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जानिए भारत का हजारो साल पुराना इतिहास | History of India

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दोस्तों, भारत देश एक ऐतिहासिक प्राचीन देश में गिना जाता हैं। भारत का इतिहास – History of India हजारो साल पुराना है। इसे बहुत से भागो में विभाजित किया गया है। तो चलिये जानते हैं भारत का इतिहास –

History of India
History of India

जानिए भारत का हजारो साल पुराना इतिहास – History of India

पाषाण काल –

मध्य भारत में हमें पुरापाषाण काल की मौजूदगी दिखाई देती है। पुरातत्ववेत्ता का भी ऐसा मानना है की वे भारत में 2,00,000 से 5,00,000 साल पहले रहते थे। यह काल ही पूरापाषाण काल के नाम से जाना जाता था। इसके विकास के भुपटन में हमें चार मंच दिखायी देते है और चौथा मंच ही चारो भागो का मंच के नाम से जाना जाता है जिसे और दो भाग प्लीस्टोसन और होलोसेन में बाँटा गया है।

इस जगह की सबसे प्राचीन पुरातात्विक जगह पूरापाषाण होमिनिड है, जो सोन नदी घाटी पर स्थित है। सोनियन जगह हमें सिवाल्किक क्षेत्र जैसे भारत, पकिस्तान और नेपाल में दिखाई देते है।

मध्य पाषाण –

आधुनिक मानव आज से तक़रीबन 12,000 साल पहले ही भारतीय उपमहाद्वीप में स्थापित हो गया था। उस समय अंतिम हिम युग समाप्ति पर ही था और मौसम भी गर्म और सुखा बन चूका था। भारत में मानवी समाज का पहला समझौता भारत में भोपाल के पास ही की जगह भीमबेटका पाषाण आश्रय स्थल में दिखाई देता है। मध्य पाषाण कालीन लोग शिकार करते, मछली पकड़ते और अनाज को इकठ्ठा करने में लगे रहते।

निओलिथिक –

निओलिथिक खेती तक़रीबन 7000 साल पहले इंडस वैली क्षेत्र में फैली हुई थी और निचली गंगेटिक वैली में 5000 साल पहले फैली थी। बाद में, दक्षिण भारत और मालवा में 3800 साल पर आयी थी।

ताम्रपाशान युग –

इसमें केवल विदर्भ और तटीय कोकण क्षेत्र को छोड़कर आधुनिक महाराष्ट्र के सभी क्षेत्र शामिल है।

कांस्य युग –

भारत में कांस्य युग की शुरुवात तक़रीबन 5300 साल पहले इंडस वैली सभ्यता के साथ ही हुई थी। इंडस नदी के बीच में यह युग था और इसके सहयोगी लगभग घग्गर-हकरा नदी घाटी, गंगा-यमुना डैम, गुजरात और उत्तरी-पूर्वी अफगानिस्तान तक फैले हुए है। यह युग हमें ज्यादातर आधुनिक भारत (गुजरात, हरियाणा, पंजाब और राजस्थान) और पकिस्तान (सिंध, पंजाब और बलोचिस्तान) में दिखाई देता है।

उस समय उपमहाद्वीप का पहला शहर इंडस घाटी सभ्यता – हड़प्पा संस्कृति में ही था। यह दुनिया में सबसे प्राचीन शहरी सभ्यताओ में से एक था। इसके बाद इंडस वैली नदी के किनारे ही हड़प्पा ने भी हस्तकला और नये तंत्रज्ञान में अपनी सभ्यता को विकसित किया और कॉपर, कांस्य, लीड और टिन का उत्पादन करने लगे।

पूरी तरह से विकसित इंडस सभ्यता की समृद्धि आज से तक़रीबन 4600 से 3900 साल पहले ही हो चुकी थी। भारतीय उपमहाद्वीप पर यह शहरी सभ्यता की शुरुवात भर थी। इस सभ्यता में शहरी सेंटर जैसे धोलावीरा, कालीबंगा, रोपर, राखिगढ़ी और लोथल भी शामिल है और वर्तमान पकिस्तान में भी हड़प्पा, गनेरीवाला और मोहेंजोदारो शामिल है। यह सभ्यता ईंटो से बने अपने शहरो, रोड के दोनों तरफ बने जलनिकास यंत्र और बहु-कथात्मक घरो के लिये प्रसिद्ध थी।

इस सभ्यता के समय में ही उनक क्रमशः कम होने के संकेत दिखाई देने लगे थे। 3700 साल पहले ही इनके द्वारा विकसित किये गए बहुत से शहरो को उन्होंने छोड़ दिया था। लेकिन इंडस वल्ली सभ्यता का पतन अचानक नही हुआ था। इनका पतन होने के बाद भी सभ्यता के कुछ लोग छोटे गाँव में अपना गुजरा करते थे।

वैदिक सभ्यता –

वेद भारत के सबसे प्राचीन शिक्षा स्त्रोतों में से एक है, लेकिन 5 वी शताब्दी तक इसे केवल मौखिक रूप में ही बताया जाता था। धार्मिक रूप से चार वेद है, पहला ऋग्वेद। ऋग्वेद के अनुसार सभी राज्यों में सबसे पहले आर्य भारत में स्थापित हुए थे और जहाँ वे स्थापित हुए थे उस जगह हो 7 नदियों की जगह भी कहा जाता था, उस जगह का नाम सप्तसिंधवा था। चार वेदों में से बाकी तीन वेद सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद है। सभी वेदों में कुछ छंद है जिनमे भगवान और दूसरो की स्तुति की गयी है। वेद में दूसरी बहुमूल्य जानकारियाँ भी है। उस समय में शामरा समाज काफी ग्राम्य था।

ऋग्वेद के बाद, हमारा समाज और कृषि जन्य बन गया। लोग भी चार भागो में विभाजित हो गए थे, ये इन भागो को उनके काम के आधार पर बाँटा गया था। ब्राह्मण पुजारी और शिक्षक होते थे, क्षत्रिय योद्धा होते थे, वैश्य खेती, व्यापार और वाणिज्यिक कार्य करते थे और शुद्र साधारण काम करने वाले लोग थे। एक साधारण भ्रम यह भी था की वैश्य और शुद्र को निचली जाती का माना जाता था और ब्राह्मण और क्षत्रिय लोग उन्हें बुरी नजर से देखते थे और उनका साथ बुरा व्यवहार करते थे। लेकिन यह बात प्राचीन वैदिक सभ्यता पर लागु नही होती, भले ही बाद में इस बात के कुछ प्रमाण हमें दिखाई देते है। इस प्रकार के सामाजिक भेदभाव को हिन्दुओ में वर्ण प्रथा कहा जाता है।

वैदिक सभ्यता के समय, बहुत से आर्य वंशज और आर्य समुदाय के लोग थे। जिनमे से कुछ लोगो ने मिलकर कुछ विशाल स्थापित किया जैसे कुरूस साम्राज्य।

पर्शियन और ग्रीक आक्रमण –

5 वी शताब्दी के आस-पास, भारत के उत्तरी-पश्चिमी भाग पर अचेमेनिद साम्राज्य और एलेग्जेंडर दी ग्रेट की ग्रीक सेना ने आक्रमण किया था। उस समय पर्शियन सोच, शासन प्रणाली और जीवन जीने के तरीको का भारत में आगमन हुआ था। इसका सबसे ज्यादा प्रभाव हमें मौर्य साम्राज्य के समय में दिखाई देता है।

लगभग 520 BC से, अचेमेनिद साम्राज्य के शासक दरिउस प्रथम भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तरी-पश्चिमी भाग पर शासन कर रहे थे। बाद में एलेग्जेंडर ने उनके भू-भाग को जीत लिया। उस समय का एक इतिहासकार हेरोडोतस, ने लिखा था की जीता हुआ यह हिस्सा एलेग्जेंडर के साम्राज्य का सबसे समृद्ध हिस्सा था। अचेमेनिद ने तक़रीबन 186 सालो तक शासन किया थम और इसीलिए आज भी उत्तरी भारत में हमें ग्रीक सभ्यता के कुछ लक्षण दिखाई देते है।

ग्रेको-बुद्धिज़्म ही ग्रीस और बुद्धिज़्म की संस्कृतियों का मिलाप है। इस प्रकार संस्कृतियों का मिलाप चौथी शताब्दी से 5 वी शताब्दी तक तक़रीबन 800 सालो तक चलता रहा। इस भाग को हम वर्तमान अफगानिस्तान और पकिस्तान के नाम से जानते है। संस्कृतियों के मिलाप ने महायान बुद्ध लोगो को काफी प्रभावित किया और साथ ही चीन, कोरिया, जापान और इबेत में भी हमें इसका प्रभाव दिखाई देता है।

मगध साम्राज्य –

मगध प्राचीन भारत के 16 साम्राज्यों में से एक है। इस साम्राज्य का मुख्य भाग गंगा के दक्षिण में बसा बिहार था। इसकी पहली राजधानी राजगृह (वर्तमान राजगीर) और पाटलिपुत्र (वर्तमान पटना) थी।

मगध के साम्राज्य में ज्यादातर बिहार और बंगाल का भाग ही शामिल था जिनमे थोडा बहुत उत्तर प्रदेश और ओडिशा भी हमें दिखाई देता है। प्राचीन मगध साम्राज्य की जानकारी हमें जैन और बुद्ध लेखो में मिलती है। इसके साथ ही रामायण, महाभारत और पुराण में भी इसका वर्णन किया गया है। मगध राज्य और साम्राज्य को वैदिक ग्रंथो में 600 BC से पहले ही लिखा गया था।

जैन और बुद्ध धर्म के विकास में मगध ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है और साथ ही भारत के दो महान साम्राज्य मौर्य साम्राज्य और गुप्त साम्राज्य ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इन साम्राज्यों ने ही प्राचीन भारत में विज्ञान, गणित, धर्म, दर्शनशास्त्र और खगोलशास्त्र के विकास पर जोर दिया। इन साम्राज्यों का शासनकाल भारत में “स्वर्ण युग” के नाम से भी जाना जाता है।

आरंभिक मध्य साम्राज्य –

सतवहना साम्राज्य –

सतवहना साम्राज्य हमें 230 BC के सास-पास दिखाई देता है। इस साम्राज्य को लोग आंध्रस के नाम से भी जानते थे। तक़रीबन 450 साल तक बहुत से सतवहना राजाओ ने उत्तरी और मध्य भारत के बहुत से भागो में राज किया था।

पश्चिमी क्षत्रप –

तक़रीबन 350 साल तक, 35 से 405 साल तक सका किंग ने भारत पर राज किया था। उन्होंने भारत के पश्चिमी और मध्य भागो पर राज किया था। आज यह भाग गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान और मध्य प्रदेश राज्य में आते है। कुल मिलाकर वे 27 स्वतंत्र शासक थे जिन्हें क्षत्रप के नाम से जाना जाता था।

सका शासक ने राजा कुशन और राजा सतवहना के साथ मिलकर भारत पर शासन किया था। कुशन राजा भारत के उत्तरी भाग पर शासन करते थे और सतवहना राजा भारत और मध्य और दक्षिणी भागो पर राज करते थे।

इंडो – सायथिंस –

इंडो-सायथिंस भारत में साइबेरिया के बैक्टीरिया, सोग्ड़ाना, काश्मीर और अरचोइसा जैसी जगहों से गुजरने के बाद आये थे। दूसरी शताब्दी से पहली शताब्दी तक उनका आना शुरू था। ऊन्होने भारत के इंडो-ग्रीक शासको को हरा दिया था और गंधार से मथुरा तक राज करने लगे थे।

गुप्त साम्राज्य –

गुप्त साम्राज्य का शासनकाल 320 से 550 AD के दरमियाँ था। गुप्त साम्राज्य ने बहुत से उत्तरी-मध्य भाग को हथिया लिया था। पश्चिमी भारत और बांग्लादेश में भी उनका कुछ राज्य था। गुप्त समाज के लिये भी हिन्दू मान्यताओ को मानते थे। गुप्त साम्राज्य को भारत का स्वर्णिम युग कहा जाता था। इतिहासकारों ने गुप्त साम्राज्य को हान सम्रजू, टंग साम्राज्य और रोमन साम्राज्य के अनुरूप ही बताया।

हूँ आक्रमण –

पाँचवी शताब्दी के पहले भाग में, कुछ लोगो का समूह अफगानिस्तान में स्थापित हो गया था। वे कुछ समय बाद काफी शक्तिशाली बन चुके थे। उन्होंने बामियान को अपनी राजधानी बनाया था। इसके बाद उन्होंने भारत के उत्तरी-पश्चिम भाग पर आक्रमण करना भी शुरू कर दिया था। गुप्त साम्राज्य के शासक स्कंदगुप्त ने उनका सामना कर उन्हें कुछ सालो तक तो अपने साम्राज्य से दूर रखा था। लेकिन अंततः हूँ को जीत हासिल हुई और फिर उन्होंने धीरे-धीरे शेष उत्तरी भारत पर भी आक्रमण करना शुरू किया। इसी के साथ गुप्त साम्राज्य का भी अंत हो गया था। आक्रमण के बाद उत्तरी भारत का बहुत सा हिस्सा प्रभावित हो गया था। लेकिन हूँ की सेना ने इसके बाद डेक्कन प्लाटौ और दक्षिणी भारत पर आक्रमण नही किया था। इसीलिए भारत के यह भाग उस समय शांतिपूर्ण थे। लेकिन कोई भी हूँ की किस्मत के बारे में नही जानता था। कुछ इतिहासकारो के अनुसार समय के साथ-साथ वे भी भारतीय लोगो में ही शामिल हो गए थे।

बाद का मध्य साम्राज्य – History of India

भारत के इतिहास में, मध्यकालीन साम्राज्य में छठी से सातवी शताब्दी के समय आता है। दक्षिण भारत में, चोल राजा का तमिलनाडु और चेरा राजा का केरला पर शासन था। इसके साथ ही उनके रोमन साम्राज्य के साथ व्यापारिक संबंध भी थे और दक्षिणी एशिया और पूर्वी एशिया से भी अच्छे संबंध थे। उत्तरी भारत में, राजपूतो का शासन था। जिनमे से कुछ शासको ने 100 से भी ज्यादा सालो तक शासन किया था।

हर्ष साम्राज्य –

गुप्त साम्राज्य के पतन के बाद, कनौज के हर्ष ने ही उत्तरी भारत के सभी भागो को मिलाकर एक विशाल साम्राज्य की नीव रखी। उनकी मृत्यु के बाद बहुत से साम्राज्यों ने उत्तरी भारत को सँभालने और शासन करने की कोशिश की लेकिन सभी असफल रहे। कोशिश करने वाले उन साम्राज्यों में मालवा के प्रतिहार, बंगाल के पलास और डेक्कन के राष्ट्रकूट भी शामिल है।

प्रतिहार, पलास और राष्ट्रकूट –

प्रतिहार राजा का साम्राज्य राजस्थान और भारत के कुछ उत्तरी भागो में छठी से 11 वी शताब्दी के बीच था। पलास भारत के पूर्वी भागो पर राज करते थे। वे वर्तमान भारत के बिहार, झारखण्ड और पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश जैसे राज्यों पर शासन करते थे। पलास का शासनकाल 8 से 12 वी शताब्दी के बीच था। भारत के दक्षिणी भाग में मालखेडा के राष्ट्रकूट के शासन था उन्होंने चालुक्य के पतन के बाद 8 से 10 वी शताब्दी तक राज किया था। यह तीनो साम्राज्य हमेशा पुरे उत्तरी भारत पर शासन करना चाहते थे। लेकिन चोल राज के बलशाली और शक्तिशाली होने के बाद वे असफल हुए।

राजपूत –

6 वी शताब्दी में बहुत से राजपूत राजा राजस्थान में स्थापित होने के इरादों से आये थे। कुछ राजपूत राजा भारत के उत्तरी भाग में राज करते थे। उनमे से कुछ भारतीय इतिहास में 100 से भी ज्यादा साल तक राज कर चुके थे।

विजयनगर साम्राज्य –

1336 में, हरिहर और बुक्का नाम के दो भाइयो ने मिलकर विजयनगर साम्राज्य की स्थापना वर्तमान भारत के कर्नाटक राज्य में की थी। इस साम्राज्य का सबसे प्रसिद्ध राजा कृष्णदेवराय था। 1565 में इस साम्राज्य के शासको को एक युद्ध में पराजय का सामना करना पड़ा था।

दक्षिण भारत के बहुत से शासको के अरब और इंडोनेशिया और दुसरे पूर्वी देशो के साथ व्यापारिक संबंध भी थे।

इस्लामिक सल्तनत –

500 साल पहले ही इस्लाम धर्म के लोग पुरे भारत में फ़ैल चुके थे। 10 वी और 11 वी शताब्दी में ही तुर्क और अफगानी शासको ने भारत पर आक्रमण किया था और दिल्ली की सल्तनत स्थापित की। 16 वी शताब्दी की शुरुवात में जंघिस खान के वंशज ने ही मुघल साम्राज्य की स्थापना की, जिन्होंने तक़रीबन 200 साल तक राज किया। 11 वी से 15 वी शताब्दी में दक्षिण भारत को हिन्दू चोला और विजयनगर साम्राज्य ने सुरक्षित रखा। इस समय, दो प्रणाली – हिन्दू और मुस्लिम को प्रचलित करना और घुल मिल कर रहना को अपनाया गया था।

दिल्ली सल्तनत –

गुलाम साम्राज्य की शुरुवात क़ुतुब उद्दीन ऐबक ने की थी। वे उनमे से एक थे जिन्होंने आर्किटेक्चरल धरोहर को बनाने की शुरुवात की थी और सबसे पहले उन्होंने मुस्लिम धर्म के हित में क़ुतुब मीनार का निर्माण करवाया। चौगन खेलते समय ही क़ुतुब उद्दीन ऐबक की मृत्यु हो गयी थी। अपने घोड़े से गिरने की वजह से उनकी मृत्यु हुई थी। इसके बाद इल्तुमिश उनके उत्तराधिकारी बने। इसके बाद रज़िया सुल्तान उनकी उत्तराधिकारी बनी और साथ ही पहली महिला शासक भी बनी।

मैसूर साम्राज्य –

मैसूर का साम्राज्य ही दक्षिण भारत का साम्राज्य था। लोगो के अनुसार सन 1400 में वोदेयार्स ने मैसूर साम्राज्य की स्थापना की थी। इसके बाद, हैदर अली और उनके बेटे टीपू सुल्तान ने वोदेयार के साथ लढाई की थी। इसके साथ-साथ उन्होंने ब्रिटिश राज के खिलाफ भी उनका विरोध किया था लेकिन अंततः उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। ब्रिटिश राज में वोदेयार राजा कर्नाटक पर राज करते थे। जब 15 अगस्त 1947 को भारत आज़ाद हुआ था तब वोदेयार साम्राज्य भी भारत का ही हिस्सा बना गया था।

पंजाब –

गुरु नानक ने सिक्ख धर्म और उनके अनुयायियों की खोज की थी। सिक्खों की ताकत उत्तरी भारत में समय के साथ-साथ बढती जा रही थी। उत्तरी भारत के अधिकतम भागो पर सिक्ख शासको का ही राज था। सिक्ख साम्राज्य में रणजीत सिंह सबसे प्रसिद्ध और पराक्रमी शासक थे। अपनी मृत्यु के समय उन्होंने सिक्ख साम्राज्य को बॉर्डर को भी विकसित किया था और अपने साम्राज्य में पंजाब और वर्तमान काश्मीर और पकिस्तान का कुछ भाग भी शामिल कर लिया था। सिक्खों और ब्रिटिश सेना के बीच इतिहास में कई लढाईयाँ हुई थी। जब तक महाराजा रणजीत सिंह जिन्दा थे तब तक ब्रिटिश अधिकारियो को सुल्तेज नदी पार करने में कभी सफलता नही मिली। उनकी मृत्यु के बाद उन्होंने पुरे पंजाब को हथियाँ लिया था और सिक्ख शासको का पतन कर दिया था।

दुर्रानी साम्राज्य –

बहुत कम समय के लिये, अहमद शाह दुर्रानी उत्तरी भारत के कुछ भागो में राज करने लगे थे। इतिहासकारो ने उनके साम्राज्य को दुर्रानी साम्राज्य का ही नाम दिया था। 1748 में उन्होंने इंडस नदी पार की और लाहौर पर आक्रमण किया, जो आज पकिस्तान का ही एक भाग है। इसके साथ-साथ उन्होंने पंजाब के कई भागो पर भी आक्रमण किया था। और फिर दिल्ली पर आक्रमण किया। उस समय दिल्ली मुघल साम्राज्य की राजधानी थी। उन्होंने भारत से बहुत सी मूल्यवान चीजे ले गयी थी। जिसमे भारत का प्रसिद्ध कोहिनूर हिरा भी शामिल है।

कोलोनियल समय –

कोलोनियल समय मतलब वह समय जब पश्चिमी देशो ने भारत पर शासन किया था। इन देशो ने दुसरे देशो जैसे एशिया, अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका पर भी शासन किया था।

कंपनी राज –

सन 1600 से ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी भारत में आयी और सबसे पहले बंगाल में स्थापित हुई। सन 1700 (1725-1774) के बीच में कंपनी ने भारत पर काफी प्रभाव दाल और भारत पर बहुत से राज्यों को अपने अधीन कर लिया था। और 1757 में प्लासी का युद्ध जीतने के बाद ब्रिटिश अधिकारों को ही बंगाल का गवर्नर बनाया गया था और तभी से भारत में कंपनी राज की शुरुवात हुई थी।

युद्ध के 100 साल बाद, ईस्ट इंडिया कंपनी ने पुरे भारतीय उपमहाद्वीप में अपनी छाप छोड़ दी थी। वे व्यापार, राजनीती और सैन्य बल के जोर पर ही शासन करते थे। लेकिन 1857 में भारतीयों ने कंपनी का काफी विरोध किया और इस विरोध ने जल्द ही एक क्रांति का रूप भी ले लिया था और परिणामस्वरूप कंपनी का पतन हो गया। इसके बाद 1858 में भारत भी ब्रिटिश साम्राज्य का ही एक भाग बन गया था और रानी विक्टोरिया भारत ही पहले रानी बनी थी।

ब्रिटिश राज –

लगभग 90 साल तक ब्रिटिशो ने भारत पर राज किया था। उनके पुरे साम्राज्य को आठ मुख्य भागो में बाटा गया है, बर्मा, बंगाल, मद्रास, बॉम्बे, उत्तर प्रदेश, मध्य भाग, पंजाब और आसाम। जिनमे कलकत्ता के गवर्नर जनरल ही गवर्नमेंट के मुख्य अधिकारी होते थे।

भारत के ब्रिटिश राज में शामिल होने के बाद ब्रिटिशो ने भारत की संस्कृति और समय पर काफी अत्याचार भी किये। वे भारत से कई बहुमूल्य चीजे ले गए। उन्होंने एक अखंड भारत का विभाजन टुकडो में कर दिया था। और जहाँ पर राजाओ का शासनकाल था उन भागो को भी उन्होंने उनपर आक्रमण कर हथिया लिया था। वे भारत से कई बहुमूल्य चीजे ले गए थे जिनमे भारत का कोहिनूर हिरा भी शामिल है।

अकाल और बाढ़ के समय बहुत से लोगो की मृत्यु भी हो गयी थी सरकार ने लोगो की पर्याप्त सहायता नही की थी। उस समय कोई भी भारतीय ब्रिटिशो को टैक्स देने में सक्षम नही था लेकिन फिर जो भारतीय टैक्स नही देता था उसे ब्रिटिश लोग जेल में डाल देते थे। ब्रिटिश राज के राजनितिक विरोधियो को भी जेल जाना पड़ता था। लगभग 100 साल तक भारत पर राज करने के बाद उन्होंने फूट डालो और राज करतो निति को लागु किया था। और भारत-पकिस्तान विभाजन के दौरान कई लोगो की मृत्यु हो गयी थी।

ब्रिटिशो ने भारतीयों पर अत्याचार करने के साथ-साथ भारतीयों के लिये कई अच्छे काम भी किये। उन्होंने रेलरोड और टेलीफोन का निर्माण किया और व्यापार, कानून और पानी की सुविधाओ को भी विकसित किया था। इनके द्वारा किये गए इन कार्यो परिणाम भारत के विकास और समृद्धि में हुआ था। उन्होंने इंडियन सिविल सर्विस का निर्माण किया और कई जरुरी नियम और कानून भी बनवाए। उन्होंने भारत में विधवा महिलाओ को जलाने की प्रथा पर भी रोक लगायी थी।

जब ब्रिटिश लोग भारत पर राज कर रहे थे तो इसका आर्थिक लाभ ब्रिटेन को हो रहा था। भारत में सस्ते दामो में कच्चे काम का उत्पादन किया जाता था और उन्हें विदेशो में भेजा जाता था। उस समय भारतीयों को भी ब्रिटिशो द्वारा बनायी गयी चीजो का ही उपयोग पड़ता था।

स्वतंत्रता अभियान –

बहुत से भारतीय ब्रिटिश राज से मुक्त होना चाहते थे। भारतीय स्वतंत्रता अभियान का संघर्ष काफी लंबा और दर्दभरा था। भारतीय स्वतंत्रता अभियान के संघर्ष में मुख्य नेता महात्मा गांधी थे। गांधी को अहिंसा पर पूरा विश्वास था।

और अहिंसा के बल पर ही 15 अगस्त 1947 को भारत को आज़ादी मिली और देश आज़ाद बन गया।

भारतीय गणराज्य –

15 अगस्त 1947 को ही ब्रिटिशो ने भारत के दो टुकड़े किये थे, एक भारत और दूसरा पाकिस्तान। इसी के साथ भारतीय उपमहाद्वीपमें ब्रिटिश राज का पतन हुआ था। 26 जनवरी 1950 को भारत ने स्वतंत्र न्याय व्यवस्था को अपनाया था। उसी दिन से भारत भारतीय गणराज्य के नाम से जाना जाने लगा।

पिछले 60 सालो में भारतीय गणराज्य में कई बदलाव हमें देखने को मिले। उनमे से कुछ निचे दिये गए है –

• भारत ने पकिस्तान के साथ और चीन के साथ एक युद्ध किया है। पकिस्तान के साथ 1947, 1965 और 1971 में युद्ध किये। 1999 में कारगिल का युद्ध हुआ था। चीन के साथ 1962 में युद्ध हुआ था। 1971 में भारतीय गणराज्य ने बांग्लादेश को आज़ादी दिलाने में भी सहायता की थी।

जवाहरलाल नेहरु (भारत के पहले प्रधान मंत्री) के नेतृत्व में भारत ने असामाजिक अर्थव्यवस्था को अपनाया था। कुछ अर्थशास्त्र विद्वानों के अनुसार यह मिश्रित अर्थव्यवस्था थी। इस समय में भारत ने इंफ्रास्ट्रक्चर, विज्ञान और तंत्रज्ञान क्षेत्रो में काफी विकास किया।

• 1990 के शुरू में भारत ने अपनी अर्थव्यवस्था में बहुत से बदलाव किये। जिनमे देश के व्यापारियों और उद्योगपतियों को आज़ादी दी गयी थी।

• 1974 में भारत ने अपने पहले नुक्लेअर बम का धमाका किया। और 1998 में इसे पुनः दोहराया। इसके साथ-साथ भारत नुक्लेअर शक्तिशाली देश भी बन गया था।

वर्तमान में ग्रॉस डोमेस्टिक प्रोडक्ट के रूप में भारत की अर्थव्यवस्था दुनिया किस 10 वी सबसे विशाल अर्थव्यवस्था है। कुछ अर्थशास्त्र विद्वानों के अनुसार आने वाले कुछ दशको में भारत दुनिया की सबसे विशाल अर्थव्यवस्था वाला देश बनेंगा।

और अधिक लेख :

दोस्तों, भारत का इतिहास इतना छोटा नहीं हैं की इसे 2-3 पेज में बताया जा सके। यहापर हमनें इसे कम शब्दों में कुछ महत्वपूर्ण बाते बताने की कोशिश की हैं। हो सकता हैं इसमे कुछ गलतिया हो या फिर कुछ लिखने का छुट गया होंगा। अगर आपके पास कुछ और महत्वपूर्ण जानकारी हैं जो इस लेख में होनी चाहियें तो उसे जरुर हमारे साथ share करे। क्योकि ज्ञान की ये धारा इसी तरह बहती रहें।

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