Pongal Festival in Hindi
पोंगल का पर्व, दक्षिण भारत के तमिलनाडू राज्य में मनाया जाने वाला प्रमुख त्योहार है। इस पर्व को फसल के त्योहार के रुप में भी जाना जाता है। जिस तरह उत्तर भारत में जनवरी महीने के बीच में मकर संक्रांति एवं लोहड़ी का पर्व मनाया जाता है, उसी तरह इस दौरान दक्षिण भारत में पोंगल पर्व की रौनक देखने को मिलती है।
इस पर्व को तमिलनाडू की सांस्कृतिक एवं पारंपरिक रीति-रिवाजों के साथ धूम-धाम से मनाया जाता है। पोंगल का पर्व का उत्सव चार दिनों तक चलता है, जिसमें सूर्य देव की पूजा-अर्चना और आराधना करने का विशिष्ट महत्व है।
प्रकृति और ईश्वर को समर्पित पोंगल के त्योहार को तमिल कैलेंडर के ‘थाई’ महीने के पहले दिन मनाया जाता है। इस सुख-समृद्धि एवं सम्पन्नता का त्योहार माना जाता है।
पोंगल का पर्व कब और क्यों मनाया जाता है और इससे जुड़ी पौराणिक कथाएं – Pongal Information in Hindi
पारंपरिक पोंगल का अर्थ – Pongal Meaning
सम्पन्नता एवं समृद्धि के इस पावन पर्व पोंगल से पहले अमावस्या को लोग अपनी बुरी आदतें, बुरे विचारों एवं गंदी रीतियों को त्यागकर अच्छे विचारों एवं अच्छे कामों को करने की शपथ लेते हैं। जिसे पोही कहा जाता है जिसका अर्थ होता है ‘जाने वाली’।
तमिल में पोंगल का अर्थ उफान या विप्लव होता है। इस शुभ त्योहार के मौके पर भगवान सूर्य की विशेष पूजा और आराधना करने का खास महत्व है, इस दिन सूर्य देवता को जो प्रसाद लगाया जाता है, उसे पगल कहा जाता है।
वहीं तमिलनाडु की लोकल भाषा में इसका अर्थ अच्छी तरह से उबालना होता है। इस दिन चीनी, दूध, चावल, घी आदि को एक साथ अच्छी तरह उबालकर पारंपरिक तरीके से भोजन तैयार कर सूर्यदेवता को भोग लगाते हैं।
पोंगल का त्योहर कब और क्यों मनाते हैं ? – When Pongal Is Celebrated
भारत के प्रमुख कृषि त्योहारों में से एक पोंगल का पर्व हर साल मकरसंक्रांति के आस-पास 14 से 17 जनवरी के बीच में तमिलनाडू राज्य में बेहद हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है। पोंगल पर्व का उत्सव करीब 4 दिनों तक चलता है।
यह पर्व तमिल माह ‘तई’ की पहली तारीख से शुरु होता है, इसलिए पोंगल का पर्व नए वर्ष की शुरुआत का प्रतीक भी माना जाता है वहीं पोंगल का मुख्य पर्व हिन्दी महीना पौष माह की प्रतिपदा को धूमधाम से मनाया जाता है।
पोंगल दक्षिण भारत का एक प्रमुख कृषि त्योहार है, दक्षिण भारत में इस मौके पर फसल पककर कटने के लिए तैयार हो जाती है, जिसकी खुशी में लोग पोंगल का त्योहार मनाते हैं और आगामी फसलों की अच्छी पैदावार के लिए दुआ करते हैं।
इसे सुख-समृद्धि की संपन्नता के त्योहार के रुप में दक्षिण भारत में मनाया जाता है। पोंगल के पर्व का सीधा संबंध ऋतुओं से होता है, इसलिए इस पर्व पर सूर्यदेव, इन्द्रदेव की खास पूजा-अर्चना की जाती है।
पोंगल त्योहार का इतिहास – Pongal Festival History
हरियाली, समृद्धि एवं संपन्नता को समर्पित यह त्योहार दक्षिण भारत में मनाए जाने वाला प्राचीनतम एवं प्रमुख त्योहारों में से एक है। इस पर्व के इतिहास के बारे में 200 ईसा पूर्व से 300 ईसा पूर्व में लिखे गए संगम साहित्य के ग्रंथों में उल्लेख किया गया है।
तब से इस पवित्र त्योहार को द्रविण फसल के उत्सव के रुप में मनाने की परंपरा चली आ रही है। इसके अलावा इस पर्व का उल्लेख संस्कृत पुराणों में भी किया गया है।
कई प्रसिद्ध इतिहासकारों ने थाई निरादल और थाई संयुक्त राष्ट्र के साथ इस त्योहार की पहचान की है। इसके साथ ही इस त्योहार से कई धार्मिक मान्यताएं एवं पौराणिक कथाएं जुड़ी हुई हैं।
पोंगल त्योहार से जुड़ी पौराणिक कथाएं एवं मान्यताएं – Pongal Festival Story
कथा नंबर -1
यह धार्मिक कथा भगवान श्री कृष्ण और भगवान इंद्र के गुस्से से जुडी़ हुई है। ऐसी मान्यता है कि, सभी देवताओं के राजा बनने के बाद भगवान इंद्र अभिमानी हो गए थे, जो भगवान श्री कृष्ण को रास नहीं आया और उन्होंने द्दारका के सभी ग्वालों को इंद्र भगवान की पूजा करने से रोक दिया।
जिससे भगवान इंद्र क्रोधित हो उठे और उन्होंने बादलों को श्री कृष्ण की नगरी द्धारका में लगातार तीन दिन तक बारिश करने और तूफान लाने के लिए भेजा, जिससे पूरा द्धारका नष्ट होने की कगार पर आ गया। इसके बाद श्री कृष्ण ने अपनी नगरी को बचाने के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी एक छोटी से उंगली में उठा लिया।
तब जाकर भगवान इंद्र को अपनी गलती पर पछाताव हुआ, और भगवान श्री कृष्ण की अद्भुत शक्ति का एहसास हुआ।
इसके बाद भगवान श्री कृष्ण ने भगवान विष्णु जी से द्वारका का फिर से निर्माण करने के लिए कहा और फिर ग्वालों ने अपनी गायों के साथ फिर से खेती शुरु की एवं नई फसल उगाई, तभी से तमिलनाडू में पोंगल त्योहार को मनाया जाने लगा।
कथा नंबर 2-
इस धार्मिक मान्यता के मुताबिक, एक बार शंकर भगवान जी ने अपने प्रिय बैल बसवा को स्वर्ग से पृथ्वी लोक में जाकर मनुष्यों को एक संदेश देने के लिए कहा कि – हर रोज तेल से स्नान करना चाहिए और महीने में सिर्फ एक दिन खाना खाना चाहिए।
लेकिन बसवा ने पृथ्वीलोक पर जाकर भगवान शिव की आज्ञा के विपरीत संदेश मनुष्यों को दे दिया कि, मनुष्यों को एक दिन तेल से स्नान करना चाहिए और हर रोज खाना खाना चाहिए।
जिसके बाद भगवान शिव बसवा की इस गलती पर नाराज हो उठे और उन्होंने बैल बसवा को कैलाश से हमेशा के लिए निकाल बाहर कर दिया और श्राप दे दिया कि उन्हें पृथ्वी पर अनाज के उत्पादन के लिए मनुष्यों की मद्द के लिए हल जोतना होगा।
इस तरह यह दिन मवेशियों के साथ संबंधित है। और इसलिए पोंगल पर्व पर बैलों की पूजा करने का प्रचलन है। इसके साथ ही तमिलनाडू के कुछ हिस्सों में पोंगल पर्व पर जल्लीकट्टू का खेल भी खेलते हैं।
कैसे मनाते हैं पोंगल का त्योहार ? – How To Celebrate Pongal Festival
दक्षिण भारत में पोंगल त्योहार का उत्सव 4 दिन तक चलता है। इसके लिए कई दिन पहले से ही लोग खास तैयारी करते हैं। ईश्वर और प्रकृति को समर्पित इस खास फसल उत्सव में लोग प्रमुख रुप से सूर्य देवता की आराधना करते हैं, सूर्य देव को घर पर बना खास प्रसाद अर्पित किया जाता है, जो कि पगल कहलाता है।
इसके अलावा कई पारंपरिक पकवानों को घरो में बनाया जाता है। इस दौरान घरों की खास तरह की सजावट की जाती है। लोग नए कपड़े पहनते हैं, नए बर्तन खरीदते हैं। इसके साथ ही इस मौके पर घर से सभी बुरी एवं खराब चीजों को जलाए जाने की भी परंपरा है।
पोंगल पर्व के उत्सव के दौरान माता लक्ष्मी, पशुधन, माता काली, गोवर्धन पूजा और मवेशियों की भी खास तरीके से पूजा की जाती है। एक-दूसरे का मुंह मीठा कर लोग पोंगल पर्व की बधाई देते हैं।
4 दिन तक चलने वाला पोंगल उत्सव:
पोंगल पर्व का जश्न चार दिनों तक चलता है। इस दौरान हर दिन का अपना अलग महत्व और मान्यताएं हैं, जो कि इस प्रकार है –
पोंगल उत्सव का पहला दिन – भोगी पोंगल:
सुख-समृद्धि के इस पोंगल पर्व के पहले दिन महिलाएं घर की अच्छी तरह साफ-सफाई करती हैं और मिट्टी के बर्तनों की खास तरीके से सजावट करती हैं एवं गोबर एवं लकड़ी की आग में घर की पुरानी खराब चीजों को जलाती हैं और आग के चारों तरफ घेरा बनाकर नाच-गान करती हैं और ईश्वर और प्रकृति के प्रति अपनी कृतत्रता प्रकट करती हैं।
पोंगल उत्सव का दूसरा दिन – सूर्य पोंगल/थाई पोंगल:
पोंगल पर्व के दूसरे दिन घर का सबसे बड़ा व्यक्ति एवं कर्ताधर्ता एक मिट्टी के बर्तन में चावल, घी, शक्कर और दूध को घर के बाहर सूर्य देवता के सामने उबालते हैं और इसे सूर्य देवता की पूजा-अर्चना कर उन्हें अर्पित करते हैं । इस भोग को पगल कहा जाता है । इस दिन तमिलनाडू में घरों के बाहर विशेष तरह की रंगोली बनाने की भी प्रथा है।
पोंगल उत्सव का तीसरा दिन मट्टू पोंगल:
पोंगल उत्सव के तीसरे दिन गायों और बैलों को विशेष तरह से सजाकर उनकी पूजा की जाती है। अनाज उत्पादन में बैल खेतों को जोतकर मनुष्य की मद्द करते हैं, इसलिए इस दिन उन्हें विशिष्ट सम्मान दिया जाता है। इसके साथ ही तमिलनाडु के कुछ हिस्सों पर इस दिन जल्लीकट्टू के खेल का भी आयोजन किया जाता है।
पोंगल उत्सव का चौथा दिन – कान्नुम पोंगल /कानु पोंगल:
पोंगल पर्व के अंतिम यानि कि चौथे दिन सामूहिक भोज का आयोजन होता है। इस दिन एक खास तरीके की रस्म भी होती है। इसके साथ ही महिलाएं अपने भाइयों की आरती कर उनकी लंबी आयु एवं सुख-समृद्धि की कामना करती हैं और सभी लोग अपने से बड़ों का आशीर्वाद लेते हैं।
दक्षिण भारत में नए साल की शुरुआत:
दक्षिण भारत में पोंगल पर्व से तमिल नववर्ष का आरंभ माना जाता है । इस दौरान लोग एक-दूसरे का मुंह मीठा कर नववर्ष की बधाई देते हैं।
पोंगल पर्व पर पकने वाले पारंपरिक पकवान:
पोंगल पर्व के खास मौके पर पारंपरिक पोंगल स्वादिष्ट पकवान तैयार किए जाते हैं। विशेष तरह की खीर बनाने का इस त्योहार में काफी महत्व है।
पोंगल पर दूध का उफान का महत्व:
पोंगल के मौके पर दूध को नए बर्तन में उबाला जाता है और इसके उफान को महत्व दिया जाता है, इसे मनुष्य के शुद्ध मन एवं उत्तम संस्कारों से जोड़ कर देखा जाता है।
इस तरह आस्था, समृद्धि एवं सम्पन्नता से जुड़े इस पावन पोंगल पर्व को मनाया जाता है। यह त्योहार दक्षिण भारत के अलावा, अमेरिका, श्रीलंका, कनाडा, सिंगापुर और मॉरीशस में भी मनाया जाता है।
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