Bahubali – बाहुबली जैन समुदाय के लोगो के बीच एक आदरणीय नाम है, वे जैन धर्म के पहले तिर्थंकार और ऋषभनाथ के बेटे थे। कहा जाता है की उन्होंने एक साल तक पैरो पर खड़े होकर ही स्थिर तपस्या की थी इस समय उनके पैरो के आस-पास के काफी पेड़ भी बड़े हो गए थे। जैन सूत्रों के अनुसार बाहुबली की आत्मा जन्म और मृत्यु से परे थी, और हमेशा कैलाश पर्वत पर ही वे तपस्या करते थे। जैन लोग उन्हें आदर से सिद्ध कहते है।

बाहुबली जी का इतिहास और जानकारी – Bahubali history information in Hindi
गोमतेश्वर की मूर्ति उन्हें समर्पित होने की वजह से उन्हें गोमतेषा भी कहा जाता था। इस मूर्ति को गंगा साम्राज्य के मिनिस्टर और कमांडर चवुन्दराय ने बनवाया था, यह मूर्ति 57 फूट एकाश्म है, जो भारत के कर्नाटक राज्य के हस्सन जिले के श्रवनाबेलागोला पहाड़ी पर बनी हुई है। इस मूर्ति को 981 AD के दरमियाँ बनाया गया था। और दुनिया में यह सबसे विशाल मुक्त रूप से खड़ी मूर्ति है। वे मन्मथा के नाम से भी जाने जाते है।
बाहुबली पारिवारिक जीवन – Bahubali Early family life history
जैन सूत्रों के अनुसार, बाहुबली का जन्म ऋषभनाथ और सुनंदा को इक्षवाकू साम्राज्य के समय में अयोध्या में हुआ था। कहा जाता है की औषधि, तीरंदाजी, पुष्पकृषि और बहुत से कीमती रत्नों के ज्ञान में वे निपुण थे। बाहुबली का एक बेटा सोमकिर्ती (महाबाला) भी है।
जब ऋषभनाथ ने सन्यासी बनने का निर्णय लिया था, तब उन्होंने अपने साम्राज्य को 100 बेटो में बाटा था। जिसमे भरत को विनीता (अयोध्या) साम्राज्य दिया गया था और बाहुबली को दक्षिण भारत का अस्माका साम्राज्य दिया गया था, जिसकी राजधानी पोदनपुरा थी। सभी दिशाओ में धरती के छठे भाग को जीतने के बाद, भरत अपनी पूरी सेना के साथ राजधानी अयोध्यापुरी की ओर चल दिये। लेकिन चक्र-रत्न ने अयोध्यापुरी के प्रवेश द्वार पर ही उन्हें रोक दिया था। इसके बाद भरत के सभी 98 भाई जैन साधू बन गए और उन्होंने अपने साम्राज्य को वापिस सौप दिया।
कहा जाता है की साम्राज्य को लेकर और आपसी मतभेद के चलते भरत और बाहुबली के बीच कुल तीन प्रतियोगिताये हुई थी, पहला नयन-युद्ध, जल-युद्ध और मल्ल युद्ध। लेकिन बाहुबली ने अपने बड़े भाई भरत से तीनो युद्ध जीत लिये थे।
महानता
9 वी शताब्दी की संस्कृत कविता आदि पुराण में पहले तीर्थंकर ऋषभनाथ और उनके दो बेटे भारत और बाहुबली की 10 जिंदगियो का वर्णन किया गया है। इसे दिगंबर सन्यासी जीनसेना ने बनाया था। इसके साथ ही 10 वी शताब्दी का कन्नड़ लेख भी कवी आदिकवि पम्पा संस्कृत में लिखा था।
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