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साधगुरु जग्गी वासुदेव का जीवन परिचय | Sadhguru Jaggi Vasudev

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Jaggi Vasudev – जग्गी वासुदेव को अक्सर साधगुरु – Sadhguru के नाम से भी जाना जाता है, वे एक भारतीय योगी, रहस्यवादी, कवी और न्यू यॉर्क टाइम्स के लेखक भी है।

Sadhguru Jaggi Vasudev

साधगुरु जग्गी वासुदेव का जीवन परिचय – Sadhguru Jaggi Vasudev

साधगुरु जग्गी वासुदेव का जन्म भारत के मैसूर शहर में हुआ। उनके पिता एक चिकित्सक थे। बचपन से ही वासुदेव दुसरे बालको से अलग थे। केवल 13 साल की अल्पायु में ही उन्होंने योगिक अध्ययन जैसे प्राणायाम और आसनों की शुरू किया। श्री राघवेन्द्र राव की देखरेख में ही वे यह सब करते थे। इसके बाद कर्नाटक की मैसूर यूनिवर्सिटी से उन्होंने ग्रेजुएशन की पढाई पूरी की। वासुदेव जब 25 साल के थे, तब उन्हें किसी असामान्य घटना की वजह से उन्हें जीवन में सुखो का त्याग करना पड़ा।

1992 में गुरु और उनके अनुयायियों ने ईशा योग सेण्टर और आश्रम की स्थापना भी की। यह आश्रम कोयंबटूर के पास पूंडी में वेल्लिंगिरी पहाडियों पर बना हुआ है। यह आश्रम तक़रीबन 50 एकर के विशाल भू-भाग में फैला हुआ है, जिसके भीतर 13 फीट ऊँचे विशाल ध्यानलिंग है। आश्रम परिसर में एक बहुत-धार्मिक मंदिर भी है, जिसका निर्माणकार्य 1999 में पूरा हुआ।

आध्यात्मिक अनुभव:

25 साल की उम्र में 23 सितम्बर को उन्होंने चामुंडी पर्वत की चढ़ाई की और वहां किसी विशाल पत्थर पर बैठ गये, वहां वे आध्यात्मिक अनुभव लेने लगे। यह अनुभव करने के छः सप्ताह बाद ही उन्होंने अपना व्यवसाय छोड़ दिया और इस तरह का अनुभव पाने के लिए दुनियाभर की यात्रा करने लगे। इसके बाद तक़रीबन 1 साल तक ध्यान और यात्रा करने के बाद उन्होंने अपने आंतरिक अनुभव को बांटकर लोगो को योगा सिखाने का निर्णय लिया।

1983 में मैसूर में अपने सात सहयोगियों के साथ उन्होंने अपनी पहली योगा क्लास की शुरुवात की। कहा जाता है की ध्यानलिंग में उपचारात्मक शक्तियां होती है, जो मानव विकास और सुधार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। ध्यान केंद्र होने की वजह से ऐसा माना जाता है ध्यान करने के बाद लोगो में यहाँ अपार उर्जा आ जाती है। यहाँ पर ध्यानकेंद्र में बैठकर लोग जितनी देर तक चाहे उतनी देर तक ध्यान लगाकर रह सकते है।

समय के साथ-साथ वे कर्नाटक और हैदराबाद में भी यात्राए कर योगा क्लास का आयोजन करने लगे। वे पूरी तरह से अपने पोल्ट्री फार्म पर आश्रित थे और क्लास के लिए उन्होंने लोगो से पैसे लेना भी मना कर दिया। उनका उद्देश्य यही होता था की वे सहयोगियों से आने वाले पैसो को क्लास के अंतिम दिन में स्थानिक चैरिटी करते थे। बाद में इन्ही शुरुवाती कार्यक्रमों के आधार पर ईशा फाउंडेशन की रचना की गयी।

उनका यह फाउंडेशन भारत के साथ-साथ यूनाइटेड स्टेट, यूनाइटेड किंगडम, लेबनान, सिंगापुर, कनाडा, मलेशिया, यूगांडा, चाइना, नेपाल और ऑस्ट्रेलिया में भी फैला हुआ है। साथ ही इस फाउंडेशन के माध्यम से बहुत सी सामाजिक और सामुदायिक विकसित गतिविधियों का भी आयोजन किया जाता है, जिसे देखते हुए यूनाइटेड नेशन की आर्थिक और सामाजिक कौंसिल में उन्हें एक विशेष दर्जा भी दिया गया है।

साधगुरू जग्गी वासुदेव के अनुसार यूनाइटेड स्टेट के योग सेण्टर के अलावा दुनियाभर में उनके कुल 25 योग सेण्टर है।

सामाजिक पहल:

जग्गी वासुदेव प्रोजेक्ट ग्रीन हैंड्स (PGH) के भी संस्थापक है, जिसे 2010 में भारत सरकार ने इंदिरा गाँधी पर्यावरण पुरस्कार देकर सम्मानित भी किया है। PGH का मुख्य उद्देश्य तमिल नाडू में हर साल कम से कम 10% तक हरे पेड़-पौधों को बढ़ाना है और आज संस्था के 20 लाख स्वयंसेवक तक़रीबन 27 मिलियन से भी ज्यादा पौधों का रोपण कर चुके है।

एक्शन फॉर रूरल रेजुवेनेशन (ARR) ईशा फाउंडेशन की ही एक पहल है, जिसका मुख्य उद्देश्य गाँव में रहने वाले गरीबो के स्वास्थ और उनके जीवन की गुणवत्ता को विकसित करना है। ARR की स्थापना 2003 में की गयी और दक्षिण भारत के 54,000 गांवों के 70 मिलियन लोगो को वे सुविधा पहुचाना चाहते है। 2010 में ARR तक़रीबन 4200 गांवों की 7 मिलियन जनता तक पहुच चुकी है। साथ ही भारतीय किसानो द्वारा सहन की जा रही खेती संबंधी विविध समस्याओ का समाधान निकालने में भी ARR कार्यरत है।

ईशा विद्या, ईशा फाउंडेशन द्वारा ही शिक्षा के क्षेत्र में चलायी जा रही एक योजना है। जिसका मुख्य उद्देश्य ग्रामीण भारत में शिक्षा के स्तर का विकास करना है। इस योजना के तहत उन्होंने 7000 बच्चो को पढ़ाने वाली 7 ग्रामीण स्कूलो की स्थापना की है। साथ ही आर्थिक रूप से कमजोर बच्चो की सहायता करने के लिए उन्होंने 512 सरकारी स्कूलो को दत्तक ले रखा है और आगे उनका लक्ष्य 3000 स्कूलो को दत्तक लेने का है।

25 जनवरी 2017 को आध्यात्मिकता में दिए गये उनके योगदानो को देखते हुए भारत सरकार ने उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया है।

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