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दूधाधारी मंदिर का इतिहास | Dudhadhari Temple History

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Dudhadhari Temple – दूधाधारी मंदिर रायपुर मठपारा (छत्तीसगढ़) में बूढ़ा तालाब के नजदीक में ही स्थित है। रायपुर के बहुत प्रसिद्ध मंदिर और सबसे पुराने मंदिर में दूधाधारी मंदिर का नाम लिया जाता है और यह मंदिर भगवान श्री राम को समर्पित है।

Dudhadhari Temple दूधाधारी मंदिर का इतिहास – Dudhadhari Temple History

जब दूधाधारी मंदिर के इतिहास की बात आती है तो इस मंदिर के निर्माण के बारे में कोई सबुत नहीं है। लेकिन ऐसा माना जाता है की इस मंदिर का निर्माण 17 वी शताब्दी में राजा जीत सिंग ने किया था।

इस मंदिर के स्थान को धार्मिकता की दृष्टि से काफी ज्यादा महत्व प्राप्त हुआ है। यह मंदिर जिस स्थान पर बनवाया गया है उसके पीछे भी एक बहुत बड़ा कारण है। बहुत साल पहले जब भगवान श्री राम को वनवास जाने को कहा गया था तो वो उस वनवास के दौरान इधर उधर रहते थे। उन दिनों कुछ समय के लिए भगवान श्री राम इसी स्थान पर रहते थे। वनवास के कई सारे दिन श्री राम यही रहा करते थे। इसीलिए इस मंदिर का महत्व और बढ़ जाता है।

लोककथा के अनुसार भगवान श्री राम जब वनवास में थे तो वो इस स्थान पर भी रहते थे। इस दूधाधारी मठ को जो नाम दिया गया वो इस मंदिर के स्थापक बलभद्र महंत के नाम से ही दिया गया था क्यों की वो केवल दूध का सेवन करते थे।

इसके पीछे भी एक दिलचस्प कहानी है। ऋषि बलभद्र दास के नाम से ही इस मंदिर को नाम दिया गया है। ऐसा कहा जाता है की सुरही नाम की एक गाय थी जो भगवान की मूर्ति पर दूध चढ़ाती थी। महंत जी उस दूध को प्रसाद समझकर पी जाते थे और तभी से वो ‘दूध के आहारी’ बन गए यानि ऐसा व्यक्ति जो केवल खाने में दूध का इस्तेमाल करता हो। इसीलिए इस मंदिर को दूधाधारी मठ कहा जाता है इस मंदिर की दीवारों पर रामायण से जुड़े कुछ घटनाये भी दिखाई गयी है।

दूधाधारी मंदिर की वास्तुकला – Dudhadhari Temple Architecture

इस मंदिर को केवल धार्मिक महत्व ही नहीं बल्की वास्तुकला के दृष्टि से भी बहुत ज्यादा महत्व है।

मंदिर पर किये गए बहुत ही सुन्दर मुरल और नक्काशी यात्रियों का ध्यान अपनी और आकर्षित कर लेता है। इस मंदिर को दो हिस्सों में बाटा गया है। पहले हिस्से में भगवान बालाजी का मंदिर है और दुसरे हिस्सा राम पंचायत को समर्पित है। दुसरे हिस्से में भगवान हनुमानजी का भी मंदिर है।

बालाजी मंदिर – balaji temple

जब रायपुर नागपुर प्रान्त में था तो उस वक्त इस पर भोसले शासन करते थे। सन 1610 में रघु रावजी भोसले ने इस ‘बालाजी मंदिर’ का निर्माण करवाया था। भगवान श्री राम के जीवन के कुछ सुन्दर चित्र इस मंदिर की दीवारों पर देखने को मिलते है। भगवान बालाजी की मूर्ति के पास में कुछ शालिग्राम रखे गए है। वहापर रखे गए सभी शालिग्राम भगवान विष्णु के प्रतिक माने जाते है।

संकट मोचन हनुमान मंदिर

हनुमानजी का यह मंदिर सब मंदिरों से बिलकुल अलग है क्यों की इस मंदिर की सीढिया उत्तर की दिशा में है और दरवाजा दक्षिण की दिशा में है। जब बालाजी का मंदिर बनवाया गया तो भगवान हनुमानजी ने भगवान बालाजी को देखने के लिए केवल अपने मुख को बालाजी की तरफ़ कर दिया था लेकिन उनका बाकी का शरीर पहले की दिशा में ही था।

राम पंचायतन

बालाजी मंदिर बनाने के 20 साल बाद रामपंचायतन बनाया गया था। इस रामपंचायतन के बाहरी हिस्से में रामायण और महाभारत की कुछ घटनाओ पर आधारित कुछ नक्काशीदार मुर्तिया बनाई है। इस मंदिर में भगवान श्री राम, भरत, लक्ष्मण, शत्रुघ्न और सीता देवी सभी की मुर्तिया है इसीलिए मंदिर को राम पंचायतन कहा जाता है।

त्यौहार
राम नवमी, रथयात्रा, जन्माष्टमी, गणेश चतुर्थी, दशहरा, कार्तिक पूर्णिमा और दीवाली जैसे उत्सव बड़े आनंद से मनाये जाते है।

इस दूधाधारी मंदिर में कई सारे चमत्कार हुए है। उनमेसे एक चमत्कार यह है की इस मंदिर में बहुत साल पहले हनुमानजी का मंदिर बनवाया गया। लेकिन उसके कुछ समय बाद ही वहापर एक और बालाजी भगवान का नया मंदिर बनवाया गया हैं।

पहले हनुमानजी का मुख इस बालाजी मंदिर की दिशा में नहीं था। लेकिन जब बालाजी मंदिर बना तो हनुमानजी ने अपना मुख भगवान बालाजी को देखने के लिए बालाजी मंदिर की तरफ़ कर दिया था। यह देखने के बाद सब आश्चर्यचकित हो गए थे।

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