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एक ऐसी लड़की जिसकी आँखे एक्स-रे का काम करती हैं | Xray Girl Natasha Demkina

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शायद कुछ इंसानों में असामान्य शक्तियां पायी जाती होंगी। शायद नताशा देमकिनी – Natasha Demkina भी उनमे सें ही एक हैं। आज हम उनके बारे में और उनकी असामान्य शक्ती के बारे में जानेंगे।

Natasha Demkina

एक ऐसी लड़की जिसकी आँखे एक्स-रे का काम करती हैं – Xray Girl Natasha Demkina

नताशा देमकिना ने यह दावा किया है की उनमे क्ष-किरणों (X-RAY) की दृष्टी है अर्थात उनकी आँखे एक्स-रे का काम करती है। और वह लोगो के शरीर के भीतर देख सकती है। साधारणतः यह सब हमें किसी फिल्म या कॉमिक बुक की कहानी जैसी लगती है।

नताशा निकोलायेवना देमकिना का जन्म पश्चिमी राशियां के सरंस्क में 1987 में हुआ। नताशा का बचपन सामान्य बच्चो की ही तरह था और 10 साल की उम्र के बाद ही उनमे असामान्य शक्तियां विकसित होती गयी।कहा जाता है की अपेंडिक्स का ऑपरेशन करने के बाद उन्हें अपनी क्षमताओ का एहसास हुआ था।

उन्होंने बताया की अपनी मेडिकल दृष्टी का उपयोग कर उन्होंने बताया की वह शरीर के भीतर के रंग-बिरंगी अंगो को देख सकती है और सभी तरह की मेडिकल समस्याओ का वर्णन कर सकती है।

अपनी माँ के आंतरिक अंगो के वर्णन करने के बाद देमकिना की कहानियां स्थानिक लोगो के बीच धीरे-धीरे फैलने लगी और अपने घर से बाहर वह मेडिकल कंसल्टेशन का भी काम करने लगी। 2003 में उनकी कहानी को स्थानिक अखबारों में भी प्रकाशित किया गया और स्थानिक टेलीविज़न स्टेशन पर भी उनकी कला का प्रदर्शन किया गया। इन सभी प्रदर्शनों को देखते हुए ब्रिटिश टेबलायड न्यूज़पेपर को भी उनमे रूचि आने लगी और इसीलिए उन्होंने देमकिना को प्रदर्शन करने के लिए लन्दन आमंत्रित किया।

जैसे-जैसे देमकिना की कहानियां लोगो में फैलने लगी. तभीसे बच्चो के अस्पताल के डॉक्टर उन्हें बहुत से कार्यो के लिए आमंत्रित करते थे। कहा जाता है की देमकिना जो कुछ भी शरीर के भीतर देखती थी उसका चित्र बना देती थी। डिस्कवरी चैनल की डाक्यूमेंट्री में भी देमकिना की उपलब्धियों और क्षमताओ का वर्णन कर रखा है। उन्होंने सफलता पूर्वक एक्सीडेंट हुई महिला के शरीर में मेटल की पिन को खोज निकाला था। उनकी इन क्षमताओ का इंटरव्यू भी लिया गया है।

जनवरी 2004 में ब्रिटिश टेबलायड न्यूज़पेपर दी सन ने देमकिना को इंग्लैंड बुलाया। और वहाँ जाकर देमकिना ने बहुत से प्रदर्शन किए और उनकी जाँच रिपोर्ट की तुलना प्रोफेशनल मेडिकल जाँच रिपोर्ट से भी की जाती थी। डिस्कवरी चैनल पर प्रकाशित की गयी डाक्यूमेंट्री में उनकी रिपोर्ट को सफल साबित किया गया।

शुरू-शुरू में देमकिना के प्रदर्शन को स्थानिक लोगो का अच्छा प्रतिसाद भी मिला। लेकिन जब उन्होंने यूनाइटेड स्टेट छोड़ा तो उनकी जाँच में बहुत सी गलतियाँ होने लगी थी।

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जिसे भगवान गणेश के भक्त के नाम से जाना जाता हैं वो “बल्लालेश्वर मंदिर” | Pali Ganpati Ballaleshwar

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Ballaleshwar – बल्लालेश्वर मंदिर भगवान गणेश के आठ मंदिरों में से एक है। गणेश के मंदिरों में बल्लालेश्वर एकमात्र ऐसा मंदिर है जिसे उनके भक्त के नाम से जाना जाता है। Pali Ganpati यह मंदिर रायगढ़ जिले के कर्जत से 58 किलोमीटर की दुरी पर पाली गाँव में बना हुआ है। यह मंदिर सारसगढ़ और अम्बा नदी के बीच में बना हुआ है।

Pali Ganpati

जिसे भगवान गणेश के भक्त के नाम से जाना जाता हैं वो “बल्लालेश्वर मंदिर” – Pali Ganpati Ballaleshwar

किंवदंतियाँ:

पाली गाँव में कल्याण नामक सफल और समृद्ध व्यापारी अपनी पत्नी इंदुमती के साथ रहता था। उनका पुत्र बल्लाल और गाँव के दुसरे बच्चे पत्थर की मूर्तियों के साथ खेलते रहते थे। एक बार ऐसे ही सारे बालक गाँव के बाहर चले गये और वहां उन्होंने एक विशाल पत्थर देखा। बल्लाल के आग्रह करने पर सारे बच्चे उस पत्थर को भगवान गणेश मानकर उनकी पूजा-अर्चना करने लगे। बल्लाल के नेतृत्व में सारे बालक पूजा में इतने लीन हो चुके थे की उनकी भूक-प्यास सब मर चुकी थी।

जबकि, बच्चो के माता-पिता बच्चो के घर आने का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे। और जब बच्चे समयपर घर वापिस नही आए तो सभी लोग मिलकर कल्याण के घर गए और उन्होंने बल्लाल की शिकायत की। यह सब सुनकर कल्याण क्रोधित हो गये और एक छड़ी लेकर वे बच्चो की खोज में निकल पड़े। परिणामस्वरूप कुछ समय बाद उन्हें बच्चे गणेश पुराण का पाठ करते हुए दिखाई दिए। गुस्से में उन्होंने बच्चो द्वारा बनाए गये छोटे से मंदिर को तोड़ दिया और बल्लाल को छड़ी से मारने लगे।

लेकिन बल्लाल पूरी तरह से भगवान गणेश की भक्ति में लीन थे, उनकी शरीर से खून निकलने लगा लेकिन फिर भी उन्हें इस बात का जरा भी एहसास नही था। इसके बाद जिस पत्थर को बालक भगवान गणेश समझकर उनकी पूजा कर रहे थे उसे कल्याण ने तोड़ दिया। इसके बाद उन्होंने बल्लाल से कहा की, “अब हम देखते है की तुम्हे कौनसा भगवान बचाता है!” इसके बाद घर जाते समय उन्होंने अपने पुत्र को पेड़ से बंधकर अकेला वाही छोड़ दिया था।

पेड़ से बंधे होने के बावजूद दर्द, भूक और प्यास से जूझ रहे बल्लाल ने भगवान गणेश का मंत्रोच्चार करना नही छोड़ा। इसके बाद उसकी भक्ति से खुश होकर अंततः भगवान गणेश ने अपने परम भक्त को दर्शन दे ही दिए। और दर्शन पाते ही बल्लाल की भूक, प्यार, नींद और चैन सब उड़ गयी थी। भगवान गणेश को देख वह बालक पूरी तरह से शांत हो चूका था।

इसके बाद भगवान गणेश ने बल्लाल से उनकी कोई भी इच्छा को पूरा करने का वादा किया। यह सुनते ही बल्लाल ने उनसे कहा की, “मै हमेशा आपका भक्त बनकर आपकी भक्ति करना चाहता हूँ और इसीलिए मै चाहता हूँ की आप इसी गाँव में हमेशा के लिए निवास करे।” गणेश भगवान ने जवाब में कहा की, “मै हमेशा यही रहूँगा और यहाँ मेरे नाम से पहले हमेशा तुम्हारा नाम लिया जाएंगा, यहाँ पर स्थापित मेरी मूर्ति को बल्लालेश्वर नाम दिया जाएंगा।” यह वरदान देकर वे पत्थर में विराजमान हो गए। उनके विराजमान होते हुए टुटा हुआ पत्थर भी एक हो गया।

उसी पत्थर को बल्लालेश्वर कहा जाता है। जिस पत्थर को कल्याण ने जमीन पर फेंका था उसे आक धुंदी विनायक के नाम से जाना जाता है। यह एक स्वयंभूमूर्ति थी जिसकी पूजा बल्लालेश्वर के भी पहले से की जाती है।

पाली बल्लालेश्वर मंदिर महोत्सव:

हर साल भाद्रपद और माघ के महीने में यहाँ दो महोत्सवो का आयोजन किया जाता है। एक प्रकार से यह भक्तो का अनुभव होता है, जहाँ बल्लालेश्वर अपने भक्तो की इच्छा और मांग पूरी करते है। इसीलिए यहाँ भक्त या तो अपनी इच्छा प्रकट करने आते है या तो इच्छा पूरी होने के बाद आभार प्रकट करने आते है।

“कहा जाता है की जो भी भक्त यहाँ दर्शन के लिए आते है, उनकी इच्छा बल्लालेश्वर जरुर पूरी करते है।” भाद्रपद चतुर्थी को यहाँ महानिद्यम और पंचमी को यहाँ अन्नसंतारम का आयोजन किया जाता है।

अपनी मनोकामना पूरी करने के लिय भक्त मंदिर की 21 प्रदक्षिणा मारते है।

भक्तो का ऐसा मानना है की माघ शुद्ध चतुर्थी को श्री गजानन वास्तव में मंदिर में आते है और उन्हें चढ़ाये गए नैवेद्य को ग्रहण करते है। इसीलिए इस दिन यहाँ हजारो लोग भगवान के दर्शन के लिए आते है।

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श्री मयूरेश्वर मंदिर, मोरगांव | Moreshwar Temple Morgaon Ganpati

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Moreshwar – श्री मयूरेश्वर मंदिर उर्फ़ श्री मोरेश्वर मंदिर भगवान गणेश को समर्पित एक हिन्दू मंदिर है। भगवान गणेश, गजमुखी बुद्धि के देवता है। यह मंदिर पुणे जिले के मोरगांव में बना हुआ है, जो महाराष्ट्र राज्य के पुणे शहर से 50 किलोमीटर की दुरी पर है। यह मंदिर भगवान गणेश के अष्टविनायको का प्रारंभ और अंत बिंदु दोनों ही है।

Moreshwar
श्री मयूरेश्वर मंदिर, मोरगांव – Moreshwar Temple Morgaon Ganpati

अष्टविनायको की यात्रा के अंत में यदि आप मोरगांव मंदिर नही आते तो आपकी यात्री को अधुरा समझा जाता है। यह मंदिर भगवान गणेश के अष्टविनायको में से एक ही नही बल्कि भारत से प्राचीनतम मंदिरों में से भी एक है।

मोरगांव गणपति संप्रदाय के सबसे प्रवित्र और मुख्य क्षेत्रो में से एक है, जहाँ भगवान गणेश की ही पूजा मुख्य देवता के रूप में की जाती है। कहा जाता है की जब भगवान गणेश ने राक्षसी दैत्य सिंधु की हत्या की थी तभी इस मंदिर की उत्पत्ति की गयी थी। लेकिन मंदिर के उत्पत्ति की वास्तविक तारीख के बारे में कोई पुख्ता जानकारी उपलब्ध नही है। लेकिन जानकारों के अनुसार गणपति संत मोर्य गोसावी का संबंध इस मंदिर से जरुर है। पेशवा साम्राज्यों और मौर्य गोसावी के संरक्षकों की वजह से मंदिर को काफ हद तक निखारा गया है।

इतिहास:

मोर्य गोसावी (मोरोबा) मुख्य गणपति संत थे जो चिंचवड जाने से पहले मोरगांव गणपति मंदिर में उनकी पूजा करते थे। बाद में चिंचवड जाकर उन्होंने नये गणेश मंदिर की स्थापना की। मोरगांव मंदिर और पुणे के आस-पास के सभी गणपति मंदिरों को ब्राह्मण पेशवा शासको का संरक्षण मिलता था। 18 वी शताब्दी में मराठा साम्राज्य ने बहुत से मंदिरों को निखारा भी था। पेशवा गणपति की अपने कुलदैवत के रूप में पूजा करते थे, पेशवाओ ने गणपति मंदिर बनवाने के लिए आर्थिक सहायता भी की थी।

फ़िलहाल यह मंदिर चिंचवड देवस्थान ट्रस्ट के शासन प्रबंध में है, जो चिंचवड से मंदिर की देखभाल करते है। मोरगांव के अलावा यह ट्रस्ट चिंचवड मंदिर और थेउर और सिद्धटेक मंदिर को भी नियंत्रित करता है।

धार्मिक मान्यताये और महत्त्व:

मोरगांव एक आध्यपीठ है – जो गणपति के प्राचीनतम मंदिरों में से एक है और यहाँ भगवान गणेश को ही सर्वोत्तम देवता माना जाता है। यह मंदिर अष्टविनायक आने वाले हजारो श्रद्धालुओ को आकर्षित करता है। मुद्गल पुराण के 22 वे अध्याय में मोरगांव की महानता का वर्णन किया गया है। गणेश पुराण के अनुसार मोरगांव (मयुरापुरी) भगवान गणेश की 3 मुख्य और सबसे महत्वपूर्ण जगहों में से एक है। दूसरी दो जगहों में स्वर्ग में स्थापित कैलाश और पाताल में बना आदि-शेष शामिल है। परंपराओ के अनुसार इस मंदिर का कोई प्रारंभ और अंतिम स्थान नही है। जबकि दूसरी परंपराओ के अनुसार प्रलय के समय भगवान गणेश यहाँ आए थे। इस मंदिर के पवित्रता की तुलना पवित्र हिन्दू शहर काशी से की जाती है।

पूजा और त्यौहार:

मंदिर में गणेशजी के मुखु मूर्ति की पूजा रोज की जाती है : सुबह 7 बजे, दोपहर 12 बजे और रात 8 बजे।

गणेश जयंती (माघ शुक्ल चतुर्थी) और गणेश चतुर्थी (भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी) के दिन यहाँ लाखो श्रद्धालु दस्तक देते है। हिन्दू महीने माघ और भाद्रपद में यह त्यौहार मनाए जाते है। दोनों ही पर्वो पर सभी श्रद्धालु चिंचवड के मंगलमूर्ति मंदिर (मोर्य गोसावी द्वारा स्थापित) से गणेशजी की पालखी के साथ आते है। गणेशचतुर्थी उत्सव अश्विन शुक्ल तक एक माह से भी ज्यादा समय तक चलता है। साथ ही मंदिर में विजयादशमी, शुक्ल चतुर्थी, कृष्णा चतुर्थी और सोमवती अमावस्या जैसे उत्सव भी बड़ी धूम-धाम से मनाए जाते है।

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थेउर का चिंतामणि मंदिर | Chintamani Ganpati Theur

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Chintamani Ganpati – थेउर का चिंतामणि मंदिर भगवान गणेश को समर्पित हिन्दू मंदिरों में से एक है। यह मंदिर पुणे से 25 किलोमीटर की दुरी पर स्थित है। साथ ही भगवान गणेश के अष्टविनायको में सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है, भगवान गणेश के अष्टविनायक भारत के महाराष्ट्र राज्य में पुणे शहर के आस-पास स्थित है।

Chintamani Ganpati

थेउर का चिंतामणि मंदिर – Chintamani Ganpati Theur

थेउर को गणपति संप्रदाय के लोगो का तीर्थस्थल माना जाता है और मंदिर की वर्तमान संरचना का निर्माण भी गणपति संप्रदाय संत मोर्य गोसावी और उनके वंशज धर्माधर ने करवाया था। लेकिन मंदिर के निर्माण की पुख्ता जानकारी किसी के पास उपलब्ध नही है।

अपने निवास स्थान चिंचवड और मोरगांव जाते समय मोर्य गोसावी अक्सर इस मंदिर के दर्शन के लिए आते थे। पूर्ण चन्द्रमा वाली रात के हर चौथे दिन मोर्य थेउर मंदिर के दर्शन के लिए आया करते थे। कहानी के अनुसार, गुरु के आदेशो पर ही मोर्य ने थेउर में 42 दिनों का कड़ा उपवास कर तपस्या की थी। कहा जाता है की इस समय उनके शरीर का संबंध दिव्य रहस्योद्घाटन से हो चूका था। माना जाता है की भगवान गणेश उनके सामने शेर के रूप में प्रकट हुए और उन्होंने मोर्य को सिद्धि प्रदान की।

थेउर मंदिर के साथ-साथ पुणे के आस-पास के दुसरे गणपति मंदिरो को भी ब्राह्मण पेशवा शासको से 18 वी शताब्दी में शाही संरक्षण मिला है। जो पेशवा कुलदेवता के रूप में भगवान गणेश की पूजा करते थे, वाही मंदिरों के निर्माण के लिए आर्थिक सहायता और जमीन भी दान करते थे। विशेषतः थेउर और मोरगांव के मंदिरों को ब्राह्मण पेशवाओ ने निखारा है। थेउर मंदिर पेशवा शासक माधवराव प्रथम का तो साहित्यिक चुम्बक हुआ करता था।

माधवराव ने मंदिर की अवस्था को सुधारा था और किसी भी युद्ध से पहले वे एक बार इस मंदिर के दर्शन अवश्य करते थे, ताकि उन्हें युद्ध में सफलता मिल सके। माधवराव ने अंतिम दिन मंदिर की सीमओं पर ही व्यतीत किये थे। गंभीर बीमारी होने के बावजूद अपने अंतिम दिनों में माधवराव भगवान को खुश करने की कोशिश करने लगे। गणेशजी को खुश करने के लिए वे रोज दूध का अभिषेक करते थे। पेशवा बाजीराव प्रथम के भाई और मिलिट्री कमांडर चिमाजी अप्पा ने मंदिर को एक विशाल यूरोपियन घंटी भेट स्वरुप दी थी।

मंदिर के त्यौहार:

मंदिर में तीन मुख्य उत्सव मनाए जाते है। गणेश प्रकटोत्सव, जो गणेश चतुर्थी के समय मनाया जाता है। यह उत्सव हिन्दू माह भाद्रपद के पहले दिन से सांतवे दिन तक मनाया जाता है, जिनमें से चौथे दिन गणेश चतुर्थी आती है। इस उत्सव पर मेले का भी आयोजन किया जाता है। इसके बाद भगवान गणेश के जन्मदिन को समर्पित माघोत्सव (गणेश जयंती) समाया जाता है, जो हिंदी माघ महीने के चौथे दिन मनाया जाता है। इस उत्सव को महीने के पहले से आंठवे दिन तक मनाया जाता है। इस उत्सव पर पर मेले का आयोजन किया जाता है।

इसके बाद मंदिर के प्रसिद्ध संरक्षक माधवराव और उनकी पत्नी रमाबाई को समर्पित कार्तिक महीने में रमा-माधव पुण्योत्सव मनाया जाता है। इन उत्सवो का लाभ लाखो श्रद्धालु लेते है।

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श्री गिरिजात्मज मंदिर, लेण्याद्री | Lenyadri Ganpati Temple

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Lenyadri Ganpati Temple – गिरिजात्मज मंदिर भगवान गणेश के अष्टविनायको में छठा मंदिर है, जो महाराष्ट्र जिले के पुणे के लेण्याद्री में बना हुआ है। लेण्याद्री एक प्रकार की पर्वत श्रंखला है, जिसे गणेश पहाड़ी भी कहा जाता है। लेण्याद्री में 30 बुद्धिस्ट गुफाए बनी हुई है। गिरिजात्मज मंदिर, अष्टविनायको में से एकमात्र ऐसा मंदिर है जो पर्वतो पर बना हुआ है, जो 30 गुफाओ में से सांतवी गुफा पर बना हुआ है। भगवान गणेश के आठो मंदिरों को लोग पवित्र मानकर पूजते है।
Lenyadri Ganpati Temple

श्री गिरिजात्मज मंदिर, लेण्याद्री – Lenyadri Ganpati Temple

गिरिजात्मज विनायक मंदिर महाराष्ट्र के अष्टविनयको में से एक और अष्टविनायको में भगवान गणेश का छठा मंदिर है। यह मंदिर लेखन पर्वत श्रंखला पर स्थापित है और साथ ही गिरिजात्मज अष्टविनायक मंदिर, अष्टविनायको में से एकमात्र ऐसा मंदिर है जो पहाड़ो और बुद्धिस्ट गुफाओ में बना हुआ है। लेण्याद्री असल में कुकड़ी नदी के उत्तर-पश्चिम तट पर बना हुआ है। यहाँ भगवान गणेश को गिरिजात्मज के रूप में पूजा जाता है। गिरिजा वास्तव में देवी पार्वती और अटमाज (पुत्र) का ही एक नाम है। गणेश पुराण में इस जगह को जिर्णपुर और लेखन पर्बत कहा गया है।

किंवदंतियाँ:
गणपति शास्त्र के अनुसार गणेश मयूरेश्वर के रूप में अवतरित हुए थे, जिनकी छः बांहे और सफ़ेद रंग था। उनका वाहन मोर था। उनका जन्म शिव और पार्वती की संतान के रूप में त्रेतायुग में राक्षस सिंधु को मारने के उद्देश्य से हुआ।

एक बार पार्वती ने ध्यान कर रहे अपने पति शिवजी से कुछ पूछा। लेकिन भगवान शिव ने कहा की वे “पुरे ब्रह्माण्ड के समर्थक – गणेश” का ध्यान लगा रहे है और इसके बाद पार्वती ने भी गणेश मंत्र का उच्चार कर ध्यान लगाने की शुरुवात की। एक पुत्र की इच्छा में पार्वती भी भगवान गणेश की तपस्या में लीन हो गयी।

लगभग 12 साल तक लेण्याद्री पर उन्होंने तपस्या की थी। उनकी तपस्या से खुश होकर गणेशजी खुश हुए और उन्होंने उनके पुत्र के रूप में जन्म लिया। कहा जाता है की हिन्दू माह भाद्रपद के पखवाड़े की चौथी चन्द्र रात को पार्वती ने भगवान गणेश की मिट्टी की प्रतिमा की पूजा की थी और उसी में से भगवान गणेश प्रकट हुए थे।

इसीलिए कहा जाता है की देवी पार्वती ने लेण्याद्री पर भगवान गणेश को जन्म दिया। राक्षसी राजा सिंधु जो जानता था की उसकी मौत गणेश के हांथो होनी थी, वह बार-बार दुसरे राक्षस जैसे क्रूर, बालासुर, व्योमासुर, क्षेम्मा, कुशाल और इत्यादि राक्षसों को उन्होंने भगवान गणेश को मारने के लिए भेजा। लेकिन भगवान गणेश को पछाड़ने की बजाए भगवान गणेश ने खुद उनका विनाश कर दिया।

भगवान गणेश को मयूरेश्वर की उपाधि भी दी जाती है। बाद में मयूरेश्वर ने ही राक्षसी दैत्य सिंधु की हत्या की थी, इसीलिए इस मंदिर को भगवान गणेश के अष्टविनायको में सबसे महत्वपूर्ण मंदिरों में से एक माना जाता है।

उत्सव:
• माघ शुद्ध चतुर्थी – जनवरी और फरवरी
• गणेश चतुर्थी और भाद्रपद शुद्ध चतुर्थी – अगस्त और सितम्बर
• विजयादशमी – अक्टूबर

विशेषता:
गिरिजात्मज मंदिर के मुख्य देवता भगवान गिरिजात्मज (गणेशजी) है, जिन्हें देवी गिरिजा का पुत्र भी कहा जाता है। गुफा में बने भगवान गणेश के इस मंदिर में हमें भगवान गणेश की मूर्ति को गुफा की काली दीवारों पर उकेरा गया है। मंदिर तक पहुचने के लिए हमें 283 सीढियां चढ़नी पड़ती है। मंदिर में भगवान गणेश की प्रतिमाए और साथ ही भगवान गणेश के बालपन, युद्ध और उनके विवाह के चित्र भी बने हुए है।

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शिक्षक दिवस पर भाषण | Teachers day Speech

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हर इंसान के जीवन में सबसे ज्यादा महत्व एक शिक्षक या गुरु का होता है क्योकि वह ही अपने विद्यार्थी के ज्ञान का एकमात्र साधन होते है। शिक्षको के कार्यो को सराहने और उनकी प्रशंसा करने के लिए बहुत से पर्व आते है, जिनमे से एक शिक्षक दिवस भी है। इस दिन यह जरुरी होता है की हम शिक्षको के प्रति की भावना को सभी के सामने रखे। इसीलिए आज हम यहाँ शिक्षक दिवस पर बोले जाने वाले भाषण – Teachers day Speech को उल्लेखित कर रहे है।

Teachers day speech

शिक्षक दिवस पर भाषण – Teachers day Speech

प्रिंसिपल सर को सुप्रभात, सम्माननीय शिक्षक और मेरे प्यारे मित्रो, हम सभी आज यहाँ शिक्षक दिवस मनाने के लिए एकत्रित हुए है। इस महोत्सव पर मै आप सभी का स्वागत करता हूँ। आज 5 सितम्बर है और हम सभी इस दिन को शिक्षक दिवस के रूप में सालो से मनाते आ रहे है। इस दिवस को देश के सभी स्कूल और कॉलेजों में डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की याद और शिक्षक के कार्यो को सम्मान देते हुए मनाया जाता है। हमारे समाज में शिक्षको को एक विशेष दर्जा दिया जाता है और विद्यार्थियों के करियर को बनाने में भी उनका महत्वपूर्ण योगदान होता है। देश में धूम-धाम से शिक्षक दिवस मनाया जाता है। हम सभी के जीवनकाल में कोई ना कोई ऐसा शिक्षक जरुर होता है जिसे हम अपना आदर्श मानते है।

आपके शिक्षको ने ही आपको एक स्वतंत्र विचारक, साहसी पढ़ाकू और जिज्ञासु शोधकर्ता बनाया है। और उन्होंने आपको जीवन के हर एक कदम पर सहायता की है। जब कभी भी शिक्षक हमकर गुस्सा हुए है तब भी हमें जीवन में कठिन परिस्थितियों का सामना करने की ताकत मिली है। उन्होंने ही हमें समाज में रहने और सच्चाई का सामना करने की हिम्मत दी है। लेकिन हम सभी को इस बात का एहसास बादमे होता है। और उस समय हम केवल उनका आदर और सम्मान ही कर सकते है।

जब कभी भी आप अपने पसंदीदा शिक्षक को याद करो तो आपके मन में उसे जुडी हुई कुछ रोचक बाते ए रोचक किस्से जरुर याद आयेंगे।

साल दर साल समय तो गुजरता चला जाएंगा। लेकिन शिक्षको का एक विशेष स्थान हमारे दिल में हमेशा बना रहेंगा। जब शिक्षक हमें पढ़ाते है तो वे अपना सब कुछ भूलकर अपना पूरा समय, अपना पूरा ज्ञान और अपनी पूरी क्षमता हमारे उपर खर्च करते है। शिक्षक हमारे बचपन से ही हमारे जीवन को स्थानांतरित करते रहते है।

इसीलिए शिक्षक दिवस के दिन निश्चित रूप से हमें शिक्षको के प्रति अपने विचारो को बाटना चाहिए, इससे हमें तो ख़ुशी मिलती ही है साथ ही शिक्षक भी प्रोत्साहित होते है। जब हम शिक्षको के लिए कुछ करते है तो शिक्षको को भी हमपर गर्व महसूस होता है। शायद इसी दिन को मनाकर हम उनका आभार भी व्यक्त कर सकते है।

हमारे शिक्षको ने हमारे लिए जितना किया, उसके बराबर हम उन्हें कोई चीज नही दे सकते। लेकिन हाँ, हम उनका आभार जरुर व्यक्त कर सकते है। मैं एक शिक्षकों पर कविता – Teachers Day Poem सुनाकर अपना यह भाषण समाप्त करना चाहूँगा।

गुरु आपकी ये अमृत वाणी
हमेशा मुझको याद रहे
जो अच्छा है जो बुरा है
उसकी हम पहचान करे
मार्ग मिले चाहे जैसा भी
उसका हम सम्मान करे
दीप जले या अँगारे हो
पाठ तुम्हारा याद रहे
अच्छाई और बुराई का
जब भी हम चुनाव करे
गुरु आपकी ये अमृत वाणी
हमेशा मुझको याद रहे

~ सुजाता मिश्रा

धन्यवाद् !

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रांजनगांव गणपति | Ranjangaon Ganpati

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Ranjangaon Ganpati – रांजनगांव गणपति भगवान गणेश के अष्टविनायको में से एक है। इस मंदिर में स्थापित भगवान गणेश की मूर्ति को “खोल्लम” परिवार ने भेट स्वरुप दिया और मंदिर का उद्घाटन भी किया। पुणे के स्थानिक लोगो के बीच यह मंदिर काफी प्रसिद्ध है।

Ranjangaon Ganpati Temple
रांजनगांव गणपति – Ranjangaon Ganpati

आपको इस बात को जानकर हैरानी होंगी की मंदिर के भगवान गणेश की मूर्ति को “महोत्कट” कहा जाता है और ऐसा इसलिए कहा जाता है क्योकि मूर्ति की 10 सूंढ़ और 20 हाँथ है।

इतिहास:

खोल्लम परिवार रांजनगांव में बसा हुआ स्वर्णकारो का एक परिवार था। एतिहासिक रहस्योंद्घाटन के अनुसार इस मंदिर का निर्माण 9 वी से 10 वी शताब्दी में किया गया। माधवराव पेशवा ने मंदिर के निचले भाग में भगवान गणेश की मूर्ति रखने के लिए एक कमरे का निर्माण भी करवाया था। इसके बाद इंदौर के सरदार किबे से मंदिर की अवस्था में सुधार किया था। मंदिर का नगरखाना भी प्रवेश द्वार पर बना हुआ है। मुख्य मंदिर ऐसा लगता है जैसे इसका निर्माण पेशवा के समय में किया गया। पूर्व मुखी मंदिर का एक विशाल और सुंदर प्रवेश द्वार है।

किंवदंतियाँ:

किंवदंतियों के अनुसार त्रिपुरासुर नामक असुर स्वर्ग और पृथ्वी में मानव समाज को क्षति पंहुचा रहा था। सभी देवताओ की दलीलों को सुनकर भगवान शिव प्रकट हुए और उन्हें जल्द ही इस बात का एहसास हो गया था की वे उस असुर को पराजित नही कर सकते। इसके बाद नारद मुनि की राय मानकर शिवजी ने गणेश को याद किया और एक ही तीर से असुर और त्रिपुरा के किले को ध्वस्त कर दिया। त्रिपुरा असुर को ध्वस्त करने वाले शिवजी पास ही भीमाशंकर में प्रतिष्ठापित हो गए।

दक्षिण भारत की किंवदंतियों के अनुसार गणेश ने भगवान शिव रथ की धुरा को तोडा था, जबकि उस समय शिवजी असुर त्रिपुरासुर से युद्ध कर रहे थे। अंत में असुर को पराजित कर भगवान शिव ने वही भगवान गणेश के मंदिर को प्रतिष्ठापित किया था।

पुणे-नगर हाईवे से जाते समय पुणे-कोरेगांव का रास्ता पकडे और शिक्रापुर से जाते समय रांजनगांव शिरूर से 21 किलोमीटर पहले आता है। पुणे से यह 50 किलोमीटर दूर है।

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सिद्धिविनायक मंदिर, सिद्धटेक | Siddhivinayak Temple, Siddhatek

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Siddhatek – सिद्धटेक में भीमा नदी के तट पर बसा Siddhivinayak Temple – सिद्धिविनायक मंदिर अष्टविनायको में से एक है। अष्टविनायको में यह एकमात्र ऐसा मंदिर है, पारंपरिक रूप से जिस मूर्ति की सूंढ़ दाहिनी तरफ होती है, उसे सिद्धि-विनायक कहा जाता है।

Siddhivinayak Temple, Siddhatek
सिद्धिविनायक मंदिर, सिद्धटेक – Siddhivinayak Temple, Siddhatek

धार्मिक महत्त्व:

भगवान गणेश के अष्टविनायक मंदिरों में प्रथम मंदिर मोरगांव के बाद सिद्धटेक का नंबर आता है। लेकिन श्रद्धालु अक्सर मोरगांव और थेउर के दर्शन कर बाद सिद्धिविनायक मंदिर के दर्शन करते है।

यहाँ पर बने भगवान गणेश की मूर्ति की सूंढ़ दाईं तरफ मुड़ी हुई है और इसी वजह से भगवान गणेश की इस मूर्ति को काफी शक्तिशाली माना जाता है, लेकिन भगवान गणेश की इस मूर्ति को खुश करना काफी मुश्किल है। भगवान गणेश के अष्टविनायको में यह एकमात्र ऐसा मंदिर है, जहाँ भगवान गणेश के मूर्ति की सूंढ़ दाईं तरफ मुड़ी हुई है। पारंपरिक रूप से जिस मूर्ति की सूंढ़ दाहिनी तरफ होती है, उसे सिद्धि-विनायक कहा जाता है। इस मंदिर परिसर को जागृतक्षेत्र भी कहा जाता है, जहाँ के देवता को काफी शक्तिशाली माना जाता है।

मुद्गल पुराण में भी इस मंदिर का उल्लेख किया गया है। ब्रहमांड के रचयिता ब्रह्मा की उत्पत्ति कमल से हुई, जिसकी उत्पत्ति भगवान विष्णु की नाभि से हुई और भगवान विष्णु योगीन्द्र पर सो रहे थे। इसके बाद जब ब्रह्मा ने ब्रह्माण्ड के निर्माण की शुरुवात की तब विष्णु के कानो के मैल से दो असुर मधु और किताभा की उत्पत्ति हुई।

इसके बाद दोनों असुरो ने ब्रह्मा की प्रक्रिया में बाधा डाली। इस घटना ने भगवान विष्णु को जागने पर मजबूर कर दिया। विष्णु ने भी युद्ध की शुरुवात कर दी, लेकिन वे उन्हें पराजित नही कर पा रहे थे। इसके बाद उन्होंने भगवान शिव से इसका कारण पूछा।

शिवजी ने विष्णु को बताया की शुभ कार्य से पहले पूजे जाने वाले शुरुवात के देवता – गणेश को वे आव्हान करना भूल गये और इसीलिए वे असुरो को पराजित नही कर पा रहे है। इसके बाद भगवान विष्णु सिद्धटेक में ही तपस्या करने लगे और “ॐ श्री गणेशाय नमः” मंत्र का जाप कर उन्होंने भगवान गणेश को खुश कर दिया। मंत्रोच्चार से खुश होकर भगवान गणेश ने भी खुश होकर विष्णु को बहुत सी सिद्धियाँ प्रदान की और युद्ध में लौटकर असुरो का अंत किया। यहाँ विष्णु ने सिद्धियाँ हासिल की उसी जगह को आज सिद्धटेक के नाम से जाना जाता है।

इतिहास:

वास्तविक मंदिर का निर्माण विष्णु ने किया था, जबकि समय-समय पर इसे नष्ट भी किया गया था। कहा जाता है की बाद में चरवाहों ने सिद्धिविनायक मंदिर की खोज की थी। चरवाहे रोजाना मंदिर के मुख्य देवता की पूजा-अर्चना करते थे।

वर्तमान मंदिर का निर्माण 18 वी शताब्दी में इंदौर की दार्शनिक रानी अहिल्याबाई होलकर ने करवाया था और इसके साथ-साथ उन्होंने बहुत से हिन्दू मंदिरों की अवस्था में भी सुधार किया। पेशवा शासको के अधिकारी सरदार हरिपंत फडके ने नगरखाने और मार्ग का निर्माण करवाया। मंदिर के बाहरी सभा मंडप का निर्माण बड़ोदा के जमींदार मिरल ने करवाया था। 1939 में टूटे हुए इस मंदिर का पुनर्निर्माण 1970 में किया गया।

फ़िलहाल यह मंदिर चिंचवड देवस्थान ट्रस्ट के शासन प्रबंध में है, जो मोरगांव और थेउर अष्टविनायक मंदिर पर भी नियंत्रण कर रहे है।

स्थान:

यह मंदिर महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के कर्जा तालुका के सिद्धटेक में भीमा नदी के तट पर स्थित है। मंदिर का सबसे करीबी स्टेशन दौंड (19 किलोमीटर) है। यह मंदिर पुणे जिले के शिरपुर गाँव से भी जुड़ा हुआ है, जहाँ नदी के दक्षिणी तट पर हम जहाज की सहायता से भी जा सकते है। यहाँ पहुचने के लिए एक रास्ता है जो दौड़-कस्ती-पाडगांव, शिरूर-श्रीगोंडा-सिद्धटेक, कर्जत-रसहीन-सिद्धटेक से होकर गुजरता है, जो 48 किलोमीटर लंबा है।

यह मंदिर छोटी पहाड़ी पर बना हुआ जो और साथ ही चारो तरफ से बाबुल के पेड़ो से घिरा हुआ है और सिद्धटेक गाँव से 1 किलोमीटर दूर स्थित है। देवता को संतुष्ट करने के लिए श्रद्धालु छोटी पहाड़ी की सांत प्रदक्षिणा लगाते थे। वहा कोई पक्की सड़क ना होने के बावजूद लोग भगवान को खुश करने के लिए पत्थरो से भरी कच्ची सड़को पर प्रदक्षिणा लगाते है।

उत्सव:

मंदिर में तीन मुख्य उत्सव मनाए जाते है। गणेश प्रकटोत्सव, जो गणेश चतुर्थी के समय मनाया जाता है। यह उत्सव हिन्दू माह भाद्रपद के पहले दिन से सांतवे दिन तक मनाया जाता है, जिनमें से चौथे दिन गणेश चतुर्थी आती है। इस उत्सव पर मेले का भी आयोजन किया जाता है। इसके बाद भगवान गणेश के जन्मदिन को समर्पित माघोत्सव (गणेश जयंती) समाया जाता है, जो हिंदी माघ महीने के चौथे दिन मनाया जाता है। इस उत्सव को महीने के पहले से आंठवे दिन तक मनाया जाता है। इस उत्सवो के समय भगवान गणेश की पालखी भी निकाली जाती है।

सोमवती अमावस्या और विजयादशमी के दिन यहाँ मेले का भी आयोजन किया जाता है।

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विघ्नेश्वर मंदिर, ओझर | Vigneshwara Ozar Ganpati

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ओझर का Vigneshwara – विग्नेश्वर मंदिर उर्फ़ विघ्नहर गणपति मंदिर भगवान गणेश को समर्पित एक हिन्दू मंदिर है। भगवान गणेश गजमुखी और बुद्धि के देवता है। यह मंदिर भारत के महाराष्ट्र में बने भगवान गणेश के अष्टविनायको में से एक है। यहाँ भगवान गणेश के विघ्नेश्वर रूप की पूजा की जाती है।

Vigneshwara Ozar Ganpati

विघ्नेश्वर मंदिर, ओझर – Vigneshwara Ozar Ganpati

इतिहास:

पेशवा बाजीराव प्रथम के भाई और मिलिट्री कमांडर चिमाजी अप्पा ने मंदिर की अवस्था में सुधार किया और पुर्तगालीयो से वसई किले को जीतने के बाद मंदिर के शिखर को स्वर्ण से सजाया था। 1967 में भगवान गणेश के भक्त अप्पा शास्त्री जोशी ने भी मंदिर की अवस्था में सुधार किया था।

धार्मिक महत्त्व:

भगवान गणेश के अष्टविनायको में ओज़र का गणेश मंदिर सांतवे स्थान पर आता है, कई बार श्रद्धालु पांचवे स्थान पर ही इस मंदिर के दर्शन कर के लिए आते है।

मुद्गल पुराण, स्कंद पुराण और तमिल विनायक पुराण के अनुसार : राजा अभिनन्दन ने एक बलिदान दिया, जिसमे उन्होंने देवराज इंद्र को कुछ भी प्रस्तुत नही किया। व्यथित होकर इंद्र ने काल (समय/मृत्यु) को उनके बलिदान को ख़त्म करने का आदेश दे दिया। इसके बाद काल ने असुर विघ्नसुर का रूप लिया, जो बलिदान की प्रक्रिया में बाधा बनकर खड़ा हुआ। इसी के साथ उसने ब्रह्माण्ड का भी नाश करना शुरू किया, बलिदान में बाधा बनने के साथ-साथ वह दूसरो को भी क्षति पंहुचा रहा था।

फिर संतो ने परेशान होकर मदद के लिए भगवान शिव और ब्रह्मा को प्रार्थना की, जिन्होंने संतो को भगवान गणेश की पूजा करने के लिए कहा। सन्यासियों की प्रार्थना सुनकर भगवान गणेश से असुर राजा से युद्ध की शुरुवात की, जिसमे असुर को जल्द ही इस बात का एहसास हो चूका था की वह गणेश को पराजित नही कर सकता और इसीलिए उसने किसी को हानि न पहुचाने का वादा किया। तभी से भगवान गणेश को विघ्नहर्ता भी कहा जाता है।

पराजय के बाद विघ्नसुर ने भगवान गणेश को अपना नाम धारण करने की प्रार्थना भी की और कहा जाता है की तभी से इस मंदिर को विघ्नेश्वर मंदिर कहा जाता है। मंदिर में हमें विघ्नेश्वर के रूप में भगवान गणेश की प्रतिमा देखने मिलती है।

उत्सव:

मंदिर में भगवान गणेश से जुड़े सभी उत्सव मनाए जाते है। जिनमे मुख्य रूप से गणेश चतुर्थी और गणेश जयंती शामिल है। इसके साथ-साथ मंदिर में कार्तिक पूर्णिमा को 5 दिनों तक चलने वाले एक उत्सव का भी आयोजन किया जाता है।

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वरदविनायक मंदिर महड | Varad Vinayak Mahad Ganpati

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Mahad Ganpati

Varad Vinayak – वरदविनायक मंदिर हिन्दू दैवत गणेश के अष्टविनायको में से एक है। यह मंदिर भारत में महाराष्ट्र राज्य के रायगढ़ जिले के कर्जत और खोपोली के पास खालापुर तालुका के महड गाँव में स्थित है। इस मंदिर में स्थापित भगवान गणेश की मूर्ति को स्वयंभू कहा जाता है।

Varad Vinayak Mahad Ganpati

वरदविनायक मंदिर महड – Varad Vinayak, Mahad Ganpati

कहा जाता है की इस वरदविनायक मंदिर का निर्माण 1725 में सूबेदार रामजी महादेव बिवलकर ने करवाया था। मंदिर का परिसर सुंदर तालाब के एक तरफ बना हुआ है। 1892 से महड वरदविनायक मंदिर का लैंप लगातार जल रहा है।

पूर्वी मुख में बना यह अष्टविनायक मंदिर काफी प्रसिद्ध है और यहाँ पर हमें रिद्धि और सिद्धि की मूर्तियाँ भी देखने मिलती है। मंदिर के चारो तरह हांथी की प्रतिमाओ को उकेरा गया है। मंदिर का डोम भीस्वर्ण शिखर के साथ 25 फीट ऊँचा है। मंदिर के उत्तरी भाग पर गौमुख देखने मिलता है, जो पवित्र नदी के बहाव के साथ बहता है। मंदिर के पश्चिमी भाग में एक पवित्र तालाब बना हुआ है। इस मंदिर में मुशिका, नवग्रह देवता और शिवलिंग की भी मूर्तियाँ है।

इस अष्टविनायक मंदिर में श्रद्धालु गर्भगृह में भी आ सकते है और वहा वे शांति से भगवान को श्रद्धा अर्पण करते है और उनकी भक्ति में तल्लीन हो जाते है। साल भर हजारो श्रद्धालु वरदविनायक मंदिर में भगवान के दर्शन के लिए आते है। माघ चतुर्थी जैसे पर्वो के दिन मंदिर में लाखो लोग हमें दिखाई देते है।

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भगवान गणपति के प्रसिद्ध आठ मंदिर “अष्टविनायक”| Ashtavinayak

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Ashtavinayak – अष्टविनायक यह भगवान गणपति के प्रसिद्ध आठ मंदिर हैं जो महाराष्ट्र में हैं। पश्चिमी महाराष्ट्र और कोंकण के इन मंदिरों का स्वतंत्र इतिहास है। चूंकि इन सभी मंदिरों में पेशवाओं की शरण थी, इसलिए पेशवा के समय उन्हें महत्व मिले। अष्टविनायक का विवरण मुदगल पुराण में भी पाया जाता है।

Ashtavinayak

भगवान गणपति के प्रसिद्ध आठ मंदिर “अष्टविनायक” – Ashtavinayak

महाराष्ट्र के हर गांव में श्री गणेश के एक या दो मंदिर पाए जाते हैं। उन मंदिरों से हजारों भक्तों ने गणपति के हर रूप का अनुभव किया है। ऐसा होने के बावजूद महाराष्ट्र में विशेष ‘आठ’ जगह के गणेश मंदिर, मूर्तियों का विशेष महत्व है। इन आठ मंदिरों को ‘अष्टविनायक’ कहा जाता है। विनायक गणपति के कई नामों में से एक है; यही कारण है कि ये इन आठ मंदिरों के समूह मतलब अष्टविनायक हैं। महाराष्ट्र के मंदिर न केवल महाराष्ट्र में बल्कि पूरे भारत में भी जाने जाते है। गणपति शिक्षा का देवता है, वो सुखकर्ता दुखहर्ता और सभी का रक्षणकर्ता हैं, ऐसी गणेश भक्तों की भावना है।

इन सभी गणपति के बारे में विस्तृत जानकारी इस प्रकार है:

1. Moreshwar Temple, Morgaon, Pune district

2. Siddhivinayak Temple, Siddhatek, Ahmednagar district

3. Ballaleshwar Temple, Pali, Raigad district

4. Varadavinayak Temple, Mahad, Raigad district

5. Chintamani Temple, Theur, Pune district

6. Girijatmaj Temple, Lenyadri, Pune district

7. Vighneshwar Temple, Ozar, Pune district

8. Mahaganapati Temple, Ranjangaon, Pune district

Ashtavinayak Mantra – अष्टविनायक मंत्र

स्वस्ति श्रीगणनायकं गजमुखं मोरेश्वरं सिद्धिदम् ॥१॥
बल्लाळं मुरुडे विनायकमहं चिन्तामणिं थेवरे ॥२॥
लेण्याद्रौ गिरिजात्मजं सुवरदं विघ्नेश्वरं ओझरे ॥३॥
ग्रामे रांजणनामके गणपतिं कुर्यात् सदा मङ्गलम् ॥४॥

Svasti Shrii-Ganna-Naayakam Gaja-Mukham Moreshvaram Siddhidam ॥1॥
Ballaallam Murudde Vinaayakam-Aham Cintaamannim Thevare ॥2॥
Lennyaadrau Girija[a-A]atmajam Suvaradam Vighneshvaram Ojhare ॥3॥
Graame Raamjanna-Naamake Gannapatim Kuryaat Sadaa Manggalam ॥4॥

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शिक्षक दिवस पर निबंध | Teachers Day Essay

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विद्यार्थियों के जीवन में शिक्षक का एक विशेष स्थान होता है। राष्ट्र के भविष्य को सवारने में शिक्षको की महत्त्व भूमिका होती है, उनके की सहायता से एक आदर्श नागरिक का जन्म होता है। जीवन में शिक्षक के महत्त्व को समझने के लिए विभिन्न शब्दों एवं आसान और सरल शब्दों में हम यहाँ शिक्षक दिवस पर निबंध – Teachers Day Essay उपलब्ध कराने जा रहे है, जो आपके बच्चो और विद्यार्थियों के लिए विविध प्रतियोगिताओ में उपयोगी साबित हो सकते है।

Teachers Day – शिक्षक दिवस सभी शिक्षको को समर्पित एक पर्व है, जो हर साल 5 सितम्बर को शिक्षको को सम्मान देने के उद्देश्य से मनाया जाता है।

Teachers Day Essay

शिक्षक दिवस पर निबंध – Teachers Day Essay

हमारी सफलता के पीछे हमारे शिक्षक का बहुत बड़ा हाथ होता है। हमारे माता-पिता की तरह ही हमारे शिक्षक के पास भी ढ़ेर सारी व्यक्तिगत समस्याएँ होती हैं लेकिन फिर भी वह इन सभी को भूलकर रोज स्कूल और कॉलेज आते हैं तथा अपनी जिम्मेदारी को अच्छी तरह से निभाते हैं। कोई भी उनके बेशकीमती कार्य के लिये उन्हें धन्यवाद नहीं देता इसलिये एक विद्यार्थी के रुप में शिक्षकों के प्रति हमारी भी जिम्मेदारी बनती है कि कम से कम साल में एक बार उन्हें जरुर धन्यवाद दें।

शिक्षको के कार्य को समर्पित करते हुए 5 सितम्बर का दिन पुरे देश में शिक्षक दिवस के रूप मनाया जाता है। शिक्षकों को सम्मान देने और भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिवस को याद करने के लिये हर साल इसे मनाया जाता है। देश के विकास और समाज में हमारे शिक्षकों के योगदान के साथ ही शिक्षक के पेशे की महानता को उल्लेखित करने के लिये हमारे पूर्व राष्ट्रपति के जन्मदिवस को समर्पित किया गया है।

डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन एक महान शिक्षक थे, जिन्होंने अपने जीवन के 40 वर्ष अध्यापन पेशे को दिए है। वे विद्यार्थियों के जीवन में शिक्षकों के योगदान और भूमिका के लिये प्रसिद्ध थे। इसलिये वे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने शिक्षकों के बारे में सोचा और हर वर्ष 5 सितंबर को शिक्षक दिवस के रुप में मनाने का अनुरोध किया। डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म 5 सितंबर 1888 को हुआ था और 1909 में चेन्नई के प्रेसिडेंसी कॉलेज में अध्यापन पेशे में प्रवेश करने के साथ ही दर्शनशास्त्र शिक्षक के रुप में अपने करियर की शुरुआत की।

उन्होंने देश में बनारस, चेन्नई, कोलकाता, मैसूर जैसे कई प्रसिद्ध विश्वविद्यालयों तथा विदेशों में लंदन के ऑक्सफोर्ड जैसे विश्वविद्यालयों में दर्शनशास्त्र पढ़ाया है। अध्यापन पेशे के प्रति अपने समर्पण की वजह से उन्हें अपने बहुमूल्य सेवा की पहचान के लिये 1949 में विश्वविद्यालय छात्रवृत्ति कमीशन के अध्यक्ष के रुप में नियुक्त किया गया। 1962 से शिक्षक दिवस के रुप में 5 सितंबर को मनाने की शुरुआत हुई। अपने महान कार्यों से देश की लंबे समय तक सेवा करने के बाद 17 अप्रैल 1975 को उनका निधन हो गया।

शिक्षक विद्यार्थियो के जीवन के वास्तविकतः कुम्हार की तरह होते हैं, जो न सिर्फ हमारे जीवन को आकार देते हैं बल्कि हमें इस काबिल बनाते हैं कि हम पूरी दुनिया में अंधकार होने के बाद भी प्रकाश की तरह जलते रहें। इसी वजह से हमारा राष्ट्र ढ़ेर सारे प्रकाश के साथ प्रबुद्ध हो सकता है।

हमारे शिक्षक हमें शैक्षणिक दृष्टी से तो बेहतर बनाते ही हैं, साथ ही हमारे ज्ञान और विश्वास के स्तर को बढ़ाकर नैतिक रुप से भी हमें अच्छा बनाते है। जीवन में अच्छा करने के लिये वह हमें हर असंभव कार्य को संभव करने की प्रेरणा देते हैं। विद्यार्थी इस शिक्षक दिवस को बहुत उत्साह और खुशी के साथ मनाते है। विद्यार्थी अपने शिक्षकों को ग्रीटिंग कार्ड देकर बधाई भी देते हैं।

हमें पूरे दिल से ये प्रतिज्ञा करनी चाहिये कि हम अपने शिक्षक का सम्मान करेंगे क्योंकि बिना शिक्षक के इस दुनिया में हम सभी अधूरे हैं।

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हिन्दी दिवस पर कुछ कविताएँ | Hindi Diwas Poem

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हिंदी भाषा विश्व की दूसरी सबसे बड़ी भाषा हैं। इसलिए हम 10 जनवरी को विश्व हिंदी दिवस – International Hindi Day और 14 सितम्बर को हम राष्ट्रीय हिंदी दिवस के रूप में मनाते हैं। 1949 को इस दिन हिंदी भाषा को राष्ट्रभाषा का दर्जा प्राप्त हुआ। भारत और अन्य देशों में 80 करोड़ से अधिक लोग हिन्दी बोलते,पढ़ते और लिखते हैं। आज हम यहाँ हिन्दी दिवस पर कुछ कविताएँ – Hindi Diwas Poem लायें हैं आपको जरुर पसंद आएँगी।

हिन्दी दिवस पर कुछ कविताएँ – Hindi Diwas Poem

Hindi Diwas Poem

Hindi Diwas Poem – “हिंदी भाषा”

हिंदुस्तानी हैं हम गर्व करो हिंदी भाषा पर,
उसे सम्मान दिलाना और देना कर्तव्य हैं हम पर।।
ख़त्म हुआ विदेशी शासन,
तोड़दो अब उन बेड़ियों को।।
खुले दिल से अपनाओ इस खुले आसमां को,
लेकिन ना छोड़ो धरती माँ के प्यार को।।
हिंदी हैं राष्ट्रभाषा हमारी,
इस पर करो जिन्दगी न्यौछावर सारी।।

Hindi Diwas Kavita – “राष्ट्र के माथे की बिंदी है ये हिन्दी”

संस्कृत की एक लाड़ली बेटी है ये हिन्दी।
बहनों को साथ लेकर चलती है ये हिन्दी।
सुंदर है, मनोरम है, मीठी है, सरल है,
ओजस्विनी है और अनूठी है ये हिन्दी।
पाथेय है, प्रवास में, परिचय का सूत्र है,
मैत्री को जोड़ने की सांकल है ये हिन्दी।
पढ़ने व पढ़ाने में सहज है, ये सुगम है,
साहित्य का असीम सागर है ये हिन्दी।
तुलसी, कबीर, मीरा ने इसमें ही लिखा है,
कवि सूर के सागर की गागर है ये हिन्दी।
वागेश्वरी का माथे पर वरदहस्त है,
निश्चय ही वंदनीय मां-सम है ये हिंदी।
अंग्रेजी से भी इसका कोई बैर नहीं है,
उसको भी अपनेपन से लुभाती है ये हिन्दी।
यूं तो देश में कई भाषाएं और हैं,
पर राष्ट्र के माथे की बिंदी है ये हिन्दी।

Poem on Hindi Diwas – “हिंदी हैं हम”

हिंदी हैं हम, वतन है हिन्दुस्तान हमारा,
कितना अच्छा व कितना प्यारा है ये नारा।
हिंदी में बात करें तो मूर्ख समझे जाते हैं।
अंग्रेजी में बात करें तो जैंटलमेल हो जाते।
अंग्रेजी का हम पर असर हो गया।
हिंदी का मुश्किल सफ़र हो गया।
देसी घी आजकल बटर हो गया,
चाकू भी आजकल कटर हो गया।
अब मैं आपसे इज़ाज़त चाहती हूँ,
हिंदी की सबसे हिफाज़त चाहती हूँ।।

~ दिविशा तनेजा

Hindi Diwas Kavita – “जीवन की परिभाषा”

जन-जन की भाषा है हिंदी
भारत की आशा है हिंदी…………
जिसने पूरे देश को जोड़े रखा है
वो मजबूत धागा है हिंदी ……………………
हिन्दुस्तान की गौरवगाथा है हिंदी
एकता की अनुपम परम्परा है हिंदी…………
जिसके बिना हिन्द थम जाए
ऐसी जीवनरेखा है हिंदी……………………
जिसने काल को जीत लिया है
ऐसी कालजयी भाषा है हिंदी …………
सरल शब्दों में कहा जाए तो
जीवन की परिभाषा है हिंदी ……………………

~ अभिषेक मिश्र

Hindi Diwas par Kavita – “हिन्दी”

हिन्दी मेरे रोम-रोम में,
हिन्दी में मैं समाई हूँ,
हिन्दी की मैं पूजा करती,
हिन्दोस्तान की जाई हूँ………
सबसे सुन्दर भाषा हिन्दी,
ज्यों दुल्हन के माथे बिन्दी,
सूर, जायसी, तुलसी कवियों की,
सरित-लेखनी से बही हिन्दी……………………
हिन्दी से पहचान हमारी,
बढ़ती इससे शान हमारी,
माँ की कोख से जाना जिसको,
माँ,बहना, सखि-सहेली हिन्दी……………
निज भाषा पर गर्व जो करते,
छू लेते आसमाँ न डरते,
शत-शत प्रणाम सब उनको करते,
स्वाभिमान…..अभिमान है हिन्दी…………..
हिन्दी मेरे रोम-रोम में,
हिन्दी में मैं समाई हूँ,
हिन्दी की मैं पूजा करती,
हिन्दोस्तान की जाई हूँ…………

~ सुधा गोयल

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मराठा साम्राज्य के वीर योद्धा “तानाजी मालुसरे”| Tanaji Malusare

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Tanaji Malusare – तानाजी मालुसरे मराठा साम्राज्य में एक सैन्य नेता थे। वह एक बहादुर और प्रसिद्ध मराठा योद्धाओं में से एक है और एक ऐसा नाम है जो वीरता और वीरता का प्रतिक बन गया है। तानाजी ने छत्रपति शिवाजी महाराज के एक आजीवन साथी और दोस्त थे उन्होंने साथ कई विभिन्न युद्धों में लड़े। वह सबसे प्रसिद्ध 1670 ई.पू. में सिंहगढ़ की लड़ाई में उनकी भूमिका के लिए जाने जाते है।

मराठा साम्राज्य के वीर योद्धा “तानाजी मालुसरे” – Tanaji Malusare

Tanaji Malusare

सिंहगढ़ की लड़ाई – Sinhagad War

तानाजी जो कोंकण महाड के पास “उमरथे” से हैं। शिवाजी के कोंडाणा को पुनर्प्रेषित करने की योजना पर सुनवाई पर, तानाजी ने अभियान का प्रभार संभाला। कोंडाणा का किला बहुत ही रणनीतिक स्थान पर स्थित था और शिवाजी को इसे कब्जा करने के लिए बहुत महत्वपूर्ण था।

कोंडाणा तक पहुंचने पर, तानाजी और 300 सैनिकों की उनकी टुकड़ी ने पश्चिमी भाग से किले को एक घने रात को तानाजी ने घोरपड़ नामक एक सरीसृप की मदद से खड़ी चट्टान को मापने का फैसला किया। घोरपड़ किसी भी सतह पर खड़ी कर सकते हैं और कई पुरुषों का वजन इसके साथ बंधा रस्सी की मदद से ले सकता है। उसकी मदत से तानाजी और उनके 300 साथी लोग चुपचाप चढ़ गए। कोंडाणा का कल्याण दरवाजा खोलने के बाद मुग़लों पर हमला किया।

किला उदयभान राठोड – Udaybhan Rathod द्वारा नियंत्रित किया गया था, जो राजकुमार जय सिंह द्वारा नियुक्त किया गया था। उदय भान के नेतृत्व में 5000 मुग़ल सैनिकों ने किले की रक्षा की थी।

तानाजी और उदयभान की ताकतों के बीच एक भयंकर युद्ध हुआ। तानाजी एक बहादुर शेर की तरह लड़ाई लड़ीं। युद्ध के दौरान तानाजी ने अपनी ढाल तोड़ दी, लेकिन उदयभान के चलने पर वार करने के लिए अपने हाथ की रक्षा के ऊपर अपना ऊपरी कपड़ा पहनकर लड़ना जारी रखा। इस किले को अंततः जीत लिया गया था, लेकिन इस प्रक्रिया में, तानाजी गंभीर रूप से घायल हो गए थे और युद्ध के मैदान पर अपनी जिंदगी को छोड़ दिया था।

तानाजी के निधन पर, छत्रपति शिवाजी महाराज को बहुत दुःख हुआ और उन्होनें तानाजी के सम्मान में सिंहगढ़ किले – Sinhagad Fort के रूप में कोंडाणा किले – Kondana Fort का नाम बदलकर ‘सिन्हा’ (शेर) रखा था।

उन्होंने मराठी में कहा,

“गड आला पण सिंह गेला” (“किला आ गया है, लेकिन शेर चला गया”)

तानाजी मालुसरे ने अपना जीवन खो दिया लेकिन मराठों की जीत सुनिश्चित की। ऐसे वीर योद्धा को कोटि कोटि प्रणाम।

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मस्तानी के प्यार में बना “मस्तानी महल” | Mastani Mahal

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बाजीराव पेशवा का नाम आते ही तो हर किसी को मस्तानी का भी नाम की याद आता हैं। उन्होंने मस्तानी से बहुत प्यार किया। इसलिए शनिवार वाडे के बगल में बाजीराव ने मस्तानी के लिए इ. स. 1734 महल बनाया था जिसे मस्तानी महल – Mastani Mahal का नाम दिया गया।

Mastani Mahal

मस्तानी के प्यार में बना “मस्तानी महल” – Mastani Mahal

इ. स. 1728 में मुग़ल सूबेदार मुहम्मद खान बंगाश ने बुंदेलखंड पर हमला कर दिया बंगाश की ताकद को देखते हुए महाराजा छत्रसाल ने एक गुप्त सन्देश भेजकर बाजीराव से मदत मांगी सन्देश मिलते ही बाजीराव अपने मराठा सैन्यो के साथ बुंदेलखंड पहुंचकर छत्रसाल की सेना के साथ मिलकर मुहम्मद खान बंगाश की सेना को मुह तोड़ जवाब दिया और उसमें छत्रसाल की जीत हुयी।

महाराजा छत्रसाल ने अपने राज्य के तीन तुकडे कर एक हिस्सा बाजीराव को भेट स्वरुप दिया इसमें झाँसी, सागर और कालपी का भी समावेश था। राज्य देने के साथ साथ महाराजा ने अपनी बेटी मस्तानी का हाथ भी बाजीराव को दे दिया।

लेकिन इतिहासकारों के अनुसार मस्तानी ये छत्रसाल के दरबार की नर्तकी थी। बाजीराव, मस्तानी के प्रेम में पड़ने के बाद उनका मस्तानी से विवाह हुआ। बाजीराव उच्च दर्जे के ब्राह्मण होने की वजह से पुरे ब्राह्मण समुदाय एवं हिन्दुओ ने उनका विरोध किया। साथ ही मस्तानी को बाजीराव की पहली पत्नी काशी बाई और उनके परिवार के अन्य सदस्यों ने कभी स्वीकार नहीं किया।

लेकिन बाजीराव पीछे हटने वालों में से नहीं थे। मस्तानी को खुद के महल में रखना असंभव होने के वहज से और परिवार के विरोध को देखते हुए बाजीराव ने शनिवारवाडा के बगल में मस्तानी के लिए आलिशान एक आईना महल बनवाया था इस महल में हजारों आईने लगे थे। जिसे मस्तानी महल के नाम से जाना जाता हैं। महल के बगल में दिवे घाट पर मस्तानी के नहाने के लिए एक विशेष कुंड भी बनवाया था। और इस महल में मस्तानी के लिए सभी सुविधाए उपलब्ध करवाई थी।

कहा जाता हैं की यह महल उस समय का सबसे सुंदर और आलिशान महल था। मस्तानी महल को बाजीराव मस्तानी के प्यार की निशानी के रूप देखा गया ।

मस्तानी धर्म से मुस्लीम होने के बावजूद कृष्ण को मानने वाली थी। श्रीकुष्ण पर उनकी पूरी भक्ति थी। इसलिए बाजीराव और उनके बेटे का एक नाम कृष्णसिंह रखा जिसे हम शमशेरबहादुर के नाम से जानते हैं जिसका पालन पोषण बाजीराव की पहली पत्नी काशीबाई ने किया और जो आगे चलकर पानीपत के युद्ध में योद्धा रूप में शामिल हुआ।

मस्तानी दरवाज़ा – Mastani Darwaja:

यह दरवाज़ा दक्षिण दिशा की और खुलता है। बाजीराव की पत्नी मस्तानी जब किले से बाहर जाती तो इस दरवाज़े का उपयोग करती थी। इसलिए इसका नाम मस्तानी दरवाज़ा है।

मस्तानी का यह आलिशान महल एक भीषण अग्निकांड में जलकर राख हो गया था कुछ इतिहासकार इसे एक साजिश भी करार देते हैं ।

आज भी मस्तानी महल के अवशेष पुणे शहर के राजा केलकर संग्रहालय में मौजूद हैं।

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आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रवि शंकर | Sri Sri Ravi Shankar

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Sri Sri Ravi Shankar – गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर एक मानवतावादी नेता, आध्यात्मिक शिक्षक और शांति के राजदूत है। तनाव मुक्त और हिंसा मुक्त समाज के उनके दृष्टिकोण ने दुनिया के लाखो लोगो को एकता के सूत्र में बांधा है। अपने कोर्स “दी आर्ट ऑफ़ लिविंग – Art of Living” से ही वे इस संदेश को लोगो तक पहुचाते है।

Sri Sri Ravi Shankar

आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रवि शंकर – Sri Sri Ravi Shankar

Gurudev Sri Sri Ravi Shankar – गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर का जन्म 1956 में दक्षिण भारत में हुआ। चार साल की उम्र से ही उन्होंने भगवद गीता, प्राचीन संस्कृत शास्त्रों को पढना शुरू कर दिया था। वैदिक साहित्य और भौतिक विज्ञान दोनों में ही उन्होंने डिग्री हासिल कर रखी है।

1982 में गुरुदेव ने भारतीय राज्य कर्नाटक के शिमोगा में 10 दिन का मौन व्रत धारण किया। जिसके चलते एक शक्तिशाली तकनीक सुदर्शन क्रिया का भी जन्म हुआ। समय के साथ-साथ सुदर्शनक्रिया उनके कोर्स “आर्ट ऑफ़ लिविंग” का केंद्र बिंदु बन चुकी थी।

पहली संस्था की स्थापना:

गुरुदेव ने आर्ट ऑफ़ लिविंग – Art of Living की स्थापना अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक गैर लाभ, शिक्षात्मक और मानवतावादी संस्था के रूप में की। इसमें कराये जाने वाले शिक्षात्मक और स्व-विकास कार्यक्रमों में चिंता मुक्त होने के बहुत से उपायों के बारे में भी बताया जाता है। और यह अभ्यास किसी एक वर्ण या जाती के लोगो तक ही सिमित नही है बल्कि वैश्विक स्तर पर कोई भी इंसान यह अभ्यास कर सकता है।

1997 में उन्होंने इंटरनेशनल एसोसिएशन फॉर ह्यूमन वैल्यूज (IAHV) की स्थापना टिकाऊ विकास परियोजनाओ समन्वय, मानव मूल्यों का पोषण और आर्ट ऑफ़ लिविंग के कोर्स की शुरुवात करने के लिए की। भारत, अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका में उनकी यह संस्था तेज़ी से विकसित हो रही है और साथ ही ग्रामीण भागो में भी इसे अच्छा प्रतिसाद मिल रहा है और इसी वजह से यह संस्था अब तक कई गांवों तक पहुच चुकी है।

प्रसिद्ध मानवतावादी नेता के अनुसार गुरुदेव के कार्यक्रमों में विविध समस्याओ का सामने करने और उससे बचने की युक्तियो के बारे में भी बताया जाता है। आर्ट ऑफ़ लिविंग कोर्स के माध्यम से आतंकवादी हमलो से बचने के उपाय, प्राकृतिक आपदा से बचने के उपाय और सामाजिक विवादों को दूर करने के उपायों को लोगो तक पहुचाया जाता है। इससे लोगो के शरीर में प्रेरक विचार जाते है और उनका शरीर भी साहित्यिक होने लगता है।

एक अध्यात्मिक शिक्षक गुरुदेव ने योग और ध्यान करने की परंपराओ को पूरी तरह से बदल डाला और 21 वी शताब्दी के के अनुरूप ही उन्होंने योग में भी बदलाव किये। साथ ही व्यक्तिमत्व विकास और सामाजिक विकास के लिए भी गुरुदेव ने बहुत सी तकनीको का निर्माण कर रखा है। जिनमे मुख्य रूप से सुदर्शनक्रिया शामिल है, जिसने लाखो लोगो की सहायता उनकी चिंता को दूर करने और नयी उर्जा को प्राप्त करने में की है।

सुदर्शनक्रिया को करने से लाखो लोग अपने जीवन में शांति की अनुभूति कर सकते है। तक़रीबन 35 सालो में उनके कार्यक्रम और अभियान अबतक 155 देशो के 370 मिलियन लोगो तक पहुच चुके है।

शांति के राजदूत रहते हुए गुरुदेव ने सामाजिक विवादों को और हिंसा को कम कर अहिंसा फ़ैलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। शांतिमय वातावरण ही उनका मुख्य उद्देश्य है। विवादों के समय लोगो को उनमे आशा की किरण नजर आती है। इराक, आइवरी समुद्र तट, कश्मीर और बिहार में शांतिदूत के नाम से भी जाने जाते है।

अपने कार्यक्रमों और भाषणों के माध्यम से वे एक अहिंसावादी मानव समाज का निर्माण करना चाहते है, जहाँ मानवता को सर्वोच्च दर्जा दिया जाना चाहिए। साथ ही वे एक बहु सांस्कृतिक शिक्षा प्रणाली को भी विकसित करना चाहते है और इन सब से परे उनका मुख्य उद्देश्य इस ग्रह पर शांति को विकसित करना ही है।

उनके कार्यो ने दुनियाभर में लाखो लोगो के दिलो को छुआ है। लोग अपना धर्म, राष्ट्र, नाम सबकुछ भूलकर उनके कार्यक्रमों में भाग लेने के लिए ख़ुशी से आते है। “वन वर्ल्ड फॅमिली” नामक अपने संदेश के माध्यम से ही वे भारत में जगह-जगह पर आर्ट ऑफ़ लिविंग के कैंप का आयोजन करते है।

गुरुदेव श्री श्री यूनिवर्सिटी के कुलाधिपति और इंडिया योगा सर्टिफिकेशन कमिटी के गुणवत्ता नियंत्रण समिति के चेयरमैन भी है। साथ ही वे अमरनाथ मंदिर बोर्ड के सदस्य (जम्मू एंड कश्मीर के गवर्नर द्वारा नियुक्त) भी है। गुरुदेव कृष्णदेवराय के राज्याभिषेक के 500 वे एनिवर्सरी पर वे रिसेप्शन कमिटी के चेयरमैन (कर्नाटक सरकार द्वारा नियुक्त) थे।

श्री श्री रवि शंकर को मिले हुए अवार्ड्स – Sri Sri Ravi Shankar Awards

  • 2005 में भारत के नयी दिल्ली में भारत शिरोमणि अवार्ड से सम्मानित किया गया।
  • 2006 में मंगोलिया में ऑर्डर ऑफ़ दी पोल स्टार अवार्ड से सम्मानित किया गया।
  • 11 जनवरी 2007 को भारत के पुणे में उन्हें संत श्री ज्ञानेश्वर विश्व शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
  • 2008 में यूनाइटेड स्टेट ऑफ़ अमेरिका के हॉस्टन में सम्माननीय सिटीजनशिप और गुडविल एम्बेसडर बनाकर सम्मानित किया गया।
  • 2008 में यूनाइटेड स्टेट ऑफ़ अमेरिका के एटलांटा में फ़ीनिक्स अवार्ड से सम्मानित किया।
  • 2009 में शंकर का नाम फ़ोर्ब्स मैगज़ीन की शक्तिशामिल भारतीय नेताओ की सूचि में पाँचवे स्थान पर शामिल किया गया था।
  • 10 अक्टूबर 2009 को ड्रेस्डेन जर्मनी में वर्ल्ड कल्चर फोरम द्वारा कल्चर इन बैलेंस अवार्ड से सम्मानित किया गया।
  • 24 जून 2011 को ब्रुसेल्स में क्रेन्स मोंटाना फोरम अवार्ड से सम्मानित किया गया।
  • पैराग्वे में ही 12 सितम्बर 2012 को असुंसिओं शहर का शानदार मेहमान घोषित किया गया।
  • पैराग्वे में 13 सितम्बर 2012 को नेशनल ऑर्डर ऑफ़ मेरीटो दे कॉमुनेरोउस नागरिक अवार्ड से सम्मानित किया गया।
  • परागुयन मुनिसिपलिटी ने 12 सितम्बर 2012 को शानदार नागरिक अवार्ड से सम्मानित किया।
  • 26 अगस्त 2012 को दक्षिण अफ्रीका के शिवनंदा फाउंडेशन ने शिवनंदा वर्ल्ड पीस अवार्ड से सम्मानित किया।
  • जनवरी 2016 में भारत के दुसरे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्म विभुषम से सम्मानित।
  • डॉ. नागेन्द्र सिंह इंटरनेशनल पीस अवार्ड, भारत, नवम्बर 2016
  • पेरू का सर्वोच्च पुरस्कार, “Medalla de la Integracion en el Grado de Gran Oficial (Grand Officer)”
  • कोलंबिया का सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार “Orden de la Democracia Simon Bolivar”
  • ब्राज़ील के रिओ दे जनेइरो राज्य द्वारा सर्वोच्च सम्मान तिराडेंटिस मैडल से सम्मानित किया गया।
  • डॉक्टरेट : Universidad Autónoma de Asunción (पैराग्वे), Buenos Aires University, Argentina; Siglo XXI University Campus, कोर्डोबा, अर्जेंटीना: Nyenrode University, नीदरलैंड : ज्ञानविहार यूनिवर्सिटी, जयपुर, Kuvempu University, भारत

श्री श्री रवि शंकर की किताबे – Sri Sri Ravi Shankar Bbooks

  • बुद्धा : मौन की अभिव्यक्ति
  • 1999 – बी ए विटनेस : दी विजडम ऑफ़ दी उपनिषद्
  • 2000 – गॉड लव्स फन, 138 pp
  • 2001- सेलीब्रेटिंग साइलेंस
  • 2005 – नारद भक्ति सूत्र, 129 pp
  • हिंदुस्तान & इस्लाम, दी कॉमन थ्रेड, 34 pp, 2002
  • सीक्रेट ऑफ़ रिलेशनशिप, अर्क्टोस, 2014
  • पतंजलि योग सूत्र, अर्क्टोस, 2014
  • अष्टवक्र गीता, 2010
  • मैनेजमेंट मंत्रा, अर्क्टोस, 2014
  • क्नो योर चाइल्ड : दी आर्ट ऑफ़ रेजिंग चिल्ड्रेन, अर्क्टोस, 2014

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सेवन हैबिट्स ऑफ़ हाइली इफेक्टिव पीपल | 7 Habits of Highly Effective People

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डॉ. स्टीफन कोवे – Stephen Covey एक अति प्रभावशाली मैनेजमेंट गुरु थे और हमेशा रहेंगे। कोवे के विचारो से हम हमेशा प्रेरित हो सकते है। उनके विचार खुबसूरत होते है। 1990 में प्रकाशित कोवे की सबसे प्रसिद्ध किताब, अति प्रभावशाली लोगो की सात आदतें – 7 Habits of Highly Effective People व्यक्तिगत विकास का जरिया बन चुकी है।

7 Habits of Highly Effective People
सेवन हैबिट्स ऑफ़ हाइली इफेक्टिव पीपल – 7 Habits of Highly Effective People

इनके बताये गए सभी तत्वों का उपयोग हम हमारे जीवन में कर सकते है और यह तत्व केवल ऑफिस, मैनेजमेंट या लीडरशिप तक ही सीमित नही है। बल्कि इस किताब का मुख्य उद्देश्य असल में लोगो की सोच को बदलकर उन्हें प्रभावशाली बनाना है।

‘सेवन हैबिट्स’ प्रेरणादायक और प्रभावशाली विचारो का एक उत्तम मिश्रण है, जिसका उपयोग हर इंसान ने अपने जीवन अवश्य करना चाहिए। इन आदतों का उपयोग आप अपने व्यावसायिक जीवन, घरेलु जीवन और इससे भी परे बहुत सी जगहों पर कर सकते हो।

कोवे ने शिक्षात्मक और प्रभावशाली किताबो की श्रृंखला बना रखी है। जिनमे से सेवन हैबिट्स ऑफ़ हाइली इफेक्टिव पीपल – Seven Habits of Highly Effective People उनकी पहली सबसे प्रसिद्ध और बेस्ट सेलिंग किताब बनी।

आइये अब हम जल्दी से किताब के बारे में जानते है।

आदत 1 – सक्रीय बनिए (प्रोएक्टिव बने):

किसी भी वातावरण को नियंत्रित करने की यह क्षमता है। परिस्थिति के नियंत्रण में रहने की बजाए हमें परिस्थिति को नियंत्रित करना चाहिए। स्व-निर्धारण, चुनाव और निर्णय लेने की क्षमता ही आपकी परिस्थिति और हालत को सकारात्मक रूप में परिवर्तित कर सकती है।

आदत 2 – अंत को ध्यान में रखकर शुरुवात करे:

कोवे इस आदत को व्यक्तिगत लीडरशिप की आदत कहते है, जिनमे हमारा खुद का स्वयं पर नियंत्रण होना चाहिए। हमें हमेशा अपने लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए आगे बढ़ते रहना चाहिए। ध्यान लगाने की इस आदत को विकसित कर हम व्याकुलता से बच सकते है और ज्यादा सक्रीय बन सफलता हासिल कर सकते है।

आदत 3 – प्राथमिक चीजो को महत्त्व दे:

हमें लीडरशिप और मैनेजमेंट के बीच के अंतर को समझना चाहिए। बाहरी दुनिया में लीडरशिप व्यक्तिगत दृष्टिकोण और व्यक्तिगत लीडरशिप के साथ ही शुरू होती है। हमें क्या महत्वपूर्ण है और क्या अति-आवश्यक है इस बारे में भी बात करनी चाहिए। निचे दिए गये आदेशो के अनुसार हमें कामो को प्राथमिकता देनी चाहिए:

1. जरुरी और अति आवश्यक
2. जरुरी और बहुत जरुरी नही
3. जरुरी नही और अति आवश्यक
4. जरुरी नही और बहुत जरुरी भी नही

आदत 4 – हमेशा जीत के बारे में ही सोचे:

जो बहुत जरुरी है क्योकि आपकी उपलब्धि दूसरो के साथ किये गये सहकारी संघर्षो पर निर्भर करती है। लेखक के अनुसार हमें हमेशा जीत के बारे में ही सोचना चाहिए। कभी भी हार-जीत के बारे में सोचकर लडखडाना नही चाहिए।

आदत 5 – पहले दूसरो को समझने की कोशिश करे:

यही आधुनिक दुनिया की सबसे बड़ी कहावत है। कोवे की यह आदत संचार से जुडी हुई है और यह अति प्रभावशाली और शक्तिशाली है। इस आदत को कोवे ने यह कहते हुए वर्णित किया है की, “लिखने से पहले निदान करे।” यह आदत बहुत आसान और सबसे प्रभावशाली है और साथ ही यह सकारात्मक रिश्तो को बनाए रखने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
हमेशा खुले दिमाग से लोगो की बातो को सुनना चाहिए और फिर अपने प्रभावशाली तरीको से अपने विचार को लोगो तक पहुचाने की कोशिश करे। इससे एक सकारात्मक समस्या को सुलझाने वाले वातावरण का निर्माण होंगा।

आदत 6 – ताल-मेल बैठाना:

एक ऐसा तत्व जो हमें बताता है की सम्पूर्ण हमेशा उसके छोटे-छोटे भाग से महान और बड़ा है। इसीलिए हमें हमेशा सम्पूर्ण लक्ष्य को पूरा करने की तरफ ध्यान देना चाहिए। साथ ही प्रदर्शन करते समय हमारे विचार और हमारी क्रिया के बीच ताल-मेल बैठना भी बहुत जरुरी है।

आदत 7 – कुल्हाड़ी को तेज करे:

यह आत्म नवीकरण की आदत है और इसके भीतर ही आपकी सभी दूसरी आदते समावेशित है। इन आदतों का उपयोग कर आप मानसिक और शारीरिक दोनों रूप से विकसित हो सकते हो। कोवे ने खुद को भी चार भागो में विभाजित किया है: आध्यात्म, मानसिकता, शारीरिक और सामाजिक/भावुकता, और इन सभी का समान रूप से विकास होना बहुत जरुरी है।

स्टीफन कोवे की सेवन हैबिट्स किताब में जीवन के नियमो के आसान उपयोग के बारे में बताया गया है। यह सारि आदतें समान रूप से शक्तिशाली और प्रभावशाली है, जिनका उपयोग कर हम सही रास्तो पर चल सकते है। बहुत से लोग कोवे के भाषणों और लेखो से भी प्रेरित होकर इन आदतों को अपनाने लगे है। कोवे के अनुसार यदि आप अपने जीवन में सकारात्मक बदलाव चाहते हो तो आपको अवश्य इन आदतों को अपनाना चाहिए।

इन सातो आदतों को अपनाने से पहले एक बार सेवन हैबिट्स अवश्य पढ़े और फिर इसे अपने जीवन में लागु करने या अपनाने की कोशिश करे।

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गवि गंगाधरेश्वर मंदिर उर्फ़ गविपुरम गुफा मंदिर | Gavi Gangadhareshwara Temple

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Gavi Gangadhareshwara Temple – गवि गंगाधरेश्वर मंदिर उर्फ़ गविपुरम गुफा मंदिर भारतीय पुरातात्विक आर्किटेक्चर का एक उत्तम उदाहरण है, जो भारत के कर्नाटक राज्य के बैंगलोर में स्थित है। यह मंदिर रहस्यमयी पत्थरो की डिस्क के लिए प्रसिद्ध है।

Gavi Gangadhareshwara Temple

गवि गंगाधरेश्वर मंदिर उर्फ़ गविपुरम गुफा मंदिर – Gavi Gangadhareshwara Temple

बेंगलुरु का यह गुफा मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। जिसका निर्माण 16 वी शताब्दी में केम्पे गोवडा ने किया था, जो बेंगलुरु के संस्थापक भी थे। बेंगलुरु के प्राचीनतम मंदिरों में से यह एक है। गवि गंगाधरेश्वर मंदिर का निर्माण केम्पे गोवडा ने रामा राया की कैद से पांच साल बाद रिहा होने की ख़ुशी में करवाया था। अग्निमुर्थी मूर्ति के भीतर दूसरी मूर्तियाँ भी है, जिनमे 2 सिर, सांत हाँथ और तीन पैरो वाली एक मूर्ति भी शामिल है।

कहा जाता है की जो लोग इस मूर्ति की पूजा करते है उन्हें आँखों से संबंधित बीमारियों से छुटकारा मिल सकता है। साथ ही यह मंदिर अखंड स्तम्भ, डमरू, त्रिशूल और विशालकाय आँगन के लिए भी प्रसिद्ध है।

गविपुरम की प्राकृतिक गुफा में बना यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित और अखंड स्तंभों में बना हुआ है। मंदिर के आँगन में बहुत से अखंड स्तम्भ बने हुए है। मंदिर के परिसर में पाए जाने वाले ग्रेनाइट पिल्लर ही आकर्षण का मुख्य कारण है। इन दो पिल्लरो को सूरज और चन्द्रमा का प्रतिक माना जाता है। गुफा मंदिर के अंदरूनी भाग को पत्थरो से सुशोभित किया गया है। इन्हें कुछ इस तरह से बनाया गया है की सूर्यप्रकाश सीधे शिवलिंग पर ही पड़े।

मकर संक्रांति के अवसर पर शाम में हमें एक अद्वितीय घटना के दर्शन होते है जिसमे सूर्यप्रकाश नंदी के दो सींगो के बीच से होकर सीधे गुफा के भीतर स्थापित लिंग पर पड़ता है और सम्पूर्ण मूर्ति को अद्भुत रौशनी से प्रकाशित कर देता है। इस दिन पवित्र और धार्मिक मंत्रो का जाप किया जाता है। कहा जाता है की धार्मिक मंत्रो का जाप कर शिवजी को खुश किया जा सकता है।

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आगा खान पैलेस | Aga Khan Palace Pune

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Aga Khan Palace – आगा खान पैलेस का निर्माण सुल्तान मुहम्मद शाह आगा खान तृतीय ने भारत के पुणे में करवाया था। इसका निर्माण 1892 में हुआ और यह भारतीय इतिहास की विशालकाय इमारतो में से एक है। आगा खान पैलेस एक राजसी ईमारत और भारत के महानतम चमत्कारों में से एक है। इस पैलेस का निर्माण सुल्तान ने चैरिटी के लिए किया था, जहाँ पुणे और उसके आस-पास के क्षेत्रो में रहने वाले गरीबो की सहायता की जाती थी।

Aga Khan Palace

आगा खान पैलेस उर्फ़ गाँधी स्मारक – Aga Khan Palace Pune

एतिहासिक रूप से भी इस पैलेस का बहुत महत्त्व है। भारत छोडो अभियान के समय महात्मा गांधी, उनकी पत्नी कस्तूरबा गांधी और उनके सेक्रेटरी महादेव देसाई को पैलेस में 9 अगस्त 1942 से 6 मई 1944 तक कैद करके रखा गया था। कैद की अवधि के दौरान ही कस्तूरबा गांधी और महादेव देसाई की मृत्यु हो चुकी थी। महल के पास ही में हमें उनकी समाधी भी दिखाई देती है। महात्मा गांधी और कस्तूरबा गांधी के स्मारक चिन्ह भी हमें महल परिसर के पास वाली मुला नदी में दिखाई देते है।

1969 में आगा खान पैलेस को आगा खान चतुर्थ ने गांधीजी और उनके विचारो का सम्मान करते हुए भारतीय लोगो को दान कर दिया था। वर्तमान में यह पैलेस एक गाँधी स्मारक के नाम से भी जाना जाता है, जहाँ उनकी अस्थियो को भी रखा गया है।

1974 में भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी भी पैलेस के दर्शन के लिए आयी थी और उन्होंने पैलेस की देखभाल के लिए हर साल 2,00,000 रुपये देने का भी वादा किया। 1990 तक यही बढ़कर 1 मिलियन हो गयी। इसके बाद भारत की राष्ट्रिय धरोहर को पैसो की कमी की वजह से कुछ सालो तक अनदेखा किया गया। फिर जब 1999 में पुणे स्टेशन के पास महात्मा गांधी के स्टेचू का विरोध किया गया तभी इस राष्ट्रिय धरोहर की परिस्थिति में कुछ सुधार आया।

2003 में आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया (ASI) ने इस जगह को राष्ट्रिय एतिहासिक धरोहर घोषित किया था।

पैलेस से जुडी हुई संगठित गतिविधियाँ:

गाँधी मेमोरियल सोसाइटी हर साल निम्न कार्यक्रमों का आयोजन पैलेस में करती है:

इसके साथ-साथ दशको से यहाँ रोज प्रातःकालीन प्रार्थना का आयोजन समाधी के पास किया जाता है। हर दिन इस प्रार्थना में बहुत से लोग भाग लेते है और साथ ही 2 अक्टूबर के दिन हजारो लोग इस पैलेस को देखने के लिए आते है।

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जय विलास पैलेस, ग्वालियर | Jai Vilas Palace Gwalior

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Jai Vilas Palace – जय विलास महल को जय विलास पैलेस के नाम से भी जाना जाता है। यह 19 वी शताब्दी में भारत के ग्वालियर में बना एक पैलेस है। इसकी स्थापना 1874 में ग्वालियर के महाराजा जयाजिराव सिंदिया ने की थी। आज भी शाही मराठा सिंदिया साम्राज्य के लोग यहाँ रहते है।

Jai Vilas Palace

जय विलास पैलेस, ग्वालियर – Jai Vilas Palace Gwalior

यूरोपियन आर्किटेक्चर के यह एक उत्तम उदाहरण है, जिसे निर्माण सर माइकल फिलोसे ने किया था। पैलेस बहुत सी आर्किटेक्चरल शैलियों का मिश्रण है, जिसकी पहली मंजिल टस्कन, दूसरी इटालियन-डोरिक और तीसरी कोरिंथियन शैली में बनी हुई है।

इतिहास:

इसका निर्माण सदियों पहले 1874 में महाराजा जयाजिराव सिंदिया ने करवाया था। जय विलास पैलेस शाही सिंदिया परिवार के लोगो का घर हुआ करता था। जय विलास पैलेस के कुछ भाग को बाद में राजमाता श्रीमंत विजयराजे सिन्दियाँ ने म्यूजियम में परिवर्तित कर दिया था। यह सब कुछ श्रीमंत जीवाजीराव सिंदिया की याद में किया गया था। इसके बाद डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन, भारत के राष्ट्रपति ने भी एच.एच. महाराजा जीवाजीराव सिंदिया म्यूजियम की स्थापना 12 दिसम्बर 1964 को की थी।

जय विलास पैलेस का क्षेत्रफल 1,240,771 वर्ग फीट में फैला हुआ है और साथ ही यह दरबार हॉल के लिए प्रसिद्ध है। दरबार हॉल को स्वर्ण आभुषण और सोने के पानी से सजाया गया है। साथ ही हॉल में एक विशालकाय झूमर और विशाल कारपेट भी बिछा हुआ है। यह महल 100 फीट लंबा, 50 फीट चौड़ा और 41 फीट ऊँचा भी है।

माना जाता है की दरबार से 8 हाथियों को बर्खास्त कर दिया गया। लेकिन इससे जुड़े कोई पुख्ता सबूत इतिहास में मौजूद नही है।

साथ ही विचित्र वस्तुओ से ही पूरा कमरा भरा हुआ है: जिसमे कट-गिलास फर्नीचर, भरवां बाघ और महिला द्वारा स्विमिंग पूल में चलायी जा रही बोट शामिल है। गुफाओं वाले भोजन कक्ष में भी एक मॉडल रेल्वे को प्रदर्शित किया गया है। जो एक जगह से दूसरी जगह पर भोजन पहुचाने का काम करती है।

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