोग उनके उपदेशों का अनुसरण करते हैं।

गुरु नानक जी के सुविचार:Guru Nanak Quotes

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सिख धर्म के दसवें गुरु श्री गुरु गोबिन्द सिंह की जीवनी

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Guru Gobind Singh

गुरु गोबिन्द सिंह सिक्खो के दसवें धार्मिक गुरु थे। वे एक गुरु ही नहीं बल्कि एक महान दार्शनिक, प्रख्यात कवि, निडर एवं निर्भीक योद्धा, अनुभवी लेखक और संगीत के पारखी भी थे। वे अपने पिता गुरु तेग बहादुर के उत्तराधिकारी बने। सिर्फ 9 वर्ष की आयु में सिक्खों के नेता बने एवं अंतिम सिक्ख गुरु बने रहे।

गुरु गोबिंद सिंह जी ने न सिर्फ अपने महान उपदेशों के माध्यम से लोगों को सही दिशा दिखाई, बल्कि उन्होंने समाज में हो रहे अत्याचारों और अपराधों के खिलाफ भी विरोध किया एवं खालसा पंथ की स्थापना की, जो को सिख धर्म के इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण घटना के तौर पर अंकित है।

गुरु गोबिंद जी ने लोगों को आपस में प्रेम और भाईचारे के साथ मिलजुल कर रहने का संदेश दिया। आइए जानते है सिखों के 10वें और महान गुरु गोबिंद  सिंह जी के बारे में –

सिख धर्म के दसवें गुरु श्री गुरु गोबिन्द सिंह की जीवनी – Guru Gobind Singh History in HindiGuru Gobind Singh

गुरु गोबिंद सिंह के जीवन बारे में एक नजर में – Guru Gobind Singh Information

नाम (Name) गुरु गोबिंद सिंह
बचपन का नाम (Childhood Name) गोबिंद राय सोधी
जन्म (Birthday) 5 जनवरी, 1666, पटना साहिब, ( वर्तमान पटना, भारत)
पिता (Father Name) गुरु तेग बहादुर
माता (Mother Name) गुजरी
पत्नियों के नाम (Wife Name) माता जीतो, माता साहिब देवन, माता सुंदरी,
बच्चों के नाम (Sons or Daughter Name) जुझार सिंह, फ़तेह सिंह, जोरावर सिंह, अजित सिंह,
मृत्यु (Death) 7 अक्टूबर, 1708, हजुर साहिब नांदेड, भारत

गुरु गोबिंद सिंह का जन्म, शिक्षा और प्रारंभिक जीवन – Guru Gobind Singh Biography

गुरु गोबिंद जी के जन्म को लेकर विद्धानों के अलग-अलग मत है, लेकिन ज्यादातर विद्धानों का मानना है कि उनका जन्म 5 जनवरी, 1666, पटना साहिब, बिहार में हुआ था।

वे 9वें सिख गुरु, गुरु तेग बहादुर सिंह और गुजरी देवी के इकलौते बेटे थे, जिन्हें बचपन में सब उन्हें गोबिंद राय के नाम से पुकारते थे। करीब 4 साल तक वे पटना में ही रहे, वहीं उनका जन्म स्थान आज “तख़्त श्री पटना हरिमंदर साहिब” के नाम से मशहूर है।

इसके बाद 4 साल की उम्र में वे अपने परिवार के साथ पंजाब में लौट आए और फिर वो जब 6 साल के हुए तब हिमालय की शिवालिक घाटी में स्थित चक्क ननकी में रहने लगे।

आपको बता दें कि चक्क ननकी की स्थापना उनके पिता एवं 9वें सिख गुरु, गुरु तेग बहादुर सिंह ने की थी, जो कि आज आनंदपुर साहिब के नाम से जाना जाता है।

गुरु गोबिंद सिंह जी ने इसी स्थान पर अपनी प्राथमिक शिक्षा लेने के साथ एक महान योद्धा बनने के लिए अस्त्र-शस्त्र चलाने की विद्या, लड़ने की कला, तीरंदाजी करना एवं मार्शल आर्ट्स की अनूठी कला सीखी। इसके अलावा पंजाबी, ब्रज, मुगल, फारसी, संस्कृत भाषाओं का ज्ञान प्राप्त किया और “वर श्री भगौती जी की” महाकाव्य की रचना की।

गुरु गोबिंद सिंह जी का सिखों के दसवें गुरु बनना – Guru Gobind Singh Ji Stories

विद्दानों की माने तो गुरु गोबिंद जी के पिता एवं नौवें सिख गुरु, गुरु तेग बहादुर सिंह ने, कश्मीरी पंडितों का धर्म-परिवर्तित कर मुस्लिम बनाए जाने के खिलाफ खुलकर विरोध किया था एवं खुद भी इस्लाम धर्म कबूल करने से मना कर दिया था।

जिसके बाद भारतीय इतिहास के मुगल शासक औरंगजेब ने  11 नवम्बर 1675 को भारत की राजधानी दिल्ली के चांदनी चौक इलाके में गुरु तेग बहादुर सिंह का सिर कटवा (सिर कलम) दिया था।

फिर 29 मार्च 1676 को, महज 9 साल की छोटी सी उम्र में गुरु गोबिंद सिंह जी को औपचारिक रूप से सिखों का 10वां गुरु बनाया गया था।

गुरु गोबिंद जी का विवाह – Guru Gobind Singh Marriage And Family

10वें सिख गुरु, गुरु गोबिंद जी की तीन शादियां हुई थी, उनका पहला विवाह आनंदपुर के पास स्थित बसंतगढ़ में रहने वाले कन्या जीतो के साथ हुआ था। इन दोनों को शादी के बाद जोरावर सिंह, फतेह सिंह और जुझार सिंह नाम की तीन संतान पैदा हुई थी।

इसके बाद माता सुंदरी से उनकी दूसरी शादी हुई थी और शादी के बाद इनसे उन्हें अजित सिंह नाम के पुत्र की प्राप्ति हुई थी। फिर गुरु गोविंद जी ने माता साहिब से तीसरी शादी की थी, लेकिन इस शादी से उन्हें कोई भी संतान प्राप्त नहीं हुआ था।

खालसा पंथ की स्थापना – Khalsa Panth Ki Sthapna

अत्याचार और अन्याय के खिलाफ अपनी आवाज उठाने एवं मानवता की गरिमा की रक्षा के लिए समर्पित महान योद्धाओं की मजबूत सेना बनाने को ध्यान में रखते हुए बैसाखी के दिन साल 1699 में खालसा पंथ की स्थापना की गई।

आपको बता दें कि खालसा एक सिख धर्म के विधिवत दीक्षा प्राप्त अनुयायियों का एक सामूहिक रुप है। गुरु गोबिंद जी ने बैसाखी के दिन अपने सभी अनुयायियों को आनंदपुर में इकट्ठा किया और पानी और पातशा (पंजाबी मिठास) का मिश्रण बनाया और इस मीठे पानी को “अमृत” कहा।

इसके बाद उन्होंने अपने स्वयंसेवकों से कहा जो कि स्वयंसेवक अपने गुरु के लिए अपने सर का बलिदान देने के लिए तैयार है, वह खालसा से जुड़े। इस तरह 5 स्वयंसेवक अपनी अपनी इच्छा से खालसा से जुड़ गए।

जिसके बाद उन्होंने इन पांचों स्वयंसेवकों को अमृत दिया एवं खुद भी अमृत लिया एवं अपना नाम गुरु गोबिंद राया से गुरु गोबिंद सिंह रख दिया।

बपतिस्मा प्राप्त सिख बनने के बाद गुरु गोबिंद सिंह ने खालसा पंथ के मूल सिद्धांतों की स्थापना भी की जिन्हें गुरुगोबिंद जी के ‘5 ककार’ या ‘5 कक्के’ भी कहा जाता है। बपतिस्मा वाले खालसा सिखों पांच प्रतीक इस प्रकार है –

  1. कंघा: एक लकड़ी की कंघी, जो कि साफ-सफाई एवं स्वच्छता का प्रतीक मानी जाती है।
  2. कारा: हाथ में एक धातु का कंगन पहनना।
  3. कचेरा: कपास का कच्छा अर्थात घुटने तक आने वाले अंतर्वस्त्र
  4. केश: जिसे सभी गुरु और ऋषि मुनि धारण करते आए हैं अर्थात बपतिस्मा वाले सच्चे सिखों को कभी अपने सिर के बाल नहीं काटने चाहिए।
  5. कृपाण: एक कटी हुई घुमावदार तलवार।

वहीं गुरुगविंद सिंह जी की खालसा वाणी है – Guru Gobind Singh Ki Bani

“वाहेगुरु जी दा खालसा वाहेगुरु जी दी फतेह”

गुरु गोबिंद सिंह जी के प्रमुख काम – Guru Gobind Singh Work

गुरु गोबिंद सिंह के द्धारा किए गए प्रमुख कामों की सूची इस प्रकार है-

  • गुरु गोबिंद साहब जी ने ही सिखों के नाम के आगे सिंह लगाने की परंपरा शुरु की थी, जो आज भी सिख धर्म के लोगों द्धारा चलाई जा रही है।
  • गुरु गोबिंद सिंह जी ने कई बड़े सिख गुरुओं के महान उपदेशों को सिखों के पवित्र ग्रंथ, गुरु ग्रंथ साहिब में संकलित कर इसे पूरा किया था।
  • वाहेगुरु, गुरु गोबिंद सिंह जी ने ही गुरुओं के उत्तराधिकारियों की परंपरा को खत्म किया, सिख धर्म के लोगों के लिए गुरु ग्रंथ साहिब को सबसे पवित्र एवं गुरु का प्रतीक बनाया।
  • सिख धर्म के 10वें गुरु गोबिंद जी ने साल 1669 में मुगल बादशाहों के खिलाफ विरोध करने के लिए खालसा पंथ की स्थापना की थी।
  • सिख साहित्य में गुरु गोबिन्द जी के महान विचारों द्धारा की गई “चंडी दीवार” नामक साहित्य की रचना खास महत्व रखती है।
  • सिखों के दसवें गुरु गुरु गोबिन्द साहब ने ही युद्द में हमेशा तैयार रहने के लिए ‘5 ककार’ या ‘5 कक्के’ को सिखों के लिए जरूरी बताया, इसमें केश (बाल), कच्छा, कड़ा, कंघा, कृपाण (छोटी तलवार) आदि शामिल हैं।

गुरु गोबिंद सिंह द्धारा लड़े हुए कुछ प्रमुख युद्ध – Guru Gobind Singh Battles

सिखों के 10वें गुरु गोबिंद सिंह जी ने अ्पने सिख अनुयायियों के साथ मुगलों के खिलाफ कई बड़ी लड़ाईयां लड़ीं।

इतिहासकारों की माने तो गोबिंद सिंह जी ने अपने जीवन में 14 युद्ध किए, इस दौरान उन्हें अपने परिवार के सदस्यों के साथ कुछ बहादुर सिख सैनिकों को भी खोना पड़ा।

लेकिन गुरु गोविंद जी ने बिना रुके बहादुरी के साथ अपनी लड़ाई जारी रखी। गुरु गोबिंद सिंह द्धारा लड़ी गई लड़ाईयां इस प्रकार है –

  • भंगानी का युद्ध (1688) (Battle of Bhangani)
  • नंदौन का युद्ध (1691) (Battle of Nadaun)
  • गुलेर का युद्ध (1696) (Battle of Guler)
  • आनंदपुर का पहला युद्ध (1700) (Battle of Anandpur)
  • निर्मोहगढ़ का युद्ध (1702) (Battle of Nirmohgarh)
  • बसोली का युद्ध (1702) (Battle of Basoli)
  • चमकौर का युद्ध (1704) (Battle of Chamkaur)
  • आनंदपुर का युद्ध (1704) (Second Battle of Anandpur)
  • सरसा का युद्ध (1704) (Battle of Sarsa)
  • मुक्तसर का युद्ध (1705) (Battle of Muktsar)

गुरु गोबिंद सिंह जी की प्रमुख रचनाएं – Guru Gobind Singh Books

गुरु गोविंद जी की कुछ रचनाओं के नाम निम्नलिखित हैं –

  • चंडी दी वार
  • जाप साहिब
  • खालसा महिमा
  • अकाल उस्तत
  • बचित्र नाटक
  • ज़फ़रनामा

गुरु गोबिंद सिंह जी की मृत्यु कब हुई थी? – Guru Gobind Singh Death

मुगल बादशाह औरंगजेब की मृत्यु के बाद उसके बेटे बहादुर शाह को उत्तराधिकरी बनाया गया था। बहादुर शाह को बादशाह बनाने में गुरु गोबिंद जी ने मद्द की थी।

इसकी वजह से बहादुर शाह और गुरु गोबिंद जी के बीच काफी अच्छे संबंध बन गए थे।

वहीं सरहद के नवाब वजीद खां को गुरु गोविंद सिंह और बहादुर शाह की दोस्ती बिल्कुल पसंद नहीं थी, इसलिए उसने अपने दो पठानो से गुरु गोबिंद जी की हत्या की साजिश रखी और फिर 7 अक्तूबर 1708 में महाराष्ट्र के नांदेड़ साहिब में गुरु गोबिंद सिंह जी ने अपनी आखिरी सांस ली।

गुरु गोबिंद ने न सिर्फ अपने जीवन में लोगों को गरीबों की मद्द करना, जीवों पर दया करना, प्रेम-भाईचारे से रहने का उपदेश दिया बल्कि समाज और गरीब वर्ग के उत्थान के लिए कई काम किए एवं अत्याचार के खिलाफ लड़ाई की।

आज भी उनके अनुयायी उनके उपदेशों का अनुसरण करते हैं, और उनके ह्दय में अपने गुरु जी के प्रति अपार प्रेम और सम्मान है।

गुरु गोबिन्द सिंह की कुछ रोचक बाते – Guru Gobind Singh Facts

  • गुरु गोबिन्द सिंह को पहले गोबिन्द राय से जाना जाता था। जिनका जन्म सिक्ख गुरु तेग बहादुर सिंह के घर पटना में हुआ, उनकी माता का नाम गुजरी था।
  • 16 जनवरी को गुरु गोबिन्द सिंह का जन्म दिन मनाया जाता है। गुरूजी का जन्म गोबिन्द राय के नाम से 22 दिसम्बर 1666 में हुआ था। लूनर कैलेंडर के अनुसार 16 जनवरी ही गुरु गोबिन्द सिंह का जन्म दिन है।
  • बचपन में ही गुरु गोबिन्द सिंह के अनेक भाषाए सीखी जिसमें संस्कृत, उर्दू, हिंदी, ब्रज, गुरुमुखी और फारसी शामिल है। उन्होंने योद्धा बनने के लिए मार्शल आर्ट भी सिखा।
  • गुरु गोबिन्द सिंह आनंदपुर के शहर में जो की वर्तमान में रूपनगर जिल्हा पंजाब में है। उन्होंने इस जगह को भीम चंड से हाथापाई होने के कारण छोडा और नहान चले गए जो की हिमाचल प्रदेश का पहाड़ी इलाका है।
  • नहान से गुरु गोबिन्द सिंह पओंता चले गए जो यमुना तट के दक्षिण सिर्मुर हिमाचल प्रदेश के पास बसा है। वहा उन्होंने पओंता साहिब गुरुद्वारा स्थापित किया और वे वहाँ सिक्ख मूलो पर उपदेश दिया करते थे फिर पओंता साहिब सिक्खों का एक मुख्य धर्मस्थल बन गया। वहाँ गुरु गोबिन्द सिंह पाठ लिखा करते थे। वे तिन वर्ष वहाँ रहे और उन तीनो सालो में वहा बहुत भक्त आने लगे।
  • सितम्बर 1688 में जब गुरु गोबिन्द सिंह 19 वर्ष के थे तब उन्होंने भीम चंड, गर्वल राजा, फ़तेह खान और अन्य सिवालिक पहाड़ के राजाओ से युद्ध किया था। युद्ध पुरे दिन चला और इस युद्ध में हजारो जाने गई। जिसमे गुरु गोबिन्द सिंह विजयी हुए। इस युद्ध का वर्णन “विचित्र नाटक” में किया गया है जोकि दशम ग्रंथ का एक भाग है।
  • नवम्बर 1688 में गुरु गोबिन्द सिंह आनंदपुर में लौट आए जोकि चक नानकी के नाम से प्रसिद्ध है वे बिलासपुर की रानी के बुलावे पर यहाँ आए थे।
  • 1699 में जब सभी जमा हुए तब गुरु गोबिंद सिंह ने एक खालसा वाणी स्थापित की “वाहेगुरुजी का खालसा, वाहेगुरुजी की फ़तेह” ऊन्होने अपनी सेना को सिंह (मतलब शेर) का नाम दिया। साथ ही उन्होंने खालसा के मूल सिध्दांतो की भी स्थापना की।
  • ‘दी फाइव के’ ये पांच मूल सिध्दांत थे जिनका खालसा पालन किया करते थे। इसमें ब़ाल भी शामिल है जिसका मतलब था बालो को न काटना। कंघा या लकड़ी का कंघा जो स्वछता का प्रतिक है, कडा या लोहे का कड़ा (कंगन जैसा), खालसा के स्वयं के बचाव का, कच्छा अथवा घुटने तक की लंबाई वाला पजामा; यह प्रतिक था। और किरपन जो सिखाता था की हर गरीब की रक्षा चाहे वो किसी भी धर्म या जाती का हो।
  • गुरु गोबिन्द सिंह को गुरु ग्रंथ साहिब के नाम से शोभित किया गया है क्योकि उन्होंने उनके ग्रंथ को पूरा किया था। गुरु गोबिन्द सिंह ने अपने प्राण 7 अक्टूबर 1708 को छोड़े।

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हिन्दी दिवस पर नारे | Hindi Diwas Slogans

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Hindi Diwas Slogans

हमारा देश विविधता से परिपूर्ण हैं, हर एक चीज में विविधता हैं वैसे ही भाषा में भी विविधता हैं। वैसे तो हमारे देश में कई भाषा बोली जाती हैं। लेकिन हिन्दी भाषा हमारे भारत देश की मातृभाषा हैं। 1949 को संविधान सभा ने यह निर्णय लिया कि हिन्दी ही भारत की राष्ट्रभाषा होगी।

इसीलिए प्रत्येक वर्ष 14 सितम्बर को हिन्दी दिवस – Hindi Diwas के रूप में मनाया जाता है। आज यहाँ कुछ हिन्दी दिवस पर स्लोगन – Hindi Diwas Slogans दिए हैं आईये इन्हें पढ़े।

Hindi Diwas Par Slogan – हिंदी दिवस पर नारे

Hindi Diwas Quotes
Hindi Diwas Quotes

“हम सब का अभिमान हैं हिंदी, भारत की शान हैं हिंदी।

आइये एकसाथ बढीये हिंदी को अपनाइये।

“हिंदी में पत्राचार हो हिंदी में हर व्यवहार हो, बोलचाल में हिंदी ही अभिव्यक्ती का आधार हो।

Slogan On Hindi Divas

“एकता की जान है, हिंदी देश की शान है।

अंग्रेजी भाषा को पछाड़ दो और हिन्दी भाषा को आकार दो।

“राष्ट्रभाषा के बिना राष्ट्र गूंगा है।

आओं सब मिलकर हिन्दी को अपनाये, देश में एकता और भाईचारा को बढ़ायें।

Best Slogan on Hindi Diwas
Best Slogan on Hindi Diwas

“हिंदी शताब्दियोसे राष्ट्रिय एकता का माध्यम रही है।

हिंदी मै काम करना आसन है शुरू तो किजीये।

“सीखो जी भर भाषा अनेक, पर राष्ट्रभाषा न भूलों एक।

Slogans on National Language in Hindi

हिन्दी भाषा हमारी भारतीय संस्कृति की विरासत ही नहीं बल्कि, राष्ट्रीय एकता की पहचान भी है। हिन्दी भाषा से अपनेपन का एहसास है। हिंदी हमारी मातृभाषा है, लेकिन अफसोस की बात यह है कि आज के मॉडर्न युग में लोग हिन्दी से ज्यादा अंग्रेजी को महत्वता दे रहे हैं।

क्योंकि अंग्रेजी अब उनकी जरूरत की भाषा बन चुकी है, ज्यादातर स्कूल, कॉलेज, इंटरव्यू, कॉरपोरेट सेक्टर और ऑफिस मीटिंग्स में इंग्लिश भाषा का ही इस्तेमाल किया जाने लगा है।

इसलिए धीरे-धीरे हिंदी से आज की युवा पीढ़ी का ध्यान हटता जा रहा है, लेकिन सिर्फ जरुरत की वजह से अपनी मातृभाषा हिन्दी को भूलना उचित नहीं है, इसलिए हिन्दी के प्रति लोगों को जागरूक करने के उद्देश्य से हर साल 14 सिंतबर को हिंदी दिवस मनाया जाता है।

आपको बता दें कि 14 सितंबर, 1949 को भारत की संवैधानिक सभा में  हिन्दी को भारत गणराज्य की अधिकारिक भाषा घोषित किया गया था, इसलिए तब से इसे हिन्दी दिवस के रुप में मनाया जाने लगा है।

वहीं अब इस दिवस को मनाए जाने का मकसद लोगों का ध्यान हिंदी भाषा की तरफ आर्कषित करना और इसकी महत्वता को बताना है, वहीं आज हम अपने इस लेख में हिंदी दिवस पर कुछ स्लोगन उपलब्ध करवा रहे हैं, जिनके माध्यम से लोग हिन्दी भाषा के प्रति जागरुक होंगे और इसका ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल करने के बारे में सोचेंगे।

Hindi Bhasha par Quotes
Hindi Bhasha par Quotes

“हिन्दी में जज्बात है इसलिए हिंदी भाषा सब में खास है।

हिन्दी हमारी शान है, हिन्दी भाषा देश का अभिमान है

“हैं मेरा देश महान हिन्दी भाषा से हैं जिसकी शान।

पूरी दुनिया में अपनी अलग पहचान बनायें, देश-दुनिया तक हिंदी पहुंचायें।

Hindi Diwas Posters

Hindi Diwas Posters

“हिंदी से हिंदुस्तान हैं, तभी तो हिंदी हमारी शान हैं।

आओं मिलकर हिन्दी का सम्मान करे, अपने देश का मान करे।

“जो भाषा सबसे ज्यादा बोली जाती हैं, सब की एकता दिखाती हैं, हिन्दी भाषा देश की शान बढाती हैं।

आओं एकसाथ मिलकर मुहीम चलाये, आज ही से हिन्दी भाषा अपनाए।

Hindi Diwas Slogans
Hindi Diwas Slogans

“हिंदी की दौड किसी प्रांतीय भाषासे नहीं अंग्रेजी से है।

हिंदी भाषा में है अपनत्व इसका अपना एक महत्त्व।

“हिंदी भाषा पर है हमें अभिमान यही हमारे देश की पहचान।

आओं हिंदी में संवाद करें, अपने विचारों को व्यक्त करें।

Slogans on Hindi Language

भारत में अलग-अलग धर्म, जाति, लिंग पंथ के लोग रहते हैं, जिनके रहन-सहन, भाषा, परंपरा और संस्कृति में काफी विविधता है, लेकिन फिर ज्यादातर भारतीयों के बीच हिन्दी भाषा ही बोली जाती है, क्योंकि यह बेहद सरल, सुंदर और सुगम भाषा है, जिसमें आसानी से संवाद किया जा सकता है।

वहीं भारत में हिन्दी भाषा का इस्तेमाल सबसे ज्यादा किया जाता है, यह सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है अर्थात प्रत्येक भारतीय का हिन्दी के प्रति एक अलग लगाव है, ज्यादातर भारतीय अपनी भावनाओं को अपनी मातृभाषा हिंदी के माध्यम  से बेहद अच्छे तरीके से व्यक्त कर पाते हैं।

हिन्दी भारत की शान ही नहीं बल्कि अभिमान भी है, इसलिए हिंदी भाषा के प्रति लोगों में और अधिक जागरूकता फैलाने के मकसद से हिन्दी दिवस पर यह नारे काफी मद्दगार साबित हो सकते हैं।

Slogans on National Language in Hindi
Slogans on National Language in Hindi

“हमारी स्वतंत्रता कहाँ है, राष्ट्रभाषा जहाँ है।

जब सभी देशवासी करेंगे हिंदी का सम्मान, तभी बढ़ेगा भारत का मान।

“बढ़ाना हैं देश को व्यक्तित्व विकास की ओर तो दें हिंदी भाषा पर जोर।

कोटि-कोटि कंठों की मधुर स्वरधारा है, हिन्दी  भाषा है हमारी और  हिन्दुस्तान हमारा है …

Slogans on National Language
Slogans on National Language

“हिंदी का सन्मान, देश का सन्मान है।

हिंदी का है अपना एक अलग ही दर्जा, लेकिन इसकी महानता का हो गया लोप।

“सारे देश वासियों से हैं यही प्रार्थना, हिंदी भाषा को करें अपनाना।

सरल है, सुबोध है, सुंदर अभिव्यक्ति है, हिन्दी ही सभ्यता, हिन्दी ही हमारी संस्कृति है।

हिन्दी दिवस पर बेस्ट स्लोगन
हिन्दी दिवस पर बेस्ट स्लोगन

“जबतक आपके पास राष्ट्रभाषा नही, आपका कोई राष्ट्र भी नही।

हिन्दी भाषा को आगे बढ़ाना है उन्नति की रास्ते ले जाना है सिर्फ़ एक दिन ही नहीं हमें हमेशा “हिन्दी दिवस” मनाना है।

“देश की यह शान है, हिंदी से हिंदुस्तान है।

हिन्दी भाषा को सम्मान दो, हिन्दी गुणों की खान है, हर भाषा में महान है, भारत की यही पहचान है।

Thought on Hindi Language
Thought on Hindi Language

“जन-जन की आशा हैं हिंदी, भारत की भाषा हैं हिंदी।

सारे देश की यही आशा, हिंदी है हमारी राष्ट्रभाषा।

“जैसे भारत माता के माथे की बिंदी, वैसे हमारी राष्ट्रभाषा हिन्दी।

सारे जात पात बंधन तोड़े, हिन्दी भाषा सारे देश को जोड़े।

More Slogans – Slogans in Hindi

Slogan Hindi Diwas
Hindi par Nare

“राष्ट्रभाषा सर्वसाधारण के लिये जरुरी है और हमारी राष्ट्रभाषा हिंदी ही बन सकती है।

प्रांतीय ईर्ष्या द्वेष दूर करने में जितनी सहायता हिंदी प्रचार से मिलेगी उतनी दूसरी चीज में नहीं।

“अपने दिलों में हिन्दी को स्थान दो, सब मिलकर इसे सम्मान दो।

बिना मातृभाषा के हिन्दी साहित्य भी वीरान रहेगा, हिन्दी रहेगी तभी तो हिन्दुतान रहेगा।

मातृभाषा पर स्लोगन
मातृभाषा पर स्लोगन

“हात में अपने भारत की शान, हिंदी अपनाकर तुम बनो महान।

हिन्दी में लिखे और हिन्दी में पढ़े, आओ हम सब आगे बढ़े।

“देश की सेवा ही मेरी भक्ति है, और हिन्दी भाषा ही सिर्फ देश शक्ति है।

हिन्दी भाषा बहुत पुरानी है, यही तो दादी-नानी निशानी हैं।

हिंदी दिवस पर नारे
हिंदी दिवस पर नारे

“हिंदी से हिंदुस्तान हैं, तभी तो हिंदी हमारी शान हैं।

हिन्दी दिवस पर हम सबने ठाना है, लोगों में हिंदी के प्रति स्वाभिमान जगाना है।

“हिन्दी को सिर्फ राजनीति का मुद्दा मत बनाओ, बल्कि हिन्दी दिवस पर इसे तुम खुद अपनाओ।

हिंदी दिवस पर सुविचार
हिंदी दिवस पर सुविचार

“हिंदी सिखे बिना भारतीयो के दिलो तक नही पहुँचा जा सकता।

हिंदी दिवस पर स्लोगन
हिंदी दिवस पर स्लोगन

“Hindi ki dod kisi prantiy bhasha se nahi agreji se hain.

Ekata ki jan hain, Hindi desh ki shan hain.

“Jabtak apke pass koi rashtrabhash nahi, apaka koi rashtra bhi nahi.

हिंदी भाषा पर विचार
हिंदी भाषा पर विचार

“Hindi me kaam karana aasan hain, shuru to kajiye.

Sikho jibhar bhasha aanek par rashtrabhash na bhulo eek.

“Rashtrabhasha ke bina rashtra gunga hain.

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जानिए बोधिधर्म के बारे में जिन्होंने चीन में की रखी थी बौद्ध धर्म की नींव

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Bodhidharma History in Hindi

बोधिधर्म एक प्रसिद्ध भारतीय बौद्ध भिक्षु थे, जिन्हों चीन में बोध धर्म की स्थापना की थी उन्हें बोधी धर्मन के नाम से भी जाना जाता है। बोधिधर्म को मार्शल आर्ट्स के जनक के रुप में भी जाता जाता है। वहीं चीन में मार्शल आर्टस् की कला को लाने का पूरा श्रेय इन्हीं को जाता है।

बोधिधर्म ने न सिर्फ चीन में मार्शल आर्ट्स की कला को इजाद किया बल्कि चीन में सालों पर्वत में रहकर अपने अनुयायियों को इस अद्भुत कला को सिखाया एवं बौद्ध धर्म की शिक्षाओं का जमकर प्रचार-प्रसार किया।

आपको बता दें कि कुंग-फू मार्शल आर्ट्स का प्रमुख अंग है, जिसे पूरी दुनिया के लोग चीन सीखने आते हैं, इस आधुनिक मार्शल आर्ट्स की प्रणाली को बोधिधर्मन द्धारा ही लाया गया था। जापान में बोधि धर्म को दारुमा और चीन में ‘ता मो’ के नाम से जाना जाता है।

वह एक उदार चरित्र एवं विलक्षण प्रतिभा वाले महान बौद्ध भिक्षु थे, जिनके महान विचारों का लोग आज भी अनुसरण करते हैं। इसके साथ ही वे ध्यान साधना, योगा, आयुर्वेद और लोकअवतार सूत्र के बेहद प्रसिद्ध प्रशिक्षक थे।

कुछ इतिहासकारों के मुताबिक बोधिधर्म को बौद्ध धर्म का 28 वां आचार्य अर्थात बौद्ध गुरु माना गया है। वहीं भारत में बोधिधर्म को उस परंपरा का आखिरी गुरु माना जाता है, जिसे गौतम बुद्ध द्धारा शुरु की गई थी।

आपको बता दें कि बोधिधर्म एक शहजादे थे, जिन्होंने साधु बनने के लिए सभी ऐशो-आराम एवं संसारिक सुखों का त्याग कर दिया था। आइए जानते हैं बोधिधर्म के इतिहास एवं इनके जीवन के बारे में कुछ ऐसे ही दिलचस्प और रोचक बातें –

Bodhidharma History

बोधिधर्म का अनसुना इतिहास – Bodhidharma History in Hindi

बोधिधर्म के जन्म के बारे में कोई पुख्ता जानकारी नहीं है, लेकिन इनका जन्म 5वीं और 6वीं शताब्दी के बीच में बताया जाता है। इतिहासकारों के मुताबिक बोधिधर्म का जन्म दक्षिण भारत में पल्लव राज्य के एक शाही परिवार में हुआ था, जो कि कांचीपुरम के एक धनी राजा सुंगध के पुत्र थे।

ऐसा बताया जाता है, सभी तरह की शाही सुविधाएं और असीमित दौलत होने के बाबजूद भी बोधिधर्म को कोई भी राजशाही शौक की आदत नहीं थे एवं उन्हें संसारिक सुखों और मोह-माया से कोई लगाव नहीं था, इसलिए उन्होंने बेहद कम उम्र में भी अपना राजपाठ छोड़ दिया एवं बौद्ध भिक्षु बनने का फैसला ले लिया था।

आपको बता दें कि बोधिधर्म, अपने बचपन के दिनों से ही बौद्ध धर्म से बेहद प्रभावित हो गए थे। बोधिधर्म पर बौद्ध साधु और उनकी सरल, साधारण जीवन शैली एवं उनके महान विचारों का काफी गहरा प्रभाव पड़ा था। महज 7 साल की छोटी सी उम्र से ही वे अपने अलौकिक ज्ञान की शक्ति लोगों को दिखाने लगे थे।

इसके साथ ही बचपन में सांस लेने की परेशानी से निजात पाने के लिए बोधिधर्म योग के भी काफी करीब हो गए, यही नहीं उन्होंने अपने जीवन के शुरुआती दिनों में लड़ने की भी कला सीखी थी, और इसमें वे निपुण हो गए थे, लेकिन उनका मन इन सब में नहीं रमा और फिर उन्होंने पूरी तरह बौद्ध धर्म अपनालिया और साधु बन गए।

बोधिधर्म ने महाकश्चप को बनाया था अपना गुरु – Bodhidharma Guru Maha Kasyapa

बौद्ध धर्म में गहरी रुचि होने की वजह से उन्होंने गुरु महाकाश्यप से ज्ञान अर्जित करना शुरु कर दिया और फिर ध्यान सीखने की कला से बौद्ध भिक्षु बनने की शुरुआत की। इसके बाद राजशाही जीवन त्यागकर उन्होंने अपने गुरु के साथ ही बौद्ध भिक्षुओं की तरह एक साधारण मठ में रहना शुरु कर दिया, जहां वे एक साधारण बौद्द भिक्षु की तरह सरल जीवन-यापन करते थे एवं गौतम बुद्ध द्धारा बताए गए उपदेशों का अनुसरण करते थे।

वहीं बौद्ध भिक्षु बनने से पहले इनका नाम बोधितारा था, जिसे बदलकर उन्होंने बोधिधर्म कर दिया।

आपको बता दें कि बोधिधर्म महज 22 साल की उम्र में ही पूर्णत: प्रबुद्ध हो गए थे, उन्होंने अपने गुरु के मार्गदर्शन से पूरे भारत में बौद्ध धर्म की शिक्षाओं का प्रचार-प्रसार करना शुरु कर दिया था। इसके बाद बोधिधर्म को महात्मा गौतम बुद्ध चलाई जा रही परंपरा का 28वां आचार्य बना दिया गया था।

वहीं बोधिधर्म की गुरु की मृत्यु के बाद, बोधिधर्मन ने अपना मठ का त्याग कर दिया और फिर अपने गुरु की इच्छा को पूरा करने के लिए वे बौद्ध धर्म के संदेश वाहक के रुप में चीन चले गए, जहां उन्होंने महात्मा बुद्ध के उपदेश और महान शिक्षाओं का जमकर प्रचार – प्रसार किया इसके साथ ही उन्होंने चीन में न सिर्फ बौद्ध धर्म की नींव रखीं बल्कि मार्शल आर्ट्स को भी इजाद किया। और यहीं से उन्हें एक अलग पहचान मिली।

बोधिधर्म की चीन यात्रा – Bodhidharma In China

बोधिधर्म चीन कैसे पहुंचे इसे लेकर विद्धानों के अलग-अलग मत है। उनके चीन जाने के वास्तविक मार्ग  के संबंध में कोई भी पुख्ता जानकारी नहीं है। कुछ विद्धानों का मानना है कि बोधिधर्म समुद्र के मार्ग से मद्रास से चीन के गुआंगज़ौ प्रांत तक गए थे। जबकि कुछ विद्धानों का मानना है कि वे सबसे पहले पीली नदी से लुओयांग तक पामीर के पठार से होकर गए थे।

वहीं आपको बता दें कि लुओयांग उस समय बौद्ध धर्म के प्रचार  के लिए एक सक्रिय केंद्र के रूप में मशहूर था। बोधिधर्म की चीन यात्रा के संबंध में यह भी मशहूर है कि इस यात्रा में बोधिधर्म को करीब 3 साल का लंबा समय लग गया था।

चीन में बौद्ध धर्म के प्रचार के दौरान झेलना पड़ा था काफी विरोध:

जब चीन में बोधिधर्म ने बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार करना शुरु किया, उस समय उन्हें चीन के राजा और वहां के भिक्षुओं का भयंकर विरोध का सामना करना पड़ा था।

वहीं बोधिधर्म का मानना था कि बौद्ध ग्रंथ, शास्त्र एवं शिक्षाएं ज्ञान प्राप्त करने के लिए महज एक मार्ग है, लेकिन सच्चा आत्मज्ञान सिर्फ कठिन अभ्यास द्धारा ही प्राप्त किया जा सकता है।

कई इतिहासकारों के मुताबिक बोधिधर्मन ने प्रामाणिक ध्यान -आधारित बौद्ध धर्म की शिक्षा का बहिष्कार कर दिया था और एक नई उसूलों के साथ उन्होंने बौद्ध धर्म की शुरुआत की थी, जिसमें उन्होंने भगवान बुद्ध को ज्यादा महत्व नहीं दिया गया, जिसकी वजह से उन्हें काफी परेशानियों  का भी सामना करना पड़ा था, यहां तक की विरोध की वजह से उन्हें चीन के लुओयांग प्रांत को छोड़कर हेनान प्रांत में जाना पड़ा। जहां से उन्होंने चीन का प्रसिद्ध बौद्ध मठ शाओलिन मठ  की यात्रा की।

बौद्ध धर्म में ध्यान को ज्यादा महत्व देने वाले बोधिधर्मन काफी परेशानियां, विरोध एवं उपहासों के बाबजूद भी अपने गुरु की शिक्षाओं का प्रचार-प्रसार करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी।

28 वें बौद्ध गुरु बोधिधर्मन जब बौद्ध शिक्षा को जन-जन तक पहुंचाने के लिए चीन के प्रसिद्ध शाओलिन मठ पहुंचे, तो यहां भी उन्हें काफी विरोध का सामना करना पड़ा, यहां पर उन्हें कुछ भिक्षुओं ने इस मठ में प्रवेश देने से मना कर दिया।

जिसके बाद बोधिधर्म बिना किसी प्रतिक्रिया दिए हुए वहां से ध्यान लगाने के लिए  पास के ही एक पहाड़  की गुफा में चले गए, जिसके बाद शाओलिन मठ के भिक्षुओं को लगा कि बोधिधर्म कुछ दिनों बाद इस गुफा से चले जाएंगे, लेकिन बोधिधर्म ने उस गुफा में लगातार 9 साल तक कठोर तप किया। इसी दौरान उन्होंने खुद को पूर्ण रुप से स्वस्थ रखने के लिए कुछ नई कसरतों का भी निर्माण किया।

वहीं बोधिधर्मन के त्याग, समर्पण एवं एकाग्रता को देखकर शाओलिन मठ के भिक्षु काफी प्रभावित हुए और न सिर्फ उन्हें शाओलिन मठ में घुसने की इजाजत दी, बल्कि उन्हें शाओलिन मठ का प्राचार्य भी बनाया। जिसके बाद यहां बोधिधर्म ने भिक्षुओं को कठोर तप और ध्यान के बारे में शिक्षा दी।

मार्शल आर्ट्स के ‘जनक’  बोधिधर्म – Bodhidharma Martial Arts

चीन में बौद्ध धर्म की नींव रखने वाले बोधिधर्म, प्राचीन भारत की कालारिपट्टू विद्या(मार्शल आर्ट) में भी निपुण थे। उन्हें आधुनिक मार्शल आर्ट्स कला के जन्मदाता कहा जाता है। वहीं मार्शल आर्ट्स के इतिहास से कुछ पौराणिक कथाओं में बोधिधिर्म के अलावा महर्षि अगस्त्य एवं भगवान श्री कृष्ण का भी नाम जुड़ा हुआ है।

शास्त्रों -पुराणों के मुताबिक महर्षि अगस्त्य ने दक्षिणी कलारिप्पयतु यानि बिना शस्त्र के लड़ने की कला को जन्म दिया, तो महर्षि परशुराम ने शस्त्र युक्त कलारिप्पयतु अपनी विद्या से विकसित किया, वहीं भगवान श्री कृष्ण ने शस्त्र और बिना शस्त्र के मेल की कालारिपयट्टू कला को विकसित किया, ऐसा कहा जाता है कि, श्री कृष्ण ने इस बिना शस्त्र से लड़ने की कला से एक दुष्ट का बुरी तरह संहार किया था।

शास्त्रों और धर्मग्रंथों के मुताबिक भगवान श्री कृष्ण ने जिस कला को इजाद किया था, वह अनूठी कला महान ऋषि अगत्स्य से होते हुए बोधिधर्म के पास आई थी और फिर बोधिधर्म ने मार्शल आर्ट्स के रुप में पूरी दुनिया में प्रचार-प्रसार किया।

महान बौद्ध भिक्षुओं में से एक एवं ऊर्जा से भरपूर बौद्ध धर्म प्रचारक बोधिधर्म से जुड़ी एक अन्य कथा के मुताबिक, बोधिधर्म जब शिओलिन मठ में जाकर अपने शिष्यों को ध्यान सिखा रहे थे, तब उन्होंने देखा कि कोई भी व्यक्ति पूर्ण रुप से स्वस्थ नहीं है, और लंबे समय तक ध्यान करने में सक्षम नहीं है। तब बोधिधर्मन ने जो व्यायाम ध्यान के दौरान अपनी गुफा में किए थे, उसे शाओलिन मठ के लोगों को सिखाया, जो आगे चलकर मार्शल आर्ट/ कुंग फू के रुप में विख्यात हुए।

इससे लोगों की सेहत पर काफी हद तक सुधार आया और लोगों को हथियार के बिना लड़ने की अद्भुत कला सीखने को मिली, इस कला को सीखने से लोग खुद को काफी सुरक्षित भी महसूस करने लगे थे।

महान बौद्ध भिक्षु बोधिधर्म के मार्शल आर्ट्स की इस अनूठी कला को लेकर यह भी प्रचलित है कि, एक बार चीन के गांव में कुछ हथियारबंद लुटेरों ने कब्जा कर लिया और वे लोगों को मारने लगे और जब बोधिधर्मन ने सब देखा तो उन्होंने अपने मार्शल आर्ट्स की विद्या से बिना किसी हथियार के सभी लुटुरों का सामना किया और गांव वालों को बचा लिया।

जिसके बाद गांव वालों के मन में उनके प्रति काफी सम्मान बढ़ गया एवं वे आश्चर्यजनक कला को सीखने के लिए चीन के लोग आगे आए। जिसके बाद बोधिधर्म ने आत्मक्षा की इस कला को गांव वालों को सिखाया। इस तरह उन्होंने इस अनूठी मार्शल आर्ट्स के माध्यम से लोगों से काफी लोकप्रियता भी बटोरी।

इसके बाद बोधिधर्म ने भारतीय श्वास व्यायाम एवं मार्शल आर्ट/ कुंग फू द्वारा अपनी शक्ति और संकल्प को आगे बढ़ाने का प्रयास किया, वहीं बाद में यह नई युद्ध विद्या चीन से निकल कर दुनिया कई अन्य देशों में फैल गई।

वहीं बोधिधर्म द्धारा सिखाई की इस नई विद्या को चीन में ‘जेन बुद्धिज्म’ का नाम दिया गया। इस अनूठी कला को इजाद करने के लिए बोधिधर्म का नाम इतिहास के पन्नों पर स्वर्णिम अक्षरों में अंकित है।

चाय के खोजकर्ता के रुप में  बोधिधर्म – Bodhidharma Tea

आयुर्वेद, चिकित्सा, सम्मोहन एवं पंच तत्वों को अपने काबू में करने की अनोखी कला जानने वाले एक महान धर्म प्रचारक बोधिधर्म ने न सिर्फ मार्शल आर्ट्स की अद्भुत कला को इजाद किया बल्कि चाय की भी खोज की है, जिसे लोग आज बड़े चाव से पीते हैं।

चाय की खोज से बोधिधर्म की कई पौराणिक कथाएं भी जुड़ी हुई हैं, इससे जुड़ी कथा के मुताबिक आज से कई हजार साल पहले चीन का राजा वू जो कि बौद्ध धर्म का महान संरक्षक था, वह चाहता था कि भारत से कोई ऐसा चमत्कारिक महान बौद्ध भिक्षु आए तजो चीन में बौद्ध धर्म के महान शिक्षाओं एवं संदेशों का प्रचार-प्रसार करे साथ ही उनके मन कई सालों से इकट्ठे हुए कई तरह के दार्शनिक और धार्मिक प्रश्नों का उत्तर दे सकें।

जिसके बाद काफी इंतजार करने के बाद उसको खबर मिली कि दो महान भिक्षु, बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार करने के लिए चीन आ रहे हैं, जिसके बाद राजा भारत से आ रहे बौद्ध भिक्षुओं की स्वागत की तैयारी में लग गया।

वहीं महज 22  साल के बोधिधर्म एवं उनके शिष्य चीन पहुंचे, जिन्हें देखकर राजा वू आश्चर्यचकित रह गया, दरअसल राजा वू ने सोचा था कि कोई अनुभवी, बुजुर्ग, महाज्ञानी चीन में बौद्ध धर्म के दूत के रुप में आएगा, लेकिन राजा वू को तो ये दोनों युवा तो बिल्कुल साधारण से प्रतीत हो रहे थे, हालांकि राजा वू को बोधिधर्म के अतुलनीय एवं आलौकिक ज्ञान के बारे में अंदेशा नहीं था।

हालांकि, इसके बाद राजा वू ने चीन में आए दोनों बौद्ध भिक्षुओं का जोरदार स्वागत किया और फिर उनसे वर्षों से अपने मन में छिपाए हुए प्रश्नों को पूछने की शुरुआत की। सबसे पहले राजा बू ने बौद्ध धर्म के महान प्रचारक बौधिधर्म से पूछा कि ‘इस सृष्टि का स्रोत क्या है?’

राजा का यह प्रश्न सुनकर बोधिधर्म हंस पड़े  एवं इस प्रश्न को मूर्खतापूर्ण कह कर खारिज कर दिया, जिसके बाद राजा वू ने खुद को काफी अपमानित महसूस किया, लेकिन फिर बाद में राजा वू ने अपने गुस्से को काबू में कर बोधिधर्म से दूसरा प्रश्न यह पूछा कि ”मेरे अस्तित्व का स्रोत क्या है?”

राजा के दूसरे सवाल को सुनकर बोधिधर्म फिर से हंस पड़े और इसे भी मूर्खतापूर्ण सवाल कहकर राजा से अन्य प्रश्न पूछने के लिए कहा।

इन दोंनो महत्वपूर्ण सवालों को बोधिधर्मन द्दारा बहिष्कृत किए जाने पर राजा क्रोध से भर गया और बोधिधर्मन के बौद्ध भिक्षु होने पर भी संदेह करने लगा एवं मन ही मन बोधिधर्म को ही मूर्ख समझने लगा।

लेकिन एक बार फिर राजा वू ने अपने गुस्से पर नियंत्रण किया और बोधिधर्मन से एक और सवाल पूछा कि “बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार करने के लिए मैंने कई ध्यान कक्ष बनवाए, हजारों  उद्यान  लगवाए, कई भूखे लोगों को भोजन करवाया  समाज सेवा की एवं कई हजार अनुवादकों को प्रशिक्षित किया। मैंने इतने सारे प्रबंध किए हैं। क्या मुझे मुक्ति मिलेगी?”

राजा का यह सवाल सुनकर गंभीर होकर बोधिधर्मन ने उत्तर दिया कि तुम तो सातवें नरक में जाओगे।

दरअसल, बोधिधर्म के मुताबिक मस्तिष्क के सात स्तर होते हैं, अर्थात अगर कोई भी इंसान वह काम नहीं करता है, जो कि उस समय जरूरी है  और किसी अन्य काम को करता है तो इसका मतलब है कि ऐसे इंसान का मस्तिष्क सबसे नीच किस्म का होता है, और उसे अपने जीवन में परेशानियां भोगनी ही पड़ती हैं।

बोधिधर्मन के मुताबिक, जो भी मनुष्य अच्छे काम करते हैं, वह यही उम्मीद करते हैं कि उनके साथ अच्छा होगा और लोग उनसे अच्छा व्यवहार करेंगे, लेकिन अगर ऐसा नहीं होता है, तब व्यक्ति की स्थिति वास्तव में किसी नरक से कम नहीं होती है, लेकिन राजा वू को बोधिधर्मन की यह बात समझ नहीं आई एवं वह और अधिक गुस्से से भर गया।

इसके बाद राजा वू ने बोधिधर्मन को अपने राज्य से निस्काषित कर दिया, लेकिन महान बौद्ध भिक्षु बोधिधर्म को राजा वू की इस हरकत से कोई फर्क नहीं पड़ा और वे पास के ही पर्वतों पर जाकर ध्यान साधना में लग गए।

ऐसा माना जाता है कि, इस पर्वतमाला पर ध्यान करते-करते एक दिन महान बौद्ध भिक्षु सो गए, और इस बात को लेकर बोधिधर्मन को खुद पर इतना अधिक गुस्सा आया कि उन्होंने अपनी आंख की पलकों को काटकर जमीन पर फेंक दिया, वहीं जिस जगह बोधिधर्मन ने अपनी आंख की कटी हुई पलकों को जमीन पर फेंका था, उस स्थान पर छोटी-छोटी हरे रंग की सुंदर पत्तियां उग आईं, जो कि बाद में चाय के रुप में जानी गई।

काफी खोज करने के बाद पाया गया कि अगर इन पत्तियों को उबालकर पिया जाए तो नींद भाग जाती है, अर्थात इसे पीकर पूरी तरह से सतर्क होकर ध्यान साधना की जा सकती थी। इस तरह बौद्ध भिक्षु बोधिधरम को चाय का खोजकर्ता के रुप में जाना गया। वहीं बोधिधर्मन जिस पर्वतमाला पर ध्यान करते थे, वो बाद में ‘चाय’ के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

शिष्य द्धारा दिया गया जहर – Bodhidharma Death

महान एवं ऊर्जावान बौद्ध धर्म प्रचारक की मृत्यु को लेकर भी विद्धानों के अलग-अलग मत हैं, कुछ विद्धानों मानना हैं कि बोधिधर्म की मृत्यु रहस्यमयी तरीके से चीन में हो गई थी।

जबकि कुछ  का मानना है कि बोधिधर्म को उनके ही शिष्यों ने उन्हें उत्तराधिकारी नहीं बनाए जाने पर जहर देकर मार दिया।

इसके अलावा बोधिधर्म की मृत्यु से जुड़ी एक अन्य कथा के मुताबिक जब बोधिधर्म बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार एवं बौद्ध शिक्षाओं को जन-जन तक पुहंचाने के उद्देश्य से दूत बनकर चीन के नानयिन (नान-किंग) गांव में गए थे, तब इस गांव के कुछ भविष्यवक्ता एवं ज्योतिषियों ने इस गांव  में किसी बड़ी आपदा और संकट आने की भविष्यवाणी की थी।

अर्थात जब बौद्ध धर्म के यह महान भिक्षु बोधिधर्म चीन के इस गांव में पहुंचे तो लोगों ने इन्हें ही संकट समझ लिया और उन्हें अपने गांव से बाहर निकाल दिया, जिसके बाद बोधिधर्म वहां से निकलकर पास के ही गांव में रहने लगे, लेकिन बोधिधर्मन के इस गांव के जाने के कुछ समय बाद ही इस गांव में महामारी का प्रकोप फैल गया, जिसकी चपेट में आने से गांव में कई लोगों की मौत हो गई, इससे पूरे गांव में हड़कंप मच गया।

दरअसल बोधिधर्मन एक प्रख्यात आयुर्वेदाचार्य थे, और जब उन्हें इस गांव में महामारी फैलने की खबर मिली तो, तब उन्होंने कुछ विशेष जड़ी-बूटियों के माध्यम से गांव वालों को इस महामारी के प्रकोप से बचा लिया, जिसके बाद लोगों के मन में इनके प्रति सम्मान और अधिक बढ़ गया और फिर उन्होंने बोधिधर्मन को  अपने गांव में रहने के लिए अनुरोध किया, जिसके बाद बोधिधर्मन उस गांव में रहकर लोगों को बौद्ध शिक्षाएं देते रहे।

हालांकि, अभी भी गांव वालों की समस्या खत्म नहीं हुई, ज्योतिषी की भविष्यावाणी फिर से सही हुई, गांव में चोर, लुटरों की गैंग ने उत्पात मचाना शुरु कर दिया। वे गांव वालों को परेशान करने लगे, जिसके बाद बोधिधर्मन ने अपनी मार्शल आर्ट्स की अनूठी कला से ही बिना शस्त्रों से हथियारबंद लुटरों को भगा दिया, जिसके बाद गांव वाले उन्हें आसाधारण दैवीय शक्ति वाले चमत्कारी व्यक्ति मानने लगे, इसके बाद बोधिधर्मन प्रिय बौद्ध भिक्षु के रुप में लोगों के बीच में लोकप्रिय हो गए।

इसके कई सालों के बाद फिर बोधिधर्मन ने गांव छोड़कर जाने की अपनी इच्छा जताई, लेकिन तभी फिर से ज्योतिषियों ने फिर से गांव में विपत्ति आने की भविष्यवाणी की, जिसके बाद गांव में बोधिधर्मन के शिष्यों ने उन्हें किसी भी तरह गांव में रोकने का ही फैसला लिया, गांव वाले बोधिधर्मन को जिंदा या फिर मुर्दा किसी भी हालत में गांव में ही रोकना चाहते थे। क्योंकि वे जानते थे कि बोधिधर्मन ही उन्हें हर कठोर विपत्ति से बाहर निकाल सकते हैं।

इसलिए बोधिधर्मन को रोकने के लिए उनके शिष्यों ने उनके खाने में जहर मिला दिया, लेकिन बोधी धर्मन ने यह बात जान गए कि उनके खाने में जहर मिला है, और फिर उन्होंने गांव वालों से उन्हें मारने का कारण पूछा, तब गांव वालों ने बताया कि, अगर उनके शरीर को गांव में ही दफना दिया जाए तो उनका गांव किसी भी तरह के बड़े संकट से मुक्त हो जाएगा, जिसके बाद बोधिधर्मन ने जहर मिला हुआ खाना स्वाद के साथ ग्रहण कर लिया और फिर उनकी मृत्यु हो गई।

इस तरह मार्शल आर्ट्स के जन्मदाता एवं आयुर्वेद चिकित्सा के ज्ञाता बोधिधर्म के प्रति लोगों के मन में एक अलग सम्मान था। हालांकि उन्हें अपने जीवन में तमाम तरह के विरोधों का भी सामना करना पड़ा, लेकिन वे बिना रुके अपने कर्तव्यपथ की तरफ आगे बढ़ते गए और लोगों को अपनी शिक्षाओं के माध्यम से  शिक्षा देते रहे।

बोधिधर्म आत्म-अनुशासन, कर्तव्यनिष्ठा, अडिग दृढ़संकल्प एवं जागृति की मिसाल हैं। वहीं इनके द्धारा आत्मरक्षा के लिए सिखाई गई बिना शस्त्रों के लड़ाई लड़ने की अनूठी कला मार्शल् आर्ट्स आज भी दुनिया भर में काफी मशहूर है।

वहीं आज लोग मार्शल आर्ट्स की कला को विशेष तौर पर इसे सीखते हैं। वहीं भारत में महिलाओं के प्रति बढ़ते अपराधों के खिलाफ लड़ने के लिए लड़कियों को खासकर यह कला सिखाई जा रही है एवं कई स्कूलों में तो इसके लिए खास ट्रेनर भी रखे गए हैं।

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100% बेस्ट इन्टरव्यू टिप्स | Interview Tips and Tricks in Hindi

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Interview Tips and Tricks in Hindi

हर एक इन्सान का सपना होता है की उसे एक अच्छी जॉब मिले, जहाँ उसे बढ़िया माहौल और बेहतर सैलरी मिल सके।ऐसा सपना तो हर किसी का होता है लेकिन इसके लिए आपको एक अच्छा इंटरव्यू देना होता है और एक सफल करियर में इंटरव्यू में पास होने की काबिलियत और आत्मविश्वास होना बहुत जरुरी है। जिससे आप अपनी उस ड्रीम कंपनी में जा सके और आपको ये सारी चीजे मिल सके।

एक अच्छा इंटरव्यू हर कोई नहीं दे सकता है। उसके लिए कुछ विशेष बातें रखनी होती है और अगर आप ये बातें ध्यान रखते है तो आप इंटरव्यू में सलेक्ट जरूर होंगे।

तो आइये आज हम इंटरव्यू को आसान बनाने के कुछ आसान उपायों – Interview Tips के बारे में जानेंगे। जिससे आप अपने दिमाग को आसानी से इंटरव्यू के लिये तैयार कर सकते हो।

Interview Tips and Tricks100% बेस्ट इन्टरव्यू टिप्स – Interview Tips and Tricks in Hindi

  • कंपनी की जानकारी:

इंटरव्यू में जाने से पहले आप एक बात तय कर ले की आपको कंपनी के बारे में बेसिक जानकारियां है या नहीं। जैसे कंपनी कब बनी, फाउंडर कौन है, कंपनी क्या बनाती है और इसकी ग्रोथ कैसी है। ये आपको इन्टरनेट में मिल जाएगा और आप इसे जरूर तैयार करे। अक्सर इंटरव्यू लेने वाला ये सवाल पूछ लेता है और जानना चाहता है की आप जिस कंपनी में आ रहे है उसके बारे में कितना जानते है। इसीलिए आप ये जानकारियां जुटा ले जिससे आपका पक्ष मजबूत रहेगा।

  • कपड़ो पर विशेष ध्यान:

हम सबको पता होता है की इंटरव्यू में बेहतर कपडे पहनकर जाने चहिये लेकिन हम ऐसा कर नहीं पाते क्योकि इनका सही चुनाव मुश्किल होता है। आप फिट कपडे पहने, ना बहुत टाइट और ना ही बहुत ढीले। इसके अलावा कपडे सामान्य हो और फॉर्मल हो जिससे आप भडकीले ना लगे। लाल, पीला, हरा यानी की चटक रंग के कपडे पहनने से बचे।आपके शूज पोलिश किये हुए हो, टाई चमकदार हो और कपडे बेहतर हो।इससे बहुत फर्क पड़ता है।

  • पानी लीजिये:

इंटरव्यू के समय में पानी से भरी बोतल की एक चुस्की भी आपकी बहुत सहायता कर देती है। क्योकि जिस समय में आप बहुत ही चिंतित रहे हो या ज्यादा बोलने की अवस्था में रहते हो तब आपके होंठ आसानी से सुख जाते है। इसका सीधा असर आपकी मानसिकता पर पड़ता है, और फिर आप आने वाले प्रश्नों के जवाब सही तरीके से नहीं दे पाते।

  • अंदर जाने की और बैठने की इजाजत:

अक्सर देखा जाता है की जब आपका नाम बुलाया जाता है तो आप सीधे कमरे के अंदर घुस जाते है क्योकि आपको लगता है की अब मुझे तो बुला ही लिया है, जबकि ये गलत है। आप अंदर जाने से पहले उनसे इजाजत ले और फिर अंदर जाएँ। इसके अलावा आप कुर्सी में तभी बैठे जब वो आपको कहे और जब वो आपको बैठने के लिए कह दें तो अप थैंकू सर जरूर कहे। इससे बहुत प्रभाव पड़ता है।

  • आत्मविश्वास:

इंटरव्यू में सबसे अधिक महत्व रखता है आपका आत्मविश्वास जो की आपके हाव भाव और आपकी आँखों में दिखाई देता है। जब आप बैठे हो तो ऐसा ना लगे की आप डर रहे है, आपको झिझक है या फिर आप कम्फर्ट महसूस नहीं कर रहे है। आपके अंदर का आत्मविश्वास ही आपको अपनी ड्रीम जॉब तक पहुचा सकता है और इसीलिए इसे बरक़रार रखे।

  • बॉडी लैंग्वेज:

अपनी बॉडी लैंग्वेज (शारीरिक हलचल) का ध्यान रखना भी बहुत जरुरी है। परिचय देते समय सबसे पहले मजबूती से एक दूजे से हाथ मिलाये, और इस समय आपको अपनी शारीरिक हलचलों का ध्यान रखना बहुत जरुरी होता है।

परिचय देते समय सामने वाले की आँखों में देखे, ना की आपको इधर-उधर देखना चाहिये। आपके कंधे सामने वाले की दिशा में होने चाहिये। आपके कंधे शरीर से मुक्त दिखने चाहिये और चेहरे पर हल्की सी मुस्कान होनी चाहिये। इससे आप तुरंत सामने वाले को आकर्षित कर सकते हो और इससे आपको भी अनुकूल लगेगा।

संवाद कर्ताओ के अनुसार तक़रीबन 50% संदेश सामने वाले को आपकी शारीरक हलचलों से ही चले जाते है, इसीलिए इंटरव्यू के लिये जाते समय कुछ दिनों पहले से ही इसकी तैयारी करना बहुत जरुरी है।

  • अपना पूरा समय लीजिये:

इंटरव्यू के समय में आपको अपना पूरा समय लेना चाहिये। और किसी भी प्रश्न का डायरेक्ट जवाब देने से पहले एक बार जरुर सोचे।

जवाब देते समय कुछ सेकंड तक सोचना कोई नकारात्मक बात नही है बल्कि यह सही जवाब देने की आपकी काबिलियत मानी जाएँगी। इससे अपना जवाब देते समय आप और भी ज्यादा कॉंफिडेंट रहोंगे और आपका अपने जवाब पर नियंत्रण भी रहेंगा।

  • अधिक बातें नहीं:

अक्सर देखने में आता है की जब इंटरव्यू वाला कोई सवाल पूछता है तो आप उसका बहुत अधिक जवाब देने लगते है अगर आपको उस फील्ड की जानकारी है। ऐसा ना करे, वो केवल उतना ही सुनना चाहता है जो सही और आपकी बातें सुनने में उसे कोई इंटरेस्ट नहीं है। उतना बोले जितना आवश्यक हो और इससे अधिक नहीं।

  • रिज्यूमे पर स्टडी:

ये बात बहुत आवश्यक है जिसमे लोग ध्यान नहीं देते है। आमतौर पर हम किसी का रिज्यूमे कॉपी कर लेते है या फिर अपने रिज्यूमे में कुछ ऐसा लिख देते है जो हमने किया नहीं है और इसके बाद जब इंटरव्यू में उससे सम्बंधित सवाल पूछने पर हम जवाब नहीं दे पाते है। इसीलिए रिज्यूमे को पूरा तरह से स्टडी कर ले की आपने क्या लिखा है और इसके क्या अर्थ है।

आपका करियर गोल, आपकी हॉबी आदि विशेष तौर पर। इसके अलावा हमेशा रिज्यूमे की तीन कॉपी लेकर जाए। कई बार इंटरव्यू लेने वाले तीन लोगो होते है तो ऐसे में अगर सबको एक एक कॉपी देगे तो उन्हें आसानी होगी और आपकी इस तैयारी से वो खुश होगे।

  • सैलरी की बात:

अगर आप सलेक्ट हो गए है और वो आपसे सैलरी की बात करते है तो वहां कम अधिक ना करें। ये पहले से तय करके जाए की आपको कितना पैसा लेना है और इसके बाद ही जवाब दे। कई बार इंटरव्यू वाला अधिक सोच रहा होता है और आप कम बोल देते है तो ऐसे में आपका नुकसान होता है।

इंटरव्यू एक कला है जिसमे आपको माहिर होना पड़ेगा। इस दौरान आप मन में एक बात सेट करले की आप इंटरव्यू देने नहीं बस थोड़ी से बात करने आये है जो आपको बेहतर तरीके से करनी है और फिर चले जाना है। ऐसे में आपके मन से डर निकल जाएगा।

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बैडमिंटन वर्ल्ड चैम्पियन पीवी सिंधु की सफलता की बुलंद दास्तां…

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PV Sindhu Biography in Hindi

पीवी सिंधु का सफलता की कहानी काफी प्रेरणादायक है, अपने त्याग, सर्मपण, हौसले, जुनून और जज्बे की बदौलत आज वे सफलता के इस शिखर तक पहुंची हैं।

कई बार फाइनल टूर्नामेंट में हार जाने के बाद कभी भी उनका हौसला नहीं टूटा, और वे निरंतर अपने लक्ष्य की तरफ आगे बढ़ती रहीं और आखिरकार वर्ल्ड बैडमिंटन चैंपनियनशिप में स्वर्ण पदकर जीतकर उन्होंने न सिर्फ अपने गोल्ड जीतने को सपने को पूरा किया बल्कि अपनी सफलता से हर भारतीय को गौरान्वित किया है।

आइए जानते हैं पीवी सिंधु के जीवन, संघर्ष, करियर एवं उपलब्धियों समेत अन्य रोचक एवं महत्वपूर्ण जानकारी के बारे में –

बैडमिंटन वर्ल्ड चैम्पियन पीवी सिंधु की सफलता की बुलंद दास्तां – Badminton Player PV Sindhu Biography in Hindi

PV Sindhu

पीवी सिंधु की जीवनी एक नजर में – PV Sindhu Information

पूरा नाम (Name) पुसरला वेंकट सिंधु
जन्म (Birthday) 5 जुलाई, 1995, हैदराबाद, भारत
माता का नाम (Mother Name) पी. विजया (पूर्व वॉलीबॉल खिलाड़ी)
पिता (Father Name) पीवी रमण (पूर्व वॉलीबॉल खिलाड़ी)
शैक्षणिक योग्यता (Education) MBA
पेशा (Profession) अंतराष्ट्रीय महिला बैडमिंटन खिलाड़ी
कोच (Coach) पुलेला गोपीचंद

पी. व्ही. सिन्धु बचपन और प्रारंभिक प्रशिक्षण – PV Sindhu History

पुरसला वेंकटा सिन्धु का जन्म एक तेलगु परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम पी.वी. रमण और माता का नाम पी. विजया था – दोनों ही माजी वॉलीबॉल खिलाडी थे। 2000 में रमण को अपने खेल के लिये अर्जुन अवार्ड से भी सम्मानित किया गया था।

जब सिन्धु के माता-पिता प्रोफेशनल वॉलीबॉल खेल रहे थे तभी सिन्धु ने बैडमिंटन खेलने का निर्णय लिया और अपनी सफलता की प्रेरणा सिन्धु ने 2001 में ऑल इंग्लैंड ओपन बैडमिंटन चैंपियन में पुल्लेला गोपीचंद से ली। असल में सिन्धु ने 8 साल की उम्र से ही बैडमिंटन खेलना शुरू कर दिया था।

पी. व्ही. सिन्धु PV Sindhu ने पहले महबूब अली के प्रशिक्षण में इस खेल की मुलभुत जानकारियाँ हासिल की और सिकंदराबाद के भारतीय रेल्वे के इंस्टिट्यूट में ही उन्होंने अपने प्रशिक्षण की शुरुवात की। इसके तुरंत बाद सिन्धु पुल्लेला गोपीचंद बैडमिंटन अकैडमी में शामिल हो गई। PV Sindhu

पी. व्ही. सिन्धु करियर – PV Sindhu Career

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सिन्धु ने 2009 में कोलंबो में सब-जूनियर एशियन बैडमिंटन चैंपियनशिप में ब्रोंज मेडल भी जीता था। 2010 ईरान फजर इंटरनेशनल बैडमिंटन चैलेंज में सिन्धु ने सिंगल केटेगरी में सिल्वर मेडल जीता। 2010 में मेक्सिको में जूनियर वर्ल्ड बैडमिंटन चैंपियनशिप में सिन्धु क्वार्टरफाइनल तक पहुची थी। इसके साथ ही वह 2010 में उबेर कप की भारतीय नेशनल टीम की सदस्य भी थी।

रियो ओलिंपिक में भी बिखेरा था अपनी प्रतिभा का जादू:

साल 2016 में रियो ओलिंपिक में महिलाओं की एकल सेमीफाइनल में जापानी खिलाड़ी नोजोमी ओकुहारा को हराकार फाइनल में पहुंची सिंधु ने इसके फाइनल में सिल्वर मेडल जीतकर अपने प्रतिभा का लोहा मनवाया था और इसी के साथ वे भारत की सबसे कम उम्र की ओलंपिक में रजत पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला बैडंमिंटन खिलाड़ी बनने का गौरव हासिल किया था और विश्व भर में अपने नाम की सनसनी मचा दी थी।

कई बार हारने के बाद वर्ल्ड चैंपियनशिप में गोल्ड मैडल जीतकर रचा इतिहास:

साल 2019 में बैडमिंटन वर्ल्ड चैंपियनशिप जीतने वाली पहली भारतीय खिलाड़ी बनी पीवी सिंधु ने यह मुकाम कई बार हारने के बाद हासिल किया है। आपको बता दें कि पीवी सिंधु इस टूर्नामेंट में कई बार फाइनल मुकाबलों में पहुंचकर स्वर्ण पदक जीतने से चूंक गईं, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी और आखिरकार इस टूर्नामेंट में स्वर्ण पदक जीतने का अपना सपना पूरा कर लिया।

पीवी सिंधु ने, स्विट्जरलैंड में आयोजित बीडब्ल्यूएफ बैडमिंटन वर्ल्ड चैम्पियनशिप-2019 के फाइनल में जापानी खिलाड़ी नोजोमी ओकुहारा पर भारी पड़ गई, इस मैच में उन्होंने ओकुहारा पर अपना दबदबा कायम रखा और उन्हें मैच में वापसी करने का कोई भी मौका नहीं दिया और वे 21-7, 21-7 से वर्ल्ड चैंपियन का खिताब जीतने वाली पहली भारतीय बन गईं।

आपको बता दें कि इससे पहले अब तक किसी ने भी बैडमिंटन वर्ल्ड चैम्पियनशिप में भारत के लिए पुरुष और महिला वर्गों में से स्वर्ण पदक नहीं जीता था।

इस टूर्नामेंट में अपनी महाजीत के बाद सिंधु ने नोजोमी ओकुहारा के खिलाफ अपना करियर रिकॉर्ड 9-7 कर लिया है। इसके साथ ही आपको ये भी बता दें कि बैडमिंटन वर्ल्ड चैम्पियनशिप में पीवी सिंधु के नाम 5 मेडल जीतने का खिताब दर्ज है, सिंधु ने अब तक एक गोल्ड, दो सिल्वर और दो ब्रॉन्ज मेडल जीते हैं।

पीवी सिंधु से ज्यादा दुनिया में अब तक किसी भी  महिला खिलाड़ी ने मेडल नहीं जीते हैं। इसी के साथ सिंधु महिला एकल में एक गोल्ड,  सिल्वर और ब्रॉन्ज मेडल जीतने वाली दुनिया की चौथी सबसे बड़ी खिलाड़ी बन गई हैं. उनसे पहले ली गोंग रूइना, लिंगवेई, और झांग निंग यह खिताब अपने नाम दर्ज कर चुकी हैं।

हैदराबाद में जन्मीं भारत की इस प्रतिभावान खिलाड़ी पीवी सिंधु ने बैडमिंटन वर्ल्ड चैम्पियनशिप साल 2017 व 2018 में सिल्वर मैडल जीते थे जबकि साल 2013 एवं साल 2014 इस टूर्नामेंट में वे ब्रॉन्ज मैडल ही जीत सकी थी। इस टूर्नामेंट में साल 2013 में पीवी सिंधु ने पहली बार हिस्सा लेकर सीनियर लेवल पर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया था।

इसके साथ ही आपको बता दें कि बैडमिंटन वर्ल्ड चैम्पियनशिप में भारत की मशहूर महिला बैडमिंटन खिलाड़ी सायना नेहवाल ने साल 2015 और 2017 में इस टूर्नामेंट में ब्रॉन्ज मेडल अपने नाम किए थे, जबकि पुरुष भारतीयों में 2019 में बी.साई प्रणीत और 1983 में प्रकाश पादुकोण ने इसमें अब तक ब्रॉन्ज मेडल जीते हैं।

वर्ल्ड चैंपियनशिप का खिताब जीतकर भारत के लिए स्वर्णिम इतिहास रचने वाली पीवी सिंधु, विश्व की सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ियों में से एक हैं, उन्होंने बैडमिंटन की अपनी अद्भुत खेल प्रतिभा से पूरी दुनिया में भारत को एक अलग पहचान दिलवाई है।

पीवी सिंधु, बैडमिंटन वर्ल्ड चैम्पियनशिप 2019 के फाइनल में स्वर्ण पदक जीतने वाली भारत की पहली भारतीय खिलाड़ी बन चुकी हैं, उन्होंने जापान की दिग्गज बैडमिंटन खिलाड़ी नोजोमी ओकुहारा को हराकर वर्ल्ड चैम्पियनशिप में जीत हासिल की है।

साल 2017 में इसी टूर्नामेंट में उन्हें नोजोमी ओकुहारा से हार का सामना करना पड़ा था, जिसका हिसाब उन्होंने बीडब्ल्यूएफ बैडमिंटन वर्ल्ड चैम्पियनशिप-2019 में बराबर कर न सिर्फ भारत का सिर गर्व से ऊंचा कर दिया है, बल्कि बाकी खिलाड़ियों के लिए भी एक मिसाल पेश की है।

वर्ल्ड बैडमिंटन चैंपियनशिप में भारत को ऐतिहासिक जीत दिलवाने वाली सिंधु को भारत सरकार द्वारा उनकी अद्भुत खेल प्रतिभा के लिए पद्म श्री, राजीव गाँधी खेल रत्न अवार्ड, द यूथ हाईएस्ट सिविलियन अवार्ड ऑफ़ इंडिया समेत कई बड़े पुरस्कारों से भी नवाजा जा चुका है।

पीवी सिंधु ने अब तक जीते पदक एवं उपलब्धियां – PV Sindhu Medals

महज 8 साल की उम्र से बैडमिंटन खेलने वाली पीवी सिंधु ने वर्ल्ड चैंपियन बनने तक के सफर में पीवी सिंधु ने कई बार हार-जीत का सामना किया, जिनमें से उनके करियर में खेले गए कुछ प्रमुख टूर्नामेंट का विवरण और उनके द्धारा जीते गए पदक का विवरण इस प्रकार है –

⦁ भारत की सबसे युवा और होनहार बैडमिंटन खिलाड़ी पीवी सिंधु ने साल 2009 में कोलंबो में आयोजित सब-जूनियर एशियन बैडमिंटन चैंपियनशिप में ब्रॉन्ज मेडल जीतकर भारत का मान बढ़ाया था।

⦁ साल 2010 में आयोजित ईरान फज्र अंतर्राष्ट्रीय बैडमिंटन चैलेंज में पीवी सिंधु ने वुमेन्स सिंगल्स कैटेगरी में सिल्वर मेडल अपने नाम किया था।

⦁ साल 2011 में पीवी सिंधु ने Douglas Commonwealth Youth Games के सिंगल्स इवेंट मे गोल्ड मैडल जीता और यही इनके करियर का टर्निंग प्वाइंट बना।

⦁ अपनी अद्भुत बैडमिंटन खेल प्रतिभा से सबको चौंकाने वाली पीवी सिंधु ने 7 जुलाई 2012 को जापानी खिलाड़ी नोजोमा ओकुहारा को फाइनल में मात देकर एशिया युवा अंडर -19 चैम्पियनशिप का खिताब अपने नाम कर भारत का नाम रोशन किया था। इसके साथ ही इसी साल सिंधु, चाइना मास्टर सुपर सीरीज टूर्नामेंट में चाइनल की दिग्गज खिलाड़ी Li Xuerui को भी भारी मात देकर सेमीफाइनल तक पहुंची थी।

⦁ साल 2013 में बेहतरीन खेल प्रर्दशन की बदौलत पीवी सिंधु को मलेशियन ओपन में पहला ग्रैंड प्रिक्स गोल्ड खिताब से नवाजा गया था। इसी साल पीवी सिंधु ने मकाउ ओपन ग्रांड प्रिक्स गोल्ड खिताब एवं खिलाड़ियों को दिए जाने वाले देश के सर्वोच्च सम्मान अर्जुन अवॉर्ड से भी नवाजा गया था।

⦁ साल 2013 और 2014 में बैक टू बैक वर्ल्ड बैडमिंटन चैंपियनशिप में ब्रॉन्ज मेडल जीतने वाली वे पहली भारतीय बैडमिंटन खिलाड़ी बनी थी।

⦁ साल 2016 में, रियो ओलंपिक में वोमेन्स सिंगल सेमीफाइनल में जापानी खिलाड़ी नोजोमी ओकुहारा को हराकर फाइनल में पहुंचकर सिंधु ने न सिर्फ इतिहास रचा था बल्कि रियो ओलंपिक में सिल्वर मेडल जीतने वाली वे भारत की पहली महिला खिलाड़ी भी बनी थी।

⦁ साल 2017 में दिल्ली में आयोजित इंडिया ओपन सुपर सीरीज में सिंधु ने कैरोलिना मारिन को हराकर इतिहास रचा था।

⦁ साल 2018 में पीवी सिंधु ने वर्ल्ड बैडमिंटन चैम्पियनशिप में सिल्वर मैडल जीतकर भारत का मान बढ़ाया था।

⦁ वर्ल्ड बैडमिंटन में सिंधु का दबदबा कायम रहा और 2019 में वर्ल्ड बैडमिंटन चैंपियनशिप में गोल्ड मैडल जीतकर उन्होनें इतिहास रच दिया।

पी.वी. सिंधु को प्रमुख पुरस्कार / सम्मान – PV Sindhu Awards

⦁ अपनी अद्भुत खेल प्रतिभा के लिए पीवी सिंधु को साल 2016 में भारत में खिलाड़ियों को मिलने वाला सर्वोच्च पुरस्कार राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। ⦁ साल 2015 में अपनी अद्भुत खेल प्रदर्शन के लिए पीवी सिंधु को पद्म श्री, द यूथ हाईएस्ट सिविलियन अवॉर्ड ऑफ इंडिया से नवाजा गया था। ⦁ साल 2013 में पीवी सिंधु को अर्जुन अवॉर्ड से सम्मानित किया गया था।

इस तरह पीवी सिंधु, अपने करियर में वर्ल्ड बैडमिंटन चैम्पियनशिप के फाइनल, कॉमनवेल्थ एवं ओलंपिक के फाइनल में हारने के बाद भी कभी हिम्मत नहीं हारी। अपनी कड़ी मेहनत और समर्पण के बल पर वर्ल्ड चैंपियन बनकर उन्होंने न सिर्फ अपनी सफलता से स्वर्णिम इतिहास रचा है, बल्कि बाकी खिलाड़ियों के लिए भी एक मिसाल पेश की है।

पीवी सिंधु से हर खिलाड़ी को प्रेरणा लेने की जरूरत है। वे एक अद्भुत और अतुलनीय खिलाड़ी है, जिन पर हर भारतीय को नाज है।

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अजमेर शरीफ़ दरगाह का इतिहास | Ajmer Sharif Dargah History In Hindi

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Ajmer Sharif Dargah in Hindi

भारत देश एक पूण्यभूमि हैं, यहाँ ऐसे कई तीर्थ स्थान है जहा हर धर्म के लोग आस्था के साथ जाते है ऐसा ही एक तीर्थ स्थान है अजमेर शरीफ़ दरगाह – Ajmer Sharif Dargah, कहा जाता है की Ajmer Dargah में आप जो भी मन्नत मागते हो वो पूरी हो जाती है। यह दरगाह ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती का दरगाह है।

अजमेर शरीफ़ दरगाह का इतिहास – Ajmer Sharif Dargah History In Hindi

Ajmer Sharif Dargah

कहां स्थित है (Ajmer Sharif Dargah Location) अजमेर, राजस्थान
मजार (Ajmer Sharif Mazar) ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की कब्र
प्रसिद्धि पवित्र तीर्थ स्थल, लाखों लोगों की आस्था का केन्द्र

राजस्थान राज्य के अजमेर में स्थित ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह भारत के प्रमुख तीर्थस्थलों में से एक है। यह दरगाह, पिंकसिटी जयपुर से करीब 135 किलोमीटर दूर, चारों तरफ अरावली की पहाड़ियों से घिरे अजमेर शहर में स्थित है। अजमेर शरीफ की दरगाह के नाम से यह पूरे देश में प्रसिद्ध है।

इस दरगाह से सभी धर्मों के लोगों की आस्था जुड़ी हुई है। इसे सर्वधर्म सद्भाव की अदभुत मिसाल भी माना जाता है। ख्वाजा साहब की दरगाह में हर मजहब के लोग अपना मत्था टेकने आते हैं। ऐसी मान्यता है कि जो भी ख्वाजा के दर पर आता है कभी भी खाली हाथ नहीं लौटता है, यहां आने वाले हर भक्त की मुराद पूरी होती है।

ख्वाजा की मजार पर देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू, बीजेपी के दिग्गत नेता स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी, देश की पहली महिला पीएम इंदिरा गांधी, बराक ओबामा समेत कई नामचीन और मशहूर शख्सियतों ने अपना मत्था टेका है। इसके साथ ही  ख्वाजा के दरबार में अक्सर बड़े-बड़े राजनेता एवं सेलिब्रिटीज आते रहते हैं  और अपनी अकीदत के फूल पेश करते हैं एवं आस्था की चादर चढ़ाते हैं।

ऐसा माना जाता है, लाखों धर्मों की आस्था से जुड़ी अजमेर शरीफ की दरगाह का निर्माण सुल्तान गयासुद्दीन खिलजी ने करवाया था इसके बाद मुगल सम्राट हुमायूं समेत कई मुगल शासकों ने इसका विकास करवाया। इस दरगाह में कोई भी सिर खोल कर नहीं जा सकता है, बाल ढककर ही ख्वाजा की मजार पर मत्था टेकने की अनुमति है, आइए जानते हैं, अजमेर शरीफ का इतिहास, इसकी बनावट, नियम एवं इससे जुड़े कुछ अनसुने एवं रोचक तथ्यों के बारे में –

ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह का इतिहास – Moinuddin Chishti History

अजमेर शरीफ, ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती का बेहद भव्य एवं आर्कषक मकबरा है। इसे ख्वाजा गरीब नवाज दरगाह के नाम से भी जाना जाता है। आपको बता दें कि ख़्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती एक प्रसिद्ध सूफी संत होने के साथ-साथ इस्लामिक विद्धान और दार्शनिक थे।

उनकी ख्याति इस्लाम के महान उपदेशक के रुप में भी विश्व भर में फैली हुई थी। उन्होंने अपने महान विचारों और शिक्षाओं का प्रचार-प्रसार किया एवं उन्हें भारत में इस्लाम का संस्थापक भी माना जाता था। उन्हें ख्वाजा गरीब नवाज के नाम से भी जाना जाता था। उनकी अद्भुत एवं चमत्कारी शक्तियों की वजह से वे मुगल बादशाहों के बीच भी काफी लोकप्रिय हो गए थे।

उन्होंने अपने गुरु उस्मान हरूनी से मुस्लिम धर्म की शिक्षा ली एवं इसके बाद उन्होंने धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए कई यात्राएं की एवं अपने महान उपदेश दिए। ख्वाजा गरीब नवाज ने पैदल ही हज यात्रा की थी।

वहीं ऐसा माना जाता है कि करीब 1192 से 1995 के बीच में वे मदीना से भारत यात्रा पर आए थे, वे भारत में मुहम्मद से आशीर्वाद प्राप्त करना चाहते थे, ख्वाजा साहब भारत आने के बाद शुरुआत में थोड़े दिन दिल्ली रुके और फिर लाहौर चले गए, एवं अंत में वे मुइज्ज़ अल- दिन मुहम्मद के साथ अजमेर आए और यहां की वास्तविकता से काफी प्रभावित हुए। इसके बाद उन्होंने अजमेर रहने का ही फैसला लिया।

यहां उन्हें काफी सम्मान भी मिला था। ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती के पास कई चमत्कारी शक्तियां थी, जिसकी वजह से लोगों का इनके प्रति काफी विश्वास था। ख्वाजा साहब ने मुस्लिम और हिन्दुओं के बीच में भेदभाव को खत्म करने एवं मिलजुल कर रहने का संदेश दिया।

इस सूफी संत के महान उपदेशों और शिक्षाओं के बड़े-ब़ड़े मुगल बादशाह भी कायल थे। उन्होंने लोगों को कठिन परिस्थितियों में भी खुश रहना, अनुशासित रहना, सभी धर्मों का आदर करना, गरीबो, जरुरतमंदों की सहायता करना, आपस में प्रेम करना समेत कई महान उपदेश दिए।

उनके महान उपदेश और शिक्षाओं ने लोगों पर गहरा प्रभाव छोड़ा और वे उनके मुरीद हो गए। इस महान सूफी संत ने ख़्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती ने करीब 114 साल की उम्र में ईश्वर की एकांत में प्रार्थना करने के लिए खुद को करीब 6 दिन तक एक कमरे में बंद कर लिया था और अपने नश्वर शरीर को अजमेर में ही त्याग दिया।

वहीं जहां उन्होंने अपनी देह त्यागी थी, वहीं ख्वाजा साहब का मकबरा बना दिया गया, जो कि अजमेर शरीफ की दरगाह, ख्वाजा मुईनुउद्दीन चिश्वती की दरगाह और ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह के रुप में मशहूर है।

अजमेर शरीफ की दरगाह का निर्माण एवं बनावट – Ajmer Sharif Dargah Architecture

इतिहासकारों की माने तो  सुल्तान गयासुद्दीन खिलजी ने करीब 1465  में अजमेर शरीफ की दरगाह का निर्माण करवाया था। वहीं बाद में मुगल सम्राट हुंमायूं, अकबर, शाहजहां और जहांगीर ने इस दरगाह का जमकर विकास करवाया। इसके साथ ही यहां कई संरचनाओं एवं मस्जिद का निर्माण भी किया गया।

इस दरगाह में प्रवेश के लिए चारों तरफ से बेहद भव्य एवं आर्कषक दरवाजे बनाए गए हैं जिसमें निजाम गेट, जन्नती दरवाजा, नक्कारखाना (शाहजहानी गेट), बुलंद दरावजा शामिल हैं। इसके अलावा ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह के अंदर  बेहद सुंदर शाह जहानी मस्जिद भी बनी हुई है।

यह मस्जिद मुगलकालीन वास्तुकला की एक नायाब नमूना मानी जातीहै। इस आर्कषक मस्जिद की इमारत में अल्लाह के करीब 99 पवित्र नामों के 33 खूबसूरत छंद लिखे गए हैं। इसके अलावा यहां शफाखाना, अकबरी मस्जिद भी हैं, इस मस्जिद में वर्तमान में मुस्लिम समुदाय के बच्चों को इस्लाम धर्म के पवित्र ग्रंथ कुरान की शिक्षा भी दी जाती है।

अजमेर शरीफ दरगाह की प्रमुख दर्शनीय स्मारक – Ajmer Sharif Tourist Place

  • निजाम गेट – Nizam Gate Ajmer

यह अजमेर शरीफ की दरगाह में बने चारों प्रमुख दरवाजों में से सबसे ज्यादा खूबसूत और आर्कषक दरवाजा है, जो कि मुख्य बाजार की तरफ है।

इस भव्य दरवाजे का निर्माण हैदराबाद डेक्कन के मीर उस्मान अली खां द्वारा करवाया गया था। इस विशाल गेट की चौड़ाई करीब 24 फीट एवं ऊंचाई 70 फीट है।

  • दरवाजा नक्कारखाना – Darwaja Nakkarkhana

ख्वाजा साहब की दरगाह में बने चार प्रमुख दरवाजों में नक्कारखाना भी आता है, जिसका निर्माण मुगल सम्राट शाहजहां ने 1047 ईसवी में करवाया था। 

यह प्रचीनतम वास्तुकला का इस्तेमाल कर बनाया गया है। इस भव्य गेट के ऊपर शाही जमाने का नक्कारखाना बना हुआ है। यह दरवाजा नक्करखाना शाहजहांनी के नाम से भी प्रसिद्ध है।

  • जन्नती दरवाजा – Jannati Darwaza

अजमेर शरीफ की दरगाह में पश्चिम की तरफ एक बेहद खूबसूरत चांदी की पॉलिश किया हुआ भव्य दरवाजा है, जो कि जन्नती दरवाजा के नाम से प्रसिद्ध है।

दरगाह के इस दरवाजे को साल में सिर्फ 4 बार भी विशेष मौकों पर खोला जाता है। आपको बता दें कि जन्नती दरवाजा, ख्वाजा शवाब की पीर के उर्स पर, वार्षिक उर्स के वक्त एवं दो बार ईद पर खोला जाता है।

  • बुलंद दरवाजा – Buland Darwaza Ajmer

बुलंद दरवाजा, अजमेर शरीफ की दरगाह में बने प्रमुख चारों दरवाजों में से एक है, यह एक भव्य और विशाल गेट है । जिसका निर्माण महमूद खिलजी और उनके उत्तराधिकारियों द्वारा करवाया गया है।

उर्स महोत्सव की शुरुआत से पहले इस भव्य गेट के ऊपर ध्वज फहराया जाता है। यह दरवाजा, अजमेर शरीफ के सभी दरवाजों में सबसे ऊंचा है, इसलिए इसे बुलंद दरवाजा कहा जाता है।

  • चार यार की मजार – Chaar Yaar Mazar Ajmer

अजमेर शरीफ की दरगाह में जामा मस्जिद के पास एक काफी बड़ा कब्रिस्तान बना हुआ है, जहाम कई बड़े-बड़े सूफियों, फकीरों, आलिमों और फाजिलों की कब्र बनी हुई हैं।

वहीं इस कब्रिस्तान में उन चार संतों की भी कब्रे बनी हुई हैं, जो कि ख़्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती के साथ भारत यात्रा पर आए थे, इसलिए इसे चार यार की मजार भी कहते हैं। यहां हर साल भव्य मेला लगता है, जिसे देखने दूर-दूर से सैलानी आते हैं।

  • अकबरी मस्जिद – Akbari Masjid

अकबरी मस्जिद का निर्माण  मुगल सम्राट अकबर ने उस वक्त करवाया था, जब जहांगीर के रुप में उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई थी।

दरअसल,मुगल सम्राट अकबरने ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह पर पुत्र रत्न की दुआ मांगी थी, वहीं जहांगीर के जन्म के बाद वे आगरा से करीब 437 किमी. दूर पैदल चलकर नंगे पैर इस दरगाह पर आए थे और जियारत पेश की थी एवं उसी वक्त अकबर ने इस मस्जिद के निर्माण का आदेश दिया था।

आज के समय इस मस्जिद में इस्लाम समुदाय के बच्चों को कुरान की तामिल दी जाती है।

  • सेहन का चिराग – Sehan Ka Chirag

अजमेर शरीफ की दरगाह के इस सबसे ऊंचे बुलंद दरवाजे के थोड़ा सा आगे बढऩे पर सामने की तरफ एक एक गुम्बद की तरह सुंदर सी छतरी है। इसमें एक काफी पुराने प्रकार का पीतल का चिराग रखा है। इसको सेहन का चिराग कहते हैं।

  • अजमेर शऱीफ में रखे दो बड़े-बड़े कढ़ाहे (देग):

अजमेर शरीफ की प्रसिद्ध दरगाह के अंदर दो काफी बड़े-बड़े कढ़ाहे रखे गए हैं,चितौड़गढ़ से युद्ध जीतने के बाद मुगल सम्राट अकबर ने इसे बड़े कढ़ाहे को ददान किया था, जबकि जहांगीर द्धारा छोटा कढाहा भेंट किया गया था।

आपको बता दें कि बड़े कढ़ाहे में एक बार में करीब 31.8 किलो चावल पक सकते हैं, जबकि छोटे कढ़ाहे में 12.7 किलो चावल पकाए जा सकते हैं। कढ़ाहे में रात में खाना बनाया जाता है, और रोज सुबह प्रसाद के रुप में यहां आने वाले भक्तों को बांटा जाता है।

  • महफिलखाना या फिर शामखाना:

अजमेर शरीफ के हॉल महफि़ल-ए-समां या महफिलखाना में सूफी गायकों के द्धारा रोजाना नमाज के बाद बेहद खूबसूरत दिल छू लेने वाली कव्वाली गाईं जाती हैं, जिसका यहां आने वाले भक्त लुफ्त उठा सकते हैं। इसके अलावा ख्वाजा गरीब नवाज की इस दरगाह में सनडली मस्जिद, ऑलिया मस्जिद, बाबाफिरिद का चिली, बीबी हाफिज जमाल की मजार समेत अन्य स्मारक भी बने हुए हैं।

इसके साथ ही इस दरगाह के अंदर एक बेहद शानदार नक्काशी किया हुआ चांदी का कटघरा है, जिसके अंदर ख्वाजा मुईउद्दीन चिश्ती की भव्य मजार बनी हुई है। इस चांदी के कटघरा का निर्माण  जयपुर के महाराजा राजा जयसिंह ने  करवाया था।

बता दें कि दरगाह के अंदर बना जहालरा ख्वाजा गरीब नवाज के समय से हैं, जो कि पहले पानी का प्रमुख स्त्रोत होता था। वहीं वर्तमान में इसका इस्तेमाल दरगार के पवित्र कामों के लिए किया जाता है।

अजमेर शरीफ दरगाह के नियम – Ajmer Sharif Dargah Rules

  • ख्वाजा की मजार पर कोई भी व्यक्ति सिर खोलकर नहीं जा सकता है।
  • मजार के दर्शन के लिए किसी भी तरह के बैग या सामान ले जाने की सख्त मनाही है। इसके साथ ही कैमरा ले जाने की भी रोक है।
  • ख्वाजा के दर पर बिना हाथ-पैर साफ किए प्रवेश करने की अनुमति नहीं है, यहां आने वाले भक्तों को पहले यहां मौजूद जहालरा में अपने हाथ-पैर साफ करने पड़ते हैं।

अजमेर शरीफ की दरगाह से जुड़ी कुछ रोचक एवं दिलचस्प बातें – Ajmer Sharif Dargah Miracle

  • अजमेर शरीफ की दरगाह में प्रवेश करने वाला पहला शख्स मोहम्मद बिन तुगलक हजरत ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती था, जिसने 1332 ईसवी में इस पवित्र तीर्थ स्थल की यात्रा की थी।
  • निजाम सिक्का नामक एक साधारण शख्स ने एक बार मुगल सम्राट हुमायूं को बचाया था। जिसके बाद इनाम के तौर पर उसे यहां का एक दिन का नवाब भी घोषित किया गया था। वहीं ख्वाजा गरीब नवाज की इस दरगाह के अंदर निजाम सिक्का का मकबरा भी बना हुआ है।
  • अजमेर शरीफ की दरगाह में रोजना शाम की नवाज से 15 मिनट पहले दैनिक पूजा के रूप में दरगाह के लोगों द्वारा दीपक जलाते हुए  ड्रम की धुन पर फारसी छंद  गाये जाते हैं। इस छंद गायन के बाद ये दीपक मीनार के चारों तरफ रखे जाते हैं। दरगाह में इस रिवाज को को ‘रोशनी’ कहते हैं।
  • ख्वाजा मोइउद्दीन चिश्ती की पुण्यतिथि पर मनाए जाने वाले उर्स के दौरान अल्लाह के मुरीदों के द्वारा गरम जलते कढ़ाहे के अंदर खड़े होकर भक्तों को खाना बांटा जाता है।
  • भारत के प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह, भारत सरकार द्धारा दरगाह ख्वाजा साहेब एक्ट 1955 के तहत मान्यता प्राप्त है। लाखों लोगों की आस्था से जुड़ी इस दरगाह के लिए भारत सरकार द्धारा एक समिति भी बनाई गई है, जो की इस दरगाह में चढ़ने वाले चढ़ावे का लेखा-जोखा रखती है एवं दरगाह की व्यवस्थाओं का ध्यान रखती है। हालांकि, इस दरगाह की अंदर की सभी व्यवस्थाएं खादिम देखते हैं और भक्तों की सभी सुख-सुविधाओं का भी पूरा ध्यान रखते हैं।

अजमेर शरीफ में उर्स – Urs Ajmer Sharif

अजमेर शरीफ में सूफी संत मोईउद्दीन चिश्ती की पुण्यतिथि के उपलक्ष्य में उर्स के रूप में 6 दिन का वार्षिक उत्सव बड़े हर्षोल्लास और धूमधाम से मनाया जाता है। इस उर्स की शुरुआत बुलंद दरवाजा पर ध्वज फहराने से होती है। उर्स का पर्व रजब के महीने में चांद दिखने के बाद मनाया जाता है।

ऐसी मान्यता है कि  ख्वाजा साहब ने अपने जीवन के अंतिम 6 दिन खुद को एक कमरे में बंद कर अल्लाह की इबादत की थी और अपना शरीर छोड़ दिया था। इसलिए उर्स का पर्व 6 दिन तक चलता है। वहीं उर्स के दौरान अजमेर शरीफ के रोज किए जाने वाले प्रोग्राम में बदलाव किया जाता है।

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अलाउद्दीन खिलजी का इतिहास | Alauddin Khilji History In Hindi

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Alauddin Khilji History In Hindi

खिलजी वंश के दूसरे शासक अलाउद्दीन खिलजी अपने निदर्यी और लड़ाकू स्वभाव के लिए भारतीय इतिहास में मशहूर था। वे एक शक्तिशाली, कुशल एवं महत्वकांक्षी शासक था जिसने काफी लूटपाट और उत्पात मचा कर अपने साम्राज्य का काफी विस्तार कर लिया था।

वह दक्षिण भारत को जीतने वाला पहला कुशल मुस्लिम राजा भी था। उसने अपने शासनकाल में दक्षिण में मदुरै तक अपने खिलजी साम्राज्य का विस्तार कर दिया था।

अलाउद्दीन खिलजी के करीब 300 साल बाद भी कोई भी शासक इतना बड़ा साम्राज्य स्थापित नही कर पाया था। अलाउद्दीन खिलजी ने खुद को दूसरा सिकंदर (अलेक्जेंडर) समझता था।

आइए जानते हैं अलाउद्दीन खिलजी के जीवन से जुड़ी कुछ महत्वूर्ण एवं दिलचस्प बातों के बारे में –

अलाउद्दीन खिलजी का इतिहास – Alauddin Khilji History In Hindi

Alauddin Khilji

अल्लाउद्दीन खिलजी  की जीवनी एक नजर में – Alauddin Khilji Information

वास्तविक नाम (Real Name) अली गुरशास्प उर्फ़ जूना खान खिलजी
पदवी अलाउददीन खिलजी (Alauddin Khalji)
जन्म (Birthday) 1260-1275 के बीच में

(जन्म के बारे में इतिहासकारों के एक मत नहीं),

पिता का नाम (Father Name) शाहिबुद्दीनमसूद
पत्नी का नाम (Wife Name) कमला देवी, झत्यपाली, महरू, मलिका ए-जहां
पेशा दिल्ली के सुल्तान
मृत्यु (Death) 1316 (दिल्ली)
समाधी स्थल (Alauddin Khilji Tomb) क़ुतुब परिसर दिल्ली

अलाउद्दीन खिलजी का जन्म, परिवार एवं प्रारंभिक जीवन – Alauddin Khilji Biography

अलाउद्दीन खिलजी के जन्म को लेकर इतिहासकारों के अलग-अलग मत है। उसका जन्म 1260 से 1275 के बीच में माना जाता है। उनका वास्तविक नाम अली गुरशास्प उर्फ़ जूना खान खिलजी था।

इनके पिता शाहिबुद्दीन मसूद की मृत्यु के बाद अलाउद्दीन खिलजी को उसके चाचा एवं खिलजी वंश के प्रथम सुल्तान जलालुद्दीन फिरुज खिलजी ने उनका पालन-पोषण किया था।

जलालुद्दीन ने अपनी बेटियों का विवाह, अलाउद्दीन खिलजी और उसके छोटे भाई अलमास बेग के साथ कर दिया था, हालांकि, अलाउद्दीन उसकी बेटी से शादी कर के खुश नहीं थे, इसलिए उन्होंने दूसरी शादी महरू नाम की बेगम के साथ कर ली थी।

अलाउद्दीन खिलजी का शासनकाल एवं साम्राज्य विस्तार

अलाउद्दीन के चाचा, जलाउद्दीन खिलजी जब दिल्ली के सुल्तान बने थे तो उसने अलाउद्दीन खिलजी को अपने दरबार में अमीर-ए-तुजुक बनाया जो कि अनुष्ठान प्रमुख के समकक्ष होता था, जबकि खिलजी के छोटे भाई अलमास बेग को अखुर-बेग बनाया जो कि अश्व प्रमुख के सामान माना जाता था।

करीब 1291 ईसवी में जलालुद्दीन के शासनकाल में कारा के राज्यपाल मालिक छज्जू ने आक्रमण कर दिया, जिसके बाद अलाउद्दीन ने अपनी राजनैतिक कौशल से इस स्थिति को बेहद अच्छे तरीके से संभाला, जिससे प्रभावित होकर उन्हें कारा का राज्यपाल बना दिया गया।

वहीं इसके बाद 1292 में भिलसा में जीत हासिल करने के बाद अलाउद्दीन को उनके चाचा एवं ससुर जलाउद्दीन ने अवध प्रांत की जिम्मेदारी भी सौंप दी।

वहीं इस दौरान मालिक छज्जू ने अलाउद्दीन के अंदर दिल्ली का सुल्तान बनने की इच्छा जगाई और जलाउद्दीन के खिलाफ नफरत के बीज बोए।

फिर अलाउद्दीन ने धोखेबाजी कर अपने चाचा जलाउद्दीन की हत्या कर दी और फिर दिल्ली के राजसिंहासन पर अपना कब्जा कर लिया।

1296 ईसवी में कारा में अलाउद्दीन ने खुद को औपचारिक रूप से ‘अलाउद्दीन उद-दीन मुहम्मद शाह-सुल्तान’ की उपाधि के रूप में दिल्ली का नया सुल्तान घोषित किया।

हालांकि, सुल्तान बनने के थोड़े समय तक उन्हें कई मुश्किलों का सामना भी करना प़ड़ा, लेकिन उसने अपनी शक्ति और कूटनीति का इस्तेमाल कर अपने सभी विद्रोहियों का डटकर मुकाबला किया।

इसके बाद करीब 1296 ईसवी से 1308 ईसवी के बीच मंगोलों ने दिल्ली पर अपना शासन कायम करने के लिए कई बार आक्रमण किए।

लेकिन अलाउद्दीन खिलजी ने मंगोलों को अपनी शक्ति का एहसास करवाया और उन्होंने 1298 में जलांधर की लड़ाई, 1299 ईसवी में किली की लडा़ई, 1305 ईसवी में अमरोह की लड़ाई एवं 1306 ईसवी में रवि की लड़ाई एवं 1308 ईसवी में अफगानिस्तान के घाजनी की लड़ाई में मंगोलों को हराकर विजय प्राप्त की।

इसके बाद अलाउद्दीन खिलजी ने करीब 30 हजार मंगोलियों की क्रूरता से हत्या कर दी,और मंगोलों की महिलाओं और बच्चों को अपने हरम में रख लिया।

अलाउद्दीन ने गुजरात पर आक्रमण के दौरान जीत हासिल की, यहां मलिक काफूर उनके वफादार सेनापति बन गए थे।

1301 ईसवी में अलाउद्दीन खिलजी को रणथंभौर की घेराबंदी के दौरान 3 बार हार का सामना करना पड़ा, हालांकि बाद में वह रणथंभौर पर अपनी सत्ता कायम करने में सफल रहा था।

अलाउद्दीन खिलजी और रानी पद्दावती – Alauddin Khilji And Padmavati

1302 से 1303 ईसवी में अलाउद्दीन खिलजी ने राजपूत राजा रतन सिंह के राज्य चित्तौड़गढ़ पर आक्रमण किया था, इस हमले के पीछे कुछ इतिहासकार यह तर्क देते हैं कि, खिलजी ने रतन सिंह की बेहद खूबसूरत पत्नी रानी पद्दावती को अपने हरम में शामिल होने को कहा।

लेकिन जब उन्होंने इंकार कर दिया तो उसने चित्तौड़़गढ़ दुर्ग पर हमला कर दिया, इस हमले में राजा रतन सिंह तो मारे गए, लेकिन रानी पद्मावती ने खिलजी से खुद की आत्मरक्षा के लिए कई हजार राजपूत रानियों के साथ जौहर (आत्मदाह) कर लिया था।

इसके बाद 1306 में खिलाजी ने बंग्लाना राज्य पर जीत हासिल की और फिर 1308 ईसवी में खिलजी की सेना ने मेवाड़ के सिवाना किले पर अपना सिक्का जमा लिया।

1310 ईसवी में अलाउद्दीन खिलजी ने होयसल साम्राज्य कोहासिल पर भी विजय प्राप्त  कर हासिल कर लिया।1311 ईसवी में अलाउ्ददीन की सेना ने मबार के इलाके में खूब लूटपाट की और उत्तर भारतीय राज्यों में अपना तानाशाह शासन चलाया।

इसके बाद अलाउद्दीन खिलजी ने अपने सबसे विश्वासपात्र सेनापति मलिकक काफूर की मद्द से दक्षिण भारत में विजय प्राप्त कर ली थी। इस दौरान दक्षिण भारत के सभी राज्य खिलजी को भारी टैक्स देते थे, जिसके चलते खिलजी के पास काफी धन और संपत्ति हो गई थी।

इसके अलावा खिलजी ने अपने शासनकाल में कृषि पर करीब 50 फीसदी टैक्स माफ कर दिया था, जिससे किसानों की हालत में काफी सुधार हुआ था।

अलाउद्दीन खिलजी की उपलब्धियां

एक तरफ महत्वकांक्षी शासक खिलजी ने जहां अपने शासनकाल में लूटपाट कर कई राज्यों पर अपना तानाशाह शासन चलाया तो वहीं उसने अपने राज में कई ऐसी सराहनीय व्यवस्थाएं भी लागू की, जिससे आम जनता को काफी फायदा हुआ और वह इतिहास में  एक कुशल एवं सफल शासक के रुप में उभरा।

अलाउद्दीन खिलजी की शासनकाल की कुछ उपलब्धियां निम्नलिखित हैं –

  • अलाउद्दीन खिलजी दक्षिण भारत पर जीत हासिल करने वाला भारत का पहला मुस्लिम सुल्तान था, यहां उसने भव्य मस्जिद का निर्माण भी करवाया था।
  • अलाउ्दीन ने अपने शासनकाल में एक कुशल राजस्व प्रशासन की स्थापना की थी। उसके शासन के समय कृषि की स्थिति में काफी हद तक सुधार हुआ, भ्रष्टाचार के खिलाफ कड़े नियम बनाए गए, प्रशासनिक व्यवस्थाओं के लिए कई बड़े अधिकारियों एवं एजेंट को रोजगार पर रखा गया।
  • अलाउद्दीन खिलजी ने अपने शासनकाल में मूल्य नियंत्रण नीति लागू की, अलाउद्दीन ने कपड़े, अनाज और रोजर्मरा में इस्तेमाल होने वाली वस्तुओं की कीमत के मुताबिक उनके मूल्य निर्धारित किए, जिसका आम जनता और सिपाहियों को काफी फायदा हुआ।
  • अपनी क्रूरता के लिए मशहूर अलाउद्दीन खिलजी ने अपने शासन में एक ऐसी टैक्स प्रणाली लागू की थी, जिसे 19वीं और 20वीं सदी के शासकों ने भी अपने समय में जारी रखा था। आपको बता दें कि खिलजी ने हिन्दुओं पर भूमि कर (खराज), चारागाह कर (चरह), चुनाव कर (जजिया) एवं घर कर (घरी) आदि को लागू किया था।

अलाउद्दीन खिलजी से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण, रोचक एवं अनसुने तथ्य – Alauddin Khilji Facts

  • अलाउद्दीन खिलजी, खिलजी वंश का दूसरा शासक एवं बेहद शक्तिशाली सम्राट था, इसलिए उसे “सिकंदर-ए-शाही” की उपाधि से भी नवाजा गया था। उसने अपनी कुशल राजनैतिक क्षमता का इस्तेमाल कर अपना खिलजी साम्राज्य दक्षिण में मदुरै तक फैला दिया था। खिलजी के बाद करीब 300 सालों तक कोई भी शासक इतना बड़ा साम्राज्य स्थापित नहीं कर सका था।
  • इतिहास के सबसे क्रूर शासक अलाउद्दीन खिलजी ने दिल्ली गद्दी पर अपना अधिकार जमाने के लिए अपने सगे चाचा और अपने ससुर जलाल-उद-दीन खिलजी की हत्या करवा दी थी। जबकि उसका पालन-पोषण उसके चाचा ने ही किया था।
  • अलाउद्दीन खिलजी बेहद घमंडी था, जो कि खुद की तुलना दुनिया को जीतने वाले सिंकदर से करता था, और खुद को ”विश्व का दूसरा सिंकदर कहता था’।
  • अलाउद्दीन खिलजी ने कई लड़ाईयों में मंगोलों को बुरी तरह परास्त किया था।
  • अलाउद्दीन खिलजी के शासनकाल में शराब बिक्री, भांग खाना एवं जुआं खेलने पर पूरी तरह से रोक थी।
  • अलाउद्दीन खिलजी ने अपने शासनकाल में एक बेहतर टैक्स प्रणाली की भी शुरुआत की थी, जिसे 19 वीं और 20 वीं सदी तक के शासकों ने भी जारी रखा था। इसके साथ ही गुप्तचर विभाग की भी स्थापना की थी।
  • अलाउद्दीन खिलजी के शासनकाल में ऱईस घरानों की घनिष्ट मित्रता और आपस में शादी पर रोक थी ताकि  ये घराने आपस में मिल कर संगठित विरोध न खड़ा कर पाएं।
  • अलाउद्दीन खिलजी वासना का प्रेमी था, उसके हरम में 50 हजार से भी ज्यादा पुरुष, महिलाएं और बच्चे समेत करीब 70 हजार लोग थे।
  • अलाउ्ददीन खिलजी चित्तौड़ की महारानी पदमावती की खूबसूरती पर मोहित हो गया था, जिसके चलते वो उनको अपने हरम में रखना चाहता था, लेकिन पदमावती के इंकार करने पर उसने राजस्थान के चित्तौड़गढ़ के दुर्ग पर हमला कर दिया था और रानी पद्मावती के पति राजा रतन सिंह समेत कई हजार राजपूतों की हत्या कर दी थी।
  • अलाउद्दीन खिलजी से अपनी आत्मरक्षा और राजपूत कुल की मर्यादा के लिए रानी पदमावती ने जौहर (आत्मदाह) कर लिया था। वहीं रानी पदमावती के साथ कई राजपूत महिलाओं ने भी जौहर किया था।

अलाउद्दीन खिलजी की मृत्यु – Alauddin Khilji Death

इतिहास के सबसे क्रूर और निर्दयी शासकों में से एक अलाउद्दीन खिलजी की मृत्यु 1316 ईसवी में हो गई।

इसकी मृत्यु के विषय में इतिहासकारों के मुताबिक उसकी मौत किसी लंबे समय तक रहने वाली गंभीर बीमारी की वजह से हुई थी,जबकि कुछ इतिहासकारों का मानना है कि उसके सेनापति एवं सबसे करीबी माने जाने वाले मलिक काफूर ने ही उसकी हत्या की थी।

फिलहाल, अलाउद्दीन खिलजी की मौत के बाद भारत की राजधानी दिल्ली के महरौली में स्थित कुतुब कॉम्प्लेक्स में उनकी कब्र बनाई गई थी।

वहीं अलाउद्दीन खिलजी की मौत के कुछ साल बाद ही खिलजी साम्राज्य का अंत हो गया था और फिर हिन्दुस्तान की तल्ख पर तुगलक वंश ने शासन किया था।

Rani Padmavati Movie

साल 2017 में अलाउद्दीन खिलजी और चित्तौड़ की महारानी रानी पद्मावती पर फिल्म निर्देशक संजय लीला भंसाली ने ”पदमावती” फिल्म बनाई थी, जो कि बॉक्स ऑफिस पर काफी हिट रही थी।

इस फिल्म में अलाउद्दीन खिलजी का किरदार मशहूर एक्टर रणबीर सिंह और पदमावती का किरदार दीपिका पादुकोण ने निभाया था।

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विश्व तंबाकू निषेध दिवस पर भाषण – Speech on Anti Tobacco Day in Hindi

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Speech on Anti Tobacco Day

तंबाकू एक धीमा जहर है,जो कि व्यक्ति के शरीर को अंदर से कमजोर एवं खोखला बना देता है। जिससे व्यक्ति तमाम तरह की घातक बीमारियों का शिकार हो जाता है, और तो और कई बार व्यक्ति को इसकी वजह से मृत्यु तक का सामना करना पड़ता है। इसलिए तंबाकू के दुष्प्रभावों के बारे में लोगों को बताने के लिए हर साल 31 मई को विश्व तंबाकू निषेध दिवस के रुप में मनाया जाता है।

इस दिवस पर जगह-जगह पर कैंप लगाए जाते हैं, कई कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है।  इसके अलावा तंबाकू के हानिकारक परिणामों के बारे में लोगों को जागरूक करने के लिए विश्व तंबाकू निषेध दिवस के मौके पर भाषण भी दिए जाते है।

इसलिए आज हम आपको अपने इस आर्टिकल में विश्व तंबाकू निषेध दिवस पर भाषण उपलब्ध करवा रहे हैं जिसका इस्तेमाल आप अपनी जरूरत के मुताबिक कर सकते हैं  और इस भाषण के माध्यम से बेहद शानदार तरीके से लोगों तक अपना संदेश पहुंचा सकते हैं-

Speech on Anti Tobacco Day in Hindi

विश्व तंबाकू निषेध दिवस पर भाषण – Speech on Anti Tobacco Day in Hindi

सर्वप्रथम सभी को मेरा नमस्कार !

सम्मानीय मुख्य अतिथि एवं यहां पर मौजूद सभी माननीय एवं गणमान्य नागरिक एवं मेरे समस्त छोटे भाई-बहन। यहां उपस्थित होने के लिए मै आप सभी का तहे दिल से स्वागत करता हूं। मुझे अत्याधिक खुशी हो रही है कि आज इस विश्व तंबाकू निषेध दिवस के मौके पर मुझे इस गंभीर मुद्दे पर अपनी राय रखने का मौका मिला।

मै अपने इस भाषण की शुरुआत तंबाकू छोड़ने के लिए प्रेरित करने वाले एक स्लोगन के माध्यम से  करना चाहती हूं /चाहता हूं –

”आदत नही ये अच्छी तू पहचान ले,

जानलेवा है धूम्रपान ये बात जान ले !!

केसर नही कैंसर का दम है दाने दाने में,

ऐ मेरे दोस्त, छोड़ ये शोक, बात मान ले !!”

जो लोग तंबाकू के सेवन करने की आदि है, या फिर जो लोग बीड़ी, सिगरेट आदि पीना अपनी शान समझते हैं, ऐसे लोगों का शरीर धीरे-धीरे कमजोर होता चला जाता है और वे कई जानलेवा बीमारियों से घिर जाते हैं।

वहीं तंबाकू का नशा करने वाले लोगों को तंबाकू के सेवन से होने वाली स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से अवगत कराने और पूरी दुनिया में तंबाकू का सेवन पूरी तरह रोकने के लिए लोगों को बढ़ावा देने के मकसद से हर साल 31 मई को WHO ( वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन/विश्व स्वास्थ्य संगठन) और इसके सदस्य राज्यों समेत गैर-सरकारी और सरकारी संगठनों के द्वारा वार्षिक आधार पर विश्व तंबाकू निषेध दिवस मनाया जाता है।

आपको बता दें कि 31 मई साल 1987 को सबसे पहली बार पूरी दुनिया में विश्व तंबाकू निषेध दिवस मनाया गया था, इसके बाद इस दिवस के मनाए जाने के महत्व को समझते हुए इसे हर साल मनाया जाने लगा।

वहीं एक तरफ जहां लोग तरक्की और विकास के नए आयामों को छू रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ आज भी युवा पीढ़ी नशे के गिरफ्त में है, जो कि एक बेहद गंभीर मुद्दा है, क्योंकि तंबाकू के सेवन से न सिर्फ उनका शरीर खराब हो रहा है, बल्कि देश का भविष्य भी चौपट हो रहा रहा है।

दरअसल, आजकल ज्यादातर युवा वर्ग  दिखावे में हुक्का, चिलम,जर्दा, सिगरेट आदि के द्धारा तंबाकू का बड़ी मात्रा में सेवन कर रहे हैं, जिससे उनका शरीर खराब हो रहा है।

आपको बता दें कि तंबाकू में निकोटिन एक ऐसा पदार्थ होता है, जो कि मनुष्य के शरीर के लिए बेहद खतरनाक होता है, वहीं यह पदार्थ न सिर्फ इंसान को नशे का आदि बनाता है, बल्कि इसके दुष्प्रभाव से कैंसर जैसी घातक बीमारियों के होने का खतरा बढ़ जाता है।

इसके साथ ही यह मनुष्य के दिल और दिमाग में भी गहरा असर डालता है। इससे धीरे-धीरे मनुष्य की सोचने-समझने की शक्ति प्रभावित तो होती ही है साथ ही भूख भी नहीं लगती है।

जिसके चलते व्यक्ति का शरीर धीरे-धीरे काम करना बंद कर देता है और कई बार यह मृत्यु का भी कारण बन जाता है।

धुम्रपान या फिर तंबाकू का सेवन करने से माउथ, लंग एवं थ्रोट कैंसर होने का खतरा ज्यादा बढ़ जाता है। इसके अलावा पेट सें संबंधित कई बीमारियां,  एसिडिटी, पेट के अल्सर इंसोम्निया एवं दिल से सबंधित बीमारियां हार्ट डिजीज, हाई ब्लड प्रेशर, श्वास संबंधी बीमारियां  आदि रोगों का भी शिकार हो जाता है।

वहीं जो व्यक्ति तंबाकू और सिगरेट का सेवन करते हैं उन्हें तो इसके दुष्परिणामों को भुगतना ही पड़ता है, इसके साथ ही उनके आसपास मौजूद लोगों के स्वास्थ्य पर भी इसका बुरा असर पड़ता है।

वहीं जो लोग घर में ध्रूमपान आदि करते हैं तो उनकी इस आदत का दुष्प्रभाव उनके बच्चों पर भी पड़ता है और घर का वातावरण खराब होता है।

आजकल युवाओं में तंबाकू का सेवन करना एक फैशन और स्टेटस सिंबल बन गया है।  जिसके चलते कुछ लोग सिगरेट, बीड़ी, गुटखा, जर्दा, खैनी, हुक्का, चिलम आदि का सेवन सिर्फ दिखावे और शौक के चलते कर रहे हैं, हालांकि बाद में यह उनकी आदत में शामिल हो जाता है, जिसका उन्हें बुरा परिणाम भुगतना पड़ता है।

इसके अलावा कई लोग ऐसे भी हैं, जो तनाव को कम करने के लिए अपने बुरे दौर में तंबाकू/सिगरेट का सेवन करने लगते हैं,हालांकि इससे तनाव तो कम नहीं होता लेकिन व्यक्ति को इसकी लत लग जाती है और फिर उसे स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों का सामना करना पड़ता है।

वहीं वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन की एक रिपोर्ट से आप इस बात का अंदाजा लगा सकते हैं कि तंबाकू का सेवन व्यक्ति की जान पर किस तरह भारी पड़ रहा है। WHO की एक रिपोर्ट के अनुसार, तंबाकू के सेवन से हर साल 60 लाख से भी ज्यादा लोग मौत का शिकार हो रहे हैं।

वहीं अगर इसी तरह लोग तंबाकू का सेवन करते रहे तो यह आंकड़ा आने वाले सालों में 1 करोड़ को भी पार कर जाएगा।

इसलिए विश्व तंबाकू निषेध दिवस के माध्यम से लोगों को इसके दुष्परिणामों के बारे में जागरूक किया जा रहा है, ताकि लोग तंबाकू से बने पदार्थों का सेवन न करें।

वहीं ऐसा नहीं है कि जिन लोगों को एक बार तंबाकू के सेवन करने की लत लग गई, वो इसे छोड़ नहीं सकता है। हां शुरुआती दिनों में थोड़ा मुश्किल हो सकता है, लेकिन अगर व्यक्ति चाहे तो धीरे-धीरे इस जानलेवा आदत को बदल सकता है और जीवन भर स्वस्थ रह सकता है।

वहीं विश्व तंबाकू निषेध दिवस पर तंबाकू छोड़ने के कई उपायों के बारे में भी बताया जाता है, जिससे व्यक्ति इस बुरी लत से पीछा छुड़ा कर स्वस्थ जीवन की तरफ अपना कदम बढ़ा सके और एक नई स्वस्थ जिंदगी की शुरुआत कर सके।

तंबाकू के दुष्परिणामों को जानने के बाद अगर कोई व्यक्ति तंबाकू छोड़ने के बारे में सोच रहा है तो सबसे पहले इसे छोड़ने के लिए ईमानदारी के साथ दृढ़संकल्प लेना होगा और इसके लिए उन्हें अपना पक्का मन बनाना होगा।

इसे एक बार में ही छोड़ने का प्रयत्न नहीं करना चाहिए, बल्कि धीरे-धीरे इसे छोड़ने की शुरुआत करनी चाहिए और जब भी तंबाकू का सेवन करने का मन करें तो इसके बदले सौंफ या फिर किसी माउथ फ्रेशनर का इस्तेमाल करना चाहिए जिससे अच्छा भी लगेगा और मन भी डायवर्ट होगा।

वहीं अगर आप भी उन लोगों में से एक हैं, जिन्हें तंबाकू से बने उत्पादों के सेवन करने की बुरी आदत है, तो आप अपनी इस आदत को जल्दी से जल्दी छोड़ने की कोशिश में लग जाइए अन्यथा, इसका आपको बुरा खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।

वहीं इस तंबाकू निषेध दिवस के मौके पर हम सब मिलकर तंबाकू से बने उत्पादों का पूरी तरह से बहिष्कार करने का और नशा मुक्त भारत बनाने का संकल्प लें साथ ही अन्य लोगों को भी इस बुरी लत से दूर रहने के लिए प्रोत्साहित करें। तो दोस्तों मैं अपने इस भाषण का अंत एक स्लोगन के माध्यम से करना चाहूंगा/ चाहूंगी।

दारू से दरियादिली और तम्बाकू से शान,

इनसे दोस्त तुम दूर रहो नहीं होगा तुम्हारा कल्याण।

धन्यवाद।।

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Subh Vichar in Hindi –सर्वश्रेष्ठ शुभ विचार

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Subh Vichar

शुभ विचार वे विचार होते हैं, जो हमें न सिर्फ अपने कर्तव्यों का बोध करवाते हैं, बल्कि हमें सही कर्मपथ पर आगे बढ़ने का रास्ता दिखाते हैं, इसके साथ ही अपनी जिंदगी के लक्ष्यों को हासिल करने में सहायता करते हैं।

इस तरह के विचार हमारे अंदर नई ऊर्जा का संचार करते हैं, जिससे हम अपने जीवन में आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित होते हैं, बड़ों का सम्मान करना, जीवों पर दया करना, गरीबों एवं जरूरतमंदों की सहायता करना, विपत्ति के समय धैर्य एवं संयम बनाए रखना समेत कई ऐसी चीजें सीखाते हैं, जो कि हमारी खुशहाल जीवन के लिए बेहद उपयोगी होती हैं।

वहीं आज हम आपको अपने इस आर्टिकल में कुछ महान विद्धानों और महामहिमों को सर्वश्रेष्ठ सुविचार उपलब्ध करवा रहे हैं, जिन्हें पढ़कर न सिर्फ आपके मन को सुकून मिलेगा और अपनी जिंदगी में कुछ करने का जज्बा पैदा होगा।

बल्कि अगर आप इन सर्वश्रेष्ठ सुविचारों को अपनी सोशल मीडिया साइट्स फेसबुक, ट्वीटर, व्हाट्सऐप, इंस्टाग्राम आदि में शेयर करेंगे तो आपके दोस्तों, करीबियों और रिश्तेदारों को भी इन विचारों के माध्यम से प्रेरणा मिल सकेगी एवं वे भी अपना खुशहाल जीवन जी सकेंगे।

Subh Vichar in Hindi – शुभ विचार

Subh Vichar

जिसके पास धैर्य है, वह जो कुछ इच्छा करता है, प्राप्त कर सकता है। – फ्रैंकलिन

दो धर्मों का कभी भी झगड़ा नहीं होता। सब धर्मों का अधर्मो से ही झगड़ा है। –  विनोबा भावे

मानव के कर्म ही उसके विचारों की सर्वश्रेष्ट व्याख्या हैं। – लॉक

दुःख भोगने से सुख के मूल्य का ज्ञान होता है। – शेख सादी

कुछ न कुछ कर बैठने को ही कर्तव्य नहीं कहा जा सकता। कोई समय ऐसा भी होता है, जब कुछ न करना ही सबसे बड़ा कर्तव्य माना जाता है। – रवीन्द्रनाथ ठाकुर

“क्रोध मुर्खता से शुरु होता है और पश्चाताप पर खत्म होता है।”

जब क्रोध आये, तो उसके परिणाम पर विचार करो। – कन्फ्यूशस

भार हल्का हो जाता है, यदि प्रसन्नतापूर्वक उठाया जाए।- ओविड

उस इन्सान से ज्यादा गरिब कोई नहीं है, जिसके पास केवल पैसा है। – एडबिन पग

Shubh Vichar

विद्धानों द्धारा कहे गए शुभ विचार हमेशा हमें तरक्की की तरफ अग्रसर करने में हमारी सहायता करते हैं एवं हमें अपने काम के प्रति और अधिक जिम्मेदार बनाते हैं।

इस तरह के सर्वश्रेष्ठ सुविचार हमार अंदर नई आशा, उम्मीदों को जगाने के साथ-साथ हमारे आपसी रिश्तों को मजबूत बनाते हैं, भरोसा मजबूत करते हैं, हिम्मत और साहस बढ़ाते हैं, मुसीबतों से उभारने में सहायता करते हैं, कठिन समय में एक अभिभावक की तरह काम करते हैं, मन को प्रसन्नता देते हैं, खुद पर नियंत्रण रखना एवं क्रोध पर काबू पाना सिखाते हैं।

इसलिए इन सर्वश्रेष्ठ शुभ विचारों  को पढ़ने के बाद गंभीरता से इस पर विमर्श करें, तभी आप अपने जीवन में बदलाव कर सफलता के पथ पर आगे बढ़ सकते हैं।

अपनी गलती स्वीकार कर लेने में लज्जा की कोई बात नहीं है। इससे, दुसरे शब्दों में, यही प्रमाणित होता है कि बीते हुए कल की अपेक्षा आज आप अधिक बुद्धिमान हैं। – अलेक्जेन्डर पोप

जिस प्रकार बिना घिसे हीरे पर चमक नहीं आती, ठिक उसी तरह बिना गलतियाँ किये मनुष्य सपूर्ण नहीं बनता। – चीनी कहावत

चिन्ता ने आज तक कभी किसी काम को पूरा नहीं किया। – स्वेट मार्डन

“महत्व इसका नहीं है कि हम कब तक जीते हैं; महत्त्व की बात तो यह है कि हम, कैसे जीते हैं।”

Subh Vichar Shayari in Hindi

हर किसी के जीवन में उतार-चढ़ाव आते हैं, लेकिन कुछ लोग विपत्ति के समय में धैर्य नहीं खोते हैं और हिम्मत के साथ आगे बढ़ते हैं एवं अपने लक्ष्यों को प्राप्त कर लेते हैं।

लेकिन कुछ लोग विपत्ति के समय एकदम टूट जाते हैं, एवं अपने लक्ष्य से पीछे हट जाते हैं और नकारात्मकता से भर जाते हैं, ऐसे लोगों के लिए इस तरह के शुभ विचार एक अच्छी टॉनिक का काम करते हैं और लोगों को मुसीबत से उभारने में उनकी सहायता करते हैं एवं लोगों के अंदर नई शक्ति एवं ऊर्जा का संचार कर उन्हें जीवन जीने की प्रेरणा देते हैं।

इसके साथ ही इस तरह के  विचार हमारे अंदर सकारात्मक ऊर्जा के साथ एक भरोसा जगाते हैं।

इसलिए इस तरह के सर्वश्रेष्ठ शुभ विचारों को अपने सोशल मीडिया अकाउंट्स व्हाट्सऐप, फेसबुक, ट्वीटर, इंस्टाग्राम आदि में भी अपने करीबी दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ अधिक से अधिक शेयर करें, ताकि वे भी अपने जीवन में आने वाली मुसीबतों का डटकर सामना कर सकें और सफलता की नई ऊंचाईयों को छू सकें।

दोषभरी बात यदि यथार्थ है, तब भी नहीं करना चाहिए, जैसे अंधे को अंधा कहने पर तकरार हो जाती है। – डिजरायली

तीन विश्वासी मित्र होते हैं; वृद्धा पत्नी, बुढा कुत्ता और नकद धन। – फ्रैंकलिन

जो मित्रता में से आदर निकाल देता है, वह मित्रता का सबसे बड़ा आभूषण उतार देता है। – सिसरो

पैसेवाले पैसे की कदर क्या जानें ? पैसे की कदर तब होती है, जब हाथ खाली हो जाता है। तब आदमी एक-एक कौड़ी दाँत से पकड़ता है। – प्रेमचन्द

Subh Vichar in Hindi Images

जरूरी नहीं है कि हर किसी को पहली बार में ही सफलता मिल जाए, कई बार ऐसा भी होता है कि कई बार प्रयास करने के बाद भी असफलता हासिल होती है, ऐसे में कई व्यक्ति मायूस होकर बैठ जाते हैं, या फिर प्रयास करना ही छोड़ देते हैं।

वहीं ऐसे समय में महान विद्धान द्धारा कहे गए इस तरह के सर्वश्रेष्ठ शुभ विचारों सें अपने जीवन में आगे बढने की प्रेरणा मिलती है, क्योंकि किसी विद्धान ने कहा है कि, असफलता, सफलता की कुंजी होती है, और जब तक व्यक्ति विफल नहीं होगा, तब तक वह कभी सफलता के सही मायने नहीं समझ सकेगा, आखिरकार काफी संघर्षों के बाद मिली सफलता, व्यक्ति को एक अलग तरह की खुशी प्रदान करती है एवं सफलता के सही मायनों को समझने में सहायता मिलती है।

इसलिए, असफल होने पर कभी निराश नहीं होइए, बल्कि लगातार प्रयास करते रहिए, एक दिन सफलता जरूर मिलेगी। इसके अलावा भी विद्धानों ने अपने विचारों के माध्यम से ऐसी शिक्षा दी है, जिससे व्यक्ति को अपने जीवन में आगे बढ़ने की हिम्मत मिलती है।

कर्तव्य ही ऐसा आदर्श है, जो कभी धोखा नहीं दे सकता। – प्रेमचन्द्र

“धैर्य एक कडुवा पौधा है, पर पर फल मीठे आते हैं।”

मानसिक पीड़ा शारीरिक पीड़ा की अपेक्षा अधिक कष्टदायक होती  है। – साइरस

ध्येय जितना महान होता है, उसका रास्ता उतना ही लम्बा और बीहड़ होता है। – साने गुरुजी

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हिन्दुस्तान का सबसे विशालकाय एवं ऐतिहासिक आवास भवन-  राष्ट्रपति भवन

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Rashtrapati Bhavan History

दिल्ली में स्थित राष्ट्रपति भवन भारत के प्रथम नागरिक यानि राष्ट्रपति का आधिकारिक आवास है। यह देश के सबसे विशालतम और प्रतिष्ठित स्मारकों में से एक है। यह भव्य भवन हिन्दुस्तान की आजादी की गवाही देता है।

भारत के राष्ट्रपति का राजकीय निवास ‘रायसीना पहाड़ी’ पर स्थित है, जो कि उत्कृष्ट एवं अद्भुत वास्तुशैली से निर्मित किया गया है। इस आलीशान राष्ट्रपति भवन को पहले वाइसराय हाउस के नाम से जाना जाता था।

राष्ट्रपति भवन, दिल्ली के पश्चिम छोर पर बना हुआ हैं। आपको बता दें कि यह दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा राष्ट्रपति भवन एवं दुनिया का सबसे बड़ा सरकारी निवास स्थान है।

इसकी विशालता के चर्चे पूरी दुनिया भर में फैल हुए है, इस उत्कृष्ट भवन को नई दिल्ली में ब्रिटिश शासनकाल में भारत के वायसराय और गर्वनर जनरल के रहने के लिए निर्मित किया गया था, वहीं विशाल संरचना की निर्माण की जिम्मेदारी ब्रिटिश वास्तुकार सर एड्विन लैंडसियर लूट्यन्स को दी गई थी।

करीब 330 एकड़ के विशाल क्षेत्रफल में फैले प्रेसिडेंट हाउस का मुख्य आर्कषण मुगल गार्डन है, जिसमें कई अलग-अलग प्रजातियों के पौधे हैं,जो कि देखने में बेहद सुंदर है।

इस विशाल भवन में फूलों के सुंदर बाग-बगीचों के साथ, भव्य लाइब्रेरी, सभाग्रह, समारोह कक्ष, बॉडीगार्ड और कर्मचारियों के निवास, स्वागत कक्ष, टेनिस कोर्ट, बच्चों के लिए उपयुक्त स्थान, राजकीय कार्यालय, क्रिकेट मैदान आदि शामिल हैं।

आइए जानते हैं इस विशाल भवन के रोचक इतिहास, अद्भुत  बनावट, इसकी विशेषताएं एवं इससे जुड़े कुछ आश्चर्यजनक तथ्यों के बारे में –

हिन्दुस्तान का सबसे विशालकाय एवं ऐतिहासिक आवास भवन-  राष्ट्रपति भवन – Rashtrapati Bhavan History In Hindi

Rashtrapati Bhavan
Rashtrapati Bhavan

राष्ट्रपति भवन का निर्माण एवं इतिहास – Rashtrapati Bhavan Ka Itihas

दुनिया के सबसे विशालकाय सरकारी आवास, राष्ट्रपति भवन को ब्रिटिश काल के दौरान बनाया गया था।

साल 1911, में अंग्रेजों ने जब अपनी राजधानी कोलकाता से स्थानांतरित करके दिल्ली में स्थापित की थी, उस दौरान इस भवन को ब्रिटिश वायसराय के निवास स्थान के रुप में निर्मित करवाने का फैसला लिया गया था।

जिसके बाद इस भव्य इमारत की निर्माण की जिम्मेदारी ब्रिटिश वास्तुकार सर एड्विन लैंडसियर लूट्यन्स को दे दी गई थी। फिर साल 1912 में इस भव्य भवन की निर्माण कार्य की शुरुआत हुई थी, जो कि करीब 17 साल के लंबे समय के बाद 1929 में बनकर पूरी तरह तैयार हुआ था।

इस विशाल भवन को बनाने में करीब 29 हजार कारीगर लगे थे। आपको बता दें कि इस भव्य राष्ट्रपति भवन के निर्माण के लिए रायसीना और मालचा गांवो को स्थानांतरित कर करीब 4 हजार हेक्टेयर जमीन का अधिग्रहण किया गया था।

ब्रिटिश काल में बने वायसराय हाउस (प्रेसिडेंट हाउस वर्तमान) को बनाने में उस दौरान करीब 1 करोड़, 40 लाख रुपए की राशि खर्च हुई थी।

राष्ट्रपति भवन की उत्कृष्ट वास्तुकला एवं अद्भुत संरचना – Rashtrapati Bhavan Architecture or Rashtrapati Bhavan Inside

देश के प्रथम नागरिक का निवास स्थान ‘राष्ट्रपति भवन’, भारतीय, पश्चिमी और मुगल वास्तुशैली का अद्भुत मिश्रण है, जिसकी भव्यता और कारीगरी देख आंखे खुली की खुली रह जाती हैं।

करीब 330 एकड़ के विशाल क्षेत्रफल में फैली यह चार मंजिला संरचना है। जिसके निर्माण में करीब 30 लाख क्यूविक फुट पत्थरों एवं 70 करोड़ ईटों का इस्तेमाल किया गया था।

करीब 2 लाख वर्ग फुट में बने इस विशालकाय राष्ट्रपति भवन में 340 कमरे होने के साथ-साथ 37 सभागृह, 74 बरामदे, 37 फ़व्वारे, 18 सोपान (सीढ़ियाँ) मार्ग समेत खेल के मैदान, बैंक्वेट हॉल, दरबार हॉल, अशोक हॉल, नोर्थ ड्राइंग रुम, नवाचार, क्लॉक टॉवर, गैरेज एवं बाग बगीचे बने हुए हैं।

कई भारतीय और वैज्ञानिक तत्वों को ध्यान में रखकर इस राष्ट्रपति भवन का निर्माण किया गया है। राष्ट्रपति भवन में  बने चक्र, छतरियां, जालियाँ  और छज्जे भारतीय पुरातत्व पद्दति को प्रदर्शित करता है। खास बात यह है कि इस भव्य संरचना के निर्माण में किसी भी तरह की स्टील का इस्तेमाल नहीं किया गया है।

वहीं इस भव्य भवन की इमारत की बाहरी दीवारों पर हाथी की शानदार प्रतिमाएं बनी हुई हैं, इसके साथ ही इसके एंट्री गेट पर तोप भी लगी हुई है।

बता दें कि, राष्ट्रपति भवन को आंतरिक तौर पर  सर्किट 1, सर्किट 2 और सर्किट 3 में तीन हिस्सों में बांटा गया है, जिनमें से एक बार में सिर्फ एक हिस्से में घूमा जा सकता है।

सर्किट 1 हिस्सा राष्ट्रपति भवन और उसके सेट्रल लॉन को कवर करता है। इस भव्य भवन के सर्किट 2 हिस्से में संग्रहालय परिसर है, जो कि RBMC के नाम से जाना जाता है। जबकि इस भव्य महल के सर्किट 3 हिस्से में प्रसिद्ध मुगल गार्डन और अन्य बाग-बगीचों को कवर करता है।

इसके साथ इस आलीशान राष्ट्रपति भवन के अंदर करीब 12 विशाल स्तंभ बने हुए हैं, जिसमें बेहद खूबसूरती से उकेरी गईं घंटियां, हिन्दू, बौद्ध और जैन मंदिरों में लगी घंटियों की शैली की अनुकृति हैं।

राष्ट्रपति भवन में बने इन खंभों का निर्माण  कर्नाटक की मुदाबरी जैन मंदिर से प्रेरित होकर किया गया है।  वहीं राष्ट्रपति भवन के शीर्ष पर बना गुंबद इस तरह से निर्मित किया गया है, कि यह दूर से ही नजर आाता है।

जानकारों की माने तो इसके गुंबद की संरचना सांची के स्तूप के पैटर्न के आधार पर की गई है।

देश के संविधान लागू होने के बाद 26 जनवरी, 1950 को यह विशालकाय भवन देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद जी का सरकारी निवास बना था, तब से यह भारत के राष्ट्रपति का निवास स्थान है।

राष्ट्रपति भवन के अंदर बना मुगल गार्डन – Rashtrapati Bhavan Garden

हिन्दुस्तान के इस विशालकाय सरकारी निवास भवन के अंदर बना मुगल गार्डन,इस आलीशान भवन के प्रमुख आर्कषणों में से एक है। मुगल और ब्रिटिश वास्तुशैली से निर्मित यह खूबसूरत गार्डन को हर साल फरवरी के महीने में उद्यानोत्सव’ के दौरान जनरल पब्लिक के लिए खोला जाता है।

इस गार्डन में कई औषधीय पौधे समेत, अलग-अलग किस्म के गुलाब और ट्यूलिप के बेहद सुंदर एवं रंग-बिरंगे फूल मौजूद है।

इस गार्डन में 95 फीसदी हिन्दुस्तानी फूल होने के साथ-साथ जापान, जर्मनी आदि देशों के फूलों के रंग भी देखने को मिलता है। यह गार्डन राष्ट्रपति भवन में करीब 13 एकड़ जमीन में फैला हुआ है।

राष्ट्रपति भवन से जुड़े कुछ दिलचस्प एवं आश्चर्यजनक तथ्य – Facts About Rashtrapati Bhavan

  • दिल्ली में स्थित राष्ट्रपति भवन, दुनिया का दूसरा सबसे विशालकाय निवास स्थान है, पहले नंबर पर इटली के रोम में स्थित क्यूरनल पैलेस है।
  • हिन्दुस्तान के प्रथम नागरिक के निवास स्थान को रायसीना हिल पर निर्मित किया गया है। इस विशालकाय भवन का निर्माण रायसीना और मालचा गांवों को हटाकर किया गया था।
  • हिन्दुस्तान का यह सबसे बड़ा सरकारी निवास स्थान, आजादी से पहले वायसराय हाउस के नाम पहचाना जाता  था।
  • दुनिया के इस सबसे बड़े सरकारी निवास को बनाने में करीब 17 साल का लंबा समय लगा था, जबकि इसका निर्माण करीब 29 हजार मजूदरों ने मिलकर किया था।
  • इस भव्य राजकीय निवास में करीब साढ़े सात सौ कर्मचारी कार्यरत हैं, जिनमें से 245 राष्ट्रपति के सचिवालय में कार्यरत हैं।
  • राष्ट्रपति भवन के मुख्य आर्कषणों में से एक मुगल गार्डन को हर साल फरवरी के महीने में ‘उद्यानोत्सव’ नाम के त्योहार के दौरान जनरल पब्लिक के लिए खोला जाता है।
  • दिल्ली में एक विशाल क्षेत्रफल में बने राष्ट्रपति भवन के अंदर बने बैंक्वेट हॉल इतना विशाल है कि यहां एक बार में करीब 104 मेहमान बैठ सकते हैं।
  • इस विशालकाय राष्ट्रपति भवन में बने अशोका हॉल में मंत्रियों के शपथग्रहण समारोह जैसे उत्सव आयोजित होते हैं।
  • इस अद्भुत एवं आलीशान राष्ट्रपति भवन में विज्ञान और नवाचार गैलरी भी बनी हुई है, जिसमें क्लम्सी नाम का एक रोबोट कुत्ता है, जो कि बिल्कुल वास्तविक (असली) कुत्ते की तरह दिखता है।
  • देश के इस विशालकाय निवास स्थान के अंदर गुप्तकाल के दौरान कला एवं संस्कृति के स्वर्ण युग से सबंधित गौतम बुद्ध की एक बेहद खूबसूरत मूर्ति राष्ट्रपति भवन के दरबार हॉल के पीछे रखी हुई है, जो कि यहां के प्रमुख आर्कषणों में से एक है।
  • देश के राष्ट्पति के इस आलीशान निवास स्थान में बच्चों की सुख-सुविधाओं के साथ-साथ उनके हुनर का भी ध्यान रखा गया है। इस भवन में कि बच्चों के लिए 2 गैलरीज बनी हुई है, जिसमें एक गैलरी तो बच्चों द्धारा किए गए कार्य को प्रदर्शित किया जाता है, जबकि अन्य गैलरी में बच्चों की रुचि की वस्तुओं को प्रदर्शित किया जाता है।
  • सर एडविन लुटियन्स’ द्वारा डिजाइन किए गए भारत के इस भव्य भवन में एक मार्बल हॉल बना हुआ है, जिसमें वायसराय और ब्रिटिश राजपरिवार के कुछ शानदार मूर्तियां रखी गईं हैं।
  • भारत के इस शाही भवन में उपहार संग्रहालय में किंग जॉर्ज पंचम की एक चांदी की खूबसूरत कुर्सी रखी गई है, इस कुर्सी का वजन करीब 640 किलो है। साल 1911 में वे दिल्ली दरबार में इस कुर्सी पर विराजित हुए थे।

भारत के इस विशालकाय राजकीय भवन में हर शनिवार को ‘चेंज ऑफ गार्ड’ समारोह आयोजित किया जाता है जो कि सुबह दस से साढ़े दस बजे तक चलता है। इसकी सबसे खास बात यह है कि इस शो को आम पब्लिक सिर्फ अपने फोटो आईडी दिखाकर देख सकते हैं।

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कई रहस्यों से भरा राजस्थान का अनूठा करणी माता मंदिर

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Karni Mata Mandir

भारत एक ऐसा देश है जो कि कई रहस्यों और चमत्कारों से भरा पड़ा है, यहां कई ऐसे धार्मिक स्थल है, जिनके रहस्यों का खुलासा आज तक विज्ञान भी नहीं कर सकी है।

वहीं उन्हीं में से एक है राजस्थान का सबसे प्रसिद्ध मंदिर -करणी माता का मंदिर जो कि अपने आप में कई रहस्य समेटे हुए हैं, यह मंदिर बीकानेर से करीब 30 किलोमीटर दूरी पर देशनोक में स्थित एक ऐसा हिन्दू मंदिर है, जिसमे 20 हजार से भी ज्यादा चूहे हैं, इसलिए इसे ”चूहों का मंदिर” भी कहा जाता है।

राजस्थान के इस अनूठे मंदिर में चूहों को दूध, लड्डू एवं अन्य पकवानों का भोग लगाया जाता है एवं मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं को चूहों का झूठा प्रसाद वितरित किया जाता है।

ऐसी मान्यता है कि करणी माता के दर पर आने वाले सभी भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण होती है और मनवांछित फल मिलता है, चलिए जानते है करणी माता मंदिर का इतिहास, इसमें रहने वाले चूहों की वजह एवं इससे जुड़े कुछ रोचक एवं अनसुने तथ्यों के बारे में –

कई रहस्यों से भरा राजस्थान का अनूठा करणी माता मंदिर – Karni Mata Temple HistoryKarni Mata temple of rats

करणी माता मंदिर का निर्माण व इतिहास – Karni Mata Story

राजस्थान के बीकानेर में स्थित यह प्रसिद्ध मंदिर करणी माता को समर्पित है। इस मंदिर का निर्माण 20वी शताब्दी में बीकानेर रियासत के महाराजा गंगा सिंह ने करवाया था।

ऐसा माना जाता है कि माता करणी बीकानेर राजघराने की कुलदेवी हैं। दरअसल, माता करणी को मां दुर्गा का साक्षात अ्वतार माना जाता है। वे एक बेहद बुद्दिजीवी एवं ज्ञानी महिला थी।

करणी माता 1387 ईसवी में एक शाही परिवार में रिघुबाई के नाम से जन्मी थी। उनकी शादी किपजी चारण से हुई थी, लेकिन विवाह के कुछ समय पश्चात ही माता करणी का संसारिक मोहमाया से मन उब गया फिर उन्होंने अपने पति किपोजी चारण की शादी अपने ही छोटी बहन गुलाब से करवा दी और एक तपस्वी की तरह अपना जीवन व्यतीत करने का फैसला लिया।

इस दौरान उन्होंने खुद को मां जगदंबा की भक्ति में पूरी तरह समर्पित कर दिया।

वहीं उनके धार्मिक काम और चमत्कारी शक्तियों की वजह से उनकी ख्याति आस-पास फैल गई। लोग उनका काफी आदर और सम्मान करने लगे एवं दुर्गा मां का अवतार मानकर उनकी आराधना करने लगे।

करीब 151 साल तक जीवित रहीं थी करणी माता – Karni Mata Ki Katha

इतिहासकारों का मानना है  कि राजस्थान में प्रसिद्ध करणी माता करीब 151 साल तक जिंदा रही थी। वहीं जहां आज यह प्रसिद्ध मंदिर स्थित है, वहां बनी एक गुफा में कऱणी माता अपनी इष्ट देव की आराधना करती थी, वहीं आज भी यह गुफा करणी माता मंदिर के परिसर में स्थित है।

करीब 151 सालों तक जीवित रहने के बाद 1538 ईसवी में करणी माता ज्योतिर्लिंन हो गईं थी। जिसके बाद करणी माता की मूर्ति को इस गुफा में स्थापित कर दिया गया। फिर बाद में बीकानेर के महाराजा गंगा सिंह ने करीब यहां करणी माता का मंदिर बनवाया दिया था, वहीं आज इस मंदिर से हजारों भक्तों की आस्था जुड़ी हुई है।

करणी माता मंदिर की शानदार संरचना एवं आर्कषक बनावट – Karni Mata Mandir Architecture

राजस्थान के बीकानेर में स्थित एक शानदार मंदिर राजपूत औऱ मुगल वास्तु शैली का इस्तेमाल कर बनवाया गया है। करणी माता का मंदिर संगममर के पत्थरों से बना हुआ है। यह मंदिर देखने में काफी आर्कषक और सुंदर है।

इस मंदिर की दीवारों पर की गई खूबसूरत नक्काशी इस मंदिर की सुंदरता पर चार चांद लगाती है। इसके साथ ही मां जगदम्बा की साक्षात अवतार माने जाने वाली करणी माता के मंदिर में बने खिड़की, दरवाजों और दीवारों में बेहतरीन कारीगिरी की गई है, जो कि देखती ही बनती है।

हिन्दुओं की धार्मिक आस्था से जुड़ा इस प्रसिद्ध मंदिर के दरवाजे को बीकानेर रियासत के महाराजा गंगा सिंह ने चांदी का बनवाया था। इस मंदिर पर रखा सोने का छत्र और चूहों के भोग के लिए रखी चांदी की विशाल पारात भी मंदिर के मुख्य आर्कषण हैं।

इस मंदिर की धार्मिक मान्यताओं और इसकी खूबसूरती को देखने दूर-दूर से लोग यहां आते हैं और करणी माता का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।

करणी माता मंदिर में चूहों से जुड़ी धार्मिक मान्यताएं – Karni Mata Temple Of Rats

राजस्थान में करणी माता के प्रसिद्ध मंदिर में 25 हजार से भी ज्यादा चूहों हैं। मंदिर में इन चूहों से कई रहस्य और धार्मिक मान्यताएं जुड़ी हुई हैं। ऐसा कहा जाता है, ये चूहे राजस्थान की माता करणी के वंशज माने जाते हैं।

इन मंदिर में चूहों की संख्या इतनी ज्यादा है कि यहां दर्शन के लिए आने वाले भक्तों को माता करणी मंदिर के प्रमुख प्रतिमा पर पहुंचने के लिए अपने पैर घसीटते हुए पहुचंना पड़ता है, ऐसी मान्यता है कि, अगर एक भी चूहा भक्त के पैर के नीचे आकर घायल हो जाता है तो अशुभ माना माना जाता है।  और यदि गलती से किसी चूहे की मृत्यु हो जाती है उसी जगह पर एक चाँदी का चूहा बनाकर रख दिया जाता है,

वहीं अगर करणी माता के मंदिर में दर्शन करने आने वाले भक्तों को सफेद चूहे के दर्शन होते हैं तो इसे काफी शुभ माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि सफेद चूहे के दर्शन मात्र से ही भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है।

यहां के चूहों को ”काबा” के नाम से जाना जाता है। ये हजारों चूहे करणी माता के मंदिर में संध्या वंदन एवं मंगला आरती के समय बिलों से बाहर आते हैं। वहीं राजस्थान के इस प्रसिद्ध करणी माता के मंदिर में दर्शन के लिए आए भक्तगण इन चूहों भोग लगाते हैं एवं इनका जूठा प्रसाद भी ग्रहण करते हैं।

20 वीं शताब्दी में बीकानेर के महाराजा गंगा सिंह के द्धारा निर्मित इस प्रसिद्ध करणी माता मंदिर को, चूहों की ज्यादा संख्या होने की वजह से इसे ”मूषक मंदिर” या फिर चूहों का मंदिर भी कहा जाता है।

हजारों की तादाद में भी चूहे होने के बाबजूद नहीं आती दुर्गन्ध एवं नहीं फैलती बीमारी:

मां जगदम्बा का साक्षात अवतार माने जाने वाली राजस्थान का प्रसिद्ध करणी माता मंदिर में हजारों की तादाद में चूहे हैं, यहां तक कि यहां भक्तों को पैर जमीन पर घसीटकर चलना पड़ता है, लेकिन फिर भी यहां चूहों की किसी तरह की दुर्गन्ध नहीं आती है, साथ ही आज तक इन चूहों से किसी भी तरह की बीमारी नहीं फैली है।

जबकि आमतौर पर चूहें आमजनता के लिए काफी खतरनाक होते हैं, इनसे प्लेग जैसी जानलेवा बीमारी फैलती है।

वहीं आश्चर्य की बात तो यह है कि इस मंदिर में पहले प्रसाद चूहों को चढ़ाया जाता है, और फिर उनका जूठा प्रसाद यहां आने वाले भक्तों को वितरित किया जाता है। बता दें कि आज तक कोई भी भक्त चूहों का जूठा प्रसाद खाकर बीमार नहीं पड़ा है।

करणी माता के वंशज माने जाते हैं ये चूहे:

मां जगदंबा का साक्षात अवतार माने जानी वाली राजस्थान की प्रसिद्ध करणी माता मंदिर में  रहने वाले हजारों चूहों से कई रहस्य जुड़े हुए हैं। इस माता मंदिर में रहने वाले चूहों को करणी माता की संतान या वंशज बताया जाता है।

इससे जुड़ी कथा के मुताबिक एक बार करणी माता का सौतेला बेटा लक्ष्मण, जो कि उनके पति किपोजी चारण और उनकी छोटी बहन गुलाब का पुत्र था। वह कोलायत में बने हुए एक सरोवर में पानी पीने की कोशिश के दौरान डूब गया और उसकी तुरंत मृत्यु हो गई।

वहीं जब यह बात करणी माता को पता चली तो, तब उन्होंने मृत्यु के देवता यमराज की कठोर तपस्या कर अपने सौतेले बेटे को फिर से जीवित करने की प्रार्थना की, लेकिन पहले तो यमराज ने लक्ष्मण को फिर से जीवित करने के लिए मना कर दिया।

लेकिन बाद में उन्होंने करणी माता की कठोर आराधना से प्रसन्न होकर उनके सौतेले पुत्र लक्ष्मण को फिर से जीवित कर दिया। इसलिए, करणी माता के मंदिर में इन चूहों को मां का बेटा माना जाता है।

इसके अलावा, मंदिर में इन चूहों से जुड़ी अन्य लोककथा के मतुाबिक, एक बार करीब 20 हजार सैनिकों की विशाल सेना बीकानेर के पास स्थित देशनोक पर हमला करने के उद्देश्य से आई।

जिसके बाद देशनोक की सुरक्षा के लिए करणी माता ने अपनी चमत्कारी शक्ति और प्रताप से इन सैनिकों को चूहा बना दिया और उन्हें अपनी सेवा में रख लिया था, ऐसा माना जाता है कि तब से ये चूहे बेटे के रुप में करणी माता की सेवा कर रहे हैं।

करणी माता मंदिर दर्शन का समय – Karni Mata Temple Timings

वैसे तो यह मंदिर श्रद्धालुओं के लिए सुबह 4.30 बजे से रात 10 बजे तक खुला रहता हैं। लेकिन सुबह पांच बजे मंगला आरती और सायं सात बजे आरती के समय चूहों का जुलूस तो देखने लायक होता है।

कैसे पुहंचे करणी माता मंदिर – How To Reach Karni Mata Temple

राजस्थान के इस प्रसिद्ध तीर्थस्थल माता करणी के दर्शन के लिए दूर-दूर  से  भक्तगण आते हैं।

यह बीकानेर से करीब 30 किलोमीटर की दूरी पर देशनोक में स्थित है। देशनोक रेलवे स्टेशन बीकानेर-जोधपुर रेल मार्ग पर स्थित है, जहां से राजस्थान के आसपास के इलाके काफी अच्छी रेल सुविधा से जुड़े हुए हैं।

वहीं करणी माता मंदिर तक पहुंचने के लिए बीकानेर से कई बेहतरीन बस और टैक्सी सेवाएं भी उपलब्ध हैं। इसके साथ ही यहां श्रद्धालुओं के रहने और भोजन के लिए भी काफी अच्छी धर्मशालाएं भी बनी हुई हैं।

राजस्थान के प्रसिद्ध करणी माता के मंदिर में साल में दो बार नवरात्रों के दौरान मेला भी लगता है। इस दौरान इस मेले को देखने दूर-दूर से लोग आते हैं। इसके साथ ही लोग यहां मुंडन करवाने एवं अन्य मनौतियों को लेकर यहां आते हैं एवं करणी माता का आशीर्वाद लेते हैं।

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  1. खजुराहो मंदिर का रोचक इतिहास
  2. कामाख्या मंदिर का रोचक इतिहास

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सबसे मूल्यवान हीरा “कोहिनूर”| Kohinoor Diamond History In Hindi

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Kohinoor Diamond History In Hindi

जब हीरे की बात की जाए तो दुनिया के सबसे प्राचीन और मूल्यवान कोहिनूर हीरे – Kohinoor Diamond को कोई कैसे भूल सकता है। वास्तव में इसे कोह-ए-नूर कहा जाता है, जो एक पर्शियन शब्द है जिसका अर्थ रोशनियों के पहाड़ से है।

कोहिनूर हीरा (Kohinoor Hira), दुनिया का सबसे अधिक प्रसिद्ध बेशकीमती हीरा है, जिस पर कई देश अपना हक जता चुके हैं। हालांकि वर्तमान में यह हीरा ब्रिटेन के राजसी परिवार के पास है।

इतिहासकारों के मुताबिक यह हीरा भारत के आंध्रप्रदेश के गोलकुंडा खनन क्षेत्र से प्राप्त हुआ है। यही नहीं इस हीरे के श्रापित होने का अंधविश्वास भी जुड़ा है। यदि आप इस हीरे के बारे में और कुछ जानना चाहते है तो हम यहाँ आपको कोहिनूर हीरे के बारे में बताने जा रहे है –

कोहिनूर हीरे का इतिहास और इससे जुड़ कुछ दिलचस्प एवं रोचक तथ्य   – Kohinoor Diamond History In Hindi

Kohinoor Diamond

कोहिनूर हीरे की जानकारी एक नजर में – Kohinoor Diamond Information

  • हीरे का मूल भार (Kohinoor Diamond Weight) 793 कैरेट
  • वर्तमान में कहां है (Where Is Kohinoor Diamond Now) ब्रिटेन के राजपरिवार के पास
  • कोहिनूर का अर्थ (Kohinoor Meaning) – ‘रोशनी का पहाड़’, प्रकाश का पर्वत या रोश्नी की श्रंखला
  • सर्वप्रथम कहां मिला था (Where Was Kohinoor Diamond Found) आंध्रप्रेदश के गोलकुंडा क्षेत्र में मिला था।

कोहिनूर हीरे का रोचक इतिहास – Kohinoor Hira Ka Itihas

दुनिया के इस प्रसिद्ध रत्न कोहिनूर हीरे का इतिहास 5 हजार से भी ज्यादा सालों से पुराना है। कोहिनूर का अर्थ ”रोश्नी के पहाड़” से है।

इस बेशकीमती हीरे को कई देशों ने अपना होने का दावा किया है, हालांकि, वर्तमान में कोहिनूर हीरा ब्रिटेन के एक राजपरिवार के पास है, जिसे लंदन के टेम्स नदी के किनारे बने इस विशाल किले में सुरक्षित रखा गया है।

महाभारत के काल के इस सबसे प्रसिद्ध और बेशकीमती हीरे का उल्लेख सबसे पहले संस्कृत भाषा में किया गया था। इसे सर्वप्रथम ‘स्यामंतक’ के नाम से जाना गया था। हालांकि, कुछ विद्धान स्यामंतक और कोहिनूर हीरे को एक-दूसरे से अलग बताते हैं तो कई इतिहासकार स्यामंतक को कोहिनूर के सामान बताते हैं, इस बारे में विद्धान एकमत नहीं थे –

सर्वप्रथम मालवा के सम्राट  के पास था कोहिनूर – Kohinoor Diamond Story

करीब 1304 ईसवी तक इस हीरे को मालवा के सम्राट की देखरेख में सुरक्षित रखा गया। इतिहासकारों की माने तो इस प्रसिद्ध कोहिनूर हीरे को समरकंद के नगर में करीब 300 साल तक सुरक्षित रखा गया था।

कोहिनूर को बताया गया था श्रापित – kohinoor diamond curse

1306 ईसवी के दौरान इस बेशकीमती हीरे को लेकर एक बेहद दिलचस्प एवं अंधविश्वास से भरा कथन प्रसिद्ध था, जिसके अनुसार, अगर कोई भी आदमी इस सबसे मशहूर हीरे को पहनेगा, तो उसके पास राजपाठ और सभी सुख-सुविधाएं तो रहेंगी, लेकिन वो कभी भी खुश नहीं रह पाएगा, अर्थात कई तरह के दोषों एवं दुखों स घिर जाएगा।

ऐसा माना जाता था कि, इस प्रसिद्ध हीरे को सिर्फ कोई महिला या फिर देवता ही धारण कर सकते हैं।

अलाउद्दीन खिलजी के पास भी रहा कोहिनूर:

14वीं शताब्दी में जब दिल्ली का सम्राट अलाउद्दीन खिलजी था, उस समय यह हीरा मगुल सम्राट अलाउद्दीन खिलजी के पास भी रहा।

‘बाबरनामा’ में कोहिनूर का जिक्र:

दुनिया के इस सबसे खूबसूरत, विशाल एवं बेशकीमती हीरे का जिक्र सर्वप्रथम मुगल वंश के संस्थापक बाबर ने अपने अपने लेख ”बाबरनामा”  में किया था। उन्होंने इसके माध्यम से बताया था कि उन्हें यह बेशकीमती हीरा उनके बेटे मुगल सम्राट हुमायूं ने दिया था।

हुमायूं ने पानीपत की लड़ाई में लोदी वंश के शासक इब्राहिम को हरा दिया था, जिसके बाद ग्वालियर के सम्राट ने हुंमायूं को कोहिनूर हीरा गिफ्ट किया था, और फिर हुमायूं ने यह हीरा अपने पिता बाबर  को उपहार में दे दिया था। वहीं इसे ”बाबर का हीरा” बताया गया था।

शाहजहां के मयूर सिंहासन में जड़ा था कोहिनूर:

17वीं सदी में मुगल सम्राट बाबर के पड़पोते, शाहजहां ने  कई कीमती रत्नों और जवाहरतों से सजा ‘मयूर सिंहासन’ बनवाया था, जिसमें कोहिनूर हीरे को भी लगाया गया था।

इस सिंहासन को देखने विश्व के अलग-अलग कोने से जौहरी आते थे और इसकी प्रशंसा करते थे।

मुगल सम्राट औरंगेजेब ने भी की थी कोहिनूर की सुरक्षा:

इसके बाद शाहजहां के उत्तराधिकारी एवं बाबर के वंशज औरंगेजब ने दुनिया के इस प्राचीन एवं बेशकीमती हीरे की सुरक्षा की थी, हालांकि, उनकी देखरेख में यह प्रसिद्ध हीरा 793 कैरेट की जगह सिर्फ 186 कैरेट का रह गया था।

फिर औरंगजेब ने इस मशहूर हीरे को अपने पोते मुहम्मद शाह को सौंप दिया था।

परिसया के महाराजा नादिर शाह का कोहिनूर पर कब्जा:

इसके बाद करीब 1739 में जब परिसया के महाराजा नादिर शाह अपनी भारत यात्रा पर आए थे। वे मुगल सुल्तान मुहम्मद शाह के राज्य पर अपना अधिकार स्थापित करना चाहते थे।

इस उद्देश्य के साथ उन्होंने महमूद पर हमला कर उन्हें पराजित कर दिया, और फिर मुगल सम्राट मुहम्मद की संपत्ति पर अपना अधिकार जमा लिया एवं इस प्रसिद्ध हीरे को भी अपने कब्जे में ले लिया।

इसके बाद नादिह शाह ने दुनिया के इस बेशकीमती हीरे को कोहिनूर नाम दिया था।

हालांकि, इस प्रसिद्ध हीरे को प्राप्त करने के बाद नादिर शाह ज्यादा समय तक जिंदा नहीं रह सके, 1747 ईसवी में  राजनैतिक लड़ाई के चलते  नादिर शाह की हत्या करवा दी गई।

जिसके बाद जनरल अहमद शाह दुर्रानी ने इस मशहूर हीरे को अपने अधीन ले लिया। फिर 1813 ईसवी में अहमद शाह के वंशज शाह शुजा दुर्रानी के पास यह बेशकीमती कोहिनूर हीरा आ गया, जिसके बाद उन्होंने इस हीरे को सिक्ख समुदाय के संस्थापक राजा रंजीत सिंह को दे दिया था।

दरअसल, इस कीमती कोहिनूर हीरे के बदले में राजा रंजीत सिंह ने शाह शुजा को अफगानिस्तान की राजगद्दी वापस लाने में मद्द की थी।

ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का कोहिनूर पर कब्जा – British East India Company captured Kohinoor

1849 ईसवी में द्धितीय एंग्लो-सिक्ख युद्ध में ब्रिटिश सेना ने  राजा रंजीत सिंह को हरा दिया था, और राजा रंजीत सिंह के राज्य और पूरी संपत्ति पर अपना अधिकार जमा लिया था।

इसके बाद ब्रिटिश सरकार ने लाहौर में इस बेशकीमती कोहिनूर हीरे को ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के राजकोष में स्थानांतरित कर दिया गया था।

इसके बाद दुनिया के इस सबसे प्राचीन और बेशकीमती हीरे को ब्रिटेन भेज दिया गया। कुछ इतिहासकारों की माने तो इस दौरान दुनिया के इस सबसे बड़े हीरे की रक्षा करने वालों ने इसे खो दिया था, हालांकि कुछ समय बाद इस हीरे को फिर से एक दास द्धारा लौटाए जाने की बात कही जाती है। फिर बाद में 1850 ईसवी में इस चमचमाते हुए हीरे को इंग्लैंड की महारानी विक्टोरिया को दे दिया गया था।

महारानी विक्टोरिया ने कोहिनूर को दिया नया स्वरुप:

इसके बाद विश्व के इस विशाल कोहिनूर हीरे को क्रिस्टल पैलेस में प्रदर्शित किया गया, उस समय यह करीब 186 कैरेट का बताया जाता है। जिस समय कोहिनूर को प्रदर्शित किया गया था, तब इसकी चमक उस दौर के अन्य रत्नों के मुकाबले काफी फीकी दिखी थी।

जिसे देखकर काफी निराशा हुई, लेकिन फिर इंग्लैंड की महारानी विक्टोरिया ने इस हीरे को एक नया आकार एवं स्वरुप देने का फैसला लिया।

विश्व के इस बेशकीमती कोहिनूर हीरे को 1852 ईसवी में डच के जौहरी मिस्टर कैंटॉर को दिया गया, जिसके बाद उन्होंने इसे फिर से उतना चमकदार और आर्कषित बनाने के लिए इस हीरे को ओवल शेप में काटकर 105.6 कैरेट का कर दिया, यह हीरा 3.6cm*3.2cm*1.3cm के आकार का कर दिया गया।

आपको बता दें कि इस दौरान इस हीरे को सबसे पहली बार काटा गया था, इससे पहले कभी इस हीरे को नहीं काटा गया था।

इसके बाद इस कोहिनूर हीरे को इंग्लैंड की महारानी विक्टोरिया के ताज में जड़ दिया गया।  यह ताज ब्रिटेन की महारानियों द्धारा पहना जाता है।

आपको बता दें कि ही इंग्लैंड की महारानी विक्टोरिया के बाद इस कोहिनूर से जड़े ताज को महारानी एलेक्जेंडर ( एडवर्ड VII की पत्नी ) एवं उसके बाद महारानी मेरी और एलिजाबेथ द्धारा पहना गया था।

वर्तमान में कहां है कोहिनूर हीरा – Kohinoor Hira Kaha Hai

वर्तमान में दुनिया के यह सबसे मशहूर एवं प्राचीन हीरा ब्रिंट के राजसी परिवार के पास है, जो कि इसकी अमूल्य धरोहर है। कोहिनूर जड़े ताज को लंदन के टेम्स नदी के किनारे बने एक विशाल किले में सुरक्षित रखा गया है।

आपको बता दें कि विशाल किले का निर्माण 1078 में विलियम द कॉकरर ने करवाया था, वहीं अब यह राजसी परिवार तो इस किले में नहीं रहता, लेकिन प्राचीन और बेशकीमती रत्न, जवाहरात एवं कोहिनूर हीरा इसी में रखा गया है।

भारत ने ब्रिटेन से की थी कोहिनूर वापस करने की मांग – India Demands Britain To Return Kohinoor Diamond

15 अगस्त, 1947 में देश को ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता मिलने के बाद से ही भारत ने इस बेशकीमती हीरे को ब्रिटेन से वापस  लाने की कवायद शुरु कर दी थी, लेकिन ब्रिटिश सरकार ने कोहिनूर पर अपना अधिकार बताते हुए हीरा देने से इंकार कर दिया था।

सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि पाकिस्तान ने भी कोहिनूर पर अपना हक जमाया था, लेकिन ब्रिटिश सरकार ने पाकिस्तान की यह दलील सिरे से खारिज खारिज कर दी।

कोहिनूर से जुड़े कुछ दिलचस्प एवं रोचक तथ्य – Kohinoor Diamond Facts

  • कोहिनूर, विश्व का सबसे मशहूर एवं प्राचीन हीरा है. यह हीरा काकतिया वंश के शासनकाल के दौरान भारत के  आंध्र प्रदेश राज्य  के गोलकोंडा ख़नन क्षेत्र से प्राप्त हुआ था।
  • विश्व का यह बेशकीमती हीरा मूल रुप से 793 कैरेट का था, लेकिन अब यह सिर्फ 105.6 कैरेट का रह गया है, जबकि इसका वजन सिर्फ 21.6 ग्राम है।
  • कोहिनूर के बारे में पहली जानकारी 1304 ईसवी के आसपास मिली थी, जिसके मुताबिक यह हीरा तब मालवा के सम्राट महलाक देव के अधीन था।
  • दुनिया के इस सबसे मशहूर हीरे से अंधविश्वास भी जुड़ा हुआ है। एक हिन्दू लेख के मुताबिक, कोई भी इस बेशकीमती हीरे को धारण करने वाला पुरुष विशाल राज्य, धन, दौलत, संपत्ति तो प्राप्त करता है, लेकिन कभी भी खुश नहीं रह पाता है। जबकि अगर कोई महिला इस हीरे को धारण करती है तो कोई भी कुप्रभाव नहीं पड़ेगा।
  • 1852 में इंगलैंड की महारानी विक्टोरिया ने हीरे की चमक को कम होते देख इसे ओवल साइट में कटवा दिया था, जिसके बाद यह 108.93 कैरेट में कट गया। इसके बाद यह महारानी विक्टोरिया के ताज पर जड़ दिया गया था।
  • रानी विक्टोरिया की मौत के बाद कोहिनूर को एडवर्ड की सातवीं पत्नी क्वीन एजेक्जेंड्रा के मुकुट में स्थापित किया गया था। इसके बाद इस हीरे को 1911 में क्वीन मैरी के मुकुट में लगा दिया था फिर इसके बाद कोहिनूर हीरा को क्वीन एलिजाबेथ के मुकुट में जड़ दिया गया था।
  • देश को ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता प्राप्त होने के बाद सन् 1953 में भारत ने ब्रिटेन से कोहिनूर को वापस देने की मांग की, लेकिन इंग्लैंड ने इसे देने से मना कर दिया। इसके साथ ही पाकिस्तान ने भी इस बेशकीमती हीरे पर अपना हक जमाया था, लेकिन यह हीरा अभी भी ब्रिटेन में ही सुरक्षित रखा गया है।

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कवियित्री अमृता प्रीतम जीवनी | Amrita Pritam Biography In Hindi

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Amrita Pritam

अमृता प्रीतम 20 सदीं की एक महान कवियत्री और उपन्यासकार ही नहीं बल्कि एक प्रख्यात निबंधकार भी थी, जिन्होंने पंजाबी कविता एवं साहित्य को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर एक अलग पहचान दिलवाई है। वे पंजाबी भाषा की सर्वश्रेष्ठ कवियित्री थी, जिनकी रचनाओं का विश्व की कई अलग-अलग भाषाओं में अनुवाद हो चुका है।

31 अगस्त, 1919 को  गुजरांवाला, पंजाब (वर्तमान पाकिस्तान) में जन्मीं अमृता प्रीतम जी ने अपनी रचनाओं में तलाकशुदा महिलाओं की पीड़ा एवं वैवाहिक जीवन के कटु सत्य को बेहद भावनात्मक तरीके  से बताया है।

पंजाबी साहित्य में 60साल से भी ज्यादा समय तक राज करने वाली महान कवियित्री अमृता प्रीतम जी की लोकप्रियता भारत में हीं नहीं बल्कि पाकिस्तान में भी है।

अपने जीवन में करीब 100 किताबें लिखने वाली महान कवियित्री अमृता प्रीतम जी को उनकी महत्वपूर्ण रचनाओं के लिए कई बड़े पुरस्कारों से भी सम्मानित किया जा चुका है, तो चलिए जानते हैं अमृता प्रीतम जी द्धारा लिखित उनकी महत्वपूर्ण कृतियां एवं उनके जीवन से जुड़ी कुछ अहम बातों के बारे में –

कवियित्री अमृता प्रीतम जीवनी – Amrita Pritam Biography In Hindi

Amrita Pritam

अमृता प्रीतम जी की जीवनी एक नजर में – Amrita Pritam Information

पूरा नाम (Name)      अमृता प्रीतम

जन्म       (Birthday)    31 अगस्त, 1919, गुजराँवाला, पंजाब (वर्तमान पाकिस्तान)

मृत्यु (Death)     31 अक्टूबर, 2005,  दिल्ली, भारत

काफी संघर्षपूर्ण रहा अमृता जी का शुरुआती जीवन – Amrita Pritam History

पंजाबी भाषा की सर्वश्रेष्ठ कवियित्री अमृता प्रीतम जी 31 अगस्त 1919 में गुजरांवाला पंजाब, (जो कि अब पाकिस्तान में है) में  जन्मीं थी। इनकी शिक्षा लाहौर से हुई।

बचपन से ही उन्हें पंजाबी भाषा में कविता, कहानी और निबंध लिखने में बेहद दिलचस्पी थी, उनमें एक कवियित्री की झलक बचपन से ही ही दिखने लगी थी।

वहीं जब यह महज 11 साल की थी, तब इन पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा, उनके सिर से मां का साया हमेशा के लिए उठा गया, जिसके बाद उनके नन्हें कंधों पर घर की सारी जिम्मेदारी आ गई। इस तरह इनका बचपन जिम्मेदारियों के बोझ तले दब गया।

16 साल की उम्र में प्रकाशित हुआ प्रथम संकलन:

अद्भुत प्रतिभा की धनी अमृता प्रीतम जी उन महान साहित्यकारों में से एक थीं, जिनका महज 16 साल की उम्र में ही पहला संकलन प्रकाशित हो गया था।

1947 में अमृता प्रीतम जी ने भारत-पाकिस्तान के बंटवारे को बेहद करीब से देखा था और इसकी पीड़ा महसूस की थी। उन्होंने 18 वीं सदी में लिखी अपनी कविता ”आज आखां वारिस शाह नु”  में भारत-पाक विभाजन के समय में अपने गुस्से को इस कविता के माध्यम से दिखाया था, साथ ही इसके दर्द को बेहद भावनात्मक तरीके से अपनी इस रचना में पिरोया था।

उनकी यह कविता काफी मशहूर भी हुई थी और इसने उन्हें साहित्य में एक अलग पहचान दिलवाई थी।

आजादी मिलने के बाद भारत-पाक बंटबारे के समय इस महान कवियित्री अमृता प्रीतम जी का परिवार भारत की राजधानी दिल्ली में आकर बस गया, हालांकि भारत आने के बाद भी उनकी लोकप्रियता पर कोई फर्क नहीं पड़ा, भारत-पाक दोनों ही देश के लोग उनकी कविताओं को उतना ही पसंद करते थे, जितना कि वे विभाजन से पहले करते थे।

भारत आने के बाद  अमृता प्रीतम जी ने पंजाबी भाषा के साथ-साथ हिन्दी भाषा में लिखना शुरु कर दिया।

अमृता प्रीतम जी का विवाह एवं निजी जीवन – Amrita Pritam Love Story

पंजाबी साहित्य  को अंतराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलवाने वाली इस मशहूर लेखिका का विवाह महज 16 साल की उम्र में प्रीतम सिंह से हुआ था, हालांकि उनकी यह शादी काफी दिनों तक नहीं चल पाई थी।

सन् 1960 में अमृता जी का अपने पति के साथ तलाक हो गया था। वहीं अमृता प्रीतम जी की आत्म कथा रशीदी टिकट के मुताबिक प्रीतम सिंह से तलाक के बाद कवि साहिर लुधिंवी के साथ उनकी नजदीकियां बढ़ गईं, लेकिन फिर जब साहिर की जिंदगी में गायिका सुधा मल्होत्रा आ गई, उस दौरान अमृता प्रीतम जी की मुलाकात आर्टिस्ट और लेखक इमरोज से हुई है, जिनके साथ उन्होंने अपना बाकी जीवन व्यतीत किया।

वहीं अमृता जी की प्रेम कहानी एवं उनके जीवन पर आधारित – Amrita Pritam Imroz Love Story

अमृता इमरोज़ : ए लव स्टोरी नाम की एक किताब भी लिखी गयी है। अमृता प्रीतम के बारे में यह भी कहा जाता है कि उन्होंने ही लिव-इन-रिलेशनशिप की शुरुआत की थी।

अमृता प्रीतम जी की प्रमुख रचनाएं एवं कृतियां – Amrita Pritam Books or Amrita Pritam Poem

पंजाबी भाषा की सर्वश्रेष्ठ एवं लोकप्रिय कवियित्री अमृता प्रीतम जी की गिनती  उन साहित्यकारों में होती है, जिनकी रचनाओं का विश्व की कई अलग-अलग भाषाओं में अनुवाद किया गया है।

अमृता जी ने अपनी रचनाओं में सामाजिक जीवन दर्शन का बेबाक एवं बेहद रोमांचपूर्ण वर्णन किया है। उन्होंने साहित्य की लगभग सभी विधाओं पर अपनी खूबसूरत लेखनी चलाई हैं।

अमृता जी की रचनाओं में उनके लेखन की गंभीरता और गहराई साफ नजर आती है। विलक्षण प्रतिभा की धनी इस महान कवियित्री ने  अपनी रचनाओं में तलाकशुदा महिलाओं की पीड़ा एवं शादीशुदा जीवन के कड़वे अनुभवों का व्याख्या बेहद खूबसूरती से की है।

अमृता प्रीतम जी द्धारा रचित उपन्यास ‘पिंजर’ पर साल 1950 में एक अवार्ड विनिंग फिल्म पिंजर भी बनी थी, जिसने काफी लोकप्रियता हासिल की थी।

आपको बता दें कि अमृता प्रीतम जी ने अपने जीवन में करीब 100 किताबें लिखीं थी, जिनमें से इनकी कई रचनाओं का अनुवाद विश्व की कई अलग-अलग भाषाओं में  किया गया था। अमृता प्रीतम जी द्धारा लिखित उनकी कुछ प्रमुख रचनाएं इस प्रकार है –

  1. उपन्यास – पिंजर, कोरे कागज़, आशू, पांच बरस लंबी सड़क उन्चास दिन, अदालत, हदत्त दा जिंदगीनामा, सागर, नागमणि, और सीपियाँ, दिल्ली की गलियां, तेरहवां सूरज, रंग का पत्ता, धरती सागर ते सीपीयां, जेबकतरे, पक्की हवेली, कच्ची सड़क।
  2. आत्मकथा – रसीदी टिकट।
  3. कहानी संग्रह : कहानियों के आंगन में, कहानियां जो कहानियां नहीं हैं।
  4. संस्मरण :एक थी सारा, कच्चा आँगन।
  5. कविता संग्रह : चुनी हुई कविताएं।

 

सम्मान और पुरस्कार – Amrita Pritam Awards

अद्धितीय एवं विलक्षण प्रतिभा वाली महान कवियित्री अमृता प्रीतम जी को उनकी अद्भुत रचनाओं के लिए कई  अंतराष्ट्रीय और राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है।

आपको बता दें कि 1956 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित यह पहली पंजाबी महिला थी। इसके साथ ही भारत के महत्वपूर्ण पुरस्कार पद्म श्री हासिल करने वाली भी यह पहली पंजाबी महिला थी।

इसके अलावा इन्हें पंजाब सरकार के भाषा विभाग द्धारा पुरस्कार समेत ज्ञानपीठ आदि पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है।

अमृता प्रीतम जी के दिए गए पुरस्कारों की सूची निम्नलिखित है –

  • साहित्य अकादमी पुरस्कार (1956)
  • पद्मश्री (1969)
  • पद्म विभूषण (2004)
  • भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार (1982)
  • बल्गारिया वैरोव पुरस्कार (बुल्गारिया – 1988)
  • डॉक्टर ऑफ लिटरेचर (दिल्ली युनिवर्सिटी- 1973)
  • डॉक्टर ऑफ लिटरेचर (जबलपुर युनिवर्सिटी- 1973)
  • फ्रांस सरकार द्वारा सम्मान (1987)
  • डॉक्टर ऑफ लिटरेचर (विश्व भारती शांतिनिकेतन- 1987)

अमृता प्रीतम जी की मृत्यु – Amrita Pritam Death

काफी लंबी बीमारी के चलते 31 अक्टूबर 2005 को 86 साल की उम्र में उनका देहांत हो गय़ा।

इस तरह महान कवियित्री अमृता प्रीतम जी की कलम हमेशा के लिए रुक गई। वहीं आज अमृता प्रीतम भले ही इस दुनिया में नहीं है, लेकिन आज भी उनके द्धारा लिखित उनके उपन्यास, कविताएं, संस्मरण, निबंध, उनकी मौजूदगी का एहसास करवाते हैं।

वहीं इस महान लेखिका के सम्मान में 31 अगस्त, 2019 को, उनकी 100वीं जयंती पर गूगल ने भी बेहद खास अंदाज में डूडल बनाया है।

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