Adi Shankara – आदि शंकराचार्य आठवी शताब्दी के भारतीय हिन्दू दर्शनशास्त्री और थेअलोजियन है, जिनके विचारो ने हिन्दू धर्म के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उन्हें आदि शंकराचार्य और भगवतपद आचार्य (भगवान के चरणों के गुरु) के नाम से भी जाना जाता है। आदिशंकर विशेषतः हिन्दू साहित्यों की उल्लेखनीय पुनःव्याख्या और वैदिक कैनन (ब्रह्मा सूत्र, उपनिषद और भगवद गीता) पर टिपण्णी करने के लिए जाने जाते है।
उनके विचारो का ज्यादातर प्रभाव हिंदुत्व के बहुत से संप्रदायों पर पड़ा है और आधुनिक भारत के विचारो के विकास में भी उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
आदि शंकराचार्य का जीवनी – Adi Shankara History
आदिशंकर का जन्म केरला राज्य के दक्षिण के गरीब परिवार में में हुआ, प्राचीन जीवनियो के अनुसार उनका जन्म तमिलनाडु राज्य के चिदंबरम के कलाती नामक ग्राम में हुआ। शंकर जब युवावस्था में थे, तभी उनके पिता की मृत्यु हो चुकी थी। पिता के मृत्यु की वजह से विद्यार्थी जीवन उनका प्रवेश देरी से हुआ।
शंकर के साथियों ने उनका वर्णन करते हुए बताया है की अल्पायु से ही वे सन्यासी के जीवन से प्रभावित थे। लेकिन उनकी माता ने उन्हें इसकी इजाजत नही दी।
पौराणिक कथा के अनुसार आठ साल के उम्र में शंकर अपनी माता के साथ नहाने के लिए नदी पर जाते थे और वहां उन्हें मगरमच्छ ने पकड़ लिया था। तभी शंकराचार्य ने अपनी माता से सन्यासी बनने की आज्ञा देने के लिए कहा, नही तो मगरमच्छ भी उन्हें मार देंगा।
उनकी माता भी इस बात पर राजी हो गयी और इसके बाद शंकर आज़ाद हो गये और शिक्षा प्राप्त करने के लिए घर भी छोड़ दिया। भारत के उत्तर-मध्य राज्य की नदियों के साथ-साथ वे साईवती अभयारण्य जा पहुचे और गोविंद भागवतपद के नाम से शिक्षक के शिष्य बन गये।
शंकर और उनके गुरु की पहली मुलाकात को लेकर इतिहास में बहुत सी कहानियाँ मौजूद है। सूत्रों के अनुसार शंकर ने गोविंदपद के साथ स्कूल की शिक्षा प्राप्त की है और साथ ही ओमकारेश्वर की नर्मदा नदी, काशी में गंगा नदी और बद्री (हिमालय में बद्रीनाथ) में उन्होंने अपनी शिक्षा प्राप्त की है।
अपने गुरुओ से उन्होंने सभी वेदों और छः वेदांगो का ज्ञान हासिल किया और फिर व्यापक रूप से यात्रा कर देश में आध्यात्मिक ज्ञान फैलाया।
उनके जीवन को लेकर इतिहास में अलग-अलग जानकारियाँ मौजूद है। बहुत से लोगो ने दावा किया है की शंकर ने वेद, उपनिषद और ब्रह्मसूत्र का अभ्यास अपने शिक्षको से साथ किया है।
अपने शिक्षक गोविंदा के साथ ही शंकर ने गौड़ापड़िया कारिका का अभ्यास किया है, गोविंदा ने स्वयं उन्हें गौड़पद की शिक्षा दी थी। साथ ही बहुत ने यह भी दावा किया है की मीमंसा हिन्दू धार्मिक स्कूल के विद्वानों के साथ उन्होंने शिक्षा प्राप्त की।
शंकराचार्य के जीवन का वर्णन बहुत से लोगो ने अलग-अलग तरीके से किया है। उनके जीवन में उन्होंने बहुत सी यात्राए की है, जिनमे तीर्थयात्राए, सार्वजानिक भाषण और शिवलिंगों की यात्राए भी शामिल है। उन्होंने उत्तर, पूर्व, पश्चिम और दक्षिण भारत की यात्रा की है।
आदिशंकराचार्य की मृत्यु – Adi Shankara Death
32 साल की उम्र में आदिशंकर की मृत्यु उत्तर भारतीय राज्य उत्तराखंड के केदारनाथ में हुई। जबकि कुछ लोगो ने उनके मृत्यु स्थल को कांचीपुरम (तमिलनाडु) बताया है।
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