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मीराबाई के दोहे | Meerabai ke Dohe

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मीराबाई का नाम आया तो कृष्ण की निस्सीम भक्ति क्या होती हैं यह पता चलता हैं। मीराबाई कृष्ण के भक्ति में दिनरात तल्लीन रहती। उन्होंने कृष्ण की भक्ति में अनेक भजन, पद, दोहे गायें हैं। आज हम उन्ही में से कुछ दोहे आपके लिए लाये हैं। इन मीराबाई के दोहे – Meerabai ke Dohe में श्रीकृष्ण के जीवन का पूरा वर्णन छिपा हैं।

Meerabai ke Dohe

मीराबाई के दोहे – Meerabai ke Dohe

मीराबाई के दोहे 1

पायो जी मैंने राम रतन धन पायो।
वस्तु अमोलक दी म्हारे सतगुरु, किरपा कर अपनायो॥
जनम-जनम की पूँजी पाई, जग में सभी खोवायो।
खरच न खूटै चोर न लूटै, दिन-दिन बढ़त सवायो॥
सत की नाँव खेवटिया सतगुरु, भवसागर तर आयो।
‘मीरा’ के प्रभु गिरिधर नागर, हरख-हरख जस पायो॥

मीराबाई के दोहे 2

राग अलैया तोसों लाग्यो नेह रे प्यारे नागर नंदकुमार।
मुरली तेरी मन हरह्ह्यौ बिसरह्ह्यौ घर ब्यौहार।।
जबतैं श्रवननि धुनि परी घर अंगणा न सुहाय।
पारधि ज्यूं चूकै नहीं म्रिगी बेधि द आय।।
पानी पीर न जान ज्यों मीन तडफ मरि जाय।

मीराबाई के दोहे 3

मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई॥
जाके सिर है मोरपखा मेरो पति सोई।
तात मात भ्रात बंधु आपनो न कोई॥
छांड़ि दई कुलकी कानि कहा करिहै कोई॥
संतन ढिग बैठि बैठि लोकलाज खोई॥
चुनरीके किये टूक ओढ़ लीन्हीं लोई।
मोती मूंगे उतार बनमाला पोई॥
अंसुवन जल सींचि-सींचि प्रेम-बेलि बोई।
अब तो बेल फैल गई आणंद फल होई॥
दूधकी मथनियां बड़े प्रेमसे बिलोई।
माखन जब काढ़ि लियो छाछ पिये कोई॥
भगति देखि राजी हुई जगत् देखि रोई ।
दासी मीरा लाल गिरधर तारो अब मोही॥

मीराबाई के दोहे 4

दरद न जाण्यां कोय
हेरी म्हां दरदे दिवाणी म्हारां दरद न जाण्यां कोय।
घायल री गत घाइल जाण्यां, हिवडो अगण संजोय।
जौहर की गत जौहरी जाणै, क्या जाण्यां जिण खोय।
दरद की मार्यां दर दर डोल्यां बैद मिल्या नहिं कोय।
मीरा री प्रभु पीर मिटांगां जब बैद सांवरो होय॥

मीराबाई के दोहे 5

भज मन ! चरण-कँवल अविनाशी |
जेताई दीसै धरनि गगन विच, तेता सब उठ जासी ||
इस देहि का गरब ना करणा, माटी में मिल जासी |
यों संसार चहर की बाजी, साझ पड्या उठ जासी ||
कहा भयो हैं भगवा पहरया, घर तज भये सन्यासी |
जोगी होई जुगति नहि जांनि, उलटी जन्म फिर आसी ||
अरज करू अबला कर जोरे, स्याम! तुम्हारी दासी |
मीराँ के प्रभु गिरधर नागर ! काटो जम की फांसी ||
माई री ! मै तो लियो गोविन्दो मोल |
.कोई कहे चान, कोई कहे चौड़े, लियो री बजता ढोल ||
कोई कहै मुन्हंगो, कोई कहे सुहंगो, लियो री तराजू रे तोल |
कोई कहे कारो, कोई कहे गोरो, लियो री आख्या खोल ||
याही कुं सब जग जानत हैं, रियो री अमोलक मोल |
मीराँ कुं प्रभु दरसन दीज्यो, पूरब जन्म का कोल ||

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