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नागार्जुन का जीवन परिचय – Nagarjuna Biography In Hindi

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Nagarjuna Biography In Hindi

हिन्दी साहित्य में अपना विशिष्ट स्थान रखने  वाले नागार्जुन प्रगतिवादी विचारधारा वाले एक महान कवि और मशहूर लेखक थे, जिन्हें मुख्य रुप से शून्यवाद के रुप में जाना जाता है।

नागार्जुन का वास्तविक नाम वैद्यनाथ मिश्रा था, जिन्हें उनके चाहने वाले लोग नागार्जुन और जनकवि कहकर संबोधित करते थे।

हिन्दी साहित्य में उन्होंने ”यात्री” और ”नागार्जुन” जैसी महान रचनाओं का संपादन मैथिली भाषा में किया था । नार्गाजुन , हिन्दी और मैथिली भाषा में लिखने वाले  एक ऐसे कवि थे, जिन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से लोगों के अंदर एक नई ऊर्जा का संचार किया और जनचेतना फैलाई । आपको बता दें कि महाकवि नागार्जुन ने अपनी रचनाओं में बेहद सरलता और सरसता के साथ भावनात्मक तरीके से आम जनता के दर्द को बयां किया है , और राजनीति में  बेबाकी से उन्होंने अपनी राय रखी है  । आपको बता दें कि नागार्जुन जी अपनी रचनाओं में सरकार और समाज पर  व्यंगबाण छोड़ने से कभी भी पीछे नहीं हटते थे  ।

इसके अलावा उन्होंने किसानों और मजदूर वर्ग की समस्याओं को गहराई से समझकर अपनी रचनाओं के माध्यम से उनके प्रति भावनात्मक तरीके से संवेदना प्रकट की है ।  आइए जानते हैं प्रगतिवादी विचारधारा के महान लेखक नार्गाजुन के बारे में-

Nagarjun Poet

नागार्जुन का जीवन परिचय – Nagarjuna Biography In Hindi

पूरा नाम     वैद्यनाथ मिश्र

उपनाम   नागार्जुन, यात्री

जन्म          30 जून, 1911, मधुबनी, बिहार

पिता-           गोकुल मिश्रा

पत्नी         अपराजिता देवी

कर्म-क्षेत्र     कवि, लेखक, उपन्यासकार

मुख्य रचनाएँ       ‘बाबा बटेसरनाथ’ (1954 ई.), ‘रतिनाथ की चाची’ (1948 ई.),  ‘दुखमोचन’ (1957 ई.) ,’बलचनमा’ (1952 ई.), ‘ नयी पौध’ (1953 ई.), वरुण के बेटे’ (1957 ई.), आदि

भाषा                  मैथिली, हिंदी, संस्कृत

पुरस्कार-उपाधि          1994 में ‘साहित्य अकादमी फैलोशिप’,               1969 में ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’ ।

नागरिकता  भारतीय

मृत्यु 5 नवंबर, 1998, दरभंगा , बिहार

नागार्जुन का प्रारंभिक जीवन एवं शिक्षा – Nagarjuna Life History

नागार्जुन, बिहार के मधुबनी जिले के एक छोटे से गांव सतलखा में  30 जून साल 1911 में एक मध्यम वर्गीय ब्राह्मण परिवार में वैद्यनाथ मिश्रा के रुप में जन्में थे  । 3 साल की  उम्र में ही नागार्जुन के सिर से मां उमा देवी का साया उठने के बाद उनके पिता गोकुल मिश्रा ने उनका लालन-पालन किया  ।नागार्जुन जी को शुरु से ही संस्कृत, मैथिली, हिन्दी, पाली, आदि भाषाओं का अच्छा ज्ञान था , उन्होंने अपनी महान विचारधारा को बेहद सहजता और सरलता से अपनी रचनाओं में प्रकट किया है । वे हिन्दी साहित्य के विद्धान थे , उन्होंने नागार्जुन और यात्री रचनाओं को मैथिली भाषा में लिखा, इसलिए उनके प्रशंसक उन्हें नागार्जुन और यात्री जैसे उपनाम से पुकारते थे ।

जनकवि नागार्जुन ने अपनी शुरुआती शिक्षा अपने गांव से ली और फिर वे शिक्षा ग्रहण करने वाराणसी चले गए  । इसके बाद कोलकाता से उन्होंने अपना बाकी का ज्ञान अर्जित किया । कुछ समय के लिए उन्होंने एक टीचर के तौर पर भी काम किया ।

इस दौरान वे आर्य समाज के विचारों से काफी प्रभावित हुए  फिर उनका झुकाव बौद्ध धर्म की तरफ हुआ और उनके मन में इस धर्म के प्रति और अधिक जानने की उत्तेजना प्रवाहित हुई , जिसके बाद वे बौद्ध धर्म ग्रंथ के बारे में जानने एवं संस्कृत के ग्रंथों और दार्शनिक व्याख्यानों के लिए श्री लंका चले गए , जहां पर कवि नागार्जुन ने ”विद्यालंकार परिवेण” से बौद्ध धर्म की शिक्षा ग्रहण की और फिर बाद में उन्होंने बौद्ध धर्म को अपना लिया ।

बौद्ध धर्म के दर्शन के साथ नागार्जुन जी का ध्यान राजनीति की तरफ भी गया, दरअसल उस समय गुलाम भारत की आजादी के लिए स्वतंत्रता संग्राम चल रहा था । जिसका उन पर काफी प्रभाव पड़ा था और फिर वे राजनीतिक कार्यक्रमों में शरीक होने लगे । नागार्जुन ने बिहार के किसान आंदोलन में हिस्सा लिया इसके अलावा उन्होंने चंपारण के किसानों के सशस्त्र विद्रोह का भी समर्थन किया था । वे  अपनी रचनाओं के माध्यम से फायदे की राजनीति में तीखे प्रहार तो करते ही थे , साथ ही सक्रिय  आंदोलन में भी हिस्सा लेते थे । इस दौरान उन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा था ।

एक महान लेखक के रुप में नागार्जुन

नागार्जुन , हिन्दी साहित्य के सुविख्यात कवियों में से एक थे । जिन्होंने अपनी दूरदर्शी सोच और जीवन के कठोर संघर्षों एवं अपनी कल्पना के आधार पर कई रचनाओं को लिखा । हिन्दी और मैथिली भाषा का इस्तेमाल कर बेहद सरल भाषा में उन्होंने अपनी रचनाओं में भावनात्मक तरीके से किसानों की समस्या को उजागर किया और दलित पीड़ितों के प्रति वेदना प्रकट की । यही नहीं कवि ने कई अमानवीय, असामाजिक कृत करने वालों के खिलाफ अपनी रचनाओं के माध्यम से व्यंग भी कसे हैं । साथ ही समाज में फैली बुराइयों और शोषण के खिलाफ अपनी रचनाओं से आवाज उठाई है । नागार्जुन की विशिष्ट कृतियों की वजह से ही हिन्दी साहित्य में उन्हें एक अलग पहचान मिली है ।

नागार्जुन की काव्यगत विशेषताएं

हिन्दी साहित्य के महान कवि नागार्जुन की काव्यगत विशेषताओं के बारे में हम आपको नीचे बता रहे हैं –

  • महाकवि नागार्जुन हिन्दी और मैथिली दोनों भाषाओं में लिखते हैं , उनकी सरल और सहज भाषा शैली पाठकों को उनकी रचनाओं से शुरु से अंत तक बांधे रखती हैं ।
  • प्रगतिवादी विचारधारा के महान कवि नागार्जुन ने अपनी कृतियों में बेहद शानदार तरीके से रुपक, उपमा, अतिश्योक्ति एवं अनुप्रास अलंकारों का प्रयोग किया है ।
  • कवि नागार्जुन ने अपनी रचनाओं के माध्यम से सरकार और समाज पर व्यंग भी कसे हैं ।

नागार्जुन जी की प्रसिद्ध रचनाएं

कविता-संग्रह

  • युगधारा
  • प्यासी पथराई आँखें
  • तुमने कहा था
  • खिचड़ी विप्लव देखा हमने
  • हजार-हजार बाँहों वाली
  • तालाब की मछलियाँ
  • इस गुब्बारे की छाया में
  • आखिर ऐसा क्या कह दिया मैंने
  • पुरानी जूतियों का कोरस
  • सतरंगे पंखों वाली
  • रत्नगर्भ
  • भूल जाओ पुराने सपने
  • ऐसे भी हम क्या! ऐसे भी तुम क्या
  • अपने खेत में

नागार्जुन जी के उपन्यास-

  • रतिनाथ की चाची
  • उग्रतारा
  • बलचनमा
  • नयी पौध
  • पारो
  • कुंभीपाक -1960 (1972 में ‘चम्पा’ नाम से भी प्रकाशित)
  • बाबा बटेसरनाथ
  • आसमान में चाँद तारे
  • वरुण के बेटे
  • दुखमोचन
  • जमनिया का बाबा – 1968 (उसी वर्ष ‘इमरतिया’ नाम से भी प्रकाशित)
  • हीरक जयन्ती -1962(1979 में ‘अभिनन्दन’ नाम से भी प्रकाशित)
  • गरीबदास -1990 (1979 में लिखित)

प्रबंध काव्य-

  • भस्मांकुर
  • भूमिजा

व्यंग्य-

  • अभिनंदन

संस्मरण-

  • एक व्यक्ति: एक युग

नागार्जुन जी का निबंध संग्रह-

  • अन्न हीनम क्रियानाम
  • बम्भोलेनाथ

नागार्जुन जी का बाल साहित्य –

  • कथा मंजरी भाग-1
  • कथा मंजरी भाग-2
  • मर्यादा पुरुषोत्तम
  • विद्यापति की कहानियाँ

नागार्जुन जी की मैथिली रचनाएँ-

  • चित्रा ,
  • पत्रहीन नग्न गाछ (कविता-संग्रह),
  • पारो
  • पका है यह कटहल
  • नवतुरिया (उपन्यास)।

नागार्जुन जी की बांग्ला रचनाएँ-

  • मैं मिलिट्री का बूढ़ा घोड़ा (हिन्दी अनुवाद)
  • संचयन एवं समग्र-
  • ऐसा क्या कह दिया मैंने- नागार्जुन रचना संचयन

सम्मान और पुरस्कार

नागार्जुन को साहित्य में उनके द्धारा दिए गए महत्वपूर्ण योगदान के लिए कई पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया । साल 1969 में उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया  और साल 1994 में नागार्जुन जी को साहित्य अकादमी फैलोशिप की उपाधि देकर  सम्मानित भी किया गया था ।

मृत्यु

हिन्दी साहित्य के महान लेखक 5 नवंबर,1998 को यह दुनिया छोड़कर चल बसे । लेकिन वे अपनी कृतियों के माध्यम से आज भी हमारे दिल में जिंदा हैं , हिन्दी साहित्य में उनके योगदान को कभी नहीं भुलाया जा सकता ।

 

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भारत में प्रसिद्ध पर्यटन स्थल | Famous Tourist Places in India

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भारत दुनिया का सातवां सबसे बड़ा देश है जो हिमालय के उच्च पहाड़ों से लेकर केरल की उष्णकटिबंधीय हरियाली तक और पवित्र गंगा से थार रेगिस्तान की रेत तक फैला है। इसकी निवासियों को दो हज़ार जातीय समूहों में विभाजित किया गया है और यहाँ 200 से अधिक विभिन्न भाषाये बोली जाती हैं। भारत हमेशा सबसे अच्छा छुट्टी पर्यटन की सूची में है। भारत में बहुत से प्रसिध्द पर्यटन स्थल हैं – Famous Tourist Places in India जिस के वजह से भारत को एक अलग ही पहचान मिली हैं।

famous tourist places in india

भारत में प्रसिद्ध पर्यटन स्थल – Famous Tourist Places in India

भारत के अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन को बड़े और विविध रूप से अपील करता है आइए हम भारत में सबसे ज्यादा जाने वाले स्थानों पर नजर डालें, जहां दुनिया भर के लोग एक विदेशी छुट्टी बिताने के लिए जाते हैं ।

Taj Mahal – ताज महल

ताजमहल भारत के आगरा शहर में यमुना नदी के दक्षिण तट पर एक संगमरमर का मकबरा है। आगरा का ताज महल दुनिया की सबसे प्रसिद्ध इमारतों में से एक है, शाहजहां की पसंदीदा पत्नी मुमताज महल का मकबरा हैं। मुमताज महल यह दुनिया के नए सात आश्चर्यों में से एक है और आगरा में तीन विश्व धरोहर स्थलों में से एक है।

1653 में, ताज महल का निर्माण मुगल राजा शाहजहां द्वारा किया गया था, शाहजहां जहां उनकी प्यारी पत्नी मुमताज महल के लिए अंतिम विश्राम स्थान था। इस स्मारक को बनाने के लिए 22 वर्षों (1630-1652) कठिन परिश्रम और 20,000 श्रमिकों और जौहरी लगे। Read More: ताजमहल का इतिहास – The Taj Mahal History

Amer Fort – आमेर किला

आमेर किला एक किला है जो कि आमेर, राजस्थान, भारत में स्थित है। आमेर, राजस्थान की राजधानी जयपुर से 11 किलोमीटर दूर स्थित है। आमेर किला 1592 में महाराज मन सिंह द्वारा गढ़वाले महल के रूप में बनाया गया था। यह किला एक पहाड़ी पर उच्च स्थित है, यह जयपुर क्षेत्र में प्रमुख पर्यटक आकर्षण है। जयपुर “द पिंक सिटी” विदेशी पर्यटकों के बीच प्रसिद्ध है। यह सबसे पुराने किले में से एक है। Read More: आमेर के किल्ले का इतिहास – History Of Amer Fort 

Hawa Mahal – हवा महल

राजस्थान के शाही राजपूतों के महान स्मारक, हवा महल पैलेस ऑफ विंड्स गुलाबी शहर और राजस्थान, जयपुर की राजधानी के केंद्र में स्थित है। पिरामिड आकार का पांच मंजिला महल महाराजा सवाई प्रताप सिंह द्वारा लाल और गुलाबी बलुआ पत्थर द्वारा शाही परिवारों की महिलाओं के लिए बनाया गया है। हवा महल जयपुर का एक प्रमुख पर्यटक आकर्षण है और साथ ही शाही राज्य राजस्थान में भी है। Read More: जयपुर के हवा महल का इतिहास – Jaipur Hawa Mahal History  

Qutub Minar – कुतुब मीनार

कुतुब-मीनार भारत का सबसे ऊंचा टॉवर है और भारत में दूसरा सबसे बड़ा मीनार है। यह भारत की राजधानी दिल्ली में स्थित है। कुतुब मीनार का व्यास आधार पर 14.32 मीटर और लगभग 2.75 मीटर और 72.5 मीटर की ऊँचाई के साथ शीर्ष पर है। यह स्मारक प्रसिद्ध पर्यटक स्थलों में से एक है और कई विदेशी इस अविश्वसनीय संरचना की यात्रा करने के लिए दिल्ली आए हैं। Read More: क़ुतुब मीनार का इतिहास – Qutub Minar History

Golden Temple – स्वर्ण मंदिर

श्री हरमंदिर साहिब, जिसे दरबार साहिब के नाम से भी जाना जाता है, जिसे स्वर्ण मंदिर के रूप में जाना जाता है, सिख धर्म का सबसे पवित्र गुरुद्वारा, अमृतसर, पंजाब, भारत में स्थित है। अमृतसर की स्थापना 1577 में चौथी सिख गुरु, गुरु राम दास ने की थी।

Humayun’s Tomb – हुमायूँ का मकबरा

हुमायूं की कब्र भारत में मुगल सम्राट हुमायूं की कब्र है। कब्र को हुमायूं की पहली पत्नी और प्रमुख पत्नी, एम्प्रेस बेगा बेगम द्वारा 1569-70 में बनवाया था, और उनके द्वारा चुना फारसी वास्तुकार मिरक मिर्जा घायस द्वारा डिजाइन किया गया था। दिल्ली के हुमायूं का मकबरे भारत के पुरातात्विक सर्वेक्षण द्वारा संचालित है और फारसी वास्तुकला का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। कब्र भारतीय उपमहाद्वीप पर पहली बाग-कब्र थी। Read More: हुमायूँ के मकबरे इतिहास – Humayun Tomb History

Jama Masjid, Delhi – जामा मस्जिद, दिल्ली

मस्जिद-इश्ह्न-नुआ, जिसे आमतौर पर दिल्ली की जामा मस्जिद कहा जाता है, भारत में सबसे बड़ी मस्जिदों में से एक है। Read More: दिल्ली जामा मस्जिद का इतिहास – Jama Masjid Delhi History

Mehrangarh Fort- मेहरानगढ़ किला

मेहरानगढ़ किला जोधपुर, राजस्थान में स्थित है। यह भारत में सबसे बड़ा किलों और प्रसिद्ध विदेशी पर्यटन स्थल है। राजस्थान का किला राव जोधा द्वारा 1460 के आसपास निर्मित शहर से 400 फीट ऊपर है और मोटी दीवार से घिरा हुआ है, जो एक दुश्मन से सुरक्षात्मक ढाल थी। Read More: मेहरानगढ़ किले का इतिहास – Mehrangarh Fort History

India Gate  – इंडिया गेट

इंडिया गेट, एक युद्ध स्मारक है, जो राजपथ की अगुवाई में स्थित है, नई दिल्ली के भारत के ‘औपचारिक अक्ष’ के पूर्वी किनारे पर, जिसे पूर्व में किंग्सवे कहा जाता है। राजपथ में इंडिया गेट युद्ध स्मारक दिल्ली का एक विशिष्ट स्थल है और भारत में एक महत्वपूर्ण स्थान है। स्मारक भारत के सबसे आश्चर्यजनक ऐतिहासिक स्मारक हैं, जिन्हें सर एडविन ल्यूतिन द्वारा डिजाइन किया गया है। Read More: इंडिया गेट का इतिहास – India Gate History

Agra Fort – आगरा किला

आगरा का किला भारत में आगरा शहर में एक ऐतिहासिक किला है। यह 1638 तक मुगल वंश के सम्राटों का मुख्य निवास था, जब राजधानी को आगरा से दिल्ली स्थानांतरित कर दिया गया था। आगरा किला यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल है। Read More: आगरा के किले का इतिहास – Agra fort history

दिल्ली – delhi

वैसे तो पूरी दिल्ली ही खास है लेकिन भारत की राजधानी होने की वजह से यहां का रौनक कुछ अलग ही है। यहां पर घूमने के लिए बहुत कुछ है ।दिल्ली का चाहे दिन हो चाहे रात दिल्ली हर वक्त निराला लगता है। इंडिया गेट से लेकर चांदनी चौक तक आप तो यहां की गलियों में हर वक्त रौनक मिल जाएगी। नवीन जीवन शैली के साथ पुरातन का यहां पर अद्भुत संगम मिलता है।

यहां पर कुछ किले और इमारत 1000 वर्ष से भी ज्यादा पुराने हैं। इस प्रकार इस का ऐतिहासिक महत्व भी बढ़ जाता है। यहां पर घूमने वाले कुछ महत्वपूर्ण स्थान निम्नलिखित हैं।

  1. लोटस टेंपल
  2. कुतुब मीनार
  3. राष्ट्रपति भवन।
  4. कालकाजी मंदिर
  5. लोधी गार्डन
  6. हरे कृष्ण मंदिर
  7. गुरुद्वारा बंगला साहिब
  8. तीन मूर्ति भवन
  9. कैथ्रेडल चर्च
  10. इंडिया गेट
  11. कनॉट प्लेस
  12. अक्षरधाम मंदिर
  13. चांदनी चौक
  14. जंतर मंतर
  15. चिड़ियाघर

दिल्ली कैसे पहुंचे – how to reach delhi

वैसे तो दिल्ली भारत के हर छोटे.बड़े शहरों से रेल मार्गों द्वारा जुड़ा हुआ है। लेकिन फिर भी यहां पर घरेलू तथा अंतरराष्ट्रीय विमान की सेवाएं हैं। बसों द्वारा भी यह भारत के प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है। यहां पर अंतरराज्यीय बसों की सेवाएं चालू है। यहां के एयरपोर्ट का नाम इंदिरा गांधी इंटरनेशनल एयरपोर्ट है।

  1. आगरा – agra

आगरा उत्तर प्रदेश का एक प्रमुख और बहुत पुराना शहर है।आगरा का इतिहास काफी पुराना है। किसी समय में यह मुगलों का गढ़ रहा है। ताजमहल की खूबसूरती से लेकर यमुना नदी के किनारे बसे ऐतिहासिक इमारतों के लिए आगरा का नाम इतिहास के पन्नों में स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है।

यहां की इमारतें मुगलकालीन वास्तुकला का बेहतरीन नमूना पेश करती है। यहां की वास्तुकला की झलकियां यहां पर आने वाले पर्यटकों का मन मोह लेती है। यह अपनी संस्कृति और इस्लाम की कला का बेहतरीन नमूना पेश करती है।

ताजमहल का दीदार चांदनी रात में हर एक पर्यटक करना चाहता है। यहां पर साल भर प्रेमी जोड़ों का तांता लगा रहता है इसका एक कारण यह भी है ताजमहल पूरी दुनिया में प्रेम की निशानी से मशहूर है। यहां पर प्रमुख घूमने वाले स्थान निम्नलिखित हैं।

  1. ताजमहल
  2. शाहजहां का किला
  3. गुरु का ताल
  4. मेहताब किला
  5. जामा मस्जिद
  6. सिकंदरा मकबरा
  7. एत्माद्दौला स्मारक

आगरा कैसे पहुंचे – how to reach agra

आगरा भारत के हर बड़े शहरों से रेलवे मार्गों द्वारा जुड़ा हुआ है। यह ग्वालियरए इलाहाबादएझांसीए मथुराए दिल्ली जैसे शहरों से सीधी रेल मार्गों द्वारा जुड़ा हुआ है इसके अलावा आगरा में एक अंतरराज्यीय बस अड्डा भी है जहां पर भारत के विभिन्न राज्यों से बसों का परिवहन होता है।

  1. अमृतसर – amritsar

अमृतसर पंजाब राज्य में बसा हुआ एक प्रमुख शहर है। यह गोल्डन टेंपल के लिए मशहूर है। अमृतसर से कुछ ही दूरी पर जलियांवाला बाग स्थित है। इस जगह का स्वतन्त्रता के इतिहास में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। यह सिक्खों का एक महत्वपूर्ण स्थल है।

यहां पर देश विदेश से आने वाले पर्यटकों का वर्षभर भीड़ जमा रहता है। यहां पर भारतीय पर्यटक मुख्य रूप से स्वर्ण मंदिर और बाघा बॉर्डर को देखने आते हैं। अगर आप अमृतसर घूमने जाएं तो बाघा बॉर्डर और जलियांवाला बाग जरूर देखें।

यह शहर रात में भी बहुत खूबसूरत प्रतीत होता है। वैसे तो अमृतसर किसी भी मौसम में घूमा जा सकता है लेकिन सितंबर से लेकर फरवरी तक घूमने के लिए उत्तम होता है। अमृतसर में घूमने वाले महत्वपूर्ण स्थान निम्नलिखित है।

  1. स्वर्ण मंदिर
  2. बाघा बॉर्डर
  3. जलियांवाला बाग
  4. दुर्गियाना मंदिर
  5. महाराणा रणजीत सिंह म्यूजियम
  6. बाबा अटल गुरुद्वारा
  7. रामतीर्थ

अमृतसर कैसे पहुंचे – how to reach amritsar

अमृतसर भारत के विभिन्न शहरों से रेलवे रेल मार्गों से जुड़ा है। इसके अलावा यहां पर एक अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा भी है। दिल्ली जैसे शहरों से या सड़क मार्ग द्वारा भी जुड़ा है। यहां पर घरेलू तथा अंतरराष्ट्रीय दोनों प्रकार की विमान सुविधाएं उपलब्ध है।

  1. जयपुर – jaipur

जयपुर राजस्थान का एक प्रमुख शहर है। साथ में ही है राजस्थान की राजधानी भी है।जयपुर का दूसरा नाम गुलाबी शहर है। यह शहर भी ऐतिहासिक धरोहर की मिसाल पेश करता है। इतिहास के पन्नों में इस शहर का नाम स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है।

राजस्थान की संस्कृति और राजपूताना सभ्यता के दर्शन यहां हो जाते हैं। यह महाराजा सवाई सिंह द्वितीय का बसाया हुआ शहर है। शाही राजपूत की विरासत को प्रदर्शित करता यह शहर अद्वितीय लगता है। पारंपरिक त्यौहार एवं अन्य कलाओं के लिए यह शहर मशहूर है। जयपुर में घूमने के लिए निम्नलिखित स्थानों को जाया जा सकता है

  1. आमेर का किला
  2. जयगढ़ का किला
  3. सिटी पैलेस
  4. हवा महल
  5. जल महल
  6. जंतर मंतर
  7. अल्बर्ट हॉल
  8. गोविंद देव जी मंदिर
  9. सिसोदिया रानी महल
  10. जगत शिरोमणि मंदिर
  11. नाहरगढ़ का किला

जयपुर कैसे पहुंचे – how to reach jaipur

जयपुर भारत के प्रमुख शहर से रेलवे रेल मार्ग बड़ा जुड़ा हुआ है या अहमदाबादए दिल्लीए खुजराहोए मथुराए चंडीगढ़ए इलाहाबादए मुंबईए इत्यादि शहरों से सीधा रेल मार्ग द्वारा जुड़ा हुआ है। इसके अलावा यहां पर अंतरराष्ट्रीय तथा घरेलू दोनों प्रकार की विमान सेवाएं उपलब्ध है। इसके साथ ही यह सड़क मार्ग द्वारा भारत के हर प्रमुख शहर  से जुड़ा है।

  1. 5. मुंबई – mumbai

अगर जिंदगी का तेज रंग और रौनक देखनी हो तो हमें भारत का सबसे बड़ा शहर मुंबई जरूर देखना चाहिए। मुंबई के बारे में एक बात प्रसिद्ध है कि या शहर कभी सोता नहीं है। यह भारत का फिल्म सिटी होने के साथ.साथ भारत का गेटवे भी है। वैसे तो मुंबई 1 या 2 दिन में तो नहीं घूमा जा सकता।

इसके लिए पर्याप्त समय चाहिए। यहां पर घूमने के लिए बहुत कुछ है लेकिन हम यहां पर आपको यहां पर घूमने लायक कुछ महत्वपूर्ण स्थलों की सूची उपलब्ध करवा रहे हैं। यहां पर घूमने लायक स्थान निम्नलिखित हैं।

  1. गेटवे आफ इंडिया
  2. हाजी अली दरगाह
  3. ताज होटल
  4. जुहू बीच
  5. फ़िल्म सिटी
  6. मरीन ड्राइव
  7. चौपाटी विच
  8. सिद्धिविनायक मंदिर
  9. संजय गांधी नेशनल पार्क
  10. मडआईलैंड

मुंबई घूमने कैसे जाएं – how to reach mumbai

यदि आप भारत में किसी भी शहर में हैं तो मुंबई जाना बहुत ही आसान है मुंबई भारत के लगभग हर शहर से रेलवे रेल मार्ग से सीधा जुड़ा हुआ है। इसके अलावा यहां पर घरेलू तथा अंतरराष्ट्रीय दोनों प्रकार की विमान सेवाएं उपलब्ध है।

यह विश्व के लगभग हर देशों से विमान मार्ग द्वारा जुड़ा हुआ है। इसके अलावा सड़क मार्गों द्वारा भारत के प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है।

  1. 6. कोलकाता –

एक समय कोलकाता भारत की राजधानी हुआ करता था। यह भारत के चार प्रमुख महानगरों में एक है। यह शहर भारत के पश्चिम बंगाल राज्य में स्थित है। भारत का एक प्रमुख नगर होने के साथ पश्चिम बंगाल की राजधानी भी है। यह शहर हुगली नदी के किनारे स्थित है। तथा पर्यटन का एक महत्वपूर्ण केंद्र भी है।

1690 तक यह शहर एक छोटा सा गांव था। लेकिन यहां पर ईस्ट इंडिया कंपनी के निर्माण के बाद यह शहर उन्नति के मार्ग पर चल पड़ा आज इस शहर की रौनक ही कुछ अलग है।

वैसे तो कोलकाता में घूमने के लिए बहुत कुछ है लेकिन हम आपको कुछ महत्वपूर्ण स्थानों के बारे में बता रहे हैं जहां पर घूमने जाया जा सकता है कोलकाता में घूमने वाले प्रमुख स्थान निम्नलिखित है।

  1. हावड़ा ब्रिज
  2. विक्टोरिया मेमोरियल
  3. शहीद मीनार
  4. ईडेन गार्डन
  5. साइंस सिटी
  6. चिड़ियाघर
  7. बेलूर मठ
  8. रविन्द्र सरोवर
  9. मार्बल पैलेस
  10. निक्को पार्क
  11. तैरता संग्रहालय

कोलकाता कैसे जाएं –

रेल मार्ग कोलकाता को भारत के लगभग सभी राज्य के प्रमुख नगरों से जोड़ता है। ट्रेन में बैठ कर भारत के किसी भी शहर से कोलकाता पहुंचा जा सकता है। यहां पर घरेलू तथा अंतरराष्ट्रीय दोनों प्रकार की विमान सेवाएं भी उपलब्ध हैं।

इसके साथ ही आसपास के कुछ शहरों से यहां पर बस सेवाएं भी चालू है।

दार्जिलिंग

दार्जिलिंग पश्चिम बंगाल में बसा हुआ एक प्रमुख शहर है या भारत का हिल स्टेशन भी है यहां पर चाय की पैदावार बहुत अच्छी होती है या किसी भी मौसम में बहुत खूबसूरत लगता है पहाड़ों से हरी.भरी वादियां पर्यटकों का मन मोह लेती है यदि शहर की भागदौड़ भरी जिंदगी से आप तंग आ गए हो तो आप एक बार दार्जिलिंग जरूर आएं यहां पर आने के बाद अत्यंत शांति की अनुभूति होती है।

गर्मियों में दार्जिलिंग घूमना मानो जन्नत सा प्रतीत होता है। गर्मियों के मौसम में यहां पर सैलानियों की भीड़ जमा हो कर रखती है। दार्जिलिंग में घूमने वाले स्थान निम्नलिखित हैं।

कंचनजंगा

दार्जिलिंग

हिमालयन रेलवे

टाइगर हिल

हैप्पी वैली टी बगीचा

केबल तार

7ण्टॉय ट्रेन

 

दार्जलिंग घूमने के लिए कैसे पहुंचे.

 

सिलीगुड़ी दार्जिलिंग से सबसे नजदीकी हवाई अड्डा है। यह दार्जिलिंग से लगभग 90 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है बस का सफर तय करके दार्जिलिंग से सिलीगुड़ी 2 घंटे में पहुंचा जा सकता है। इसके बाद वहां से विमान द्वारा भारत के प्रमुख शहरों से जुड़ा जा सकता है।

 

  1. 8. हिमाचल प्रदेश।

 

हिमाचल प्रदेश भारत के उत्तरी ओर स्थित है। हिमाचल प्रदेश के उत्तर में कश्मीर की सीमा लगती है तथा दक्षिण में पंजाब स्थित है। गर्मियों के दिनों में यहां पर घूमने आने वाले सैलानियों की भीड़ लगी रहती है ।बर्फ से सजे खूबसूरत पहाड़ पर्यटकों का ध्यान आकर्षित करते हैं ।हिमाचल की राजधानी शिमला है। जोकि सर्दियों के मौसम में जन्नत का एहसास करवाती है इसके अलावा यहां पर कुल्लू मनाली कांगड़ा चंबा इत्यादि शहर घूमने के लिए बाहर से पर्यटक आते हैं। वैसे तो यहां पर आने वाले ज्यादातर पर्यटक  गर्मियों में आते हैं।परंतु सर्दियों के मौसम में भी हिमाचल प्रदेश घूमा जा सकता है।हिमाचल प्रदेश में घूमने वाले प्रमुख स्थान निम्नलिखित हैं.

 

1ण्कुल्लू मनाली

2ण्प्रागपुर

3ण्कांगड़ा देवी

4ण्ज्वाला देवी

5ण्चंबा की पहाड़ी

6ण्बरोत

7ण्माने

8ण्धर्मपुर

9ण्फागु

10ण्चितपुर

11ण्धर्मशाला

12ण्लाला लाजपत राय रोड

 

हिमाचल प्रदेश कैसे पहुंचेघ्

 

शिमला से नजदीकी रेलवे स्टेशन कालका है। जो कि भारत के विभिन्न रेलवे स्टेशनों से जुड़ा हुआ है। कालका पहुंचकर शिमला बस द्वारा जाया जा सकता है। इसके अलावा शिमला सड़क मार्ग द्वारा चंडीगढ़ दिल्ली देहरादून तथा पंजाब के विभिन्न शहरों द्वारा जुड़ा हुआ है। इन शहरों में पहुंचकर शिमला बसों द्वारा पहुंचा जा सकता है।

 

9ण्खुजराहो

 

खजुराहो मध्य प्रदेश का एक महत्वपूर्ण शहर है। इसके आसपास ऐसे अनेक महत्वपूर्ण स्थान है जो कि पर्यटन के लिए महत्व रखते हैं। यहां पर बहते हुए झरने बहती हुई नहरे किसी का भी ध्यान आकर्षित कर सकती हैं। यहां पर नौंवी दसवीं तथा ग्यारहवीं शताब्दी में बने हुए मंदिर किसी का भी ध्यान आकर्षित कर सकते है। यहां पर हिंदुओं तथा जैन मंदिरों की अधिकता है। उन मंदिरों के दीवारों पर बनी चित्र लिपि एक अनोखा एहसास करवाती है। खुजराहो चंदेल राजाओं द्वारा बसाया हुआ नगर है। खुजराहो ठंड के मौसम में घूमने के लिए उत्तम रहता है। यहां पर घूमने के लिए महत्वपूर्ण स्थान में लिखित है।

 

1ण्पन्ना नेशनल पार्क

2ण्पांडव फॉल्स

3ण्रनेह फॉल्स

4ण्खुजराहो के मंदिर

5ण्जैन मंदिर

 

इसके अतिरिक्त यहां पर बहते हुए झरना का भी आनंद लिया जा सकता है।

 

खुजराहो कैसे पहुंचे.

 

खुजराहो रेल मार्गों द्वारा भारत के लगभग हर शहर से जुड़ा हुआ है। यह भारत के विभिन्न शहर जैसे आगरा ग्वालियर मथुरा जयपुर दिल्ली इलाहाबाद झांसी इत्यादि शहरों से रेलवे रेल मार्गों द्वारा सीधा जुड़ा हुआ है। इसके अतिरिक्त यह सड़क मार्गों द्वारा ग्वालियर भोपाल इंदौर पन्ना झांसी इत्यादि शहरों से जुड़ा हुआ है। ग्वालियर यहां का नजदीकी एयरपोर्ट है।

 

  1. 10. गोवा

 

गोवा भारत के दक्षिण में बसा हुआ एक छोटा सा राज्य है गोवा की राजधानी पणजी है यह राज्य समुद्र के किनारे स्थित है विदेशी सैलानियों के लिए यह एक प्रमुख स्थान है यहां पर वर्ष भर विदेशी सैलानियों का जाम वाड़ा लगा रहता है। विदेशियों के साथ साथ भारतीय पर्यटकों के लिए  भी महत्वपूर्ण स्थान है। यहाँ पर गर्मियों के दिनों में समुद्र के किनारों बीच पर बैठ कर धूप का आनंद लिया जा सकता है। इसके अलवां यहाँ पर नारियल के पेड़ पूरे गोवा में यहां की सुंदरता बढ़ाते हैं। समुद्र में नाव पर बैठकर समुद्र का आनंद भी लिया जा सकता है। गोवा में समुद्री खाने का भी आनंद लिया जा सकता है। साथ ही गोवा में अनेक घूमने वाले स्थान हैं जिसका भ्रमण किया जा सकता है। यहां पर घूमने वाले स्थान निम्नलिखित हैं

 

1ण्मडगांव

2ण्पणजी

3ण्बागा गोवा

4ण्पुराना गोवा

5.अंजुना

6ण्वास्कोडिगामा

6ण्पोंडा

7ण्गोवा वेल्हा

8ण्कालांगुते

 

गोवा कैसे पहुंचे

 

मुंबई से गोवा सड़क मार्ग द्वारा 3 घंटे का रास्ता है।भारत के विभिन्न भागों से हवाई जहाजए रेल और सड़क के माध्यम से इस बीच डेस्टिनेशन तक आसानी से पहुंच सकते हैं। डाबोलिम हवाई अड्डा पणजी से लगभग 26 किमी दूर है जो बाकी दुनिया को गोवा शहर से जोड़ता है।

Books for Tourist: 

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हिमाचल प्रदेश दर्शनीय स्थल | Himachal pradesh tourism

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Himachal Pradesh tourism

भारत देश में स्थित एक राज्य जिसका नाम है हिमाचल प्रदेश उस का जो शाब्दिक अर्थ है वो है ‘बर्फीले पहाड़ो का प्रांत’। हिमाचल प्रदेश को ‘देवभूमि’ के नाम से भी जाना जाता है।

हिमाचल प्रदेश भारत के उत्तर पश्चिमी भाग में स्थित है। ये राज्य 56,019 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। इसके साथ ही ये पूर्व में तिब्बत, दक्षिण-पूर्व में उत्तराखंड, दक्षिण-पश्चिम में पंजाब (भारत) और दक्षिण में उत्तर प्रदेश और हरियाणा जैसे राज्यों से घिरा हुआ है।

हिमाचल प्रदेश को 1971 में 25 जनवरी को भारत का अट्ठारवां राज्य बनाया गया था। इसकी जो राजधानी है वो है ‘शिमला’ और दूसरी राजधानी है ‘धर्मशाला’।

हिमाचल प्रदेश दर्शनीय स्थल – Himachal pradesh tourism
Himachal pradesh tourism

हिमाचल प्रदेश का खान-पान – Himachal Pradesh Food

हिमाचल प्रदेश का जो खान-पान है वो बहुत ही सादा है। जैसा कि हिमाचल के नाम से ही पता चलता है कि ये एक बहुत ठंडा प्रदेश है इसीलिए यहां के लोग ठंड से बचने के लिए जानवरों के मांस को भी अपने भोजन में शामिल करते हैं।

पर यहां के ज्यादातर जो लोग हैं वो शाकाहारी हैं और मौसमी फलों को ही अपना आहार बनाते हैं। ये एक पर्यटन स्थल है इसीलिए जैसे-जैसे लोगों का यहां आना जाना होता है यहां के लोग भी उसी प्रकार का खानपान करते हैं।

हिमाचल प्रदेश की जलवायु – Himachal Pradesh Weather

हिमाचल प्रदेश की अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग तरह का तापमान देखने को मिलता है। यहां कहीं बर्फ तो कहीं गर्मी का अनुभव होता है। हिमाचल में तीन ऋतुएं होती हैं और वो हैं- ग्रीष्म ऋतु, शरद ऋतु और वर्षा ऋतु।

  • ग्रीष्म ऋतु- स्थानीय भाषा में तौंदी के नाम से जानी जाने वाली ये ऋतु अप्रैल से जून तक हिमाचल में रहती है।
  • शरद ऋतु- स्थानीय भाषा में हयून्द के नाम से जानी जाने वाली ये ऋतु हिमाचल में अक्टूबर से मार्च तक छाई रहती है।
  • वर्षा ऋतु- इस ऋतु में हिमाचल का जो मौसम होता है वो आर्द्र होता है। हर साल 160 सेंटीमीटर के आसपास प्रदेश में वर्षा होती है।

कैसे पहुंचे हिमाचल प्रदेश – How to reach Himachal Pradesh

हिमाचल प्रदेश पहुँचना कोई बहुत बड़ी बात नहीं है। वहाँ पहुँचने के लिए व्यक्तियों के पास बस, ट्रेन और फ्लाइट की सुविधाएं मौजूद हैं।

  • हवाई जहाज से:

इस राज्य में तीन हवाई अड्डे हैं और तीनों ही घरेलू हवाई अड्डे हैं।हालांकि, यहाँ अभी तक एक भी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा नहीं है। यहाँ एक और हवाई अड्डा है जिसका अभी निर्माण कार्य चल रहा है।

कागड़ा जिले में गगगल हवाई अड्डा, जुम्बारटी का शिमला में और कुल्लू घाटी में भुंतर हवाई अड्डा रखा गया है। आमतौर पर ये सारे हवाई अड्डे दिल्ली और चंडीगढ़ के हवाई अड्डों से जुड़े हुए हैं।

  • ट्रेन से:

हिमाचल प्रदेश में कुछ स्थानों पर रेलवे ट्रैक की भी सुविधा उपलब्ध है और राज्य के जो प्रमुख रेलवे स्टेशन हैं वो हैं- शिमला, पठानकोट और जोगिंदर नगर।

  • बस से:

हिमाचल प्रदेश में तीन राष्ट्रीय राजमार्ग हैं। हिमाचल का सड़क मार्ग काफी अच्छा है और यहाँ कि सड़कें ही यहाँ की जीवनरेखा है। राज्य के सड़क मार्गों ने कुल 28,210 किमी की कुल लंबाई के साथ जिला से जिले तक अच्छा संचार किया है।

बसों और निजी टैक्सियों द्वारा व्यक्ति हिमाचल प्रदेश पहुँच सकते हैं।

हिमाचल प्रदेश के पर्यटन स्थल – Himachal Pradesh Tourist Places

हिमाचल प्रदेश में जो सबसे खास है वो है यहां के पर्यटन स्थल। यहाँ की सुंदरता में लोग जाते ही बस खो जाते हैं। हिमाचल प्रदेश में पर्यटन उद्योग को भी उच्च प्राथमिकता दी गई है।

इसके विकास के लिए ही यहाँ तीन हवाई अड्डे, रेलवे स्टेशन और तीन राष्ट्रीय राजमार्ग हैं। इसके साथ ही यहां जनोपयोगी सेवाएं, जलापूर्ति और जन स्वास्थ्य सेवाएं भी उपलब्ध हैं। यहाँ पर आने वाले लोगों के लिए जो प्रमुख आकर्षण हैं वो निम्नलिखित हैं-

कुल्लू – Kullu

हिमाचल प्रदेश में स्थित एक शहर, ‘कुल्लू’ जो पहले ‘कुलंथपीठ’ के नाम से जाना जाता था, एक बहुत ही खूबसूरत पर्यटन स्थल है। कुलंथपीठ नाम का जो अर्थ है वो है ‘रहने योग्य दुनिया का अंत’। भारत में ‘देवताओं की घाटी’ नाम से भी प्रसिद्ध है हिमाचल राज्य की ये कुल्लू घाटी।

दुनियाभर में ये ‘सिल्वर वैली’ के नाम से प्रख्यात है।  यहाँ की जो खूबसूरती है वो देखते ही बनती है। हरियाली से ये शहर लोगों के मन को मोह लेता है। ये शहर विज नदी के किनारे स्थित है। यहाँ के मंदिर और सेब के बाग हर साल हजारों पर्यटकों को अपनी ओर खींच लाते हैं।

साथ ही यहाँ बहुत सारे एडवेंचरस स्पोर्ट्स भी हैं।  कुल्लू की जो चीज़ सबसे ज्यादा दिल को लुभाती है वो है यहाँ पर मनाया जाने वाला रंग-बिरंगा दशहरा। यहाँ हर साल दशहरा बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है और इसमें शामिल होने के लिए बहुत दूर-दूर से लोग आते हैं। कुल्लू शहर के जो पर्यटन स्थल में शामिल जगहें हैं वो निम्न हैं-

बिजली महादेव मंदिर – Bijli Mahadev

ये भारत का प्रमुख धार्मिक स्थल है। यह जगह समुद्र स्तर से 2450 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। ये मंदिर एक पहाड़ी पर स्थित है इसीलिए भगवान के दर्शन पाने के लिए लोगों को कठिन चढ़ाई करनी पड़ती है। इस मंदिर के बारे में बहुत सारी बातें बताई जाती हैं।

इस मंदिर में एक ध्वज है। कहा जाता है कि जब बिजली कडकती है तो उस ध्वज में तरंगें उठती हुई दिखाई देतीं हैं और लोग उसे भगवान का आशीर्वाद मानते हैं।

  • यह मंदिर कुल्लू मुख्य शहर से4 किमी की दूरी पर है। यहाँ पहुँचने के लिए आप प्राइवेट टैक्सी की सुविधा ले सकते हैं।
  • समय-सारणी-6:00AM से 8:00PM रोजाना। यहाँ घूमने में 2 से 3 घंटे का समय लग जाता है।
  • प्रवेश शुल्क- निशुल्क।

रघुनाथजी मंदिर – Raghunath Temple

ये मंदिर बहुत ही सुंदर है। कहा जाता है कि जिस राजा ने इस मंदिर को बनवाया था उन्होंने इसलिए इसको बनवाया था क्योंकि उनसे एक बहुत ही बड़ी भूल हो गई थी और एक मंदिर को बनवाकर ही वो अपनी भूल का प्रायश्चित करना चाहते थे।

  • यह मंदिर कुल्लू शहर के निकट मनाली में स्थित है। कुल्लू से इस मंदिर की दूरी2 किमी की है। आप प्राइवेट टैक्सी एवं बस की सुविधा यहाँ पहुँचने के लिए ले सकते हैं।
  • समय-सारणी- 6:00AM से 8:00PM रोजाना।
  • प्रवेश शुल्क- निशुल्क।

सुप्रसिद्ध कुल्लू दशहरा – Kullu Dussehra

कुल्लू शहर का जो दशहरा है वो दुनियाभर में बहुत प्रसिद्ध है। एक बहुत ही के फेमस डॉयलोग है कि लोगो की सोच जहाँ खत्म होती है वहीं मेरी सोच शुरू होती है। ऐसी ही कुछ खास बात यहाँ के दशहरे के साथ भी है।

यहाँ दशहरा तब शुरू होता है जब दुनियाभर का दशहरा समाप्त हो चुका होता है और यहाँ का दशहरा इतना हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है कि भारत देश का हर एक व्यक्ति इस दशहरे में शामिल होना चाहता है।

मनाली – Manali

मनाली, ‘मनु के घर’ के नाम से जाना जानेवाला ये शहर दुनिया का सबसे लोकप्रिय हिलस्टेशन है। यहाँ के पहाड़ों को देखकर इंसान ऐसा महसूस करता है कि मानो वो जन्नत में हो। मनाली में गर्मियों के मौसम भी दुनियाभर से हज़ारों पर्यटक आते हैं।

सब गर्मी से छुटकारा पाने के लिए मनाली आकर यहाँ की ठंडी हवाओं और वादियों के बीच खो जाना चाहते हैं। प्राकृतिक सुंदरता के साथ लोग यहाँ पर एडवेंचरस खेलों का भी आनंद लेते हैं।

मनाली हिंदुओं का पवित्र तीर्थस्थल भी माना जाता है। इसके जो प्रमुख पर्यटक स्थल हैं वो निम्न हैं-

अर्जुन गुफा – Arjun Gufa Manali

ये वही गुफा है जिसमें महाभारत के अर्जुन ने तपस्या की थी। जिसकी वजह से उन्हें पशुपति अस्त्र की प्राप्ति हुई थी। दूर-दूर से लोग इस गुफा को देखने के लिए आते हैं।

  • यह गुफ़ा मनाली मुख्य शहर से 21 किमी की दूरी पर है, वही कुल्लू मुख्य शहर से इसकी दूरी 23 किमी की है। यहाँ पहुचने के लिए प्राइवेट टैक्सी की सुविधा उपलब्ध है।
  • समय-सारणी- यह गुफा 24 घंटे खुला रहता है, परन्तु यहाँ भ्रमण हेतु 7:00AM-2:00PM का समय उचित माना जाता है। यहाँ घूमने में 3 से 4 घंटे का समय लग जाता है।
  • प्रवेश-निशुल्क।

ओल्ड मनाली – Old Manali

मनाली से 3 किमी उत्तर पश्चिम में स्थित है ओल्ड मनाली। ओल्ड मनाली अपनी खूबसूरती के लिए जाना जाता है। यहां के जो बगीचे हैं वो बहुत ही खूबसूरत हैं और यहाँ के प्राचीन गेस्ट हाउस बहुत प्रसिद्ध हैं।

  • यहाँ घूमने में 2 से 3 घंटे का समय लग जाता है।

मनु मंदिर – Manu Temple

माना जाता है कि मनु ने इसी मंदिर में आकर ध्यान लगाया था। इसलिए ये काफी प्रसिद्ध है।

  • यह मंदिर मनाली मुख्य शहर से5किमी की दूरी पर स्थित है। वहीं अगर बात की जाए कुल्लू मुख्य शहर की तो वहाँ से इस मंदिर की दूरी 45.8 किमी की है। आप प्राइवेट टैक्सी का सहारा लेकर इस मंदिर तक आसानी से पहुँच सकते हैं।
  • संचालन का समय- 6:00AM-8:00PM
  • प्रवेश शुल्क- निशुल्क।

व्यास कुंड – Vyas Kund

व्यास कुंड के चारों तरफ पत्थर ही हैं। इसमें एकदम स्वच्छ और हाथों को सुन्न कर देने वाला ठंडा पानी बहता है। लोग यहाँ इसकी सुंदरता को देखने के लिए आते हैं।

  • यह कुंड मनाली मुख्य शहर से7 किमी की दूरी पर स्थित है, वही कुल्लू मुख्य शहर से इसकी दूरी 60.8 किमी की है। यहां पहुँचने के लिए प्राइवेट टैक्सी की सुविधा उपलब्ध है।
  • समय-सारणी- 6:00AM-6:00PM रोजाना। यहाँ घूमने में 3 से 4 घंटे का समय लग जाता है।
  • प्रवेश शुल्क- निशुल्क।

हिडिम्बा मंदिर – Hadimba Temple Manali

भीम की पत्नी हिडिम्बा का ये मंदिर लकड़ी से बना हुआ है। हर साल मई के महीने में यहाँ एक बड़े उत्सव का आयोजन किया जाता है।

  • यह मंदिर मनाली मुख्य शहर से8 किमी की दूरी पर है, एवं कुल्लू मुख्य शहर से इस मंदिर की दूरी 45.2 किमी की है। आप यहाँ पहुँचने के लिहे प्राइवेट टैक्सी की सुविधा ले सकते हैं।
  • संचालन का समय- 8:00AM-6:00PM रोजाना। यहाँ घूमने में 2 से 3 घंटे का समय लग जाता है।
  • प्रवेश- निशुल्क।

मणिकरण – Manikaran

कुल्लू से करीब 45 किमी दूर मनाली जाने वाले रास्ते में स्थित है मणिकरण। पार्वती जी के जो कर्णफूल थे वो यहाँ पर खो गए थे और तभी से यहाँ का जो जल है वो बहुत ही ज्यादा गर्म हो गया है। ये जल इतना गर्म है कि इसमें चावल और दाल को पकाया जा सकता है।

  • मणिकरण की दूरी कुल्लू मुख्य शहर से3 किमी की है जबकि मनाली मुख्य शहर से इसकी दूरी 84 किमी की है। यहाँ पहुचने के लिए प्राइवेट टैक्सी की सुविधा उपलब्ध है।
  • संचालन का समय- 5:00AM- 12:00PM एवं 4:00PM-9:00 PM रोजाना। यहाँ घूमने में 1 से 2 घंटे का समय लग जाता है।
  • प्रवेश शुल्क- निशुल्क।

बौद्ध मठ – Buddha Math

कुल्लू घाटी के जितने भी बौद्ध शरणार्थी थे वो सब यहाँ आकर रहने लगे हैं। उन्हीं लोगों की वज़ह से ये स्थान बौद्ध मठ के नाम से  प्रसिद्ध है।

  • प्रवेश शुल्क- निशुल्क।

डल झील – Dal Jheel

अरे! डल झील तो कश्मीर में है, ये यहाँ कैसे आ गई? डल झील का नाम पढ़ते ही सभी के मन में ऐसे ही ख्याल आए होंगे। पर अगर एक डल झील कश्मीर में है तो दूसरी हिमाचल के धर्मशाला में है। दूर-दूर से लोग यहाँ इसके हरे-नीले पानी को देखने आते हैं।

  • यह झील धर्मशाला मुख्य शहर से7 किमी की दूरी पर है। यहाँ पहुचने के लिए आप प्राइवेट टैक्सी की सुविधा ले सकते हैं।
  • संचालन का समय- 7:00AM-8:00PM
  • प्रवेश शुल्क- निशुल्क।

कुनाल पथरी – Kunal Pathri

ये मंदिर पत्थरों से बना हुआ है। पत्थरों से कारीगरी इतनी बारीकी से की गई है कि इसको देखते ही लोग सब कुछ भूल जाते हैं।

  • यह मंदिर धर्मशाला मुख्य शहर से 5 किमी की दूरी पर है। यहाँ पहुँचने के लिए आप प्राइवेट टैक्सी का सहारा ले सकते हैं।
  • प्रवेश शुल्क- निशुल्क।
  • संचालन का समय- 7:00AM-8:00PM रोजाना। यहाँ घूमने में लगभग आधे घण्टे का समय लग जाता है।

चामुंडा देवी का मंदिर – Chamunda Devi Temple

चामुंडा देवी का मंदिर कांगड़ा से 24 किमी की दूरी पर है। चामुंडा माता का ये मंदिर हिंदुओं के प्रसिद्ध धार्मिक स्थलों में से है। ये मंदिर पालमपुर से 20किमी दूर धर्मशाला रोड पर है। यहाँ लोग देवी के दर्शन तो करते ही हैं उसके साथ ही लोग इस मंदिर से धर्मशाला शहर के प्राकृतिक नज़ारों का लुत्फ भी उठाते हैं।

  • यह मंदिर धर्मशाला से8 किमी की दूरी पर है। यहाँ पहुँचने के लिए आप प्राइवेट टैक्सी की सुविधा ले सकते हैं।
  • प्रवेश शुल्क- निशुल्क।

कांगड़ा देवी – Kangra Devi Temple

कांगड़ा देवी 51 शक्ति पीठो में से माँ की वो शक्तिपीठ है जहाँ सती का दाहिना वक्ष गिरा था। यहाँ  पर माँ के तीन पिंडियों की पूजा की जाती है।

  • यह मन्दिर धर्मशाला शहर से6 किमी की दूरी पर स्थित है। यहाँ पहुचने के लिए आप प्राइवेट टैक्सी का सहारा ले सकते हैं। इसके अलावा राज्य परिवहन के बसों की सुविधा भी यहाँ पहुचने के लिए उपलब्ध है।
  • समय-सारणी- 5:00AM-8:00PM रोजाना। यहाँ पर घूमने में 1 से 1:30 घंटे का समय लग जाता है।
  • प्रवेश-शुल्क- निःशुल्क।

चिंतपूर्णी देवी मंदिर – Chintpurni Devi Temple

यह मंदिर हिंदुओ का एक प्रसिद्ध मंदिर है। देवी मां के 51 शक्तिपीठो में से चिंतपूर्णी देवी का मंदिर एक है। चिंतपूर्णी मंदिर के चारो दिशाओं में भगवान शिव का मंदिर स्थित है।

  • यह मंदिर धर्मशाला से5 किमी की दूरी पर स्थित है। यहाँ पहुचने के लिए आप प्राइवेट टैक्सी एवं राज्य परिवहन बस की सुविधा ले सकते हैं।
  • समय-सारणी- 5:30AM-9:30PM रोजाना( शीत ऋतु में)
  • एवं 4:00AM-10:00PM रोजाना( ग्रीष्म ऋतु में)
  • प्रवेश-शुल्क- निःशुल्क।

नैना देवी मंदिर – Naina Devi Temple

यह मंदिर भी देवी मां के 51 शक्तिपीठो में से एक है। यह मंदिर शिवालिक पर्वत श्रेणी पर स्थित है। ऐसा माना जाता  है कि यहाँ पर देवी सती के नेत्र गिरे थे।

  • यह मंदिर धर्मशाला से8 किमी की दूरी पर है। यहाँ पहुँचने के लिए प्राइवेट टैक्सी एवं राज्य परिवहन के बस की सुविधा उपलब्ध है।
  • समय-सारणी- 6:00AM-10:00PM रोजाना।
  • प्रवेश शुल्क- निःशुल्क।

धर्मकोट – Dharamkot

धर्मशाला में घूमने के लिए धर्मकोट काफ प्रसिद्ध स्थानों में से एक है। ये बेहद सुंदर है।

डलहौजी – Dalhousie

कठलोंग, पोट्रेन, तेहरा, बकरोटा और बलुन, इन पांच पहाड़ों के पर स्थित चंबा जिले का हिस्सा है ये डलहौजी। इसका नाम डलहौजी वाइसराय लार्ड डलहौजी के नाम पर रखा गया था।

डलहौजी में देखने को लिए बहुत कुछ है। माना जाता है कि रवींद्रनाथ टैगोर को उनकी ‘गीतांजलि’ को लिखने की जो प्रेरणा है वो डलहौजी से ही मिली थी। उसके पर्यटन स्थल में जो शामिल है वो निम्न हैं,

लक्ष्मीनारायण मंदिर – Laxminarayan Temple

बहुत ही प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है लक्ष्मीनारायण मंदिर। भगवान विष्णु का ये मंदिर आकर्षक का केंद्र है। मणि महेश यात्रा की शुरुआत इसी मंदिर से शुरू होती है।

  • यह मंदिर डलहौजी से6 किमी की दूरी पर है। यहाँ पहुंचने के लिए प्राइवेट टैक्सी की सुविधा उपलब्ध है।
  • प्रवेश शुल्क- निशुल्क।
  • संचालन का समय- सबसे अच्छा दिन का समय। यहाँ घूमने में लगभग 1 घंटे का समय लग जाता है।

पंचफुल्ला – Panchkula

पंचफुल्ला, शहीद भगत सिंह के चाचा सरदार अजीत सिंह की समाधि के लिए प्रमुख है।

  • प्रवेश शुल्क- निशुल्क।
  • संचालन का समय- दिन का समय।

मणिमहेश यात्रा – Manimahesh

लक्ष्मीनारायण मंदिर से इस यात्रा की शुरुआत होती है। इस यात्रा के दौरान छड़ी को मणिमहेश झील तक ले जाते हैं और वो झील डलहौजी का प्रमुख तीर्थस्थल माना जाता है।

  • प्रवेश शुल्क- निशुल्क।
  • यात्रा का समय- भाद्रपद मास के अर्धचंद्र के आठवें दिन।

सेंट पैट्रिक चर्च – Saint Patrick Church

ये चर्च डलहौजी का सबसे बड़ा चर्च है। इसकी देखरेख जो है वो जलंधर के कैथोलिक डायोसिस द्वारा की जाती है।

  • यह चर्च डलहौजी मुख्य शहर से 4 किमी की दूरी पर है।
  • प्रवेश शुल्क- निशुल्क।
  • यहाँ घूमने में लगभग 1 घण्टे का समय लग जाता है।

चंबा घाटी – Chamba

चंबा की खूबसूरती को शब्दों में बयां कर पाना आसान नहीं है। इसकी खूबसूरती को लोगों ने फिल्मों में तो देखा ही है पर इसकी असल खूबसूरती का अंदाज़ा तो यहां जाकर इसको देखने के बाद ही लगाया जा सकता है।

इसमें तरह-तरह की संस्कृति का प्रभाव दिखाई देता है। जो यहाँ जाता है वो बस यहाँ सदा के लिए बस जाना चाहता है। चंबा के जो मुख्य आकर्षण हैं वो निम्न हैं,

चंपावती मंदिर – Champavati Temple

कहा जाता है कि यहां की राजा की जो पुत्री थी चंपावती उसी ने अपने पिता को चंबा नगर स्थापित करने के लिए उकसाया था।इस मंदिर में पत्थरों पर खूबसूरत नक्काशी की गई है और छत को पहिएनुमा बनाया गया है।

  • प्रवेश शुल्क- निशुल्क।
  • संचालन का समय- 6:00AM-8:00PM रोजाना। यहाँ घूमने में 1 से 2 घण्टे का समय लग जाता है।

चौगान – Chaugan

ये एक खुला घास का मैदान है। हर साल इस मैदान पर मिंजर मेले को आयोजित किया जाता है। नगर के बीचों बीच स्थित इस मैदान की खूबसूरती मिंजर मेले में देखते ही बनती है।

  • प्रवेश शुल्क- निशुल्क।
  • संचालन का समय- निर्धारित नहीं।

सुई माता मंदिर – Sui Mata Temple

ये जो मंदिर है ये राजकुमारी सुई को समर्पित है। उन्होंने चंबा के निवासियों के लिए अपना जीवन त्याग दिया था।

  • यह मंदिर चम्बा मुख्य शहर से 5 किमी की दूरी पर है।
  • प्रवेश शुल्क- निशुल्क।

शिमला – Shimla

शिमला, हिमाचल प्रदेश की ग्रीष्मकालीन राजधानी है। दुनियाभर में शिमला को ‘पहाड़ों की रानी’ के नाम से जाना जाता है। शिमला का नाम देवी काली के अवतार श्यामला के नाम पर रखा गया। दूर-दूर से लोग शिमला में छुट्टियां बिताने के लिए आते हैं। शिमला के पर्यटन स्थल में निम्न शामिल हैं,

संकट मोचन – Sankat Mochan Temple

शिमला-कालका सड़क मार्ग पर भगवान हनुमान का एक बहुत ही प्रसिद्ध मंदिर स्थित है। यहाँ से शिमला की खूबसूरती का आनंद लिया जा सकता है।

  • यह मंदिर शिमला मुख्य शहर से 5 किमी की दूरी पर है। यहाँ जाने के लिए रोपवे का शहर लेना पड़ता है।
  • प्रवेश शुल्क- निशुल्क।
  • संचालन का समय- दिन के समय।

मॉल रोड – Mall Road

शिमला का मुख्य शॉपिंग सेंटर। यहाँ तरह-तरह की चीज़ें मिलती हैं। लोग यहाँ पर घूमने, खाने-पीने आते हैं। ये लोगों के लिए बहुत ही आकर्षण का एक केंद्र है। यह शिमला मुख्य शहर में ही स्थित है।

  • प्रवेश शुल्क- निशुल्क।

कुफरी – Kufri

कुफरी भारत के खूबसूरत पर्यटन स्थलों में से एक है। ये हिमाचल प्रदेश के दक्षिण हिस्से में स्थित है। यहाँ की झील, बर्फ से ढंकी हुई पहाड़ों की चोटियां, गहरी घाटियां ही यहाँ की खूबसूरती को देखने का कारण हैं।

अपनी खूबसूरती की वजह से ही ये जगह हज़ारों सैलानियों को अपनी ओर खींच लेती है। कुफरी में आप कई तरह के एडवेंचर गेम में  हिस्सा ले सकते हैं।

  • कुफरी शिमला मुख्य शहर से8 किमी की दूरी पर है। प्राइवेट टैक्सी के मदद से पहाड़ी तक पहुचने के बाद यहाँ से कुफरी तक पहुँचने के लिए आपको घोड़े की सवारी करनी पड़ेगी। मुख्य पहाड़ी से कुफरी तक कि दूरी लगभग 2.5 किमी की है।
  • यहाँ भ्रमण करने में 5 से 6 घण्टे का समय लग जाता है।

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गुरुपौर्णिमा पर भाषण | Guru purnima Speech

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Guru purnima Speech

“गुरुर्ब्रह्मा ग्रुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः । गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः ॥”

भारत, त्योहारों और मेलों का देश है, जो कि अपनी रीति-रिवाज,परंपरा, संस्कृति के लिए पूरी दुनिया में जाना जाता है। यहां सभी धर्मों, जाति, संप्रदाय के लोग मिलजुल कर अपने त्योहार को पूरे श्रद्धाभाव और हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं।

वैसे ही हिन्दी महीने की आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा का पर्व धूमधाम के साथ मनाया जाता है।

भारत के स्कूल, कॉलेज और विद्यापीठो में गुरु पौर्णिमा जैसा पवित्र त्यौहार बड़े उल्हास के साथ मनाया जाता है। गुरु पौर्णिमा धार्मिक और सामाजिक तौर पर मनाया जानेवाला त्यौहार है। हिन्दू धर्मं में ब्रह्मदेव, विष्णु और भगवान शिव की पूजा की जाती है उसी तरह शिक्षक भी समाज की सेवा करते इसीलिए समाज भी उनके प्रति कृतज्ञ है।

इसका मतलब यह भी निकलता है की जिस तरह हम भगवान की प्रार्थना करते है, उनकी पूजा करते है ठीक उसी तरह का सम्मान समाज के शिक्षक को दिया जाता है।

इसके साथ ही इस दिन वेद व्यास जी का पूजन भी किया जाता है। गुरु पूर्णिमा के दिन शिष्य अपने गुरु के प्रति आदर भाव और कृतज्ञता प्रकट करते हैं। गुरु पूर्णिमा के अवसर पर गुरु के महत्व को समझने के लिए और उनके प्रति सम्मान का भाव पैदा करने के लिए स्कूल/कॉलेज भाषण और निबंध लेखन प्रतियोगिताओं का भी आयोजन किया जाता है।

इसलिए आज हम अपने इस पोस्ट में गुरु पूर्णिमा के आदर्श पर्व पर एक भाषण उपलब्ध करवा रहे हैं, जब भी आप गुरु पौर्णिमा विषय पर भाषण देने की सोचेंगे तो यहाँ की जानकारी आपको मदत करेगी और आप किसी के भी सामने अच्छेसे भाषण दे पाएंगे। -तो आइए अब जानते हैं गुरु पूर्णिमा पर शानदार भाषण –

Guru Purnima Speech

गुरुपौर्णिमा पर भाषण – Guru purnima Speech

गुरुपौर्णिमा भारत का एक पारंपरिक और सांस्कृतिक त्यौहार है जिसे हमारे देश में व्यास पौर्णिमा नाम से जाना जाता है। हमारा ऐसा देश है जहा गुरु को भगवान माना जाता है। इसी दिन को सभी शिक्षको के लिए मनाया जाता है और इसी दिन वेद व्यास का जन्म भी हुआ था जिन्होंने चारो वेदों की निर्मिती की थी। इसीलिए भी गुरु पौर्णिमा को व्यास पौर्णिमा और व्यास जयंती भी कहा जाता है।

आषाढ़ महीने के पौर्णिमा के दिन गुरु पौर्णिमा मनाई जाती है और यह त्यौहार हर बार जून जुलाई महीने के बिच में मनाया जाता है। गुरु संस्कृत शब्द है और इसमें का ‘गु’ का मतलब होता है की अँधेरा और ‘रु’का अर्थ होता है दूर करनेवाला। यानि जो इन्सान हमारे जीवन में से अँधेरे को हटा देता है, और उजाला लेकर आता है उसे गुरु कहा जाता है।

मिटटी जब गीली होती है तभी उसे देखकर कोई बता नहीं सकता की उससे क्या बन सकता है। अगर उस मिटटी का सही तरह से इस्तेमाल ना किया जाए तो वह कुछ भी काम की नहीं होती। उसका समाज में कोई महत्व नहीं होता। वह केवल मिटटी ही रह जाती है और केवल लोगो के पैरों के निचे कुचली जाती है।

मगर जब कोई कुम्हार उस मिटटी को गिला करके उसे अपने हातो से कोई आकार देता है तो वही मिटटी एक मटके का रूप लेती है और समय आने पर किसी प्यासे इन्सान की प्यास बुझाने के लिए काम आती है। ठीक उसी तरह का काम हमारे जीवन में गुरु का होता है।

अगर हमारे जीवन में गुरु नहीं तो हमारी जिंदगी कुछ काम की नहीं रहती है। हम अपने जीवन में कुछ भी नहीं बन सकते। लेकिन अगर गुरु मिल जाए तो हमारा जीवन सफल होता है। वह हमें अपने जीवन में हर मोड़पर मार्गदर्शन करता। उसके मार्गदर्शन से हम अपने लक्ष्य तक पहुच सकते है। गुरु ही हमें जिंदगी की हर चुनौती का सामना करना सिखाता है। गुरु की वजह से ही हम एक काबिल इन्सान बन सकते है और समाज के लिए कुछ बेहतर दे सकते है। इसी गुरु की महिमा का वर्णन निचे दिया गया है।

गुरु पौर्णिमा को एक अध्यात्मिक दिवस के रूप में मनाया जाता है। गुरु हमें जीवन में आगे बढ़ने के लिए हमेशा प्रेरित करते है क्यों की जब भी हम निराश हो उस समय हम खुद को चुनौती दे सके और जीवन में आगे बढ़ सके।

कोई भी गुरु अपने शिष्य को उसके उद्देश्य को पुरा करने के लिए मदत नहीं करता लेकिन जो सच्चा गुरु होता है वह हमेशा अपने शिष्य का मार्गदर्शन करता है, उसे उसके उद्देश्य में सफल बनाने के लिए हर तरह की कोशिश करता है और सबसे महत्वपूर्ण बात यह की वह हमेशा अपने शिष्य का साथ देता है।

गुरु हमें अपने लक्ष्य तक पहुचने के लिए मार्गदर्शन करता है और जबतक हम अपने लक्ष्य को हासिल नहीं कर लेते तब तक वह हमारा मार्गदर्शन करता रहता है। कोई साधू या कोई धार्मिक व्यक्ति या कोई पुजारी हमारा गुरु नहीं हो सकता। सच्चा गुरु वह होता है जो हमें कामयाब होने के लिए अपना समय दे सके हमारी हर हालत में मदत कर सके। हमारे सच्चे गुरु कौन होते है उनकी जानकारी निचे दी गयी है।

हमारे माता पिता हमारे पहले गुरु होते है जो हमें बचपन से ही सिखाना शुरू कर देते है। वह हमें बचपन से प्यार करना सिखाते है। वह हमारे बचपन के गुरु होते है और वही हमारी आखिरी तक सहायता करते रहते है और हमें अपने लक्ष्य तक पहुचाने में हर तरह की कोशिश करते है।

स्कूल में जो शिक्षक हमें पढ़ाते है वह हमारे दुसरे गुरु होते है वह हमें समाज और उसकी संस्कृति के बारे में सभी बाते समझाकर बताते है। गणित, विज्ञान, इतिहास सिखाने का काम केवल शिक्षक ही कर सकते है। समाज में रहने के लिए इन सब बातो का जानना बहुत जरुरी होता है। शिक्षक हम में नैतिकता को विकसित करने में काफी मदत करते है जिसकी वजह से हमें भविष्य में बहुत सारे फायदे होते है।

लेकिन कुछ उम्र गुजरने के बाद माता पिता और शिक्षक हमें प्रभावित नहीं कर सकते वह हमारी सोच को बदल नहीं सकते। लेकिन यह सब हमारा मित्र जरुर कर सकता है। हमारा मित्र चाहे कितना भी बुद्धिमान क्यों ना हो लेकिन वह हमारा दोस्त होने की वजह से वह हमारी मदत करता है और हमें हमेशा अच्छे काम करने के लिए प्रेरित कर सकता है। इसीलिए वह भी एक तरह से हमारा गुरु होता है। युवावस्था के बाद शादी हो जाती है तो उसके बाद पति पत्नी भी एक दुसरे के गुरु बन सकते है।

इसका मतलब यह है की हर किसी के जीवन में कई सारे गुरु होते है और समय के साथ साथ गुरु के रूप बदलते रहते है। कोई भी ऐसा गुरु नहीं की वह जन्म से लेकर मरने तक हमारे साथ रह सके और हमारी मदत कर सके इसीलिए हमने खुद का भी गुरु होना चाहिए।

बहुत पुराने समय से हमारे देश में गुरु शिष्य के रिश्ते को बड़ा उचा स्थान दिया जाता है। वाल्मीकि, वेद व्यास, द्रोणाचार्य जैसे महान गुरु भारत जैसे पवित्र भूमि में जन्म ले चुके है। अर्जुन, एकलव्य जैसे पराक्रमी शिष्य केवल महान गुरु के मार्गदर्शन के कारण ही बन सके। गुरु पौर्णिमा के दिन सभी वेद व्यास जयंती मनाते है क्यों की इसी दिन वेद व्यास का जन्म हुआ था। महाभारत में वेद व्यास का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। उन्होंने ही हिन्दू धर्म के चारो वेदों की निर्मिती की थी।

गुरुपौर्णिमा पर भाषण – Guru Purnima Speech

सर्वप्रथम सभी को गुरु पूर्णिमा की शुभकामनाएं !

आदरणीय मान्यवर, सम्मानीय मुख्य अतिथि,प्रधानचार्या जी,सभी शिक्षक गण और यहां पर बैठे मेरे छोटे-बड़े भाई-बहनों और मेरे प्रिय दोस्तों आप सभी का मैं …. तहे दिल से आभार प्रकट करती हूं/करता हूं।

बेहद खुशी हो रही है कि, आज मुझे गुरु पूर्णिमा के इस पावन पर्व के मौके पर  आप लोगों के समक्ष भाषण देने का सुनहरा अवसर प्राप्त हुआ है। मैं गुरुपूर्णिमा पर अपने भाषण की शुरुआत, गुरु के मूल्यों समझाने पर लिखे गए एक संस्कृत श्लोक के माध्यम से करना चाहती हूं /चाहता हूं

“गुरुर्ब्रह्मा ग्रुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः॥”

अर्थात् गुरु ही ब्रह्मा हैं,जो अपने शिष्यों को नया जन्म देता है, गुरु ही विष्णु हैं जो अपने शिष्यों की रक्षा करता है, गुरु ही शंकर है; गुरु ही साक्षात परमब्रह्म हैं; क्योंकि वह अपने शिष्य के सभी बुराईयों और दोषों को दूर करता है।ऐसे गुरु को मैं बार-बार नमन करता हूँ।

अपनी संस्कृति और विरासत के लिए पहचाने जाने वाले भारत देश  में गुरु पूर्णिमा का पर्व  बेहद महत्वपूर्ण पर्व है। यह पर्व गुरुओं को समर्पित एक आदर्श पर्व है।

गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा, आषाणी पूनम, गुरु पूनम आदि नामों से भी जाना जाता है। हिन्दू कैलेंडर के आषाढ़ महीने की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को ‘गुरुपूर्णिमा’ का  पर्व पूरी श्रृद्धा और आस्था के साथ मनाया जाता है।

आषाढ़ महीने की पूर्णिमा को कई पुराणों, शास्त्रों, चारों वेदों को विभाजित करने वाले एवं हिन्दू धर्म के महाग्रंथ श्री महा भगवतगीता की रचना करने वाले महर्षि वेदव्यास जी का भी जन्म हुआ था।

उनकी जयंती के उपलक्ष्य में गुरु पूर्णिमा का पावन पर्व मनाया जाता है और इस पर्व को व्यास पूर्णिमा और व्यास जयंती के नाम से भी जाना जाता है। महार्षि वेद व्यास जी को गुरु-शिष्य परंपरा का प्रथम गुरु माना गया है।

गुरु हर किसी के जीवन के लिए बेहद महत्वपूर्ण है गुरु के महत्व और इसके मूल्यों को सिर्फ शब्दों में नहीं पिरोया जा सकता है। गुरु हमारे जीवन में सभी अंधकारों को मिटाकर हमें प्रकाश की तरफ आगे बढ़ाता है और सही मार्गदर्शन कर हमें सफलता के पथ पर आगे बढ़ाता है।

इसलिए हिन्दू धर्म के शास्त्रों में गुरु को भगवान का दर्जा दिया गया है। गुरु के बिना कोई भी व्यक्ति ज्ञान प्राप्त नहीं कर सकता है और न ही अपने जीवन में सफलता हासिल कर सकता है।

गुरु के बिना के किसी भी व्यक्ति का जीवन बिना नाविक के नाव की तरह होता है। जिस तरह बिना नाविक के नाव दिशाहीन होकर चलती है या फिर बेसहारा भंवर में फंस जाती है,ठीक उसी तरह बिना गुरु के मनुष्य जीवन रूपी भंवर में फंसा रहता है और दिशाहीन हो जाता है, उसे यह कभी ज्ञात नहीं होता है कि उसे जाना किस तरफ है।

गुरु अपनी पूरी जिंदगी अपने शिष्य को योग्य और सफल बनाने के लिए समर्पित कर देते हैं। इसलिए हमारे हिन्दू धर्म और शास्त्रों में गुरुओं को विशिष्ट स्थान दिया गया है और गुरु का भगवान का रुप मानकर गुरु पूर्णिमा के दिन उनका पूजन किया जाता है और उनके प्रति सम्मान प्रकट किया जाता है।

वहीं गुरु की अद्भुत महिमा का बखान तो हिन्दी साहित्य के कई महान कवियों ने भी अपने लेखों, दोहों आदि के माध्यम से भी किया है। वहीं महान कवि कबीर दास जी ने अपने इस दोहे के माध्यम से गुरु को भगवान से बढ़कर दर्जा देते हुए कहा है कि –

“गुरु गोविन्द दोनों खड़े, काके लागूं पाँय।
बलिहारी गुरु आपनो, गोविंद दियो बताय॥”

संत कबीर दास जी ने अपने इस दोहे में यह कहा है कि अगर गुरू और गोबिंद अर्थात भगवान दोनों एक साथ खड़े हों तो हमें किसे प्रणाम करना चाहिए – गुरू को अथवा गोबिन्द को? उन्होंने बताया कि ऐसी स्थिति में हमें अपने गुरू के चरणों में अपना शीश झुकाना चाहिए क्योंकि गुरु ने ही भगवान तक जाने का रास्ता बताया है, अर्थात मोक्ष प्राप्ति का मार्ग दिखाया है और गुरु की कृपा से ही भगवान के दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है।

गुरु, सभ्य समाज का निर्माण करने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं एवं राष्ट्र के विकास में मद्द करते हैं। गुरु, परमात्मा और संसार के बीच एवं शिष्य और ईश्वर के बीच एक सेतु की तरह काम करते हैं।

गुरु के बिना किसी भी व्यक्ति को ज्ञान की प्राप्ति नहीं हो सकती है, और बिना ज्ञान का कोई भी व्यक्ति आत्मसात नहीं कर सकता है। गुरु ही मनुष्य को उसके कर्तव्यों का बोध करवाता है एवं हमारे अंदर धैर्य अथवा धीरज पैदा करता है,ज्ञान का बोध करवाता है,और मोक्ष का मार्ग बताता है। इसलिए किसी विद्धान ने कहा भी है कि –

“गुरु बिना ज्ञान नहीं और ज्ञान बिना आत्मा नहीं,
कर्म, धैर्य, ज्ञान और ध्यान सब गुरु की ही देन है।।”

गुरु के महत्व को समझने और अपने गुरुओं के प्रति श्रद्धाभाव एवं कृतज्ञता प्रकट करने के लिए गुरु पूर्णिमा का पर्व एक आदर्श पर्व है, जिसे एक अध्यात्मिक दिवस के रुप में मनाया जाता है।

गुरुओं को समर्पित इस पर्व का विशेष महत्व है। गुरु पूर्णिमा के इस शुभ दिन सिर्फ गुरु ही नहीं, बल्कि जिससे भी आपको अपनी जिंदगी में कुछ सीखने को मिला हो और जो भी आपसे बड़ा है,अर्थात माता-पिता, भाई-बहन आदि को भी गुरु के तुल्य समझकर उनका सम्मान करना चाहिए एवं उनका आर्शीर्वाद लेना चाहिए, क्योंकि गुरु के आशीर्वाद से ही जीवन सफल बनता है।

गुरु की महिमा का तो जितना भी बखान किया जाए उतना कम है। मैं अंत में एक दोहे के साथ अपने इस भाषण को विराम देना चाहती हूं/चाहता हूं –

“गुरू बिन ज्ञान न उपजै, गुरू बिन मिलै न मोष।
गुरू बिन लखै न सत्य को गुरू बिन मिटै न दोष।।”

धन्यवाद एवं शुभ गुरु पूर्णिमा।।

गुरु पूर्णिमा पर भाषण – Speech on Guru Purnima in Hindi

गुरु पूर्णिमा की आप सभी को बहुत-बहुत शुभकामनाएं ||

और मै हूं … मै कक्षा — का विद्यार्थी हूं। गुरु पूर्णिमा के इस पावन पर्व के मौके पर यहां पर मौजूद सभी गणमान्य नागरिकों, आदरणीय अतिथिगण, सम्मानीय प्रधानाध्यपक, समस्त शिक्षकगण, सहपाठी और मेरे सभी छोटे भाई-बहन सभी को मेरा सादर प्रणाम।।

जाहिर है कि हम सभी गुरु पूर्णिमा के इस पावन पर्व को मनाने के लिए इकट्ठे हुए हैं। मुझे बेहद खुशी हो रही है कि, मुझे इस पावन पर्व के मौके पर भाषण देने का सुनहरा अवसर प्राप्त हुआ है।

इस मौके पर मै कुछ शब्दों के माध्यम से अपने गुरुओं के प्रति अपनी भावनाओं  को प्रकट करना चाहता हूं/चाहती हूं,इसके साथ ही मै अपने गुरुओं के प्रति सम्मान एवं कृतज्ञता प्रकट करना चाहता हूं/चाहती हूं,जिनकी बदौलत आज मै इस मंच पर कुछ बोलने के काबिल बन सका हूं।

गुरु पूर्णिमा, हिन्दू धर्म का पवित्र त्योहार है। हर साल आषाण शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के दिन बेहद खुशी और उल्लास के साथ इस त्योहार को धूमधाम से मनाया जाता है। गुरु पूर्णिमा के त्योहार के दिन गुरुओं का सम्मान और उनके प्रति कृतज्ञता प्रकट की जाती है और उनका आशीर्वाद लिया जाता है।

आषाढ़ मास की पूर्णिमा के दिन ही 4 वेदों की निर्मति करने वाले और समस्त 18 पुराणों समेत महाभारत जैसे महाकाव्य की रचना करने वाले विद्धानों के विद्धान महर्षि वेदव्यास जी का भी जन्म हुआ था,उनकी जयंती की उपलक्ष्य में गुरु पूर्णिमा के इस पर्व को मनाया जाता है। साथ ही इस पर्व को व्यास पूर्णिमा अथवा व्यास जयंती भी कहा जाता है।

गुरु पूर्णिमा के दिन ही गौतम बुद्ध ने सारनाथ में अपना पहला उपदेश दिया था और इसके साथ ही भगवान शिव ने भी इसी दिन सप्तऋषियों को योग करने का मंत्र दिया था।  इसलिए गुरु पूर्णिमा का बेहद महत्व है।

गुरु के प्रति श्रद्धा और समर्पण के इस पवित्र पर्व पर गुरु का पूजन करने की परंपरा है। इस दिन शिष्यों का अपने गुरुओं का आदर कर उनका आशीर्वाद लेना चाहिए, क्योंकि गुरु के आशीर्वाद से ही जीवन में सही दिशा में आगे बढ़ा जा सकता है।

वहीं आज की युवा पीढ़ी को गुरु के महत्व को समझाने के लिए और गुरु -शिष्य के रिश्ते की डोर और अधिक मजबूत करने के लिए गुरु पूर्णिमा का पर्व एक आदर्श और श्रेष्ठ पर्व  है।

क्योंकि किताबें पढ़कर ज्ञान तो अर्जित किया जा सकता है,लेकिन उस ज्ञान को गुरु के बिना सही जगह इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है। वहीं गुरु के महत्व को किसी बड़े संत ने अपने इस दोहे में समझाते हुए कहा कि है –

“पंडित यदि पढि गुनि मुये,
गुरु बिना मिलै न ज्ञान।
ज्ञान बिना नहिं मुक्ति है,
सत्त शब्द परमान।।”

अर्थात बड़े-बड़े विद्धान शास्त्रों को पढ़-लिखकर ज्ञानी तो बन सकते हैं, लेकिन गुरु के सही मार्गदर्शन के बिना उन्हें मोक्ष प्राप्त नहीं हो सकता है।

इसलिए हर किसी को अपने जीवन में गुरुओं के महत्व को समझना चाहिए। क्योंकि माता-पिता के बाद गुरु ही होते हैं, जो इस संसार रुपी ज्ञान का बोध करवाकर इस जीवन रुपी भव सागर से पार करवाता है साथ ही ऐसे कर्म करने के लिए प्रेरित करता है, जिसे कर व्यक्ति मृत्यु के बाद भी अमर हो जाता है।

इसलिए, गुरु को ईश्वर का दर्जा दिया गया है, वहीं जिस तरह देवताओं की पूजा की जाती है, वैसे ही गुरु पूर्णिमा के पावन पर्व पर  गुरु को भी पूजा जाता है और उनका आदर-सम्मान किया जाता है।

वहीं आजकल गुरु-शिष्य के रिश्ता काफी कलंकित हो रहा है,न तो आज गुरु द्रोणाचार्य जैसे सच्चे गुरु मिलते हैं,और न ही गुरु के कहने मात्र पर अपना अंगूठा काट देने वाले एकलव्य जैसे शिष्य मिलते हैं। वहीं आज गुरु-शिष्य के रिश्ते की परिभाषा जरूर बदल गई है।

आजकल कुछ शिष्य ऐसे हैं जो अपने घमंड और झूठी शान के चलते अपने गुरुओं का आदर नहीं करते हैं,वहीं कुछ गुरुओं के लिए विद्या देना एक धंधा बन चुका है।

हालांकि आज भी कई ऐसे गुरु हैं अपने शिष्यों न सिर्फ किताबों के पाठ समझाने में मद्द करते हैं बल्कि उनका सही मार्गदर्शन कर अपने शिष्यों के आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित करते हैं। वहीं हिन्दी साहित्य के महान कबीर दास जी ने अपने इस दोहे के माध्यम से गुरु के महत्व को बताते हुए कहा है कि –

“हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहिं ठौर॥”

अर्थात भगवान के रूठने पर तो गुरू की शरण रक्षा कर सकती है, लेकिन गुरू के रूठने पर कहीं भी शरण मिलना सम्भव नहीं है। इसलिए, हर शिष्य को अपने गुरु की आज्ञा का पालन करना चाहिए और उनके बताए गए मार्ग पर चलना चाहिए तभी उसके जीवन का उद्दार हो सकता है।

गुरुओं को समर्पित गुरु पूर्णिमा का इस पावन पर्व पर सभी शिष्यों को अपने गुरुओं का सम्मान करना चाहिए और उन्हें अपने जीवन को सफल और समाज में उठने -बैठने लायक एक सभ्य और योग्य पुरुष बनाने के लिए उनका आभार जताना चाहिए।

वहीं गुरु की महिमा को सिर्फ शब्दों में नहीं पिरोया जा सकता है। इस बारे किसी महान विद्धान ने भी अपने इस दोहे के माध्यम से कहा है कि –

“सब धरती कागज करू, लेखनी सब वनराज।
सात समुंद्र की मसि करु, गुरु गुंण लिखा न जाए।।”

अर्थात अगर  पूरी धरती को लपेट कर कागज बना लिया और सभी जंगलों के पेड़ो से कलम बना ली जाए, एवं इस दुनिया के सभी समुद्रों को मथकर स्याही बना ली जाए,तब भी गुरु की महिमा का वर्णन नहीं किया जा सकता है।

गुरुओं को समर्पित गुरु पूर्णिमा यह पावन पर्व गुरु-शिष्य के पवित्र रिश्तों को और अधिक मजबूत बनाने का काम करता है।

वहीं हिन्दू धर्म के शास्त्रों और हमारी भारतीय संस्कृति में भी गुरु-शिष्य के पवित्र रिश्ते को दाता-भिखारी का न बनाकर सहयोगी व साझेदारी का बनाया है, जिसमें गुरु अपने प्रेम, स्नेह,मेहनत और तप से शिष्य के आदर्श व्यक्तित्व का निर्माण कर उसे सफल बनाते हैं।

वहीं गुरू की महिमा का बखान करना तो सूरज को दीपक दिखाने की तरह है। फिलहाल, हम सभी को अपने गुरुओं का आदर-सम्मान करना चाहिए,वहीं गुरुओं का भी परम कर्तव्य है कि वे अपने शिष्य को सही दिशा में आगे बढाएं।

इसी के साथ मै महासंत कबीर दास जी के एक दोहें के माध्यम से अपने भाषण को विराम देना चाहता हूं/चाहती हूं।

“यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान।
शीश दियो जो गुरु मिले, तो भी सस्ता जान।।”

धन्यवाद।।

गुरु पूर्णिमा पर भाषण – Guru Purnima par Bhashan

सर्वप्रथम सभी को मेरा नमस्कार –

मै …….कक्षा — का विद्यार्थी हूं। गुरु पूर्णिमा के इस पावन पर्व के उपलक्ष्य में हम सब यहां इकट्ठे हुए हैं, मैं यहां पर मौजूद सभी गणमान्य नागरिकों, और शिक्षकगणों को नमन करता हूं।

इस मौके पर मैं गुरुओं को समर्पित इस पर्व में भाषण प्रस्तुत करते हुए खुद को गौरान्वित महसूस कर रहा हूं कि इस अवसर पर मुझे अपने गुरुओं के प्रति अपनी भावनाओं को प्रकट करने का मौका मिला है –

हिन्दू कैलेंडर के आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को ‘गुरुपूर्णिमा’ का पर्व पूरे भारत में पूरी श्रृद्धा और आस्था के साथ मनाया जाता है। हिन्दू धर्म के महाकाव्य महाभारत की रचना करने वाले एवं चार वेदों को विभाजित करने वाले महर्षि वेदव्यास जी की जयंती के उपलक्ष्य में गुरु पूर्णिमा के पर्व को मनाया जाता है।

वेदव्यास जी को  गुरु-शिष्य परंपरा का प्रथम गुरु माना गया है। इसके साथ ही इसी दिन भगवान शंकर ने सप्तऋषियों को भी योग करने का मंत्र दिया था। इसलिए भी गुरु पूर्णिमा के पर्व का हिन्दू धर्म में खास महत्व है।

यह पर्व गुरुओं का पूजन और उनका सम्मान करने का दिन है। गुरु ने ही हमारे अंदर सोचने-समझने की क्षमता विकसित कर हमें सही – गलत की पहचान करवाई है और हमें आपस में प्रेम करना, दूसरे पर दया करना, जरुरतमंदों की मद्द करना,बेजुबानों की रक्षा करना समेत कई ऐसे संस्कारों और भावनाओं का हमारे अंदर विकसित कर  हमें एक सभ्य और शिक्षित पुरुष बनने में हमारी मद्द की है।

जाहिर है कि गुरु, अपने शिष्यों को एक योग्य एवं सफल पुरुष बनाने के लिए अपना पूरा जीवन कुर्बान कर देते हैं, वहीं गुरुओं की मेहनत, त्याग और समर्पण से ही शिष्यों का उद्दार होता है साथ ही एक सभ्य समाज और शिक्षित राष्ट्र का निर्माण होता है।

वहीं हिन्दी साहित्य के महान संत कबीरदास जी ने गुरु की महिमा का वर्णन करते हुए अपने इस दोहे में कहा है कि –

“ज्ञान समागम प्रेम सुख,
दया भक्ति विश्वास।
गुरु सेवा ते पाइए,
सद् गुरु चरण निवास।।”

अर्थात ज्ञान, सन्त- समागम, सबके प्रति प्रेम, निर्वासनिक सुख, दया, भक्ति सत्य-स्वरुप और सद् गुरु की शरण में निवास – ये सब गुरु की सेवा से ही प्राप्त होता है। इसलिए हम सभी को अपने गुरुओं का सम्मान करना चाहिए।

गुरु, मनुष्य के जीवन का मूल आधार होते हैं,क्योंकि गुरु के बिना विद्या और ज्ञान अर्जित नहीं किया जा सकता है और ज्ञान के बिना मनुष्य एक पशु के सामान होता है, क्योंकि मनुष्य के ज्ञान और विवेकशीलता के तर्ज पर ही मानव और पशु में अंतर किया जाता है।

वहीं एक शिक्षित व्यक्ति ही समाज में खुद को साबित कर पाने की क्षमता रखता है। वहीं एक गुरु ही अपने शिष्य के अंदर ऐसे गुणों का विकास करता है जिससे वह अपने कर्मपथ पर आगे बढ़ता है और अपने जीवन के लक्ष्यों को हासिल करने के योग्य बनता है।

इसलिए सभी को अपने गुरुओं का आदर करना चाहिए। वहीं गुरु पूर्णिमा के इस पावन पर्व पर हर शिष्य को अपने गुरु का ध्यान करना चाहिए और उनके प्रति कृतज्ञता प्रकट करनी चाहिए।

गुरु-शिष्य का रिश्ता निस्वार्थ होता है,जिसमें गुरु निस्वार्थ भाव से अपने शिष्य को ज्ञान देता है और उसे अपने जीवन में सही पथ पर चलने एवं सही कर्मों को करने की शिक्षा देता है। इसलिए सभी को अपने गुरुओं के प्रति श्रद्धा रखनी चाहिए और उनका सम्मान करना चाहिए।

गुरु की अद्भुत महिमा और उसके महत्व को शब्दों में नहीं पिरोया जा सकता है। इसी के साथ मै अपने इस भाषण को किसी महान कवि के दोहे द्धारा विराम देना चाहता हूं/चाहती हूं।

“गुरु ग्रंथन का सार है, गुरु है प्रभु का नाम,
गुरु अध्यात्म की ज्योति है,गुरु हैं चारों धाम।।”

धन्यवाद।।

गुरु पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएं। (Happy Guru Purnima)

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गुरु पौर्णिमा क्यू मनायी जाती हैं | Story of Guru Purnima

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Story of Guru Purnima

गुरु शब्द का अर्थ काफी बड़ा है। जैसे ही कोई ‘गुरु’ शब्द पुकारता है तो ज्यादातर लोगो को लगता है इसका सम्बन्ध स्कूल के शिक्षक से है। लेकिन असल में ऐसा कुछ भी नहीं। गहराई में जाकर देखे तो हमें पता चलता है की गुरु और शिक्षक अलग होते है। शिक्षक केवल गुरु शब्द का हिस्सा माना जाता है लेकिन इसका मतलब यह बिलकुल नहीं बनता की केवल शिक्षक ही गुरु होते है।

किसी भी व्यक्ति के माता पिता उसके पहले गुरु होते है और जब वही इन्सान स्कूल में पढ़ता है तो वहा उसके शिक्षक उसके गुरु होते है। लेकिन हमारे भारत देश में गुरु पौर्णिमा को कई सारे बातो की वजह से मनाया जाता है।

गुरुपौर्णिमा को कुछ लोग इस त्यौहार को व्यास पौर्णिमा नाम से भी जानते है। हमारे भारत जैसे देश में शिक्षक, गुरु को भगवान के समान माना गया है। आस्था और श्रद्धा के साथ मनाए जाने वाले इस पावन पर्व को मनाने के पीछे भी कई महान कथाएं जुड़ी हुई हैं।

गुरु पौर्णिमा क्यू मनायी जाती हैं – Story of Guru Purnima

Story of Guru Purnima

वेदव्यास जी ने एक भील को माना अपना गुरु – Story of Ved Vyas

शास्त्रों में एक घटना के मुताबिक एक बार जब महर्षि वेदव्यास जी ने भील जाति के एक व्यक्ति को पेड़ से नारियल तोड़ते हुए देखा तब व्यास जी के मन में नारियल तोड़ने की कला को सीखने की उत्सुकता पैदा हुई, जिसके चलते वे उस भील जाति के व्यक्ति के पीछे भागने लगे, लेकिन वह व्यक्ति, व्यास जी से डर के चलते दूर भागता रहा।

यह सिलसिला काफी दिनों तक चलता रहा, वहीं व्यास जी के अंदर भी इस कला को सीखने की इतनी वेदना थी कि वे भील जाति के युवक का पीछा करते-करते एक दिन उसके घर पहुंच गए।

जिसके बाद वो युवक खुद तो नहीं मिला, लेकिन घर पर उसका बेटा मिला जिसने संस्कृत के प्रकंड विद्धान व्यास जी की पहले पूरी बात सुनी और फिर वह नारियल तोड़ने की विद्या सिखाने के लिए उन्हें तैयार हो गया।

इसके बाद व्यास जी ने पूरी लगन के साथ भील जाति के युवक के पुत्र से नारियल तोड़ने की विद्या का मंत्र लिया। वहीं उस युवक ने अपने बेटे को ये सब करते देख अपने पुत्र से कहा कि वो महाज्ञानी और परम ब्राह्मण वेद व्यास जी को इस कला को जानबूझकर नहीं सिखाना चाहते थे।

क्योंकि वो  इस बात को अच्छी तरह से जानते थे कि जिस व्यक्ति से किसी भी तरह का ज्ञान प्राप्त किया जाता है, या फिर मंत्र लिया जाता है तो, वो व्यक्ति उसके लिए गुरु के सामान हो जाता है।

जिसके चलते भील जाति के युवक के मन में यह शंका थी कि वे लोग छोटी जाति के हैं, और व्यास जी ब्राह्मण जाति के हैं तो ऐसे में व्यास जी उनका गुरु के समान सम्मान कैसे करेंगे?

इसके अलावा उस भील जाति के पुरुष ने यह भी कहा कि अगर मंत्र देने वाले व्यक्ति को पूज्य नहीं समझा जाए तो वो मंत्र फल देना वाला साबित नहीं होता है।

फिर उस युवक ने अपने पुत्र को व्यास जी की परीक्षा लेने के लिए उनके दरबार में भेजा कि व्यास जी उन्हें अपने गुरु की तरह पूज्य मानकर उनका आदर-सत्कार करते हैं या फिर नहीं।

वहीं अपने पिता की बात सुनने के बाद उसका पुत्र, एक गुरु के रुप में व्यास जी के दरबार में पहुंच गया, जहां व्यास जी अपने गुरु को आते देख दौड़े-दौड़े आए और उनका पूजन कर उनके आदर सत्कार में लग गए और उन्हें गुरु की तरह मान-सम्मान दिया, जिसे देख उस युवका का पुत्र बेहद खुश हुआ और इसके बाद उसने अपने पिता को व्यास जी के बारे में बताया।

जिसे सुनकर उसके पिता के मन की सारी शंकाएं खत्म हो गईं कि जो व्यक्ति एक छोटी जाति के व्यक्ति को भी गुरु की तरह उनका आदर-सत्कार करता है और गुरु के समान महत्व देता है।

वह परम पूजनीय है और तभी से गुरु-शिष्य परंपरा में श्री मद भगवद गीता की रचना करने वाले इस महाज्ञानी और प्रकंड पंडित महर्षि वेद व्यास जी को सबसे अग्रणी और प्रथम गुरु माना जाने लगा एवं गुरुओं के आदर सत्कार और उनके प्रति कृतज्ञता प्रकट करने के लिए गुरु पूर्णिमा के पर्व को पूरे श्रद्धाभाव के साथ मनाया जाने लगा।

आषाढ़ महीने में पौर्णिमा के दिन गुरुपौर्णिमा मनाई जाती है। गुरु वह होता है जो हमारे जीवन से अंधकार रूपी अज्ञान को निकाल देता है। सभी लोग अपने जीवन में गुरु को बहुत सम्मान देते है

गुरु पौर्णिमा के दिन स्कूल और कॉलेज में बड़े बड़े कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। इस दिन सभी छात्र अपने शिक्षको के प्रति कृतज्ञता जताते है। अधिकतर जगह पर इस अवसर पर भाषण प्रतियोगिता, निबंध प्रतियोगिता का भी आयोजन किया जाता है।

आगे एक श्लोक दिया गया है उसमे गुरु का महत्व बताया गया है।

“गुरुर ब्रह्मा, गुरुर विष्णु, गुरु देवो महेश्वरा, गुरु साक्षात् परब्रह्म, तस्मै श्री गुरवे नमः”

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गुरु पूर्णिमा के बारेमें संपूर्ण जानकारी – Guru Purnima

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Guru Purnima

गुरु हर किसी के जीवन का मुख्य आधार होता है। माता-पिता के बाद मनुष्य के जीवन में गुरुओं का विशिष्ट स्थान होता है, जो कि मनुष्य को इस संसार रुपी ज्ञान का बोध करवाता है और उसे अपने कर्तव्यपथ पर बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करता है एवं सफलता के पथ पर आगे बढ़ता है।

वहीं प्राचीन काल से ऋषि, मुनियों, साधू-संतों का काफी महत्व रहा है। हिन्दू धर्म में गुरुओं को भगवान से भी ऊंचा दर्जा दिया गया है, क्योंकि गुरु न सिर्फ इंसान को इस संसार रुपी भव सागर से पार करवाने में उसकी मद्द करता है।

बल्कि मनुष्य के जीवन से अंधकार मिटाकर ज्ञान का दीप जलाता है और उसका आत्मसात करने में मद्द करता है। इसके साथ ही गुरु मनुष्य को ऐसे कर्म करने की प्रेरणा देता है, जिन्हें कर मनुष्य मृत्यु के बाद भी अमर हो जाता है।

वहीं गुरु के महत्व को समझने और अपने गुरुओं के प्रति आदर-सम्मान का भाव प्रकट करने के लिए हर साल हिन्दू कैलेंडर के आषाण महीने की पूर्णिमा को ‘गुरु पूर्णिमा’ का पर्व मनाया जाता है।

इस पर्व को हिन्दू धर्म के लोगों द्धारा बेहद हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है। वहीं साल 2019 में गुरु पूर्णिमा का पावन पर्व 16 जुलाई को मनाया जाएगा। 2019 में गुरु पूर्णिमा के मौके पर करीब 149 सालों बाद चंद्र ग्रहण का पड़ेगा।

“गुरुर्ब्रह्मा ग्रुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः॥”

अर्थात् गुरु ही ब्रह्मा हैं, जो अपने शिष्यों को नया जन्म देता है, गुरु ही विष्णु हैं जो अपने शिष्यों की रक्षा करता है, गुरु ही शंकर है; गुरु ही साक्षात परमब्रह्म हैं; क्योंकि वह अपने शिष्य के सभी बुराईयों और दोषों का संहार करता है। ऐसे गुरु को मैं नमन करता हूँ।

गुरु पूर्णिमा के बारेमें संपूर्ण जानकारी – Guru Purnima Information in Hindi

Guru Purnima

गुरु पूर्णिमा कब मनाई जाती है ? – Guru Purnima Kab Hai

कई महापुराणों, वेदों शास्त्रों एवं ग्रंथों की रचना करने वाले महर्षि वेदव्यास जी के जन्मदिन के उपलक्ष्य में गुरु पूर्णिमा का पावन पर्व मनाया जाता है

महार्षि वेद व्यास जी को गुरु-शिष्य परंपरा का प्रथम गुरु माना गया है। हिन्दू कैलेंडर के आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को ‘गुरुपूर्णिमा’ का पर्व पूरी श्रृद्धा और आस्था के साथ मनाया जाता है।

इस पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा, आषाणी पूनम, गुरु पूनम आदि नामों से भी जाना जाता है। साल 2019 में गुरु पूर्णिमा का पावन पर्व 16 जुलाई को मनाया जाएगा। इस मौके पर लोग अपने गुरुओं के प्रति आदर सम्मान के साथ कृतज्ञता प्रकट करते हैं और उनका आर्शीवाद लेते हैं।

गुरु पूर्णिमा पर जाने गुरु का अर्थ – Meaning of Guru Purnima

संस्कृत का गुरु शब्द दो अक्षरों से मिलकर बना है। ‘गु’ एवं ‘रु’ वहीं शास्त्रों में ‘गु’ अक्षर का अर्थ अन्धकार से है और ‘रु’ का अर्थ निरोधक और अंधकार मिटाने वाले से लिया गया है।

अर्थात, गुरु हमारे जीवन में सभी अंधकारों को मिटाकर हमें प्रकाश की तरफ आगे बढ़ाता है और हमारा सही मार्गदर्शन कर हमें सफलता के पथ पर अग्रसर करता है।

इसलिए शास्त्रों में भी गुरुओं कों एक विशिष्ट स्थान दिया गया है। वहीं गुरु पूर्णिमा के दिन अपने गुरुओं का ध्यान कर उनसे आशीर्वाद लिया जाता है और उनके प्रति आदर भाव व्यक्त किया जाता है।

गुरु पूर्णिमा का महत्व – Importance of Guru Purnima

गुरु को भगवान से भी बढ़कर दर्जा दिया गया है। वहीं हिन्दी साहित्य के कई महान कवियों ने भी गुरु की महिमा को अपने लेख,दोहों आदि के माध्यम से बताया है। वहीं महान कवि कबीर दास जी ने इस दोहे के माध्यम से कहा है कि –

“गुरु गोविन्द दोनों खड़े, काके लागूं पाँय।
बलिहारी गुरु आपनो, गोविंद दियो बताय॥”

गुरु और शिष्य के महत्व को समझने और अपने गुरुओं के प्रति श्रद्धाभाव एवं कृतज्ञता प्रकट करने के लिए गुरु पूर्णिमा का पर्व आदर्श पर्व है। गुरुओं को समर्पित इस पर्व का विशेष महत्व है।

गुरु पूर्णिमा के इस शुभ दिन सिर्फ गुरु ही नहीं, बल्कि जिससे भी आपको अपनी जिंदगी में कुछ सीखने को मिला हो और जो भी आपसे बड़ा है, अर्थात माता-पिता, भाई-बहन आदि को भी गुरु के तुल्य समझकर उनका सम्मान करना चाहिए एवं उनका आर्शीर्वाद लेना चाहिए, क्योंकि गुरु के आशीर्वाद से ही जीवन सफल बनता है।

श्रद्धाभाव से मनाए जाने वाले इस पावन पर्व गुरु पूर्णिमा के दिन गुरुओं की पूजा करने का भी विधान है। इस दिन गुरुओं को वस्त्र, फल, फूल आदि अर्पण कर उनका आशीर्वाद लेना चाहिए। हिन्दू धर्म के साथ-साथ सिख धर्म में भी व्यास पूर्णिमा अथवा गुरु पूर्णिमा का खास महत्व है, दरअसल सिख इतिहास में उनके दस गुरुओं का बेहद महत्व रहा है।

गुरु पूर्णिमा का पावन पर्व हर शिष्य के लिए बेहद शुभ और कल्याणकारी माना गया है। गुरु के प्रति आदरभाव प्रकट करने वाले इस आदर्श पर्व के दिन गंगा या फिर किसी अन्य पवित्र नदी में स्नान करना काफी शुभ माना गया है।

वहीं इस दिन लोग अपने गुरुओं की पूजा करने के साथ-साथ अपने गुरु के लिए उपवास भी रखते हैं।

वहीं प्राचीनकाल में जब शिष्य, गुरुकुलों में रहकर अपने गुरु से शिक्षा ग्रहण करते थे, तो गुरु पूर्णिमा के पावन पर्व के दिन ही अपने गुरु के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने के लिए श्रद्धाभाव से गुरु को दक्षिणा देकर उनका पूजन करते थे।

इसके बाद ही उन्हें वेद, शास्त्र, धर्म की शिक्षा दी जाती थी। गुरु पूर्णिमा का पावन पर्व गुरु से मंत्र प्राप्त करने का सबसे अच्छा और श्रेष्ठ दिन होता है। वहीं इस दिन मोक्ष का मार्ग दिखाने वाले गुरु की सेवा करने का भी विशेष महत्व है। इसलिए इस पर्व को श्रद्धापूर्वक मनाया जाना चाहिए।

गुरु पूर्णिमा पर गुरु दक्षिणा का महत्व – Importance of Guru Dakshina

गुरुओं को समर्पित इस पवित्र पर्व को पूरे देश में धूमधाम के साथ मनाया जाता है। वहीं गुरु-शिष्य के रिश्ते को तो प्राचीन काल से ही महत्व दिया जा रहा है।

अनादिकाल में जब शिष्य गुरुकुल में अपने गुरु के पास रहकर निशुल्क शिक्षा ग्रहण करते थे, तो इस दिन शिष्य अपने गुरुओं के प्रति उन्हें सही कर्तव्य पथ पर आगे बढ़ने और संसार रुपी ज्ञान का बोध करवाने के लिए अपनी कृतज्ञता प्रकट करते थे और अपने गुरु का पूजन कर उन्हें गुरु दक्षिणा देते थे।

इसके साथ ही आपको बता दें कि गुरुदक्षिणा उस समय दी जाती है या फिर कोई भी गुरु उस समय गुरु दक्षिणा लेता है, जब शिष्य को ज्ञान का बोध हो जाता है या फिर शिष्य भी अपने ज्ञान को किसी अन्य को बांटने के लायक अथवा गुरु बनने के लायक हो जाता है।

वहीं जब शिष्य अपने गुरु से पूरा ज्ञान ग्रहण कर लेता है तभी गुरु दक्षिणा सार्थक होती है। गुरुदक्षिणा, गुरु के प्रति सम्मान और समर्पण का भाव है। अर्थात, गुरु के प्रति सही दक्षिणा यही होती कि जब कोई भी शिष्य उसके द्धारा सिखाए गए ज्ञान को पूरी तरह अर्जित कर लेता है और अन्य को देने के योग्य बन जाता है।

गुरुद्रोणाचार्य ने भी अपने शिष्य एकलव्य से उसके अंगूठे के रुप में मांगी थी गुरु दक्षिणा – Guru Dronacharya and Eklavya

गुरु दक्षिणा को लेकर गुरु द्रोणाचार्य और एकलव्य से जुड़ी एक घटना काफी प्रचलित है। इसके मुताबिक एक बार गुरु द्रोणाचार्य ने अपने शिष्य एकलव्य को धनुष विद्या सिखाने के लिए उनसे अपने दाएं हाथ के अंगूठे के रुप में गुरु दक्षिणा देने के लिए कहा था, तब एकलव्य ने अपने गुरु का सम्मान रखते हुए अपना अंगूठा, गुरु दक्षिणा के रुप में अपने गुरु द्रोणाचार्य के चरणों में समर्पित कर दिया था।

वहीं इसके बाद एकलव्य की प्रसिद्धि एक आदर्श शिष्य के रुप में चारों तरफ फैल गई और वह इतिहास में वे एक युग पुरुष के रुप में मशहूर हो गए थे।

जाहिर है कि एक गुरु अपना पूरा जीवन अपने शिष्य को योग्य और सफल बनाने के लिए समर्पित कर देता है, वहीं दूसरी तरफ शिष्य का परम कर्तव्य है कि वह गुरु दक्षिणा देकर अपने गुरु का सम्मान करे।

वहीं इस गुरु दक्षिणा का आशय किसी संपत्ति औऱ धन-दौलत से नहीं होता है, बल्कि यह गुरु पर निर्भर करता है कि, वह अपने शिष्य से किस तरह की गुरु दक्षिणा की मांग करता है।

आज भी स्कूल, कॉलेजों में आषाण मास की पूर्णिमा ‘गुरु पूर्णिमा’ के दिन विद्यार्थी, इस दिन अपने गुरुओं के प्रति सम्मान भाव प्रकट करते हैं एवं गुरु दक्षिणा के रुप में कुछ भेंट देते हैं।

आषाण मास की पूर्णिमा को ही क्यों मनाई जाती है गुरु पूर्णिमा – Why Guru Purnima is Celebrated

गुरुओं को समर्पित इस पर्व को हिन्दी कैलेंडर के आषाण महीने की पूर्णिमा के दिन इसलिए मनाया जाता है क्योंकि इसी दिन संस्कृत के प्रकंड विद्धान एवं महाभारत, वेदों और पुराणों की रचना करने वाले कृष्णद्धैपायन व्यास जी का जन्म हुआ था।

आपको बता दें कि वेदव्यास जी ने समस्त 18 पुराणों की रचयिता की थी एवं चारों वेदों की रचना कर उन्हें अलग-अलग किया था, वहीं इसी वजह से उनका नाम वेदव्यास पड़ गया था।

महर्षि वेदव्यास को भगवान विष्णु का अवतार भी माना गया है। इसके साथ ही वेदव्यास जी को समस्त मानव जाति का गुरु अर्थात आदि गुरु माना गया है।

गुरु पूर्णिमा के शुभ दिन कई लोग व्यास जी के तस्वीर का पूजन करते हैं, साथ ही उनके द्धारा रचित ग्रंथों का पाठ भी पढ़ते हैं। इसके अलावा गुरुओं को समर्पित गुरु पूर्णिमा के पर्व के दिन बहुत से मठों और आश्रमों में लोग ब्रह्रालीन संतों की मूर्ति या समाधि की भी पूजन करते हैं और अपने सफल भविष्य की कामना करते हैं।

इसके अलावा हिन्दी कैलेंडर के आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा बनाने के पीछे कई विद्धान यह भी तर्क देते हैं कि गुरु, आषाढ़ मास की पूर्णिमा के चंद्रमा की तरह होता है जो हर तरफ ज्ञान की ज्योति जलाकर प्रकाश भरने का काम करता है, और शिष्य, आषाढ़ मास के बादलों की तरह काले यानि की अंधकार में रहते हैं।

और इस दिन अंधेरे बादल भी प्रकाशमान हो जाते हैं इसलिए इस दिन को गुरु पूर्णिमा के रुप में मनाया जाता है। फिलहाल गुरु पूर्णिमा के पावन पर्व को मनाने के पीछे कई धार्मिक और पौराणिक कथाएं भी जुड़ी हुईं हैं।

गुरु पूर्णिमा से जुड़ी महान कथा – Story of Guru Purnima

हमारा भारत देश पुरातनकाल से ही ऋषि-मुनियों और साधु-संतो की तपोभूमि रहा है। वहीं हमारी भारतीय संस्कृति में गुरु को विशिष्ट स्थान दिया गया है और गुरु पूजन के लिए गुरु पूर्णिमा का दिन निर्धारित किया गया है।

वहीं आस्था और श्रद्धा के साथ मनाए जाने वाले इस पावन पर्व को मनाने के पीछे भी कई महान कथाएं जुड़ी हुई हैं।

महर्षि वेदव्यास से जुड़ी है गुरु पूर्णिमा की महान कथा:

महर्षि वेदव्यास जो संस्कृत के महान और प्रकंड विद्धान थे, उन्होंने श्रीमद भागवत गीता, समस्त 18 पुराणों की रचना की थी एवं 4 वेदों को अलग-अलग विभाजित किया था। इसलिए महर्षि वेदव्यास जी को समस्त दुनिया का गुरु और आदि गुरु माना गया है।

इसके साथ ही उन्हें गुरु-शिष्य परंपरा का पहला गुरु भी माना गया है। वेदव्यास जी इस बात को बखूबी जानते थे कि जिस किसी से भी कुछ सीखने को मिलता है, वह गुरु समान होता है, फिर चाहे सिखाने वाला कोई छोटा सा जीव ही क्यों न हो।

कैसे मनाई जाती है गुरु पूर्णिमा – How to Celebrate Guru Purnima

गुरुओं को समर्पित पर्व गुरु पूर्णिमा का हिन्दू धर्म में बहुत महत्व है। इस दिन लोग अपने गुरुओं का ध्यान कर उनके प्रति अपना आदर भाव प्रकट करते हैं।

इस दिन शिष्य सही, गलत की परख बताने वाले अपने गुरुओं की पूजा करते हैं साथ ही उनका आर्शीवाद लेते हैं एवं अपने गुरुओं को वस्त्र आदि भेंट करते हैं एवं उन्हें गुरु दक्षिणा देते हैं।

इसके साथ ही गुरु पूर्णिमा के खास दिन ब्राह्मणों को दान देने एवं गरीबों और जरूरमंदों को खाना खिलाने का भी बेहद महत्व है। इस दिन गंगा अथवा किसी अन्य नदी में स्नान करने के बाद लोग अपने गुरु की पूजा करते हैं।

वहीं जो लोग किसी को अपना गुरु नहीं मानते हैं, वे गुरु-शिष्य परंपरा की शुरुआत करने वाले एवं वेदों और पुराणों की रचना करने वाले महर्षि वेदव्यास जी की पूजा-अर्चना करते हैं। गुरु पूर्णिमा के दिन लोग व्रत भी रखते हैं।

ग्ररु पूर्णिमा के दिन उपवास रखने के कुछ नियम – Guru Purnima Puja Vidhi

  • गुरु पूर्णिमा के पावन पर्व के मौके पर सुबह उठकर पूरे घर की साफ-सफाई करनी चहिए।
  • गुरु पूर्णिमा के दिन गंगा या फिर अन्य किसी पवित्र में स्नान करने शुभ माना गया है, ऐसा करने से सभी दोष मिटते हैं। साफ-सुथरे कपड़े पहनकर पहनना चाहिए।
  • अपने घर में पवित्र स्थान पर एक पटिए पर सफेद वस्त्र फैलाकर उस पर पूर्व से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण तक 12-12 रेखाएं बनाकर व्यासपीठ बनानी चाहिए।
  • गुरु पूर्णिमा के शुभ दिन ‘गुरुपरंपरासिद्धयर्थं व्यासपूजां करिष्ये’ मंत्र का जाप कर संकल्प लेना चाहिए।
  • इसके बाद अपने घर में चार दिशाओं में अक्षत(चावल) छोड़ना चाहिए।
  • गुरुओं को समर्पित इस गुरु पूर्णिमा के दिन अपने गुरु का ध्यान करना चाहिए और उनकी पूजा – अर्चना करने से कल्याणकारी आशीर्वाद मिलता है।
  • अपने मन में शुकदेव जी, गोविंद स्वामी जी, व्यास जी, ब्रह्मजी आदि के के मंत्र से पूजा-हवन आदि करने से अपने गुरुओं का ध्यान करना चाहिए।
  • गुरु पूर्णिमा के पावन पर्व पर वेदों, शास्त्रों और धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन मनन करना भी शुभ माना गया है।
  • गुरु पूर्णिमा के पावन पर्व पर अपने गुरुओं के पूजा-अर्चना करने का विधान है।
  • गुरुओं के आदर-सत्कार के इस पर्व के दिन गरीबों, असहाय, जररूतमंदों को दान देने से पुण्य प्राप्त होता है और मनवांछित फल की प्राप्ति होती है। इस पावन पर पर ब्रहा्णों को भी दान देना शुभ माना जाता है।

गुरु पूर्णिमा पर शुभकामनाएं संदेश, व्हाट्सऐप मैसेज, कोट्स – Guru Purnima Wishes

गुरु पूर्णिमा के पावन पर्व पर आप इन संदेशों को सोशल मीडिया साइट्स फेसबुक, व्हाट्सऐप आदि पर शेयर कर अपने गुरु के प्रति अपनी भावनाओं को उजागर कर सकते हैं साथ ही गुरु पूर्णिमा की बधाई दे सकते हैं –

  • “गुरु पूर्णिमा के इस पावन अवसर पर, मेरा गुरु के चरणों में प्रणाम
    मेरे गुरु जी सदा कृपा राखियो, तेरे पर ही अर्पण मेरे प्राण
    गुरु पूर्णिमा की हार्दिक बधाईयां।।”
  • “गुरु की महिमा न्यारी है, जिसने अज्ञानता को दूर करके।
    ज्ञान की ज्योति जलाई है, गुरु की महिमा न्यारी है।
    गुरु पूर्णिमा की शुभकामनाएं।।”
  • “गुरु होता है सबसे महान, जो देता है सबको ज्ञान,
    आओ सब मिलकर करें इस गुरु पूर्णिमा पर अपने गुरु को प्रणाम।
    गुरु पूर्णिमा की हार्दिक बधाईयां।”
  • “माता-पिता ने जन्म दिया लेकिन, गुरुवर ने जीने की कला सिखाई है।
    ज्ञान, चरित्र और संस्कार की, हमने आपसे ही शिक्षा पाई है, गुरु की महिमा सबसे न्यारी है।।
    गुरु पूर्णिमा की शुभकामनाएं।।”
  • “गुरु और गोविंद दोनों में गुरु ही सबसे भारी है,
    और गुरु की महिमा न्यारी है।।
    गुरु पूर्णिमा की शुभकामनाएं।।”
  • “मां-बाप की मूरत है गुर, कलयुग में भगवान की सूरत है गुरु।।
    गुरु पूर्णिमा की शुभकामनाएं।।”
  • “गुरु की महिमा है अगम, गाकर तरता शिष्य।
    गुरु कल का अनुमान कर,गढ़ता आज का भविष्य।।
    गुरु पूर्णिमा की हार्दिक बधाईयां।।”
  • “गुरु है गंगा परम ज्ञान की, जो करे पाप का नाश,
    ब्रह्रा-विष्णु और महेश, सब काटे भाव का पाश।।
    गुरु पूर्णिमा की शुभकामनाएं।।”

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गुरु पूर्णिमा पर कोट्स, शुभकामना संदेश, मैसेजेस – Guru Purnima Quotes

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Guru Purnima Quotes

गुरु पूर्णिमा का दिन गुरुओं को समर्पित दिन है। यह पावन दिन अपने गुरुओं का शुक्रिया अदा करने का दिन है, जिन्होंने हमें अपने समाज में उठने -बैठने लायक एक सभ्य और समझदार मनुष्य बनाने में मद्द की है।

गुरुओं को इस संसार में भगवान से बढ़कर दर्जा दिया गया है। क्योंकि गुरुओं ने ही हमें भगवान तक पहुंचने का रास्ता दिखाया है। वहीं गुरु ने न सिर्फ हमारे अंदर सोचने, समझने की शक्ति विकसित की है बल्कि हमें अपने जीवन में सफल होने के लायक बनाया है।

गुरुओं के बिना पूरा जीवन निरर्थक है। इसलिए गुरु पूर्णिमा अपने गुरुओं के प्रति सम्मान प्रकट करने और उन्हें नमन करने का पर्व है।

गुण पूर्णिमा का यह पवित्र त्योहार हर साल आषाण शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के दिन बेहद खुशी और उल्लास के साथ धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन का हिन्दू धर्म के लोगों के लिए बेहद खास महत्व है।

वैसे तो साल के सभी 12 महीनों में पूर्णिमा की तिथि आती है, लेकिन हिन्दू कैलेंडर के आसाढ़ महीने की पूर्णिमा का अपना एक अलग महत्व है।

जरूरी नहीं है कि आप इस गुरु पूर्णिमा के पावन मौके पर अपने गुरुओं के पास हों और उनके प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट कर सकें, अपनी सफलता के लिए उनका आभार जता सकें एवं उनका आशीर्वाद ले सकें लेकिन आज के डिजिटल जमाने में गुरु पूर्णिमा के दिन आप अपने गुरुओं को हमारे इस पोस्ट में दिए गए गुरु पूर्णिमा पर शुभकामनाएं संदेश, मैसेज और कोट्स भेज कर उन्हें इस पर्व की बधाई दे सकते हैं और अपने गुरुओं के प्रति अपनी भावनाओं को उजागर कर सकते हैं।

गुरु पूर्णिमा पर दिए गए इन कोट्स और मैसेज को आप अपने सोशल मीडिया अकाउंट् फेसबुक, व्हाट्सऐप, ट्वीटर, इंस्टाग्राम आदि में अपने गुरुओं के साथ शेयर कर गुरु पूर्णिमा के पावन पर्व की बधाई दे सकते हैं।

गुरु पूर्णिमा पर कोट्स, शुभकामना संदेश, मैसेजेस – Guru Purnima Quotes

Guru Purnima Quotes

“आपसे सीखा और जाना, और आपको ही अपना सच्चा गुरु माना,
सीखा है सब आपसे हमने, कलम का मतलब भी आपसे है जाना,
गुरु पूर्णिमा की बधाई।।”

गुरुर्ब्रह्मा ग्रुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः॥
शुभ गुरु पूर्णिमा

Guru Purnima Wishes

“यह एक अनोखी यात्रा है, जहां गुरु ही आपको ले जाता है
दृश्य से अदृ्श्य तक, सामग्री से दिव्य तक,
अल्पकालिक से अनंत तक, मेरे गुरु होने के लिए आभार
गुरु पूर्णिमा की हार्दिक बधाई।।”

अक्षर-अक्षर हमें सिखाते शब्द-शब्द का अर्थ बताते,
कभी प्यार से कभी डांट से, जीवन जीना हमें सिखाते।।
गुरु पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएं।।

Guru Purnima Quotes in Hindi

“गुरु गोविंद दोउ खड़े काके लागूं पाय।
बलिहारी गुरु आपने गोविंद गुरु बताय।।”

गुरु बिना ज्ञान नहीं और ज्ञान बिना आत्मा नहीं,
कर्म, धैर्य, ज्ञान और ध्यान सब गुरु की ही देन है।।
गुरु पूर्णिमा की शुभकामनाएं।।

Guru Purnima Shayari

“करता करे ना कर सके, गुरु करे सब होय।
सातों द्धीप और नौ खंड में गुरु से बड़ा न कोय।।
मै तो सात संमुद्र की मसीह करु, लेखनी सब बदराया।
सब धऱती कागज करु पर, गुरु गुण लिखा ना जाय।।
गुरु पूर्णिमा का आप सभी को हार्दिक बधाईयां।।”

अक्षर ज्ञान ही नहीं, गुरु ने सिखाया जीवन ज्ञान,
गुरुमंत्र को कर लो अब आत्मसात, और हो जाओं भबसागर से पार
गुरु पूर्णिमा की हार्दिक बधाईयां।।

Guru Purnima ki Shubhkamnaye

गुरु हर किसी के जीवन का आधार होता है, गुरु के बिना सफल जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है।

वहीं गुरु पूर्णिमा के दिन हम अपने गुरुओं को नमन करते हैं और उनके प्रति सम्मान व्यक्त करते हैं, जिनके मार्गदर्शन से हमें इस संसार में मौजूद चीजों का बोध हो सका है और हम अपने जीवन में आगे बढ़ सकते हैं।

भारत में गुरुओं को प्राचीनकाल से भी विशिष्ट स्थान दिया गया है और गुरु-शिष्य के रिश्ते को बेहद पवित्र माना गया है। वैसे भी अज्ञानी और अशिक्षित मनुष्य को अपूर्ण माना गया है, जिसे समाज में कोई सम्मान नहीं दिया जाता है और वह कहीं पर भी खड़े होने लायक नहीं बचता है।

जाहिर है कि एक गुरु ही अज्ञानी पुरुष के अंदर ज्ञान का दीप जलाता है और सही मार्गदर्शन कर व्यक्ति को सफलता के पथ पर आगे बढ़ाता है और व्यक्ति को अनुशासन और ज्ञान का ऐसा महत्व सिखाता है, जिससे मनुष्य सही आचरण और कर्तव्यों के साथ अपने कर्मपथ पर आगे बढ़ता है और अपने कामों से वह मृत्यु के बाद भी अमर हो जाता है।

इसलिए गुरु का हर किसी के जीवन में बेहद खास महत्व है, वहीं गुरु पूर्णिमा का पर्व हमें अपने गुरुओं का आदर भाव करने के लिए प्रेरित करता है, गुरु पूर्णिमा पर दिए गए इन कोट्स को सोशल मीडिया साइट्स फेसबुक, व्हाट्सऐप आदि पर अपने गुरु के साथ शेयर कर उनके प्रति आदर भाव प्रकट कर सकते हैं और अपने गुरु-शिष्य के पावन रिश्ते को और अधिक मजबूत बना सकते हैं।

Guru Purnima Shubhechha

“जिसने बनाया है तुम्हें ईश्वर, ऐसे गुरु का करो तुम हमेशा आदर।
जिसमे स्वयं है परमेश्वर,उस गुरु को मेरा प्रणाम सादर।।
शुभ गुरु पूर्णिमा।।”

गुरुवर तेरे चरणों में रहकर, हमने शिक्षा पाई है।
गलत रास्ते पर भटके जब भी हम,तो गुरुवर आपने ही हमें फिर से राह दिखाई है।।

Guru Purnima Status in Hindi

“शांति का पढ़ाया है जिसने पाठ, अज्ञानता का मिटाया है हमारे जीवन से अंधकार,
गुरु से सिखाया है हमें, नफरत पर विजय है प्यार।।
गुरु पूर्णिमा पर हार्दिक बधाई।।”

Guru Purnima Shayari in Hindi

“वक्त भी सिखाता है और टीचर भी!
लेकिन दोनों में फर्क सिर्फ इतना सा है कि टीचर
सिखाकर इम्तिहान लेता है,
और वक्त इम्तिहान लेकर सिखाता है।।
गुरु पूर्णिमा की शुभकामनाएं।।”

Guru Purnima Wishes in Hindi

“आपने सिखाया उंगली पकड़ कर हमें चलना,
आपने ही बताया कैसे गिरने के बाद संभलना,
आपकी वजह से ही आज हम पहुंचे हैं इस मुकाम पे,
गुरु पूर्णिमा के दिन करते हैं हम आभार सलाम से।।”

Guru Purnima 2019

“गुरु आपके इस उपकार का, मै कैसे चुकाऊं मोल?
लाख कीमती धन भला.. लेकिन गुरु है मेरा सबसे अनमोल..
शुभ गुरु पूर्णिमा।।”

Guru Purnima Status

“आरुणि की गुरुभक्ति से, हमने शिक्षा पाई है।
और कबीर जैसे महान संत ने भी गुरु की महिमा गाई है।।”

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गुरु पुर्णिमा पर निबंध – Guru Purnima Nibandh

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Guru Purnima Nibandh

हमारा भारत देश त्योहारों और मेलों का देश हैं, जहां अलग-अलग धर्म, जाति संस्कृति के लोग अपने-अपने तरीके और रीति-रिवाज से त्योहारों को मनाते हैं, वहीं इस त्योहारों में न सिर्फ धार्मिक और सौहार्दपूर्ण वातावरण देखने को मिलता है, बल्कि इन त्योहारों के माध्यम से लोगों के बीच में आपस में प्रेम, भाईचारा बढ़ता है और मिलजुल कर रहने की सीख मिलती है एवं आपसी रिश्ते मजबूत होते है।

वहीं उन्हीं त्योहारों में से एक है गुरु पूर्णिमा, जो कि गुरुओं को समर्पित त्योहार है, इस त्योहार का हिन्दू धर्म में काफी महत्व है। वहीं आज की युवा पीढ़ी को गुरुओं के प्रति आदर-सम्मान का भाव लाने और जीवन में गुरुओं के महत्व को समझाने के लिए गुरु पूर्णिमा पर निबंध लिखने के लिए कहा जाता है।

इसलिए आज हम आपको अपने इस पोस्ट में गुरु पूर्णिमा पर अलग-अलग शब्द सीमाओं में निबंध उपलब्ध करवा रहे हैं, जिसे आप अपनी जरुरत के मुताबिक इस्तेमाल कर सकते हैं –

Guru Purnima Nibandh

गुरु पुर्णिमा पर निबंध – Guru Purnima Nibandh

प्रस्तावना

गुरु का हर किसी के जीवन में बेहद महत्व है, गुरु के ज्ञान के बिना व्यक्ति अपने जीवन में कभी सफल नहीं हो सकता है और न ही कभी मोक्ष को प्राप्त कर सकता है, इसलिए बड़े-बड़े ऋषि-मुनियों, संत और महाकवियों ने भी गुरु के महत्वता का वर्णन किया है और गुरु को ईश्वर का दर्ज दिया है –

“गुरुर्ब्रह्मा ग्रुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः॥”

अर्थात् गुरु ही ब्रह्मा हैं, जो अपने शिष्यों को नया जन्म देता है, गुरु ही विष्णु हैं जो अपने शिष्यों की रक्षा करता है, गुरु ही शंकर है; गुरु ही साक्षात परमब्रह्म हैं; क्योंकि वह अपने शिष्य के सभी बुराईयों और दोषों को दूर करता है।ऐसे गुरु को मैं बार-बार नमन करता हूँ।

वहीं गुरु पूर्णिमा का पर्व भी गुरुओं के आदर-सम्मान और उनके प्रति कृतज्ञता प्रकट करने का पावन पर्व है।

गुरु पूर्णिमा कब और क्यों मनाई जाती है – Guru Purnima Kab Hai

गुरुओं के प्रति श्रद्धा-भाव और आस्था के इस पर्व को हिन्दू कैलेंडर के आषाढ़ महीने की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है।

गुरु पूर्णिमा के इस पावन पर्व को, श्री मदभगवतगीता, समस्त 18 पुराण और चार वेदों की रचना करने वाले संस्कृत के प्रकंड विद्धान महर्षि वेदव्यास जी की जयंती के उपलक्ष्य में मनाया जाता है।

वेदव्यास जी ने अपनी महान रचनाओं के माध्यम से समस्त संसार को सही और गलत के ज्ञान का बोध करवाया है, साथ ही अपनी रचनाओं में कई ऐसे उपदेश दिए हैं, जिससे मनुष्य का कल्याण हो सकता है, इसलिए उन्हें पूरे संसार का गुरु यानि कि “आदि गुरु” भी माना जाता है।

महामुनि वेद व्यास जी के नाम पर गुरुओं के आदर भाव के इस पर्व को व्यास पूर्णिमा और व्यास जयंती भी कहा जाता है। इसके अलावा गुरु पूर्णिमा को गुरु पूनम और आषाढ़ी पूनम आदि के नामों से भी जाना जाता है।

इसके अलावा गुरु पूर्णिमा को मनाने के पीछे ये भी मान्यता है कि गुरु पूर्णिमा के दिन ही भगवान शंकर ने सप्तऋषियों को योग करने का मंत्र दिया था एवं गौतम बुद्ध ने सारनाथ में अपना पहला उपदेश सुनाया था इसलिए इस पर्व को गुरु पूर्णिमा के रुप में मनाते हैं।

उपसंहार

तो गुरु पूर्णिमा के इस पावन पर्व के माध्यम से हर शिष्य के अंदर अपने गुरु के अंदर मान-सम्मन की भावना पैदा होती है साथ ही गुरु-शिष्य के रिश्ते की डोर और भी अधिक मजबूत होती है।

“गुरु बिना ज्ञान नहीं और ज्ञान बिना आत्मा नहीं,
कर्म, धैर्य, ज्ञान और ध्यान सब गुरु की ही देन है।।”

गुरु पुर्णिमा पर निबंध – Guru Purnima Essay

प्रस्तावना

गुरु-शिष्य का रिश्ता दुनिया का सबसे सच्चा और पवित्र रिश्ता है, जिसमें एक सच्चा गुरु निस्वार्थ भाव से अपने शिष्य के जीवन को सफल बनाने के लिए मेहनत करता है और अपने शिष्य के अंदर सभी अच्छे गुणों का विकास करता है।

और एक सच्चा शिष्य अपनी पूरी श्रद्धा और लगन के साथ अपने गुरुओं के बताए गए मार्ग पर चलता और उनके उपदेशों का अनुसरण करता है। इसलिए गुरु-शिष्य के रिश्ते का महत्व अनादिकाल से चला रहा है।

वहीं गुरुओं को हमारे शास्त्रों में भी विशिष्ट स्थान दिया गया है,और गुरुओं के आदर-सम्मान और उनके प्रति कृतज्ञता प्रकट करने के लिए गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है।

“गुरु बिन ज्ञान न उपजै, गुरु बिन मिलै न मोक्ष।
गुरु बिन लखै न सत्य को, गुरु बिन मैटैं न दोष।।”

गुरु पूर्णिमा का पर्व – Guru Purnima

आषाढ़ माह की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को मनाया जाने वाला गुरु पूर्णिमा या व्यास पूर्णिमा का पर्व गुरुओं के प्रति समर्पित एक आदर्श पर्व है। जिसे पूरे भारत देश में चार वेदों की निर्मति करने वाले वेदव्यास जी की जयंती के उपलक्ष्य में हर्ष और उल्लास के साथ मनाते हैं।

इस दिन लोग अपने आराध्य गुरु का ध्यान करते हैं और उनके प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट करते है एवं उनके जीवन को सफल बनाने एवं उन्हें सभ्य और सदाचारी बनाने के लिए आभार प्रकट करते हैं।

गुरुओं के आदर-सम्मान करने के इस पावन पर्व वाले दिन लोग गरीब, असहाय और जरूरतमंदों की मद्द करते हैं। गुरु पूर्णिमा के पावन पर्व लोगों को गुरु की महत्वता को बताने के लिए और गुरु और शिष्य के पवित्र बंधन को डोर को मजबूत करने का एक श्रेष्ठ पर्व हैं।

गुरु पूर्णिमा कैसे मनाई जाती है? – How to Celebrate Guru Purnima

हिन्दू धर्म में गुरु पूर्णिमा का विशेष महत्व है। इस दिन लोग भगवान विष्णु, ब्रहा् और शिव जी समेत अपने आराध्य गुरु का पूरे श्रद्धा भाव और आस्था के साथ पूजन करते हैं।

इसके साथ ही अपने गुरुओं का सम्मान करते हैं एवं उनके सभी दोषों को विकारों को मिटाने के लिए उन्हें एक सभ्य और शिक्षित मनुष्य बनाने के लिए उनके प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट करते हैं।

इस दिन शिष्य अपने गुरुओं का पूजन कर उन्हें वस्त्र आदि भी भेंट करते हैं, साथ ही गुरु दक्षिणा भी देते हैं।

गुरु पूर्णिमा के पावन पर्व के मौके पर शिष्य, उनका सही मार्गदर्शन करने वाले एवं उनके अंदर सही-गलत की समझ पैदा करने वाले अपने गुरुओं का मान-सम्मान एवं उनका पूजन आदि करने से कल्याणकारी आशीर्वाद प्राप्त होता है और मनवांछित फल की प्राप्ति होती है।

गुरुओं की पूजा करने के इस खास पर्व के दिन गंगा, यमुना समेत किसी भी पवित्र आदि में स्नान करते हैं। इस दिन कई स्कूल-कॉलेजों में गुरुओं और शिक्षकों को सम्मानित किया जाता है।

इसके साथ ही कई धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी आयोजन होता है, भाषण एवं निबंध लेखन प्रतियोगिताएं आयोजित होती हैं जिसमें छात्र गुरुओं की महिमा का बखान करते हैं और उनके महत्व को बताते हैं।

इस पावन पर्व पर जगह-जगह भंडारों का आयोजन होता है और मेले लगते हैं। इसके अलावा इस दिन लोग अपने गुरुओं का पूजन कर उनके लिए उपवास भी रखते हैं।

वहीं जो लोग किसी को अपना गुरु नहीं मानते हैं, वे लोग इस दिन भगवान शिव जी, ब्रह्रा जी और गुरु-शिष्य परंपरा के प्रथम गुरु वेद व्यास जी का पूजन करते हैं।

उपसंहार

गुरु पूर्णिमा जैसे पर्वों के माध्यम से जहां अपने गुरुओं के प्रति सम्मान का भाव प्रकट कर अपने गुरु से अपने रि्श्ते को और अधिक मजबूत करने का मौका मिलता है, वहीं दूसरी तरफ आजकल गुरु-शिष्य का रिश्ता भी कलंकित हो रहा है।

कई ऐसी अपराधिक घटनाएं सामने आ रही हैं, जिससे इस रिश्ते की महत्वता कम होती जा रही है, वहीं लोग कहीं न कहीं अपने जीवन में भटक गए हैं, जिन्हें फिर से एक मार्ग पर लाने की जरूरत है और इस रिश्ते की महत्वता को समझने की जरूरत है।

गुरु पुर्णिमा पर निबंध – Essay on Guru Purnima

प्रस्तावना

गुरु निस्वार्थ भाव से पूरी निष्ठा और श्रद्धा के साथ अपने पूरे जीवन भर अपने शिष्यों के जीवन को सफल बनाने के लिए कठोर मेहनत और तप करता है एवं उनके जीवन में ज्ञान की ज्योति जलाकर उनके जीवन से अंधकार मिटाता है।

ऐसे गुरु की महिमा अपरम्पार है, गुरु की महिमा को शब्दों में नहीं पिरोया जा सकता है, वहीं किसी बड़े कवि ने गुरु के गुणों को अपने दोहे के माध्यम से बताने की कोशिश करते हुए कहा है –

“सब धरती कागज करू, लेखनी सब वनराज।
सात समुंद्र की मसि करु, गुरु गुंण लिखा न जाए।।”

अर्थात इस दोहे के माध्यम से कवि कहते हैं कि अगर पूरी धरती को लपेट कर कागज बना लिया जाए और सभी जंगलों के पेड़ो से कलम बना ली जाए, एवं इस दुनिया के सभी समुद्रों को मथकर स्याही बना ली जाए, तब भी गुरु की महिमा का वर्णन नहीं किया जा सकता है।

वहीं गुरु पूर्णिमा का पावन पर्व गुरुओं के सम्मान और उनकी पूजा करने का दिन है। इसलिए इस पर्व को पूरी श्रद्धा और आस्था के साथ मनाना चाहिए।

गुरु का अर्थ – Meaning of Guru

गुरु शब्द, गु और रु दो अक्षरों से मिलकर बना है, जिसमें गु का अर्थ अंधकार से और रु का अर्थ निरोधक अथवा अंधकार को दूर करने वाले लिया गया है अथवा गुरु ही व्यक्ति के जीवन में सभी तरह के अंधकारों को दूर कर उसके जीवन में प्रकाश भरता है और सही मार्गदर्शन कर व्यक्ति को सफलता के पथ पर अग्रसर करता है।

इसलिए, हम सभी को गुरुओं का सम्मान करना चाहिए और उनके महत्व को समझना चाहिए क्योंकि गुरु के बिना ज्ञान संभव नहीं है और ज्ञान के बिना कोई भी व्यक्ति आत्मसात नहीं कर सकता है क्योंकि वह मनुष्य एक पशु की भांति नासमझ और अज्ञानी होता है।

गुरु पूर्णिमा का महत्व – Importance of Guru Purnima

गुरुओं के महत्वता का तो बखान बड़े-बड़े कवि और ऋषि मुनियो ने भी किया है, वहीं कई संत कबीर ने तो गुरु को भगवान से भी ऊंचा दर्जा देते हुए कहा है कि –

“गुरु गोविन्द दोनों खड़े, काके लागूं पाँय।
बलिहारी गुरु आपनो, गोविंद दियो बताय॥”

गुरु ने ही ईश्वर तक पहुंचने का मार्ग बताया है औऱ मनुष्य को संसारिक ज्ञान का बोध करवाया है, इसलिए गुरुओं का शास्त्रों और वेदों में भी विशष्ट स्थान दिया गया है। अर्थात गुरु, भगवान की तरह पूज्य होते हैं, इसलिए गुरु पूर्णिमा के पावन पर्व के मौके पर गुरुओं की पूजा-अर्चना की जाती है और उनका आदर-सम्मान कर उनके प्रति कृतज्ञता प्रकट की जाती है।

गुरुओं के पर्व गुरु पूर्णिमा के दिन शिष्यों को अपने गुरु को गुरु दक्षिणा भी देनी चाहिए। मोक्ष का मार्ग दिखाने वाले गुरुओं से मंत्र प्राप्त करने का और अपने गुरु से रिश्ते को और अधिक मजबूत करने का यह दिन बेहद खास दिन है, इसलिए इस पावन पर्व को पूरी श्रद्धा और आस्था के साथ मनाया जाना चाहिए।

उपसंहार

गुरु पूर्णिमा का पावन पर्व अपने गुरुओं के महत्व को समझने के लिए और उनका आदर-सम्मान करने के लिए एक महत्वपूर्ण दिन है, इस दिन हर किसी को अपने गुरुओं का शुक्रिया अदा करना चाहिए एवं इस पर्व को पूरी श्रद्धा के साथ मनाना चाहिए।

“गुरु आपके इस उपकार का,
मै कैसे चुकाऊं मोल ?
लाख कीमती धन भला..
लेकिन गुरु है मेरा सबसे अनमोल..”

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“भारत का दिल”मध्य प्रदेश | Madhya Pradesh tourism

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Madhya Pradesh tourism

मध्य प्रदेश को “भारत का दिल” देश के केंद्र में अपने स्थान के कारण कहा जाता है। यह हिंदू धर्म, इस्लाम, बौद्ध धर्म, सिख धर्म और जैन धर्म की सांस्कृतिक विरासत का घर रहा है। राज्य के अनगिनत स्मारक, उत्कृष्ट रूप से नक्काशीदार मंदिरों, स्तूप, किलों और महलों के वजह से इसे एक ऐतिहासिक भूमि भी कह सकते हैं।

मध्यप्रदेश राज्य अपने समृद्ध इतिहास, प्राकृतिक सुंदरता, एवं प्रमुख धार्मिक स्थलों की वजह से हमेशा से ही पर्यटकों के आकर्षण का प्रमुख केंद्र रहा है।

यहाँ पर कई ऐसी चीजे हैं जो पर्यटन की दृष्टि से बहत महत्वपूर्ण है। हर वर्ग एवं उम्र के लोगो के घूमने की दृष्टि से यह एक अच्छी जगह है। हर व्यक्ति अपनी पसंद के अनुसार जगहों पर भ्रमण कर सकता है। अगर आप धार्मिक प्रवृत्ति के हैं, तो यहाँ कई ऐसे मंदिर हैं जहां आप दर्शन हेतु जा सकते हैं।

अगर आपको प्रकृति एवं जानवरों से प्यार है तो कई ऐसे नेशनल पार्क यहाँ बने हुए हैं जहाँ आप भ्रमण कर सकते हैं। इसके अलावा ऐसी कई खूबसूरत प्राकृतिक जगह हैं जहाँ आप अपनी यात्रा का आनन्द उठाने के लिए जा सकते हैं।

Madhya Pradesh tourism

Madhya Pradesh tourism – “भारत का दिल” मध्य प्रदेश

ग्वालियर अपने किले, जय विलास पैलेस, राणी लक्ष्मीबाई के मकबरे, मोहम्मद घोस और तानसेन के लिए प्रसिद्ध है। खजुराहो के मंदिर उनके कामोत्तेजक मूर्तियों के लिए विश्व प्रसिद्ध हैं, और यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल हैं। प्रसिद्ध राष्ट्रीय पार्क जैसे कान्हा राष्ट्रीय उद्यान, बांधवगढ़, माधव राष्ट्रीय उद्यान, शिवपुरी, पेंच मध्य प्रदेश में स्थित हैं।

बाघ की आबादी के कारण मध्य प्रदेश को टाइगर राज्य भी कहा जाता है।

शानदार पहाड़ी पर्वतमाला, नदियां और घने जंगलों के मील और मील की दूरी पर स्थित सिल्वन परिवेश में वन्य जीवन के एक अद्वितीय और रोमांचक चित्रमाला की पेशकश होती है।

मध्यप्रदेश नर्मदा नदी के लिए बहुत ज्यादा जाना जाता है, यह सबसे पुरानी और पवित्र नदी है और यह हिंदू धर्म में नदी को देवी के रूप में पूजा जाता है। यह हिंदुओं के लिए तीर्थस्थल केंद्र है। एक और महान पर्यटन स्थल जबलपुर में भेदघाट धरती है। यह जगह विभिन्न रंगों के संगमरमर से घिरी हुई है।

मध्यप्रदेश राज्य में बोली जाने वाली मुख्य भाषा – Madhya Pradesh Language

मध्यप्रदेश राज्य की मुख्य भाषा हिंदी है, परन्तु राज्य के कुछ हिस्सों में उर्दू एवं मराठी भाषा का प्रयोग होते हुए देखा जा सकता है। इसके अलावा मालवी, निमाड़ी, बुंदेली, बघेली, तेलुगु, गोंडी एवं कोरकू इत्यादि भाषा का उपयोग भी इस राज्य के कुछ हिस्सों में होता है।

मध्यप्रदेश की खान-पान – Madhya Pradesh Food

मध्यप्रदेश राज्य में आपको शाकाहारी एवं मांसाहारी दोनों तरह के व्यंजन आसानी से खाने को मिल जाएंगे। यहाँ के प्रसिद्ध व्यंजनों में शामिल है- दाल बाफला, पोहा जलेबी, भुट्टे की कीस, भोपाली गोश्त कोरमा, रोगन जोश, बिरयानी पिलाफ़, सीख कबाब, इंदौरी नमकीन, मावा बाटी इत्यादि।

मध्यप्रदेश की जलवायु – Madhya Pradesh Weather

मध्य प्रदेश ग्रीष्म ऋतु में गर्म एवं शुष्क रहता है। मार्च से जून के बीच यहाँ का तापमान लगभग 29℃ से 48℃ तक पहुच जाता है। जून के बाद जब बारिश होती है, तब यहाँ के तापमान में गिरावट देखने को मिलती है।

शीत ऋतु में यहाँ का मौसम शुष्क एवं खुशनुमा रहता है। दिसम्बर-जनवरी के मौसम में यहाँ बरसात होने की संभावना बढ़ जाती है।

मध्यप्रदेश कैसे पहुँचे – How to Reach Madhya Pradesh

मध्यप्रदेश राज्य में परिवहन की दृष्टि से बस, ट्रेन एवं फ्लाइट्स की सुविधा उपलब्ध है।

  • मध्यप्रदेश में कई राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे हैं, जहाँ से आपको देश- विदेश की फ्लाइट्स की सुविधा मिल जाएगी।
  • मध्यप्रदेश राज्य में 20 बड़े रेलवे स्टेशन हैं, एव लगभग 18 छोटे रेलवे स्टेशन हैं, जहाँ से देश के लगभग हर हिस्से के लिए रेलगाड़ियां चलती हैं।
  • मध्यप्रदेश में रोडवेज़ की अच्छी सुविधा उपलब्ध है। हाल ही में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने ‘सूत्र सेवा’ योजना की शुरुआत कर के इस राज्य के हर जिले को यहाँ की राजधानी भोपाल से जोड़ दिया है। साथ ही सरकारी बसों की सुविधा को और भी अधिक बेहतरीन बनाने के क्षेत्र में यह योजना कार्यरत है।

आकर्षण के स्थान,

  • साँची का स्तूप
  • ओरछा पैलेस
  • भीमबेटका के रॉक आश्रयों, एक यूनेस्कोवार्ड हेरिटेज साइट
  • अमरकंटक के प्राचीन मंदिर
  • बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान में बाघ की आबादी का सबसे ज्यादा ज्ञात घनत्व है।

एमपी यानि मध्यप्रदेश में और भी कुछ मध्य प्रदेश के दर्शनीय स्थल – Tourist Places in Madhya Pradesh

• कान्हा किसली – Kanha National Park

एशिया का सबसे बेहेतरीन नेशनल पार्क इसे कहा गया है। आपको यहाँ पर अलग अलग जानवरों समेत बेहतर वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफी का अनुभव मिल सकता है। जंगल बुक सीरियल की प्रेरणा यही से ली गई थी। यह दो हजार वर्ग किलो.मी. में फैला हुआ है।

• पचमढ़ी – Pachmarhi

एमपी में जब भी घूमने का विचार आता है सबसे पहले यही जगह याद आती है। सतपुड़ा पर्वतमालाओ के बीच स्थित यह जगह को “सतपुड़ा की रानी” भी कहा जाता है। आप यहाँ जटाशंकर गुफा, प्रियदर्शनी पॉइंट, पांडव गुफा, अप्सरा विहार, बी फाल, हांडी खोह और राजेंद्र गिरी जैसी जगहें घूम सकते हैं।

यहाँ रहना और खाना सस्ता है और आप दो दिन के अंदर इन जगहों में घूम सकते हैं।

• खजुराहो – Khajuraho

एमपी का सबसे बढ़िया पर्यटन स्थल है खुजुराहो। यहाँ के मंदिरों में अलग अलग कामुक चित्र उकेरे गए हैं जिनकी मूर्तियों के रंग रौशनी के साथ बदलते रहते हैं। आपको यहाँ जरूर जाना चहिये।

• भोपाल – Bhopal

राज्य की राजधानी भोपाल को झीलों का शहर भी कहते हैं। यहाँ पर लेक व्यू और दरगाह के बीच का नजारा देखने के लिए पर्यटक आते हैं। शाम के समय जील के किनारे बैठना मजेदार होता है।

• जबलपुर – Jabalpur

यहाँ का धुआंधार फाल्स तो दुनियाभर में मशहूर है जहाँ आप जा सकते हैं। इसके अलावा जबलपुर से 23 किलोमीटर दूर भेडाघाट भी है जहाँ आप जा सकते हैं।

इस शहर को मार्बलरॉक्स के नाम से जाना जाता है क्योकि नर्मदा नदी के दोनों तरफ उची ऊँची चट्टानें है और आप नदी में बोटिंग का मजा ले सकते हैं। नवम्बर से लेकर मई महीने तक यहाँ बोटिंग होती है।

• ओरछा – Orchha

बेतवा नदी के किनारे स्थित इस जगह को एक समय बुन्देल राजाओं ने अपनी राजधानी बनाई थी। यहाँ बना ओरछा किला वास्तुकला और चित्रकारी की जीता जागता उदाहरण है। इसके अलावा आप यहाँ चतुर्भुज मंदिर, राज महल, राम राजा मंदिर और लक्ष्मीनारायण मंदिर घूम सकते हैं।

• व्हाइट टाइगर सफारी, मुकुंदपुर – White Tiger Safari

रीवा- सतना रोड पर स्थित यहाँ जगह बीते कुछ सालों से आस्तित्व में आई है क्योकि यहाँ पर सफ़ेद बाघ आपको देखने मिल जायेगे। आफ्रिका से लाये हुए सफ़ेद बाघ को देखने के लिए दूर दूर से यहाँ पर्यटक आते हैं। इसके अलावा सफारी में आपको और भी जानवर दिखाई देंगे।

• मांडू – Mandu

इंदौर से लगभग सौ किलोमीटर दूर स्थित मांडू विन्ध्य की पहाड़ियों में दो हजार फिट ऊपर स्थित है। इस जगह राजा बाजबहादुर और उनकी सुंदर पत्नी रूपमती की यादों का बसेरा है। आप यहाँ जाकर जहाज महल, रानी रूपमती का महल, बाजबहादुर का महल, असर्फी महल, हिंडोला महल और शाही हमाम आदि देख सकते हैं।

• ग्वालियर – Gwalior

एमपी की सबसे प्राचीन विरासत देखने के लिए आपको ग्वालियर जाना चाहिए। कई सारे एतिहासिक लड़ाइयों और रक्तपातो की गवाही देते इस शहर में आप ग्वालियर का किला, जयविलास महल और म्यूजियम, मानमंदिर महल, तानसेन स्मारक आदि देख सकते हैं। भारत के सबसे शानदार महलों में से एक है ग्वालियर महल।

• चित्रकूट – Chitrakoot

भगवान् राम ने अपने वनवास के दौरान माता सीता और लक्ष्मण के साथ यहाँ 11 वर्ष का समय बिताया। यह खजुराहो से 195 किलोमीटर दूर है और विन्ध्य की पहाड़ियों में स्थित है। आप यहाँ जाकर सीता रसोई, हनुमान धारा, रामघाट, कामदगिरी, सीता कुंद, सती अनुसुइया मंदिर, गुप्त गोदावरी और भरत कूप आदि घूम सकते हैं। कहते हैं की सीता जी और राम भगवान् की बहुत सारी चीजे यहाँ रखी हुई हैं।

ये हैं एमपी की सबसे बढ़िया जगहें जहाँ आप घूमने जा सकते हैं। सबसे बड़ी बात की एमपी मंहगा नहीं है और आप कम खर्चे में भी इन जगहों को देख सकते हैं।

मध्यप्रदेश राज्य के मुख्य पर्यटन स्थल – Places to Visit in Madhya Pradesh

मध्यप्रदेश राज्य पर्यटन की दृष्टि से भारत का एक महत्वपूर्ण राज्य है। यहाँ पर कई ऐसे धार्मिक, ऐतिहासिक एवं प्राकृतिक स्थल हैं, जो देश-विदेश से आने वाले पर्यटकों को अपनी तरफ आकर्षित करते हैं। यहाँ आने वाले पर्यटक यहां के प्रमुख ऐतिहासिक इमारतों में खो जाते हैं।

  • धार्मिक स्थल – Devotional Places in Madhya Pradesh

मध्यप्रदेश में कई ऐसे धार्मिक स्थल हैं जो अत्यंत प्राचीन होने के साथ-साथ, इनकी धार्मिक मान्यता भी अत्यधिक है। दूर-दूर से लोग मन मे कई मुरादें लेकर यहाँ दर्शन के लिए आते हैं।

आइए जानते हैं मध्यप्रदेश के प्रमुख धार्मिक स्थलों के बारे में-

1.महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग-

मध्यप्रदेश राज्य के उज्जैन शहर में शिप्रा नदी के तट पर यह मंदिर स्थित है। भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग में से महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग सबसे महत्वपूर्ण है। यह मंदिर काफी बड़े क्षेत्रफल में फैला हुआ है, जहाँ पर कई देवी-देवताओं के अन्य मंदिर भी स्थित हैं। यह हिंदुओं के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है। दूर-दूर से श्रद्धालु इस मंदिर में दर्शन हेतु आते हैं।

महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारियां-

  • यह मंदिर उज्जैन जंक्शन से 1.5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहाँ से आप टैक्सी की सुविधा लेकर इस मंदिर तक पहुच सकते हैं।
  • समय-सारणी- 4:00AM-11:00PM रोजाना।
  • यहाँ घूमने में लगभग 1 घण्टे का समय लग जाता है।
  • प्रवेश-शुल्क- निःशुल्क।

2. श्री द्वारकाधीश गोपाल मंदिर-

यह मंदिर मध्यप्रदेश राज्य के उज्जैन शहर का दूसरा बड़ा मंदिर है। इस मंदिर की स्थापना सन 1844 में हुई थी, एवं सन 1852 में इस मंदिर में मूर्ति स्थापित की गई थी। इस मंदिर की खास बात यह है कि मंदिर में लगा हुआ दरवाजा चांदी का बना हुआ है। इसके अलावा मंदिर के दीवारों पर की गयी सुंदर नक्काशी लोगों के मन को मोह लेती है।

श्री द्वारकाधीश गोपाल मंदिर से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारियां-

  • यह मंदिर उज्जैन रेलवे स्टेशन से 1.7 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहाँ पहुंचने के लिए टैक्सी की सुविधा उपलब्ध है।
  • समय-सारणी- 5:30AM-12:00PM एवं 3:00PM-9:00 PM रोजाना।
  • यहाँ घूमने में लगभग 1 घंटे का समय लग जाता है।
  • प्रवेश-शुल्क- निःशुल्क।

3.काल भैरव मंदिर-

यह मंदिर मध्यप्रदेश राज्य के उज्जैन शहर में शिप्रा नदी के तट पर स्थित है। यह हिंदुओं के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है, जो हिंदुओ के देवता काल भैरव को समर्पित है। इस मंदिर से जुड़ी खास मान्यता यह है कि यहाँ पर भगवान को पूजा के समय फूल प्रसाद इत्यादि के साथ शराब चढ़ाया जाता है।

काल भैरव मंदिर से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारियां-

  • यह मंदिर उज्जैन रेलवे स्टेशन से 7 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। रेलवे स्टेशन से यहाँ पहुँचने के लिए टैक्सी इत्यादि की सुविधा उपलब्ध है।
  • समय-सारणी- 6:00AM-12:00PM एवं 2:00PM-8:00PM रोजाना।
  • प्रवेश-शुल्क- निःशुल्क।

4.चिंतामन गणेश मंदिर-

यह अत्यंत प्राचीन मंदिर है, जो मध्यप्रदेश के उज्जैन शहर में स्थित है। ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर की स्थापना 9वीं शताब्दी से 13वीं शताब्दी के बीच में हुई थी। यह मंदिर भारत मे बने गणेश जी के सबसे बड़े मंदिरों में से एक है। इस मंदिर में गणेश जी की तीन प्रतिमा विराजमान है, जिसमे से पहली प्रतिमा ‘चिंतामन’ जो कि चिंताओं से मुक्ति देती है, दूसरी ‘इच्छामन’ जो लोगों के मन की इच्छाओं को पूरी करती है, एवं तीसरी प्रतिमा ‘सिद्धिविनायक’ के नाम से जानी जाती है जिसके दर्शन से सिद्धि की प्राप्ति होती है।

चिन्तामन गणेश मंदिर से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारियां-

  • यह मंदिर उज्जैन रेलवे स्टेशन से 7 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहां पहुँचने के लिए ऑटो इत्यादि की सुविधा उपलब्ध है।
  • समय-सारणी- 6:00AM-12PM एवं 5:00PM-10:00PM रोजाना।
  • यहाँ घूमने में लगभग 1 घंटे का समय लग जाता है।
  • प्रवेश-शुल्क- निःशुल्क।

5.कंदरिया महादेव मंदिर-

इस मंदिर का निर्माण 999 सन ई० में हुआ था। यह मंदिर मध्यप्रदेश राज्य के खजुराहो शहर में स्थित सबसे विशाल मंदिरों में से एक है। इस मंदिर के मुख्य आराध्य देव भगवान शिव हैं। स्थानीय मान्यता के अनुसार उस मंदिर का नाम कंदरिया भगवान शिव के नाम कंदर्प से पड़ा है।

यह मंदिर खजुराहो शहर की वास्तुकला का अद्भुत उदाहरण है।

कंदरिया महादेव मंदिर से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारियां-

  • यह मंदिर खजुराहो मुख्य शहर से 8.3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
  • समय-सारणी- 5:00AM-12:00PM एवं 4:00PM-9:00PM रोजाना।
  • यहां घूमने में लगभग 1 घण्टे का समय लग जाता है।
  • प्रवेश-शुल्क- 10रु./व्यक्ति।

6.आदिनाथ मंदिर-

यह एक जैन मंदिर है, जिसका निर्माण 11वीं शताब्दी में चंदेल वंश के शासकों द्वारा कराया गया था। इस मंदिर की दीवारों ओर सुंदर कलाकृति देखने को मिल जाती है। राजा आदिनाथ के दरबार की प्रसिद्ध नर्तकी नीलांजना के नृत्य की शैली की बारीकी को कलाकृति के माध्यम से यहाँ दर्शाया गया है।

यहां आने वाले पर्यटकों को यहाँ की सुंदर कलाकृति अपनी तरफ आकर्षित करती है।

आदिनाथ मंदिर से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारियां-

  • यह मंदिर खजुराहो रेलवे स्टेशन से 9.2 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
  • समय-सारणी- 5:00AM-12:00PM एवं 4:00PM-9:00PM रोजाना।, यहाँ घूमने में लगभग 1 घंटे का समय लग जाता है।
  • प्रवेश-शुल्क- निःशुल्क।
  1. लक्ष्मण मंदिर-

इस मंदिर की स्थापना चंदेल वंश के शासकों ने 930-950 ई० में कराया था। इस मंदिर के प्रमुख आराध्य देव भगवान विष्णु हैं। इस मंदिर का प्रमुख आकर्षण, मंदिर के दीवारों के बाहरी हिस्सो एवं चबूतरों पर बनी युद्ध, शिकार, सैनिक, हांथी-घोड़ो इत्यादि की आकृति है।

लक्ष्मण मंदिर से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारियां-

  • यह मंदिर खजुराहो रेलवे स्टेशन से 8.3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
  • समय-सारणी- 5:00 AM-12:00PM एवं 4:00PM-9:00PM रोजाना।
  • यहां घूमने में लगभग 1 घण्टे का समय लग जाता है।
  • प्रवेश-शुल्क- 10रु. /व्यक्ति (भारतीय पर्यटकों के लिए), 250रु./व्यक्ति (विदेशी पर्यटकों के लिए)

8.मतंगेश्वर मंदिर-

यह एक ऐतिहासिक मंदिर है। यह मंदिर लक्ष्मण मंदिर के पास ही स्थित है। अगर कलात्मकता की बात की जाए तो यह मंदिर बहुत कलात्मक नही है, परन्तु इसकी बहुमंजिला इमारत पर्यटकों को अपनी तरफ आकर्षित करती है। इस मंदिर का निर्माण काल 950-1002 ई० के लगभग माना जाता है।

मतंगेश्वर मंदिर से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारियां-

  • यह मंदिर खजुराहो रेलवे स्टेशन से 8.3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
  • समय-सारणी- 6:00AM-6:00PM रोजाना।, यहां घूमने में लगभग 30 मिनट का समय लग जाता है।
  • प्रवेश-शुल्क- निःशुल्क।

9.जावरी मंदिर-

इस मंदिर का निर्माण काल 950-975 ई० के मध्य माना जाता है। इस मंदिर की शिल्पकला अत्यंत उत्कृष्ट है। इस मंदिर की रचनाशैली इसे अन्य मंदिरों से अलग पहचान दिलाती है।

जावरी मंदिर से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारियां-

  • यह मन्दिर खजुराहो रेलवे स्टेशन से 9.1 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।

10.ओंकारेश्वर मंदिर-

यह एक प्रसिद्ध हिन्दू मंदिर है जो मध्यप्रदेश के खंडवा जिले में स्थित है। यह मंदिर नर्मदा नदी के बीच में एक द्वीप पर स्थित है। इस द्वीप का नाम मन्धाता अथवा शिवपुरी है। इस मंदिर के विषय में यह मान्यता है कि यहाँ पर 33 करोड़ देवी-देवता अपने पूरे परिवार के साथ निवास करते हैं।  इस के अलावा इस मंदिर में भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से 2 ज्योतिर्लिंगों के साथ कुल 108 शिवलिंग स्थापित हैं। यह अत्यंत पुराना मंदिर है, जिज़के निर्माण काल के बारे में ठीक-ठीक कुछ ज्ञात नही है।

ओंकारेश्वर मंदिर से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारियां-

  • यह मंदिर खंडवा रेलवे स्टेशन 70.4 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
  • समय-सारणी-5:00AM-10:00PM रोजाना।, यहाँ घूमने में 2 से 3 घण्टे का समय लग जाता है।
  • प्रवेश-शुल्क- निःशुल्क।

मध्यप्रदेश के ऐतिहासिक स्थल – Historical Places in Madhya Pradesh

मध्यप्रदेश इतिहास की दृष्टि से अत्यंत धनी राज्य है। यहाँ पर कई ऐसे ऐतिहासिक स्थल हैं, जिन्हें देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं। यहाँ आने वाले पर्यटक यहां की ऐतिहासिक इमारतों में खो जाते हैं।

आइए जानते हैं मध्यप्रदेश राज्य के खास ऐतिहासिक इमारतों के बारे में-

1.सांची स्तूप-

यह इमारत बेतवा नदी के तट पर स्थित है। यह अत्यंत प्राचीन इमारत है, जिसका निर्माण तीसरी शताब्दी ई०पू० में हुआ था।  यह एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है, यहाँ पर कुल तीन स्तूप है, जो कि भारत के सबसे संरक्षित स्तूपों में से एक है। इसके केंद्र में एक अर्धगोलाकार ढांचा बना हुआ जिसमें भगवान बुद्ध के अवशेष रखे गए हैं।

सांची स्तूप से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारियां-

  • सांची स्तूप मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल से 47.6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
  • समय-सारणी- 8:30AM-5:30PM (मंगलवार बन्द)
  • यहाँ घूमने में लगभग 2 घण्टे का समय लग जाता है।
  • प्रवेश-शुल्क- 10रु./व्यक्ति (भारतीय पर्यटकों के लिए), 250रु./व्यक्ति (विदेशी पर्यटकों के लिए)

नोट:15 साल से कम उम्र के बच्चों का प्रवेश निःशुल्क।

2.खजुराहो स्मारक समूह-

खजुराहो स्मारक समूह मुख्यतः हिन्दू और जैन धर्म के स्मारकों का समूह है। इस स्मारक समूह को यूनेस्को विश्व धरोहर में सम्मिलित किया गया है। इस समूह में कई मंदिर सम्मिलित हैं। यहां पर बने मंदिर नगारा वास्तुकला के प्रतीक हैं।

खजुराहो स्मारक समूह से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारियां-

  • यह स्थल झांसी से लगभग 175 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
  • समय-सारणी- 8:00AM-6:00PM रोजाना।
  • प्रवेश-शुल्क- 10रु./व्यक्ति।

3.ग्वालियर का किला-

यह किला ग्वालियर शहर का एक प्रमुख इमारत है जो गोपांचल पर्वत पर स्थित है। इस किले का निर्माण काल 8वीं से 14वीं शताब्दी के मध्य माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस किले का निर्माण मान सिंह तोमर ने कराया था। वर्तमान समय मे यह किला एक संग्रहालय के रुप में जाना जाता है।

ग्वालियर किले से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारियां-

  • यह किला ग्वालियर रेलवे स्टेशन से 3.4 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
  • समय-सारणी-9:00AM-5:00PM रोजाना.
  • यहाँ घूमने में 1 से 2 घंटे का समय लग जाता है।
  • प्रवेश-शुल्क- 75रु./व्यक्ति (वयस्कों के लिए), 40रु./व्यक्ति (बच्चों के लिए), 250रु./व्यक्ति, (विदेशी पर्यटकों के लिए)
  1. ताज-उल-मस्जिद-

यह मस्जिद भारत के सबसे विशाल मस्जिदों में से एक है। इस मस्जिद के निर्माण को लेकर यह माना जाता है कि, भोपाल के 8वें शासक शाहजहां बेगम के शासन काल मे इस मस्जिद का निर्माण कार्य शुरू हुआ था, जो कि पैसो की तंगी की वजह से पूर्ण नही हो पाया था, बाद में सन 1973 ने भारत सरकार की पहल में इस मस्जिद का निर्माण कार्य पूरा हो सका।

ताज-उल-मस्जिद से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारियां-

  • यह मस्जिद भोपाल जंक्शन से 3.9 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
  • समय-सारणी- 6:00AM-8:00PM रोजाना।

नोट: इस मस्जिद में शुक्रवार के दिन गैर-मुस्लिम लोगों का प्रवेश निषेध है।

  • प्रवेश-शुल्क- निःशुल्क।

5.भीमबेटका रॉक शेल्टर(शैलाश्रय)-

यह एक पुरापाषानिक आवासीय स्थल है। जिसकी खोज वर्ष 1947-48 में डॉ विष्णु श्रीधर वाकणकर द्वारा की गई थी। इसके अंदर आदिमानव द्वारा बनाये गए शैलचित्र देखने को मिलते हैं। ऐसा माना जाता है कि ये चित्र पुरापाषाण काल से मध्य पाषाणकाल के मध्य के हैं। इस शैलाश्रय को यूनेस्को विश्व धरोहर में सम्मिलित किया गया है।

भीमबेटका रॉक शेल्टर से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारियां-

  • यह शैलाश्रय भोपाल जंक्शन से 45.7 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
  • समय-सारणी- 7:00AM-6:00PM रोजाना।
  • यहाँ घूमने में  1 से 2 घंटे का समय लग जाता है।
  • प्रवेश-शुल्क- 10रु./व्यक्ति (भारतीय पर्यटकों के लिए), 100रु./व्यक्ति (विदेशी पर्यटकों के लिए)

6.जामा मस्जिद-

इस मस्जिद का निर्माण कार्य सन 1832 ई० में नवाब कुदसिया बेगम के शासनकाल में शुरू हुआ था, तथा 1857 ई० में यह पूर्ण रूप से बनकर तैयार हुई थी। इस मंदिर की कलाकृति दिल्ली स्थित जामा मस्जिद के समान ही है।

जामा मस्जिद से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकरियां-

  • यह मस्जिद मांडू से 2.6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
  • समय-सारणी- 7:00AM-6:00PM रोजाना।
  • यहाँ घूमने में लगभग 30 मिनट का समय लग जाता है।
  • प्रवेश-शुल्क- निःशुल्क।

7.वीर सिंह पैलेस-

इस पैलेस का निर्माण नरेश वीर सिंह द्वारा 17वीं शताब्दी में करवाया गया था। नरेश वीर सिंह ने, बादशाह जहाँगीर के साथ अपनी दोस्ती की याद में इस महल का निर्माण कराया था। यह महल 7 मंजिल में बना हुआ है। इस महल की सबसे खास बात यह है कि 7 मंजिल की इमारत होने के बावजूद इस महल के निर्माण में कहीं भी लोहे अथवा लकड़ी का उपयोग नही किया गया है। यह एक वहुत ही खास बात है।

वीर सिंह पैलेस से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारियां-

  • यह महल मध्यप्रदेश राज्य के एक छोटे से शहर दतिया में स्थित है। दतिया मुख्य शहर से इस महल की दूरी महज 1.3 किलोमीटर है।
  • समय-सारणी- यह महल 24 घण्टे खुला रहता है।
  • प्रवेश-शुल्क-निःशुल्क।
  • पर्यटन की दृष्टि से अन्य महत्वपूर्ण स्थल-

1.कान्हा टाइगर रिज़र्व-

कान्हा टाइगर रिज़र्व कान्हा नेशनल पार्क के नाम से भी जाना जाता है। इस पार्क का निर्माण 1933 में हुआ था। यह पार्क 940 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल में फैला हुआ है। कान्हा राष्ट्रीय उद्यान भारत का एकमात्र ऐसा जंगली उद्यान है जहां बड़ी मात्रा में प्रकृति की प्रजातियां पायी जाती हैं। इसके अलावा भारत के सबसे प्रसिद्ध भारतीय बाघ इस उद्यान में रहते हैं, शायद इसी वजह से इसे टाइगर रिज़र्व के नाम से जाना जाता है।

कान्हा टाइगर रिज़र्व से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारियां-

  • यह उद्यान मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल से 160 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। जबकि इटारसी से इसकी दूरी 80 किलोमीटर है।
  • समय-सारणी- 6:00AM-12:00PM एवं 3:00PM-5:30PM रोजाना।
  • प्रवेश-शुल्क- 1,530रु. (भारतीय पर्यटकों के लिए), 3060रु. (विदेशी पर्यटकों के लिए)
  1. बांधवगढ़ नेशनल पार्क-

इस उद्यान का निर्माण 1968 में हुआ था, जो कि मध्यप्रदेश के उमरिया जिले में स्थित है। इस राष्ट्रीय उद्यान की खास बात यह है कि यह कुल 12 पहाड़ियों से घिरा हुआ है। यह उद्यान 437 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल में फैला हुआ है। इस राष्ट्रीय उद्यान में पशुओं की 22 एवं पक्षियों की कुल 250 प्रजातियां पायी जाती हैं।

बांधवगढ़ नेशनल पार्क से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारियां-

  • यह उद्यान उमरिया मुख्य शहर से 35 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
  • यहाँ घूमने में 5 से 6 घंटे का समय लग जाता है।
  • प्रवेश-शुल्क- 2,200रु./व्यक्ति (भारतीय पर्यटकों के लिए, जिसमे गाइड, गाड़ी का चार्ज सम्मिलित है), 4,300रु./व्यक्ति (विदेशी पर्यटकों के लिए, जिसमे गाइड एवं गाड़ी का चार्ज सम्मिलित है।)
  1. पन्ना नेशनल पार्क-

इसकी स्थापना 1981 में हुई थी। यह उद्यान 543 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल में फैला हुआ है। ज़ह 1994 में इस उद्यान के प्रोजेक्ट में बाघ को सम्मिलित किया गया था।

पन्ना नेशनल पार्क से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारियां-

  • यह उद्यान पन्ना मुख्य शहर से 52.6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
  • समय-सारणी- 6:30AM-10:30PM एवं 2:30PM-5:30PM रोजाना।
  • यहाँ घूमने में 6 से 7 घंटे का समय लग जाता है।
  • प्रवेश-शुल्क- 1250रु./व्यक्ति (भारतीय पर्यटकों के लिए), 2250रु./व्यक्ति (विदेशी पर्यटकों के लिए)
  1. धुंआधार जलप्रपात-

यह जलप्रपात जबलपुर जिले में स्थित है, जो कि भेड़ाघाट क्षेत्र का एक प्रमुख दर्शनीय स्थल है। यह जलप्रपात नर्मदा नदी के जल से बना हुआ है। यह 50 फ़ीट ऊंचा जलप्रपात है। जब नर्मदा नदी का जल 50 फ़ीट की ऊंचाई से गिरता है, तो यह धुएं के समान दिखाई देता है, जिसकी वजह से इसका नाम धुंआधार जलप्रपात पड़ा है।

धुंआधार जलप्रपात से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारियां-

  • यह जलप्रपात जबलपुर रेलवे जंक्शन से 25.8 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
  • यहाँ आप किसी भी समय जा सकते हैं। यहाँ घूमने में 2 से 3 घंटे का समय लग जाता है।
  1. राजवाड़ा-

यह एक ऐतिहासिक महल है, जो स्थापत्य कौशल एवं शाही भव्यता का उदाहरण है। यह महल 7 मंजिला बना हुआ है, जो ऐतिहासिक कलाकारी का सुंदर नमूना है।

राजवाड़ा से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारियां-

  • यह महल इंदौर रेलवे स्टेशन से 2 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
  • समय-सारणी- 10:00AM-5:00PM (सोमवार बन्द)
  • यहाँ घूमने में 1 से 2 घंटे का समय लग जाता है।
  • प्रवेश-शुल्क- 10रु./व्यक्ति।
  1. पातालपानी जलप्रपात-

यह जलप्रपात मध्यप्रदेश के इंदौर शहर का एक प्रमुख पर्यटन स्थल है। 300 फ़ीट की ऊंचाई पर स्थित यह जलप्रपात देखने मे अत्यंत सुंदर एवं आकर्षक है। यह जलप्रपात भारत के प्रसिद्ध पिकनिक स्थलों में से एक है।

पातालपानी जलप्रपात से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारियां-

  • यह जलप्रपात इंदौर जंक्शन से 33.4 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
  • समय-सारणी- 11:00AM-8:00PM रोजाना।
  • प्रवेश-शुल्क- निःशुल्क।
  1. लाल बाग पैलेस-

यह महल मध्यप्रदेश के इंदौर शहर में खान नदी के तट पर स्थित है। इसका निर्माण शिवाजी राव होलकर ने 19वीं शताब्दी में करवाया था। यह महल 3 मंजिला इमारत के रूप में बना हुआ है। यह महल 28 एकड़ के क्षेत्रफल में फैला हुआ था, जिसको अब एक संग्रहालय में तब्दील कर दिया गया है।

लाल बाग पैलेस से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारियां-

  • यह महल इंदौर रेलवे जंक्शन से 3.8 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
  • समय-सारणी- 10:00AM-5:00PM (सोमवार बन्द)
  • यहाँ घूमने में 1 घंटे का समय लग जाता है।
  • प्रवेश-शुल्क- 10रु./व्यक्ति।

तो दोस्तों यह थी मध्यप्रदेश राज्य एवं इस राज्य के प्रमुख धार्मिक, ऐतिहासिक, एवं प्राकृतिक स्थलों से जुड़ी जानकारियां। उम्मीद करते हैं कि राज्य से जुड़ी ये खास जानकारियां आपको पसंद आई होंगी, और ये जानकारी आपके लिए मददगार साबित होंगी।

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व्यापार में सफ़लता के लिए कुछ बिजनेस टिप्स | Business Tips in Hindi

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Business Tips in Hindi

आज हर युवा सरकारी नौकरी करने के बजाय अपना ख़ुद का बिजनेस सुरु करना चाहता हैं। लेकिन उन्हें बिजनेस को खड़ा करने के लिए सही मार्गदर्शन की जरुरत होती हैं। आज हम अपने इस लेख में बिजनेस को और बढ़ाने के लिए कुछ बिजनेस टिप्स – Business Tips लाये हैं जो हर बिजनेस के लिए फायदेमंद साबित होंगे।

Business tips

व्यापार में सफ़लता के लिए कुछ बिजनेस टिप्स – Business Tips in Hindi

किसी भी व्यापार को शुरू करने से पहले जरूरी है कि आप उस व्यापार के हर पहलू को जरूर समझ लें क्योंकि बिजनेस के लिए जल्दीबाजी में लिए गए फैसले आपके लिए बड़ी समस्या का कारण बन सकते हैं।

अगर आप बिना प्लानिंग से बिजनेस करते हो तो कई बार असफलता का सामना करना पड़ सकता है और बिजनेस में असफलता का मतलब है खुद को और अपने परिवार को नई मुसीबत में डालना क्योंकि जाहिर है कि बिजनेस में हो रहा घाटा या फिर बिजनेस नहीं चलने से आपकी कमाई जीरो हो सकती है।

इसलिए नया बिजनेस शुरू करने से पहले बिजनेस की बारीकियों को समझना बेहद जरूरी है। बिजनेस के लिए किन-किन चीजों पर खास ध्यान देना चलिए हम आपको बताते हैं।

  • अपने interest का Business करे:

सबसे पहले तो वो बिजनेस चुने जिसमें अपनी रुची हैं। तभी हम उस बिजनेस को अच्छी तरह से कर पाएंगें और बढ़ा पाएंगें।

  • प्लानिंग के साथ बिजनेस शुरु करें:

किसी भी बिजनेस को अगर प्लानिंग के साथ शुरू किया जाए तो निश्चय ही आप बेहद कम समय में अपने लक्ष्य को पा सकते हैं और सफल हो सकते हैं। किसी नए बिजनेस शुरू करने के लिए सबसे अहम चीज होती है वो है प्लानिगं, प्लानिंग जैसे- कौन सा बिजनेस करना है ये तय करें। यह भी निश्चत करें कि बिजनेस में कितना पैसा इन्वेस्ट करेंगे, व्यावसायिक  परिपेक्ष को समझने की करें पूरी कोशिश भी करें।

  • अपने व्यवसाय के प्रति समर्पित रहना चाहिए:

किसी भी काम को सफल बनाने के लिए सबसे आवश्यक बात यह होती है कि आप उस काम के प्रति पूर्णतः समर्पित रहे। तथा सदैव इसके प्रयासरत रहे कि किस तरह से आपके काम को और बेहतर बनाया जा सकता है। यही बात व्यवसाय पर भी लागू होता है।

यही नही यदि आप समर्पित भाव से काम करेंगे तब आप अपने टीम को भी इसके लिए तैयार कर सकते है परन्तु अगर आपने ही लापरवाही करना शुरू कर दिया तो आपसे जुड़ी टीम भी ऐसा करने लगती है जिसकी वजह से आपको नुकसान का सामना करना पड़ सकता है।

  • मनी मैनेजमेंट:

बिजनेस शुरु करने से पहले सबसे ज्यादा फोकस मनी मैनेजमेंट पर करिए क्योंकि बिजनेस के लिए पैसा बेहद जरूरी है इसलिए ये तय कर लें कि कहां-कहां आप अपने खर्चे को कम सकते हैं और रेवेन्यू बढ़ा सकते हैं।

  • अपने कर्मचारियों को सम्मान दे:

व्यवसाय में सफलता प्राप्ति का दूसरा नियम यह है कि आप अपने व्यवसाय से जुड़े कर्मचारियों के साथ सम्मानपूर्वक व्यवहार करें। और व्यवसाय में मिल रहे लाभ से उन्हें भी लाभान्वित करते रहे। इसका फायदा यह होता है कि यदि कर्मचारी आपसे खुश रहेंगे तो वह पूरी लगन से आपके साथ काम करेंगे फिर चाहे आप सामने हो या नही।

परन्तु अगर आप उनके साथ गलत व्यवहार करेगे तब वो ठीक ढंग से कम नही करेंगे जिससे आपका नुकसान होगा। इसके अलावा अपने कर्मचारियों को समय समय पर उत्साहित करते रहिए जिससे वो जोश के साथ काम को कर सके।

  • कर्मचारियों से वार्तालाप बनाये रखे:

व्यवसाय को सफल बनाने के लिए यह एक आवश्यक पहलू है कि आपका वार्तालाप आपके कर्मचारियों के साथ कितना है। इसको हमेशा ही बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए। साथ ही समय समय पर अपने कर्मचारियों को व्यवसाय से जुड़ी नई बातो से रूबरू कराते रहना चाहिए। और साथ ही अपने कर्मचारियों से हो सके उस टॉपिक पर discussion कीजिये ताकि नयी नयी आईडिया निकले और बिजनेस और बढ़ने में मदत हो।

  • अपने कर्मचारियों को Motivate कीजिये:

अपने साथ अपने लिए काम करने वाले कर्मचारीयों को हमें मोटीवेट करना चाहियें ताकि वो और जोर से और अच्छे से काम करे।

  • यह भी तय करें कि प्रोफिट कैसे कमाएंगे:

बिजनेस में इन्वेस्ट करते वक्त इस बात का खास ख्याल रखें की आप इससे पैसे कैसे कमाएंगे, क्योंकि जब तक ये तय नहीं करेंगे तो यह पता लगाना मुश्किल हो जाएगा की आपका बिजनेस किस पॉजीशन पर है।

  • लीगल तरीके से करें बिजनेस का स्टार्टअप:

बिजनेस शुरू करने से पहले सबसे ज्यादा जरूरी है कि आपका फर्म और बिजनेस लीगल है या नहीं इससे लिए जरूरी है कि अपने बिजनेस को रजिस्टर्ड करवा लें।

  • खुद को अपडेट करते रहिए:

अगर आप चाहते है कि आपकों व्यवसाय में तरक्की मिलती रहे तो इसके लिए यह बहुत ही आवश्यक है कि आप अपने व्यवसाय से जुड़ी नई नई जानकारियों से हमेशा अपडेट रहे और इन जानकारियों का उपयोग अपने व्यवसाय में करते रहे। यही नही अपने साथ काम कर करने वाले कर्मचारियों का चुनाव भी इसी आधार पर करिए जो खुद को सदैव समय के साथ अपडेट रखने की क्षमता रखता हो।

वैसे तो यह कहा जाता है कि व्यवसाय में रिस्क लेना आवश्यक हो जाता है परन्तु फिर भी रिस्क उस क्षेत्र में ले जहाँ से इसकी भरपाई हो जाने का चांस होए कभी भी ऐसा रिस्क न ले जिसकी वजह से आपको सब कुछ खोना पड़ जाए।

  • अपनी Business से जुड़े हर नए काम को सीखिये:

हर बिजनेस में दिन ब दिन बहुत बदलाव होते हैं हमें उस बदलाव के साथ चलना होता हैं। कई बार हमें उस बदलाव के बारेमें ज्यादा पता नहीं होता इसलिए अपने बिजनेस के लिए नयी नयी चीजे सीखते रहिये।

  • बिजनेस शुरु होने के तुरंत बाद मुनाफे की उम्मीद न करें:

शुरूआत में ही अगर आप मुनाफे पर ध्यान देंगे तो आगे तक बिजनेस को रन करना काफी मुश्किल साबित हो सकता है। इसि लिए जरूरी है कि आप शुरू में मुनाफे की उम्मीद नहीं रखे और ज्यादा से ज्यादा  ग्राहकों की जरूरतों पर ध्यान दें बिजनेस को बड़ा करने की सोचें।

  • शुरू में हुए प्रोफिट को बिजनेस पर ही लगाएं:

अगर आप शुरुआत में हुए प्रोफिट को बिजनेस पर ही लगाएंगे तो आप बेहद कम समय में सफलता पा सकते हैं, और अच्छी कमाई कर सकते हैं। इसलिए शुरुआत में हुए मुनाफे पर ज्यादा ध्यान नहीं देकर  बिजनेस की ग्रोथ कैसे हो इस पर ध्यान देना ज्यादा जरूरी है।

  • ज्यादा से ज्यादा लोगों को बिजनेस के बारे में बताएं:

अपने बिजनेस के बारे में जितनी माउथ पब्लिसिटी करेंगे या फिर जितने ज्यादा लोगों को बताएंगे। उतनी ही तेजी से आपको सफलता मिलेगी।

  • आपका बिजनेस बढाने में इन्टरनेट ऐसे करता है आपकी मदत:

आज के समय में इन्टरनेट में चल रहे ऐसे बहुत सारे बिजनेस है जो की करोड़ो रुपये कमा रहे है। आप भी इसकी सहायता से अपने बिजनेस को बढ़ा सकते है और अपना मुनाफा कई गुना कर सकते है। इन्टरनेट आपके बिजनेस को ग्रो करने में ऐसे मदत करता है।

आपका बिजनेस चले इसके लिए सबसे आवश्यक है की वो लोगो को दिखना चाहिए और जितना दिखेगा उतना ही बिकेगा। जब आप इन्टरनेट की सहायता से बिजनेस को लोगों तक पहुंचाते है तो इसे इन्सान कही से भी और कभी भी देख सकता और इसकी जानकारी ले सकता और खरीदने के लिए आपसे सम्पर्क कर सकता है। यानी की इन्टरनेट की सहायता से आपका बिजनेस लोगो तक आसानी से पहुच रहा है। यानी की “शो मोर सेल मोर” वाला फंडा।

बिजनेस को बढाने के लिए आपको इन्टरनेट में आना चहिये जिससे आप लोगो को सरल और आसान तरीके से अधिक से अधिक दिखे।

  • ग्राहकों से अच्छे संबंध बनाएं:

ग्राहकों से अच्छा संबंध बनाने की कोशिश करें ताकि लोग आपके प्रोडक्ट को ज्यादा से ज्यादा खरीदें और इससे आपको अच्छा प्रोफिट भी मिल सकता है।

  • ग्राहक की जरूरतों का रखें ख्याल:

बिजनेस में सफलता पाने के लिए सबसे ज्यादा जरूरी है कि आप अपने ग्राहकों की जरूरतों को पूरा ध्यान रखें। जिससे आपको कम समय में ही अच्छा रिस्पोंस मिलेगा और अपने बिजनेस को आगे बढ़ाने में मदद मिलेगी।

  • बैकअप प्लान भी है जरूरी:

बिजनेस में कब घाटा हो जाए और कब उम्मीद से ज्यादा प्रोफिट इसका कोई निश्चत नहीं है, लेकिन जरूरी है कि आप अपना बैकअप प्लान लेकर चलें क्योंकि अगर घाटा है तो आप फिर से रिकवर कर बिजनेस को नए मुकाम पर पहुंचा सकते है।

  • इमरजेंसी फंड रखिए:

बिजनेस की विपरीत परिस्थितियों के लिए जरूरी है कि आपके आप इमरजेंसी फंड हो जिससे आपका बिजनेस सेफ बना रहेगा।

  • अनावश्यक खर्चों से बचने की कोशिश करें:

जितनी जरूरत है उतना ही खर्च करें अगर आप जरूरत से ज्यादा खर्च करेंगे तो लॉन्ग टर्म बिजनेस चलाने में मुसीबतों का सामना करना पड़ सकता है।

  • बिजनेस को विवेक के साथ चलाएं:

बिजनेस को विवेक के साथ चलाने में ही समझदारी है, बिजनेस में विवेक से लिए गए फैसले हमेशा सफलता दिलवाने में मद्द करते हैं।

  • अपने इंटरेस्ट का बिजनेस करें:

अगर आप अपनी रूचि के बिजनेस में निवेश करेंगे तो जाहिर है कि आप उसमें काफी ध्यान दे पाएंगे और बिजनेस को सफल बनाने के लिए नए-नए आइडिया बी दे सकेंगे।

  • प्रतिस्पर्धियों और व्यवसायिक वातावरण को समझें:

किसी भी बिजनेस की शुरुआत करने से पहले सबसे ज्यादा जरूरी है कि और पहले आस-पास के वातावरण को भाप लें ताकि अपने प्रतिस्पर्धियों के मुकाबले ग्राहको को अच्छी सुविधा उपलब्ध करवा सकें और नए-नए बिजनेस आइडिया से अपने बिजनेस को स्थापित कर सकें।

  • शुरु में छोटे बिजनेस से ही करें शुरुआत:

बिजनेस की शुरूआत छोटे बिजनेस से ही करें। अगर आप शुरू में ही ज्यादा इन्वेस्ट कर देंगे और आपका बिजनेस सफल नहीं हुआ तो आपको इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।

  • टैक्स और बिलों का समय पर करें भुगतान:

बिजनेस चलाने के लिए उससे संबंधित हर एक चीज का विशेष ध्यान रखना चाहिए ताकि आपको आगे बिजनेस चलाने में किसी तरह की परेशानी का सामना नहीं करना पड़े। अगर आप अपने टैक्स और बिलों पर का समय पर भुगतान करेंगे और सिस्टम रखेंगे तो आपको बाद में एक साथ ज्यादा रकम नहीं देनी पड़ेगी।

  • टीम के साथ करें बिजनेस:

बिजनेस को सफल बनाने में सिर्फ एक नहीं बल्कि पूरी टीम को सहयोग जरूरी है। इसके लिए जरूरी है कि टीम वर्क पर ध्यान दें।

  • बिजनेस के लिए मोटिवेशन भी है जरूरी:

समय-समय पर खुद को बिजनेस के लिए प्रेरित करना भी बेहद जरूरी है।

  • बिजनेस के जरिए समस्याओं का विश्लेषण:

आस-पास की जरूरतों के हिसाब से अगर आप बिजनेस करेंगे तो सफलता जल्द हासिल होगी इसके साथ ही आप बिजनेस के जरिए समस्याओं को आसानी से हल कर पाएंगे।

  • नएनए बिजनेस आइडिया सोचिए:

बिजनेस को एक ही ढ़र्रे पर नहीं चलाए बल्कि नए-नए आइडिया देकर बिजनेस को बढ़ाने की सोचें।

  • रिस्क लेने से नहीं घबराएं:

बिजनेस में कई बार ऐसे फैसले लेने होतें हैं जिसमें रिस्क भी लेना होता है तो ऐसी स्थिति में घबराए नहीं बल्कि विवेक का इस्तेमाल करें और रिस्क लें, हो सकता है आपके द्वारा लिया गया रिस्क आपके बिजनेस को आगे बढ़ानें में आपकी मद्द करे।

  • मॉडर्न टेक्नोलॉजी से व्यापार को जोड़ने की करें कोशिश:

मॉडर्न जमाने के साथ बिजनेस को रन कराने की कोशिश करें और मॉडर्न टेक्नोलॉजी से अपने व्यापार को जोड़ें।

अगर आप इन टिप्स को फॉलो करेंगे तो निश्चत ही आपको नए बिजनेस करने में मद्द और सफलता भी मिलेगी।

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जीवन का सर्वश्रेष्ठ दान अंगदान पर नारे | Slogans on Organ Donation

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Slogans on Organ Donation in Hindi

कहते हैं की दान करना बहुत पूण्य का काम होता हैं। दान देना मतलब पैसा या अन्न का दान ही नहीं होता बल्कि सबसे सर्वश्रेष्ठ दान हैं अंगदान और रक्तदान। पूरी दुनिया में हर साल 13 Aug अंतर्राष्ट्रीय अंगदान दिवस यानि International Organ Donation Day के रूप में मनाया जाता हैं।

लेकिन इस दान के बारेमें लोगो के दिमाग में बहुत सी गलतफैमिया हैं, इसलिए आज हम आपके लिए अंगदान पर कुछ स्लोगन लाये हैं जिसे पढ़कर लोग अंगदान – Organ Donation के बारेमें जागरूक हो जाये।

Slogans on Organ Donation

जीवन का सर्वश्रेष्ठ दान अंगदान पर नारे – Slogans on Organ Donation

यह तो अटूट सत्य है, एक दिन हम सभी को यह दुनिया छोड़कर जाना है, और सभी के शरीर के अंगों को एक दिन खाक में मिल जाना है, लेकिन अगर जाते-जाते यह शरीर किसी की भलाई के काम आ जाए और किसी जरुरतमंद को एक नई जिंदगी दे जाए तो इससे बड़ा पुण्य का काम दुनिया में कोई नहीं हो सकता है।

अंगदान करना दुनिया का सबसे बड़ा दान होता है। लेकिन फिर भी कुछ धार्मिक अंधविश्वास और गलतफैमियों की वजह से हमारे देश में अंगदान करने में लोग काफी पीछे हैं, वहीं इसके प्रति लोगों में जागरुकता की भी कमी है।

वहीं 13 अगस्त को दुनिया भर में अंगदान दिवस मनाया जाता है। जिसमें लोगों को जीवन के सर्वश्रेष्ठ दान अंगदान के महत्व के बारे में बताया जाता है और उन्हें इस महादान अंगदान करने के लिए प्रेरित किया जाता है।

वहीं इस लेख में हम आपको कुछ अंगदान पर सर्वश्रेष्ठ नारे उपलब्ध करवा रहे हैं, जिसे पढ़कर लोग अंगदान करने को लेकर जागरूक होंगे और यह नेक काम कर दूसरों की जिंदगी बचाने के लिए आगे बढ़ेंगे।

Slogans on Organ Donation in Hindi

“जरूरतमंद के लिए वरदान हैं। अंगदान करना काम ये महान हैं।

अंगदान-अंगदान, जीवन का हैं यह महादान।

“अंगदान, जीवनदान अंगदान, जीवन मे मुस्कान।

किसी की सहायता करें, अपनी मृत्यु के बाद।

Organ Donation Slogans in Hindi

अपनी मृत्यु के बाद किसी को जीवित रहने में मदद करें।

अंगदान, जीवन मे मुस्कान।

“अगर स्वर्ग मे चाहिए स्थान, तो कीजिए अंगदान।

आपको जो मिलता है उससे आप अपनी ज़िन्दगी चलाते हो, लेकिन आप जो देते हो उससे आप एक ज़िन्दगी बनाते हो।

Slogans on Organ Donation in Hindi

अंगदान, जीवित रहते हुए और मरने के बाद, दोनो रुप में किया जाता है। अगंदान वो प्रक्रिया है, जिसमें किसी एक शख्स (मृत और कभी-कभी जीवित) से स्वस्थ अंगों और टिशूज को ले लिया जाता है, और फिर इन्हीं अंगों को किसी ऐसे दूसरे जरुरतमंद शख्स में ट्रांसप्लांट कर दिया जाता है, जिससे उस व्यक्ति को नया जीवन मिल जाता है।

वहीं इस महादान अंगदान पर लिखे गए कुछ स्लोगन के माध्यम से आपको अंगदान के महत्व के बारे में समझने में मद्द मिलेगी और अंगदान करने की भावना विकसित होगी।

आपको बता दें कि, जिंदा लोगों द्धारा सबसे ज्यादा दान करने वाला अंग किडनी है, क्योंकि एक किडनी से भी इंसान जिंदा रह सकता है, इसलिए किडनी अपने किसी परिवारजन या फिर लोग बेहद करीबी को दान करते हैं।

किडनी, जीवित व्यक्ति से लेकर ही ट्रांसप्लांट की जाती है, क्योंकि किसी मृत शरीर की किडनी की काम करने की क्षमता बेहद कम होती है और वह ज्यादा दिन तक टिक नहीं पाती है।

जबकि मरने के बाद व्यक्ति के हार्ट, लिवर, लंग्स, अग्नाशय (पैनक्रियाज), छोटी आंत(इंटस्टाइन), त्वचा, बोन मैरो, आंखें, हड्डी का दान किया जा सकता है।

हालांकि घर पर हुई सामान्य मौत के मसले में सिर्फ आंखे ही दान की जा सकती है, लेकिन ब्रेन डेड होने की स्थिति में आंखों को छोड़कर इंसान के सभी अंगों का दान किया जा सकता है।

क्योंकि ब्रेन डेड होने पर, इंसान के सभी अंग काम करते रहते हैं, ब्रेन डेड का मतलब यह है कि इंसान के जीने की संभावना एकदम खत्म हो जाती है, इसमें इंसान बिल्कुल भी वापस नहीं लौटता है, इसलिए उसके अंगों को दान किया जा सकता है।

वहीं आप भी इन स्लोगन के माध्यम से अंगदान करने की प्रेरणा लें, और अंगदान कर  किसी जरुरतमंद व्यक्ति को जीवनदान दें।

Organ Donation Slogans

“भगवान् ही नहीं, आप भी किसी को जीवन दे सकते हैं….क्योंकि आपके अन्दर भी भगवान् है!

अंगदान तू करता जा, बेहतर जीवन जीता जा।

“दुर्घटनाग्रस्त लोगो का जीवन बचाईए, अंगदान को बाढावा दीजिए।

अंगदान ही, नए जीवन की आशा हैं, मानवता की यह सबसे बड़ी परिभाषा है।

Slogans on Organ Donation

“अपने जीवन के हीरो बनें, अंगदान करें।

जरूरतमंद के घर आएँगी सुख शांति, अंगदान से आएँगी यह क्रांति।

“अच्छी सोच नेक ईरादा, अंगदान से समाज को भारी फ़ायदा।

अंगदान ही है जन अभियान, इसलिए करो ये नेक काम।

Slogan on Ang Daan

“सहयोग दीजिए अंगदान मे, विश्वास रखो भगवान् में।

अँधा विश्वास भ्रान्ति होगी दूर, अंगदान होंगा भरपूर।

“अंगदानदाता, दानवीर है महान।

अंगदान कर बनो बड़े, खुशियां बाटों, और पीड़ितों के सपने करो खड़े।

Slogan on Ang Daan in Hindi

“अगर भगवान् को खुश करना है तो, भगवान् का दिया इंसान को लौटा दो। अंगदान करो।

अंगदान सर्वश्रेष्ट्र दान, अंगदान से कोई न हो परेशान।

“अंगदान से, भगवान को कोई नहीं परेशानी।

जिस अंग को मरने के बाद खाक है हो जाना, फिर उसे क्यों नहीं भलाई के काम में लगाना।

मरने के बाद अंधे के जीवन मे करें उजियारा, बस यही हो लक्ष्य हमारा।

अंगदान कर बनो महान और दूसरों को जीवन का दो अमूल्य दान।

अंगदान आए सभी जरूरतमंदों के काम, इसलिए करो दान, और कमाओ नाम।

अंगदान से सभी को स्वर्ग मे मिलेगा स्थान, अंगदान है अमृत समान।

अन्धविश्वास का सभी मिलकर त्याग करो, और अंगदान का प्रयास करो।

सच्चे हीरो बने, अंगदान करें, किसी के चेहरे की सच्ची मुस्कान बने।

मौत के बाद करें अंगदान, यह लाएगा किसी के जीवन में मुस्कान।

अंगदान के प्रोत्साहन में सब मिलकर सहयोग कीजिये, अंधविश्वास, और भ्रान्ति को समाज से दूर कीजिये।

मरने के बाद अंगदान करने से क्या है जाता, अंगदान करके बनोगे सबसे महान भ्राता।

दान देना बहुत बड़ी अच्छाई है, फिर मरने के बाद अंगदान में क्या बुराई हैं।

Slogans on Organ Donation in English

  1. Support Organ Donation Across Our Great Nation.
  2. Recycle Organs, Not Just Coke Cans.
  3. Organ Donation Life Goes On.
  4. Recycle your Life Be an Organ Donor.
  5. Organ Donation A Gift for Life.

More slogans:

  1. More slogans collection
  2. Eye donation slogans in Hindi
  3. Blood Donation Slogans

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बिजनेस के लिए प्रेरणादायक भाषण – Motivational Speech for Business in Hindi

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Motivational Speech for Business

जो लोग सकरात्मक सोच के साथ बिजनेस करते हैं, और बिजनेस को नया आकार देने के लिए रिस्क लेने से नहीं हिचकिचाते और निरंतर उसे आगे बढ़ाने के लिए प्रयास करते रहते हैं, वे जरूर सफलता हासिल करते हैं।

हालांकि कई ऐसे मौके आते हैं, जब लगातार मिल रही नाकामयाबियों से बिजनेसमैन का हौसला कमजोर पड़ने लगता है और अब अपनी जिंदगी से हताश हो जाता है तो उसे प्रेरणा की जरूरत होती है तो ऐसे समय में प्रेरणादायक भाषणों के माध्यम से व्यक्ति का हौसला अफजाई किया जाता है।

वहीं आज हम आपको अपने इस लेख में बिजनेस के लिए कुछ प्रेरणादायक भाषणों को उपलब्ध करवा रहे हैं, जिसका इस्तेमाल आप अपनी जरूरत के मुताबिक कर सकते हैं –

Motivational Speech for Business

बिजनेस के लिए प्रेरणादायक भाषण – Motivational Speech for Business in Hindi

सर्वप्रथम सभी को मेरा नमस्कार!

सम्मानीय मुख्य अतिथि, व्यापार मंडल के सभी गणमान्य नागरिक एवं मेरे प्रिय सहयोगी और मित्रों आप सभी का मै तहे दिल से आभार प्रकट करता हूं/करती हूं। मुझे बेहद खुशी हो रही है कि, आज इस अवसर पर मुझे बिजनेस के लिए मोटिवेशनल स्पीच देने का सुनहरा अवसर प्राप्त हुआ है।

मै अपने भाषण की शुरुआत भारत के महान और सबसे बड़े उद्योगपति धीरुभाई अंबानी द्धारा कहे गए, प्रेरक वाक्य के माध्यम से करना चाहती हूं /चाहता हूं –
अगर आप खुद अपने सपने का निर्माण नहीं करेंगे तो कोई दूसरा आपका इस्तेमाल अपने सपने को पूरा करने में करेगा।

जिन लोगों की जिंदगी का कोई लक्ष्य नहीं होता है और वे आगे बढ़ने के सपने नहीं देखते हैं, वे लोग एक ही प्रवाह में बहते रहते हैं और अपनी जिंदगी में कोई खास सफलता हासिल नहीं कर पाते हैं।

वहीं इसके विपरीत जो लोग ईमानदारी से काम करते हैं और सच्चे दृढ़संकल्प के साथ अपने लक्ष्यों को पाने के लिए आगे बढ़ते हैं और अपने सपनों का निर्माण खुद करते हैं, वे अपनी सफलता का शोर पूरी दुनिया में मचा देते हैं।

वहीं कोई भी नया काम शुरु करने से पहले अगर पहले ही हार मान लो तो निश्चय ही वो काम काफी मुश्किल लगने लगता है, लेकिन अगर यह मान कर चलों की कुछ भी नामुकिन नहीं है तो वो काम करना आसान हो जाता है।

इस दुनिया में कई ऐसे उदाहरण हैं, जिन्होंने अपनी काबिलियत के दम पर बड़ी-बड़ी कंपनियां स्थापित कर न सिर्फ खुद की एक अलग पहचान बनाई बल्कि लाखों लोगों को रोजगार उपलब्ध करवाया और देश की अर्थव्यवस्था में अपना सहयोग दिया है।

कुछ बड़ा करने की चाहत और नाकामयाबी से सबक लेकर आज गूगल, फेसबुक, ऐप्पल, माइक्रोसॉफ्ट, एमेजॉन, रिलायंस जैसी बड़ी कंपनियों में मार्केट में अपनी धाक जमाई है और अपनी कामयाबी की मिसाल दुनिया के सामने खड़ी की है।

वहीं किसी महान व्यक्ति ने कहा है कि –

“हमारे सपने बड़े होने चाहिए और हमारी इच्छाएं एवं महत्वकांक्षांए उससे और ज्यादा ऊंची होनी चाहिए, वहीं अगर हमारी प्रतिबद्धता गहरी हो तो हमारे प्रयास हमेशा बड़े ही होने चाहिए।”

जाहिर है को जो लोग बड़े सपने देखते हैं और कुछ बड़ा करने की चाहत के साथ उसे पूरा करने की कोशिश करते हैं तो ऐसे लोग सफल जरूर होते हैं, क्योंकि छोटी सोच इंसान को आगे नहीं बढ़ने देती है और वे अपनी जिंदगी में कुछ हासिल नहीं कर पाते हैं।

किसी भी काम के प्रति अगर प्रतिबद्धता गहरी हो तो उसके लिए हमारे प्रयास भी उतने ही प्रभावशाली होते हैं, जिससे मंजिल आसानी से मिल जाती है।

वहीं काम के प्रति सकरात्मकता ही आपको कामयाबी के पथ पर आगे ले जाती है, इसलिए अपने मन में कभी नेगेटिव विचार न लाएं और अपने लक्ष्यों के प्रति अडिग रहे और उसे पाने के लिए लगातार प्रयास करते रहें।

हमारे देश में तमाम ऐसे बिजनेस लीडर्स हैं, जिन्होंने अपनी मेहनत और लगन से अपने सिर्फ एक आइडिया को एक नया रुप दिया और बड़ी-बड़ी कंपनी खड़ी कर दी और लाखों लोगों के लिए एक मिसाल कायम की।

उपसंहार-

हम सभी को अपनी जिंदगी के प्रति सकरात्मक सोच रखनी चाहिए और हमेशा कुछ बड़ा करने के बारे में सोचना चाहिए, और मुशकिलों अथवा नाकामयाबियों से नहीं घबराना चाहिए, तभी हम अपनी जिंदंगी में कुछ हासिल कर सकते हैं।

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पेपर / कागज़ बचाने पर स्लोगन | Slogan on Save Paper in Hindi

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Slogan on Save Paper in Hindi

हम अपने ईर्द-गिर्द कागजों से पूरी तरह घिरे हुए हैं, स्कूल से लेकर, ऑफिस, इलैक्ट्रिसिटी बिल, सामान की पैंकिंग करने समेत हर जगह भारी मात्रा में कागज का इस्तेमाल किया जाता है।

वहीं कागज हमारे जीवन में जितने ज्यादा उपयोगी है, उतनी ही अधिक उपयोगी पर्यावरण भी है, दरअसल कागज के निर्माण के लिए, बड़ी मात्रा में पेड़-पौधों और वनों-जंगलों का काटा जा रहा है, जिससे हमारे पर्यावरण पर इसका काफी बुरा असर पड़ रहा है और असामान्य मौसम की स्थिति उत्पन्न हो रही है, जैसे की अधिक गर्मी पड़ना या फिर बिन मौसम बारिश होना आदि।

आपको बता दें कि पूरी दुनिया में कागज बनाने के लिए करीब 40 फीसदी पेड़ों को काट दिया जाता है। वहीं यह तो हम सभी जानते हैं कि पेड़ हमारे जीवन का एक महत्वपूर्ण आधार होते हैं, क्योंकि पेड़-पौधों से न सिर्फ हम शुद्ध ऑक्सीजन प्राप्त करते हैं, बल्कि पेड़-पौधे प्रदूषण को कम कर हमें सुखी और स्वस्थ जीवन प्रदान करते हैं साथ ही जलवायु में भी संतुलन बनाए रखते हैं।

इसलिए कागज के अनावश्यक इस्तेमाल को रोककर अथवा इसका सिर्फ जरुरत के वक्त ही इस्तेमाल कर, हम बड़ी मात्रा में पेड़ों को बचा सकते हैं और अपने वातावरण को स्वच्छ रख सकते हैं।

वहीं आज हम अपने इस पोस्ट में आपको पेपर/कागज बनाने पर कुछ स्लोगन उपलब्ध करवा रहे हैं, जिसे पढ़कर आप भी कागज के गैरजरूरी इस्तेमाल करने से पहले सोचेंगे। वहीं अगर आप इन स्लोगन को सोशल मीडिया साइट्स पर ज्यादा से ज्यादा शेयर करेंगे तो  अन्य लोग भी कागज के कम इस्तेमाल के लिए प्रेरित होंगे।

पेपर / कागज़ बचाने पर स्लोगन – Slogan on Save Paper in Hindi

Save Paper Quotes

पेपर का नुकसान, पेड़ों का नुकसान।

Slogan on Save Paper

पेपर का कम-से-कम उपयोग, पेड़ बचाएँ दें सभी सहयोग।

Quotes on Save Paper in Hindi

पेड़ हैं हमारे जीवन आधार, उनसे बने कागज़ का दुरुपयोग न हो बार-बार।

Quotes on Save Paper

रखें पर्यावरण का ध्यान, पेपर बनाने के लिए पेड़ का न हो नुक्सान।

Save Paper Quotes in Hindi

पेपर-वर्क को करें कम, मिलकर करें सब डिजिटल हम।

Save Paper Slogan

आओं सभी लोग जागरूक हों, कागज़ का दुरुपयोग न हो।

Save Paper Slogan in Hindi

कॉपी में एक भी खाली पन्ना न छोडें, कागज़ के इस दुरुपयोग को होनें से रोकें।

Slogan on Save Paper in Hindi

जीवन की नींव, पेड़ों से सभी जीव।

आओ मिलकर सब कागज का उचित प्रयोग करें, अब इसका न हम  दुरूपयोग करें और पर्यावरण बचाने में हम सभी अपना सहयोग करें।

कल को तुम्हें संवारना है, कागज बचाकर पर्यावरण को  संभालना है।

कागज को अगर बचाओगे, बचेगी पेड़ों की जान, क्योंकि पेड़ों से ही तो सजता है वातावारण, और मिलता है हमें कागज अपार।

कागज के निर्माण के लिए अब न करो पर्यावरण का सौदा, अपनाओ डिजिटल और कर लो ऊंचा औधा।

जंगलों को उजाड़कर और पेड़ो को काटकर, मत करो पर्यावरण का तिरस्कार, और करो कम कागज का इस्तेमाल।

बच्चों, बड़े अब सभी  जागरूक हो जाओ, और  कागज के दुरुपयोग को बचाओ।

अगर चाहते हो पेड़ की छाया, तो अब कम करो पेपर को लाना।

अगर करना है भविष्य की पीढ़ी का संरक्षण, तो बिल्कुल न करें पेड़ों का भक्षण!

A slogan on Save Paper in English

  • Save Paper Here And There Don’t Waste It Anywhere.
  • Easier Saving Paper Than Planting Trees.
  • Save Paper, Save Trees, Save The World.
  • To Sit In The Shade, You Have To Save Paper First.
  • Recycle Each And Every Day, Instead Of Throwing Paper And Plastic Away.

और पढ़िए –

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ब्रायन ट्रेसी की मशहूर किताबें – Brian Tracy Books in Hindi

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Brian Tracy Books

ब्रायन ट्रेसी अमेरिका-कनेडा के एक प्रेरक वक्ता, सफल लेखक और सेल्फ हेल्प गुरुओं में से है। इसके अलावा वे “ब्रायन ट्रेसी इंटरनेशनल कंपनी” के चेयरमैन और सीईओ भी हैं। ब्रायन ट्रेसी ने अपने प्रेरणादायक विचारों, किताबों और कुछ कोर्सेस की मद्द से कई लोगों की जिंदगी में एक सकरात्मक बदलाव लाने में मद्द की है। ब्रायन ट्रेसी ने अपनी किताबों में लोगों को जीवन में सफलता पाने का मंत्र बताया है।

इनकी किताबें पढ़ने से पाठकों के हृदय में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती है।

Brian Tracy Books

ब्रायन ट्रेसी की मशहूर किताबें – Brian Tracy Books in Hindi

ब्रायन ट्रेसी का जन्म 5 जनवरी 1944 को कनाडा में हुआ था और इन्होंने अपने जीवन में अब तक 70 से ज्यादा किताबें लिखी है, जिसमे The Psychology of Achievement (द साइकोलॉजी ऑफ़ अचीवमेंट), Earn What You’re Really Worth (अर्न, व्हाट यू आर रियली वर्थ) और Eat That Frog (ईट दैट फ्रॉग) उनकी सबसे लोकप्रिय और पसंदीदा पुस्तकें हैं।

इनकी अधिकतर किताबों का हिन्दी, अंग्रेजी, बांग्ला समेत कई अलग-अलग भाषाओं में अनुवाद किया है। उनकी कुछ मशहूर किताबों के बारे में हम आपको नीचे बता रहे हैं –

आत्म-अनुशासन की शक्ति:

आत्म-अनु्शासन की शक्ति, ब्रायन ट्रेसी की सार्वधिक लोकप्रिय पुस्तकों में से एक है, जिसमें उन्होंने लोगों को उनकी जिंदगी में अनुशासन का महत्व समझाने की कोशिश की है, इसके साथ ही यह बताया कि अगर कोई व्यक्ति ईमानदारी से और अनुशासित तरीके से अपने लक्ष्य की ओर आगे बढ़े तो वह कई सफल और प्रतिभाशाली लोगों से भी आगे निकल सकता है।

इसके अलावा ब्रायन ट्रेसी ने अपनी इस मशहूर पुस्तक में लोगों को जीवन में सफलता पाने के कुछ अचूक तरीकों के बारे में भी बताया है, जिनको अपनाकर कोई भी व्यक्ति अपने जीवन में अपार तरक्की हासिल कर सकता है।

ब्रायन ट्रेसी की इस किताब में करीब 21 अलग-अलग अध्याय है, जिसका हर अध्याय अपने पाठकों को यह बताने में सफल है कि अपने जीवन के हर पहलू में व्यक्ति को किस तरह अनुशासित रहना चाहिए और अपने जिंदगी के लक्ष्यों को हासिल करने के लिए बिना किसी बहाने के ईमानदारी से किस तरह काम करना चाहिए।
वहीं ब्रायन ट्रेसी की यह पुस्तक लोगों को उनकी जिंदगी में सफल बनाने का एक अच्छा माध्यम साबित हो रही है।

सबसे मुश्किल काम सबसे पहले:

सफल और बेस्टसेलिंग लेखन ब्रायन ट्रेसी की यह किताब “सबसे मुश्किल काम सबसे पहले” सर्वश्रेष्ठ पुस्तकों में से एक हैं, जिसमें लेखक ने उन लोगों को प्रेरणा दी है, जो चुनौतीपूर्ण कामों को करने में अपना जी चुराते हैं।

इसके साथ ही ब्रायन ट्रेसी ने इस पुस्तक के माध्यम से महत्वपूर्ण काम करने के तरीके और प्रत्येक दिन की योजना कैसे बनाएं, इसके बारे में बताया है। इस पुस्तक की सहायता से ऐसे लोगों को जो किसी भी काम करने को लेकर बहाना बनाते हैं, उनको अपनी इस आदत से छुटकारा मिल सकता है।

इसके साथ ही लोगों के अंदर अपने सबसे महत्वपूर्ण काम को प्राथमिकता देने की समझ विकसित होगी।

लक्ष्य (GOALS):

अमेरिकन लेखक ब्रायन ट्रेसी की यह किताब सबसे ज्यादा पसंद की जाने वाले पुस्तकों में से एक है। यह किताब उनके द्धारा इंग्लिश में लिखी गई GOALS का हिन्दी अनुवाद है। इस किताब में लेखक ने आसाधारण लक्ष्य को सरल, सशक्त और आसान तरीके से हासिल करने की पद्धति के बारे में बताया है।

उन्होंने अपनी इस किताब में लक्ष्य प्राप्ति के कुछ ऐसे तरीकों के बारे में बताया है, जिन पर अमल कर कोई भी शख्स अपनी जिंदगी में सफलता के 7 वें आसमान को छू सकता है। खासकर यह किताब उन लोगों के लिए काफी मद्दगार है, जो लोग अपने लक्ष्यों का निर्धारण नहीं करते और उनका बेहतरीन जिंदगी जीने का सपना महज एक सपना ही रह जाता है।

इस पुस्तक में मशहूर लेखक ब्रायन ट्रेसी ने बेहद सरल तरीके से लोगों को उनके लक्ष्यों को हासिल करने के करीब 21 तरीकों के बारे में बताया है। ब्रायन ट्रेसी की यह किताब पढ़कर न सिर्फ लोग अपने लक्ष्य को हासिल कर सकेंगे बल्कि उनके अंदर आत्मविश्वास की भावना भी जागृत होगी।

स्मार्ट बनिए-ब्रायन ट्रेसी:

ब्रायन ट्रेसी ने अपनी इस किताब में मनुष्य के जीवन में सफलता हासिल करने के लिए सोचने के तरीके के बारे में बताया। साथ ही यह भी बताया कि प्रत्येक व्यक्ति को खुद को सबसे अधिक सफल और धनवान व्यक्ति की तरह किस तरह सोचना चाहिए।

सोच बदलो, जिंदगी बदलो- ब्रायन ट्रेसी:

मशहूर लेखक ब्रायन ट्रेसी की यह सबसे अच्छी पुस्तकों में से एक हैं। जिसमें उन्होंने व्यक्ति को कामयाबी हासिल करने के लिए कई महत्वपूर्ण बाते बताईं हैं। साथ ही यह भी बताया है कि व्यक्ति किस तरह अपनी सकारात्मक सोच के साथ अपनी सफल जिंदगी का निर्वहन कर सकता है।

इसके अलावा लेखक ब्रायन ट्रेसी की कुछ अन्य मशहूर पुस्तकें इस प्रकार है –

  • सेल्फ-मेड मिलियनर्स-ब्रायन ट्रेसी
  • 21 Sucess Secrets of Self-Made Millionaires – Hindi edition
  • सफल सेलिंग का मनोविज्ञान
  • कामयाबी अनलिमिटेड- आपके जीवन की उड़ान योजना
  • (ब्रायन ट्रेसी)
  • समय को साधें, सधेगा जीवन- ब्रायन ट्रेसी
  • सफलता के साधन-ब्रायन ट्रेसी
  • करियर में सफलता के 21 मंत्र
  • इट डेट फ्रॉग (Eat That Frog)
  • मैक्सिमम अचीवमेंट (Maximum Achievement)

Read More:

  1. Half Girlfriend Book
  2. 7 Habits of Highly Effective People
  3. The secret book in Hindi

Please Note: ब्रायन ट्रेसी के द्वारा लिखी गईं किताबें – Brian Tracy Books in Hindi इस लेख में कुछ चुनिन्दा किताबे यहाँ दी है। पर ये किताबे आपको उतनाही पसंद आयेगी इसका कोई दावा हम नहीं करते। ये लेख मात्र Books के बारे में जानकारी देने हेतु है। पर एक बात साथ में ये भी बता दे की Book पर खर्च किये पैसे कभी भी बर्बाद नहीं होते।
नोट: अगर आपके पास और भी अच्छे किताबों के बारे में जानकारी है तो जरुर कमेंट में बताये अच्छे लगने पर हम उन्हें Brian Tracy Books in Hindi इस Article में जरुर शामिल करेगें।

The post ब्रायन ट्रेसी की मशहूर किताबें – Brian Tracy Books in Hindi appeared first on ज्ञानी पण्डित - ज्ञान की अनमोल धारा.

साक्षरता पर नारे | Slogans on Literacy in Hindi

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Slogans on Literacy in Hindi

जीवन में ज्ञान का कितना महत्व हैं ये हम सब जानते हैं, शिक्षा के बिना हमारा जीवन मतलब नमक के बिना खाना। हम सब हर साल 8 Sep को अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस यानि International Literacy Day मनाते हैं लेकिन आज भी अपने देश में ऐसे कई लोग और बच्चे हैं जो शिक्षा से वंचित हैं।

आज हम सब ये कसम खाते हैं की अपने जीवन में कम से कम एक इन्सान को शिक्षित बनाने का प्रयास करेंगे। तभी हमारा देश आगे बढ़ पाएंगा। आज साक्षरता इसी विषय पर कुछ स्लोगन – Slogans on Literacy आपके लिए लाया हु आशा हैं आपको जरुर अच्छे लगेंगे।

साक्षरता पर नारे – Slogans on Literacy in Hindi

Literacy Slogans

शिक्षा से सुधार होगा तभी अज्ञानता का अंधकार मिटेगा।

Literacy par Nare

जो जीवन में अशिक्षित रह जाता है, वह एक दिन जरुर पछताता है।

Literacy Quotes for Parents

जहां के नागरिक शिक्षित वो राष्ट्र प्रगतिशील।

Literacy Quotes for Students

पढ़ाई और किताबों से प्यार करो, जीवन अपना उद्धार करो।

Literacy Slogans and Posters

पढ़ी – लिखी अपनी लड़की, खुशहाली और रोशनी है पुरे घर की।

Literacy Slogans and Posters

शिक्षा के बिना मनुष्य अधूरा है, क्योंकि शिक्षा ही व्यक्ति को जीवन के मूल्यों का बोध करवाती है, और व्यक्ति को प्रगति के पथ पर आगे ले जाती है। शिक्षा से ही व्यक्ति के अंदर सीखने-समझने की क्षमता विकसित होती है और दुनिया की अपार जानकारी प्राप्त होती है।

यही नहीं शिक्षा, व्यक्ति का आत्मविश्वास बढ़ाती है, और समाज में उसे उचित सम्मान दिलवाती है। साथ ही शिक्षा से व्यक्ति की सोच बदलती है, उसके रहन-सहन में बदलाव आता है।

इसके साथ ही शिक्षा से ही एक सकारात्मक व्यक्तित्व का निर्माण होता है, जो कि न सिर्फ अपने परिवार के काम आता है, बल्कि सभ्य समाज के निर्माण में भी मद्द करता है, इसलिए हर किसी को शिक्षा के मूल्यों और इसके महत्वों को समझना बेहद आवश्यक है।

वहीं शिक्षा के प्रति लोगों को जागरुक करने के उद्देश्य से 8 सितंबर को अंतराष्ट्रीय साक्षरता दिवस भी मनाया जाता है, इसके अलावा भी जन-जन में शिक्षा की अलख जगाने के उद्देश्य से कई तरह के कार्यक्रमों का भी आयोजन किया जाता है, इन मौके पर साक्षरता पर नारों के माध्यम से लोगों के अंदर शिक्षित होने की भावना का विकास किया जाता है, और उन्हें अपने जीवन के लक्ष्यों को हासिल कर आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।

वहीं इसी उद्देश्य से हमने अपने इस पोस्ट में साक्षरता पर कुछ नारे उपलब्ध करवाएं हैं, जिनका इस्तेमाल आप अपनी आवश्यकतानुसार कर सकते हैं।

Literacy Quotes

किताबों को अपना हथियार बनाओ, ज्ञान हमेशा पाते जाओ।

Literacy Quotes in Hindi

हम सब पढे़, और एकसाथ बढ़े।

Literacy Slogans with Images

आओं किताबों से प्यार बढ़ाये, ताकि पढ़ना ना भूल पाए।

Literacy Slogans in Hindi

शिक्षा से कभी भी दूर मत रहना, तुम मानो यह कहना।

Literary Quotes about Family

परिवार की एक महिला को शिक्षित करना, मतलब पुरे परिवार को शिक्षित करना है।

Literary Quotes about Love

ज्ञान को लगातार पाना हैं तो किताबों को अपना हथियार बनाना हैं।

Literary Quotes on Friendship

शिक्षा हमें जगाती है, शोषण से हमें बचाती है।

Poster on Saksharta Abhiyan in Hindi

रोटी, कपड़ा और मकान, पर शिक्षा से बनेगा हमारा देश महान।

Powerful Literacy Quotes

हम सब का एक ही नारा, निरक्षरों साक्षर बनाना है।

Quotes on Literacy by Mahatma Gandhi

गांधी जी का यही था कहना, अनपढ़ बनकर कभी ना रहना।

Quotes on Literacy Day

इसे हमेशा पहनाते रहना क्योंकी शिक्षा है अमूल्य गहना।

Saksharta Abhiyan Slogan in Hindi

बचपन से ही मेरा यही एक सपना, ख़ुद पढ़ना लिखना और दुसरों पढ़ाना।

Saksharta Abhiyan

पढ़ेंगे और दुसरों को पढ़ायेंगे, अपना देश उन्नत बनायेंगे।

Saksharta par Nare

शिक्षित होंगे सभी जन, विकसित होंगा मेरा वतन।

Literacy Quotes

शिक्षा से ही व्यक्ति को अपने कर्तव्यों का बोध होता है और अपने अधिकारों को समझने में मद्द मिलतीहै। एक शिक्षित व्यक्ति अपने जीवन की बड़ी से बड़ी मुश्किलों को समझदारी के साथ बड़ी आसानी से हल कर लेता है, जबकि एक अशिक्षित और अज्ञानी मनुष्य अपने जीवन की कठिनाईयों में ही उलझा रहता है, और आगे नहीं बढ़ पाता है, अर्थात अशिक्षित व्यक्ति का जीवन किसी जानवर के सामान होता है।

वहीं शिक्षा को महत्व को जन-जन तक पहुंचाने के लिए सरकार द्धारा  सर्व सिक्षा अभियान समेत कई कार्यक्रम चलाए जाते हैं, जिसमें साक्षरता पर कुछ स्लोगन के माध्यम से लोगों को साक्षर होने के लाभों के बारे में बताया जाता है, साथ ही यह भी बताया जाता है कि शिक्षा कैसे किसी व्यक्ति को सफल बनाने और आगे बढ़ाने में सहायक होती है और देश के निर्माण में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

जिस तरह शिक्षा किसी व्यक्ति के दिमाग को विकिसत कर उसे जीवन के हर पहलू को बेहद बारीकी से समझने में मद्द करती है। उसी तरह शिक्षा एक शिक्षित समाज का निर्माण कर देश के विकास में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

वहीं आज हमारे देश की साक्षरता दर अन्य विकसित देशों से कम है, जिसमें सुधार लाने के प्रयास किए जा रहे हैं, वहीं इस दिशा में हमने भी आपको साक्षरता पर कुछ ऐसे स्लोगन उपलब्ध करवाए हैं, जिन्हें पढ़कर आपने मन में भी अपने परिवार को शिक्षित करने की प्रेरणा मिलेगी।

Slogans on Literacy in Hindi

साक्षर परिवार, सुखी और खुशहाली से भरा परिवार।

Slogans on Literacy

जब पढ़ा लिखा होगा हर इन्सान तभी होंगा राष्ट्र महान।

Slogans on Saksharta Abhiyan

आपका ये सहयोग होगा अपने देश के लिए सच्चा, स्कूल जाने ना छूटे कोई बच्चा।

World Literacy Day Slogans in Hindi

विकसित राष्ट्र की यही कल्पना, शिक्षित पूरे देश को करना।

World Literacy Day Slogans

नारी हो या नर, आओं सब को बनाये साक्षर।

World Literacy Day

जीवन में पढिये, किसी भी उम्र में, और कहीं भी।

Literacy Quotes for Students in Hindi

घर में सभी को पढाओ और परिवार में खुशहाली लाओ।

आगे सभी भी बढ़ाना है घर बेटियों को भी पढाना है।

बहुत हुआ अब चूल्हा-चौका, बेटियों को दो पढ़ाई-लिखाई का मौका।

शिक्षा का एक अनमोल रतन, पढ़ने का सब मिलकर करो जतन।

पढ़ी लिखी जब होगी हमारी माता, वह घर की बनेगी भाग्य विधाता।

पिता जी सुन लो अब विनती हमारी, पढ़ने की है यह उम्र हमारी।

जहां न होता साक्षरता का वास, फिर कैसे होगा उस देश का विकास।

ज्ञान ही हमें बचाता है, और कर्तव्यों का बोध कराता है।

पूरे देश की है अब यही आवाज, पढ़ा-लिखा हो पूरा संसार।

अब जाग उठे हैं सब नर-नारी, शिक्षित होने की सबकी है तैयारी।

जहां साक्षरता होगी पूरी, उस राष्ट्र की प्रगति होगी पूरी।

साक्षरता बढ़ाइए और उस राष्ट्र को कामयाबी के पथ पर आगे ले जाइए।

जब साक्षर होंगे धरती पर सभी इंसान, तभी धरती होगी स्वर्ग के सामान।

बड़े-बुजुर्गों, सबका यही कहना, शिक्षा से तुम कभी दूर मत रहना।

हम सबकी बस यही पुकार, शिक्षा है सबका अधिकार।

हर घर में ज्ञान का चिराग तभी चलेगा, जब हर बच्चा स्कूल चलेगा।

जब होगा शिक्षा का वास, तभी होगा देश का पूरा विकास।

हर तरफ ज्ञान का प्रकाश फैलाएं, आओ मिलकर सभी को शिक्षित बनाएं।

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चंगेज़ खान का इतिहास | Changez Khan history in Hindi

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Changez Khan History in Hindi

चंगेज खान एक महान मंगोल शासक था, जो कि अपनी क्रूरता, बर्बरता, संगठन शक्ति और आक्रामक सम्राज्य विस्तार करने के लिए पूरी दुनिया में सबसे क्रूर सेनापति के रुप में विख्यात था। चंगेज खान युद्ध से पहले ही दुश्मन के हौसले को अपनी चपलता से परास्त करने में माहिर था।

यही नहीं एक बेहतरीन घुड़सवार और तीरंदाज के रुप में भी उसकी ख्याति दुनिया में चारों तरफ फैली हुई थी। आपको बता दें कि बचपन में ही चंगेज खान के पिता येसुजेई बगातुर को जहर देकर बर्बरतापूर्ण तरीके से मार दिया गया था, पिता की दर्दनाक मौत ने चंगेज खान को शुरु से ही कठोर और निडर बना दिया था।

दुनिया का सबसे निर्दयी शासक होने के साथ-साथ वह एक बेहद अनुशासित, शक्तिशाली, चतुर मंगोल शासक भी था, जिसने अपनी रणनीति और कुशलता के चलते 1206 से 1227 के बीच यूरोप और एशिया के ज्यादातर हिस्सों को जीत लिया था और अपने मंगोल सम्राज्य का विस्तार किया था, इसलिए उसकी गिनती दुनिया के महानतम शासकों में होती है।

मंगोल शासक चंगेज खान के आगे पूरी दुनिया को जीतने वाले सिकंदर और जूलियस सीजर जैसे सुरमा भी पानी भरते थे। चंगेज खान खानाबदोश जिंदगी का रहनुमा था, जिसे शहरी जीवन से सख्त नफरत थी। उसने और उसकी बर्बर सेना ने कई शहरों को  नष्ट कर तबाही का खौफनाक मंजर खड़ा किया था। दुनिया के सबसे क्रूर सेनापति चंगेज खान ने लगभग पूरी दुनिया में अपनी फतह कर ली थी।

उसने सबसे पहले यूरोप और एशिया के ज्यादातर हिस्से को तबाह कर दिया था। इसके बाद उसने मंगोल के पूर्व में चीन के ‘किन सम्राज्य’ को भी खत्म कर डाला था। फिर उसने कोरिया को जीत लिया था। यही नहीं चंगेज खान के निर्दयता का अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि चीन के दक्षिण के शुंग साम्राज्य जिसने इसकी कई युद्धों में सहायता की थी, लेकिन उसने शुंग सम्राज्य को भी नहीं बख्शा था।

हालांकि, वह सभी धर्मों को मानने वाला था, जिसने किसी एक धर्म या फिर मजहब को अपने जीवन में नहीं अपनाया था, लेकिन कुछ इतिहासकार उसे बौद्ध धर्म का अनुयायी बताते हैं। तो आइए जानते हैं इतिहास के इस सबसे निर्दयी और क्रूर मंगोल सेनापति चंगेज खान के बारे में – Changez Khan Aka Genghis Khan

चंगेज़ खान का इतिहास – Changez Khan history in Hindi

पूरा नाम (Name) चंगेज खान (तेमुजिन)
जन्म (Birthday) 1162 ईसवी के आसपास, मंगोलिया के उत्तरी हिस्से के पास।
पिता का नाम (Father Name) येसुजेई बगातुर (कियात कबीले का सरदार)
विवाह (Wife Name) बोर्ते
मृत्यु (Death) 1227 ईसवी

चंगेज खान का जन्म और प्रारंभिक जीवन – Genghis Khan Biography or Genghis Khan Descendants

दुनिया का सबसे क्रूर सेनापति चंगेज खान 1162 ईसवी के आसपास वर्तमान मंगोलिया के उत्तरी हिस्से के स्थित ओनोन नदी के पास तेमुजिन (तेमूचिन)  के रुप में जन्मा था। चंगेज खान के  पिता का नाम येसूजेई बगातुर था, जो कि कियात कबीले के सरदार थे। ऐसा कहा जाता है कि चंगेज खान की दाईं हाथ की हथेली पर पैदाईशी खूनी धब्बा था। चंगेज खान के 4 सगे भाई -बहन थे।

बेहद मुश्किलों में बीता था चंगेज खान का बचपन – Genghis Khan Biography

चंगेज खान का बचपन बेहद मुश्किलों में बीता था, दरअसल जब वह महज 10 साल का था जब कबीलों की लड़ाई में उसके पिता येसूजेई बगातुर की निर्मम तरीके से हत्या कर दी गई थी, जिसके बाद वह हिमम्मत नहीं हारा बल्कि पिता की मौत के बाद उसके अंदर का सारा खौफ खत्म हो गया और वह निडर तरीके से आगे बढ़ता चला गया वहीं इसके बाद उसका युद्ध कौशल निखरता गया। धीरे-धीरे उसने अपनी मजबूत संगठन शक्ति के बल पर खानाबदोश समुदायों को इकट्ठा किया और एक बड़ी शक्ति के रुप में उभरा।

चंगेज खान का विवाह – Genghis Khan Marriage

अपनी क्रूरता के लिए पहचाने जाने वाले चंगेज खान की शादी 12 साल की छोटी सी उम्र में बोर्ते के साथ हुई थी। वहीं शादी के कुछ समय बाद ही उसकी बीबी का एक विद्रोही कबीले द्धारा अपहरण कर लिया गया था, जिसे छुड़ाने के लिए चंगेज खान को काफी संघर्ष और लड़ाईयां करनी पड़ी थी।

हालांकि इस गंभीर परिस्थिति में भी उसने अपने कुछ खास दोस्त बनाएं।  जिसमें बोघूरचू के लिए उसके दिल में विशेष स्थान था। अपने दोस्तों की  मद्द से ही उसने अपने पत्नी बोर्ते को आजाद करवाया।

सगे भाई जमूका से चंगेज खान की दुश्मनी:

चंगेज खान का सगा भाई जमूका उसका एक भरोसेमंद साथी था। हालांकि जमूका बाद में उसका बहुत बड़ा दुश्मन बन गया था। उसने अपने ताऊ ओंग खान (तुगरिल) के साथ मिलकर जमूका को बुरी तरह परास्त कर दिया था। जमूका को हराने के बाद उसकी सैन्य शक्ति और अधिक मजबूत हो गई थी एवं वह आत्मविश्वास से भर गया था। इसके बाद वह कबीलों के खिलाफ युद्द करने के लिए निकल पड़ा था, लेकिन इससे पहले उसने अपने पिता की मौत का बदला लिया था।

चंगेज खान ने अपने पिता की मौत का लिया बदला:

चंगेज खान जब थोड़ा सा बड़ा हुआ, तब उसने खानाबदोश जातियों को इकट्ठा किया एवं कुछ कबीलों को नष्ट कर अपने पिता येसुजेई की मौत का बदला लिया। इतिहासकारों के मुताबिक चंगेज खान के पिता को उसके ताऊ ओंग खान और शक्तिशाली तार्तार कैराईट ने बेहद दर्दनाक मौत दी थी।

जिसके बाद 1203 ईसवी में चंगेज खान ने अपने पिता के हत्यारे ओंग खान के खिलाफ युद्ध छेड़ा  था। और 1206 ईसवी में अपने सगे भाई और सबसे बड़े दुश्मन जमूका को हराने के बाद वह स्टेपी क्षेत्र का सबसे ताकतवर और शक्तिशाली योद्धा बन गया  था।

चंगेज खान को ‘कैगन’ अर्थात विश्व सम्राट की उपाधि से नवाजा गया:

चंगेज खान की अद्भुत ताकत को देखते हुए जम्कुआ और केरियित उसके सबके बड़े दुश्मन बन गए थे। हालांकि बाद में उन्हें चंगेज खान ने मार गिराया था। वहीं 1206 ईसवी में उसके प्रभुत्व को देखते हुए मंगोलों की सभा कुरिल्ताई ने उसे अपना सरदार बना दिया था और उसे ‘कैगन (सम्राट या सरदार) या सार्वभौम शासक (विश्व सम्राट) की उपाधि दी थी। इसके साथ ही उसे महानायक भी  घोषित कर दिया गया था। जो आगे चलकर चंगेज खान के नाम से मशूहर हो गया।

चंगेज खान ने कई कबीलों को अपने अधीन कर की विजय अभियानों की शुरुआत:

मंगोलों की सभा कुरिल्ताई का सरदार बनने के बाद चंगेज खान बेहद ताकतवर शासक  बन चुका था, जिसने अपने सैन्य और युद्ध कौशल से एक विशाल सेना तैयार की थी। कहा जाता है कि, उसकी सेना जहां से गुजरती थी, उसके पीछे तबाही की कई कहानियां छोड़ जाती थी। दुनिया के इस सबसे खूंखार दरिंदे चंगेज खान ने सबसे पहले चीन में तबाही का बेहद खौफनाक मंजर तैयार किया था।

चंगेज खान की क्रूर मंगोल सेना ने 1209 ईसवी में चीन के उत्तर -पश्चिमी प्रांत के तिब्बती मूल के सी-लिया लोग को बुरी तरह पराजित कर दिया था, इसके बाद 1215 में पेकिंग (वर्तमान बीजिंग) पर जीत हासिल कर अपना मंगोल सम्राज्य स्थापित कर लिया था और फिर उसने दक्षिण के शुंग साम्राज्य, जिसने उसकी कई लड़ाईयों में मदद की थी, बाद में उसने इसे भी तहस-नहस कर डाला था।

1234 ईसवी तक चीनी राजवंश के खिलाफ उसने जमकर विद्रोह किया। इसके बाद वह वापस मंगोलिया लौट गया था। इसके बाद चंगेज खान ने अपने विजय अभियान के साथ यूरोप की तरफ कूच किया। 1218 ईसवी में कारा खितई को हरा देने के बाद उसने ख्वारिज्म की तरफ अपना विजय अभियान को आगे बढ़ाया।

आपको बता दें कि 1206 से 1227 तक चंगेज खान ने चीन से लेकर समरकंद (उज्बेकिस्तान), बुखारा (उज्बेकिस्तान), मर्व, निशापुर, ओट्रार, बल्ख, हेरात और गुरगंज जैसे विश्व के कई बड़े राज्यों को जीतकर अपना मंगोल सम्राज्य स्थापित कर लिया था।

इस तरह चंगेज खान ने विश्व के करीब 3 करोड़, 30 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल पर राज करने वाला सबसे पहला शासक बन गया था।  चंगेज खान के बाद आज तक कोई भी शासक विश्व के इतने बड़े क्षेत्र में अपना शासन नहीं कर सका।

चंगेज खान का सैन्य-युद्ध कौशल और सफलता का रहस्य:

दुनिया का सबसे क्रूर सेनापति चंगेज खान अपने युद्ध कौशल के लिए जाना जाता था, वो जिस राज्य में भी अपना सम्राज्य स्थापित करना चाहता था, अद्भुत युद्ध कौशल की वजह वो उसे जीत लेता था। दरअसल चंगेज खान बेहद होश्यारी और सावधानी पूर्वक अपनी लड़ाईयां लड़ता था। वह अपने सैनिकों को खास ट्रेनिंग देता था।

वहीं उस समय युद्द में तेजी के लिए घोड़ों का इस्तेमाल होता था, इसलिए वह अपने सभी घोड़ों को भी युद्द के लिए तैयार रखता था। आपको बता दें कि अगर युद्ध में उसके किसी सैनिक का घोड़ा मर जाता था, तो वह फौरन दूसरा घोड़ा अपने सैनिक के पास भेजता था। अपनी क्रूरता के लिए मशहूर मंगोल शासक चंगेज खान ने कई ऐसी लड़ाईयां भी लड़ीं जिसमें उसका सैन्य बल, विरोधी की सेना से कम था, लेकिन उसके बेहतरीन संगठन शक्ति और अनुशासन की वजह से चंगेज खान की सेना की ही ज्यादातर जीत होती थी।

वहीं कई इतिहासकार, विश्व के सबसे ज्यादा हिस्सों पर राज करने वाला निर्दयी सुल्तान चंगेज खान की सफलता का श्रेय उसकी सेना की चपलता को भी मानते है, उसकी सेना का सिर्फ एक ही मकसद पूरी दुनिया को जीतना था। इसके अलवा उसके बेहतरीन घुड़सवार, युद्ध में आग के गोलों के इस्तेमाल से भी उसकी सफलता की राहें आसान हो गईं।

वहीं जो सम्राट चंगेज खान के कहने पर टैक्स देने को तैयार हो जाते थे, उन शासकों को चंगेज खान नुकसान नहीं पहुंचाता था। वहीं उसने जितने भी प्रांतों पर मंगोल सम्राज्य स्थापित किया था, उसने उन प्रांतों की जिम्मेदारी भरोसेमंद,अनुशासित और काबिल व्यक्तियों को सौंपी थी। यह भी उसके विश्व के इतने बड़े हिस्से पर राज करने की प्रमुख वजहों में से एक थी।

बर्बरतापूर्ण करीब 4 करोड़ लोगों को उतारा था मौत के घाट:  

चंगेज खान को विश्व के सबसे बर्बर और क्रूर सेनापति इसलिए कहा जाता है, क्योंकि वह जिन क्षेत्रों से गुजरता था, वहां के शहर के शहर तहस-नहस कर देता था, और बर्बरतापूर्वक मासूम बच्चों, युवाओं और महिलाओं को जान से मार देता था। इतिहास में उसकी क्रूरता के किस्से रौंगटे खड़े कर देने वाले हैं।

ईरान में अपने विजय अभियान के दौरान उसने वहां की करीब 75 फीसदी आबादी की जान ले ली थी। उसने लाशों और तबाहीं का ऐसा मंजर खड़ा किया था, जिसकी शायद ही कोई कल्पना भी नहीं कर सकता है। चंगेज खान ने निर्दयतापूर्ण उज्बेकिस्तान के सबसे बड़े शहर बुखारा और समरकंद को जला दिया था, वहीं उसके इस कुकर्म से हजारों लोग जिंदा ही जलकर राख में मिल गए थे।

उसकी बेपनाह बर्बरता को देखकर लोग खौफ में जीने लगे थे, वहीं लाखों महिलाओं को भी उसकी निर्दयता का शिकार होना पड़ा था। दुर्दान्त चंगेज खान ने लाखों महिलाओं का बलात्कार और शोषण किया था। पूरे विश्व में उसका इतना खौफ था कि उसका नाम सुनकर भी लोग सहम उठते थे।

भारत को रौंदना चाहता था चंगेज खान, लेकिन इरादा बदलकर वापस लौट गया:

दुनिया के सबसे बर्बर और निर्दयी शासक चंगेज खान ने ईरान में ख्वारिज्म वंश के जिस शासक पर आक्रमण किया था, तब उसका उत्तराधिकारी जलालुद्दीन मंगवर्नी  इसके भय से वह सिंध नदी के तट पर पहुंच गया था और फिर उसने  उस समय दिल्ली के तल्ख पर विराजित सुल्तान इल्तुतमिश से सहायता मांगी, लेकिन चंगेज खान से भय से इल्तुतमिश ने जलालुद्धीन को सहायता देने से मना कर दिया था।

इतिहासकारों के मुताबिक दुनिया का सबसे बर्बर शासक इल्तुतमिश पहले भारत को रौंदते हुए असम के रास्ते मंगोलिया वापस जाना चाहता था, लेकिन इल्तुततमिश के हार मानने और भीषण गर्मी और अपनी बीमारी की वजह से वह भारत आते-आते वापस लौट गया। और इस तरह भारत दुर्दान्त चंगेज खान की बर्बरता और भयानक बर्बादी से बच गया।

चंगेज खान की मृत्यु – Genghis Khan Death

दुनिया का सबसे खौफनाक शासक चंगेज खान  की 1227 ईसवी में मृत्यु हो गई और उसकी मृत्यु को लेकर इतिहासकारों के अलग-अलग मत हैं। हालांकि कुछ इतिहासकारों का कहना है कि चंगेज खान की मौत घोड़े से गिरने की वजह से हुई थी। वहीं चंगेज खान के बारे में ऐसा भी कहा जाता है कि वे चाहते थे कि मरने के बाद किसी को उसकी कब्र के बारे में पता नहीं चले, इसलिए उसकी इस इच्छा को पूरा करने के लिए उसके शव को दफनाने गए सभी सैनिकों को मार दिया गया गया था।

चंगेज खान की मौत के बाद उसका बेटा ओगताई उसका उत्तराधिकारी बना, जो कि चंगेज खान के विपरीत एक शांतिप्रिय और दयालु शासक था। वहीं उसकी मौत के कई सालों बाद भी मंगोल साम्राज्य का शासन रहा।

इस तरह चंगेज खान इतिहास में सबसे जालिम, क्रूर और निर्दयी शासक के रुप में मशहूर हुआ जिसने दुनिया के कई हिस्सों में बर्बरतापूर्ण अपना सम्राज्य स्थापित किया था और कई बड़े शहरों को तहस-नहस कर एक बड़ी आबादी का सफाया किया था एवं तबाही और मौत का भयावह मंजर खड़ा किया था।

चंगेज खान की क्रूरता के किस्से सुनकर आज भी लोगों की रुंह कांप उठती है। 41 साल की उम्र में चंगेज खान ने अपने विजय अभियान की शुरुआत की और अपनी मजबूत संगठन शक्ति और ताकत से दुनिया के ज्यातर हिस्सों में राज किया। चंगेज खान भले ही इतिहास का सबसे दुर्दान्त शासक था।

लेकिन उसके सैन्य -युद्ध कुशलता, समझदारी, अनुशासन,काम के प्रति ईमानदारी, निष्ठा और मजबूत संगठन शक्ति की वजह से वह अपने मंगोल सम्राज्य को दुनिया के ज्यादातर हिस्सों में स्थापित करने में कामयाब हो सका था।

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अन्न की बर्बादी पर स्लोगन | Slogans on Food Wastage

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Slogans on Food Wastage in Hindi

हम बचपन से ही सुनते आये हैं की अपनी थाली में अन्न कभी झूठा मत छोड़ना, कभी भी अन्न का अपमान मत करना क्योकि अन्न परब्रह्म होता हैं।

यह तो हम सभी जानते हैं कि हमारे जीवन के लिए भोजन कितना महत्वपूर्ण हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि, इस पूरी दुनिया में जितना भी भोजन बनता है, उसका करीब 1 अरब 30 करोड़ टन बर्बाद चला जाता है।

जी हां दोस्तों, एक रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया भर में बने हुए भोजन का लगभग एक तिहाई हिस्सा बर्बाद चला जाता है, वहीं दूसरी तरफ अन्न, जल उपलब्ध नहीं होने की वजह से हजारों की तादाद में बच्चे रोजाना भुखमरी और कुपोषण का शिकार हो रहे हैं, लेकिन फिर भी कुछ लोग ऐसे हैं, जो बड़े स्तर पर अन्न की बर्बादी कर रहे हैं।

शादी, बर्थडे पार्टी अथवा किसी बड़े आयोजन में बड़ी मात्रा में बचे हुए खाने को लोग गरीबों में बांटने की बजाय उसे सड़ा कर डस्टबिन में फेंक देते हैं। इसके साथ ही रोजाना होटल, ढाबा और रेस्टोरेंट में बनने वाला खाना भी काफी बड़ी मात्रा में बर्बाद कर दिया जाता है।

तो वहीं विकसितशील देशों में सही ढंग से खाने का रख-रखाव नहीं होने की वजह से कई टन खाने की रोजाना बर्बादी होती है, जबकि कुछ लोग भूख की वजह से दम तोड़ रहे हैं, जो कि बेहद शर्मनाक और चिंतनीय है।

इसलिए आज हम अपने इस पोस्ट में अन्न की  बर्बादी पर जागरुक करने के उद्देश्य से बेस्ट स्लोगन उपलब्ध करवा रहे हैं, यकीनन यह स्लोगन आपको अन्न की बर्बादी नहीं करने के लिए प्रोत्साहित करेंगे, साथ ही अगर आप इन स्लोगन को सोशल मीडिया साइट्स व्हाट्सऐप और फेसबुक पर शेयर करेंगे, तो अन्न की बर्बादी रोकी जा सकती है और इस बचे हुए भोजन से कई गरीब और भूखे लोगों का पेट भरा जा सकता है।

अन्न की बर्बादी पर स्लोगन – Slogans on Food Wastage

Slogans on Food Wastage

“आओं, हम सब मिलकर अपने देश में एक ऐसा नियम लाएँ, बचा हुआ अच्छा भोजन जरूरतमंद तक पहुँचाएँ।

आओ सब मिलकर यह कसम खाएं, शुभ कार्यों में भोजन उतना ही पकाएं, कि बचने पर कभी फेकनें की नौबत ना आए।

“अन्न ही जीवन हैं, अन्न ही ईश्वर हैं इसका सम्मान करें।

Slogans on Food Wastage in Hindi

“हम पर कभी भोजन फेकनें की नौबत ना आये, इसलिए कार्यक्रमों में भोजन जरुरत के अनुसार ही बनायें।

दुनिया में कई ऐसे लोग हैं, जो इतने भूखे हैं कि भगवान उन्हें रोटी के अलावा किसी और रूप में दिख ही नहीं सकता है – महात्मा गांधी

“आप वो खाये जो लेते हैं और उतना ही लें जितना खाते हैं।

Quotes on Food Wastage

“अन्न की बर्बादी को रोको, बात हमारी जानों।

जितनी भूख हो उतना ही भोजन लो थाली में, क्योकि भोजन की बर्बादी सबसे बड़ा पाप हैं जीवन में।

“सबको जागरूक होना पड़ेगा, भोजन की बर्बादी को रोकना पड़ेगा।

Quotes on Food Wastage in Hindi

“खाने के बर्बादी की चिंता से क्यों है सब अनजान ? दुनियाँ में एक-तिहाई खाने का होता है नुक्सान।

अन्न हैं तो मन प्रसन्न हैं।

“रोटियां उन्हीं की थालियों से कूड़े तक जाती हैं, जिन्हें पता नहीं होता भूख क्या होती हैं।

Quotes on Food Wastage in Hindi

खाने की बर्बादी पर एक रिपोर्ट के अनुसार माने तो देश-दुनिया में बढ़ी रही संपन्नता से खाने के प्रति लोग लापरवाह और असंवेदनशील होते जा रहे हैं, वहीं विश्व खाद्य संगठन की एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार पूरी दुनिया में रोजाना करीब 20, हजार से भी ज्यादा बच्चे भूखे सोने को मजबूर हैं।

वहीं इस मामले में भारत, पूरी दुनिया में 67 वें नंबर पर है, वहीं अगर खाने की बर्बादी पर लगाम नहीं लगाई गई, तो भूखे मरने वालों की संख्या बढ़ती चली जाएगी, इसलिए इसके प्रति सभी को जागरुक होने की जरूरत है।

और इस दिशा में ठोस कदम उठाने के आवश्यकता है साथ ही अन्न के महत्व को समझने की जरुरत है, ताकि एक सभ्य, सशक्त समाज और बेहतर देश का निर्माण हो सके।

Food Wastage Quotes

“अन्न ही है परब्रह्म, और अन्न ही है जीवन।

भोजन की कीमत भूख लगने पर पता चलती हैं।

“सो गए गरीब के बच्चे ये सुन कर कि, ‘‘ख्वाबो में फरिश्ते आते हैं रोटियाँ लेकर’’।

Food Wastage Quotes in Hindi

“अन्न की बर्बादी सबसे बड़ा पाप हैं जीवन में, इसलिए जीतनी हो भूख उतनाही भोजन थाली में।

अन्न की बर्बादी को रोको, कोई दूसरा ऐसा करें तो उसे जरूर टोको।

“रोटी से विचित्र कुछ भी नहीं, इंसान पाने के लिए भी दौड़ता हैं और पचाने के लिए भी।

Dont Waste Food Quotes

“अन्न की बर्बादी ना करे, बचें हुए भोजन का सदुपयोग करें।

खाना फेकने के कारण, नुक्सान हो जाये। जहाँ फेके वहाँ फैले अस्वच्छता, और स्वच्छता में बाधा आये।

Anti Food Wastage Slogans

“प्रोग्राम में होती है अन्न की बर्बादी, जरा सोचें कितनी होती है नुकसानी।

अच्छे दाम नहीं मिलने पर, किसान सब्जी फेके जाए। अगर बाटे लोगों में, तो उनकीं दुआ पाए।

Also Read:

  1. Slogans On Health
  2. Slogans on Healthy Food

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बेगम हज़रत महल का इतिहास | Begum Hazrat Mahal In Hindi

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Begum Hazrat Mahal

भारत वीरागंनाओं की जन्म भूमि रहा है। भारत को अंग्रेजी हुकूमत से आजादी दिलवाने की लड़ाई में उनकी बहादुरी के लिए रानी लक्ष्मीबाई, सावित्री बाई फुले, सरोजिनी नायडू, अरुणा असफ अली जैसी साहसी और वीर महिलाओं का नाम लिया जाता हैं, वहीं ऐसे ही क्रांतिकारी महिलाओं में बेगम हजरत महल का नाम भी शामिल है।

जिन्होंने 1857 में हुई आजादी की पहली लड़ाई में अपनी बेहतरीन संगठन शक्ति और बहादुरी से ब्रिट्रिश हुकूमत के छक्के छुड़ा दिए थे। बेगम हजरत महल ने लखनऊ को अंग्रेजों से बचाने के लिए एक जाबांज योद्धा की तरह लड़ाई लड़ी और तमाम क्रांतिकारी कदम उठाकर अंग्रेजों को अपनी शक्ति की ताकत दिखा दी थी। वे अवध के शासक वाजिद अली शाह की पहली बेगम थी, जिन्हें अवध की आन-बान शान माना जाता था।

बेगम हजरत महल सैन्य और युद्ध कौशल में निपुण महिला थी, जो खुद युद्ध के मैदान में जाकर अपने सिपाहियों को प्रशिक्षण देती थी और युद्ध में विजय प्राप्ति के लिए उनका हौसला अफजाई करती थी। उनके अंदर एक आदर्श और कुशल शासक के सारे गुण विद्यमान थे।

अपने जीवन में तमाम संघर्षों के बाबजूद भी अपनी कुशल रणनीतियों से अपने राज्य को बचाने के तमाम प्रयास करती रहीं, हालांकि बाद में उन्हें अंग्रेजों से पराजय का सामना करना पड़ा था और अपना राज्य छोड़कर नेपाल की शरण लेनी पड़ी थी। बेगम हजरत महल विपरीत परिस्थितियों में भी कभी हार नहीं मानने वाली वीरांगना थी, उनका जीवन बेहद प्रेरणादायक हैं, तो आइए जानते हैं इतिहास की इस सबसे साहसी और वीर महिला हजरत महल के बारे में –

बेगम हजरत महल का जीवन परिचय – Begum Hazrat Mahal in Hindi

Begum Hazrat Mahal

पूरा नाम (Name) बेगम हज़रत महल
जन्म (Birthday) लगभग 1820 ई., फ़ैज़ाबाद, अवध, भारत
मृत्यु (Death) अप्रैल, 1879, काठमांडू, नेपाल
पति का नाम (Father Name) नबाब वाजिद अली शाह
बच्चे (Children) 1 बेटा
कार्य (Work) 1857 में ब्रिटिश इस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ विद्रोह, अपने राज्य अवध को बचाने के लिए अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी।

बेगम हजरत महल का जन्म और प्रारंभिक जीवन – Begum Hazrat Mahal History

आजादी की पहली लड़ाई 1857 में अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई करने वाली वीरांगना बेगम हजरत महल 1820 ईसवी में अवध प्रांत के फैजाबाद जिले के एक छोटे से गांव में बेहद गरीब परिवार में जन्मी थीं। बचपन में उन्हें सब मुहम्मदी खातून (मोहम्मद खानम) कहकर पुकारते थे।

बेगम हजरत महल की परिवार की दयनीय हालत इतनी खराब थी कि उनके माता-पिता उनका पेट भी नहीं पाल सकते थे। जहां वे बड़े और राजशाही घरानों के शहंशाहों का डांस कर मनोरंजन करती थीं। इसके बाद उन्हें शाही हरम में परी समूह में शामिल कर लिया गया, जिसके बाद वे ‘महक परी’ के रुप में पहचाने जाने लगीं।

‘हजरत महल’ की उपाधि – Hazrat Mahal

बेगम हजरत महल का सुंदर रुप भी हर किसी को मोहित कर लेता था, वहीं एक बार जब अबध के नवाब ने उन्हें देखा तो वे उनकी सुंदरता पर लट्टू हो गए और उन्हें अपने शाही हरम में शामिल कर लिया और फिर बाद में अवध के नवाब वाजिद अली शाह ने उन्हें अपनी शाही रखैल से बेगम बना लिया। इसके बाद उन्होंने बिरजिस कादर नाम के पुत्र को जन्म दिया। फिर उन्हें ‘हजरत महल’ की उपाधि दी गई।

शौहर को बंदी बनाए जाने के बाद संभाली अवध की सत्ता:

काफी संघर्षों के बाद अवध के नवाब की बेगम बनने के बाद जब बेगम हजरत महल की जिंदगी में थोड़ी सी खुशहाली आई ही थी कि उस दरमियां 1856 ईसवी में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने ताजदार-ए-अवध नवाब वाजिद अली शाह के अवध राज्य पर कब्जा कर लिया और बेगम हजरत महल के नवाब को बंदी बना कर उन्हें कोलकाता भेज दिया।

इसके बाद बेगम हजरत महल ने अवध राज्य की सत्ता संभालने का निर्णय लिया और फिर अपने नाबालिग बेटे बिरजिस कादर को अवध की राजगद्दी पर बिठाकर 7 जुलाई, 1857 ईसवी से अवध के कुशल शासक के रुप में ब्रिटिश शासकों के खिलाफ चिंगारी लगाना शुरु कर दिया था।

बेगम हजरत महल एक कुशल रणनीतिकार थी, जिनके अंदर एक सैन्य एवं युद्ध कौशल समेत कई गुण विद्यमान थे। उन्होंने अंग्रेजों के चंगुल से अपने राज्य को बचाने के लिए अंग्रेजी सेना से वीरता के साथ डटकर मुकाबला किया था एवं तमाम लड़ाईयां लड़ी थीं।

सैनिकों का बढ़ाती थी मनोबल, महिला सैनिक दल था उनकी शक्ति:

बेगम हजरत महल एक कुशल प्रशासक की तरह सभी धर्मों को समान रुप में देखती थीं, वे धर्म के आधार पर कभी भी भेदभाव नहीं करती थीं, उन्होंने अपने सभी धर्मों के सिपाहियों को भी समान अधिकार दिए थे।

इतिहासकारों की माने तो बेगम हजरत महल अपने सिपाहियों के हौसला बढ़ाने के लिए खुद ही युद्ध मैदान में चली जाती थी। हजरत महल की सेना में वीरांगना रानी लक्ष्मी बाई की तरह महिला सैनिक दल भी शामिल था।

1857 की क्रांति में दिया था अपने साहस और वीरता का परिचय:

सन् 1857 में भारत को आजाद करवाने के लिए हुई पहली लड़ाई के दौरान बेगम हजरत महल ने अपनी सेना और समर्थकों के साथ ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ विद्रोह छेड़ दिया और वीरता के साथ अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध लड़ा। बेगम हजरत महल के कुशल नेतृत्व में उनकी सेना ने लखनऊ के पास चिनहट, दिलकुशा में हुई लड़ाई में अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए थे।

लखनऊ में हुए इस विद्रोह में साहसी बेगम हजरत महल ने अवध प्रांत के गोंडा, फैजाबाद, सलोन, सुल्तानपुर, सीतापुर, बहराइच आदि क्षेत्र को अंग्रेजों से मुक्त करा कर लखनऊ पर अपना कब्जा जमा लिया था।

लखनऊ की लड़ाई में मिला था कई बड़े राजाओं का साथ:

इतिहासकारों के मुताबिक 1857 में अंग्रेजों के खिलाफ हुई इस लखनऊ की लड़ाई में बेगम हजरत महल का कई राजाओं ने साथ दिया था। बेगम हजरत महल की सैन्य प्रतिभा से प्रभावित होकर ही स्वंतत्रता संग्राम में मुख्य भूमिका अदा करने वाले एवं महारानी लक्ष्मी बाई के बेहद करीबी रहे नाना साहिब ने भी उनका साथ दिया था।

बेगम हजरत महल के कुशल नेतृत्व, बेहतरीन संगठन क्षमता और उनके अदम्य साहस से प्रभावित होकर राजा जयलाल, राजा मानसिंह आदि भी इस लड़ाई में रानी हजरत महल का साथ देने के लिए आगे आए थे। यही नहीं बेगम हजरत महल के प्रभावशाली संगठन का प्रभाव अवध के किसान, जमीदार और अवध प्रांत के युवा नागरिक पर भी पड़ा था और उन्होंने भी अंग्रेजों के खिलाफ हुई इस लड़ाई में हजरत महल का साथ दिया था।

इस लड़ाई मे हजरत महल ने हाथी पर सवार होकर अपनी सेना का कुशल नेतृत्व किया और अंग्रेजों के दांतों तले चना चबाने के लिए मजबूर कर दिया था। इस लड़ाई में अंग्रेजों को लखनऊ रेजीडेंसी में छिपने के लिए मजबूर होना पड़ा था। बेगम हजरत महल की अंग्रेजों के साथ यह लड़ाई काफी दिनों तक चलती रहीं। वहीं हजरत महल के नेतृत्व में उनकी सेना भी अंग्रेजों का पूरी वीरता के साथ मुकाबला करतीं रही।

हालांकि बाद में अंग्रेजों नें ज्यादा सेना और हथियारों के बल पर एक बार फिर से लखनऊ पर आक्रमण कर दिया और लखनऊ और अवध के ज्यादातर हिस्सों में अपना अधिकार जमा लिया यहां तक की अंग्रेजों ने बेगम की कोठी में भी कब्जा कर लिया जिसके चलते बेगम हजरत महल को पीछे हटना पड़ा और अपना महल छोड़कर जाना पड़ा।

लखनऊ पर अंग्रेजों का कब्जा होने के बाद भी क्रांति की चिंगारी भड़काती रहीं बेगम:

अपना सिंहासन छोड़ने के बाद भी हजरत महल ने अपनी हार नहीं मानी और फिर वे अवध के देहातों में जाकर लोगों के अंदर अग्रेजों के खिलाफ क्रांति की चिंगारी भड़काती रहीं और अवध के जंगलों को अपना ठिकाना बनाया। इस दौरान उन्होंने नाना साहेब और फैजाबाद के मौलवी के साथ मिलकर शाहजहांपुर में भी आक्रमण किया और गुरिल्ला युद्ध नीति से अंग्रेजों की नाक में दम कर दिया।

इस तरह जहां तक संभव हो सका वे भारत की एक साहसी वीरांगना की तरह वे अंग्रेजों का मुकाबला करती रहीं। ऐसा कहा जाता है कि बेगम हजरत महल के नेतृत्व में अवध की लड़ाई में अंग्रजों के पसीने छूट गए थे एवं वे पहली ऐसी बेगम थी, जिन्होंने लखनऊ के विद्रोह में हिन्दू-मुस्लिम सभी राजाओं और अवध की आवाम के साथ मिलकर अंग्रेजों को पराजित किया था।

हालांकि बाद में उनका अपना राज्य छोड़कर जाना पड़ा था। अवध की रानी बेगम हजरत महल ने अंग्रेजों पर मुस्लिमों और हिन्दुओं के धर्म में फूट और नफरत पैदा करने का आरोप भी लगाया था।

अपना राज्य छोड़कर नेपाल में लेनी पड़ी थी शरण और यहीं ली अपनी अंतिम सांस – Begum Hazrat Mahal Death

अंग्रेजों के खिलाफ इस लड़ाई के दौरान मौलाना अहमदशाह की हत्या कर दी गई थी, जिसके बाद हजरत महल बिल्कुल अकेले पड़ गईं और उनके पास लखनऊ छोड़ने के अलावा कोई और दूसरा रास्ता नहीं बचा था।

वहीं इसी दौरान ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ इलाहाबाद और कानपुर में भी मोर्चा टूट चुका था और दिल्ली और मेरठ में भी अंग्रेजों का काफी अत्याचार बढ़ गया था, जिसके चलते कई क्रांतिकारियों को इस लड़ाई में पीछे हटना पड़ा था। वहीं उस समय अंग्रेजों ने बादशाह बहादुर शाह जफर को कैद कर रंगून भेज दिया था।

हालात काफी बिगड़ चुके थे, वहीं स्वाभिमानी हजरत महल किसी भी हालत में यह नहीं चाहती थी कि उन्हें अंग्रजों द्धारा बंदी बनाया जाए, इसलिए उन्होंने लखनऊ छोड़ने का फैसला लिया और अपने बेटे के साथ नेपाल चलीं गईं। बेगम हजरत महल की बहादुरी के चर्चे हर तरफ थे, नेपाल के राजा राणा जंगबहादुर भी उनके साहस से और स्वाभिमान से काफी प्रभावित थे, इसलिए उन्होंने बेगम हजरत महल को नेपाल में शरण दी।

हालांकि बाद में वे काठमांडू चली गईं और अपने बेटे के साथ एक साधारण महिला की तरह जीवन व्यतीत करने लगीं और यहीं उन्होंने 1879 में अपनी आखिरी सांस ली और काठमांडू के जामा मस्जिद में बेगम हजरत महल के शव को दफना दिया गया।

बेगम हजरत महल के नाम पर स्मारक और सम्मान – Begum Hazrat Mahal Memorial

• 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ने वाली स्वाभिमान और साहसी वीरांगना बेगम हजरत महल के सम्मान में 15 अगस्त 1962 को उत्तप्रदेश की राजधानी लखनऊ के हजरतगंज मे बने एक पार्क का नाम उनके नाम पर रखा गया।

लखनऊ के ओल्ड विक्टोरिया पार्क का नाम बदलकर “बेगम हजरत महल पार्क” कर दिया गया। यहां पर उनके सम्मान में संगमरमर का स्मारक भी बनाया गया। इस विशाल पार्क में दिपावली, दशहरा और लखनऊ महोत्सव जैसे बड़े-बड़े समारोह का आयोजन होता है। वहीं ये पार्क लखनऊ के लिए किए गए बेगम के बलिदान को याद दिलाता है।

• बेगम हजरत महल के सम्मान में भारत सरकार ने 10 मई, 1984 को एक डाक टिकट भी जारी किया। बेगम हजरत महल इतिहास की उन वीरांगनाओं में शामिल हैं, जिन्होंने अपने राज्य को बचाने के लिए न सिर्फ अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह किया था, बल्कि लखनऊ की लड़ाई में अंग्रेजों की नाक पर दम कर दिया था।

इसके साथ ही वे भारत की पहली ऐसी मुस्लिम महिला थी, जिन्होंने अपने धर्म के पर्दे को तोड़कर बेझिझक अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा खोला था, और अपने राज्य एवं देश के स्वाभिमान की लाज रखी थी। वहीं जब भी 1857 में हुए स्वतंत्रता संग्राम की चर्चा की जाएगी, तब बेगम हजरत महल के नाम सम्मान और गर्व के साथ लिया जाएगा।

जिस तरह बेगम हजरत महल ने तलवार की नोंक पर अपनी अद्भुत संगठन शक्ति से अंग्रजों के हौसलों को परास्त कर अपने देश का गौरव बढ़ाया था, उनके बलिदान को हमेशा याद किया जाएगा। स्वाभिमानी बेगम हजरत महल की देशभक्ति, साहस और शौर्य ने उनके नाम को इतिहास के पन्नों पर हमेशा के लिए अमर बना दिया।

देश की वीरांगना बेगम हजरत महल को ज्ञानी पंडित की पूरी टीम की तरफ से शत-शत नमन!

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छात्रों के लिए ऐसा भाषण, जो भर देगा आगे बढ़ने का जज्बा – Motivational Speech in Hindi for Students

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Motivational Speech for Students in Hindi

मनुष्य की जिंदगी में सुख और दुख तो लगा ही रहता है, लेकिन दुख के समय में कई लोग बुरी तरह टूट जाते हैं, और आगे बढ़ने की उम्मीद छोड़ देते हैं। ऐसे समय में उन लोगों को कई बार मोटिवेशन अर्थात प्रेरणा की जरूरत होती है। वहीं छात्रों के जीवन में भी पढ़ाई का और अच्छे अंक लाने का काफी टेंशन रहता है।

वहीं कई बार तो पढ़ाई करने के बाद भी अच्छे नंबर नहीं आते हैं या फिर उनका मन पढ़ाई में नहीं लगता है, बल्कि खेलकूद अथवा अन्य गतिविधि में लगता है, जिसकी वजह से वे बेहतर प्रदर्शन नहीं कर पाते हैं। ऐसे समय में छात्रों के अंदर प्रेरणादायक भाषणों के माध्यम से सही मार्गदर्शन करने और उनके अंदर आगे बढ़ने का जज्बा कायम किया जाता है।

वहीं आज हम अपने इस लेख में आपको ऐसे ही प्रेरणादायक भाषण उपलब्ध करवा रहे हैं, जिसकी सहायता से छात्रों के अंदर आगे बढ़ने का जज्बा बढ़ेगा और अपनी जिंदगी कुछ हासिल करने की भावना का विकास होगा।

Motivational Speech in Hindi for Students

छात्रों के लिए ऐसा भाषण, जो भर देगा आगे बढ़ने का जज्बा – Motivational Speech in Hindi for Students

सर्वप्रथम सभी को मेरा नमस्कार!

सम्मानीय मुख्य अतिथि, आदरणीय प्रधानचार्या जी, प्रोफेसर महोदया जी और यहां बैठे मेरे छोटे-बड़े भाई-बहन और मेरे प्रिय मित्रों आप सभी का मै तहे दिल से आभार प्रकट करती हूं, मुझे बेहद खुशी हो रही है कि, आज इस अवसर पर मुझे छात्रों के अंदर आगे बढ़ने का जज्बा भरने के लिए मोटिवेशनल स्पीच देने का सुनहरा अवसर प्राप्त हुआ है।

इस मौके पर मै अपने भाषण की शुरुआत किसी महान व्यक्ति द्धारा कही गई, प्रेरक वाक्य के माध्यम से करना चाहती हूं / चाहता हूं

“मेहनत इतनी खामोशी से करो कि सफलता शोर मचा दे।”

जो विद्यार्थी, किसी अन्य विद्यार्थी अथवा सहपाठी के टॉप करने पर यह सोचते हैं, कि उन्होंने यह सफलता रातों-रात हासिल की है, या फिर उसकी अच्छी किस्मत होने की वजह से उसने यह मुकाम हासिल किया है, उनका यह सोचना सरासर गलत है, क्योंकि सफलता किसी को भी एक झटके में नहीं मिलती, लेकिन लगातार प्रयास करते रहने से एक दिन जरूर मिलती है।

सफलता उन्हीं को मिलती है, जिनके जीवन का एक लक्ष्य होता है और वे अपने लक्ष्य के प्रति ईमानदार होते हैं और अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए सच्चा दृढ़संकल्प लेते हैं, और इसके लिए वे लगातार प्रयास करते रहते हैं।

वहीं महान विद्धान स्वामी विवेकानंद जी ने भी अपने एक महान विचार के माध्यम से सफलता का सूत्र बताया है, उन्होंने कहा है कि-

“अपने जीवन का एक लक्ष्य निर्धारित करो और सभी दूसरे विचार को अपने दिमाग से निकाल दो यही सफलता की पूंजी है – स्वामी विवेकानंद

इसलिए सभी छात्रों को भी अपने जीवन में एक लक्ष्य का निर्धारण करना चाहिए, और अपनी पढ़ाई के प्रति गंभीर रहना चाहिए, तभी वे अपने जीवन में सफलता हासिल कर सकते हैं।

वहीं कुछ छात्र ऐसे भी होतें हैं, जो सिर्फ परीक्षा के समय में ही पढ़ते हैं, और पूरी साल मौज-मस्ती और अपने दोस्तों के साथ खेलकूद में अपना समय बर्बाद कर देते हैं, तो ऐसे छात्र पास तो हो जाते हैं लेकिन कुछ खास सफलता हासिल नहीं कर पाते हैं।

वहीं दूसरी तरफ जो छात्र पूरी साल मेहनत, लगन और ईमानदारी से पढ़ाई करते हैं, वो ही क्लास में टॉप करते हैं।

वहीं जिन छात्रों को पढ़ाई करने से डर लगता है, अथवा यह सोचते हैं कि वे फेल हो जाएंगे, और इसलिए मेहनत नहीं करते, तो उनका ऐसा सोचना बिल्कुल गलत है, क्योंकि किसी काम को करने के लिए प्रयास करने और विश्वास रखने की जरूरत होती है।

इसलिए, सभी छात्रों को एक ध्येय बनाना चाहिए, और उसे पाने के लिए बिना रुके तब तक प्रयास करते रहना चाहिए, जब तक की उसे पा नहीं लें। फिलहाल, इस भाषण को मै एक महान व्यक्ति के प्रेरक वाक्य द्धारा विराम देना चाहता हूं /चाहती हूं –

“सफलता पाने के लिए हमें पहले विश्वास करना होगा की यह हम कर सकते हैं”

धन्यवाद।

छात्रों के लिए प्रेरणादायक भाषण – Best Motivational Speech in Hindi for Students

सभी महानुभावो, आदरणीय अतिथियों, सम्मानीय शिक्षकगण और मेरे प्यारे मित्रों सभी को मेरा नमस्कार। आज मै बेहद खुश हूं कि आप सभी ने इस मौके पर मुझे छात्रों के लिए प्रेरणादायक भाषण देने का मौका दिया, इसके लिए मै आप सभी का आभार प्रकट करती हूं या करता हूं।

मै अपने भाषण की शुरुआत महान वैज्ञानिक थॉमस एडिसन के एक प्रेरक कथन द्धारा करना चाहती हूं/चाहता हूं –

“हमारी सबसे बड़ी कमजोरी हार मान लेना है, सफल होने का सबसे निश्चित तरीका है हमेशा एक और बार प्रयास करना”- Thomas Edison

कई छात्र ऐसे होते हैं जो मेहनत तो करते हैं, लेकिन फिर भी उन्हें सफलता नहीं मिलती है, जिसकी वजह से वे निराश होकर मेहनत करना ही छोड़ देते हैं और अपनी किस्मत को दोष देने लगते हैं, लेकिन उन्हें निराश नहीं होना चाहिए बल्कि कई ऐसे सफल लोगों से सीख लेनी चाहिए।

जिन्होंने तमाम असफलता के बाद सफलता हासिल की है, क्योंकि सफलता पाने के लिए हर किसी को कड़ी मेहनत, संघर्ष और कई असफलताओं से गुजरना पड़ता है। ऐसे बेहद कम लोग होते हैं जिन्हें बिना मेहनत और संघर्ष के ही अपनी मंजिल मिल जाती है।

हर किसी के पास अपना अलग सामर्थ्य और काबिलियत होती है। कोई छात्र पढ़ाई में अव्वल होता है, तो कोई छात्र स्पोटर्स्, म्यूजिक, डांस आदि क्षेत्रों में आगे होता है, जरूरी नहीं कि आप भी अपने क्लास में टॉपर की तरह 95 फीसदी अंक लाओ तभी आपका भविष्य संवर सकता है।

बल्कि जरूरी यह है कि आप अपने अंदर की काबिलियत को समझे और सही दिशा में आगे बढ़ने के लिए अपने लक्ष्य का निर्धारण करें और उसे पाने के लिए खूब प्रयास करें तभी आप सफल इंसान बन सकते हैं।वहीं इस पर किसी महान व्यक्ति ने भी कहा है कि

“जहां तुम हो वहीं से शुरूआत करो, जो कुछ भी तुम्हारे पास है उसका उपयोग करो और वह करो जो तुम कर सकते हो”

कई छात्र ऐसे भी होते हैं जो सफल तो होना चाहते हैं, लेकिन इसके लिए प्रयास नहीं करते और अपना काफी समय गवां देते हैं, जिसके बाद एक पल ऐसा आता है, जब उन्हें लगता है कि काश मैने भी मेहनत की होती तो आज में सफल हो जाता।

इसलिए अगर जिस काम के बारे में सोचो तो उसे करने का प्रयास जरूर करो क्योंकि वक्त निकलने में टाइम नहीं लगता और फिर जिंदगी में काश शब्द के सिवाय और कुछ नहीं बचता साथ ही प्रयत्न नहीं करने का पूरी जिंदगी भर अफसोस होता है।

इसके अलावा कई छात्र ऐसे भी होते हैं, जो किसी कॉम्पटीटिव एग्जाम या फिर कोई भी परीक्षा देने से पहले ही सोच लेते हैं कि उनका सेलेक्शन नहीं होगा, और वे इसके लिए मेहनत भी नहीं करते हैं।

इसलिए ऐसा न करें क्योंकि किसी काम को जब तक पूरी निष्ठा के साथ नहीं किया जाता, तब तक वह करना नामुमकिन लगता है और जिंदगी में सफलता नहीं मिलती हैं, वहीं इस बारे में नेल्सन मंडेला जी ने भी अपना विचार व्यक्त किया है जो कि इस प्रकार है –

“जब तक किसी काम को किया नहीं जाता तब तक वह असंभव लगता है” – Nelson Mandela

फिलहाल, हम सभी को हमने काम के प्रति ईमानदार रहना चाहिए और एक सच्चे दृढ़संकल्प के साथ आगे बढ़ना चाहिए, तभी हम अपनी जिंदगी में सफल हो सकते हैं और सफलता की नई ऊंचाइयों को हासिल कर सकते हैं,वहीं इस भाषण को मैं गौतम बुद्ध के द्धारा कहे गए एक प्रेरक वाक्य के माध्यम से विराम देना चाहूंगी।

“न कभी भूतकाल के बारे मे सोचो और न ही भविष्य की चिंता करो, अपने दिमाग को सिर्फ वर्तमान में लगाओ – गौतम बुद्ध

मेरे इस भाषण को ध्यानपूर्वक सुनने के लिए आप सभी का धन्यवाद।

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प्लासी का ऐतिहासिक युद्ध – Plasi ka Yudh

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Plasi ka Yudh

1857 के स्वतंत्रता संग्राम के करीब 100 साल पहले 23 जून, 1757 ईसवी में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी और बंगाल के नबाव सिराजुदौला के बीच हुआ प्लासी का युद्ध का परिणाम भारत में कई अंधकारमयी, कालरात्रियों की वजह बना।

आपको बता दें कि प्लासी का युद्ध (Battle of Plassey), मुर्शिदाबाद के दक्षिण के पास स्थित नदिया जिले की भागीरथी नदी के किनारे ‘प्लासी’ नामक स्थान पर लड़ा गया था।

इस युद्द में अंग्रेजों को परास्त करने के लिए भले ही बंगाल के नवाब सिराजुदौला ने ऐड़ी-चोटी का जोर लगा दिया था, लेकिन इस युद्ध में बिना लड़े ही अंग्रजों की तरफ से लड़ रहे रॉबर्ट क्लाइव की जीत पहले से ही तय थी क्योंकि इस युद्ध में बंगाल के नवाब के सेनापति रहे मीराजाफर ने उनके साथ गद्दारी की और अंग्रेजों के साथ मिलकर सबसे पहले बंगाल के नबाव की सेना के सबसे शक्तिशाली और उनके करीबी मित्र ‘मीरमदान’ को मौत के घाट उतार दिया।

जिसके बाद सिराजुदौला की शक्ति कमजोर पड़ गई और उसे इस युद्द में अंग्रेजों से परास्त होना पड़ा, और यहीं से भारत में दासता की उस काल की शुरुआत हुई, जिसमें उसका जमकर आर्थिक और नैतिक पतन हुआ। तो आइए जानते हैं प्लासी के युद्द के बारे में विस्तार से –

प्लासी का ऐतिहासिक युद्ध – Plasi ka Yudh

Plasi ka Yudh

प्लासी की लड़ाई का सारांश – Battle of Plassey Summary

प्लासी का युद्द कब हुआ: 23 जून, 1757
कहां हुआ: यह युद्द पश्चिम बंगाल के नदिया जिले के पास भागीरथी नदी के तट पर प्लासी नामक गांव में लड़ा गया।
किन-किन के बीच हुआ (Battle of Plassey was Fought Between): रॉबर्ट क्लाइव (अंग्रेजों) और सिराजुदौला (बंगाल के नवाब)
युद्ध का परिणाम: अंग्रेजों की जीत के बाद भारत को 200 सालों तक अंग्रेजों की गुलामी सहनी पड़ी।

प्लासी युद्ध होने के प्रमुख कारण – Causes of Battle of Plassey

प्लासी के युद्ध का महत्व इसलिए है क्योंकि इस युद्ध ने भारत में तमाम भारत ऐतिहासिक घटनाओं को जन्म दिया। दरअसल, 17वीं-18वीं शताब्दी में भारत में व्यापार करने के मकसद से आईं यूरोपियन कंपनी ने अपनी बढ़ते लालच के कारण भारत के कई हिस्सों पर अपना कब्जा करना शुरु कर दिया था।

वहीं यह वह दौर था जब कई सालों तक भारत में राज करने वाले मुगल सम्राट औरंगजेब के क्रूर और हिंसक बर्ताव की वजह से मुगल साम्राज्य की नींव भारत में कमजोर पड़ने लगी थी, और उसकी मौत के बाद धीरे-धीरे मुगल साम्राज्य का पतन हो गया था। जिसका फायदा बिहार का नायब-निजाम रह चुका अलीवर्दी खां ने उठाया और राजनीतिक चपलता से खुद को बंगाल का नवाब घोषित कर दिया।

वहीं अलीवर्दी खां की कोई अपनी संतान नहीं होने की वजह से उसके अपनी मृत्यु से पहले अपनी छोटी बेटी के बेटे सिराजुदौला को बंगाल के उत्तराधिकारी बनने की घोषणा कर दी थी, जिसके चलते उसकी मृत्यु के बाद सिराजुदौला बंगाल का नवाब बना।

वहीं इस दौरान बंगाल सबसे धनी और अमीर प्रांतों में गिना जाता था और ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी बंगाल में अपना कब्जा करना चाहती थी, लेकिन सिराजुदौला इसके बिल्कुल खिलाफ था, जिसके चलते दोनों के बीच प्लासी का युद्ध छिड़ गया, इसके कई और कारण निम्नलिखित हैं –

प्लासी की लड़ाई क्यों हुई? – Why did the Battle of Plassey Happen

बंगाल का नवाब बनने के बाद सिराजुदौला को अपने ही परिवार के लोगों का विरोध का सामना करना पड़ा। उसकी खाला (मौसी) घसीटी बेगम उसकी सबसे बड़ी दुश्मन थी, क्योंकि वो अपने पुत्र शौकतगंज (जो कि बिहार का शासक था) को उस समय के सबसे अमीर प्रांत बंगाल का शासक बनाना चाहती थी।

हालांकि, सिराजुदौला अपने मौसी और उसके पुत्र की चाल को समझ गया था और उसने अपनी मौसी घसीटी बेगम को बंदी बनाकर उनका पूरा धन और संपत्ति जब्त कर ली थी और बाद में अपने चचेरा भाई शौकतगंज को मार दिया था। इस तरह सिराजुदौला की छवि एक क्रूर और निर्दयी शासक के रुप में बनी़ गई थी।

वहीं उसकी परिवारिक फूट का ईस्ट इंडिया कंपनी फायदा उठाकर बंगाल में अपना प्रभुत्व जमाना चाहती थी, लेकिन सिराजुदौला किसी भी हालत में बंगाल पर अंग्रेजों का कब्जा नहीं होने देना चाहता था। जिसके चलते बंगाल के नवाब और ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के बीच कटु संबंध बनते चले गए और बाद में दोनों के बीच प्लासी का युद्द हुआ।

अंग्रेजों द्धारा सिराजुदौला के खिलाफ व्यापारियों को भड़काना:

बंगाल एक बेहद धनी और संपन्न प्रांत था जिस पर ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की शुरु से ही नजर थी। जिसके चलते इसने बंगाल पर व्यापार बढ़ाने एवं और अधिक धन कमाने के लालच में बंगाल के नवाब सिराजुदौला के खिलाफ वहां के कुछ हिन्दू व्यापारियों और अधिकारियों को भड़काना शुरु कर दिया था।

अंग्रेजों ने, राजवल्लभ और उसके पुत्र कृष्णवल्लभ को शरण दी थी, जबकि वे सरकारी धन का गलत इस्तेमाल कर ढाका से भाग गए थे। जिसके बाद सिराजुदौला ने अंग्रेजों से संघर्ष करने के बारे में फैसला लिया था।

अंग्रेजों ने व्यापारिक सुविधाओं का किया था दुरुपयोग:

मुगल सम्राट फर्रूखसीयर ने अंग्रेजों को बिना चुंगी दिए सामुद्रिक व्यापार करने की छूट दी थी, जिसका अंग्रेजों ने गलत तरीके से फायदा उठाया था। दरअसल, अंग्रेज अपना निजी व्यापार भी बिना शुल्क किए करने लगे थे, साथ ही कुछ भारतीय व्यापारियों को भी निशुल्क व्यापार करने के लिए प्रोत्साहित करने लगे और इसकी एवज में वे भारतीय व्यापारियों से पैसा लेते थे।

जिससे उनके राज्य को आर्थिक रुप से नुकसान पहुंचने लगा था, जिसका सिराजुदौला ने काफी विरोध भी किया था और फिर से चुंगी लगाए जाने का फैसला लिया, जिसके बाद दोनों के बीच संघर्ष हो गया। वहीं यह भी प्लासी युद्द के प्रमुख कारणों में से एक है।

अंग्रेजों द्धारा किलेबंदी बंद नहीं करने पर बिगड़े नवाब से संबंध:

यह वह दौर था जब इंग्लैंड और फ्रांस एक-दूसरे के खिलाफ युद्ध लड़ने वाले थे। ऐसे स्थिति में जो अंग्रेज दूसरे देशों में थे, उनके भी आपस में संघर्ष की संभावना थी। जिसके बाद बंगाल में रह रहे अंग्रेजों ने भी नवाब के आदेश के बिना अपनी-अपनी सैन्य शक्ति को मजबूत करने के लिए किलेबंदी करना और दुर्ग का निर्माण करना शुरु कर दिया था।

जिसका पता चलते ही जब सिराजुदौला ने किलेबंदी को रोकने का आदेश जारी किया, तब अंग्रेजों ने नवाब के निर्देशों की अनदेखी करते हुए दुर्गों का निर्माण करना जारी रखा। जिससे क्रोधित होकर सिराजुदौला ने 4 जून, 1756 में कासिमबाजार की कोठी पर अपनी विशाल सेना के साथ हमला कर दिया, वहीं नवाब की शक्ति को देखकर अंग्रेज घबड़ा गए और उन्होंने आत्मसमर्पण कर दिया।

इसके बाद सिराजुदौला ने 15 जून, 1756 में कलकत्ता पर आक्रमण कर फोर्ट विलियम घेर लिया, वहीं इस बार भी अंग्रेजों ने नवाब सिराजुदौला के सामने खुद को कमजोर महसूस किया जिसके बाद नवाब ने फोर्ट विलियम पर अपना कब्जा जमा लिया। इस दौरान बंगाल के नवाब ने कलकत्ता का नाम बदलकर अलीनगर रख दिया और इसकी बागडोर मानिक चंद के हाथ देकर खुद मुर्शिदाबाद वापस लौट गया।

काल कोठरी (ब्लैक हॉल) की भयानक दुर्घटना – Black Hole of Calcutta

सिराजुदौला ने जब कलकत्ता पर कब्जा किया था, इस दौरान उन्होंने अंग्रेजों के करीब 146 अंग्रेज सैनिकों की टुकड़ी को एक भयानक अंधेरी कोठरी में बंदी बना लिया था, जिसमें कुछ महिलाएं और बच्चे भी शामिल थे। इस काल कोठरी में दम घुटने से करीब 123 सैनिकों की मौत हो गई।

वहीं इतनी बड़ी संख्या में सैनिकों की मरने की खबर से अंग्रेजों के भीतर बंगाल के नवाब के खिलाफ गुस्सा भड़क गया। इस घटना को काल कोठरी की दुर्घटना के नाम से जाना जाता है, जो कि अंग्रेजों और नवाब के बीच हुए प्लासी के युद्ध होने की एक बड़ी वजह मानी जाती है।

अंग्रेजों द्धारा कलकत्ता पर दोबारा आक्रमण कर अपना अधिकार जमाना:

अपनी हार और अपमान का बदला लेने के लिए अंग्रेजों ने मद्रास से बंगाल तक कब्जा करने के लिए अंग्रेज सैनिकों की बड़ी टुकड़ी भेजी, जिसमें अंग्रेजों द्धारा फांसीसियों के खिलाफ गठित सेना का नेतृत्व रॉबर्ट क्लाइव ने किया था, जबकि नौ सेना का नेतृत्व एडमिरल वाटसन ने किया था।

वहीं इस दौरान बंगाल के नवाब सिराजुदौला ने कलकत्ता की बागडोर मानिकचंद को सौंपी थी, लेकिन उसने नवाब के साथ गद्दारी की और अंग्रेजों से कुछ घूस लेकर कलकत्ता की कमान अंग्रजों के हाथों सौंप दी।

इस तरह कलकत्ता पर अंग्रेजों ने अपना अधिकार जमा लिया और इसके बाद रॉबर्ट क्लाइव ने सिराजुदौला के साथ युद्ध करने की घोषणा कर दी, लेकिन नवाब ने युद्ध की बजाय संधि करना ठीक समझा और इस तरफ रॉबर्ट क्लाइव और नवाब दोनों के मध्य 9 फरवरी, 1757 को “अली नगर की संधि” हुई।

इस संधि के मुताबिक अंग्रेजों को फिर से बंगाल में बिना चुंगी दिए व्यापार करने का एवं अपने सिक्के ढालने का अधिकार दिया गया एवं इसके साथ ही नवाब ने अंग्रेजों को कुछ धनराशि भी दी। लेकिन नवाब के खिलाफ रॉबर्ट क्लाइव का गुस्सा अभी भी शांत नहीं हुआ और उसके बंगाल से नवाब को हटाने के लिए उनके खिलाफ षढयंत्र रचा।

रॉबर्ट क्लाइव ने फ्रांसीसियों की चंद्रनगर बस्ती पर किया आक्रमण:

अंग्रेजी सेना का नेतृत्व कर रहे रॉबर्ट क्लाइव ने मार्च, 1757 में फ्रांसीसियों की चन्द्र नगर की बस्ती पर हमला कर फ्रांसीसी किला पर अपना कब्जा कर लिया। वहीं इस हमले से नवाब काफी क्रोधित हुए क्योंकि उनके फ्रांसिसियों से अच्छे संबंध थे।

अंग्रेजों ने सिराजुदौला के खिलाफ मीरजाफर से मिलकर रचा षढयंत्र:

अंग्रेज अपनी हार का बदला लेने के लिए नवाब सिराजुदौला को उनके पद से हटाना चाहते थे, इसलिए उन्होंने उनके खिलाफ साजिश रची। जिसके तहत अंग्रेजों ने नवाब के पदाधिकारी सेना के नेता मीरजाफर, सेना के वरिष्ठ दीवान राय दुर्लभ, यार लूतुफू खान और कुछ धनी व्यापारियों को नवाब के खिलाफ भड़काया और मीरजाफर को बंगाल के नबाव बनाने का लालच दिया, क्योंकि अंग्रेज चाहते थे कि कलकत्ता में ऐसा नवाब बने जो उनके इशारों पर चले।

वहीं मीरजाफर खुद भी नवाब के खिलाफ था, और उनसे अपने अपमान का बदला लेना चाहता था, इसलिए उसने अंग्रेजों के साथ मिलकर नवाब सिराजुदौला के खिलाफ षडयंत्र रचा था। दरअसल एक बार नवाब ने अपने दरबार में मीरजाफर को उच्च पद से हटाकर दरबार के निम्न पद वाले मोहनलाल को और मीर मदीन को अपने निजी सैनिकों का सेनापति बना दिया दिया, जिसके चलते मीरजाफर और राय दुलर्भ नवाब से नाराज हो गए थे।

इसके अलावा भी सिराजुदौला ने कई बार दरबार में उनका अपमान किया था, जिसके चलते मीरजाफर, अंदर ही अंदर नवाब से नफरत करने लगा था। इसलिए उसने नवाब को पराजित करने के लिए अंग्रेजों के साथ मिलकर नवाब की सेना में रहकर ही उनके साथ विश्वासघात किया।

सिराजुदौला पर अलीनगर की संधि का उल्लंघन करने का आरोप लगाकर किया आक्रमण:

मीरजाफर से संधि करने के बाद अंग्रजों ने नवाब सिराजुदौला पर अलीनगर की संधि का उल्लंघन करने का आरोप लगाया और उसी का बहाना लेकर अंग्रेजों ने सिराजुदौला पर 23 जून, 1757 में प्लासी के मैदान के पास अपनी सेना के साथ आक्रमण कर दिया। वहीं इस युद्ध में नवाब केृा भरोसेमंद सैनिक मीरमदान मारा गया, जिसके बाद नवाब ने मीरजाफर और राय दुर्लभ पर भरोसा कर अंग्रेजों के खिलाफ युद्द लड़ने के लिए भेजा था।

लेकिन मीर जाफर और राय दुर्लभ पहले से ही अंग्रेजों से मिले हुए थे, इसलिए वह प्लासी के मैदान में अपने सैनिकों की टुकड़ी के साथ तो आया, लेकिन अंग्रेजों के खिलाफ उसने बिना लड़ाई लड़े ही आत्मसमर्पण कर दिया। इस तरह इस युद्द में छल, साजिश और धोखेवाजी से अंग्रेजों की जीत हुई और नवाब को कूटनीति और षड़यंत्र के तहत बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा।

वहीं इस युद्द के बाद अंग्रेजों की सेना का नेतृत्व कर रहे रॉबर्ट क्लाइव ने मीरजाफर को बंगाल का नवाब नियुक्त किया, एवं सिराजुदौला की हत्या करवा दी गई।

प्लासी के युद्ध के भयावह परिणाम – Result of Battle of Plassey

प्लासी के युद्द में अंग्रजों की जीत ने भारत में ब्रिटिश साम्राज्य की नींव डाली और करीब 200 साल की गुलामी की बेड़ियों में बांध दिया। भारत के इतिहास में इस युद्ध का महत्व इसके पश्चात् होने वाली घटनाओं के कारण है। इसलिए इस युद्द को निर्णायक युद्द भी माना जाता है।

इसके अलावा इस युद्ध को क्रांति की भी संज्ञा दी गई है, क्योंकि इसके बाद भारत को कई सालों तक अंग्रेजों की गुलामी और अत्याचार सहने के साथ-साथ राजनैतिक, आर्थिक, और नैतिक पतन को भी झेलना पड़ा था। प्लासी के युद्ध के परिणाम भारत के लिए काफी भयानक सिद्ध हुआ तो वहीं ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी को इससे कई लाभ हुए। इस युद्द से हुए परिणाम नीचे लिए गए हैं –

1. भारत में ब्रिटिश साम्राज्य का उदय हो गया, जिससे भारत में अंग्रेजी सत्ता स्थापित होती चली गई।

2. प्लासी के युद्द के बाद भारत आर्थिक रुप से कमजोर पड़ता गया क्योंकि इस युद्ध के बाद बंगाल में मीरजाफर को नवाब बनाया गया था, और वह सिर्फ अंग्रेजों की कठपुतली था और उसने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी को बेशुमार धन और बंगाल की सभी फ्रांसीसी बस्तियां, राज्य की संपत्ति आदि दान कर दिया, लेकिन फिर भी अंग्रजों की धन पिपासा शांत नहीं हुई और उसने मीसकासिम को बंगाल का नवाब बना दिया।

इसके बाद मीरकासिम से भी अंग्रेजों ने खूब धन लूटा जिससे भारत का आर्थिक रुप से पतन होता चला गया और ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की आर्थिक स्थिति मजबूत बनती चली गई।

वहीं मीरकासिम ने जब राजकोष को खत्म होते देख इसमें सुधार लाने की कोशिश की तो, अंग्रेज रुष्ट हो गए और फिर यह बक्सर के युद्ध का कारण भी बना। इसके बाद और भी कई बड़े युद्ध हुए।

3. प्लासी के युद्ध के बाद अंग्रेजों को भारत के सबसे समृद्ध और अमीर प्रांत बंगाल से व्यापार करने का मौका मिल गया।

4. प्लासी के युद्ध के बाद भारत की राजनीति पर बुरा प्रभाव पड़ा। अंग्रेजों ने भारतीय शासकों की कमजोरी को समझ लिया था और फिर फूट डालो, शासन करो की नीति के आधार पर अपना साम्राज्य पूरे भारत में स्थापित कर लिया था।

वास्तविक रुप से प्लासी में किसी तरह का युद्ध नहीं लड़ा गया था, लेकिन छल कपट से अंग्रेजों ने बंगाल के नवाब को पराजित कर दिया था, जिसके बाद भारत में अंग्रेजी सत्ता स्थापित हुई और फिर करीब 2 सदी तक गुलामी की जंजीरों में जकड़ दिया था और इस दौरान भारतीय जनता पर इतने जुर्म किए थे, कि गुलामी के उन दिनों के भयावह पलों को याद कर आज भी रुह कांप उठती है।

हालांकि, भारतीय क्रांतिकारियों और शूरवीरों ने कई सालों की लंबी लड़ाई और घोर संघर्षों के बाद भारत को 1947 में अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त करवा दिया था।

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